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Thursday, December 24, 2020

ऋतू राठी बनी गुजरात वैश्य महासम्मेलन गुजरात की प्रभारी

 

ऋतू राठी बनी गुजरात वैश्य महासम्मेलन गुजरात की प्रभारी 


Friday, December 18, 2020

DR. AMIT MAHESHWARI

DR. AMIT MAHESHWARI - जिसके पास फीस भरने के पैसे नहीं थे, आज 200 करोड़ टर्नओवर वाली कंपनी के मालिक हैं


अमित ने महज 19 साल की उम्र से काम करना शुरू कर दिया था। अभी 42 साल के हैं और 200 करोड़ से ज्यादा टर्नओवर वाली कंपनी के मालिक हैं।

कभी होम ट्यूटर थे, फिर खुद का कोचिंग इंस्टीट्यूट शुरू किया, मोबाइल सुधारना भी सीखा, अब मेटास ओवरसीज लिमिटेड के CEO हैं

जब कोचिंग पढ़ाते थे, तब महीने का 15 हजार रुपए कमाते थे फिर इंस्टीट्यूट शुरू किया तो कमाई 4 लाख तक पहुंची, फिर अपनी कंपनी बनाई

बचपन से ही मुझे लगता था कि मैं एक रईस परिवार से हूं, क्योंकि हम भाई-बहनों के पास पहनने को दो-दो, तीन-तीन शूज होते थे। तीन-तीन यूनिफॉर्म होती थीं, लेकिन जब मैंने 12वीं पास की और कॉलेज में एडमिशन लेने का वक्त आया, तब पता चला कि हम रईस नहीं हैं, बल्कि हमें जरूरत की सब चीजें मां-बाप ने उपलब्ध करवाई हैं। सच्चाई ये थी कि हमारे पास बीकॉम फर्स्ट ईयर में 12 हजार रुपए फीस भरने को नहीं थे और हम जेजे कॉलोनी में रहते थे। उस दिन लगा कि दुनिया हम से बहुत आगे है और अब हमें भी अपने पैरेंट्स को सपोर्ट करने के लिए कुछ करना होगा।

ये कहानी है दिल्ली के डॉ. अमित माहेश्वरी की। वो कहते हैं, 'मुझे कॉलेज की फीस भरनी थी और मैं सोचने लगा था कि क्या किया जाए, जिससे पैसे आएं। मैं अकाउंट में अच्छा था। मैंने सोचा अकाउंट की कोचिंग लेता हूं। उससे जो पैसा आएगा, वो कॉलेज में जमा कर दूंगा। कई कोचिंग इंस्टीट्यूट में गया, लेकिन किसी ने काम नहीं दिया। उनका कहना था कि तुम खुद ही अभी 12वीं पास हुए हो, ऐसे में तुम्हें टीचर की नौकरी कैसे दे सकते हैं। कई दिनों घूमने के बाद मैंने दीवारों पर होम ट्यूटर के पोस्टर लगे देखे। उन्हें देखकर मैंने भी अपने नाम के पोस्टर और नंबर इधर-उधर चिपका दिए।'


अमित कहते हैं कि किसी भी काम को शुरू करने की क्लोजिंग डेट पहले डिसाइड होना जरूरी है।

1200 रुपए की फीस में पढ़ाना शुरू किया

वो बताते हैं कि पोस्टर चिपकाने के कुछ दिन बाद कॉल आना शुरू हुए। एक पैरेंट ने बुलाया। उन्हें मेरे पढ़ाने का तरीका अच्छा लगा तो उन्होंने 1200 रुपए फीस में अपने बच्चे को पढ़ाने की जिम्मेदारी दी। फिर और भी कॉल आए। मैं कई घरों में जाकर बच्चों को पढ़ाने लगा। 1200 की जगह 1500 रुपए फीस लेने लगा। जब काम बढ़ा तो कोचिंग वालों का लगा कि ये लड़का कॉम्पीटिशन दे रहा है तो उन्होंने उनकी कोचिंग में मुझे टीचिंग के लिए ऑफर दिया, लेकिन फिर मैं उन इंस्टीट्यूट में नहीं गया, जिन्होंने मुझे पहले रिजेक्ट किया था। एक दूसरे इंस्टीट्यूट में गया। वहां 40 बच्चों के बैच को पढ़ाने का मौका मिला। इसके बाद मुझे आइडिया आया कि क्यों न खुद का ही कोचिंग इंस्टीट्यूट खोल लिया जाए।

अमित कहते हैं, 'फिर घर के फर्स्ट फ्लोर पर एक कमरा था, उसमें कोचिंग पढ़ानी शुरू कर दी। काम अच्छा चल पड़ा। महीने का 15 से 20 हजार रुपए कमा लेता था। दो साल बाद बहन ने भी 12वीं पास कर ली तो वो इंग्लिश पढ़ाने लगी। जो बच्चे मेरे पास अकाउंट और इंग्लिश पढ़ने आते थे, वो फिजिक्स, केमेस्ट्री, मैथ्स के लिए दूसरी जगह जाते थे। तो मैंने अपने दोस्तों से बात की। उन्हें अपने यहां पढ़ाने के लिए कहा। कुछ तैयार हो गए और हम सभी सब्जेक्ट्स अपने इंस्टीट्यूट में ही पढ़ाने लगा। फिर दो साल बाद सबसे छोटी बहन भी हमारे साथ आ गई।'

वो कहते हैं कि मेरे एग्जाम थे तो मैंने दूसरे टीचर्स को इंस्टीट्यूट संभालने का कहा। उन्होंने बढ़िया काम किया तो लगा कि जब ये संभाल ही सकते हैं तो क्यों न कोचिंग की और ब्रांच बढ़ाई जाएं। मैंने एक ब्रांच और खोल दी। फाइनल ईयर में आते-आते मेरे इंस्टीट्यूट की आठ ब्रांच हो गई थीं। 350 से 400 स्टूडेंट्स आ रहे थे। मंथली अर्निंग करीब 4 लाख रुपए हो गई थी।

उन्होंने कहा, 'इंस्टीट्यूट्स को मैनेज करने के लिए मैंने नोकिया का एक सेकंड हैंड फोन खरीदा। उसमें कुछ दिक्कत आई तो रिपेयर करवाने ले गया। टेक्नीशियन ने 10 मिनट में फोन ठीक कर दिया और 2 हजार रुपए लिए। मुझे लगा मैं महीनेभर एक बच्चे को पढ़ाकर दो हजार कमा पाता हूं और इसने 10 मिनट में 2 हजार कमा लिए। उस समय मोबाइल मार्केट में बूम भी आ रहा था। मैंने उस टेक्नीशियन से पूछा कि तुम महीने का कितना कमा लेते हो तो उसने कहा 25 से 30 हजार हो जाता है। मैंने कहा मैं 30 हजार और दूंगा, तुम मुझे मोबाइल रिपेयर करना सिखाओ।'

वो बताते हैं कि टेक्नीशियन ने कई चीजें मुझे सिखाईं। फिर मैंने इसके टेक्निकल पार्ट की ऑनलाइन स्टडी की। सबकुछ समझने के बाद मोबाइल रिपेयरिंग कोर्स का सिलेबस तैयार किया और अपनी कोचिंग में इसे लॉन्च कर दिया। पहली ही बैच में बहुत अच्छा रिस्पॉन्स मिला। 40 बच्चों का बैच था और एक से हम 15 हजार रुपए फीस ले रहे थे। हमारा प्रॉफिट पांच गुना बढ़ गया। कुछ ही महीनों में मैंने अपनी सभी ब्रांच पर ये कोर्स शुरू करवा दिया।

अमित ने कहा, 'काम अच्छा मिलने लगा तो हमने फ्रेंचाइजी देने का प्लान किया। एक न्यूज चैनल में 22 हजार रुपए का स्लॉट बुक किया और फ्रेंचाइजी का विज्ञापन दिया। इससे पूरे दिल्ली से मेरे पास इंक्वायरी आईं और कई फ्रेंचाइजी शुरू हो गईं। इससे करीब 8 लाख रुपए मुझे मिले। जिससे मैंने अपनी कंपनी में कॉरपोरेट सिस्टम शुरू किया। ऑफिस का रिनोवेशन किया। बहुत सी नई चीजें शुरू कर दीं। इस दौरान मेरी पढ़ाई भी चल रही थी। एमकॉम, एमफिल, पीएचडी की और फिर एमबीए भी किया। ये सब होते-होते 2012 आ गया। ये वो दौर था, जब फोन की टेक्नोलॉजी का मार्केट डाउन होने लगा था तो हम लैपटॉप, टेबलेट, डिजिटल कैमरा रिपेयरिंग में एंटर हुए। इसकी फीस 50 हजार रुपए थी यानी मोबाइल रिपेयरिंग कोर्स से भी ज्यादा।'

