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Sunday, January 31, 2021

AGRAWAL VIKAS TRUST SURAT- DONATE 5 CRORE RUPEES FOR RAM MANDIR


AGRAWAL VIKAS TRUST SURAT- DONATE 5 CRORE RUPEES FOR RAM MANDIR

 हमारा वैश्य समाज, हम लोग देश और समाज की सेवा करने वाले समाज हैं. देश , धर्म को कुछ देते है, लेते नहीं. हमारे लिए देश और धर्म पहले है अपना हित नहीं

Wednesday, January 20, 2021

AMIT SHAH - 'अमित शाह' होने का अर्थ, आइए जानते हैं इनके बारे में कुछ अनकही-अनसुनी बातें


'अमित शाह' होने का अर्थ, आइए जानते हैं इनके बारे में कुछ अनकही-अनसुनी बातें


अमित को बचपन से ही शतरंज में गहरी रुचि थी और वह एक उम्दा शतरंज खिलाड़ी हैं। अमित शाह जिस राष्ट्रवाद की बात करते हैं वह चाणक्य द्वारा प्रतिपादित राष्ट्रवाद ही है।

 'सार्वजनिक छवि' और 'व्यक्तित्व', दो अलग-अलग पहलू हैं। व्यक्ति की सार्वजनिक छवि के आधार पर उसके व्यक्तित्व का मूल्यांकन नहीं किया जा सकता है। सीमित जानकारी के आधार पर व्यक्तित्व की थाह नहीं लगाई जा सकती है। यह काम आसान है भी नहीं। व्यक्तित्व आधुनिक मनोविज्ञान का अहम विषय है। आज के दौर में, विशेषकर लोकतांत्रिक व्यवस्था में, व्यक्तित्व के मूल्यांकन की विधा और इसकी आवश्यकता प्रासंगिक हो गई है।

व्यक्तित्व के अध्ययन के आधार पर व्यक्तिके व्यवहार का पूर्वकथन भी किया जा सकता है, यही इसका हासिल भी है। मनोविज्ञान में व्यक्तित्व का अर्थ है- व्यक्ति की बाह्य छवि और उसके आंतरिक गुणों का समावेश। 17वीं लोकसभा के लिए जनता ने श्रेष्ठतम विकल्प का चयन किया। जनसाधारण ने जिन नेताओं को चुना, उनमें से कुछ ने मंत्री पद की शपथ ले ली है और 17 जून से आहूत संसद के प्रथम सत्र में लोकसभा सदस्यता की शपथ लेंगे। आइये मंत्रीगण के व्यक्तित्व को समझने का प्रयास करें। इनके बारे में हम कुछ ऐसी अनकही-अनसुनी बातें आपसे साझा करेंगे, जो इनके व्यक्तित्व को समझ पाने में आपकी सहायता करेंगी। शुरुआत करते हैं केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के व्यक्तित्व को समझने से..। नई दिल्ली से अतुल पटैरिया की रिपोर्ट।

सरदार पटेल के परिवार से शाह परिवार का बेहतर मेल-जोल था। 1977 में जब पटेल की बेटी मणि बेन चुनाव लड़ीं, तो 13 साल के अमित भी उनकी प्रचार टोली का हिस्सा हो लिए। इसके बाद संघ और फिर भाजपा से जुड़े और आज देश के गृह मंत्री हैं। अब तक उनकी सार्वजनिक छवि का ही मूल्यांकन किया जाता रहा है, व्यक्तित्व का नहीं। हालही आई किताब 'अमित शाह और भाजपा की यात्रा' के अलावा अन्य स्रोतों और निकटतम लोगों से जुटाए गई जानकारी बताती है कि अमित शाह के व्यक्तित्व में संस्कारों, संस्कृति, दर्शन, अध्यात्म, जीवन मूल्यों, अनुशासन और जीवन के प्रति आदर्श का विशेष योगदान है।

जिस तरह महात्मा गांधी के व्यक्तित्व पर उनकी मां का विशेष प्रभाव था, अमित शाह के व्यक्तित्व पर भी मां का विशेष प्रभाव रहा है। संपन्न कारोबारी परिवार में जन्मे अमित की मां विशुद्ध गांधीवादी थीं। जिन्होंने उन्हें उच्च जीवन मूल्यों, जीवन आदर्श और अनुशासन की सीख दी। भारतीय दर्शन, अध्यात्म, रामायण, महाभारत, महाकाव्य और इतिहास की शिक्षा उन्हें अपनी मां से संस्कारों के रूप में मिली है।


गांधी का प्रिय भजन वैष्णव जन. अमित शाह की सांसों में बसा है। इस बात का पता तब चलता है जब अमित अपनी नन्ही पोती को गोद में उठा यह भजन गुनगुनाने लग जाते हैं। अमित अपनी पोती रुद्री को बहुत स्नेह करते हैं। यहां तक कि गत चुनाव में अतिव्यस्त दिनचर्या में से भी कुछ पल निकाल कर वे रुद्री की एक आवाज सुनना नहीं भूलते थे। धीर-गंभीर-शांत-अनुशासित और कठोर प्रशासक दिखने वाले अमित शाह के व्यक्तित्व का यह पहलू उन्हें समझ पाने का एक अलग नजरिया देता है।

अमित शाह की परवरिश एक ऐसे परिवार में हुई, जहां जीवन मूल्यों और आदर्शो को लेकर सजगता कहीं अधिक थी। अमित के दादा को ही लें, जिन्होंने उनकी शुरुआती शिक्षा-दीक्षा के लिए आर्चायों की नियुक्ति की थी, जो घर आकर पूर्ण पारंपरिक तरीके से अमित को शास्त्रोचित शिक्षा-संस्कार देते। इस दौरान अमित को भी गुरुकुल वाली पारंपरिक वेशभूषा धारण करनी होती थी। अमित के परिवार को महर्षि अरविंद जैसे महापुरुषों का भी निकट सानिध्य प्राप्त था। अमित ने अपने घर में आज भी उस आसननुमा कुर्सी को ससम्मान सहेज रखा है, जिस पर कभी महर्षि अरविंद घर आगमन पर विराजा करते थे।

दादाजी का अनुशासन ऐसा था कि अमित की बहनें तो बग्गी से स्कूल जाया करती थीं, लेकिन अमित को यह सुविधा नहीं दी गई थी। उन्हें पैदल ही स्कूल जाना होता। ऐसा इसलिए ताकि विलासिता से दूर रह सकें। उन्होंने यह सीख जीवन में उतार ली। गुजरात में बतौर पार्टी कार्यकर्ता उन्होंने अधिकांश यात्राएं गुजरात परिवहन की बसों से ही कीं। रोटी और आलू की सूखी सब्जी साथ लेकर चलते थे।

एक किस्सा यह भी है कि एक बार अमेठी में पार्टी कार्यकर्ताओं की बैठक लेने वह पहुंचे। बैठक का आयोजन एक गोदाम में किया गया था। बैठक देर रात तक खिंच गई। बैठक के बाद अमित गोदाम में ही पड़े एक टूटे-फूटे सोफे पर सो गए। अमित शाह को जानने वाले कहते हैं कि वे बेहद अनुशासित हैं, लेकिन कड़क मिजाज नहीं हैं।

अमित को बचपन से ही शतरंज में गहरी रुचि थी और वह एक उम्दा शतरंज खिलाड़ी हैं। अमित शाह जिस राष्ट्रवाद की बात करते हैं, वह चाणक्य द्वारा प्रतिपादित राष्ट्रवाद ही है। चाणक्य के अलावा उनके विचारों पर सावरकर का गहरा प्रभाव है। चाणक्य और सावरकर की बड़ी सी तस्वीर भी कक्ष में शोभायमान है। यह पहलू समझने वाला है कि चाणक्य, गांधी और सावरकर, इन तीन स्पष्ट विचारधाराओं ने ही अमित के व्यक्तित्व को गढ़ा है। वहीं, भारतीय संस्कृति और जीवन मूल्यों को उन्होंने आदर्श रूप में आत्मसात किया।


व्यक्तित्व के अनछुए पहलू 

प्रेरणास्त्रोत : मां

प्रेरक चरित्र : चाणक्य, वीर सावरकर, महात्मा गांधी

आध्यात्मिक पक्ष : अध्यात्म में गहरी रुचि, शंकराचार्य से प्रेरित, भारतीय दर्शन से प्रभावित, आचार्य के. का शास्त्री का जीवन पर गहरा प्रभाव

अभिरुचि : अध्ययन में गहरी रुचि, यही वजह कि भाजपा कार्यालयों में पुस्तकालय संस्कृति को स्थापित किया, रामायण, महाभारत, महाकाव्य, दर्शन, शास्त्र, इतिहास पर अच्छी पकड़, शतरंज में महारत, क्रिकेट के शौकीन, खाने के शौकीन, पकौड़ा बेहद पसंद, भारतीय संगीत, गांधी के भजन गुनगुनाते हैं, कैफी आजमी की नज्में पसंद, नियमित डायरी लेखन, ज्योतिष की गहरी समझ, ज्योतिष को विज्ञान मानते हैं, पोती के जन्म से पहले ही कह दिया था- घर में लक्ष्मी आने वाली है..

