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Wednesday, February 19, 2025

DELHI,S NEW CHIEF MINISTER REKHA GUPTA

DELHI,S NEW CHIEF MINISTER REKHA GUPTA 


तस्वीर 2 फरवरी की है। पीएम मोदी ने रेखा गुप्ता के लिए शालीमार बाग में रैली की थी। रेखा यहीं से विधायक हैं।

50 साल की रेखा गुप्ता जिंदल दिल्ली की नौवीं CM होंगी। भाजपा विधायक दल की बैठक में बुधवार को उन्हें विधायक दल का नेता चुना गया। वे दिल्ली विधानसभा चुनाव में शालीमार बाग सीट से विधायक हैं।

उन्होंने AAP की वंदना कुमारी को 29,595 वोटों से हराया। रेखा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) और BJP से जुड़ी हैं। दिल्ली भाजपा की महासचिव और भाजपा महिला मोर्चा की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष भी हैं।

दिल्ली की चौथी महिला मुख्यमंत्री के तौर पर RSS ने रेखा गुप्ता का नाम आगे बढ़ाया था और पार्टी ने उस पर मुहर लगा दी। रेखा ने छात्र राजनीति से करियर की शुरुआत की, दो बार विधायक का चुनाव हार चुकी हैं। फिर भी 3 वजहें हैं, जिसके चलते उन्हें मुख्यमंत्री चुना गया...


विधायक दल की बैठक से पहले पार्टी मुख्यालय में रेखा।

पहली वजह- केजरीवाल की तरह वैश्य

रेखा भी पूर्व सीएम अरविंद केजरीवाल की तरह वैश्य हैं। दिल्ली में वैश्य समुदाय व्यापार में होल्ड रखता है। ये हमेशा बीजेपी का कोर वोटर माना जाता है। इसी वजह से भाजपा के तीन  वैश्य नेताओं के नाम सीएम पद की दौड़ में थे। इनमें रेखा गुप्ता के अलावा विजेंद्र गुप्ता और जीतेन्द्र महाजन का नाम था।


दूसरी वजह- महिला वोट दिल्ली महिला विधानसभा चुनाव में भाजपा ने कुल 48 सीटें जीतीं, कुल 45.56% वोट मिला। इसका बड़ा कारण यह भी रहा कि भाजपा ने महिलाओं के लिए कई योजनाओं की घोषणा की थी।

पांच बड़ी घोषणाएं...
हर महीने 2500 रुपए की आर्थिक मदद। जो 8 मार्च यानी अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस से मिलना शुरू हो सकता है।
दिल्ली में घरेलू मेड के कल्याण के लिए बोर्ड बनाने का ऐलान किया।
गरीब महिलाओं को सिलेंडर पर 500 रुपए की सब्सिडी, होली-दीवाली पर एक-एक मुफ्त सिलेंडर।
मातृ सुरक्षा वंदना योजना के तहत गर्भवती महिलाओं को ₹21 हजार और 6 पोषण किट।
महिलाओं को फ्री बस सर्विस की भी सुविधा दी है।

तीसरी वजह- महिला मुख्यमंत्री बनाना था

दिल्ली में अब तक 3 महिला सीएम शीला दीक्षित, सुषमा स्वराज और आतिशी रही हैं। भाजपा ने रेखा को सीएम बनाकर महिलाओं को साधने की कोशिश की है। रेखा गुप्ता RSS की पसंद हैं।

सूत्रों के मुताबिक, विधायक दल की बैठक के पहले RSS ने उनके नाम का प्रस्ताव रखा, जिसे भाजपा ने मान लिया। PM मोदी, गृह मंत्री अमित शाह, केंद्रीय परिवहन मंत्री नितिन गडकरी और हरियाणा CM नायब सैनी जैसे भाजपा दिग्गजों ने उनके लिए प्रचार किया था।


रेखा गुप्ता और उनकी फैमिली की 3 तस्वीरें...


कांग्रेस नेता अल्का लांबा ने X पर ये तस्वीर पोस्ट की। उन्होंने लिखा- 1995 की यह यादगार तस्वीर, जब मैंने और रेखा गुप्ता ने एक साथ शपथ ग्रहण की थी- मैंने NSUI से दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ (DUSU) के अध्यक्ष पद पर जीत हासिल की थी और रेखा ने एबीवीपी से महासचिव पद पर जीत हासिल की थी।


रेखा ने 1998 में मनीष गुप्ता के साथ शादी की थी। वे बिजनेसमैन हैं।


रेखा गुप्ता पति मनीष, बेटे निकुंज और बेटी हर्षिता के साथ।

रेखा का परिवार हरियाणा से, दिल्ली में पली-बढ़ीं

रेखा के दादा मनीराम और परिवार के लोग हरियाणा के जुलाना में रहते थे। उनके पिता जयभगवान 1972-73 में बैंक ऑफ इंडिया में मैनेजर बने। उन्हें दिल्ली में ड्यूटी मिली। इसके बाद परिवार दिल्ली शिफ्ट हो गया।

रेखा की स्कूली पढ़ाई दिल्ली में ही हुई। उन्होंने दिल्ली के ही दौलत राम कॉलेज से बीकॉम किया। इसके बाद एलएलबी की पढ़ाई भी की। उन्होंने कुछ समय तक वकालत भी की।



रेखा के नाम कोई कार नहीं, कुल ₹5.3 करोड़ की संपत्ति

चुनावी हलफनामे के मुताबिक, रेखा गुप्ता की कुल संपत्ति ₹5.3 करोड़ की है। जिसमें देनदारियां ₹1.2 करोड़ और 1 लाख 48 हजार कैश है। बैंक अकाउंट में ₹72.94 लाख डिपॉजिट है। रेखा ने कई कंपनियों के शेयर भी ले रखे हैं, जो ₹9.29 लाख से के हैं। इनके पास LIC में ₹53 लाख का इंवेस्टमेंट हैं।

रेखा गुप्‍ता के नाम पर कोई कार नहीं है। उनके पति मनीष गुप्ता के नाम पर मारुति की XL6 कार है। रेखा के पास 225 ग्राम की गोल्ड ज्‍वैलरी है, जिसकी कीमत 18 लाख रुपए है। रेखा के पास कुल 2 करोड़ 72 लाख की चल संपत्ति है।

अचल संपत्तियों में रोहिणी और शालीमार इलाके में एक-एक घर है। रोहिणी दिल्‍ली में इनके पति के नाम पर भी एक घर है। इन घरों की कुल कीमत 2 करोड़ 60 लाख रुपए है।

लेख साभार : दैनिक भास्कर 

Tuesday, February 18, 2025

VAISHYA GURUMATH - HALDIPUR

VAISHYA GURUMATH - HALDIPUR



हल्दीपुर मठ का इतिहास लगभग 2500 वर्ष पुराना है। हालाँकि, गुरुओं का प्राचीन इतिहास और परंपरा बहुत पुरानी होगी। क्योंकि उत्तरी केनरा में अन्य मठों की स्थापना ई.पू. के आसपास की गई थी। यह लगभग 1475 की बात है, जब या लगभग उसी समय हमारे वैश्य मठ की स्थापना हुई थी। अर्थात् 550 वर्ष पूर्व, इसी अवधि में द्रविड़ परंपरा, जिसके अनुसार मठ का प्रमुख ब्राह्मण होना आवश्यक था, में भी ढील दी गई थी। श्री संस्थान हल्दीपुर केरेगड्डे कृष्णाश्रम मठ उत्तर कन्नड़ (कर्नाटक राज्य) के होनवार जिले के हल्दीपुर के केरेगड्डे गांव में स्थित है। कुमठा से मंगलौर तक राष्ट्रीय राजमार्ग पर आठ किलोमीटर लंबे जंगल-युक्त मार्ग के बाद बाईं ओर एक सड़क है, वहां से प्रवेश करने पर आपको वैश्य समाज का साइनबोर्ड दिखाई देगा। वहां से थोड़ी ही दूरी पर एक सुंदर और शांतिपूर्ण क्षेत्र में गुरु मठ है।

​वैश्य गुरु परंपरा शांताश्रमस्वामी, श्रीमत् कृष्णस्वामी, श्रीमत् शांतारामश्रमस्वामी और श्रीमत् शांताश्रमस्वामी के रूप में पाई जाती है। श्रीमत शांताश्रम श्रृंगेरी के स्वामी ने 1882 में किसी को भी शिष्य बनाए बिना ही समाधि ले ली और उसी समय से गुरु परंपरा टूट गई। बीच के समय में युद्ध, अराजकता, लूटपाट, बच्चों का अपहरण, मंदिरों का विनाश और कर वसूली ने आम लोगों में भय का माहौल पैदा कर दिया। इससे मठ से आम लोगों का संपर्क टूटने और अस्थिर स्थिति के कारण गुरु परंपरा में व्यवधान उत्पन्न हुआ होगा। 1882 के बाद 1920 तक मठ का प्रबंधन धार्मिक प्रवृत्ति वाले, श्रद्धालु, सेवाभावी और वफादार व्यक्तियों द्वारा किया जाता था।

सेवा समिति की स्थापना 1920 में हुई तथा ट्रस्ट की स्थापना 6.4.1953 को हुई तथा जीर्णोद्धार कार्य शुरू हुआ। 1972 के बाद से गोवा, केरल, कर्नाटक और महाराष्ट्र में वैश्यों के एकीकरण की प्रक्रिया शुरू हुई। जब गुरुमठ आकार ले रहा था, तब समुदाय में भावी गुरु की खोज शुरू हो गई थी और तदनुसार, ची. उपदेश बाबू को भावी गुरु के रूप में चुना गया और कुमार उपदेश बाबू ने 25.6.93 को श्रृंगेरी के शारदापीठ में अपनी शिक्षा शुरू की। जब गुरुमठ का जीर्णोद्धार किया जा रहा था, तब उपदेश बाबू ने गहन आध्यात्मिक ज्ञान के लिए अपनी 11 वर्षीय तपस्या शुरू की। चि. उपेश बाबू का जन्म एर्नाकुलम जिले के कोचीन तालुका में श्री. पी गोपाल शेट और श्रीमती. इस शिव भक्त दम्पति के घर 2.11.1981 को सुशीला का जन्म हुआ। श्री गोपालशेठ विश्वामित्र वंश से हैं और विष्णु उनके कुलदेवता हैं। गोपाल शेट के तीन बेटे और तीन बेटियाँ हैं। सभी का जन्म कोचीन में हुआ था।