अमित मोटिवेशनल स्पीकर भी हैं। उनका लक्ष्य 2025 तक कंपनी का आईपीओ लॉन्च करने का है।

स्टील को समझने जर्मनी गए
उन्होंने बताया कि इन सबके बीच मेरे मन में हमेशा ये चलता रहता था कि हम और क्या कर सकते हैं। कैसे और आगे बढ़ सकते हैं। मैंने ऑब्जर्व किया कि इंडिया में स्टील का यूज बहुत तेजी से बढ़ रहा है। स्टील मार्केट की स्टडी की तो पता चला कि स्टील किंग तो जर्मनी है। वहीं से सब जगह फैला है। मैं जर्मनी गया और देखा कि वहां काम कैसे होता है। पूरी प्रॉसेस समझी। वहीं मैं डिसाइड कर चुका था कि इस फील्ड में काम करना है। वापस लौटकर स्टील मैन्यूफैक्चरिंग का काम शुरू कर दिया। 2014 में मेरी बन कंपनी Mettas ओवरसीज लिमिटेड बन चुकी थी।

'हमने स्टेनलेस स्टील मॉड्यूलर किचन, वार्डरोब, बाथरूम वैनिटी, और स्टील इंटीरियर का काम शुरू किया। मुझे फ्रेंचाइजी का एक्सपीरियंस था। प्रोडक्ट भले ही अलग हो, लेकिन ये पता था कि बेचना कैसे है। इसके बाद मैंने फ्रेंचाइजी मॉडल पर काम शुरू किया और 25 लाख रुपए के विज्ञापनों के जरिए कई जगह फ्रेंचाइजी दी। 2014 में हमारी कंपनी के 22 शोरूम हो गए थे। 2020 आते-आते 33 एक्सक्लूसिव शोरूम, 150 डीलरशिप शोरूम, 16 हजार से ज्यादा बिजनेस एसोसिएट पार्टनर और 126 इम्प्लॉई हो गए। पिछले फाइनेंशियल ईयर में कंपनी का टर्नओवर 220 करोड़ रुपए था। अब मेरा विजन 2025 तक कंपनी का आईपीओ लॉन्च करने का है।'

अमित कहते हैं कि लोग अक्सर पूछते थे कि फ्रेंचाइजी कैसे देते हैं, तो मैंने इसका भी एक कोर्स शुरू किया और कंसल्टिंग करने लगा। जिंदगी से मैंने यही सीखा है कि, हर काम की ओपनिंग नहीं, बल्कि क्लोजिंग डेट तय करो। कब किस काम को पूरा करना है, ये आपको पता होना चाहिए। जिस भी काम में आप अपना सौ प्रतिशत देंगे, उसमें आपको सफल होने से कोई नहीं रोक सकता। जब हम नया काम शुरू करते हैं तो शुरूआत में थोड़ा पीछे भी जाते हैं, कठिनाइयां भी आती हैं, लेकिन सफलता भी मिलती है। यहां मेरी सिर्फ ऊपर जाने की कहानी है, इन सबके बीच में कई दिक्कतें आईं, लेकिन हर दिक्कत ने एक नई राह मुझे दिखाई।

साभार: दैनिक भास्कर 

Thursday, December 17, 2020

ABHIJITA GUPTA - अभिजिता गुप्ता - देश की सबसे छोटी उम्र की लेखिका

ABHIJITA GUPTA - अभिजिता गुप्ता 

मिलिए देश की सबसे छोटी लेखिका अभिजिता गुप्ता से,महज़ 7 साल की उम्र में अपने नाम दर्ज़ किये कई रिकॉर्ड


 कहते है उम्र आपकी काबिलियत की पहचान नहीं होती महज़ 7 साल की इस बच्ची ने इस बात को साबित कर दिया। जिस उम्र में आप और हम माटी में सने रहते थे और मोहल्ले भर की खाक छानते फिरते थे उस उम्र में अभिजिता ने पूरी किताब लिख दी। जी हाँ आप भी हैरान रह गए न ये कोई कहानी नहीं बल्कि हकीकत है।


दिल्ली के दिल कहे जाने वाले कनॉट प्लेस के ऑक्सफ़ोर्ड बुक स्टोर में सबसे युवा लेखिका अभिजीता की किताब “हेप्पीनेस आल अराउंड ” का विमोचन हुआ। इस किताब को महज़ 7 साल की नन्ही लेखिका अभिजिता गुप्ता ने लिखी है। इस किताब में कहानियो और कविताओं का संग्रह है। अभिजिता को इस किताब के लिए कई सारे अवार्ड्स मिल चुके है। अभिजिता अपने नाम कई रिकार्ड्स भी कर चुकी है। एशिया बुक ऑफ़ रेकॉर्डस,इंटरनेशनल बुक ऑफ़ रेकॉर्डस में अपना नाम दर्ज़ करवा चुकी है। अभिजीता ने इस किताब को महज़ 3 महीनो में लिखी है। अभिजिता की किताब बच्चो के बिच में काफी पसंद की जा रही है।


अभिजीता ने बातचीत में बताया उन्होंने ये किताब 3 महीने में पूरी की जिसमे उनके मम्मी पापा ने उनकी खूब मदद की। आगे वह एक नोबल लिखना चाहती है जिसमे वह यह बताना चाहती है की लॉकडाउन के समय बच्चो के जीवन में क्या बदलाव आये।

वही जब उनकी मम्मी अनुप्रिया जी से बातचीत की तो उन्होंने बताया की अभिजिता जब 5 साल की थी तभी पहली बार उसने मुझे कहा की मुझे कहानी लिखनी है उसके बाद इस पेन्डामिक के समय हमें काफी समय मिला तो अभिजिता ने अपनी किताब को लिखा। वही पिता आशीष जी ने बताया की हमारे समय में हमारे पेरेंट्स हमें बताते थे हमें क्या करना है लेकिन आज की पीढ़ी अपने माता पिता को बताती है। इस किताब के नाम के लिए हम काफी परेशान थे इसका नाम भी अभिजीता ने हमें सुझाया। वही किताब के पब्लिशर ने बातचीत में बताया की ये काफी चैलेंजिंग था लेकिन हम लकी है की हमें अभिजिता की किताब पब्लिश करने का मौका मिला

जश्न इवेंट के डायरेक्टर सिमा सक्सेना जी ने बातचीत में बताया की जब पहली बार हमें पता चला तो हमें यकीं नहीं हुआ लेकिन जब मै अभिजिता से मिली तो मैं हैरान थी की कैसे महज़ 7 साल की उम्र में कोई किताब लिख सकता है।

सभी लोगो ने अभिजीता को बधाई सन्देश भेजे। आपको बता दे अभिजिता राष्ट्रकवि श्री मैथिलीशरण गुप्त और संत कवी श्री सियाराम शरण गुप्त की तीसरी पीढ़ी है।

AGASTYA JAYSWAL - अगस्त्य जयसवाल

 अगस्त्य जयसवाल 


14 साल की उम्र में।
बी.ए जनरलिज्म की परीक्षा।
प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की है।
अगस्त्य जयसवाल।14 साल में। स्नातक। प्राप्त करने वाला हिंदुस्तान का यह पहला लड़का बना जो कि कम उम्र में। journalism में। स्नातक किया।

Sunday, December 6, 2020

SOUMYA AGRAWAL IAS

SOUMYA AGRAWAL IAS वतन की मोहब्बत ने आसान कर दिया जिंदगी का सफर, साॅफ्टवेयर इंजीनियरिंग छोड़ बनीं IAS


पावर कॉरपोरेशन की एमडी आइएएस सौम्या अग्रवाल ने लंदन से नौकरी छोड़कर शुरू की थी यूपीएससी की तैयारी। प्रथम बार में ही पास की थी यूपीएससी की परीक्षा दो जिलों में रह चुकीं हैं जिलाधिकारी। 2008 बैच की हैं आइएएस ऑफीसर।