सामाजिक पक्ष : सामाजिक रूढ़ियों के खिलाफ, बेटे के अंतर्जातीय विवाह का समर्थन किया था

राजनीतिक पक्ष : राजनीति को देश व समाज की सेवा का माध्यम और चुनाव को समाज और जन-जन से प्रत्यक्ष संपर्क व संवाद का माध्यम मानते हैं, संवाद प्रिय, राजनीति को पार्टटाइम काम नहीं मानते, यही वजह कि राजनीति में प्रवेश के बाद पारिवारिक कारोबार से दूर हो गए

आदर्श : राष्ट्रवाद और अंत्योदय

परिधान : खादी के वस्त्र प्रिय, सादगी पसंद

अनुशासन : वक्त के पाबंद, मितव्ययी, फिजूलखर्ची से नफरत, लक्ष्यप्राप्ति तक आराम नहीं, सदैव सकारात्मक दृष्टिकोण, जीवन के हर क्षण का प्रगति में सदुपयोग, यही वजह कि 2006 से विदेश यात्रा नहीं की, कहते हैं कि जहां कोई उपयोगिता न हो वहां नहीं जाता, कलाई घड़ी नहीं पहनते, कहते हैं घड़ी अकसर उपहार संस्कृति का निमित्त बन जाती है, उपहार लेने से परहेज, घर में विलासिता की वस्तुओं नहीं, बेहद सादा फर्नीचर।

Tuesday, January 19, 2021

ASHOK GUPTA JI - अग्रवाल समाज की पुस्तकों के महान लेखक

अशोक गुप्ता  जी  - अग्रवाल  समाज की पुस्तकों के महान लेखक 

श्री अशोक गुप्ता  जी की नयी पुस्तक महाराजा अग्रसेन और अग्रवंश 

हमारा वैश्य समाज...सोभाग्य से कल मुझे श्री अशोक जी गुप्ता द्वारा लिखित पुस्तक महाराजा अग्रसेन और अग्रवंश एक अध्ययन प्राप्त हुई. अशोक गुप्ता जी को बहुत बहुत नमन. समाज के लिए बहुत अच्छा कार्य कर रहे हैं. इससे पहले भी गुप्ता जी की दो पुस्तके आ चुकी हैं.






लेख साभार: अग्रवाल टुडे 

Monday, January 18, 2021

KAMAL MORARKA - कमल मोरारकाः भामाशाह निर्भीक!

कमल मोरारकाः भामाशाह निर्भीक!


मन उदास है। उस पीढ़ी का एक ओर हंस उड़ चला जो सत्य के साक्ष्य में विचारती थी, निर्भीक उड़ती थी और जिनकी बैठक की गपशप में मन रमता था। उस पीढ़ी की कमल मोरारका बैठक में मैंने अनेकों बार सोचा कि आजाद भारत के इतिहास में डॉ. राममनोहर लोहिया, रामनाथ गोयनका के अलावा यदि तीसरा विचारवान, निर्भीक, स्वतंत्रमिजाजी, देशचिंतक वणिक कोई है तो वह कमल मोरारका हैं! हां, कमल मोरारका धनवान, उद्योगपति थे लेकिन धन के पीछे भागते हुए, धन के संचय, कंजूसी की प्रवृत्ति के संस्कारों से शून्य! वे धनवान होते हुए भी समाजवादी थे लेकिन समाजवादियों की तरह छोटी-छोटी बातों पर लड़ने, अहंकार और अंहमन्यता में जीने वाले नहीं। वे सनातनी हिंदू परंपरा के ऐसे सच्चे शेखावटी सेठ थे जो मेवाड़ के भामाशाह की तरह हमेशा अपने नेता चंद्रशेखर के प्रति, उनके समाजवादी विचारों के प्रति समर्पित रहे। धन का भरपूर वैभव था और उससे जीवन का पूर्ण आनंद लेते हुए भी उन्होने वैभव को कभी हावी नहीं होने दिया। मेरा कमल मोरारका से कोई 1984 से संपर्क था। मैंने तब से लेकर पिछले साल की मुलाकात तक में उन्हें हमेशा कुर्ते-पाजामे-शॉल-चप्पल की सादगी में देखा। कांग्रेस का वक्त हो या अपनी सत्ता-तीसरे मोर्चे (वीपी सिंह-चंद्रशेखर-देवगौड़ा) का वक्त या नरसिंह राव से शुरू उदारवाद के वक्त में देश के तमाम धनपतियों को बदलता देखा। इनकी कारोबार-उद्योग में दो दूनी चार, चार दूनी चालीस, चालीस दूनी चार सौ बनाने की क्रोनी भूख में भारत को भ्रष्ट्र होते देखा लेकिन कमल मोरारका वितरागी सहजता में रमे रहे। वे अपने अंदाज में जीये और वाजपेयी-मनमोहन सिंह आदि तमाम सरकारों में अंतरंगताओं (जसवंत सिंह से ले कर मुरली देवड़ा आदि) के बावजूद कभी इन कोशिशों में वक्त खपाते नहीं मिले कि सरकार की क्रोनी कृपा से वे धंधा और चमकाएं!

हां, भारत में ऐसे उद्योगपति दो-चार ही होंगे, जिन्होंने अपनी कंपनी प्रोफेशनल टीम को छोड़ कर अपना जीवन राजनीति, क्रिकेट, समाजसेवा, ऑर्गेनिक खेती, नवलगढ़ के अपने गांव को आदर्श गांव बनाने या वन्य जीवन की फोटोग्राफी जैसे शगलों में खपाया हो।

सच्चाई है मैं शुरू में वीपी सिंह की ईमानदार इमेज के चक्कर में चंद्रशेखर का घोर विरोधी था। कमल मोरारका, दयानंद सहाय की पूरी चंद्रशेखर टीम से अपनी एलर्जी थी। जब चंद्रशेखर प्रधानमंत्री बने और कमल मोरारका उनके प्रधानमंत्री दफ्तर में राज्य मंत्री थे तो मुझे उनसे पहला काम तब पड़ा जब दिल्ली में जनसत्ता का एक स्ट्रिंगर तीस हजारी कोर्ट में हुए धमाके में घायल हुआ था। उसे एम्स ले जाया गया लेकिन वहां कुछ ढिलाई समझ आई तो मैंने दयानंद सहाय से मोरारका का नंबर ले कर सीधे बात की और तब जिस फुर्ती से मुझसे ब्योरा लेकर उन्होंने फोन किए तो कमल मोरारका को मैं चंद्रशेखर टोली में अलग, बिरला मानने लगा। लेकिन वे क्योंकि चंद्रशेखर के अनन्य भरोसेमंद थे और मैं जनसत्ता में उनकी टोली को चिरकुट करार देने वाला घनघोर आलोचक था तो मै दूर ही रहा। मैं चंद्रशेखर टोली की अंदरूनी राजनीति में दयानंद सहाय, काल्वी आदि के खेमे से गपशप ज्यादा करता था तो कमल मोरारका से मेरी लंबे समय तक दूरी रही। बाद में नरसिंह राव के वक्त में सेंट्रल हॉल में चंद्रशेखर से गपशप का मेरा खूब मौका बना और रामबहादुर राय, प्रभाष जोशी आदि की चंद्रशेखर में आस्था बनी तो कमल मोरारका की तीन मूर्ति लेन की अड्डेबाजी में मेरा भी जाना आना हुआ और मैं उनकी बेबाकी, सरलता, वैचारिक प्रतिबद्धता का कायल होता गया।