​गुरु मठ का विस्तार और नवीनीकरण का कार्य लगभग पूरा होने वाला था। वैश्य भाई गुरु के आगमन की प्रतीक्षा कर रहे थे। ग्यारह वर्ष बीत चुके थे। और श्रृंगेरी शारदापीठ के स्वामी श्री. भारतीर्थ ने 12.3.2004 को कुमार उपेशबाबू के पट्टाभिषेक का शुभ दिन घोषित किया, और वैश्यों का आनंद बढ़ गया। 6 मार्च से 13 मार्च 2004 तक गुरु मठ में कई कार्यक्रम आयोजित किये गये। 8 मार्च को चित्रपुर गुरुमठ के श्रीमत् सद्यज्योत स्वामीजी ने श्री उपदेश बाबू को वैश्य समुदाय के गुरु के रूप में समुदाय को सौंप दिया। उनका नाम “श्रीमत् वामनाश्रम स्वामीजी-कृष्णाश्रम मठ, हल्दीपुर मठाधिपति” रखा गया।

​हमारी गुरु परम्परा 12 मार्च 2004 को श्री श्री वामनश्रम महास्वामीजी की कृपा और आशीर्वाद से शुरू हुई।

​श्रीसंस्थान कृष्णाश्रम मठ, हल्दीपुर, तालुका-हन्नावर (उत्तर कन्नड़)।

पिन कोड - 581327.

फोन: 08387 254303,

ऑफिसः 08387 254999.

VAISHYA SAMAJ MUMBAI - वैश्य समाज, मुंबई.

VAISHYA SAMAJ MUMBAI - वैश्य समाज, मुंबई.

वैश्य गुरुमठ प्रमुख वामनाश्रम महास्वामीजी

वैश्य समुदाय ने 1972 में 50 वर्ष पूरे किये। लेकिन कई कठिनाइयों के कारण स्वर्ण जयंती समारोह 1976 तक स्थगित कर दिया गया। 1998 में हीरा महोत्सव भी मनाया गया। इस अवधि के दौरान समुदाय की सेवा करने वाले लोगों की वजह से ही हम 2022 में अपना शताब्दी वर्ष मनाने में सक्षम हुए। उन सभी को धन्यवाद... 1976 से पहले समाज की स्थिति बहुत संतोषजनक नहीं थी। इस अवधि के दौरान समाज को बनाए रखने का कार्य, सबसे पहले, एस.बी.ए. का कार्य है। महादेश्वर, शरद सापले, एकनाथ फोंडके, कमलाकांत कुशे, रामकृष्ण गाड, वी. आर। बांदेकर, वसंत पेडनेकर. स्वर्ण जयंती के बाद आए श्री मोहन अलाव, श्री. भास्कर लाड, श्री. अशोक पारकर व अन्य लोगों ने वैश्य युवा मोर्चा का गठन किया और वैश्य समाज के लिए जोरदार तरीके से काम शुरू किया। पिछले 50 वर्षों के इतिहास, यानी 2022 तक, के मुख्य आकर्षण बोरीवली में तीन मंजिला इमारत है, जिसे मुंबई महानगरपालिका से कुडाल देशस्थ वैश्य समुदाय को सुपारी बाग स्थल, पानवाला चाल और लालबाग की जमीन के स्थान पर पट्टे पर दिया गया था, जो वैश्य सहायक मंडल से ली गई थी, साथ ही श्री. कांत हवेली की भूमि पेम के प्रयासों से वैश्य समुदाय द्वारा खरीदी गई थी। यह भवन 600 वर्ग मीटर क्षेत्रफल में पुनर्निर्मित एवं नव अधिग्रहीत है। फुट स्थान. इस काल में वैश्य समुदाय ने शिक्षा के मामले में सर्वांगीण प्रगति की तथा कृषि और व्यापार की अपेक्षा शिक्षा को अधिक महत्व दिया। वैश्य समुदाय के विद्वान लोग उच्च शिक्षा के लिए विदेश जाने लगे। डॉक्टर, इंजीनियर, प्रोफेसर, पत्रकार, पुस्तकालयाध्यक्ष, लेखक, नाटककार, प्रकाशक, संपादक और उद्योगपति सभी क्षेत्रों में प्रगति कर चुके हैं और सरकारी दरबार में वरिष्ठ पदों पर आसीन हो चुके हैं। समाज राजनीतिक, शैक्षिक और आर्थिक मोर्चों पर आगे बढ़ रहा है।

ORIGIN OF GOTRAS IN OSWAL JAIN VAISHYA - ओसवाल में गोत्र की उत्पत्ति

ORIGIN OF GOTRAS IN OSWAL JAIN VAISHYA - ओसवाल में गोत्र की उत्पत्ति

वीर संवत 70 में आचार्य श्री रत्न प्रभ सूरि ने उपकेशपुर पट्टन (वर्तमान में ओसिया के नाम से जाना जाता है) के राजा उत्पलदेव और उनके पूरे राज्य को जैन धर्म में परिवर्तित कर दिया। 'जैन जाति महोदय' के अनुसार आचार्य श्रीजी ने संभवतः उनके मूल गोत्र या व्यवसाय या स्थिति के आधार पर 18 गोत्रों का नामकरण किया।

तातेर
बाफना
कर्णावत
बलाहा
मोरख
कुलहट
विरहत
श्रीश्रीमाल
श्रेष्ठी
संचेती
आदित्य नाग
भूरि
भद्र
चिंचत
कुमत
दीदु
कन्नोजिया
लघुश्रेष्ठि

उपरोक्त सभी ओसिया में महाजन थे। वि.स. 222 में जयपुर के पास खंडेला में एक बड़ा महाजन समुदाय इकट्ठा हुआ। उस समय ओसिया के सभी महाजनों को ओसवाल नाम दिया गया और उपरोक्त सभी गोत्र ओसवाल का हिस्सा बन गए।

यति रूपचंदजी "जैन संप्रदाय शिक्षा" के अनुसार ओसवालों के कुल गोत्र 440 थे और यति रामलालजी "महाजन वंश मुक्तावली" के अनुसार यह 609 थे। मिथक के अनुसार एक भाट ने 1444 गोत्रों की सूची बनाई थी, लेकिन यह उपलब्ध नहीं है। हमने 2700 से अधिक गोत्रों की सूची और 800 से अधिक गोत्रों की उत्पत्ति प्रकाशित की है।

श्री मुनि ज्ञान सुंदरजी के अनुसार 18 गोत्रों से 458 गोत्र बने।

पहले 18 गोत्रों और उपगोत्रों की सूची
1. तातेर, तो नदियानी, चोमोला, कोसिया, धावड़ा, चैनावत, तलोबड़ा, नर्वरा, संघवी, डुंगरिया, चौधरी, रावत, मालावत, सुरती, जोरवेला, पंचायत, विनायक, साढेराव, नागदा, पाका, हरसोट, केलानी (22 उपगोत्र)।

2. बाफना : बाफना (बहुफाना), नाहटा, भोपाला, भूटिया, भाभू, नवसारा, गुगालिया, दगरेचा, चमकिया, चौधरी, जांगड़ा, कोटेचा, बाला, धतुरिया, लिहुवाना, कुरा, बेताला, सलगना, बुचानी, सावलिया, तोसारिया, गांधी, कोठारी, खोखरा, पटवा, दफ्तरी, गोदावत, कुचेरिया, बलिया, सांघवी, सोनावत, सेलोत, भावड़ा, लगु-नाहटा, पंचवैया, हुमिया, टाटिया, तगा, लगु-चमकिया, बोहारा, मिठडिया, मारू, रणधीरा, ब्रह्मेचा, पटालिया, बानुदा, टाकलिया, गोधा, गैरोला, दुधिया, बडोला, सुक्तिया (52 उपगोत्र)।

3. कर्णावत : कर्णावत, बगड़िया, सांघवी, रांसोत, आछा, ददालिया, हुणा, काकेचा, थांभोरा, गुंदेचा, जिजोत, लभानी। सांखला, भीनमाला (14 उपगोत्र)।

4. बलाहा : बलाहा, रांका, बांका, सेठ, सेठिया, छावत, चौधरी, लाला, बोहारा, भुतेड़ा, कोठारी, राका, देपारा, नेरा, सुखिया, पटोत, पेप्सरा, धारिया, जड़िया, सलीपुरा, चितोरा, हाका, संघवी, कागड़ा, कुशलोट, फलोदिया, (26 उपगोत्र)।

5. मोरख : मोरख, पोकर्ण, सांघवी, तेजारा, लगु-पोकर्ण, बंदोलिया, चुंगा, लगु-चुंगा, गाजा-चौधरी, गोरीवाल, केदारा, बटोकड़ा, करचू, कोलोग, शिगाला, कोठारी (16 उपगोत्र)।

6. कुलहाट : कुलहाट, सुरवा, सुसानी, पुकारा, मसानिया, खोदिया, सांघवी, लगु-सुखा, बोराद, चौधरी, सुरानिया, सखेचा, कटारा, हाकड़ा, जालोरी, मन्नी, पलाखिया, खुमाना (18 उपगोत्र)।

7. विरहट : विरहट, भूरट, तुहाड़ा, ओसवाला, लगु-भुरट, गागा, नोप्टा, सांघवी, निबोलिया, हंसा, धारिया, राजसरा, मोतिया, चौधरी, पुनमिया, सारा, उजोत (17 उपगोत्र)।

