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Friday, August 16, 2024

VAISHYA KINGS OF INDIAN HISTORY - भारतीय इतिहास के वैश्य राजा

VAISHYA KINGS OF INDIAN HISTORY - भारतीय इतिहास के वैश्य राजा

भारत के प्राचीन इतिहास में बहुत से राजा हुवे हैं, जिन्हें स्पष्ट रूप से वैश्य लिखा गया है। पुराणों की वंशावलियों में केवल वैशालक वंश ही ऐसा है, जिसे वैश्य वंश कहा जा सकता है। पर बाद के इतिहास में अनेक ऐसे वंश आते हैं, जिन्हें विविध लेखकों ने वैश्य लिखा है । इनमें मुख्य मगध का गुप्त वंश, स्थाएवीश्वर ( थानेसर ) का वर्धन वंश और चम्पावती का नाग वंश हैं। मंजुश्रीमूल कल्प नामक जो बौद्ध ऐतिहासिक ग्रन्थ उपलब्ध हुवा है, उसमें विविध राजाओं की जाति साथ में दी गई है। उसके कुछ उद्धरण हम यहां देते हैं

"उस समय दो बहुत धनी आदमी थे, जो विष्णु के पुत्र ये। उनमें से एक का नाम भ से शुरू होता था । वे दोनों मुख्य मन्त्री थे । वे दोनों अत्यन्य धनी, श्रीमान्, प्रसिद्ध और शासन कार्य में रत थे | आगे चल कर वे स्वयं स्वामी ( मनुजेश्वर ) हो गये, और उनमें से एक राजा ( भूपाल ) हो गया । तदनन्तर, ७८ वर्ष तक तीन राजाओं ने राज्य किया । वे श्रीकण्ठ के निवासी थे । एक का नाम आदित्य था, वह वैश्य था और स्थाण्वीश्वर में रहता था । अन्त में ह ( हर्ष वर्धन ) नाम का राजा सब देशों का चक्रवतीं राजा ( सर्वभूमिनराधिपः ) हो गया । इस उद्धरण में थानेसर के वर्धन राजाओं का हाल दिया गया है। इन्हें स्पष्ट रूप से वैश्य लिखा हैं । इस वंश का प्रारम्भ आदित्य या आदित्यवर्धन से माना है, जिसकी वंशावली यह है राज्यवर्ध, आदित्यवर्धन,प्रभाकरवर्धन, हर्षवर्धन.

1. विष्णु प्रभवौ तत्र महाभोगो धनिनो तदा / ६१४ मध्यमात् तौ भकाराद्यौ मन्त्रिमुख्यौ उभौ तदा । धनिनौ श्रमितौ ख्यातौ शासनेऽस्मि हिते रतौ ॥ ६१५ ततः परेण मंत्री भूपालौ जातौ मनुजेश्वरौ ॥

भारतीय इतिहास के वैश्य राजा हर्षवर्धन का शासनकाल ६०६ ईस्वी से ६४७ ईस्वी तक है । इस वंश ने कुल ७८ वर्ष ( या दक्षिणी भारत में प्राप्त मंजुश्रीमूल कल्प की प्रति के अनुसार ११५ वर्ष ) तक राज्य किया । प्रसिद्ध चीनी यात्री ह्वेनत्सांग ने भी, जो महाराज हर्षवर्धन की राजसभा में देर तक रहा था, इन राजाओं को वैश्य लिखा है । राज्यवर्धन और हर्षवर्धन के सम्बन्ध में मंजु श्री मूलकल्प की निम्नलिखित पंक्तियां उल्लेख योग्य हैं

“उस समय मध्यदेश में र ( राज्यवर्धन ) नाम का राजा अत्यन्त प्रसिद्ध होगा । वह वैश्य जाति का होगा । वह शासन कार्य में अत्यन्त समर्थ तथा सोम नाम के राजा के समान ही होगा । उसका छोटा भाई ह (हर्षवर्धन ) एक ही वीर होगा । उसकी सेना बहुत बड़ी होगी । वह शूर, पराक्रमी तथा बड़ा प्रसिद्ध होगा । सोम ( शशांक ) राजा के विरुद्ध आक्रमण कर वह वैश्य राजा (हर्षवर्धन ) उसे परास्त करेगा ।