दिल्ली में कमल मोरारका के तीन मूर्ति लेन आवास, फिर पृथ्वीराज रोड के मौजूदा भव्य आवास व गांव नवलगढ़ के घर की तीनों बैठकों का पारदर्शी शीशों से भरपूर रोशनी वाले परिवेश, एक बड़े टीवी, लंबे सोफे पर लेटे या बैठे हुए फोन व रिमोट से फ्री मूड में वक्त का उपयोग, लोगों के साथ मोरारका की गपबाजी के क्षणों में कई बार मेरा भाव बना कि सहज जिंदादिल व्यक्ति का नाम है कमल बाबू। एक तरफ क्रिकेट के खेल पर नजर तो साथ ही एनजीओ विशेष के या बेमतलब पार्टी के पुराने लोगों की मदद में बेखटके फोन करते हुए।

तभी मुझे बाद में रंज हुआ कि मैंने अपने मीडिया शगल में खूब हाथ-पांव मारे लेकिन मैं कमल मोरारका को अपना प्रायोजक, प्रोत्साहक, निवेशक, भामशाह नहीं बना पाया। मैंने ‘नया इंडिया’ प्रारंभ करने से पहले सन् 2010 में कमल बाबू से कहा था कि मैं अखबार शुरू कर रहा हूं आप जुड़िए, साझेदार बनिए। उन्होंने सुना और खेद से संतोष भारतीय के जरिए कहलाया कि वे क्योंकि ‘चौथी दुनिया’ में पहले से कमिटेड है इसलिए संभव नहीं हो सकेगा।

संयोग कि बाद के सालों में वे मेरे लिखे और ‘नया इंडिया’ की बेबाकी के बहुत मुरीद हुए और जैसे मैंने नोटंबदी के बाद फील किया वह उन्होंने भी फील किया कि क्या सोचा था और क्या हुआ! देश का क्या बनेगा?

ध्यान रहे सन् 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले कमल मोरारका के कई लेख ‘नया इंडिया’ में छपे थे। उनका बेधड़क सोचना-विचारना और फक्कड़ी में रईसी को जीना मेरे लिए हमेशा विचारणीय रहा। कह सकता हूं मैं पत्रकारीय जीवन में प्रारंभ से ले कर अब तक जितने विचारमना मगर प्रतिबद्ध नेताओं (कमलापति, अर्जुन सिंह, चंद्रशेखर, नरसिंह राव, वाजपेयी से लेकर गोविंदाचार्य, देवेंद्र द्विवेदी, डीपीटी, कमल मोरारका आदि की बहुत लंबी सूची) ऑब्जर्व किया है उनमें पूंजीपति मोरारका इसलिए बिरले थे क्योंकि कभी भी, एक क्षण के लिए भी वे अपने नेता याकि चंद्रशेखर की छाया से बाहर नहीं हुए। जसवंत सिंह, भेरौसिंह शेखावत ने कमल मोरारका को कई बार भाजपा का न्योता दिया और मुझे पता है कि उनकी वाजपेयीकालीन नेताओं से कैसी अंतरंगता थी लेकिन वे ताउम्र समाजवादी जनता पार्टी का झंडा उठाए रहे। उस पार्टी की जिसकी शायद अब मान्यता भी खत्म हो गई होगी। कमल मोरारका की बैठक में सौ फूल खिले मिलते थे। संघ के प्रचारक भी उनकी बैठक में होते थे तो वामपंथी एनजीओ नेता और कांग्रेस के लोग भी!

एक बात और। वे सच्चे सनातनी हिंदू थे। इसकी अनुभूति उनके गृह कस्बे राजस्थान के नवलगढ़ में नवरात्रि में सहस्त्रचंडी पाठ के प्रतिवर्ष के आयोजनों में 2019 के पाठ के वक्त हुई। उनका आग्रह था कि मैं नवलगढ़ में ऑर्गेनिक फार्मिग के उनके प्रोजेक्ट को देखूं, उन्होंने नवलगढ़ के लिए क्या कुछ किया है वह जानूं-समझूं। और मैंने जो देखा व सहस्त्रचंडी पाठ का अनुभव किया तो हतप्रभ हुआ देख कर कि पुरखों व जन्मभूमि की शाश्वतता के लिए क्या इतना कुछ भी किया जा सकता है! नगरपालिका की इमारत से लेकर क्रिकेट मैदान, ऑर्गेनिक खेती आदि न जाने क्या-क्या! पूरे गांव के लिए नवरात्रि पाठ का आयोजन। स्थायी तौर पर सौ से ज्यादा पंडितों का निवास, व्यवस्थाएं, और संस्कृत उच्चारण की शुद्धता के आग्रह में जो हुआ देखा तो दिमाग ने सोचा कि कमल मोरारका ने जीवन में इन कामों का दस-बीस प्रतिशत समय भी शायद ही उद्योग-कारोबार को दिया होगा।

तो बतौर व्यक्ति कमल मोरारका का अपने अंदाज में जीवन जीना पहले था और धनोपार्जन बाद में। उन्होंने मुंबई-दिल्ली में मीडिया कंपनी, अखबार चलवाने के प्रयोग किए। देश की राजनीति, समाजवादी राजनीति, चंद्रशेखर की विरासत को संभालने से ले कर क्रिकेट राजनीति और ग्रामोत्थान, खेती के असंख्य प्रोजेक्ट चलवाए। लेकिन न कोई ढिंढोरा और न दर्प। विनीत नारायण ने ठीक लिखा है कि नेकी कर कुएं में डाल के पर्याय थे मोरारका। वे दिल्ली में जितने सक्रिय थे उतने ही मुंबई और नवलगढ़ में। मुझे कई बार उन्होंने मुंबई का, अपने ऋषिकेश, गोवा के घर में छुट्टी का आग्रह किया लेकिन अपनी असामाजिकता से संयोग नहीं बना। नए साल के बाद फोन पर हुई बात में उन्होंने चिर-परिचित अंदाज में कहा था- सब ठीक है और जल्द बनाऊंगा दिल्ली आने का प्रोग्राम! तभी शुक्रवार शाम विनीत-रजनीश से जब शोक समाचार सुना तो दिमाग अवाक और मन उदास! अच्छे लोगों की पीढ़ी का एक और हंस उड़ चला! श्रदांजलि मेरी और उन सबकी और से भी जो सचमुच यह भाव रखते है कि सार्वजनिक जीवन में अच्छेपन का जीवंतता से अहसास कराने वाला अब नहीं रहा!

लेख साभार: हरिशंकर व्यास,नया इंडिया

NAVYA SINGLA IAS

NAVYA SINGLA IAS

IAS Success Story: पहले ही अटेम्प्ट में 23 साल की नव्या ने पास की UPSC परीक्षा, जानें क्या थी उनकी तैयारी की खास बातें

नव्या सिंग्ला ने साल 2016 में पहले ही प्रयास में यूपीएससी सीएसई परीक्षा पास कर ली थी. अपने पहले ही प्रयास को आखिरी मानने वाली नव्या ने कैसे किया यह कारनामा? जानते हैं.



Success Story Of IAS Topper Navya Singla: चंडीगढ़ की नव्या सिंग्ला यूपीएससी की फील्ड में हाथ आजमाने के पहले ही तय करके आयी थी कि पहले प्रयास में ही परीक्षा पास करनी है. हालांकि इस विचार के साथ कई कैंडिडेट्स आते हैं लेकिन हर कोई अपने इरादों में सफल नहीं होता. लेकिन नव्या उन गिने-चुने कैंडिडेट्स में से हैं जो जैसा सोचते हैं वैसा कर भी लेते हैं. साल 2016 में नव्या ने पहली बार यूपीएससी सीएसई परीक्षा दी और 102 रैंक के साथ टॉप किया. दरअसल नव्या मानती हैं कि पहले प्रयास में आपके अंदर जो जोश, जो जील होती है वह बाद में कितनी भी कोशिश करें बरकरार नहीं रह पाता. इस बड़ी परीक्षा को नव्या ने छोटे से समय में कैसे पास किया इस बारे में उन्होंने दिल्ली नॉलेज ट्रैक से बात की. जानते हैं विस्तार से.

