VAISHYA - वैश्य ~ the Backbone of India's economy
अंग्रेजों के आने से पहले तक हमारा देश इतना धनी और समृद्ध था कि इसे सोने का चिङियां कहा जाता था।भारत को सोने के चिङियां बनाने में इन्हीं वैश्य समुदाय का योगदान जाता है। द्वारा तमाम लूट-खसोट के बाद भी वैश्य समाज के मेहनत के बदौलत 16 वीं शताब्दी तक भारत तब भी दुनिया का सबसे अधिक धनी देश था।अकेले भारत के GDP ग्रोथ इतना ज्यादा था जितना पुरे युरोप का था।तो यह उपलब्धि हमारे वैश्य समाज के बदौलत थी। यूनानी शासक सेल्यूकस के राजदूत #मैगस्थनीज ने वैश्य समाज की विरासत की प्रशंसा में लिखा है कि- "देश में भरण- पोषण के प्रचुर साधन तथा उच्च जीवन-स्तर, विभिन्न कलाओं का अभूतपूर्व विकास और पूरे समाज में ईमानदारी, अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार तथा प्रचुर उत्पादन वैश्यों के कारण है।"
#द्विज_वर्ण - ब्राह्मण क्षत्रिय और वैश्य आर्यों के द्विज वर्ण हैं । वैश्यों के ब्राह्मणों और क्षत्रियों के साथ गुरुकुल शिक्षा, उपनयन संस्कार , शिखा, सूत्र धारण करने का अधिकार है । ब्राह्मण की उपाधि शर्मा है , क्षत्रिय की वर्मा और वैश्य की गुप्त । ब्राह्मणों की उत्पत्ति परमपिता ब्रह्मा के मस्तक से हुई , क्षत्रिय की भुजाओं से और वैश्यों की *उदर से । ब्राह्मण देश की मेधाशक्ति हैं क्षत्रिय देश की रक्षा शक्ति और वैश्य देश की अर्थ शक्ति । एक मान्यता के अनुसार ब्रह्मा से ब्राह्मण , शिव-शक्ति से क्षत्रिय और विष्णु से वैश्य (अर्थात विष्णु की तरह अन्नदाता , लक्ष्मीवान और पालक ) ।
*कृषि, वाणिज्य और गौपालन से ही समाज की उदर पूर्ति होती है ।
#कर्तव्य -
विष्णु संहिता में लिखा है - क्षमा , सत्य , दम , शौच , दान , इन्द्रिय संयम , अहिंसा , गुरुसेवा , तीर्थपर्यटन , सरलता , लोभत्याग , देवब्राह्मण पूजा , और निंदा का त्याग ये वैश्य जाती के साधारण धर्म हैं ।
#मनुस्मृति के अनुसार अध्ययन, कृषि, वाणिज्य, पशु रक्षा, दान देना और कुसीन्द वैश्यों के प्रमुख कार्य हैं ।
"पशूनां रक्षणं दानमिज्याध्ययनमेव च ।
वणिक पथम कुसीदं च वैश्यश्च कृषिमेव च ।।"
श्री वामन पुराण में भी बताया गया है -
"यज्ञाध्ययन-सम्पन्नता दातारः कृषिकारिणः ।
पशुपालयं प्रकुर्वन्तु वैश्य विपणीजीविनः ।।"
वैश्यगण यज्ञाध्ययन से सम्पन्न दाता , कृषिकर्ता व वाणिज्य जीवी हों । तथा पशुपालन का कर्म करें ।
#महाभारत में उल्लेख आया है कि सर्वादिक धनाढ्य होने के कारण राज्य को #सर्वादिक_कर देने वाला वैश्य वर्ग ही था । "उपातिष्ठनत कौन्तेयं वैश्य इव कर प्रदः ।"
#नाम_व_उपाधियां - वैश्य शब्द का संस्कृत पर्याय उरुव्य , उरूज , भुमीजीवी , वट , द्विज , वार्तिक , सार्थवाह , वणिक , पणिक है ।
आदि जगत के इतिहास में जिस फिणिक (फिनिशन्स) नामक जिस प्राचीन जाती का उल्लेख है वह ऋक सहिंता की पणि नाम की जाती का अपभ्रंश है । (तं गूर्तयोने मनिषः परिणसः समुद्रं न संचरने सनिस्पवः) । इस मंत्र में धनार्थी पणिगण समुद्र व सागरद्वारा यात्रा करके व्यापार करते थे ।
