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Tuesday, April 2, 2019

RUPA GROUP - कभी दुकानों से भगा दिया जाता था, आज है 1500 करोड़ के बिज़नेस

कभी दुकानों से भगा दिया जाता था, आज है 1500 करोड़ के बिज़नेस के मालिक


Rupa Group Success Story : इस कंपनी को इस मुकाम तक पहुचाने में दो भाइयों की जोड़ी ने अपने पूरे जीवन को समर्पित कर दिया है उनके नाम है प्रहलाद राय अग्रवाल (74) और कुंज बिहारी अग्रवाल (64) जो व्यापार क्षेत्र में KB और PRके नाम से विख्यात हैं। दोनों मारवाड़ी व्यापारिक विरासत से आये है जिन्होंने अपना पूरा जीवन व्यापार में लगा दिया है।

जब KB से व्यापार के बारे में पूछा गया तो उनके अनुसार – ” व्यापार एक तरह से एडजस्टमेंट है जिसमें हमेशा मार्कट की गति के अनुसार अपने आप को अच्छा बनाते हुए कैसे आप वस्तुओं को क्वालिटी के साथ बेच सकते हो और अपनी मार्केट वैल्यू बनाते हो।“

इसी फिलॉसफी पर काम करते हुए आज रूपा अपने व्यापार क्षेत्र (इनरवेयर बिज़नेस) में लीडर बनकर उभरा है जो सतत विकास एवं प्रयासों का साझा फल है। यह एक कहानी है जो लगातार बन रहे मार्केट में मौकों को भुनाने के साथ ही नवीनतम तकनीक और कठिन मेहनत से अपने लक्ष्यों को प्राप्त करना है।

जैसे जैसे लोगों की आमदनी बढ़ती गई है वैसे ही इस क्षेत्र में भी कॉम्पिटिशन बढ़ता गया है , इनरवियर बिज़नेस में आज LUX, VIP, Dollar और Jockey जैसे ब्रांड मौजदू है लेकिन RUPA एक मार्केट लीडर के रूप में उभरा है जो इस कंपनी के लीडरशिप को दर्शाता है ।

रूपा ग्रुप के इनरवियर ब्रांड्स 

सबसे खास चीज़ जो RUPA ने अन्य प्रतिस्पर्धीयों से अलग की है वो है अपने ही क्षेत्र में ब्रांड को विकसित करना। जब Rupa ब्रांड पूरे भारत मे अच्छा बिज़नेस कर रहा था तब इन्होंने MacroMan नाम से एक प्रीमियम ब्रांड मार्किट में उतारा.

जो आज उनका फ्लैगशिप ब्रांड बन गया है जिसकी पहुंच अब निम्न और मध्यम वर्गीय ग्राहकों के साथ ही उच्च वर्ग ग्राहकों में भी अपनी छाप छोड़ने में सफल रहा है। इस ब्रांड के द्वारा इन्होंने ग्राहकों को एक प्रीमियम अनुभव कराने का एक सफल उदाहरण पेश किया है।

इस तरह के सफल प्रयोगों के साथ इंडस्ट्री लीडर बनना RUPA के लिये आसान होता गया , इन ब्रांड्स ने रेवेन्यू को पांच गुना करते हुए 800 करोड़ रुपये तक पहुंचा दिया है तथा सालाना लगभग 20% की दर से इनका रेवेन्यू और प्रॉफिट बढ़ रहा है .

इनके पास अब पूरी ब्रांड चैन बन चुकी है जो किड्स से लेकर एडल्ट्स तथा निम्न से उच्च वर्गों में अपनी विशेष उपस्थिति दर्ज करवाने में कामयाब रहे हैं।

Rupa Group Success Story

तो कहानी शुरू होती है 1968 में जब 19 वर्षीय PR अग्रवाल ने वो शुरुआत की है जो आज RUPA Group के नाम से हमारे सामने है। इनकी कहानी भी राजस्थान के मारवाड़ी परिवारों से मिलती है जिन्होंने ने रोज़गार के नए अवसरों के लिए राजस्थान को छोड़कर देश के अन्य क्षेत्रों की तरफ रुख किया था।