8. श्रीश्रीमाल : श्रीश्रीमाल, श्रीमाल, संघवी, लघु-संघवी, निलाड़िया, कोटड़िया, ज़बानी, नाहरलानी, केसरिया, सोनी, खोपर, खजांची, दानेसरा, उधावत, अटकलिया, धाकड़िया, भीनमाला, देवद, मादलिया, कोटि, चांडालेचा, सांचोरा, करवा (23 उपगोत्र)।

9. श्रेष्ठी : श्रेष्ठी, सिंघावत, भल्ला, रावत, बैद-मुथा, पटवा, सेवड़िया, चौधरी, थानावत, चित्तौड़ा, जगावत, कोठारी, बोठानी, संघवी, पोपावत, ठाकुरोट, बखेता, बिजोट, देवराजोत, गुंडिया, बालोटा, नागोरी, सेखानी, लाखानी, भूरा, गांधी, मेड़तिया, रणधीरा, पालावत, शूरमा, (30 उपगोत्र)।

10. संचेती : संचेती, सुचिंती, ढेलड़िया, धामानी, मोतिया, बिंबा, मालोट, लालोट, चौधरी, पलानी, लागू, संचेती, मंत्री, हुकमिया, कजारा, हिपा, गांधी, बेगानिया, कोठारी, मलखा, छाछा, चित्तोरिया, इसरानी, ​​सोनी, मारुआ, घरघंटा, उडेचा, लागू-चौधरी, चोसरिया, बापावत, संघवी, मुर्गीपाल, किलोला, लालोट, खर-भंडारी, भोजावत, काटी, जटा, तेजाणी, सहजनी, सेना, मंदिरवाला, माल्टिया, भोपावत, गुनिया, (44 उपगोत्र)।

11.आदित्यनाग: आदित्यनाग, चोरडिया, चोरडिया से सोधानी, सांघवी, उदक, गसानिया, मिनियार, कोठारी, नबरिया, सराफ, कमानी, दुधोनी, सिपानी, आसानी, सहलोत, लगु-सोढ़ानी, देदानी, रामपुरिया, धनानी, मोलानी, देवसयानी, नानी, श्रावणी, बक्कड़, मक्कड़, भक्कड़, लेयुनकड़, संसार, कोबेरा, भटारकिया, पितलिया, फलोदिया, बोहरा, चौधरी, पारख, पारख से भावसार, लागू-पारख, सांघवी, ढेलाड़िया, जसानी, मल्हानी, ट्रांडक, तजानी, रूपावत, चौधरी, नागोरी, पटानिया, छडोत, मम्मैया, बोहरा, खजांची, सोनी, हदेरा, दफ्तरी, तोलावत, राव-जोहारी, गलानी, गोलेछा, गोएछा से दौलतानी, संगानी, संघवी, नापाडा, कजानी, हुल्ला, मेहाजावत, नगाड़ा, चितौड़ा, चौधरी, दतारा, मिनागरा, श्रवणसुखा (शामसुखा), श्रवणसुखा से मीनारा, लोला, बिजानी, केसरिया, बाला, कोठारी, नंदेचा, भटनेरा-चौधरी, भटनेरा चौधरी से कुम्पावत, भंडारी, जीमानिया, चेदावत, सांभरिया, कानूगा, गढ़ैया, गढ़ैया से गहलोत, लुणावत, रणशोभा, बालोट, सिंघवी, नोप्टा, बुच्चा, सोनारा, भंडालिया, करमोट, दलिया, रतनपुरा (98 उपगोत्र)।

12. भूरी : भटेवरा, उदक, सिंघी, चौधरी, हिरणिया, माछा, बोकाड़िया, बालोटा, बोसुड़िया, पितलिया, सिंहावत, जलोट, दोसाखा, लाडवा, हल्दिया, नाचनी, मुर्दा, कोठारी, पटोलिया, (20 उपगोत्र)।

13. भादरा : भादरा (भारद्वाज), समदरिया, हिंगड़, जोगड़, गिंगा, खापटिया, छवेरा, बलाड़ा, नामाणी, भमरानी, ​​ढेलड़िया, सांगी, सदावत, भांडावत, चतुर, कोठारी, लघु-समदरिया, लघु-हिंगड़, संधा, चौधरी, भाटी, सुरपुरिया, पटानिया, नाणेचा, गोगड़, कुलधरा, रमाणी, नाथावत। फुलगारा, (29 उपगोत्र)।

14. चिनचट : चिनचट, देसरदा (देशलहरा), सांघवी, ठाकुर, गोसलानी, खिनवासरा, लगु-चिंचट, पचोरा, पुरविया, नसानिया, नौपोला, कोठारी, तरावल, लडसखा, शाह, अकतारा, पोसालिया, पुजारा, बनावत, (19 उपगोत्र)।

15. कुमट : कुमट (कुंभट), कजलिया, धनंतरी, सुगा, जगावत, संघवी, पुंगलिया, कथोरिया, कपूरीत, सामरिया, चौखा, सोनिगरा, लाहोरा, लाखानी, मखानी, मारवणी, मोरचिया, छलिया, मालोट, नागोरी, लगु-कुमट, (21 उपगोत्र)।

16. दीदु : दीदु, राजोत, सोसलानी, धापा, धीरत, खंडिया, योद्धा, भाटिया, भंडारी, समदरिया, सिंधुड़ा, लालन, कोचर, दरवा, भीमावत, पलानिया, सिखरिया, बांका, बारबरा, गदालिया, कानूनगा (21 उपगोत्र)।

17. कन्नोजिया : कन्नोजिया, बड़भाटा, राकावल, टोलिया, छछलिया, घेवरिया, गुंगलेचा, करवा, गडवानी, करेलिया, राडा, मीठा, भोपावत, जालोरा, जामगोटा, पटवा, मुसलिया, (17 उपगोत्र)।

18. लघु-श्रेष्ठी : लघु, श्रेष्ठी, वर्धमान, भोमलिया, लुनेचा, बोहारा, पटवा, सिंघी, चित्तौड़ा, खजांची, पुणोत, गोधरा, हाड़ा, कुवालिया, लुन्ना, नटेरिया, गोरेचा, (16 उपगोत्र)।

इन 18 मुख्य गोत्रों में कुल 503 उप-गोत्र हैं। "बंधु-सनेश" पत्रिका ने 1990 में यह सूची छापी थी।

गोत्रों का वर्गीकरण
गोत्रों का वर्गीकरण निम्नलिखित तर्क के अनुसार है:

1. मूल जाति के अनुसार
2. आचार्यों के अनुसार
3. गच्छ के अनुसार
4. प्रथम पूर्वज के अनुसार
5. स्थान के अनुसार
6. व्यवसाय, पेशा नौकरी, सेवा के अनुसार

1. मूल कलाकारों के अनुसार :

क्षत्रियों से :

1. पंवार : नाहर, बाफना, बरदिया, दरदा, नाहटा, लालवानी, बांठिया, बरमेचा, कुमकुम-चोपड़ा, आदि।
2. चौहान : लोढ़ा, कटारिया, खिमसरा, डागा, पिठालिया, दुगर, बाबेल, भंडारी, संखलेचा, कंसटिया, मामैया, आबेदा, खटेड़, आदि।
3. परमार : करानिया, गांग, बोराड़, सिंघवी-दीदु, आदि।
4. राठौड़: चोरडिया, गोलेछा, पारख, छाजेड़, ज़बक, पोकरणा, मोहनोत, आदि।
5. खिंची: गलदा
6. गहलोत: पीपारा, आदि।
7. सोनगरा चौहान: दोशी, बागरेचा, सुबती, आदि।
8. भाटी: भंसाली, राखेचा, पुंगलिया, ऐयारिया (लूणावत)
9. गौड़: रांका, बांका, आदि
10. सिद्ध: रूणवाल आदि।
11. सोलंकी: लूणकड़, श्रीपति, दधा, तिलोरा, आदि।
12. देवड़ा: सिंघी, सिंघवी
13. दैया: सालेचा-बोहरा, आदि।

कुछ गोत्र क्षत्रियों के हैं लेकिन उनकी मूल जातियाँ ज्ञात नहीं हैं। जैसे बोथरा, कांकरिया, मुकीम आदि।
ब्राह्मणों से: कठोतिया, पगारिया, ननवाना, भद्र, सिंघवी, देवानंद सखा,
कायस्थ से: गुफुंधर - चोपड़ा
, वैश्य से: पोकर्ण, भाभू, लुनिया, रिहोड़, मालू आदि।

2. आचार्यों के अनुसार:
श्री रत्नप्रभ सूरी: पहले 18 गोत्र और उनके उपगोत्र
श्री वर्धमान सूरी: पीपारा, कामनी
श्री जिनेश्वर सूरी: श्रीपति, ढाढ़ा, तिलोरा, चिल-भंसाली, भंसाली
श्री जिनचंद्र सूरी: श्रीमाल
श्री अभय देव सूरी: खेतसी, पगारिया, मेड़तवाल
श्री जिनवल्लभ सूरी: कांकरिया, चोपड़ा, गंधार-चोपड़ा, कुकड-चोपड़ा, वाडेर, सैंड, सिंघी, बांठिया, लालवानी, बरमेचा, शाह, सोलंकी, गेमावत, ओटावत

श्री जिनदत्त सूरी : पटवा, टाटिया, बोराड़, खिमसरा, समदरिया, कटोतिया, कटारिया, रतनपुरा, लालवानी, डागा, मालू, भाभू, सेठी, सेठिया, रांका, धोका, राखेचा, संकलेचा, पुंगलिया, चोरड़िया, सोनी, लूनिया, नबरिया, पितलिया, बोथरा, अय्यारिया, लूणावत, बाफना, भंसाली, चांडालिया, आबेदा, खाटोल, भडगत्या, पोकरणा

श्री मणिधारी जिनचंद्र सूरी : अघरिया, छाजेड़, मिन्नी, खजांची, मुंगाड़ी, श्रीमाल, सालेचा, गांग, दुगर, शेखानी, अलावाट