इकोनॉमिक्स की स्टूडेंट रही हैं नव्या –



नव्या बेसिकली चंडीगढ़ की रहने वाली हैं और उनकी शुरुआती पढ़ाई-लिखाई भी यहीं हुई. क्लास 12 के बाद आगे की पढ़ाई के लिए नव्या दिल्ली चली गईं और यहां के श्रीराम कॉलेज ऑफ कॉमर्स से उन्होंने इकोनॉमिक्स ऑनर्स में ग्रेजुएशन किया. इसके बाद ही तुरंत नव्या ने यूपीएससी का मन बनाया और पूरी तरह से तैयारी में जुट गईं. हालांकि नव्या साथ में इसी विषय से मास्टर्स भी कर रही थी.

नव्या ने अपनी तैयारी में कोचिंग का सपोर्ट लिया और जहां जब जैसी जरूरत महसूस हुई वहां से गाइडेंस लिया और एंड में दो संस्थानों की टेस्ट सीरीज भी ज्वॉइन की. हालांकि कोई भी सलाह देने से पहले नव्या यह जरूर कहती हैं कि हर किसी की जरूरतें अलग होती हैं और उसे अपनी स्ट्रेटजी और प्लानिंग अपने अनुसार करनी चाहिए न कि किसी और के अनुसार. हो सकता है जो उनके लिए काम किया वह आपके लिए काम न करे.

न्यूज पेपर है बहुत जरूरी –

नव्या तैयारी के पहले चरण में न्यूज पेपर पढ़ने की सलाह देती हैं. वे कहती हैं कि करेंट अफेयर्स के लिए यह एक ऐसा स्टेप है जिसे रोज फॉलो करें और चाहे जो हो जाए न्यूज पेपर स्किप न करें. जरूरी हिस्सों के नोट्स बनाएं और सुबह पढ़े गए पेपर से बने नोट्स रात में रिवाइज करके ही सोएं. नव्या वैसे भी इस परीक्षा की तैयारी के लिए सीमित किताबों से बार-बार रिवाइज करने पर जोर देती हैं. वे कहती हैं कि प्री परीक्षा के लिए खासतौर पर कम किताबें रखें और उन्हें पढ़ने के साथ ही बार-बार रिवाइज करें. प्री में सफलता का यही मूल-मंत्र है. जब तैयारी थोड़ा आगे बढ़ जाए जो टेस्ट पेपर सॉल्व करें और इनमें जो गलतियां हों उन्हें दूर करते चलें.

नव्या की सलाह –

नव्या कहती हैं कि मेन्स में आंसर राइटिंग का बहुत महत्व है इसलिए तैयारी होने के बाद खूब आंसर लिखें. अपने शेड्यूल को टाइम-टेबल के हिसाब से बांध लें कि हफ्ते में क्या खत्म करना है, महीने में क्या आदि, उसके हिसाब से पढ़ाई करें. नव्या बताती हैं कि यूं तो इस परीक्षा के लिए साल भर ही या जितने समय भी आप तैयारी करते हैं लगकर पढ़ाई करनी होती है पर प्री होने और मेन्स के आने के पहले का समय अत्यंत कड़ी मेहनत का होता है.


इसके साथ ही नव्या पिछले साल के पेपर देखने और रिवीजन करने पर काफी जोर देती हैं. वे कहती हैं पिछले साल के जितने अधिक से अधिक पेपर देख सकें देखें, यह बहुत हेल्प करता है. अगला जरूरी बिंदु है जमकर रिवीजन करने का. वे कहती हैं तैयारी समय से पूरा करके उसे बार-बार पढ़ें. पूरी तैयारी के दौरान पेपर पढ़ना कभी बंद न करें और साक्षात्कार के पहले तक भी इसे पढ़ते रहें क्योंकि जब आप अपने आसपास हो रही चीजों से अवेयर होते हैं जो आपके आंसर्स में वैल्यु एडिशन हो जाता है. सिलेबस पास रखकर पेपर पढ़ें और केवल काम की चीजों पर फोकस करें. यही बात वे करेंट अफेयर्स के लिए भी मानती हैं कि इनका प्रयोग आपके उत्तर को वजन देता है. अंत में इतना ही कि टॉपर्स के इंटरव्यू देखें ये भी बहुत मदद करते हैं और यह याद रखें कि एक-डेढ़ साल की तैयारी में यह परीक्षा पास की जा सकती है अगर आप अपनी पूरी जान लगा दें और कंसिसटेंसी का साथ पढ़ाई करें. पहले प्रयास की बात बाकी प्रयासों में नहीं आती इसलिए जमकर मेहनत करें और पहले प्रयास को आखिरी मानकर आगे बढ़ें.

Saturday, January 16, 2021

SAMEER AGRAWAL -MEMBER OF ISE



SAMEER AGRAWAL -MEMBER OF ISE 


साभार: अग्रवाल टुडे आगरा

ANIL AGRAWAL THE GREAT DONOR

 ANIL AGRAWAL THE GREAT DONOR


साभार: अग्रवाल टुडे आगरा 

SHVETA AGRAWAL



SHVETA AGRAWAL 





साभार : अग्रवाल टुडे आगरा

AGRAWALS IN TRADE & INDUSTRY -1

 AGRAWALS IN TRADE & INDUSTRY -1

साभार: अग्रवाल टुडे आगरा 

VINEET AGARWAL - ASSOCHAM NEW PRESIDENT

 VINEET AGARWAL - ASSOCHAM NEW PRESIDENT

साभार: अग्रवाल टुडे, आगरा 

Wednesday, January 13, 2021

वैश्य दानवीर

 वैश्य दानवीर 



साभार: दैनिक भास्कर 

Tuesday, January 12, 2021

SUNNY GARG - 18 साल की उम्र में शुरू किया स्टार्टअप, तीन साल में 20 करोड़ पहुंचा टर्न ओवर

SUNNY GARG - 18 साल की उम्र में शुरू किया स्टार्टअप, तीन साल में 20 करोड़ पहुंचा टर्न ओवर


स्टूडेंट्स को व्यवस्थित पीजी उपलब्ध कराने के लिए सनी ने अपनी दोस्त शेफाली के साथ मिलकर योरशेल की स्थापना की। जिसे स्टैंजा लिविंग ने एक्वायर कर लिया।

आज की पॉजिटिव खबर दिल्ली के रहने वाले 23 साल के सनी गर्ग की। जिन्होंने ग्रेजुएशन सेकंड ईयर में पढ़ते हुए स्टूडेंट्स की प्रॉब्लम को देखा और समझा। 2018 में महज 18 साल की उम्र में ‘योरशेल’ नाम से एक स्टार्टअप शुरू किया। जहां वो स्टूडेंट्स को एक व्यवस्थित पीजी की सुविधा उपलब्ध कराते थे। तीन साल में ही उनकी कंपनी का टर्नओवर 20 करोड़ रुपए तक पहुंच गया।

कोरोना की शुरुआत से पहले नवंबर 2019 में इसी सेक्टर में काम करने वाली एक बड़ी कंपनी स्टैंजा लिविंग ने उनकी कंपनी को खरीद लिया। इससे मिले पैसों से लॉकडाउन के दौरान ही साल 2020 में सनी ने अपनी दोस्त शेफाली जैन के साथ मिलकर एक नए स्टार्टअप ‘एई सर्किल’ की शुरुआत की ​है, जिसके जरिए वो स्टार्टअप शुरू करने वालों की मदद करते हैं।


पारंपरिक बिजनेस फैमिली से ताल्लुक रखने वाले सनी हमेशा से ही नए बिजनेस आइडिया की तलाश में रहते थे।

सनी कहते हैं, ‘स्टार्टअप का मतलब है, एक प्रॉब्लम को पहचानना, उसे सॉल्व करना और उसको मॉनिटर करना। मैंने कॉलेज के कई लोगों से उनकी परेशानियां पूछी तो एक कॉमन प्रॉब्लम सामने आई, वो थी पीजी की प्रॉब्लम। जब कोई बाहर का स्टूडेंट दिल्ली यूनिवर्सिटी आता है तो उसे सबसे पहले रहने का इंतजाम करना होता है और पीजी ढूंढना इतना आसान नहीं है। मैंने सोचा ये प्रॉब्लम तो हम लोग सॉल्व कर सकते हैं, लेकिन उस वक्त एडमिशन सीजन में सिर्फ 15 दिन बचे थे। अगर मैं ऐप, वेबसाइट बनाने में समय गंवाता तो ये मौका मेरे हाथ से निकल जाता।'