रूपा के विज्ञापन 

PR के पिताजी शेखावाटी क्षेत्र के सीकर जिले के रहने वाले थे, लगातार अकाल और खेती के चौपट होने के कारण कोलकाता शिफ्ट होने का निर्णय लिया। कोलकाता में बहुत ही कम पूंजी में अपना व्यापार शुरू किया और पूरा परिवार यही विस्थापित हो गया ।

PR शुरुआत में कोलकाता में एक कॉलेज खोलना चाहते थे लेकिन साथ ही अपने परिवार के बिज़नेस में भी लगातार काम करते रहे। हमेशा मेहनती और नए आइडियाज पर काम करने वाले PR अपने पिताजी से विरासत में मिले व्यापार से ज्यादा खुश नही थे।

इसी तड़प और नए करने की चाहत ने 1962 में बिनोद होजरी नाम से मैन्युफैक्चरिंग यूनिट की नींव डाली लेकिन अगले 6 सालों में यह व्यापार नही चल पाया और वो घाटे में आ गए।

अपने कारोबार या यूं कहें कि अपने अस्तित्व को बचाने के लिए 1968 में इन्होंने RUPA नाम से इनरवेयर उत्पादन का काम शुरू किया जो उनके पिछले से कारोबार से कई गुना कारगर साबित हुआ।

1960 के दशक में Dora नाम से एक इनरवेयर ब्रांड बहुत ही पॉपुलर होने के साथ ही मार्किट लीडर था। PR का सीधा सामना अब Dora से ही होने वाला था , जब भी रिटेलर्स के पास अपने ब्रांड Rupa को बेचने जाते तो उन्हें दुकानों से भगा दिया जाता था।

जब रिटेलर्स उनका प्रोडक्ट नही ले रहे है तो उन्होंने व्हॉल सेलर्स को 2 महीने तक माल क्रेडिट पर देना शुरू कर दिया तथा धीरे धीरे Rupa ब्रांड मार्किट में अपनी पहुंच बनाने में कामयाब रहा लेकिन अभी भी DORA से प्रतिस्पर्धा बहुत दूर की बात थी।

एक  समारोह के दौरान ग्रुप  संस्थापक अग्रवाल बंधू 

कहते है जब इंसान कठिन मेहनत कर रहा होता है तो ईश्वर भी उसका साथ देता है , ऐसा ही कुछ PR के साथ भी हुआ । अगले तीन साल में Dora ने अपने रिटेल क्षेत्र में ध्यान बढ़ाने के चलते कम लाभ वाले इनरवेयर बिज़नेस को बंद कर दिया ।

ये मौका PR के लिए एक मार्केटिंग अवसर बन कर आया और इसको PR ने हाथों हाथ लिया और जुट गए Rupa को ब्रांड बनाने में , इनके इस काम मे छोटे भाई KB का भी महत्वपूर्ण योगदान रहा।

कोलकाता के आसपास अपनी पैठ बनाने के बाद RUPA ने पूरे देश मे अपनी पहुंच बनाने का फैसला लिया और अच्छी क्वालिटी के साथ ही आक्रामक मार्केटिंग के साथ ही अपने क्षेत्र में उतर गए ।

Rupa ने अपने आप को मार्कट में बनाये रखने के लिए आउटसोर्सिंग के बजाय ब्रांड क्रिएशन और मार्केटिंग पर ज्यादा ध्यान दिया । इसी के फलस्वरूप 1980 में बॉलीवुड फिल्मों के कैसेट्स पर एडवरटाइजिंग देने का फैसला किया जिससे पूरे देश मे इनकी पहुंच बनी और सेल्स में जोरदार बढ़त देखने को मिली।

लेकिन असली सफलता 1990 में आज तक के साथ एडवरटाइजिंग के बाद मिली और उनकी टैग लाइन ‘ ये आराम का मामला हैं‘ सभी की जुबान पर चढ़ गई और आज का RUPA ब्रांड अब मार्केट लीडर बन गया है । अब बाकी की कहानी मार्केट की सफलता की कहानियां बन गई है ।

PR और KB दोनों भाइयों ने मिलकर अपनी व्यापारिक कुशलता एवम मेहनत से भारतीयों का सबसे पसंदीदा ब्रांड खड़ा कर लिया है ।