श्री जिनकुशल सूरी: बाबेल, जड़िया, डागा
श्री जिनचंद्र सूरी: पहलिया, पिंचा
श्री जिन्हांश सूरी: गलदा
श्री जिनप्रभ सूरी: लघु-खंडेलवाल, दीदु
श्री जिनभद्र सूरी: ज़बक
श्री तरूणप्रभ सूरी: भुटारिया
श्री आर्यरा रक्षत सूरी: महिपाल, मिठोदिया, वडेर
श्री शांति सूरी: गुगलिया, गुलुंडिया
श्री कुशल सूरी: डागा
श्री मंडियो सूरी: नाहर
श्री उद्योगोतन सूरी: बरदिया, दरदा, बलदोता-सिंघवी
श्री यशोभद्र सूरी: भंडारी, शिसौदिया
श्री शिवसेन सूरी: मोहनोत
श्री धनेश्वर सूरी: लुंकड, दद्दा, तिलोरा
श्री धर्मघोष सूरी: ददियालेचा, देवानंद-सखा
श्री नामदेव सूरी: नाहर
श्री चंद्रप्रभ सूरी: पतावत
श्री भवदेव सूरी: पामेचा
श्री कनक सूरी: बोलिया
श्री बोप्पभट्ट सूरी: कोस्थगर
श्री महात्मा पोसालिया: कोचर
श्री जयसिंह सूरी: गाला, छाजोल, देधिया, नागदा, पाडिया, पेलाडिया, राठौड़, लालन
श्री रत्नप्रभ सूरी: गुडका
श्री यशोदेव सूरी: वांगनी
श्री विमल चंद्र सूरी: बांदा-मेहता
श्री रविप्रभ सूरी: लोढ़ा
श्री देवगुप्ता सूरी: लूणावत
श्री हेम सूरी : सुराणा

3. गच्छ के अनुसार:
उपकेश गच्छ: खरत्तर गच्छ के ऊपर वर्णित पहले 18 गोत्र
: कटारिया, कांकरिया, कर्णिया, कठोटिया, खजांची, मिन्नी, खिमसरा, गडवानी, भडगटिया, गेल्दा, गांग, गोठी, चोपड़ा, गुंधार, कुमकुम, चोरडिया, छाजेड़, ज़बक, डागा, दोशी, पिथालिया, दुगर, धाडिया, टाटिया, पगारिया, पोकर्ण, पीपाड़ा, बाबेल, बोराड़, बाफना, बोथरा, मुकीम, भाभू, भंसाली, मालू, राखेचा, पुंगलिया, लालवानी, बांठिया, बरमेचा, रांका, रुणवाल, लोढ़ा, लूनिया, अय्यारिया, लूणावत, कांस्टिया, मामिया, सालेचा, ढाढ़ा, तिलोरा, सिंघी, आबेदा, कमानी आदि।

सैंडर गच्छ: भंडारी,
टप्पा गच्छ: मोहनोत, कोचर आदि।
कोरंट गच्छ: संकलेचा,
आंचल गच्छ: गाला, गुडका, छाजोल, देधिया, नागदा, महिपाल, मिठोडिया

4. प्रथम पूर्वज के अनुसार :
लालसिंह : लूणिया
लूणा : लूणावत
हरखचंद : हरखावत
डूंगरसी : डूंगराणी
माल : मल्लावत
दासू : दस्सन्नी
खेता : खेतानी
अस्पाल : अस्साणी
महलदेव : मालू
बोहिथ : बोथरा
बच्चाजी : बच्छावत
डूंगा : डागा
गोंगा; गैंग
दुधेड़ा: दुधेरिया
ब्रह्मदेव: ब्रम्हेचा
गाड़ा शाह: गढ़ैया
लालसिंह: लालवानी
पिल्डा: पिठालिया
भारद्वाज; भद्र
दौलतसिंह : दौलताणी
रूपसिंह : रूपाणी
तेजसिंह : तेजाणी
महलदेव : महलाणी
जसा : जसाणी आदि।

5. यथास्थान
भंडसाल : भण्डाल
खींवसर : खींवसरा
पीपाड़ : पीपाड़ा
नागौर : नागोरी
मेड़ता : मेड़तवाल/मेड़तिया
पूंगल : पुंगलिया
कांकरोट : कांकरिया
संखवाल : संखलेचा
रूण : रूनवाल
जाबुआ : जाबक
हला : हालाखंडी
जालोर : जालोरी
खाटू : खाटोल
मंडोर : मंडोरा
सिरोही : सिरोहिया
सांचोर : सांचोरा
कुचेरा -कुचेरिया
चितौड़ : चितौड़ा
फलोदी : फलोदिया

6. व्यापार, पेशा, नौकरी, सेवा आदि के अनुसार
तेल (तेल) : तिलोरा
घी : घीया
गुगल : गुगलिया
आभूषण : जौहरी
बोहारी : बोहरा
चौधराहट : चौधरी
कोषाध्यक्ष : खजांची
कोठार : कोठारी
हकूमत : हकीम
भंडार : भंडारी
खाते : मेहता, शाह, सेठ, सेठिया वैध, पारख, सिंघवी।


श्री सी.एम. लोढ़ा, जोधपुर द्वारा

Indias' new CEC Gyanesh Kumar Gupta IAS

Indias' new CEC Gyanesh Kumar Gupta IAS

CEC Gyanesh Kumar IAS: देश के नए मुख्‍य चुनाव आयुक्‍त ज्ञानेश कुमार के परिवार में IAS, IRS, IPS की भरमार है.आइए आपको बताते हैं कि इनके परिवार में कौन कौन है?


Gyanesh Kumar is new CEC, CEC Gyanesh Kumar Family: मुख्‍य चुनाव आयुक्‍त ज्ञानेश कुमार का परिवार.

CEC Gyanesh Kumar IAS: ज्ञानेश कुमार को देश का 26वां मुख्य निर्वाचन आयुक्त बनाया गया है, जिसके बाद वह काफी चर्चा में हैं. ज्ञानेश कुमार 1988 बैच के केरल कैडर के IAS हैं. वह कुछ समय तक केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर रहे. उन्होंने केंद्रीय गृह विभाग और सहकारिता विभाग में भी कार्य किया. वह सहकारिता विभाग के सचिव पद से रिटायर हुए, जिसके बाद वह चुनाव आयुक्त बने. अब मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार के रिटायरमेंट के बाद उन्हें मुख्य चुनाव आयुक्त बनाया गया है. आइए जानते हैं कि मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार के परिवार में कौन-कौन हैं?

CEC Gyanesh Kumar: आगरा के रहने वाले हैं ज्ञानेश कुमार

ज्ञानेश कुमार गुप्ता मूल रूप से उत्तर प्रदेश के आगरा के रहने वाले हैं. उनके पिता सुबोध कुमार गुप्ता पेशे से डॉक्टर हैं और वह चीफ मेडिकल ऑफिसर के पद से रिटायर हुए हैं. सरकारी नौकरी में होने के कारण उनके पिता सुबोध कुमार का अक्सर ट्रांसफर होता था, लिहाजा ज्ञानेश कुमार की पढ़ाई-लिखाई कई शहरों में हुई. ज्ञानेश कुमार ने गोरखपुर, लखनऊ और कानपुर आदि शहरों से पढ़ाई पूरी की. उन्होंने 12वीं लखनऊ के काल्विन तालुकेदार कॉलेज से की और इस स्कूल के टॉपर भी रहे. इसके बाद उन्होंने वाराणसी के क्वींस कॉलेज से भी पढ़ाई की. 12वीं के बाद उनका एडमिशन IIT कानपुर में हो गया. यहां से उन्होंने सिविल इंजीनियरिंग में बीटेक किया. इसके बाद उन्होंने कुछ समय तक दिल्ली में रहकर सिविल सर्विसेज परीक्षा की तैयारी की और 1988 में IAS बन गए.

CEC Gyanesh Kumar Family: भाई IRS, बहनोई IPS

ज्ञानेश कुमार के परिवार में IAS, IRS की भरमार है. उनके छोटे भाई मनीष कुमार IRS अधिकारी हैं, तो उनकी बहन रोली इंदौर में स्कूल चलाती हैं. उनके पति उपेंद्र कुमार जैन IPS अधिकारी हैं. ips.gov.in पर उपलब्ध जानकारी के मुताबिक, उपेंद्र कुमार जैन 1992 बैच के मध्य प्रदेश कैडर के ADG रैंक के IPS अधिकारी हैं.

Chief Election Commissioner Gyanesh Kumar daughter: बेटी-दामाद IAS, IRS

ज्ञानेश कुमार की अगली पीढ़ी भी किसी से कम नहीं है. इस पीढ़ी में भी IAS, IRS अधिकारी मौजूद हैं. उनकी बड़ी बेटी मेधा रूपम आईएएस अधिकारी (IAS Medha Roopam) हैं, वहीं उनके पति मनीष बंसल (IAS Manish Bansal) भी आईएएस अधिकारी हैं. दोनों 2014 बैच के IAS अधिकारी हैं. मेधा रूपम इन दिनों कासगंज (DM Kasganj) की डीएम हैं, जबकि मनीष बंसल सहारनपुर (DM Saharanpur) के जिलाधिकारी हैं. इसी तरह, उनकी दूसरी बेटी अभिश्री IRS अधिकारी हैं और उनके पति अक्षय लाबरू IAS अधिकारी हैं. अक्षय लाबरू 2018 बैच के त्रिपुरा कैडर के IAS अधिकारी हैं. अभिश्री ने भी 2017 की सिविल सर्विसेज परीक्षा पास की थी और 2018 में IRS बनी थीं.इस तरह देखा जाए तो ज्ञानेश कुमार के परिवार में IAS, IPS और IRS अधिकारियों की भरमार है.