वो बताते हैं कि मैंने कुछ दोस्तों की मदद ली, कुछ इंटर्न ​हायर किए। फिर कुछ पीजी से टाई अप किया और कुछ पोस्टर्स छपवाकर सभी कॉलेज के बाहर ​लगवा दिए। हमने तय किया कि हम स्टूडेंट्स की एडमिशन में मदद करेंगे फिर वो अपने आप पूछेगा कि पीजी कहां ​लेना सही होगा। हमने स्ट्रैटजी बनाकर 20 से 25 दिनों तक ये काम किया, इस दौरान हमने 2500 से ज्यादा स्टूडेंट्स की मदद की। इनमें से करीब 300 लोगों को पीजी दिलाए। इन 20 दिनों में हमारा नेट प्रॉफिट था 7.5 लाख रुपए।

जिन बच्चों को पीजी दिलाया, उन्होंने खरी-खोटी सुनाई तो आया योरशेल का आइडिया

सनी बताते हैं, ‘जुलाई 2017 की बात है, मुझे बच्चों के फोन आने लगे कि पीजी दिलाते वक्त जो वादे किए गए थे, वो पूरे नहीं किए गए। इसके लिए लोगों ने मुझे बहुत खरी-खोटी सुनाई, तब मुझे अहसास हुआ कि पीजी ढूंढना प्रॉब्लम नहीं है, अच्छे पीजी का ना होना समस्या है। इसी समय पर मुझे योरशेल का आइडिया आया। इस बिजनेस के लिए मुझे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ‘स्टैंडअप इंडिया-स्टार्टअप इंडिया’ स्कीम के तहत 35 लाख रुपए का लोन लिया। कुछ पैसा मार्केट से ब्याज पर उठाया और 150 बेड से योरशेल की शुरुआत की थी। पहले साल में बहुत अच्छा रिस्पांस रहा था। बिजनेस शुरू करने के ​15 दिन के अंदर ही हमारे सभी सीटें फुल हो गई थीं।'

अपने बिजनेस मॉडल के बारे में सनी बताते हैं कि इसके लिए हम लीज पर बिल्डिंग और फ्लैट लिया करते थे। फिर उसे फर्निश्ड कराते थे, उसमें सर्विस प्रोवाइड करते थे और वो प्रति बेड के हिसाब से किराए पर देते थे। योरशेल में सनी के साथ शेफाली जैन, विशेष कु्ंगर और गौरव वर्मा भी फाउंडर थे। जब सनी ने अपना स्टार्टअप शुरू किया था, तब उनका एडमिशन इंडियन स्कूल ऑफ बिजनेस, हैदराबाद में हुआ था, लेकिन अपने स्टार्टअप की वजह से उन्होंने एडमिशन नहीं लिया। इस वजह से परिवार के लोग काफी नाराज भी हुए।


योरशेल बेचने के बाद सनी गर्ग अब नए स्टार्ट अप्स को फाइनेंशियल और लीगल प्रॉब्लम का सॉल्यूशन देते हैं।

‘लॉकडाउन में हम बहुत खुश थे कि हम बच गए’

सनी बताते हैं, ‘नवंबर 2019 की बात है, स्टैंजा लिविंग ने हमें कॉन्टैक्ट किया और कहा कि आप लोग अच्छा काम कर रहे हो। हम चाहते हैं आप हमारे साथ मिलकर काम करें। उस समय हम किसी के साथ काम तो नहीं करना चाहते थे, बस ये था कि हमारे खड़े किए वेंचर को प्रॉपर इज्जत और केयर मिलेगी और वो कंपनी हमसे बेहतर उसकी केयर कर सकते थे। जब हमने अपना स्टार्टअप बेचा था, तब हम खुश नहीं थे, लेकिन कहते हैं ना जब कोई काम अच्छी नीयत से करो तो भगवान भी आपको सपोर्ट करता है। लॉकडाउन में हम बहुत खुश थे कि हम बच गए। क्योंकि, स्टूडेंट हाउसिंग इंडस्ट्री, रियल इस्टेट और हॉस्पिटैलिटी इंडस्ट्री के लिए 2020 बहुत खराब गया।

अब AE सर्किल के जरिए देते हैं स्टार्टअप में आने वाली हर प्रॉब्लम का सॉल्यूशन

अपने मौजूदा स्टार्टअप ‘AE सर्किल’ के बारे में सनी बताते हैं कि इसके जरिए वो एक सर्किल बना रहे हैं। AE का मतलब है एनीथिंग एंड एवरीथिंग। यानी एक स्टार्टअप शुरू करने में जो भी दिक्कत आती है मसलन, फाइनेंशियल और लीगल से जुड़ी प्रॉब्लम का सॉल्यूशन देते हैं। इसके अलावा उन्होंने मार्केटिंग, प्रोडक्शन और प्रिंटिंग बिजनेस में भी इंवेस्टमेंट किया है।

साभार:  दैनिक भास्कर 

Saturday, January 9, 2021

आर्य और आर्येतर वैश्यों की गाथा

आर्य और आर्येतर वैश्यों की गाथा 

मुझे अपनी पूर्वलिखित कुछ बातों को दुहराते हुए अपनी बात कहनी होगी। जैसे आज धनाढ्य वैश्यों के लिए श्रेष्ठ (सेठ), श्रेष्ठिन् (सेठी) का प्रयोग होता है और कुछ वंश-परंपराओं में सेठ और सेठी उपनाम बन चुके हैं, ठीक इसी तरह, हड़प्पा काल में अन्य वरिष्ठों के अतिरिक्त धनाढ़्य बनियों के लिए भी 'आर्य' का प्रयोग होता था। ऋग्वेद में जिनकी चिन्ताएं सबसे मुखर रूप में व्यक्त हुई हैं, वे वणिक् वर्ग की और विशेषत: सुदूर व्यापार में अग्रणी इन व्यापारियों के ही सरोकार हैं इसलिए ऋग्वेद को वैश्यों का वेद माना गया है। कहते हैं वैश्य वर्ण की उत्पत्ति ऋग्वेद से हुई: 'ऋग्भ्यः जातं वैश्यं वर्णं आहु:'। 