RUPA के बारे में रोचक तथ्य: 

रूपा के ब्रांड – 
Softline, 
Euro, 
Bumchums, 
Torrido, 
Thermocot, 
Macroman, 
Footline and 
Jon 

इनरवेयर मार्केट लीडर 

सेलिब्रिटी जो रूपा ब्रांड से जुड़ चुके हे – Govinda, Sanjay Dutt, Aishwarya Rai, Ronit Roy, Ranveer Singh, Sidharth Malhotra, Bipasha Basu 
Revenue – 1500 Carore 

सीखने योग्य बातें

इस RUPA ग्रुप के सफर से कई वास्तविक अनुभव निकल कर आये है जिन्हें अपने जीवन मे आत्मसात कर सकते है। सबसे महत्वपूर्ण बात सीखने को जो मिलती है वो अंत तक लड़ते रहना और कितनी भी विषम परिस्थितियों में भी हार नहीं मानना ।

हम भी शरुआती विफलताओं से घबरा कर अपना कार्य बीच मे ही छोड़ देते है जिससे हमारा सारा किया गया कार्य व्यर्थ हो जाता है। हमें अंत तक लड़ना चाहिए और हमेशा विफलता के बाद भी एक और प्रयास के लिए अपने आप को मानसिक रूप से तैयार रखना चाहिए।

DEEPAK GUPTA - मल्टीनेशनल कंपनी की नौकरी छोड़ डेयरी से सालाना करोड़ों की कमाई कर रहे दीपक गुप्ता

मल्टीनेशनल कंपनी की नौकरी छोड़ डेयरी से सालाना करोड़ों की कमाई कर रहे दीपक गुप्ता

सिंगापुर में कृषि क्षेत्र से जुड़ी एक मल्‍टीनेशनल कंपनी में तीस वर्षों की लगी-लगाई नौकरी छोड़कर दीपक गुप्ता इन दिनों नाभा (पंजाब) में हिमालय क्रीमी डेयरी से सालाना करोड़ों रुपए की कमाई कर रहे हैं। उनका धंधा कुछ ही साल में इतना मुनाफेदार होने की सबसे बड़ी वजह है उनके डेयरी की दूध की शुद्धता। वह अपने यहां किसी को दूध छूने भी नहीं देते हैं। थन से सीधे दूध कोल्ड टैंकों में स्टोर होता है।

दीपक गुप्ता

पहले दूध में केवल पानी मिलाया जाता रहा है किन्तु आज हालात ये हैं कि लोग दूध में सिंथेटिक पदार्थ मिलाने लगे हैं। दूध में मिलाये जाने वाले कुछ केमिकल तो इतने दुष्प्रभावी होते ही हैं कि उनका असर आने वाली संतानों पर भी पड़ने का खतरा होता है। 

सिंगापुर में अपना लंबा करियर छोड़ कर चंडीगढ़ से लगभग दो घंटे की ड्राइव दूरी पर नाभा (पंजाब) में हिमालय क्रीमी डेयरी चला रहे दीपक गुप्ता बताते हैं कि उन्होंने 20 एकड़ जमीन में डेयरी स्थापित की है जिसमें होल्सटीन फ्रीजिएन तथा जर्सी नस्ल की सैकड़ों गायें हैं। उनका सपना था कि वह लोगों को ऐसा दूध उपलब्ध कराएं, जिसे हाथ से छुआ भी न गया हो। यह नया नहीं है बल्कि दुनिया भर में ‘फार्म टू टेबल’ डेयरी कारोबार के नाम से काफी प्रचलित है, जिसे लोग पसंद भी करते हैं। उनकी डेयरी में दूध को हाथ से छुआ भी नहीं जाता। सीधे स्टोर किया जाता है। इसके बाद दूध को रेफ्रिजरेटेड ट्रकों के जरिये सप्लाई किया जाता है। गायों के चारे के लिए वह फार्म में जैविक पद्धति से उगे गेहूं और सब्जियों का इस्तेमाल करते हैं।