Saturday, February 15, 2025

वैश्य समाज के गौरव संत शिरोमणि नरहरी दास जी

 वैश्य समाज के गौरव संत शिरोमणि नरहरी दास  जी

वैश्य समाज के गौरव संत शिरोमणि नरहरी दास जीगोस्वामी तुलसी को संत नरहरी दास से मिली थी रामचरितमानस लिखने की प्रेरणा


प्रख्यात धर्म-ग्रंथ रामचरित मानस तमाम सनातनियों के हृदय में रचा-बसा है। यह दूर्भाग्य है कि संत तुलसी को पूजा जाता है लेकिन उनको यह ग्रंथ लिखने का गुरुमंत्र देने वाले संत नरहरि को भुला दिया गया। संत तुलसी दास का जन्म संवत 1554 (सन-1611) में हुआ था। इनका यज्ञोपवित संस्कार संवत-1561 में संत नरहरिदास ने किया था। इन्हीं के गुरुमंत्र से इन्होंने रामभक्ति के शिखर पर पहुँच कर कालजेयी रचना “रामचरितमानस” लिखा था। मराठी साहित्य में इन संत नरहरी पर बहुत कुछ लिखा गया है। इनका जन्म देवगिरी, जिला-औरंगाबाद (महाराष्ट्र) में दीनानाथ के घर हुआ था। पिता पारम्परिक तौर पर स्वर्णाभूषण निर्माण का कार्य करते थे। इसी व्यवसाय से वे अमीर हो गये और पंढरपुर रहने चले गये। संत जी कट्टर शिवोपासक थे पंढरपुर में रहने के बावजुद भी यहां के प्रसिद्ध पान्डुरंग (विष्णु) मन्दिर में कभी दर्शन करने नहीं जाते थे। एक दिन एक साहुकार ने उन्हें भगवान पांडुरंग जी के लिए कमरधनी बनाने को कहा। समस्या यह थी कि वे पांडुरंग जी के दर्शन नहीं लेना चाहते थे इसलिए अपनी आंख पर पट्टी बान्ध कर गये और नाप लेने लगे। इस क्रम में उनका भगवान के पिंड के साथ स्पर्श हुआ। कुछ अज्ञात सा, अनुभव हुआ, और फिर अपनी आंख की पट्टी खोल दी। साक्षात भगवान पांडुरंग जी का दर्शन हुआ, और यह विश्वास हुआ कि शिव जी एवं पांडुरंग जी एक ही हैं। दोनों में कोई फर्क नहीं है। यहीं से वे पांडुरंग जी के भी भक्त हो गये। संत नरहरि की पत्नी का नाम- गंगा, बेटा का नाम- नारायण और बेटी का नाम-मालु है। संत ने मराठी भाषा में दो किताबें लिखी हैं- संवगडे निवृत्ती सोपान मुक्ताई तथा शिव आणी विष्णु एकचि प्रतिमा। इन्होंने कहा है---जो काम हमने लिया हुआ है उसे ठीक न बताने से पहले हम अपना सर्वस्व न्योछावर कर पूरा करें।

Friday, February 14, 2025

दानेदार दुश्मन : गुजरात की लोक-कथा

दानेदार दुश्मन : गुजरात की लोक-कथा

अलबेले अहमदाबाद जैसा एक नया नगर। उसमें लखधीर सेठ नामक एक व्यवहार-कुशल बनिया। जन्म से ही खूब समृद्ध। अपनी विशिष्ट बुद्धि और साहस से लक्ष्मी को सहेज रखा है। कमाई के कुछ रास्ते खोज लिए हैं। द्वार खुल गया है। लक्ष्मी निरंतर आ रही है और खजाना भरता जा रहा है।

लखधीर सेठ का हीराचंद नामक इकलौता बेटा है। बेहद लाड़-प्यार में पला, इसलिए कुलदीपक बिगड़े साँड़ जैसा हो गया था। पूरा दिन आवारागर्दी में व्यतीत करता। काम-काज में जरा भी ध्यान नहीं देता। बुरे मित्रों का अंधानुकरण करता, जैसी संगत वैसा असर और जैसा संग वैसा रंग। गधे के साथ घोड़ा बाँधे तो डीलडौल भले ही नहीं, पर शान तो आएगी। बोलना नहीं तो पीठ रगड़ना सीखेगा। धीरेधीरे हीराचंद में कुलक्षण आ गए। भाई-बंधु और मित्रों के साथ नाश्ता-पानी में पानी की तरह पैसा खर्च करना, जुआ खेलना, चोरी करना, वेश्यागृह जाना, एक से बढ़कर एक अवगुण!

किसी ने कहा है-

आवत अवगुण टालिए, वह टालने जोग।
नहीं फिरै व्यापी गयो, रगरग में जो रोग॥

लखधीर सेठ को लगने लगा कि लड़का हाथ से गया। उस वेला, क्षण, घड़ी या चौघड़िया ने कुछ ऐसा कर दिया कि किसी को मुँह दिखाने लायक रहा?

बेटे की चिंता में लखधीर सेठ कमजोर होते गए। चिंता रूपी कीड़ा उन्हें धीरे-धीरे खाने लगा। कुछ समय पश्चात् उन्होंने खाट पकड़ ली। उन्हें लगा कि मैं ज्यादा दिन का मेहमान नहीं हूँ। उन्होंने हीराचंद को पास बुलाकर कहा, 'बेटा! कुछ समय बाद मैं न रहूँ तो कोई चिंता की बात नहीं है। तुम्हारे लिए हरा-भरा परिवार छोड़कर जाऊँगा।

'लेकिन तुममें दो-चार कुलक्षण हैं, जिनसे तुम बरबाद हो जाओगे। काम-काज कुछ न करो और उड़ाते ही रहें तो कुबेर का भरा भंडार भी तीन दिन में साफ हो जाए। पसीना बहाकर कमाया हो, उसी को पता चलता है कि सौ में कितने बीस होते हैं?'

माथे पर हाथ का छज्जा बनाकर मानो भविष्यवाणी कर रहे हों, इस तरह सेठ कहने लगे कि 'मुझे स्पष्ट दिखाई दे रहा है कि तुम्हारा भविष्य उज्ज्वल नहीं है। कल को तुम अगर किसी मुश्किल में फँस जाओ तो एक उपाय करना।'

'क्या बापू?' हीराचंद ने कहा।

'तुम रोज सुबह उठकर सबसे पहले लखमीचंद सेठ का मुंह देखना, फिर जो कुछ भी काम करना हो उसे करना।'

"...लेकिन बापू! अपनी तो लखमीचंद के साथ वर्षों से दुश्मनी चली आ रही है, उसका क्या?'

लखमीचंद मेरा दुश्मन तो सही पर दानेदार दुश्मन है। दोनों लोग व्यापार कर रहे हैं तो प्रतियोगिता तो रहने ही वाली है। कुंद हथियार को जिस तरह सान पर चढ़ाने से चिनगारी निकलती है, उसी तरह दुश्मनी की चिनगारी तो निकलती ही रहती है। कभी-कभार टेढ़ी लकड़ी पर टेढ़ी आरी जैसी स्थिति बन जाए तो बल भी मिलता रहता है। कोई मुसीबत आ जाए और उपाय न सूझे तो तुम प्रण कर लेना कि सुबह में उनका दर्शन करने के बाद ही अन्न-जल ग्रहण करूँगा। तू ऐसा वचन दे तो मेरी आत्मा को शांति मिले।'

हीराचंद ने कहा, 'बापू! तुम्हें जिस बात का डर है, वह सही है। मित्रों ने जो खराब आदतें दी हैं, वे छूट नहीं रही हैं। मुझे भी अच्छी नहीं लगती हैं, लेकिन क्या करूँ, तुम्हारा कहना मानकर मैं लखमीचंद सेठ का मुँह देखने का प्रण लेता हूँ।'

अंदर से टूट चुके लखधीर सेठ कुलदीपक की शिकायत लेकर स्वर्ग सिधार गए। रोना-धोना हो गया। रिश्तेदार आए। घर की संपत्ति अनुसार शुद्ध-तेरहीं की, दान-पुण्य किया और गाँववालों को खिलाया। गाँव का कोई भी खाने में बाकी न रहा।

घर की पूरी जिम्मेदारी हीराचंद ने उठा ली। अब कहने या रोकने-टोकनेवाला कौन रहा? हीराचंद को खुला दौर मिल गया। वह बे-लगाम घोड़ा जैसा बन गया। खर्च के नए-नए मार्ग तो थे ही। अनर्थ की राह पर लक्ष्मी लुटने लगी।

कहने वालों ने सच कहा है कि संचित कर्मों की पूँजी घट जाए तो हर तीसरी पीढ़ी में कुछ-न-कुछ नया पुराना होता है। लक्ष्मी चकमा देकर चली गई! आओ भाई और जाओ भाई! लखपति लखधीर सेठ का बेटा हीराचंद रास्ते का भटकता भिखारी बन गया। उसकी ऐसी खराब दशा हो गई कि गाँव में उसे कोई दो सेर नमक भी उधार नहीं देता था। दीपक तले अँधेरा! कुलदीपक ने बाप की इज्जत मिट्टी में मिला दी।

घर में समझदार और चतुर सुजान सेठानी उसे खूब उपदेश देती। एक-एक बात समझाती, लेकिन वह समझे तो न, इस कान से सुनता और उस कान से निकाल देता। ऐसा सब तो उसके मन में ही नहीं!