" सप्त्यष्टौ तथा श्रीरिण श्रीकण्ठावासिनस्तदा । आदित्यनामा वैश्यास्तु स्थानमीश्वरवासिनः ।।६१७ भविष्यति न सन्देहो अन्ते सर्वत्र भूपतिः हकाराख्यो नामतः प्रोक्तो सर्वभूमिनराधिपः ।। ६१८ मंजुश्रीमूलकल्प पृष्ठ ४५ I. भविष्यते च तदाकाले मध्यदेशे नृपो वरः । काराख्यस्तु विद्यात्मा वैश्य वृत्तिमचञ्चलः ।। ७१६ शासनेऽस्मिं तथा शक्त सोमाख्य ससमो नृपः । ७२० तस्याप्यनुजो ह्काराख्य एकवीरो भविष्यत.”

यह बात महत्व की है, कि थानेसर के जिन राजाओं का भारतीय इतिहास में इतना महत्व है, और जिन्होंने कुछ समय के लिये प्रायः सारे उत्तरी भारत को अपने आधीन कर लिया था, वे वैश्य थे। थानेसर करनाल जिले में है, करनाल और थानेसर हिसार व अगरोहा से दूर नहीं हैं । भाटों के गीतों के अनुसार अगरोहा छोड़कर अग्रवालों ने जो प्रारम्भिक बस्तियां बसाई थीं, उनमें ये स्थान अन्तर्गत थे । कोई आश्चर्य नहीं, कि स्थाएवीश्वर के वैश्य राजाओं का-जो उरु चरितम् के शूरसेन की तरह एक अन्य राजा के मन्त्री बन कर फिर स्वयं सर्वेसर्वा हो गये थे--अगरोहा के वैश्य आग्रेय गण के साथ कोई सम्बन्ध हो।

मंजुश्री मूल कल्प ने नाग वंश को भी वैश्य लिखा है। भारतीय इतिहास में नाग वंश का बड़ा महत्व है। जायसवाल जी ने इनकी प्रसिद्ध भारशिव वंश से एकता स्थापित की है। नागों का वर्णन इस प्रकार किया गया है

"तब फिर वैश्य वंश का राजा शिशु राज्य करेगा। फिर नागराज नाम का राजा गौड देश का शासन करेगा। उसके समीप ब्राह्मण और वैश्य रहेंगे । नागराजा स्वयं भी वैश्य होंगे और वैश्यों से ही घिरे रहेंग”

" महासन्य समायुक्तः शूरः क्रान्तविक्रमः ।। ७२१. निर्धास्ये हकाराख्यो नृपतिं सामं विश्रुतम् वैश्यवृत्तिस्ततो राजा महासन्यो महाबलः ।। ७७२ पराजयामास सोमाख्यम् .. .. . . . . . ७१५ मंजुश्रीमूलकल्प पृष्ठ ५३-५४ वैश्यवर्णशिशुस्तदा १७४६ नागराजसमायो गौडराजा”

इन वैश्य नागों का इतिहास हमें लिखने की प्राकश्यकता नहीं। श्री काशीप्रसाद जी ने इस बात पर आश्चर्य प्रगट किया है, कि इन नाग राजाओं को वैश्य क्यों लिखा गया है । पर हमें इसमें कोई आश्चर्य प्रतीत नहीं होता। नाग राजाओं का वैश्य अग्रवंश से प्राचीन सम्बन्ध है। उनको भी यदि वैश्य जातियों में सम्मिलित किया गया हो, तो यह सर्वथा सम्भव है।

वर्धन तथा नाग वंश के अतिरिक्त भारतीय इतिहास के सुप्रसिद्ध गुप्त वंश को भी मंजुश्री मृल कल्प ने वैश्य लिखा है । इसी गुप्त वंश में चन्द्रगुप्त प्रथम, समुद्रगुप्त, चन्द्रगुप्त द्वितीय ( विक्रमादित्य ), कुमारगुप्त और स्कन्दगुप्त जैसे प्रसिद्ध सम्राट् हुवे। इस सम्बन्ध में भी मंजुश्री मूल कल्प की निम्नलिखित बातें उल्लेख योग्य हैं