वैश्य वर्ण के लिए बौद्ध साहित्य में वेस्स , गृहपति , सेट्टी , कुटुम्भिक , आदि शब्द मिलते हैं । इसके अलावा बौद्ध काल मे वैश्य गृहपति भी कहे जाते थे । सेट्टी अथवा सेठ (बड़े व्यापारी) के साथ वह बैंकपति और सार्थवाह भी थे । सार्थवाह दूरस्थ प्रदेशों की यात्रा करके व्यापार करते थे ।
वैश्यों को महाजन, सेठ, नगरसेठ, धन्नासेठ, जगतसेठ आदि उपाधियों से भी सम्मानित किया जाता था । जो श्रेष्ठ से बनी है । और संस्कृत शब्दकोश में साधु शब्द जिससे साहू या शाह बना वो भी व्यापारियों के लिए प्रयोग होता था ।
#राजतंत्र_में_वैश्य -
महाभारत कालीन मंत्रिमंडल में सर्वादिक 21 मंत्री पद वैश्यों के लिए थे । महाभारत शान्तिपर्व में राजधर्मानुशासन पर्व के ८५वें अध्याय श्लोक ७-११ में पितामह भीष्म ने 'धर्मराज' युधिष्टिर को उपदेश देते हुए मंत्रिमंडल के आकार के विषय में कहा - "राजा के मंत्रिमंडलं में 4 वेदपाठी ब्राह्मण, 8 क्षत्रिय, 21 धन धान्य से सम्पन्न वैश्य, 3 शूद्र 1 सूत को मंत्रिमंडल में सम्मिलित करें ।"
शतपथ ब्राह्मण के अनुसार क्षत्रिय राजतंत्र और वैश्य ग्राम व्यवस्था संभालते थे ग्राम प्रधान बनकर ।
#आधुनिक_काल_और_मध्य_काल_में_वैश्य_जाती ~
इस समयखण्ड में भी वैश्य जाती का भारत के उत्थान और हिन्दू धर्म के लिए में अभुत्व पूर्ण योगदान रहा है ।
◆ कई इतिहासकारों के अनुसार #गुप्तकाल जो भारत का स्वर्णिम काल कहा जाता है जिसमें हिन्दू धर्म का चतुर्दिश उत्थान हुआ वो वैश्य थे ।
◆कई वैश्य जातियां जैसे अग्रवाल , रस्तोगी और बर्णवाल इत्यादि प्राचीन गणतांत्रिक व्यवस्था से निकली हैं। सिद्धार्थ गौतम भी शाक्य गणतंत्र के थे । पाणिनि की अष्टाध्यायी , जैन व बौद्ध ग्रंथों में लिछवि, वैशाली , मालव आदि गणराज्यों का उल्लेख है । अग्रवाल जिस प्राचीन गणतंत्र के थे 'आग्रेय' वो महापंडित राहुल सांस्कृत्यायन के अनुसार यौधेयों के गणतंत्र का एक अंग था जो भारत की द्वितीय रक्षा प्रणाली था गुप्त काल तक । यौधेयों ने अनेकों वर्षों तक हमें विदेशी शक, हूण आक्रमणकारियों से बचाया था । सिकंदर से भी युद्ध में आग्रेय गणराज्य ने भाग लिया था । आग्रेय गणराज्य का जिक्र महाभारत में मालव और रोहतगी गणराज्यों के साथ आया है । इसे महाराज अग्रसेन ने बसाया था ।
◆ मध्यकाल में वैश्य रजवाड़ों में ऊंचे और बड़े पदों पे थे जिनका युद्ध मे भाग लेना भी इतिहास में दर्ज है । उदाहरणतः मारवाड़ी वैश्य भामाशाह महाराणा प्रताप के प्रधान मंत्री, अच्छे मित्र व सलाहकार थे ।
◆हिन्दू धर्म की संजीवनी गीताप्रेस गोरखपुर दो मारवाड़ी अग्रवालों हनुमान प्रसाद पोद्दार और जयदयाल गोयनका जी की दें थी जिसने घर घर में हमारे धर्म शास्त्र पहुंचाए । ◆भारतीय ISRO जिसने कई महत्वपूर्ण मिशन में अपने झंडे गाड़ें हैं उसके संस्थापक एक गुजराती जैन बनिया 'विक्रम साराभाई' थे ।
◆आज वैश्य समाज भारत की अर्थव्यस्था की रीढ़ हैं ।
लेख साभार: प्रखर अग्रवाल की फेसबुक वाल से साभार
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