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Tuesday, April 2, 2019

DEEPAK GUPTA - मल्टीनेशनल कंपनी की नौकरी छोड़ डेयरी से सालाना करोड़ों की कमाई कर रहे दीपक गुप्ता

मल्टीनेशनल कंपनी की नौकरी छोड़ डेयरी से सालाना करोड़ों की कमाई कर रहे दीपक गुप्ता

सिंगापुर में कृषि क्षेत्र से जुड़ी एक मल्‍टीनेशनल कंपनी में तीस वर्षों की लगी-लगाई नौकरी छोड़कर दीपक गुप्ता इन दिनों नाभा (पंजाब) में हिमालय क्रीमी डेयरी से सालाना करोड़ों रुपए की कमाई कर रहे हैं। उनका धंधा कुछ ही साल में इतना मुनाफेदार होने की सबसे बड़ी वजह है उनके डेयरी की दूध की शुद्धता। वह अपने यहां किसी को दूध छूने भी नहीं देते हैं। थन से सीधे दूध कोल्ड टैंकों में स्टोर होता है।

दीपक गुप्ता

पहले दूध में केवल पानी मिलाया जाता रहा है किन्तु आज हालात ये हैं कि लोग दूध में सिंथेटिक पदार्थ मिलाने लगे हैं। दूध में मिलाये जाने वाले कुछ केमिकल तो इतने दुष्प्रभावी होते ही हैं कि उनका असर आने वाली संतानों पर भी पड़ने का खतरा होता है। 

सिंगापुर में अपना लंबा करियर छोड़ कर चंडीगढ़ से लगभग दो घंटे की ड्राइव दूरी पर नाभा (पंजाब) में हिमालय क्रीमी डेयरी चला रहे दीपक गुप्ता बताते हैं कि उन्होंने 20 एकड़ जमीन में डेयरी स्थापित की है जिसमें होल्सटीन फ्रीजिएन तथा जर्सी नस्ल की सैकड़ों गायें हैं। उनका सपना था कि वह लोगों को ऐसा दूध उपलब्ध कराएं, जिसे हाथ से छुआ भी न गया हो। यह नया नहीं है बल्कि दुनिया भर में ‘फार्म टू टेबल’ डेयरी कारोबार के नाम से काफी प्रचलित है, जिसे लोग पसंद भी करते हैं। उनकी डेयरी में दूध को हाथ से छुआ भी नहीं जाता। सीधे स्टोर किया जाता है। इसके बाद दूध को रेफ्रिजरेटेड ट्रकों के जरिये सप्लाई किया जाता है। गायों के चारे के लिए वह फार्म में जैविक पद्धति से उगे गेहूं और सब्जियों का इस्तेमाल करते हैं।

गायों के वेस्ट का इस्तेमाल कर बायोगैस और उर्वरक भी तैयार किया जाता है। आज हिमालय क्रीमी डेयरी फार्म से उन्हें सालाना कई करोड़ की आय हो रही है। दो साल पहले उन्होंने डेयरी फॉर्म का यह काम शुरू किया था। चंडीगढ़ के डीएवी कॉलेज में पढ़ाई-लिखाई पूरी करने के बाद उन्हें नौकरी की जरूरत महसूस हुई तो विदेश निकल गए। वह सिंगापुर में एक मल्‍टीनेशनल कंपनी में नौकरी करने लगे लेकिन अपना मुल्क छोड़कर तीन दशक तक लगातार विदेश में रहने से उनका मन उचटने लगा था। विदेश में वह जिस मल्‍टीनेशनल कंपनी में नौकरी करते थे, उसका भी एग्रीकल्‍चर का ही काम था। उससे भी उन्हें अपने इस नए धंधे का अनुभव मिला था।