 वतन की मोहब्बत और मेरा पहला इम्तिहान। जिसे मैंने गंभीरता से लिया। उसने मेरी जिंदगी के सफर को इतना आसान बना दिया कि मैंंने पिताजी के भरोसे को फतह किया और दादाजी की ख्वाहिश पूरी कर दी। नौकरी को अलविदा कहने के दो वर्ष बाद नई पारी की शुरुआत हुई और मैं करियर में एसडीएम, सीडीओ, डीएम से लेकर एमडी तक की ऊंचाई पर सुखद अहसास के साथ चढ़ गई।

यह कहानी किसी और की नहीं, बल्कि आइएएस व दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम लिमिटेड (डीवीवीएनएल) की प्रबंध निदेशक (एमडी) सौम्या अग्रवाल की है। उन्होंने दैनिक जागरण से साथ बचपन से लेकर एमडी की कुर्सी तक पहुंचने के सफर की दांस्ता बयां की है। सौम्या की प्राथमिक शिक्षा नवाबों के शहर लखनऊ में पूरी हुई। पिता ज्ञानचंद अग्रवाल रेलवे में सिविल इंजीनियर थे। उनका परिवार आलमबाग की रेलवे कालोनी में रहता है। वह हमेशा साइकिल से स्कूल जाती थीं।


सेंट मैरी कांवेंट स्कूल से इंटरमीडिएट पास करने वाली अग्रवाल परिवार की बेटी ने दिल्ली यूनिवर्सिटी में दाखिला ले लिया, लेकिन दिल्ली पहुंचने तक भी पढ़ाई की अहमियत को गंभीरता से नहीं समझा। दोस्तों के साथ रहते-रहते दिल्ली में ही साफ्टवेयर इंजीनियर बन गईंं और वर्ष 2004 में पुणे की एक निजी कंपनी में नौकरी मिल गई। कुछ दिन पुणे में रहना हुआ। फिर कंपनी ने ही लंदन भेज दिया। पढ़ाई पूरी हुई और नौकरी मिली जरूर, पर सौम्या के मन को संतुष्टि नहीं मिली। उन्हें लंदन में हमेशा अपने देश की याद सताती रही और देश की वह अवाम याद आती रही, जिसके लिए वह कुछ करना चाहती थीं। इसके अलावा मां-बाप से इतना दूर चला जाना भी उन्हें भड़का रहा था। दो वर्ष की नौकरी में ही कीबोर्ड पर ऊंगलियां कतराने लगीं और सौम्या उसकी टपटप से ऊब चुकी थीं। उन्होंने सारा माजरा पिता को बताते हुए पूछ लिया कि भारत में सबसे उच्च स्तर की नौकरी कौन सी है तो उनके पिता ने आइएएस का जिक्र कर दिया। सौम्या ने उसी वक्त ठान ली, कि आइएएस बनना है। उन्होंने पिता को आश्वास्त किया और वर्ष 2006 में नौकरी छोड़ भारत लौट आईं। लखनऊ में ही सौम्या ने संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) की तैयारी शुरू कर दी। हालांकि तीन माह दिल्ली के बाजीराव संस्थान में जरूर कोचिंग की थी। उन्होंने एक वर्ष की कड़ी मेहनत से पहली बार में ही यूूपीएससी का इम्तिहान को समेट कर रख दिया। परीक्षा के परिणाम की सूची में 24वें नंबर पर उनका नाम था और वर्ष 2008 में नवनियुक्त आइएएस सौम्या अग्रवाल ने कानपुर मेंं एसडीएम का कार्यभार संभाल लिया।

सिविल सर्विस में नहीं था परिवार का दूसरा सदस्य

सौम्या की बड़ी बहन पूजा अग्रवाल ने एमटेक करके निजी कंपनी में नौकरी शुरू कर दी। उनकी छोटी बहन जया अग्रवाल ने बिजनेस इकोनोमिक्स में पढ़ाई पूरी की और वह भी प्राइवेट नौकरी करने लगीं। सौम्या बताती हैं कि उनके दादाजी पीसी अग्रवाल पीडब्ल्यूडी में नौकरी करते थे। वे हमेशा कहते थे कि एक बार यूपीएससी की परीक्षा जरूर देनी चाहिए। मैने उनकी ख्वाहिश पूरी की है।

ये है एमडी तक का सफर

सौम्या की नौकरी की शुरुआत कानपुर से हुई। सर्वप्रथम वह कानपुर में उप जिलाधिकारी (एसडीएम) के पद पर तैनात हुईं। महाराजगंज में मुख्य विकास अधिकारी (सीडीओ) और जिलाधिकारी (डीएम) रहीं। फिर उन्नाव में डीएम रहीं। फिर से उनकी तैनाती कानपुर में केस्को में बतौर एमडी हो गईंं और अब वह डीवीवीएनएल की प्रबंध निदेशक (एमडी) हैं। 

लेख साभार: दैनिक जागरण 

Saturday, December 5, 2020

Arham Om Talsania - youngest computer programmer

Arham Om Talsania - worlds youngest computer programmer


अहमदाबाद के छह साल के अरहम ओम तलसानिया ने दुनियाभर के सॉफ्टवेयर इंजीनियर को चौंका दिया है। उसका नाम गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में सबसे युवा कंप्यूटर प्रोग्रामर के रूप में दर्ज हो गया है। उसने कम उम्र में पायथन प्रोग्रामिंग भाषा की परीक्षा को उत्तीर्ण कर गिनीज बुक में अपना नाम दर्ज कराया है। उसने पहले से दर्ज पाकिस्तानी मूल के ब्रिटिश छात्र सात वर्षीय मुहम्मद हमजा शहजाद के रिकॉर्ड को भी तोड़ दिया है। कक्षा 2 के छात्र अरहम ओम तल्सानिया ने पियर्सन वीयूई परीक्षण केंद्र में Microsoft प्रमाणन परीक्षा को मंजूरी दे दी है। तलसानिया ने बताया, “मेरे पिता ने मुझे कोडिंग सिखाई। जब मैंने 2 साल की थी तब मैंने उपयोग शुरू कर दिया था। 3 साल की उम्र में, मैंने iOS और विंडोज के साथ गैजेट्स खरीदे। बाद में, मुझे पता चला कि मेरे पिता पायथन में काम कर रहे थे। जब मुझे पायथन से मेरा प्रमाण पत्र मिला, तो मैं छोटे खेल बना रहा था। कुछ समय बाद, उन्होंने मुझे काम के कुछ सबूत भेजने के लिए कहा। कुछ महीने बाद, उन्होंने मुझे मंजूरी दी और मुझे गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड का सर्टिफिकेट मिला। तल्सानिया ने कहा, “मैं एक उद्यमी बनना चाहता हूं और सभी की मदद करना चाहता हूं। मैं कोडिंग के लिए ऐप, गेम और सिस्टम बनाना चाहता हूं।

मैं जरूरतमंदों की मदद करना चाहता हूं।अरहम तल्सानिया के पिता ओम तल्सानिया जो एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर हैं, ने कहा कि उनके बेटे ने कोडिंग में रुचि विकसित की थी और उन्होंने उसे प्रोग्रामिंग की मूल बातें सिखाईं। “जब वह बहुत छोटा था तब से उसे गैजेट्स में बहुत दिलचस्पी थी। वह टैबलेट डिवाइस पर गेम खेलता था। वह पहेलियों को भी हल करता था।

जब उन्होंने वीडियो गेम खेलने में रुचि विकसित की, तो उन्होंने इसे बनाने के लिए सोचा। वह मुझे कोडिंग करते देखते थे, ”उन्होंने कहा। “मैंने उसे प्रोग्रामिंग की मूल बातें सिखाईं और उसने अपने छोटे खेल बनाने शुरू कर दिए। उन्हें Microsoft प्रौद्योगिकी सहयोगी के रूप में भी पहचान मिली। हमने गिनीज बुक वर्ल्ड रिकॉर्ड के लिए भी आवेदन किया था। यह परीक्षा 23 जनवरी 2020 को माइक्रोसाफ्ट द्वारा अधिकृत पियर्सन व्यू टेस्ट सेंटर में आयोजित की गई थी। यह परीक्षा बहुत ही कठिन होती है।

इसे बड़े-बड़े इंजीनियर भी उत्तीर्ण नहीं कर पाते। लेकिन अरहम ने इसे कर दिखाया। इस परीक्षा में अरहम ने 900 अंक हासिल किए और उसे माइक्रोसफ्ट टेक्नोलॉजी एसोसिएट के रूप में मान्यता मिली है। उसके पिता ओम तलसानिया पेशे से सॉफ्टवेयर इंजीनियर हैं और माता तृप्ति तलसानिया शिक्षक हैं। अरहम ने कहा कि पिता ने कोडिंग सिखाई।