हीराचंद ने चारों तरफ नजर दौड़ाई, परंतु भिक्षापात्र में डालनेवाला कोई नहीं रहा। कहीं कुछ नहीं सूझ रहा था। दिन में तारे दिखाई देने लगे। उसे अपने पिता की आवाज सुनाई दी। डूबते को तिनके का सहारा, ऐसा सोचकर हीराचंद ने मन-ही-मन कहा, 'चलो, बापू कह गए हैं तो वैसा ही करूँ।'

बड़ा बाजार है। नए नगर के माणेकचौक में लखमीचंद सेठ की दुकान लगी है। रेशम और किनखाब के गद्दी-तकिए के सहारे लखमीचंद सेठ बैठे हैं। दाहिने हाथ में भाग्य रेखा झलक रही है। मुनीमजी बहीखाता लिख रहे हैं। ऐसी सुंदर प्रभात में चीथरेहाल, ऐरा-गैरा जैसा हीराचंद पीढ़ी के आगे से निकला। लखमीचंद सेठ के दर्शन करके, राम-राम करके अपने रास्ते चला गया।

नियम यानी नियम। हीराचंद का यह रोज का नियम हो गया। रोज सुबह उठना। नहा-धोकर लखमीचंद सेठ की दुकान के आगे से निकलना। उन्हें राम-राम करना, फिर कोई काम-काज करना।

शुरुआत में तो किसी को पता ही नहीं चला। पंद्रह-बीस दिन हुए तो लखमीचंद सेठ का ध्यान गया। उन्हें लगा, 'मेरा बेटा रोज सुबह-सुबह दुकान के आगे से निकलता है। कुछ बोलता-चालता नहीं है। मेरे मुँह की तरफ देख राम-राम करके चला जाता है।'

सेठ ने मुनीम से कहा, 'उसे कल मेरे पास ले आओ।' दूसरे दिन सुबह के पहर हीराचंद आया। सेठ का मुँह देखकर राम-राम किया और जैसे ही जाने लगता है तो मुनीम ने उसे बुलाया, 'हीराचंद इधर आओ। तुम्हें सेठ बुला रहे हैं।'

सेठ ने हीराचंद को पास में बैठाया और पूछताछ करने लगे, 'भाई, तुम किसके बेटे हो?'

'लखधीर सेठ का।'

'अरे! तू लखधीर सेठ का बेटा है ? तेरी ऐसी दशा! तेरे पिता की तो खूब जाहोजलाली थी।'

'था तब खूब था। जीवन में धूप-छाँव आता रहता है। मरते समय मेरे पिता ने कहा था कि तुम्हारे बुरे दिन आएँ तो प्रतिदिन उठकर लखमीचंद सेठ का मुँह देखकर राम-राम करना।'

'.. लेकिन भाई, तुम्हारा उद्देश्य क्या है ? तुझे रुपए-पैसे की जरूरत है ? व्यापार-धंधा करना हो तो मैं तुम्हारा सहयोग करूँ?'

'न रे! ऐसे किसी उद्देश्य से मैं नहीं आता, बल्कि मेरे पिता ने कहा था कि बुरे दिन आएँ तो सुबह के समय उठकर पहले सेठ का मुँह देखकर राम-राम करना, इसलिए आता हूँ।'

'अच्छा, कोई बात नहीं पर जरा हृदय की खिड़की तो खोल। शुरुआत से बात तो कर कि तेरी ऐसी दशा क्यों हो गई?'

'सेठ, मेरे अंदर कुछ बुरी आदतें आ गई हैं। उन्हीं में मैं डूबा रहता हूँ।'

'ऐसी वे कौन सी आदतें हैं?'

'मित्रों के साथ नाश्ता-पानी करना, जुआ खेलना, चोरी करना, गणिकागृह जाना।' बात सुनकर लखमीचंद सेठ घर के अंदर एकांत में चले गए।

थोड़ी देर बाद लखमीचंद सेठ के हृदय में एकदम से उजाला हुआ। उनका अंतर-वैभव खिल उठा। ओ-हो-हो! लखधीर सेठ को मुझ पर इतना भरोसा कि बिगड़े बेटे की देखभाल मुझे सौंप गए। बिगड़ी बाजी सुधारकर गाड़ी पटरी पर चढ़ाऊँ तो ही मेरा लखमीचंद, कोरे कागज पर तो बच्चा चित्रकारी करता है, लेकिन जो बिगड़ा हुआ सुधारे, वही मर्द होता है।

लखमीचंद सेठ ने मुनीम को हुक्म दिया, 'प्रतिदिन सुबह हीराचंद को नकद सौ रुपया दे देना।'

रोज उठते ही हीराचंद को सौ रुपए मिलने लगे, फिर बाकी ही क्या रहा?

ऊँट था कि घूरे पर चढ़ा और बौना था कि गड्ढे में गिरा!

एक तो नटखट बंदर और वह भी शराब पिया।

हीराचंद तो मित्रों के साथ मिलकर नाश्ता-पानी उड़ाने लगा। दाँत टूटे तो कुत्ते का और चमड़ा फटे तो गधे का! मुफ्त में मिल रहा हो तो मित्रगण भी पीछे क्यों रहें? वे तो दूसरों के पैसों पर महफिल करने लगे।

हीराचंद ने कहा, 'चलो, बहुत दिनों से जुआ नहीं खेला तो आज दिल खोलकर खेलें।'

ऐसा करते-करते एक सप्ताह बीत गया। एक दिन लखमीचंद सेठ ने हीराचंद से पूछा, 'क्या हालचाल है?'

हीराचंद ने कहा, 'मैं तो आनंद में हूँ। आपकी तरफ से रोज सौ रुपया मिल जाता है, फिर किस बात की चिंता-फिक्र?'

लखमीचंद सेठ को लगा कि 'अच्छा, यह तो आसमान में उड़ रहा है, इसको तो कोई फर्क ही नहीं पड़ा!'

फिर बोले, 'तू मेरी एक बात सुनेगा, मेरा कहा करेगा?'

'आप जो कुछ भी कहोगे, उसे करना मेरा कर्तव्य है।'

'तुम सब दोस्त मिलकर जुआ खेलते हो। तुम उन सबसे पूछो कि तुम कितने समय से जुआ खेलते हो? अब तक तुम कितना जीते, इतना पूछकर कल मुझे बताना।'

'ठीक है। पूछ लूँगा। इसमें क्या है ?'

उस दिन हीराचंद ने दोस्तों से पूछा, 'अरे, वो सारी बात छोड़ो। मैं पूछ रहा हूँ, उसका उत्तर दो कि तुम कितने समय से खलते हो?'

दोस्तों ने उत्तर दिया, 'इसमें ही तो हमारा पूरा जीवन गया। सुबह से शाम तक हमारा काम ही यही है। बोलो, अब तुम्हें कुछ कहना है?'

'अच्छा, सालभर चल जाए उतना मिलता है ?'

'बचाने की तो बात ही क्या? जिस रास्ते आता है, उसी रास्ते चला जाता है ! हो तो हो, न हो तो एक कौड़ी भी न हो। ऐसा भी दिन आता है कि बीड़ी पीने के लिए जेब में चार पैसे भी नहीं होते हैं!'

दूसरे ने कहा, 'हमसे पूछता है तू। तेरे पास कितना बचा है, उसकी तो बात कर भाई!'

'मैं तो बरबाद हो गया। पिता की दसेक लाख की पूँजी थी, वह भी गँवा दी।'

'यह तो होता रहता है। बहुत चिंता मत करना, भाई। नहीं तो दिमाग शून्य हो जाएगा।'

हीराचंद ने मन में विचार आया कि कुल मिलाकर इसमें किसी को कुछ लाभ नहीं हुआ। मैंने पिता की संपत्ति गँवा दी। उसके बदले कहीं धंधे में रुपया लगाया होता तो मेरी यह दशा हुई नहीं होती?

उसने मन-ही-मन हिसाब लगाया। उसे बड़ी पीड़ा हुई। उसने मन में गाँठ बाँध ली कि आज से कभी जुआ नहीं खेलेगा।

लेकिन उसे जब यह बात समझ में आई तब बहुत देर हो गई थी।

दूसरे दिन सुबह उठकर वह लखमीचंद सेठ का दर्शन करने गया। सेठ के आदेश अनुसार मुनीम उसे सौ रुपया देने लगा, तब उसने कहा, 'आज तो पचास रुपया ही दो।'

लखमीचंद सेठ ने कहा, 'क्यों भाई! आधी कटौती?'

'काका, मैंने प्रतिज्ञा ली है कि अब जुआ नहीं खेलूँगा। जिस राह पर लुटा हूँ, उस राह पर कभी कदम नहीं रखूँगा। आपने जो प्रश्न पूछा था, वह प्रश्न मैंने सबसे पूछा। इस राह पर चलनेवालों का हालचाल मेरे जैसा ही है। किसी ने कुछ बना नहीं लिया। आज तक मैंने पिता और पत्नी की बात नहीं मानी, लेकिन अब मेरी आँख खुल गई है। जुआ में तो पांडवों ने आगे-पीछे कुछ सोचे बिना सबकुछ गँवा दिया और वनवास में दिन बिताने पड़े। काका, भला हो आपका कि आपने मुझे सोचने के लिए प्रेरित किया।'

लखमीचंद सेठ के मन में हुआ कि 'पैसा खर्च करना व्यर्थ नहीं गया। वसूल हो गया। सौ में से एक पाया तो कहते हैं निन्यानबे की भूल! एक अवगुण तो टल गया न !'

ऐसा करते-करते एक सप्ताह बीत गया। लखमीचंद तो रोज रात को बन-ठनकर वेश्यागृह जाता। नाच-गान और मुजरा की मजा लेता। रंगीन रात शांत हो जाती। हीराचंद को मुफ्त का बकरा समझकर वेश्या जेब खाली कर देती।

एक दिन लखमीचंद सेठ ने हीराचंद से कहा, 'भाई! तुम रात में वेश्यागृह जाते हो, उसके बदले सुबह के समय जाओ।'

हीराचंद तो एकदम सुबह लखमीचंद सेठ का मुँह देखकर, राम-राम करके सीधे वेश्यागृह चल पड़ा।

हीराचंद ने वेश्या को देखा तो मानो जीवित डायन ! गाल में गड्ढे। आँखें एकदम धंसी हुई। साही के काँटे जैसे सूखे केश। अस्त-व्यस्त वेश! हीराचंद तो उसे देखकर दो कदम पीछे हट गया।

उसे लगा, 'यह वेश्या का रूप! इसके पीछे मैं लटू बन गया हूँ, यह तो रात की रंगीन रोशनी मोहित कर देती है। शृंगार करने पर तो बबूल का ठूठ भी खिल उठता है ! आज तक मैंने केशर छोड़कर पलाश का आनंद लिया है, इसकी अपेक्षा तो देवांगना जैसी, प्राण न्योछावर करने वाली मेरी घरवाली में क्या कमी है?'