एक दिन जब वह सिंगापुर से भारत लौट रहे थे, तभी रास्ते में अखबार पढ़ते समय एक खबर ने उनको इतना उत्साहित कर दिया कि जीवन की दिशा ही बदल गई। उन्होंने उसी वक्त सिंगापुर की नौकरी छोड़ने की ठान ली। तय कर लिया कि अब जो कुछ करेंगे, अपने देश की धरती पर। अब नौकरी के लिए सिंगापुर नहीं जाएंगे। घर लौटकर उन्‍होंने अपनी लगभग बीस एकड़ की जमीन पर डेयरी का काम शुरू कर दिया। अच्छी नस्ल की जर्सी गाएं खरीद लाए। उनके साथ कुछ अन्य नस्ल की भी गाएं थीं। धीरे-धीरे उनकी संख्या तीन सौ से अधिक हो गई। इस वक्त साढ़े तीन सौ गाएं उनके फॉर्म में हैं। उनको रोजाना मशीनों से दुहा जाता है।

शुद्धता को ध्यान में रखते हुए मशीनों के जरिए दूध सीधे टैंकों में जमा किया जाता है और वहीं से ग्राहकों को सप्लाई कर दिया जाता है। दीपक गुप्ता बताते हैं कि आजकल आम तौर से ग्राहकों को शुद्ध दूध का अभाव रहता है। उनको जल्दी पूरी तरह गैरमिलावटी दूध मिलना मुश्किल रहता है। ऐसे में वह किसी भी कीमत पर अपनी गायों के दूध की शुद्धता पर कोई समझौता नहीं करना चाहते हैं। यहां तक कि पैकिंग के वक्त भी उनके दूध पर कोई कर्मचारी हाथ नहीं लगा सकता है। यही कारण है कि ग्राहक उनके दूध की शुद्धता पर पूरा भरोसा करते हैं और इससे उनके दूध की मांग लगातार बढ़ती जा रही है।

किसी ज़माने में भारत में शुद्ध दूध की पर्याप्त मात्रा में उपलब्धता का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इसे दूध-दही की नदियां बहने वाला देश कहा जाता था। पहले दूध में केवल पानी मिलाया जाता रहा है किन्तु आज हालात ये हैं कि लोग दूध में सिंथेटिक पदार्थ मिलाने लगे हैं। दूध में मिलाये जाने वाले कुछ केमिकल तो इतने दुष्प्रभावी होते ही हैं कि उनका असर आने वाली संतानों पर भी पड़ने का खतरा होता है। वैसे अब दूध की शुद्ध आजमाने के तरीके भी लोगों ने सीख लिए हैं। शुद्धता जांचने के लिए सर्वप्रथम आप उसकी खुशबू लें। यदि उस दूध में साबुन जैसी गंध आती है तो वह दूध सिंथेटिक है।

शुद्ध दूध स्वाद में हल्का मीठा होता है, जबकि नकली और सिंथेटिक दूध का स्वाद डिटर्जेंट और सोडा मिला होने के कारण कड़वा हो जाता है। शुद्ध दूध को कुछ समय या एक से अधिक दिन भी स्टोर करने पर उसका रंग नहीं बदलता, जबकि नकली दूध कुछ ही समय के बाद पीला पड़ने लगता है। पानी के मिलावट की पहचान करने के लिए दूध को एक काली सतह पर थोड़ा सा गिरा दे। यदि दूध असली होगा तो उसके पीछे एक सफेद लकीर छूटेगी अन्यथा नही। उबालते समय शुद्ध दूध का रंग नही बदलता है जबकि नकली दूध उबालने पर पीले रंग का हो जाता है। किसी चिकनी जगह जैसे लकड़ी या पत्थर की सतह पर एक-दो बूंद दूध टपकाइए, आप देखेंगे की यदि वह शुद्ध है तो नीचे की और बहने पर उसके पीछे सफ़ेद धारी जैसा निशान हो जाएगा वरना दूध अशुद्ध है। शुद्ध दूध को हथेली पर रगड़ने से चिकनाहट महसूस नहीं होती है जबकि अशुद्ध दूध डिटर्जेंट जैसी चिकनाहट पैदा कर देता है। दीपक गुप्ता के डेयरी का दूध इन सारे तरीकों से आजमाया जा चुका है। आज तक उन्हें कहीं से कोई शिकायत सुनने को नहीं मिली है।