Friday, December 4, 2020

Thursday, December 3, 2020

GOUTAM ADANI - बिल गेट्स को भी पीछे छोड़ा अडाणी ने

बिल गेट्स को भी पीछे छोड़ा अडाणी ने:कमाई के मामले में अंबानी हुए पीछे, गौतम अडाणी ने हर रोज कमाया 456 करोड़ रुपए


दुनिया के सबसे अमीरों की लिस्ट में मुकेश अंबानी 11वें स्थान पर पहुंचे
ब्लूमबर्ग बिलियनर्स इंडेक्स में गौतम अडाणी इंडेक्स में 40वें स्थान पर काबिज

महामारी के दौरान देश में प्रतिदिन सबसे ज्यादा कमाई करने वाले शख्स गौतम अडाणी हैं। उन्होंने प्रतिदिन कमाई के लिहाज से कई दिग्गजों के पछाड़ दिया है। इसमें रिलायंस ग्रुप के ओनर मुकेश अंबानी और माइक्रोसॉफ्ट के ओनर बिल गेट्स समेत कई अन्य शीर्ष कारोबारी शामिल हैं। ब्लूमबर्ग बिलियनर्स इंडेक्स के मुताबिक 2020 में गौतम अडाणी ने अबतक प्रतिदिन 456 करोड़ रुपए कमाए। इस लिस्ट में एलन मस्क टॉप पर हैं। मस्क ने प्रतिदिन 2.12 हजार करोड़ रुपए कमाए।

सबसे आगे एलन मस्क

इंडेक्स के मुताबिक जनवरी 2020 से 21 नवंबर तक एलन मस्क की संपत्ति 69 लाख करोड़ रुपए बढ़ी है। वहीं, गौतम अडाणी की नेटवर्थ में 1.48 लाख करोड़ रुपए की बढ़त दर्ज की गई। मुकेश अंबानी और बिल गेट्स की संपत्ति में भी 1 से 1.07 लाख करोड़ रुपए की बढ़त हुई है। दुनिया के सबसे अमीरों की लिस्ट में मुकेश अंबानी कुल नेटवर्थ 5.35 लाख करोड़ नेटवर्थ के साथ 11वें स्थान पर आ गए हैं, जो 8 अगस्त को चौथे स्थान पर थे। दूसरी ओर, गौतम अडाणी इंडेक्स में 40वें स्थान पर काबिज हैं।


नेटवर्थ में बढ़ोतरी
कंपनियों में प्रमोटर्स की हिस्सेदार अधिक होती है, तो मुनाफे में भी भागीदारी अधिक होती है। इससे कंपनी के मुनाफे से प्रमोटर्स यानी ओनर की नेटवर्थ भी बढ़ती है। इस लिहाज से गौतम अडाणी की कंपनियों ने शानदार मुनाफा कमाया है।

अडाणी की नेटवर्थ में बढ़त क्यों?

बाजार में अडाणी ग्रुप की 6 कंपनियां लिस्ट हैं। दूसरी तिमाही में अडाणी ग्रीन और अडाणी ट्रांसमिशन को छोड़ अन्य चार को अच्छा मुनाफा हुआ है। इसमें अडाणी गैस, अडाणी इंटरप्राइजेज, अडाणी पोर्ट और अडाणी पावर शामिल है।
ग्रुप की कंपनियों के शेयरों ने जनवरी से अबतक शानदार बढ़त दर्ज किया है। अडाणी ग्रीन का शेयर 550% तक ऊपर चढ़ा है। अडाणी गैस और अडाणी इंटरप्राइजेज के शेयरों में भी शानदार बढ़त देखने को मिली।
फोर्ब्स के मुताबिक अडाणी ग्रुप की आय 13 बिलियन डॉलर है, जो डिफेंस, पावर जनरेशन और ट्रांसमिशन, एडिबल ऑयल और रियल एस्टेट से आता है।

क्यों पिछड़े अंबानी?

पिछले साल की तुलना में सितंबर तिमाही में RIL का मुनाफा 15%घटा है।
16 सितंबर को RIL का शेयर 2,324.55 रुपए के भाव से ट्रेड कर रहा था, जो 20 नवंबर को 18% फिसलकर 1,899.50 पर बंद हुआ था।
NSE में 45 दिनों में रिलायंस ग्रुप का मार्केट कैप भी 15.68 लाख करोड़ रुपए से 2.97 लाख करोड़ रुपए घटकर 12.71 लाख करोड़ रुपए हो गया है।
फोर्ब्स के मुताबिक रिलायंस इंडस्ट्रीज का रेवेन्यू 88 बिलियन डॉलर का है। कंपनी का मुख्य कारोबार पेट्रोकेमिकल, ऑयल एंड गैस, टेलीकॉम एंड रिटेल का है।

देश के सबसे अमीर अंबानी के सामने कहा टिकते हैं अडाणी -

ब्लूमबर्ग बिलियनर्स इंडेक्स के ताजा आंकड़ों के मुताबिक मुकेश अंबानी का टोटल नेटवर्थ 5.35 लाख करोड़ रुपए है। मुकेश एशिया के सबसे अमीर और दुनिया के 11वे सबसे अमीर शख्स हैं। वहीं, गौतम अडाणी का नेटवर्थ 2.32 लाख करोड़ रुपए है। दुनिया के सबसे अमीरों की लिस्ट में 40वें स्थान पर हैं।


कंपनियों का मार्केट कैप

रिलायंस ग्रुप के तहत 6 कंपनियां शेयर मार्केट में लिस्ट हैं। इसमें रिलायंस इंडस्ट्रीज, डेन नेटवर्क, हैथवे केबल, नेटवर्क 18 मीडिया नेटवर्क, RIL इंडस्ट्रीयल इंफ्रा, हैथवे भवानी केबल शामिल हैं। BSE में केवल रिलायंस इंडस्ट्रीज का मार्केट कैप 12.84 लाख करोड़ रुपए है।
RIL में ऑयल, रिटेल, जियो और पेट्रोकेमिकल सहित अन्य प्रमुख कारोबार शामिल हैं।
अडाणी ग्रुप की कुल 6 कंपनियां शेयर बाजार में लिस्ट हैं। BSE में अडाणी ग्रुप की इन कंपनियों का टोटल मार्केट कैप 3.89 लाख करोड़ रुपए है। इसमें अडाणी ग्रीन का मार्केट कैप 1.77 लाख करोड़ रुपए है।


अन्य प्रमुख कारोबार

रिलायंस ग्रुप का प्रमुख कारोबार एनर्जी क्षेत्र का है। 2016 में कंपनी ने टेलीकॉम सेक्टर में इंट्री ली। वर्तमान में 35% हिस्सेदारी के साथ मार्केट लीडर है। इसके अलावा RIL रिटेल कारोबार में भी कारोबार को तेजी से बढ़ा रहा है। इसके तहत उसने फ्यूचर ग्रुप के रिटेल बिजनेस का 24 हजार करोड़ रुपए में अधिग्रहण किया है, जिसे CCI ने हाल ही मंजूरी दी है।

गौतम अडाणी को पोर्ट टायकून कहा जाता है। अडाणी गुजरात के सबसे बड़े और देश के सबसे व्यस्त मुंद्रा पोर्ट को ऑपरेट करते हैं। साथ ही कोल माइनिंग और अन्य नेचुरल रिसोर्सेस के क्षेत्र में अडाणी का कारोबार फैला हुआ है। गैस और बिजली वितरण, थर्मल पावर, रियल एस्टेट, ग्रॉसरी, एयरपोर्ट और एडिबल ऑयल सेगमेंट में भी ग्रुप की बड़ी हिस्सेदारी है। देश के सबसे व्यस्त मुंबई एयरपोर्ट में 74% हिस्सेदारी अडाणी के पास है।