उसकी आँख पर पड़ा परदा तुरंत हट गया। उलटे पाँव वह लौट पड़ा। वेश्या उसके सामने गिड़गिड़ाने लगी-

'ऐ सेठ! आओ न आते ही क्यों लौट जा रहे हो? मेरे गले की कसम। मुझसे मिलते रहना। मेरी चाहत में क्या कोई कमी आ गई है?'

हीराचंद ने तो पीछे मुड़कर देखा ही नहीं। आज की घड़ी और कल का दिन। काटे कान आवे शान!

वेश्या से उसे सख्त नफरत हो गई। उसके हृदय में रेशम की गाँठ बँध गई और ऊपर से तेल के दो-चार बूंद गिर गए। जो टूट भले जाए पर खुलेगी नहीं। उसने निश्चय कर लिया कि 'आज से वेश्या मेरी माँ-बहन।'

दूसरे दिन सुबह-सुबह हीराचंद ने लखमीचंद का मुँह देखा और राम-राम किया। नित उठकर पचास रुपया देनेवाले मुनीम से उसने कहा, 'बस, आज तो पच्चीस रुपया ही दो।'

लखमीचंद सेठ ने कहा, 'क्यों बेटा?'

हीराचंद ने कहा, 'काका, बस साब, आज से वेश्यागृह नहीं जाऊँगा। मेरा भ्रम टूट गया है।'

'अच्छी बात है भाई!'

ऐसा करते-करते एक सप्ताह बीत गया।

एक दिन लखमीचंद सेठ ने हीराचंद से कहा, 'भाई! तुम सुबह-शाम होटल में नाश्ता-पानी करने जाते हो, इसके बदले एकदम दोपहर में जाओ और अंदर जाकर जरा देखना तो सही! भई, वहाँ किस तरह का खेल होता है।'

हीराचंद ने कहा, 'ठीक है। इसमें क्या, आज दोपहर में जाऊँगा।'

हीराचंद तो रोज कंदोई के यहाँ जाता और बाहर की बेंच पर बैठकर पूरी, चाट-पकौड़ी वगैरह खाता। कभी अंदर की ओर नहीं गया था। सेठ का कहना मानकर आज उस ओर गया। गरमी की दहकती दोपहर। गरमी भी ऐसी कि रहा न जाए। कामगार आटा गूंथ रहे हैं। खुले बदन से पसीना टपक रहा है। जो उसके अंदर भी गिर रहा है। मुँह से लार भी गिर जाए! तो वह आटे के साथ गूंथ जाए। ये सब उसने अपनी आँखों से देखा। कभी-कभी तो उसमें नाक का पानी भी गिरे! भन भन करती मक्खियाँ उसमें दब जाती थीं, जिन्हें वे निकाल देते थे। हीराचंद को यह देखकर घिन चढ़ गई। उसे लगा कि 'आज तक मैं ऐसा गंदा और मटमैला ही खाता रहा हूँ! इसकी अपेक्षा घर का भोजन क्या खराब है?'

उसने होटल का भोजन त्याग दिया। मन-ही-मन निश्चय कर लिया कि 'आज के बाद कभी भी होटल की सीढ़ियों पर पैर नहीं रखूँगा।'

प्रभात वेला में हीराचंद ने लखमीचंद सेठ का मुँह देखकर राम-राम किया।

मुनीम पच्चीस रुपया देने लगे तब उसने कहा कि 'रहने दो। अब पैसा नहीं चाहिए।'

लखमीचंद सेठ ने कहा, 'क्यों बेटा?'

'बस, होटल के नाश्ता-पानी पर से अब मन उठ गया है।'

'लो, ठीक हुआ! अब?'

'अब, एक चोरी करने की बुरी आदत है।'

'तो तुम ऐसा करो। राजमहल में जाओ और राजा के पलंग के नीचे पायों के नीचे लगे जेडरत्न निकालकर ले आओ। तभी तुम्हारी चोरी और चतुराई की परीक्षा होगी।'

'अच्छा काका! आप जैसा कहो, मेरी तरफ से कहाँ न है। चोरी करना तो मेरे बाएँ हाथ का खेल है।'

घनघोर अँधेरी रात है। समूचा नगर निश्चिंत होकर नींद की गोद में खो गया है। कमजोर मनुष्य का कलेजा काँप उठे, ऐसी सरसराती हुई हवा चल रही है। उसी समय वणिक पुत्र हीराचंद राजमहल में सेंध लगाने के लिए तैयार हुआ। मुँह पर गमछा बाँध रखा है। हाथ में सेंध लगाने का औजार है। काँख में चंदनगोह दबाए हुए है। इस तरह वह राजमहल की तरफ चला जा रहा है।

ठीक उसी समय नगर के राजा अंधारपछेड़ा ओढ़कर नगरचर्चा करने निकले थे। राजा ने आवाज दी कि 'अरे! कौन हो तुम?'

'ये तो मैं चोर...लेकिन तुम?'

'मैं भी तेरे जैसा ही! हम दोनों एक पंथ के पंथी।'

'चलो, अच्छा हुआ। एक से भले दो। मुझे जरा बल मिलेगा। बोलो, कहाँ चोरी करेंगे?'

'तू जहाँ कहे।'

'मारो तो मीर मारो। बेचारे फकीर को क्यों हैरान करें? चलो, आज तो राजमहल में चोरी करें।'

'चलो फिर।'

पिछली सीमा से होते हुए वे दोनों राजमहल की तरफ चल दिए।

गढ़ के दरवाजे पर देखा तो ठंड में चौकीदार टाँग बोरकर नाक के नगारे बजा रहे थे! दोनों दीवार कूदकर उस तरफ गए।

हीराचंद ने राजा से कहा कि 'तुम बाहर ध्यान रखना, मैं राजमहल में घुस रहा हूँ।' ऐसा कहकर उसने गढ़ की दीवार पर चंदनगोह डाल दिया, फिर तो देखते ही देखते किले के ऊपरी भाग पर पहुँच गया। राजमहल में पहुँचकर जगमगाते झुम्मर के उजाले में देखा तो पलंग एकदम खाली! उसे लगा कि 'चलो, अच्छा हुआ, जिसका डर था, वह टल गया।'

पलंग के पाए के पास जाकर, धरती पर कान लगाकर टकोरा किया तो वहाँ से लक्ष्मी की पुकार सुनाई दी, 'मुझे बाहर निकाल, मुझे बाहर निकाल!' तुरंत औजार की मदद से चारों पायों से चार जेडरत्न निकाल लिये। जेडरत्न में से चमकदार प्रकाश फैलने लगा। चारों जेडरत्नों को कमर में बाँधकर तेज गति से नीचे उतर गया ! मानो कहीं गया ही न हो।

राजा ने कहा, 'लाया?'

हीराचंद ने कहा, 'हाँ।' ऐसा कहकर चारों जेडरत्नों को कमर में से बाहर निकाला। राजा के हाथ में जेडरत्न रखते हुए बोला, 'लो, अपने हिस्से के दो रत्न।'

हीराचंद के कंधे पर हाथ रखते हुए राजा ने कहा, 'शाबाश! रंग है जवान, तेरी विद्या का! हिम्मत की कोई कीमत नहीं होती। सच बोलने के कारण मेरे मन में तुम्हारे लिए सम्मान का भाव उत्पन्न हो रहा है।'

फिर दोनों अपनी-अपनी राह चले गए।

प्रभात की वेला में हीराचंद ने लखमीचंद सेठ का मुँह देखकर, राम-राम करके उनके हाथ में दोनों जेडरत्न रख दिए।

लखमीचंद सेठ ने कहा, 'चार जेडरत्न के बदले दो ही क्यों?'

'रास्ते में दूसरा एक हिस्सेदार मिल गया था, उसे दे दिया।'

'ठीक!' ऐसा कहकर दोनों जेडरत्न ठीक से रख दिए।

अब इस घटना से राजमहल में हो-हल्ला मच गया। वायुवेग से नगर में बात फैल गई कि राजमहल में चोरी हो गई। चोरी की आड़ में मंत्री ने पिछले दरवाजे से तिजोरी खाली करके सारी दौलत अपने घर पहुँचा दी, फिर घोषणा कर दी कि 'चोर ने तो पूरी तिजोरी साफ कर दी है।'

राजा तो शांत मन से सुनते रहे और अंदर-ही-अंदर आगबबूला होते रहे।

चौकीदार और सिपाही-सबने चोरी का माल पकड़ने के लिए खूब प्रयास किया। राज्य के श्रेष्ठ गुप्तचर भी हार मान गए, लेकिन पानी मटमैला ही हुआ।

और चोरी की बात पर गाँव के लोग आपस में तरह-तरह की खट्टी-मीठी बातें करने लगे-

'अरे! गजब का जानकार था ! जब राजा के पलंग के पायों के नीचे से जेडरत्न निकाल ले जाए तो यह बहुत बड़ी बात कहलाएगी!'

'लेकिन चौकीदार कहाँ बैठे रहे होंगे?'

'चौकीदार बैंगन तौल रहे होंगे।'

और फिर तो खट्टी-मीठी बहुत सी बातें हुईं। उस बात को यदि चौकीदारों ने सुना तो खड़े-खड़े जल गए होते।

राजा ने सोचा कि 'चोर सच्चा है। मेरे हिस्से के दो रत्न मुझे देकर गया है। हिम्मतवाला और बहादुर है। ढिंढोरा पिटवाऊँ तो शायद हाजिर हो जाए, ना नहीं कहा जा सकता।'

राजा ने सारे नगर में ढिंढोरा पिटवाया कि 'जेडरत्न का चोर हाजिर होगा तो राजा द्वारा उसे अभयदान है।'

लखमीचंद सेठ दो जेडरत्न और हीराचंद को लेकर दरबार में हाजिर हुए।

राजा ने कहा, 'बनिया का बेटा ऐसे काम में लग गया है ?'