गायों के वेस्ट का इस्तेमाल कर बायोगैस और उर्वरक भी तैयार किया जाता है। आज हिमालय क्रीमी डेयरी फार्म से उन्हें सालाना कई करोड़ की आय हो रही है। दो साल पहले उन्होंने डेयरी फॉर्म का यह काम शुरू किया था। चंडीगढ़ के डीएवी कॉलेज में पढ़ाई-लिखाई पूरी करने के बाद उन्हें नौकरी की जरूरत महसूस हुई तो विदेश निकल गए। वह सिंगापुर में एक मल्‍टीनेशनल कंपनी में नौकरी करने लगे लेकिन अपना मुल्क छोड़कर तीन दशक तक लगातार विदेश में रहने से उनका मन उचटने लगा था। विदेश में वह जिस मल्‍टीनेशनल कंपनी में नौकरी करते थे, उसका भी एग्रीकल्‍चर का ही काम था। उससे भी उन्हें अपने इस नए धंधे का अनुभव मिला था।

एक दिन जब वह सिंगापुर से भारत लौट रहे थे, तभी रास्ते में अखबार पढ़ते समय एक खबर ने उनको इतना उत्साहित कर दिया कि जीवन की दिशा ही बदल गई। उन्होंने उसी वक्त सिंगापुर की नौकरी छोड़ने की ठान ली। तय कर लिया कि अब जो कुछ करेंगे, अपने देश की धरती पर। अब नौकरी के लिए सिंगापुर नहीं जाएंगे। घर लौटकर उन्‍होंने अपनी लगभग बीस एकड़ की जमीन पर डेयरी का काम शुरू कर दिया। अच्छी नस्ल की जर्सी गाएं खरीद लाए। उनके साथ कुछ अन्य नस्ल की भी गाएं थीं। धीरे-धीरे उनकी संख्या तीन सौ से अधिक हो गई। इस वक्त साढ़े तीन सौ गाएं उनके फॉर्म में हैं। उनको रोजाना मशीनों से दुहा जाता है।

शुद्धता को ध्यान में रखते हुए मशीनों के जरिए दूध सीधे टैंकों में जमा किया जाता है और वहीं से ग्राहकों को सप्लाई कर दिया जाता है। दीपक गुप्ता बताते हैं कि आजकल आम तौर से ग्राहकों को शुद्ध दूध का अभाव रहता है। उनको जल्दी पूरी तरह गैरमिलावटी दूध मिलना मुश्किल रहता है। ऐसे में वह किसी भी कीमत पर अपनी गायों के दूध की शुद्धता पर कोई समझौता नहीं करना चाहते हैं। यहां तक कि पैकिंग के वक्त भी उनके दूध पर कोई कर्मचारी हाथ नहीं लगा सकता है। यही कारण है कि ग्राहक उनके दूध की शुद्धता पर पूरा भरोसा करते हैं और इससे उनके दूध की मांग लगातार बढ़ती जा रही है।

किसी ज़माने में भारत में शुद्ध दूध की पर्याप्त मात्रा में उपलब्धता का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इसे दूध-दही की नदियां बहने वाला देश कहा जाता था। पहले दूध में केवल पानी मिलाया जाता रहा है किन्तु आज हालात ये हैं कि लोग दूध में सिंथेटिक पदार्थ मिलाने लगे हैं। दूध में मिलाये जाने वाले कुछ केमिकल तो इतने दुष्प्रभावी होते ही हैं कि उनका असर आने वाली संतानों पर भी पड़ने का खतरा होता है। वैसे अब दूध की शुद्ध आजमाने के तरीके भी लोगों ने सीख लिए हैं। शुद्धता जांचने के लिए सर्वप्रथम आप उसकी खुशबू लें। यदि उस दूध में साबुन जैसी गंध आती है तो वह दूध सिंथेटिक है।