"निःसन्देह उस देश में तब एक राजा होगा, जो मधुरा ( मथुरा) का उत्पन्न हुवा होगा, और जिसकी माता वैशाली की होगी। वह वणिक् (वैश्य ) जाति का होगा। वह मगध देश का राजा हो जावेगा।" 

"अन्ते तस्य नपे तिष्ठं जयाचावर्णनद्विशौ ।।७५० 
वैश्यः परिवृता वैश्यं नागाहृयो समन्ततः ।।७५. १. 
मंजुश्रीमूलकल्प पृ० ५५-५६ 1. 
भविष्यन्ति न सन्देह: तस्मिं दश नराधिपाः 
मथुराजातो वैशाल्या वणिक् पूर्वी नपो वरः 
सोऽपि पूजितमूर्तिस्तु मागधानां नृपो भवेत् ।।७६० मंजुश्रीमूलकल्प पृ०”

यह वर्णन गुप्तवंश के एक राजा के सम्बन्ध में किया गया है । इससे तीन बातें स्पष्ट हैं—-गुप्तवंश के राजा वैश्य जाति के थे । उनका उद्भव मथुरा में हुवा था और उनका वैशाली के साथ सम्बन्ध था। मथुरा उस प्रदेश में है, जहां से वैश्य आग्रेयगन  दूर नहीं है ।

स्वयं मथुरा का घनिष्ठ सम्बन्ध राजा अग्रसेन के भाई वैश्य शूरसेन के साथ जोड़ा गया है। उरुचरितम् के अनुसार तो शौरसेन देश जो मथुरा कहाने लगा, उसका कारण यह वैश्य शूरसेन ही था। वैशाली के प्राचीन राजवंश वैशालक वंश का उद्भव वैश्य भलन्दन तथा वात्सप्री से हुबा था, राजा विशाल की कन्याओं से राजा धनपाल के पुत्रों का विवाह हुवा था। इस प्रकार वैशाली के वंश का वैश्यों के साथ गहरा सम्बन्ध है, और गुप्तों का वैश्य होना सर्वथा संगत है। 

गुप्तवंशी सम्राट वैश्य थे, यह जहां मंजुश्रीमूलकल्प से सूचित होता है, वहां इन राजाओं का अपने नामों के साथ 'गुप्त' लगाना भी इसी बात का द्योतक है। 'गुप्त' लगाने की परम्परा वैश्यों में ही है, और धर्मग्रन्थों ने भी इसका विधान किया है. गुप्त सम्राटों का गोत्र धारण था । एक शिलालेख में गुप्त राजकुमारी प्रभाकरगुप्ता को धारण गोत्रीया' लिखा गया है । उसके पति का गोत्र 'विष्णुवृद्ध' था । प्रभाकर गुप्ता का अपना गोत्र धारण था

सम्भवतः धारण गोत्री गुप्तों के प्रतिनिधि हैं। गुप्त सम्राटों की जाति को निश्चित करने का एक अच्छा साधन कुमारी प्रभाकर गुप्ता का धारण गोत्र है । यह धारण गोत्र ढैरण (धरण) की शकल में वैश्य अग्रवालों में पाया जाता है ।

धारण-गोत्रीया प्रभाकर गुप्ता का विवाह जिस कुमार से हुवा था, उसके वंश को भी वैश्य कहा गया है, उसका वैश्य धारण गोत्र की कुमारी से विवाह होना अधिक संगत है, छोटी जाति की कुमारी से नहीं। ___ गुप्त सम्राटों ने अपनी जाति को छिपाया है, यह कहना शायद उचित नहीं है । सम्भवतः, अपने वंश के सम्बन्ध में सब से अधिक स्पष्ट रूप से उन्होंने ही सूचना दी है । धर्म ग्रन्थों के आदेश 'गुप्तेति वैश्यस्य' का अनुसरण करते हुवे उन्होंने 'गुप्त' शब्द का अपने नामों के साथ प्रयोग किया है। धर्मस्मृतियों के निर्माण का समय भी ऐतिहासिक लोग प्रायः गुप्त काल को मानते

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