अडाणी ग्रुप का फोकस

अडाणी ग्रुप आंध्र प्रदेश के विशाखापट्टनम शहर में डेटा सेंटर के लिए अगले 20 सालों में 70 हजार करोड़ रुपए का निवेश करेगी।
अडाणी इंटरप्राइजेज एयरपोर्ट बिजनेस के विस्तार में अगले 5 सालों में 50 हजार करोड़ रुपए का निवेश करेगा।
लगभग एक दशक के बाद 2019 में अडाणी ग्रुप को ऑस्ट्रेलिया के 16 बिलियन डॉलर के कोल प्रोजेक्ट मामले में जीत हुई है। इससे सालाना लगभग 6 करोड़ टन कोयला उत्पादन का अनुमान है।
अडाणी ग्रुप केरल के त्रिवेंद्रम इंटरनेशनल एयरपोर्ट के अधिग्रहण पर काम कर रही है। यह अभी राज्य सरकार के साथ विवाद के चलते रुका हुआ है।
अडाणी ग्रीन एनर्जी ने इसी साल जून में 6 बिलियन डॉलर (44.50 हजार करोड़ रुपए) के पावर प्रोजेक्ट की घोषणा किया है।

रिलायंस ग्रुप का फोकस

रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड (RIL) ने अमेरिका की ब्रेकथ्रू एनर्जी वेंचर्स लिमिटेड II LP (BEV) में 50 मिलियन डॉलर यानी करीब 372 करोड़ रुपए का निवेश करेगी। RIL ने कहा है कि इस निवेश को लेकर दोनों कंपनियों के बीच समझौता हो गया है। ब्रेकथ्रू एनर्जी ग्रुप को माइक्रोसॉफ्ट के संस्थापक बिल गेट्स लीड करते हैं।
हाल ही में भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (CCI) ने रिलायंस और फ्यूचर ग्रुप के डील को मंजूरी मिली है। इसके तहत रिलायंस, फ्यूचर ग्रुप के रिटेल, होलसेल, लॉजिस्टिक्स और वेयर हाउसिंग कारोबार का अधिग्रहण करेगी।
25 सितंबर से 9 नवंबर के बीच RIL ने रिटेल वेंचर में 10% हिस्सेदारी बेचकर 47 हजार करोड़ रुपए से अधिक की रकम जुटाई है।

साभार: दैनिक भास्कर 

HARSHIT BANSAL - हर्षित बंसल ने बनाया विश्व कीर्तिमान

 

HARSHIT BANSAL - हर्षित बंसल ने बनाया विश्व कीर्तिमान 





Wednesday, December 2, 2020

SANJEEV GOYAL - वैश्य गौरव

 SANJEEV GOYAL - वैश्य गौरव 

SANJEEV GOYAL - IITINS - VAISHYA GOURAV


साभार: अमर उजाला 

Tuesday, November 10, 2020

VAISHY MLA ELECTED IN BIHAR - बिहार में नवनिर्वाचित वैश्य विधायक - 2020

2020 में वैश्य समाज से नवनिर्वाचित विधायक गण का सूची...

1.राम नारायण मंडल~बांका, भाजपा
2.लालबाबू प्रसाद गुप्ता~चिरैया, भाजपा
3.मोतीलाल प्रसाद~रीगा, भाजपा
4.रामचंद्र प्रसाद साह~हायाघाट, भाजपा
5.नारायण साह~नौतन, भाजपा
6.CN गुप्ता~छपरा, भाजपा
7.रणविजय साहू~मोरवा, राजद
8.संजय गुप्ता~बेलसंड, राजद
9.गुंजेशर साह~महिषी, जदयू
10.तारकेशर प्रसाद~कटिहार, भाजपा
11.विजय खेमका~पूर्णिया, भाजपा
12.संजय सरावगी~दरभंगा, भाजपा
13.संजीव चौरसिया~दीघा, भाजपा
14.पवन जैसवाल~ढांका, भाजपा
15.डॉ. मिथिलेश कुमार~सीतामढ़ी, भाजपा
16.सुदामा प्रसाद~तरारी, माले
17.वीरेंद्र गुप्ता~सिकटी, माले
18.हेमनारायण साह~महराजगंज, जदयू
19.प्रमोद कुमार~मोतिहारी, भाजपा
20.विजेंद्र चौधरी~मुज्जफरपुर, कोंग्रेस
21.राजेश गुप्ता~सासाराम, राजद
22.समीर महासेठ~मधुबनी, राजद
23.मंजू अग्रवाल~शेरघाटी, राजद
24.विद्यासागर केसरी~फारबिसगंज, भाजपा

Monday, November 2, 2020

LALA HARDEO SAHAY - लाला हरदेव सहाय

महान गोभक्त लाला हरदेवसहाय


गोरक्षा आन्दोलन के सेनापति लाला हरदेवसहाय जी का जन्म 26 नवम्बर, 1892 को ग्राम सातरोड़ (जिला हिसार, हरियाणा) में एक बड़े साहूकार लाला मुसद्दीलाल के घर हुआ था। संस्कृत प्रेमी होने के कारण उन्होंने बचपन में ही वेद, उपनिषद, पुराण आदि ग्रन्थ पढ़ डाले थे। उन्होंने स्वदेशी व्रत धारण किया था। अतः आजीवन हाथ से बुने सूती वस्त्र ही पहने। 

लाला जी पर श्री मदनमोहन मालवीय, लोकमान्य तिलक तथा स्वामी श्रद्धानंद का विशेष प्रभाव पड़ा। वे अपनी मातृभाषा में शिक्षा के पक्षधर थे। अतः उन्होंने ‘विद्या प्रचारिणी सभा’ की स्थापना कर 64 गांवों में विद्यालय खुलवाए तथा हिन्दी व संस्कृत का प्रचार-प्रसार किया। 1921 में तथा फिर 1942 के ‘भारत छोड़ो आन्दोलन’ में वे सत्याग्रह कर जेल गये। 

लाला जी के मन में निर्धनों के प्रति बहुत करुणा थी। उनके पूर्वजों ने स्थानीय किसानों को लाखों रुपया कर्ज दिया था। हजारों एकड़ भूमि उनके पास बंधक थी। लाला जी वह सारा कर्ज माफ कर उन बहियों को ही नष्ट कर दिया, जिससे भविष्य में उनका कोई वंशज भी इसकी दावेदारी न कर सके। भाखड़ा नहर निर्माण के लिए हुए आंदोलन में भी उनकी भूमिका महत्वपूर्ण रही। 

1939 में हिसार के भीषण अकाल के समय मनुष्यों को ही खाने के लाले पड़े थे, तो ऐसे में गोवंश की सुध कौन लेता ? लोग अपने पशुओं को खुला छोड़कर अपनी प्राणरक्षा के लिए पलायन कर गये। ऐसे में लाला जी ने दूरस्थ क्षेत्रों में जाकर चारा एकत्र किया और लाखों गोवंश की प्राणरक्षा की। उन्हें अकाल से पीड़ित ग्रामवासियों की भी चिन्ता थी। उन्होंने महिलाओं के लिए सूत कताई केन्द्र स्थापित कर उनकी आय का स्थायी प्रबंध किया। 

सभी गोभक्तों का विश्वास था कि देश स्वाधीन होते ही संपूर्ण गोवंश की हत्या पर प्रतिबंध लग जाएगा, पर गांधी जी और नेहरु इसके विरुद्ध थे। नेहरु ने तो नये बूचड़खाने खुलवाकर गोमांस का निर्यात प्रारम्भ कर दिया। लाला जी ने नेहरु को बहुत समझाया, पर वे अपनी हठ पर अड़े रहे। लाला जी का विश्वास था कि वनस्पति घी के प्रचलन से शुद्ध घी, दूध और अंततः गोवंश की हानि होगी। अतः उन्होंने इसका भी प्रबल विरोध किया। 

लाला जी ने ‘भारत सेवक समाज’ तथा सरकारी संस्थानों के माध्यम से भी गोसेवा का प्रयास किया। 1954 में उनका सम्पर्क सन्त प्रभुदत्त ब्रह्मचारी तथा करपात्री जी महाराज से हुआ। ब्रह्मचारी जी के साथ मिलकर उन्होंने कत्ल के लिए कोलकाता भेजी जा रही गायों को बचाया।

इन दोनों के साथ मिलकर लालाजी ने गोरक्षा के लिए नये सिरे से प्रयास प्रारम्भ किये। अब उन्होंने जनजागरण तथा आन्दोलन का मार्ग अपनाया। इस हेतु फरवरी 1955 में प्रयाग कुम्भ में ‘गोहत्या निरोध समिति’ बनाई गयी। 