शुद्ध दूध स्वाद में हल्का मीठा होता है, जबकि नकली और सिंथेटिक दूध का स्वाद डिटर्जेंट और सोडा मिला होने के कारण कड़वा हो जाता है। शुद्ध दूध को कुछ समय या एक से अधिक दिन भी स्टोर करने पर उसका रंग नहीं बदलता, जबकि नकली दूध कुछ ही समय के बाद पीला पड़ने लगता है। पानी के मिलावट की पहचान करने के लिए दूध को एक काली सतह पर थोड़ा सा गिरा दे। यदि दूध असली होगा तो उसके पीछे एक सफेद लकीर छूटेगी अन्यथा नही। उबालते समय शुद्ध दूध का रंग नही बदलता है जबकि नकली दूध उबालने पर पीले रंग का हो जाता है। किसी चिकनी जगह जैसे लकड़ी या पत्थर की सतह पर एक-दो बूंद दूध टपकाइए, आप देखेंगे की यदि वह शुद्ध है तो नीचे की और बहने पर उसके पीछे सफ़ेद धारी जैसा निशान हो जाएगा वरना दूध अशुद्ध है। शुद्ध दूध को हथेली पर रगड़ने से चिकनाहट महसूस नहीं होती है जबकि अशुद्ध दूध डिटर्जेंट जैसी चिकनाहट पैदा कर देता है। दीपक गुप्ता के डेयरी का दूध इन सारे तरीकों से आजमाया जा चुका है। आज तक उन्हें कहीं से कोई शिकायत सुनने को नहीं मिली है।

दीपक गुप्ता की डेयरी

दीपक गुप्ता को अब शुद्धता की बदौलत ही अपने व्यवसाय से अब सालाना करोड़ों रुपए की कमाई हो रही है। वह अपने इस कारोबार से इतना संतुष्ट और खुश हैं कि उन्हें न तो पुराना जॉब छोड़ने का कोई पश्चाताप है, न और किसी काम की जरूरत रह गई है। उनका ये कारोबार दिनोदिन उन्नत होता जा रहा है। दीपक गुप्ता बताते हैं कि अखबार की खबर भी एक निमित्त मात्र बनी, पढ़ते ही तुरंत मूड बना लिया वरना हाईटेक डेयरी खोलना तो उनका पढ़ाई के समय से ही बड़ा पुराना सपना रहा है। हां, बिना हाथ लगाए दूध की पैकिंग का आइडिया जरूर उन्‍हें सिंगापुर से भारत के सफर के दौरान मिला था। वह अक्‍सर भारत में अखबारों में मिलावटी दूध के बारे में पढ़ते थे। तभी से उनके मन में कुछ नया करने की बात तेजी से जोर मारने लगी थी। वैसे भी हमारे देश में खाटी दूध मिलना सपने जैसा ही होता है। खास कर त्योहारों के मौके पर शुद्ध खोवा तक मिलना दुश्वार रहता है। पता नहीं क्यों लोग दूध जैसे पेय का इतनी धोखेबाजी से धंधा करते हैं। ईमानदारी से करें तो इसमें वैसे ही भारी बरक्कत के चांस रहते हैं।

विश्व खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) ने अभी पिछले महीने ही कहा है कि उपज बढ़ाने के लिए कीट नाशकों तथा अन्य रासायनों के इस्तेमाल से कृषि उत्पादों आदि में प्रदूषण होने से भारत में मां का दूध भी पूरी तरह शुद्ध नहीं रह गया है, फिर गाय-भैस के दूध की शुद्धता की बात कौन करे लेकिन दीपक गुप्ता कहते हैं कि उनका दावा है, कोई उनकी डेयरी के दूध को अशुद्ध सिद्ध करके दिखाए। वैसे साधारणतया दूध में 85 प्रतिशत जल होता है और शेष भाग में ठोस तत्व यानी खनिज और वसा होता है। गाय-भैंस के अलावा बाजार में विभिन्न कंपनियों का पैक्ड दूध भी उपलब्ध होता है। दूध प्रोटीन, कैल्शियम और राइबोफ्लेविन (विटामिन बी -2) युक्त होता है। इनके अलावा इसमें विटामिन ए, डी, के और ई सहित फॉस्फोरस, मैग्नीशियम, आयोडीन व कई खनिज और वसा तथा ऊर्जा भी होती है।