लखमीचंद ने जड़ से लेकर चोटी तक की सारी बात की। बात सुनकर राजा आश्चर्यचकित हो गया !

फिर राजा ने अपने मंत्री को बुलाया। राजमहल में से कितने की चोरी हुई, सारे सच-झूठ की परख हीराचंद के सामने हुई। हीराचंद ने तो चार जेडरत्न ही चुराए थे तो तिजोरी एकदम कैसे खाली हो गई?

राजा ने मंत्री के घर की तलाशी करवाकर चोरी का सारा माल पकड़वा लिया। राजा ने मंत्री से कहा,

'समूचा निगल जाना अच्छा लगा था ! क्यों?'

फिर मंत्री का मुंडन करवाकर, चूना पोतवाकर, गधे पर उलटा बैठाकर भगा दिया।

राजा ने हीराचंद से कहा कि 'बनिया बिना तो लंका के राजा रावण का राज चला गया। मुझे तो तुम्हें मंत्री बनाना है।'

हीराचंद की आँखों में खुशी के आँसू आ गए। उसने कहा कि 'सारे यश के भागी लखमीचंद सेठ हैं। मेरी बिगड़ी बाजी इन्होंने सुधारी है। ऐसा कहकर सेठ के पैरों में झुक गया।

-जोरावर सिंह जादव

"जो किस्मत का धनी वो #बनिया"

"जो किस्मत का धनी वो #बनिया"

गरम दल के लाला लाजपत राय से लेकर इसरो के जनक विक्रम साराभाई तक सभी बनिए ही हैं।

पत्रकारिता के क्षेत्र में भी इस जाति का ही कारोबारी एकाधिकार रहा है। लगभग सभी बड़े अखबारों के मालिक बनिए ही हैं। इनमें हिंदुस्तान टाइम्स, टाइम्स आफ इंडिया, दैनिक जागरण, भास्कर, पत्रिका, इंडियन एक्सप्रेस, द प्रिंट, प्रभात खबर से लेकर हाल ही में बिक जाने वाला नई दुनिया तक शामिल है। टेलीकॉम के क्षेत्र में अम्बानी की जिओ, मित्तल की एयरटेल और बिरला की आईडिया सभी बनियों की हैं।









अखबारों में आ रहे तमाम परीक्षा परिणामों के नतीजों पर नजर डालें तो इस कालम में बनियों यानी वैश्य व्यापारी वर्ग पर लिखने के लिए बाध्य होना पड़ेगा। हाई स्कूल से लेकर आईआईटी, पीएमटी यहां तक की सिविल सेवा तक के नतीजों में सफलता पाने वालों की सूची चौंकाती है। जिधर नजर डालें तो उसमें आधे से ज्यादा नामों के आगे अग्रवाल, गुप्ता, गोयल, जैन, सिंघल, बसंल, कंसल आदि सरनेम देखने को मिलेंगे। जो बनिए कभी केवल दुकान और व्यापार तक सीमित रहते थे, आज हर क्षेत्र में अव्वल आ रहे हैं। शायद ही कोई क्षेत्र ऐसा हो, जहां उन्होंने सफलता हासिल नहीं की हो। कुशाग्रता तो उनके खून में पाई जाती है और मानो गणित पर उनका एकाधिकार सा है। शायद ही इस वर्ग का कोई छात्र ऐसा हो, जो गणित में कमजोर हो। चंद वर्ष पहले तक सीपीडब्ल्यूडी में ही बनिया इंजीनियरों की भरमार दिखती थी, पर अब यह अतीत की बात हो चुकी है।

मनु स्मृति में भी वैश्यों को व्यापार का काम सौंपा गया था और अपना देश आजाद हुआ तो उससे पहले से ही वे सभी क्षेत्रों में सफलता हासिल करने लगे थे। बिड़लाजी महात्मा गांधी के फाइनेंसर माने जाते थे। यह अलग बात है कि इस देश को आजादी दिलावाने में अहम भूमिका निभाने वाले महात्मा गांधी खुद भी गुजरात के बनिया ही थे। जमना लाल बजाज, डालमिया सभी ने स्वतंत्रता संग्राम में जितना संभव हो सका, उतनी उनकी मदद की। महान क्रांतिकारी पंजाब केसरी कहलाने वाले लाला लाजपत राय भी अग्रवाल वैश्य समुदाय से थे। साहित्य के क्षेत्र में भी मैथलीशरण गुप्त राष्ट्रकवि कहलाए। भारतेंदु हरिश्चन्द्र आधुनिक हिंदी साहित्य के जनक कहलाए। काका हाथरसी तो जाने माने हास्य कवि थे। उपन्यास सम्राट जयशंकर प्रसाद जी स्वयं काशी के प्रसिद्ध सुंघनी साहू परिवार से थे।

पत्रकार के रूप में बनियों ने विशेष ख्याति हासिल की। समकालीन पत्रकारिता में शेखर गुप्ता इसका जीता जागता उदाहरण है। एक समय तो ऐसा था जब कि मजाक में यह कहा जाने लगा था कि इंडियन एक्सप्रेस में ‘गुप्त काल’ रहा है। क्योंकि तब शेखर गुप्ता के अलावा वहां नीरजा (गुप्ता), हरीश गुप्ता, शरद गुप्ता, शिशिर गुप्ता भी पत्रकारिता कर रहे थे।

अगर हम ऑनलाइन स्टार्टअप्स की बात करें तो उसमे अग्रवाल बनियों ने विशेष झंडे गाड़ रखें हैं । फ्लिपकार्ट, स्नैपडील, जोमाटो से लेके विदेशी जुबेर को टक्कर देने वाली ओला और और दुनिया की सबसे बड़ी ऑनलाइन होटल चैन ओयो रूम्स तक सबके फाउंडर अग्रवाल ही हैं।

जब सीताराम केसरी कांग्रेस के अध्यक्ष बने तो पत्रकार निर्मल पाठक ने उनसे चुटकी लेते हुए कहा था, चचा, भाजपा के लिए तो समस्या पैदा हो जाएगी, क्योंकि अब बनियों को सोचना पड़ेगा कि वे आपको वोट दें या भाजपा को। केसरीजी ने पूछा वह कैसे तो उसने शरारती अंदाज में कहा कि आपने जगह-जगह दीवारों पर लिखा यह नारा तो पढ़ा ही होगा कि ‘भाजपा के सदस्य बनिए’।
बनियों का भाजपा से विशेष लगाव रहा हैं। एक समय था, जब हर शहर में पार्टी का स्थानीय दफ्तर किसी बाजार में होता था। नीचे दुकान होती थी व पहली मंजिल पर कार्यालय हुआ करता था। जब राजग सत्ता में थी तो दैनिक जागरण के मालिक नरेंद्र मोहन भाजपा में शामिल होकर राज्यसभा में आ गए थे। उस समय अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में वैश्य समाज का एक भी मंत्री नहीं था। विजय गोयल भी सरकार के अंतिम महिनों में कैबिनेट में लिए गए थे। नरेंद्र मोहन अपने अखबार में अक्सर यह खबर छपवाते रहते थे कि राजग में बनियों की उपेक्षा हो रही है। उनका एक भी मंत्री नहीं हैं। इस पर एक बार प्रमोद महाजन ने किसी कार्यक्रम में उनसे कटाक्ष करते हुए कहा कि हम पर तो बनियों की सरकार होने का आरोप लगाया जा रहा है और आप का अखबार लिख रहा है कि सरकार में बनियों की उपेक्षा हो रही है।
रुपए पैसे के हिसाब-किताब रखने की उनकी योग्यता गजब की होती है। इसी योग्यता के कारण सीताराम केसरी कांग्रेस के अध्यक्ष बनने तक पार्टी के कोषाध्यक्ष रहे थे। उनके बारे में यह कहावत प्रचलित थी कि ‘‘न खाता न बही, जो कहें केसरी वही सही’’। मुख्य विपक्षी दल भाजपा के कोषाध्यक्ष भी बनिया ही हैं। पहले पार्टी के कोष को वेदप्रकाश गोयल संभालते थे। अब अध्यक्ष बदलने के बाजवूद भाजपा का खजाना उत्तराधिकारी के रुप में उनके बेटे पीयूष गोयल को सौंप दिया गया है।
बनिए बहुत धार्मिक होते हैं। हिन्दू धर्म की सबसे बड़ी धार्मिक प्रेस गीता प्रेस गोरखपुर देने वाले हनुमान प्रसाद पोद्दार और जय दयाल गोयनका भी वैश्य समुदाय से थे। राम लला के लिए सबसे पहले बलिदानी कोठारी बंधु माहेश्वरी मारवाड़ी समुदाय से थे। दीवाली पर सबसे लंबी पूजा वही करवाते हैं। वे ही सबसे ज्यादा मथुरा और वृंदावन जाते हैं।

लक्ष्मी को भी उनके यहां ही रहना पसंद आता है। इस बारे में हरियाणा में किसी जाट मित्र ने एक किस्सा सुनाया कि एक जाट ने अपने घर में हनुमानजी की मूर्ति स्थापित कर ली। एक दिन शाम को खूंटा नजर नहीं आया तो उसने भैंस की जंजीर हनुमानजी की टेढ़ी वाली टांग में बांध दी। कुछ देर बाद भैंस का घूमने का मन हुआ, उसने कुछ झटके मारकर मूर्ति उखाड़ डाली व बाहर चल पड़ी। मूर्ति उसके साथ घिसटती चली जा रही थी। रास्ते में एक मंदिर था, जहां लक्ष्मी की मूर्ति लगी थी। वे हनुमानजी की हालत देखकर हंस पड़ी। इस पर हनुमानजी नाराज होकर कहा, ज्यादा न हंस। वह तो तेरी किस्मत अच्छी है कि बनिया के यहां रहती है। अगर किसी जाट के पल्ले पड़ी होती तो कब की यह हंसी निकल गई होती।