ऋग्वेद में सौ शरद् जीने की जो आकांक्षा है - जीवेम शरद: शतम् .... अदीना: स्याम शरद: शतम्, उसकी विचित्र व्याख्यायें करके यथार्थ से धयान हटाने के प्रयत्न होते रहे। यह कि सर्दी के कारण जाड़े में मौतें बहुत होती थीं, इसलिए वे कामना करते थे कि जाड़े के मौसम से पार पा जाएं। शरद् ऋतु की इससे अनूठी समझ हो नहीं सकती। खैर, यह व्यापारिक यात्राओं और उनसे मालामाल होने का यही उत्साह था जिसके कारण वे सौ शरद जीने और आजीवन आत्मावलंबी रहने की कामना करते थे। बरसात बीतते ही, सबके देना पावना का हिसाब करके वे व्यापार के लिए या खनिज संपदा के दोहन के लिए निकलते थे, इसलिए शरद ऋतु को वैश्यों की ऋतु कहा जाता था - शरद् ऋतु: वै वैश्य ऋतु:। 
सुदूर यात्रा पर जाने वाले व्यापारियों की चिन्ता क्या थी? चिन्ता एक हो तो कहें, घर छोड़ते ही चिन्ता के पहाड़:
१. सभी देव प्रसन्न रहें और अनिष्ट से बचाएं - शं नो मित्र:, शं वरुण:, शं नो भवतु अर्यमा ....
२. मौसम ठीक रहे, आंधी, तूफान न आए, जल धाराएं प्रखर न मिलें, राह में पेट भरने के लिए मधर फल-कन्द मिलें ...- मधु वाता ऋतायते, मधु क्षरन्ति सिन्धव: । माध्वी: न: सन्तु ओषधी:।.....
३. मेरी जान न चली जाय, लुटेरे या शत्रु हमें बन्दी न बना लें, खाने के लाले न पड. जांय - मा नो वधी: इन्द्र मा परा दा मा नो प्रिया भोजनानि प्रमोषी: ।...
४. हमें भ्रांति न हो, थकान न लगे, तन्द्रा न सताए- न मा तमन् नो श्रमन् न उत तन्द्रन् न वोचाम मा सुनेतेति सोमम् ,
५. हे इन्द्र तुम्हारे सख्य के बूते हमे डर न सताए, सख्ये त इन्द्र वाजिनो मा भेम शवसस्पते ।
६. हे देवताओ, अपने उपासकों को इन निर्मम प्राणघाती हिंसकों से बचाना - त्राध्वं नो देवा निजुरो वृकस्य त्राध्वं कर्तादवपदं यजत्राः ।।
७. कदाशयी बटमार हमारे ऊपर हावी न हो जाएं- मा नः स्तेन ईषत मा अघशंस: ।
८. इंद्र तुम अकूत धन देने वाले, हमें भी मालामाल कर देना -भूरिदा भूरि देहि नो मा दभ्रं भूर्या भर । भूरि घेदिन्द्र दित्ससि ।।
९. हमें किसी दूसरे के असाधारण करतब का लाभ न तो स्वयं लेना पड़े न हमारी आद-औलाद को - मा कस्याद्भुतक्रतू यक्षं भुजेमा तनूभिः । मा शेषसा मा तनसा ।।
१०. आने वाली भोर हमारी रक्षा करे, उफनती हुई नदिया हमारी रक्षा करें - अवन्तु मामुषसो जायमाना अवन्तु मा सिन्धवः पिन्वमानाः ।
११. हमें भूखा न रहना पड़े, दुष्टों के अधीन न होना पड़े, हम देश में रहें या जंगल में, कहीं हमें हिंसा का शिकार न होना पड़े - मा नः क्षुधे मा रक्षसे ऋतावः मा नः दमे मा वन आ जुहूर्थाःहिंसीः ।।
१२. दूसरे के कुकर्म का दंड हमें न भोगना पड़े - मा वो भुजेमान्यजातमेनो मा तत्कर्म वसवो यच्चयध्वे ।।
१३. एक पाप होने पर, दो पाप होने पर, तीन पाप होने पर, या कई पाप हो जायं तो भी, हमारे प्राण न लेना - मा न एकस्मिन्नागसि मा द्वयोरुत त्रिषु । वधीर्मा षूर भूरिषु ।।
१४. सब कुछ देखने, सुनने वाले हे देव तुमसे बिनती करता हूं कि मेरे सेवको और सहायकों को किसी तरह की क्षति न पहुंचने पाए - चक्षुष्मते शृण्वते ते ब्रवीमि मा नः प्रजां रीरिषः मोत वीरान् ।। 

ये ही लोग थे जो सन्मार्ग पर उसी तरह निरुपद्रव चलते हुए जैसे सूर्य और चन्द्रमा अपने मार्ग पर चलते है, कल्याण सहित चलते, किसी को चोट पहुंचाए बिना अादान प्रदान करते हुए, जान पहचान बढ़ाते हुए मेले ठेले लगाते हुए विचरण करते थे - स्वस्ति पन्थामनु चरेम सूर्याचन्द्रमसाविव । पुनर्ददताघ्नता जानता सं गमेमहि ।। 
और इन्होंने ही दूर पराए देशों में अपने प्रताप से वे प्राचीरवेष्ठित बस्तियां बसाई थीं जिनको वे आर्यों की बस्ती (आर्यस्थान) कहते थे और जिनकी संज्ञा उनकी गतिविधि के पूरे क्षेत्र से जुड़ गई थी - आर्याना (अफगानिस्तान), ईरान, ऐरनवेजो और इन्हीं की नकल पर इनके संपर्क में आने वाले जन भी अपने को आर्य कहने लगे थे - आरी (जर्मन), आर्मीनिया, आयरलैंड में जिनका रहस्य छिपा है। इस तरह एक खास अर्थ में इनको छोड़ कर दूसरे आर्येतर थे।
सहोभिर्विश्वं परि चक्रमू रजः पूर्वा धामानि अमिमिमानाः।
तनूषु विश्वा भुवना नि येमिरे प्रासारयन्त पुरुध प्रजा अनु।। 
और इसी के बल पर कहते थे कि हमने समस्त संसार में आर्यव्रत का प्रसार किया है - आर्या व्रता विसृजन्त: अधि क्षमि । पर क्या था यह आर्यव्रत ? यह था जल की उपलब्धता का तरीका निकालना, पशुपालन, उद्यानिकी या बागबानी, कृषि, खनिज पदार्थों की खोज में भागीदारी पर साथ ही था प्रथमत: भाषा और संस्कृति का संचार या ज्ञान का प्रसार - ब्रह्म॒ गामश्वं॑ ज॒नय॑न्त॒ ओष॑धी॒र्वन॒स्पती॑न्पृथि॒वीं पर्व॑ताँ अ॒पः । सूर्यं॑ दि॒वि रो॒हय॑न्तः सु॒दान॑व॒ आर्या॑ व्र॒ता वि॑सृ॒जन्तो॒ अधि॒ क्षमि॑ ॥ 
संस्कृत का तो नहीं पर वैदिक संपर्क भाषा का प्रसार भारोपीय क्षेत्र में कैसे हुआ था इसे इस सिरे से ही समझा जा सकता है।

लेख साभार: भगवान् सिंह 

Friday, January 8, 2021

ANJALI BIRLA - अंजली बिरला ने IAS में सफलता हासिल की

लोकसभा स्पीकर ओम बिरला की बेटी अंजलि ने UPSC की परीक्षा में हासिल की सफलता, घर पर यूं मना जश्न



लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला (Lok Sabha Speaker Om Birla) की छोटी बेटी अंजलि बिरला ने UPSC की ओर से आयोजित सिविल सेवा परीक्षा में सफलता हासिल की है, इससे परिवार में खुशी का माहौल है। आपको बता दें कि अंजलि ने पहले ही प्रयास में सफलता हासिल की। उन्होंने यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा 2019 की ओर से सोमवार को 89 उम्मीदवारों की जारी सूची में अपना नाम दर्ज करवाया है।


लोकसभा स्पीकर ओम बिरला की बेटी अंजलि ने UPSC की परीक्षा में हासिल की सफलता, घर पर यूं मना जश्न

एक पिता के लिए उसकी संतान की सफलता शायद सबसे ज्यादा मायने रखती है। यही वजह है कि लोकसभा स्पीकर ओम बिरला के घर भी इन दिनों उत्सव वाला माहौल बना हुआ है। ऐसा इसलिए क्योंकि उनकी बेटी अंजली बिरला ने संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) की ओर से आयोजित सिविल सेवा परीक्षा में सफलता हासिल की है। आपको बता दें कि अंजली लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला व डॉ. अमिता बिरला की छोटी बेटी हैं। यूपीएससी की ओर से सोमवार को जारी सूची में नाम आने के बाद उनके शक्ति नगर स्थित निवास पर अजंली को बधाई देने वालों का तांता लग गया।


आर्ट्स सब्जेक्ट में ही थी रूचि



पत्रकारों से चर्चा करते हुए अंजली बिरला ने बताया कि उन्होंने कोटा के सोफिया स्कूल से आर्ट्स में 12वीं कक्षा उत्तीर्ण करने के बाद दिल्ली के रामजस कॉलेज से पॉलिटिकल साइंस (ऑनर्स) में डिग्री हासिल की है। इसके बाद उन्होंने एक वर्ष दिल्ली में रहकर ही यूपीएससी परीक्षा की तैयारी की।

​बहन आकांक्षा और माता-पिता को बताया प्रेरणास्त्रोत


पहले ही प्रयास में सफलता मिलने का श्रेय बड़ी बहन आकांक्षा बिरला को देते हुए अंजली ने कहा कि तैयारी के दौरान बड़ी बहन मोटिवेशन खास रहा। वे न सिर्फ उनका उत्साहवर्धन करती रहीं, बल्कि पढ़ाई और परीक्षा से लेकर इंटरव्यू तक की रणनीति बनाने में पूरा योगदान दिया। इस दौरान मां डा. अमिता बिरला और पिता लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने भी स्वयं पर विश्वास बनाए रखने को प्रेरित किया।