दीपक गुप्ता की डेयरी

दीपक गुप्ता को अब शुद्धता की बदौलत ही अपने व्यवसाय से अब सालाना करोड़ों रुपए की कमाई हो रही है। वह अपने इस कारोबार से इतना संतुष्ट और खुश हैं कि उन्हें न तो पुराना जॉब छोड़ने का कोई पश्चाताप है, न और किसी काम की जरूरत रह गई है। उनका ये कारोबार दिनोदिन उन्नत होता जा रहा है। दीपक गुप्ता बताते हैं कि अखबार की खबर भी एक निमित्त मात्र बनी, पढ़ते ही तुरंत मूड बना लिया वरना हाईटेक डेयरी खोलना तो उनका पढ़ाई के समय से ही बड़ा पुराना सपना रहा है। हां, बिना हाथ लगाए दूध की पैकिंग का आइडिया जरूर उन्‍हें सिंगापुर से भारत के सफर के दौरान मिला था। वह अक्‍सर भारत में अखबारों में मिलावटी दूध के बारे में पढ़ते थे। तभी से उनके मन में कुछ नया करने की बात तेजी से जोर मारने लगी थी। वैसे भी हमारे देश में खाटी दूध मिलना सपने जैसा ही होता है। खास कर त्योहारों के मौके पर शुद्ध खोवा तक मिलना दुश्वार रहता है। पता नहीं क्यों लोग दूध जैसे पेय का इतनी धोखेबाजी से धंधा करते हैं। ईमानदारी से करें तो इसमें वैसे ही भारी बरक्कत के चांस रहते हैं।

विश्व खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) ने अभी पिछले महीने ही कहा है कि उपज बढ़ाने के लिए कीट नाशकों तथा अन्य रासायनों के इस्तेमाल से कृषि उत्पादों आदि में प्रदूषण होने से भारत में मां का दूध भी पूरी तरह शुद्ध नहीं रह गया है, फिर गाय-भैस के दूध की शुद्धता की बात कौन करे लेकिन दीपक गुप्ता कहते हैं कि उनका दावा है, कोई उनकी डेयरी के दूध को अशुद्ध सिद्ध करके दिखाए। वैसे साधारणतया दूध में 85 प्रतिशत जल होता है और शेष भाग में ठोस तत्व यानी खनिज और वसा होता है। गाय-भैंस के अलावा बाजार में विभिन्न कंपनियों का पैक्ड दूध भी उपलब्ध होता है। दूध प्रोटीन, कैल्शियम और राइबोफ्लेविन (विटामिन बी -2) युक्त होता है। इनके अलावा इसमें विटामिन ए, डी, के और ई सहित फॉस्फोरस, मैग्नीशियम, आयोडीन व कई खनिज और वसा तथा ऊर्जा भी होती है।

इसमें कई एंजाइम और कुछ जीवित रक्त कोशिकाएं भी हो सकती हैं। गाय के दूध में प्रति ग्राम 3.14 मिली ग्राम और भैस के दूध में प्रति ग्राम 0.65 मिली ग्राम कोलेस्ट्रॉल होता है। जहां तक मिलावट की बात है, आजकल ज्यादातर कंपनियां इसमें विटामिन ए, लौह और कैल्शियम ऊपर से मिलाती हैं। इसमें भी कई तरह के जैसे फुल क्रीम, टोंड, डबल टोंड और फ्लेवर्ड मिल्क बेचे जा रहे हैं। फुल क्रीम में पूर्ण मलाई होती है, अतः वसा सबसे अधिक होता है। इन सभी की अपनी उपयोगिता है, पर चिकित्सकों की राय के अनुसार बच्चों के लिए फुल क्रीम दूध बेहतर है तो बड़ों के लिए कम फैट वाला दूध। दीपक गुप्ता कहते हैं कि दूध में यदि मिलावट कर दीजिए तो खीर, खोआ, रबड़ी, कुल्फी, आईस्क्रीम यानी दुग्ध जनित हर प्रोडक्ट मिलावटी हो जाता है। इसलिए वह कत्तई अपने यहां दूध को किसी हाथ लगाने भर की भी छूट नहीं देते हैं।

साभार: yourstory.com/hindi/3857b45677-deepan-gupta-earning-m


1 comment:

  1. Up me vaishy samaj ko sirf merut se ticket Diya hi 80 seeto me 1 ticket iska birodh karate hi hum

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