लाला जी ने प्रतिज्ञा की थी कि जब तक देश में पूरी तरह गोहत्या बन्द नहीं हो जायेगी, तब तक मैं चारपाई पर नहीं सोऊंगा तथा पगड़ी नहीं पहनूंगा। उन्होंने आजीवन इस प्रतिज्ञा को निभाया। उन्होंने गाय की उपयोगिता बताने वाली दर्जनों पुस्तकें लिखीं। उनकी ‘गाय ही क्यों’ नामक प्रसिद्ध पुस्तक की भूमिका तत्कालीन राष्ट्रपति डा. राजेन्द्र प्रसाद ने लिखी थी। लाला जी के अथक प्रयासों से अनेक राज्यों में गोहत्या-बन्दी कानून बने। 
30 सितम्बर, 1962 को गोसेवा हेतु संघर्ष करने वाले इस महान गोभक्त सेनानी का निधन हो गया। उनका प्रिय वाक्य ‘गाय मरी तो बचता कौन, गाय बची तो मरता कौन’ आज भी पूरी तरह प्रासंगिक है। 

(संदर्भ : लाला हरदेव सहाय, जीवनी/लेखक एम.एम.जुनेजा)

Thursday, October 29, 2020

ASHUTOSH GANGAL - NEW RAILWAY GM

ASHUTOSH GANGAL - NEW RAILWAY GM 


रेल मंत्रालय ने भारतीय रेल मेकेनिकल इंजीनियरिंग सेवा (IRSME) के वरिष्ठ अधिकारी आशुतोष गंगल को उत्तर रेलवे का महाप्रबंधक नियुक्त किया है। गंगल ने आज ही कार्यभार संभाल लिया। इससे पहले रेलवे बोर्ड में अतिरिक्त सदस्य (योजना) के पद पर कार्यरत थे।

ईरमी के हैं स्नातक

आशुतोष गंगल ने वर्ष 1985 में बिहार के जमालपुर स्थित इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मैकेनिकल एंड इलैक्ट्रीकल इंजीनियर्स (IRIMEE) के स्नातक की डिग्री हासिल की है। साथ ही उन्होंने इंस्टीट्यूशन ऑफ इंजीनियर, इंडिया से सेक्शन ए तथा बी में गोल्ड मैडल भी प्राप्त किया है। इन्हें भारतीय रेल में 35 वर्ष से अधिक समय तक विभिन्न पदों पर कार्य करने का अनुभव है। इससे पहले वह पश्चिम मध्य रेलवे, जबलपुर में चीफ मेकेनिकल इंजीनियर, मध्य रेलवे, मुम्बई में वरिष्ठ उप महाप्रबंधक तथा मंडल रेल प्रबंधक, बडौदा के पदों पर भी काम कर चुके हैं।

विदेशों में भी ली है ट्रेनिंग

गंगल ने विदेशों में विख्यात ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट, इंटरनेशनल एंटी करप्शन एजेंसी (IACA), आस्ट्रिया; कारनेग मेलोन यूनिवर्सिटी, पीटसवर्ग, यूएसए; एसडीए-बोकोनी बिजनेस स्कूल मिलान, इटली तथा लिक्योन येन स्कूल-यूनिवर्सिटी ऑफ सिंगापुर में विभिन्न मैनेजमेंट डेवलपमेंट प्रोग्राम के लिए ट्रेनिंग भी ली है। उपरोक्त इंस्टीच्यूट में ट्रेनिंग के अलावा गंगल ऑफिसियल एसाइनमेंट पर जर्मनी, ईज़राइल तथा स्वीडन भी गए हैं।

साभार: नवभारत टाइम्स 

Wednesday, October 28, 2020

RITIKA JINDAL IAS - रितिका जिंदल, जिन्होंने दुर्गा अष्टमी की बरसों पुरानी परंपरा तोड़ी

कौन है IAS रितिका जिंदल, जिन्होंने दुर्गा अष्टमी की बरसों पुरानी परंपरा तोड़ी



IAS रितिका जिंदल सोशल मीडिया पर निशाने पर बनी हुई हैं। सिर्फ इसीलिए क्योंकि उन्होंने हिमाचल में एक मंदिर की परंपरा बदलवा दी। अपने इस काम के लिए उन्होंने सोशल मीडिया पर काफी विरोध का सामना करना पड़ रहा है। 


यह मामला हिमाचल प्रदेश के सोलन जिले का है, यहां पर शूलिनी माता का मंदिर है। नवरात्रि के दौरान दुर्गा अष्टमी के दिन यहां पर हवन का आयोजन किया जाता है, इस बार भी हुआ। IAS रितिका जिंदल वहां का इंतज़ाम देखने पहुंची। 

उन्होंने वहां हवन होते हुए देखा, तो हिस्सा लेने की इच्छा जताई। लेकिन पंडितों ने उन्होंने ये तर्क देते हुए रोक दिया कि कोई भी महिला इस हवन में शामिल नहीं हो सकती।

ये बाद रितिका को ठीक नहीं लगी, क्योंकि जिन खास 9 दिनों मां दुर्गा के सभी रूपों को पूजा जाता है। नारी को सम्मान दिया जाता है, उसी में किसी एक दिन पूजा या हवन में उन्हें हिस्सा ना लेने को कहा गया। 

तो रितिका जिंदल वहां, आस-पास मौजूद लोगों के पास पहुंची और उन्हें ऐसा पाठ पढ़ाया कि बरसों से चली आ रही परंपरा को बदलने के लिए मजबूर होना पड़ा। रितिका ने कहा, 'अष्टमी के दिन हम महिलाओं के सम्मान की बात तो करते हैं, लेकिन उन्हीं के अधिकारों से उन्हें वंचित रखा जाता है। मैं एक अधिकार बाद में हूं पहले महिला हूं। सभी महिलाओ को ऐसी विचारधारा बदलने की जरूरत है। इसे वे तभी बदल सकती हैं, जब वे इस रूढ़िवादी सोच का विरोध करेंगी।'

रितिका का विरोध देख उन्हें हवन करने की इजाजत देनी पड़ी। लेकिन सोशल मीडिया पर हिंदू परंपरा से खिलवाड़ करने और बर्दाश्त ना करने वाले ट्वीट्स की बाढ़ आ गई। 

लोग इस आईएएस का विरोध करने लगे। किसी ने अमित शाह से इस IAS को रोकने की गुहार लगाई। तो किसी ने उन्हें हिंदू पुजारियों को ज्ञान देने से मना कर दिया।

किसी ने उन पर पावर का गलत इस्तेमाल करने वाला बताया तो किसी ने हिंदू धर्म से खिलवाड़ करने को मना किया।

बता दें, रितिका जिंदल पंजाब के मोगा से हैं। साल 2018 में उन्होंने UPSC की परीक्षा में 88वीं रैंक हासिल कर IAS क्वालिफाई किया था।


ANSHUL GOYAL - BUSINESS TYCOON

ANSHUL GOYAL - BUSINESS TYCOON

1 रुपए वाले मटर के पैकेट का बिजनेस शुरू किया, दूसरे महीने कमाई 50 हजार पहुंची, अब खुद की फैक्ट्री

अंशुल ने बताया कि बिजनेस शुरू करने से पहले मैंने सोचा कि कौन सा प्रोडक्ट लॉन्च करूं और छोटे बजट में ये कैसे हो सकता है।


राजस्थान के टोंक जिले के अंशुल गोयल ने इंजीनियरिंग की पढ़ाई के दौरान ही सोच लिया था कि बिजनेस ही करना है रिसर्च की, कोई प्रोडक्ट कितना बिकता है, मार्केट में क्रेडिट कितने दिनों की होती है और सबसे ज्यादा कौन लोग खरीदते हैं

आज की कहानी राजस्थान के टोंक जिले में रहने वाले अंशुल गोयल की है। यूं तो अंशुल ने इंजीनियरिंग की पढ़ाई की है, लेकिन काम स्नैक्स बेचने का कर रहे हैं। कॉलेज में एंटरप्रेन्योरशिप के एक प्रोजेक्ट के दौरान ही उन्होंने सोच लिया था कि बिजनेस ही करना है।

घरवालों के कहने पर डेढ़ साल सरकारी नौकरी की तैयारी भी, लेकिन मन नहीं लगा तो बंद कर दी। तीन साल में अपने पार्टनर के साथ मिलकर एक से डेढ़ लाख रुपए तक की मंथली इनकम पर पहुंच चुके हैं। वही बता रहे हैं, उन्होंने ये सब कैसे किया।