​युवाओ और पैरेंट्स की नए विषय के लिए प्रेरित करने की कोशिश

अंजली ने कहा कि भले ही परीक्षा की तैयारी वह कर रही थीं । लेकिन पूरा परिवार हर समय उनकी सहायता व सहयोग के लिए तैयार खड़ा रहता था। उन्होंने आगे कहा कि कोटा में अभिभावक आमतौर पर बच्चों को बायोलॉजी या मैथ्स लेने के लिए ही प्रेरित करते हैं। जबकि इन दोनों विषयों के इतर भी बहुत बड़ी दुनिया है। उनका प्रयास रहेगा कि यहां भी न सिर्फं युवाओं बल्कि उनके अभिभावकों को भी अन्य विषयों का चयन कर एक नई दुनिया की खोज करने को प्रेरित कर सकें।

10 से 12 घंटे की पढ़ाई, नए क्षेत्र में परिवार का नाम करना है रोशन


अंजली ने बताया कि उन्होंने प्रतिदिन 10 से 12 घंटे परीक्षा की तैयारी की। परीक्षा के लिए भी उन्होंने पॉलिटिकल साइंस और इंटरनेशनल रिलेशन्स विषय चुने थे। परिवार में राजनीतिक माहौल होने के बाद भी प्रशासनिक सेवाओं के क्षेत्र में जाने के सवाल पर अंजली ने कहा कि पिता राजनीतिज्ञ हैं, मां चिकित्सक हैं । परिवार के सभी अन्य सदस्य भी किसी न किसी रूप में सामाजिक सेवा के क्षेत्र से जुड़े हैं। वे भी अपनी मेहनत से स्वयं के पैरों पर खड़ा होकर एक अलग दृष्टिकोण से परिवार से अलग एक नए क्षेत्र में समाज की सेवा करना चाहती थीं। लिहाजा यूपीएससी परीक्षाओं की ओर रूख किया।

महिला सशक्तिकरण के क्षेत्र करना है काम

अंजली ने कहा कि वे किसी भी विभाग से जुड़कर सेवा देने को तैयार हैं, लेकिन महिला सशक्तिकरण के क्षेत्र में काम करने का अवसर मिलने पर उन्हें विशेष खुशी मिलेगी।

VANITA GUPTA - वनिता गुप्ता अमेरिका में एसोसिएट अटॉर्नी जनरल नामित

अलीगढ़ की वनिता गुप्ता अमेरिका में एसोसिएट अटॉर्नी जनरल नामित


अमेरिका के नव निर्वाचित राष्ट्रपति जो बाइडन ने 46 वर्षीय वनिता गुप्ता को एसोसिएट अटॉर्नी जनरल के पद के लिए नामित किया है। अलीगढ़ में खबर पहुंचने के बाद महावीरगंज एवं मानिक चौक क्षेत्र में खुशी की लहर दौड़ गई है। वनिता का संबंध महानगर के महावीरगंज के कोठीवाल परिवार से है।वनिता के दादा फूल प्रकाश गुप्ता (वार्ष्णेय) और पिता राजीव लोचन महावीरगंज के निवासी हैं। महावीरगंज का दाऊजी मंदिर कोठीवाल परिवार से संबंधित है। फूल प्रकाश उत्तर प्रदेश सिंचाई विभाग के मुख्य अभियंता के रूप में सेवानिवृत्त हुए। राजीव के जन्म के समय उनके पिता फूल प्रकाश मुजफ्फरनगर में तैनात थे। मां कमला गुप्ता हैं। वनिता गुप्ता अमेरिका की सम्मानित मानवाधिकार वकीलों में से हैं। वनिता गुप्ता सिविल राइट्स वकील और अमेरिकी सिविल लिबर्टी यूनियन की सर्वोच्च वकील हैं।

CAPT. JOYA AGRAWAL - जोया अग्रवाल A SUPER PILOT

 CAPT. JOYA AGRAWAL - जोया अग्रवाल A SUPER PILOT


साभार: दैनिक भास्कर

Wednesday, January 6, 2021

ASHIMA GOYAL IAS

 ASHIMA GOYAL IAS 




साभार: वैश भारती  

RAHUL KESARWANI - A NEW ENTREPRENEUR

6 महीने पहले टिकटॉक जैसा ऐप लॉन्च किया, 50 लाख डाउनलोड्स भी हुए; हर महीने 4 लाख रु. कमाई

प्रयागराज के रहने वाले राहुल केसरवानी ने हाल ही में एक ऑनलाइन ऐप लॉन्च किया है जिसे काफी पसंद किया जा रहा है।

आज की कहानी प्रयागराज के रहने वाले राहुल केसरवानी की। राहुल ने इंजीनियरिंग करने के बाद कई कंपनियों में अच्छी सैलरी पर काम किया। लेकिन, वो कुछ कुछ इनोवेटिव करना चाहते थे, जिससे उनकी पहचान बने। पिछले साल मई-जून में उन्होंने एक ऑनलाइन ऐप लॉन्च किया। यह ऐप टिकटॉक जैसा ही है, जो अब काफी पॉपुलर हो चुका है। 50 लाख से ज्यादा लोग इसे डाउनलोड कर चुके हैं। राहुल अब इससे हर महीने 3 से 4 लाख रुपए कमा रहे हैं।

राहुल बताते हैं- मेरी इंजीनियरिंग तक की पढ़ाई प्रयागराज से ही हुई है। 2016 में मेरा कैंपस सेलेक्शन हो गया और गुडगांव में मेरी नौकरी लग गई। वह बड़ी कंपनी थी और मुझे काम सीखना था, इसलिए मैंने वह नौकरी छोड़कर नोएडा में एक स्टार्टअप ज्वाइन किया, हॉटस्टार की तर्ज पर फुटबाल मैचों की लाइव स्ट्रीमिंग करता था। इसके बाद एक सोशल ऐप में काम करने लगा, जो गुमशुदा लोगों को ढूंढने का काम करता था। लगभग 150 लोगों को हमने इस ऐप के जरिए ढूंढा था।

राहुल बताते हैं कि जब ऐप लॉन्च किया तो 25 लाख रुपए का कर्ज लेना पड़ा था। अब 50 लाख लोग इसे डाउनलोड कर चुके हैं।

2018 में छोड़ी 13 लाख सालाना की नौकरी

राहुल बताते हैं कि चूंकि मन में अपना कुछ करने का सपना था, इसलिए मैंने 2018 में यह नौकरी भी छोड़ दी। कॉलेज टाइम से ही मैं अपने कुछ साथियों के साथ मिलकर वेबसाइट और सॉफ्टवेयर बनाने का काम करता था। आज भी प्रयागराज में कई स्कूल हमारे क्लाइंट हैं। ऐसे में मेरा एक काम चल रहा था। इसी बीच कोरोना आ गया, तो हमें सोचने का वक्त मिल गया।

वो कहते हैं कि इस ऐप को लॉन्च करने से पहले कुछ चाइनीज ऐप बैन हो चुके थे। टिकटॉक के मुकाबले जो ऐप मार्केट में मौजूद थे, वो उतना बेहतर नहीं कर पा रहे थे। इसी दौरान मैंने तय किया कि एक ऐसा ऐप लॉन्च किया जाए, जो टिकटॉक को टक्कर दे सके। वो कहते हैं कि किस्मत ने भी मेरा साथ दिया और कुछ दिनों बाद ही टिकटॉक बैन हो गया। इसका फायदा ये हुआ कि जो ट्रैफिक टिकटॉक को मिलता था, उसका एक बड़ा हिस्सा हमारी तरफ शिफ्ट हो गया।

राहुल की पढ़ाई-लिखाई प्रयागराज में ही हुई। यहीं पर उन्होंने इंजीनियरिंग भी की। वो अपना बिजनेस भी यहीं से कर रहे हैं।

20 से 25 लाख का कर्ज था
राहुल बताते हैं कि जब हमने इसे लॉन्च किया, तो सर्वर के लिए बहुत सारा पैसा मार्केट से उठाना पड़ा। लगभग 20 से 25 लाख का कर्ज था। हम सोच नहीं पा रहे थे कि इसे कैसे उबरेंगे। क्योंकि टिकटॉक को हराना आसान नहीं था। एक वक्त तो ऐसा भी आया कि हमारा सर्वर ही बैठ गया, लेकिन हमने समस्या सुलझाई और आगे बढ गए। आज 6 महीने के अंदर ही हमारा ऐप लोगों के बीच लोकप्रिय हो चुका है। हम इसे और बेहतर करने के लिए लगातार काम कर रहे हैं। हमने एक कंपनी भी बनाई है जिसमें 25 लोग काम कर रहे हैं।

