काशीप्रसाद जायसवाल (१८८१ - १९३७ ) , भारत के प्रसिद्ध इतिहासकार एवं हिन्दी साहित्यकार थे। उनका जन्म उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर में एक धनी वैश्य व्यापारी परिवार में हुआ था। उन्होने मिर्जापुर के लंदन मिशन स्कूल से एंट्रेंस की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की थी। इसके उपरान्त उच्च शिक्षा के लिये वे आक्सफोर्ड गये जहाँ इतिहास में एम ए किया। उन्होने 'बार' के लिये परीक्षा में भी सफलता प्राप्त की। भारत लौटने पर उन्होने कोलकाता विश्वविद्यालय में प्रवक्ता (लेक्चरर) बनने की कोशिश की किन्तु राजनैतिक आन्दोलन में भाग लेने के कारण उन्हें नियुक्ति नहीं मिली। अन्तत: उन्होने वकालत करने का निश्चय किया और सन् १९११ में कोलकाता में वकालत आरम्भ की। कुछ समय बाद वे पटना उच्च न्यायालय में आ गये।
वे सन् १८९९ में काशी नागरी प्रचारिणी सभा के उपमंत्री बने। उनके शोधपरक लेख 'कौशाम्बी', 'लॉर्ड कर्जन की वक्तृता' और 'बक्सर' आदि लेख नागरी प्रचारिणी पत्रिका में छपे। आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी के 'सरस्वती' का सम्पादक बनते ही सन् १९०३ में काशीप्रसाद जायसवाल के चार लेख, एक कविता और 'उपन्यास' नाम से एक सचित्र व्यंग्य सरस्वती में छपे। काशीप्रसाद जी आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के समकालीन थे ; दोनो कभी सहपाठी और मित्र रहे किन्तु बाद में दोनो में किंचिद कारणवश अमैत्री पनप गयी थी।
सन् १९०९ में काशीप्रसाद जायसवाल को चीनी भाषा सीखने के लिये आक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से छात्रवृत्ति मिली।
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