एक सैलरी पर बंधकर काम नहीं करना चाहता था

अंशुल कहते हैं- इंजीनियरिंग की पढ़ाई के दौरान मुझे महसूस हुआ कि नौकरी के बजाए मुझे बिजनेस में जाना चाहिए। मैं एक सैलरी पर बंधकर काम नहीं करना चाहता था, बल्कि खुद अपने काम का बॉस बनना चाहता था। कॉलेज में थर्ड ईयर में एंटरप्रेन्योरशिप प्रोग्राम में पार्टिसिपेट किया।

एक बिजनेस प्रोजेक्ट पर काम किया। तब दिमाग में ये बात घर कर गई कि बिजनेस ही करना है। घरवाले चाहते थे कि मैं पढ़ाई करके नौकरी करूं। सरकारी नौकरी की तैयारी भी की, लेकिन कुछ दिन बाद मन नहीं लगा और बिजनेस के बारे में सोचने लगा।


काम की शुरूआत अंशुल ने अपने घर से ही की थी, बाद में फैक्ट्री शुरू की।

वो बताते हैं, "मैं मार्केट में बिजनेस सर्च कर रहा था कि आखिर क्या कर सकता हूं। मेरे ज्यादातर रिश्तेदार बिजनेसमैन ही हैं। उनसे भी कंसल्ट कर रहा था। मुसीबत ये थी कि बिजनेस शुरू करने के लिए बहुत पैसा नहीं था। जो भी करना था, छोटे बजट में ही करना था। मैं देख रहा था कि कोई प्रोडक्ट कितना बिक सकता है। उसकी मार्केट में क्रेडिट कितने दिनों की होती है। सबसे ज्यादा कौन लोग उसे खरीदते हैं। कई चीजें देखने के बाद मुझे हरे मटर का काम समझ में आया।"

अंशुल कहते हैं- मैंने देखा कि एक रुपए में फ्राई मटर बेचे जाते हैं। ये पैकेट खासतौर पर बच्चों को टारगेट कर मार्केट में उतारे जाते हैं। रिसर्च करने पर मुझे पता चला कि इस काम में बहुत ज्यादा इंवेस्टमेंट भी नहीं था और रिटर्न आने की संभावना पूरी थी। 2017 में मैंने जयपुर से ही डेढ़ लाख रुपए में ये काम शुरू किया। मेरे करीब 60 से 70 हजार रुपए प्रिंटिंग में खर्च हुए, क्योंकि प्रिंटिंग का ऑर्डर बल्क में देना पड़ता है।

उन्होंने बताया कि पचास हजार रुपए में पैकिंग की एक सेकंड हैंड मशीन खरीदी। इसके अलावा मंडी से दौ सो किलो सूखी मटर खरीदी। शुरू के एक महीने काफी दिक्कतें आईं। अनुभव न होने के चलती कभी हमारी मटर पूरी तरह फ्राई नहीं हो पाती थी। कभी क्रिस्पी नहीं होती थी।

कभी तेल ज्यादा हो जाता था तो कभी मसाला अच्छे से लग नहीं पाता था। मैंने अपने जानने वाले दुकानदारों को सैम्पलिंग के लिए पैकेट दिए थे। सभी ने फीडबैक दिया। फिर पता चला कि तेल सुखाने के लिए भी मशीन आती है। मसाला लगाने के लिए भी मशीन आती है और भी कई छोटी-छोटी बातें पता चलीं।


अंशुल 11 प्रोडक्ट्स लॉन्च कर चुके हैं। दिवाली के बाद चिप्स लॉन्च करने की भी तैयारी है।

डेढ़ महीने में ही शुरू हो गई कमाई

वो कहते हैं- एक महीने की लर्निंग के बाद मैं जान गया था कि बढ़िया क्रिस्पी मटर कैसे तैयार किए जाते हैं। हम अच्छा माल तैयार करने लगे। महीनेभर बाद ही ऑर्डर बढ़ना शुरू हो गया। पहले टोंक जिले के गांव में ही मैं पैकेट पहुंचा रहा था। दूसरे महीन से ही मेरी 45 से 50 हजार रुपए की बचत होने लगी। ये काम 6 महीने तक चलता रहा।

फिर दुकानदारों ने ही बोला कि इसके साथ जो स्नैक्स के दूसरे प्रोडक्ट आते हैं, वो भी बढ़ाओ। उन प्रोडक्ट्स की भी काफी डिमांड होती है। मैंने भी सोचा कि प्रोडक्ट्स बढ़ाऊंगा नहीं तो काम कैसे फैलेगा। मटर के काम में मैंने एक बंदा मटर फ्राई करने के लिए रखा था और दूसरा पैकिंग के लिए था। मार्केटिंग का काम मैं खुद देख रहा था।

मार्केट से 50 लाख उठाए, आधे चुका भी दिए

अंशुल ने बताया कि मेरे पास बहुत से प्रोडक्ट्स लॉन्च करने के लिए पैसा नहीं था। फिर अपने साथ एक पार्टनर को जोड़ा। हमने सबसे पहले फर्म रजिस्टर्ड करवाई। मार्केट और बैंक से करीब 50 लाख रुपए उठाए और एक साथ 11 प्रोडक्ट लॉन्च कर दिए। टोंक के साथ ही जयपुर और दूसरे एरिया में भी हम डिस्ट्रीब्यूशन के जरिए प्रोडक्ट्स पहुंचाने लगे।

उन्होंने कहा- कोरोना के पहले हमारी मंथली इनकम एक से डेढ़ लाख थी। मार्केट से जो पैसा उठाया था, उसका 50% चुका भी दिया। कोरोना के चलते 6 महीने का ब्रेक लग गया था। अब फैक्ट्री फिर से शुरू कर दी है। आज मेरे पास करीब 30 लाख रुपए की मशीनें हैं। आठ से दस वर्कर हैं। पैकिंग से लेकर ड्राय करने तक की मशीनें हैं।

अब हम दिवाली के बाद चिप्स लॉन्च करने की तैयारी कर रहे हैं। जो लोग अपना काम शुरू करना चाहते हैं, उन्हें यही कहना चाहता हूं कि जो भी काम करो, पहले उसके बारे में रिसर्च करो। उस प्रोडक्ट के मार्केट को समझो। कॉम्पीटिशन बहुत हाई है, यदि सही प्लानिंग से नहीं गए तो नुकसान हो सकता है। अंशुल यूट्यूब पर कामकाजी चैनल के जरिए लोगों को बिजनेस एडवाइज भी देते हैं।

साभार: दैनिक भास्कर 

Sunday, October 25, 2020

SKANDGUPT VIKRAMADITYA - A GREAT VAISHYA SAMRAT

SKANDGUPT VIKRAMADITYA - A GREAT VAISHYA SAMRAT 

स्कंदगुप्त_विक्रमादित्य

चौथी-पांचवी ई. सदी की बात है तब धरती पर  इस्लाम का जन्म भी नहीं हुआ था।  तुर्क और  मंगोल इलाकों में तब  हूणों का आतंक बरसता था। संभवतः तुर्क और मंगोलों की मौजूदा पीढ़ियों के मूल पूर्वज  हूण_कबीलों से ही जुड़े थे। चीन के पश्चिमोत्तर मंगोल जनजातियों से लेकर आज के यूरोप में हंगरी तक असंख्य चींटियों की तरह दल बांधकर आक्रांत हूण जब चाहे जहां चाहे धावा बोलते थे। मध्य एशिया समेत समूचे  रोमन_साम्राज्य को थर्रा देने वाले दुर्दान्त और  बर्बर_हूण आक्रांन्ताओं के सामने विश्व की समस्त प्राचीन सभ्यताएं मटियामेट हो गई थीं। आज भी हूणों का सबसे दुर्दान्त नायक अटिला यूरोप में मानवता के अभिशाप के रूप में पढ़ाया और बताया जाता है।


हूणों का नाम सुनते ही तब के समूचे चीन में कंपकपी दौड़ जाती थी। क्योंकि उसके पूरे पश्चिमोत्तर सरहदी इलाकों में उसके सारे प्रान्तीय रणबांकुरे हूणों को देखते ही भाग खड़े होते थे और चीन को जब जहां चाहते, हूणों के दल रौंद डालते थे। हूणों से बचने के लिए तब चीन के लोगों ने स्थान-स्थान पर तेजी से  सरबुलन्द  द_ग्रेट_वॉल_ऑफ_चाइना का निर्माण किया ताकि हूणों के हमलों से बचने के लिए स्थायी बन्दोबस्त किए जा सकें। 