राहुल केसरवानी ने एक कंपनी भी बनाई है। जिसमें उन्होंने युवाओं को रोजगार दिया है। यहां अभी 25 लोग काम कर रहे हैं।

पिता ने विरोध किया लेकिन मां ने साथ दिया

प्रयागराज में ही राहुल के पिता किराना की दुकान चलाते हैं। मध्यमवर्गीय परिवार होने के नाते पिता गुरु प्रसाद केसरवानी चाहते थे कि उनका बेटा अच्छी तरह से सेटल्ड हो जाए। बार-बार अच्छी नौकरी बदलना और फिर नौकरी छोड़ देना उन्हें पसंद नहीं था। राहुल बताते हैं कि पिता चाहते थे कि मैं एक स्थायी काम करूं, जबकि मां चाहती थी कि जो मेरा मन है वह करूं। इस बात को लेकर पापा कुछ दिनों तक नाराज भी रहे। लेकिन, अब जब अच्छी कमाई हो रही है तो वे काफी खुश हैं।

साभार: दैनिक भास्कर 

PAKAJ MITTAL - पंकज मित्थल बने जम्मू-कश्मीर के चीफ जस्टिस

मेरठ कालेज के इस पुरातन छात्र ने बढाया जिले का गौरव, पंकज मित्थल बने जम्मू-कश्मीर के चीफ जस्टिस


इलाहाबार हाईकोर्ट के जज पंकज मित्तल ने एक बार फिर से मेरठ का नाम चमका दिया। मेरठ में पले और पढे पंकज मित्तल को जम्मू-कश्मीर का चीफ जस्टिस बनाया गया है। इससे न केवल मेरठ का बल्कि मेरठ कॉलेज का गौरव एक बार फिर बढ़ गया है। न्यायमूर्ति पंकज मित्थल को जम्मू-कश्मीर का चीफ जस्टिस नियुक्त किया गया है। न्यायमूर्ति पंकज मित्तल इस कालेज के पुरातन छात्रों में से एक हैं। पंकज मित्तल की इस नियुक्ति पर शिक्षकों और पुरातन छात्रों में खुशी की लहर है। इससे पहले पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बागपत जिले के रहने वाले सत्यपाल मलिक जम्मू कश्मीर के नए राज्यपाल बनाए गए थे। सत्यपाल मलिक भी मेरठ कालेज के पुरातन छात्रों में एक रहे हैं।

ईस्टर्न कचहरी रोड निवासी न्यायमूर्ति पंकज मित्थल ने 12वीं तक की पढ़ाई सेंट मैरीज से की। इसके बाद वे स्नातक करने इलाहाबाद चले गए। उन्होंने सन 1985 में मेरठ कॉलेज से एलएलबी की पढ़ाई की। वर्ष 2006 में उनका चयन एडिशनल डिस्ट्रिक जज के पद पर हुआ। वे अब इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ में सीनियर जज के पद पर थे। न्यायमूर्ति पंकज मित्थल के पिता नरेंद्र नाथ मित्तल भी हाईकोर्ट में जज रहे। मेरठ कॉलेज का बीएनएम हॉस्टल उनके दादा ब्रजनाथ मित्तल के नाम पर है। बेटे विनायक मित्थल इलाहाबाद हाईकोर्ट में प्रैक्टिस करते हैं।

मेरठ कॉलेज के प्राचार्य डॉ. युद्धवीर सिंह, डॉ. राजकुमार सांगवान, एडवोकेट नागेंद्र सिंह, एडवोकेट रमन गुप्ता, नितिन मित्तल ने कहा कि यह मेरठ के लिए गर्व की बात है। न्यायमूर्ति पंकज मित्तल ने हाईकोर्ट प्रयागराज से बिदाई समारोह में मेरठ और प्रयागराज के लोगों का हार्दिक अभार जताया। उन्होंने मेरठ की अपनी बचपन की यादों को ताजा करते हुए कहा कि उनका बचपन मेरठ की गलियों में बीता है। जिसे वो कभी भूल नहीं पाएंगे। पश्चिम उप्र हाईकोर्ट बेंच संघर्ष समिति मेरठ के पूर्व अध्यक्ष अधिवक्ता प्रबोध कुमार शर्मा का कहना है कि यह मेरठ के लिए एक गौरव की बात है कि मेरठ में पढ़े और पले एक जज जम्मू और कश्मीर के चीफ जस्टिस बने हैं। उन्होंने कहा कि हम लोगों के लिए खुशी का अवसर है।

Monday, January 4, 2021

VISHESH GARG - CAT TOPPER 2020

हिमाचल के विशेष गर्ग ने CAT में हासिल किए 99.99 फीसद अंक, सुंदर पिचाई से हुए प्रेरित


हिमाचल के छात्र विशेष गर्ग ने कैट की परीक्षा में 99.99 फीसद अंक हासिल कर न केवल शहर बल्कि हिमाचल प्रदेश का नाम रोशन किया है। विशेष गर्ग सोलन के सेंटलुक्स स्कूल से पढ़े हैं। इसके बाद एनआइटी हमीरपुर से बीटेक इलेक्ट्रॉनिक्स और कम्युनिकेशन इंजीनियरिंग में किया।

हिमाचल प्रदेश के जिला सोलन के छात्र विशेष गर्ग ने कैट की परीक्षा में 99.99 फीसद अंक हासिल कर न केवल शहर, बल्कि हिमाचल प्रदेश का नाम रोशन किया है। विशेष की इस उपलब्धि से प्रदेश के लोगों में खुशी का माहौल है। विशेष गर्ग सोलन के सेंटलुक्स स्कूल से पढ़े हैं। इसके बाद एनआइटी हमीरपुर से बीटेक इलेक्ट्रॉनिक्स और कम्युनिकेशन इंजीनियरिंग में किया। यहां डॉक्‍टर अशोक इनके शिक्षक रहे थे। वर्तमान में बेंगलुरु में एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर के रूप में कार्यरत हैं। विशेष गर्ग ने बताया वह पढ़ाई का दिमाग पर प्रेशर नहीं आने देते थे।

गर्ग का कहना है कि कैट परीक्षा की तैयारी के लिए उन्होंने केवल उन्हीं टॉपिक पर अपना ध्यान केंद्रित किया जिनमें वह कमजोर थे। नौकरी के साथ साथ पढ़ाई करना बेहद मुश्किल था, लेकिन इसका बेहतर प्रबंधन किया और रात के समय शांत माहौल में पढ़ाई की आदत बनाई। अवकाश के दिन वह पढ़ाई के साथ साथ कसरत पर पूरा ध्यान देते।

गर्ग ने कहा अध्ययन सामग्री आसानी से उपलब्ध है, लेकिन कोचिंग मेरे लिए मददगार थी। उनका कहना है कि देश के टॉप आइआइएम में एडमिशन लेकर एमबीए उत्‍तीर्ण कर एक अच्छा उद्यमी बनना उनका लक्ष्य है। पिता नरेश गर्ग बेटे की उपलब्धि से काफी उत्साहित हैं। (CAT यानी Common Admission Test) कैट परीक्षा में देश भर में अव्वल रहना बड़ी उपलब्धि है।

विशेष गर्ग ने बताया कि वह हमेशा एक प्रशासनिक अधिकारी बनना चाहते थे, लेकिन सत्या नडेला और सुंदर पिचाई की सफलता की कहानियों ने उन्हें करियर की पसंद के रूप में मैनेजमेंट करने के लिए प्रेरित किया। कैट में 99.99 प्रतिशत के साथ परीक्षा पास करने के बाद उन्हें अब एहसास हुआ है कि मेहनत और लगन से पढ़ाई और काम करने पर कोई भी लक्ष्य असंभव नहीं है। विशेष गर्ग ने बताया कि वह पढ़ाई, नौकरी व कोचिंग के साथ साथ खुद को रिलैक्स रखना नहीं भूले। इसके लिए वह म्यूजिक सुनते और सवेरे व शाम को पैदल लंबी वाक पर निकलते थे। ऐसा करने से वह मानसिक दबाव नहीं आने देते थे।

लेख साभार: दैनिक जागरण