इसमें कई एंजाइम और कुछ जीवित रक्त कोशिकाएं भी हो सकती हैं। गाय के दूध में प्रति ग्राम 3.14 मिली ग्राम और भैस के दूध में प्रति ग्राम 0.65 मिली ग्राम कोलेस्ट्रॉल होता है। जहां तक मिलावट की बात है, आजकल ज्यादातर कंपनियां इसमें विटामिन ए, लौह और कैल्शियम ऊपर से मिलाती हैं। इसमें भी कई तरह के जैसे फुल क्रीम, टोंड, डबल टोंड और फ्लेवर्ड मिल्क बेचे जा रहे हैं। फुल क्रीम में पूर्ण मलाई होती है, अतः वसा सबसे अधिक होता है। इन सभी की अपनी उपयोगिता है, पर चिकित्सकों की राय के अनुसार बच्चों के लिए फुल क्रीम दूध बेहतर है तो बड़ों के लिए कम फैट वाला दूध। दीपक गुप्ता कहते हैं कि दूध में यदि मिलावट कर दीजिए तो खीर, खोआ, रबड़ी, कुल्फी, आईस्क्रीम यानी दुग्ध जनित हर प्रोडक्ट मिलावटी हो जाता है। इसलिए वह कत्तई अपने यहां दूध को किसी हाथ लगाने भर की भी छूट नहीं देते हैं।

साभार: yourstory.com/hindi/3857b45677-deepan-gupta-earning-m


Monday, April 1, 2019

अग्रोहा और लक्खी तालाब

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सालभर में बीकानेर के तीन अग्रवाल परिवारों ने 7000 करोड़ के नमकीन बेचे.


साभार: नवभारत टाइम्स 

MARWARI IN DELHI - दिल्ली में मारवाड़ी

ACHIN AGRWAAL - अचिन अग्रवाल, वैश्य गौरव




 


साभार: दैनिक भास्कर 

श्रेया अग्रवाल ने देश किये जीते ३ गोल्ड, बनाया विश्व रिकोर्ड

मप्र / शूटिंग के लिए 12वीं की परीक्षा छोड़ी थी, अब श्रेया ने देश के लिए जीते तीन गोल्ड मेडल


3 साल पहले पहली बार श्रेया ने उठाई थी एयरगन, अब वर्ल्ड चैम्पियन; भाई भी राष्ट्रीय स्तर का निशानेबाज

जबलपुर. यहां की रहने वाली श्रेया ने सोमवार को ताइपे (ताइवान) में चल रही 12वीं एशियन एयरगन शूटिंग चैम्पियनशिप में 10 मीटर एयर राइफल जूनियर वर्ग में वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाने के साथ गोल्ड मेडल जीता। वे इससे पहले टीम और मिक्स्ड टीम इवेंट में भी देश के लिए गोल्ड जीत चुकी हैं। इस प्रदर्शन से उनके घर में जश्न का माहौल है। पिता संजय अग्रवाल ने दैनिक भास्कर एप प्लस से बातचीत की। उन्होंने श्रेया की जिंदगी के उस वाकये का जिक्र किया, जिसने बेटी को आज शिखर पर पहुंचा दिया।

पिता ने बताया कि तीन साल पहले, जब श्रेया 9वीं में थीं, तब वह स्कूल टीम के साथ एक शूटिंग इवेंट में गई थी। वहां उसने गोल्ड मेडल जीत लिया। इसके बाद वह निशानेबाजी का नियमित ट्रेनिंग लेने लगी। दूसरी वजह, उसका भाई यश है। जो राष्ट्रीय स्तर का शूटर है।

रात को ही कह दिया था कि गोल्ड जीतूंगी

पिता बताते हैं कि श्रेया ने अपने पहले प्रदर्शन के बाद से पीछे मुड़कर नहीं देखा। रविवार रात 8.30 बजे श्रेया का फोन आया था। कहा- कल मैच है। मैं गोल्ड ही जीतूंगी। इसके बाद हमें आज 11 बजे उसके कोच निशांत नथवानी ने बताया कि बेटी ने वर्ल्ड रिकॉर्ड के साथ गोल्ड जीता है।

परीक्षा और खेल में, खेल को चुना 

संजय ने बताया कि एशियन चैम्पियनशिप के लिए दिल्ली में ट्रॉयल हो रहे थे और श्रेया को इसके लिए चुना। उसने मां (मीना अग्रवाल) और मुझसे कहा- शूटिंग चैम्पियनशिप का ट्रॉयल है और 12वीं की परीक्षा भी चालू हो रही है। इस पर हमने उसे कहा- परीक्षा होती रहेगी। तुम ट्रॉयल देने जाओ। वह गई और एशियन शूटिंग चैम्पियनशिप के लिए चुन ली गई।

तीन साल पहले उठाई गन, अब विश्व चैम्पियन 

18 साल की छोटी सी उम्र में विश्व निशानेबाजी चैंपियनशिप में स्वर्णिम प्रदर्शन करने वाली श्रेया ने महज 3 साल पहले राइफल पकड़ी थी। नियमित अभ्यास, लगन और मेहनत के कारण उनकी देश के शीर्ष जूनियर निशानेबाजों के बीच अलग पहचान है।

गगन नारंग फाउंडेशन का फायदा मिला 

पिता ने बताया कि गगन नारंग फाउंडेशन से जुड़ने का श्रेया को फायदा मिला। उसने शूटिंग की बारीकियां तेजी से सीखीं। जबलपुर में उसके कोच निशांत नथवानी हैं। वे भी नारंग फाउंडेशन से जुड़े हैं।

बेटी पर गर्व है: पिता

ईपीएफ विभाग में कार्यरत पिता संजय कहते हैं, हमें अपनी बेटी पर गर्व है। उसने मप्र के साथ ही दुनिया में देश का मान बढ़ाया। इन तीन मेडल के साथ ही अब तक वह 13 इंटरनेशनल मेडल जीत चुकी है। सरकार ने उसे ओलंपिक गोल्ड क्वेस्ट (ओजीक्यू) के लिए भी चुना है। मां मीना अग्रवाल शासकीय शिक्षक हैं। बेटी की सफलता से बेहद खुश मीना कहती हैं- हमें उसके पदक जीतने की उम्मीद थी और उसने एक-दो नहीं पूरे तीन गोल्ड मेडल जीत लिए।


12वीं एशियन एयरगन शूटिंग चैंपियनशिप में श्रेया का प्रदर्शन- 

1 - 10 मीटर व्यक्तिगत स्पर्धा - गोल्ड 

2 - टीम इवेंट में गोल्ड 

3 - मिक्स्ड डबल में गोल्ड

श्रेया अग्रवाल का वर्ल्ड रिकॉर्ड.

श्रेया अग्रवाल ने चीन की रुओझू का 10 मीटर एयर राइफल का रिकॉर्ड तोड़ जूनियर महिला वर्ग में बनाया वर्ल्ड रिकॉर्ड

ताइपे। पूरा भारत इस समय IPL के रंग में रंगा हुआ है। इस IPL में अब तक कई दिलचस्प मुकाबले देखने को मिले हैं। ऐसे में हर कोई IPL पर नजरे गड़ाए बैठा है। लेकिन, भारत के जूनियर चैंपियनों ने दुनिया में देश का नाम रोशन कर दिया है। शूटर श्रेया अग्रवाल ने सोमवार को एशियाई एयरगन चैंपियनशिप में जूनियर वर्ग का वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाया है।

ताइपे में चल रही एशियाई एयरगन चैंपियनशिप के जूनियर महिला वर्ग मुकाबले में श्रेया अग्रवाल ने 10 मीटर एयर राइफल में स्वर्ण पदक भी अपने नाम किया। 18 साल की श्रेया ने फाइनल में 252.5 अंक हासिल किए, जो वर्ल्ड रिकॉर्ड है। इस वर्ग में भारत की मेहुली घोष ने कांस्य पदक जीता। उन्होंने 228.3 का स्कोर किया।

रिकॉर्ड

10 मीटर एयर राइफल के जूनियर महिला वर्ग मुकाबले में यह रिकॉर्ड अब तक चीन की रुओझू झाओ के नाम था। रुओझू ने पिछले साल 22 अप्रैल को कोरिया में वर्ल्ड चैम्पियनशिप के दौरान 252.4 का स्कोर किया था।
इस प्रतियोगिता में यशवर्धन के साथ मिलकर श्रेया अग्रवाल 10 मीटर एयर राइफल जूनियर मिक्स्ड टीम का स्वर्ण पदक पहले ही जीत चुकी हैं। उस इवेंट में मेहुली घोष और केवल प्रजापति की भारतीय जोड़ी रजत पदक जीतने में सफल रही थी।

साभार: दैनिक भास्कर