कल्पना करिए, जिन हूणों ने प्राचीन ग्रीक, प्राचीन रोम, प्राचीन मिस्र और ईरान को ज़मींन्दोज़ कर डाला वही हूण जब #भारत की धरती पर टिड्डीदल की तरह टूटे तब उनके साथ क्या घटित हुआ था? वाराणसी के समीप गाजीपुर जनपद में स्थित #औड़िहार और #भितरी के खंडहर सारी लोमहर्षक गाथा बयान करते हैं। आज भी इस इलाके में माताएं बच्चों को सुलाते हुए कहती हैं-बचवा सुतजा नाहीं त हूणार आ जाई, बेटा सो जा नहीं तो हूण आ जाएगा।


हूणों के विरुद्ध उस महासमर में जिसका प्रारंभ औड़िहार की धरती से हुआ था और जिसका व्यापार गुजरात से लेकर कश्मीर यानी पूरे पश्चिमोत्तर भारत तक फैल गया, उसी युद्ध का नेतृत्व करने उतर पड़ा था वह महायोद्धा जिसका नाम इतिहास में #स्कन्दगुप्त_विक्रमादित्य के नाम से अमर हुआ। यही कारण है कि वह भारत रक्षक सम्राटों की पंक्ति में सबसे महान और सबसे शीर्ष पर इतिहास में स्थापित हुआ। महान इतिहासकार प्रो. आरसी मजूमदार ने स्कन्दगुप्त की वीरता को नमन करते हुए उसे #द_सेवियर_ऑफ_इंडिया कहकर पुकारा। 

इतिहास स्रोत संकेत करते हैं कि अत्यंत युवावस्था में उसने समरांगण में सैन्यदल की कमान हाथ में ली और फिर उसने पीछे मुड़कर नहीं देखा। गान्धार-तक्षशिला को नष्ट-भ्रष्ट करते गंगा की घाटी में वाराणसी-गाधिपुरी तक चढ़ आए 3 लाख से अधिक खूंखार हूणों के अरिदल को उसने अपने बाहुबल- बुद्धिबल से प्रबल टक्कर दी और अंततः संसार में अपराजेय हो चुके हूणों को न केवल भारत की धरती से उखाड़ फेंका, बल्कि उनकी रीढ़ इस कदर तोड़ दी कि फिर हूण दुनिया में अपनी पहचान बचाने को भी तरस गए। स्कन्दगुप्त ने जो घाव #हूणों को दिए, उसकी टीस लिए हूणों की समूची प्रजाति का रूप ही बदल गया. मध्य एशिया के दूसरे कबीलों में छुपकर और पहचान बदलकर आततायी हूण सदा के लिए समाप्त हो गए।

इतिहास स्रोत यह भी बताते हैं कि मात्र 45 अथवा 50 वर्ष की उम्र तक ही संभवतः वह जीवित रहा। युद्ध में लगे अनगिनत घावों के कारण उसकी जीवनलीला संभवतः समय से पहले ही समाप्त हो गई, किन्तु भारत के इतिहास में वह नवयुवक अपनी कभी न मिटने वाली अमिट समर-गाथा छोड़ गया। कालचक्र उस युवा का पुनःस्मरण करता है, भूमि आज भी अपने उस वीरपुत्र को देखने के लिए आवाज देती है। गंगा की कल-कल लहरों में वह आज भी दृश्यमान प्रवाह रूप में दिखाई देता है।

आजीवन वह रणभूमि में ही जूझता रहा, परिणामतः जो मुट्टीभर हूण बचे भी तो जीवित रहने के लिए वो शिव-शिव हरि-हरि जपने को बाध्य हो गए। कौन थे हूण? कहां से आए थे? क्या चाहते थे? भारत की धरती पर उनका सफाया स्कन्दगुप्त ने कैसे किया? हूणों के विरूद्ध भारत की इस समरगाथा पर सीरीज शीघ्र। 🚩🚩

साभार : Article :- घनश्याम अग्रवाल जी, राज_सिंह--- www.vedsci.in

ISHAN GUPTA - अंतरराष्ट्रीय फलक पर छाया कानपुर का ईशान, कोरोना से बचाव के लिए बनाया वर्क डिको एप

अंतरराष्ट्रीय फलक पर छाया कानपुर का ईशान, कोरोना से बचाव के लिए बनाया वर्क डिको एप


प्रतिभा उम्र की मोहताज नहीं होती। इस बात को चरितार्थ किया है यूपी के कानपुर निवासी ईशान गुप्ता ने जो हैं तो केवल 17 साल के लेकिन अपनी प्रतिभा के दम पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देश का नाम रोशन किया है।

एक तरफ पूरी दुनिया कोरोना से जंग लड़ रही है, वहीं दूसरी ओर कुछ ऐसे भी लोग हैं जो इस जंग को जीतने के लिए रास्ते तलाश रहे हैं। एक ऐसा ही नाम है ईशान गुप्ता। 17 साल के ईशान उत्तर प्रदेश के कानपुर जिले में रहते हैं और 12वीं के छात्र हैं। उन्होंने अंतरराष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिता में भाग लेकर एक ऐसा एप तैयार किया है जो कोरोना से जंग में मददगार साबित हो सकता है।

दरअसल, उनका यह एप भीड़भाड़ वाले स्थानों की जानकारी देने के साथ मास्क न लगाने वाले लोगों की संख्या बताने में भी सक्षम है। ईशान ने इस एप को नाम दिया है वर्क डिको। इस एप के लिए ईशान को 500 डॉलर की राशि भी मिली है। सेठ आनंदराम जयपुरिया स्कूल के छात्र ईशान का एप कोरोना से जंग में कई स्तर पर मददगार साबित हो सकता है।

ऐसे बहुत से स्थान हैं, जहां सीसीटीवी कैमरे लगे होते हैं। यह एप वहां के सीसीटीवी एप के जरिये डाटा लेकर यह बताने में सक्षम है कि वहां कितनी भीड़ है और कितने लोग मास्क नहीं लगाए हुए हैं। ईशान की इस उपलब्धि पर उनके स्कूल की प्रधानाचार्य शिखा बनर्जी भी बेहद खुश हैं। उन्होंने ईशान की प्रतिभा को सराहा और उन्हें बधाई भी दी।

वैश्विक स्तर पर पहला स्थान : 

हार्वर्ड और स्टेनफोर्ड विश्वविद्यालय की ओर से अप्रैल में कोरोना महामारी को लेकर प्रतियोगिता हुई थी। ईशान ने उसमें प्रतिभाग कर अपने इस एप को प्रस्तुत किया। अगस्त में जब परिणाम आया तो ईशान को वैश्विक स्तर पर पहला स्थान मिला। 500 डॉलर और किंग जॉर्ज का मेडल भी मिला।

ऐसे काम करता है एप : 

फिनलैंड में कोरोना को लेकर हुए शोध के बाद ईशान ने यह एप बनाया। ईशान बताते हैं कि आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस, मशीन लर्निग व कंप्यूटर विजन तकनीक का उपयोग कर इस एप को तैयार किया है। इसके लिए उन्होंने डाटा तैयार किया और क्लाउड सर्वर पर अपलोड कर दिया। इसके बाद परिणाम आना शुरू हो गए। एप का उपयोग करने के लिए मॉल या स्टोर पर जो कैमरे लगे होते हैं, उनसे इस एप को जोड़ना होता है। इसके बाद जिस स्थान पर एप का उपयोग कर रहे हैं, वहां का पूरा डाटा एक क्लिक पर मिल जाता है। एप पर विच इज द बेस्ट स्टोर टू विजिट का विकल्प भी मौजूद रहता है।

गरीब बच्चों की करते हैं मदद :

कानपुर के स्वरूपनगर निवासी ईशान को 10वीं में 97.2 फीसद अंक मिले। खुद की पढ़ाई के साथ वह गरीब बच्चों की मदद भी करते हैं। ईशान वन बुक-वन स्माइल नाम से कम्युनिटी प्रोजेक्ट का संचालन भी करते हैं। इसमें मेरठ, नोएडा, कोलकाता के छात्र भी जुड़े हैं।

साभार: दैनिक जागरण 

Wednesday, October 21, 2020

SURAT AGRAWAL TRUST ELECTION

 SURAT AGRAWAL TRUST ELECTION 


DEVITA SHROFF - आज भारत की सबसे अमीर सेल्फमेड वुमन हैं, 1200 करोड़ रु है नेटवर्थ

DEVITA SHROFF - आज भारत की सबसे अमीर सेल्फमेड वुमन हैं, 1200 करोड़ रु है नेटवर्थ


देविता की कंपनी एडवांस TV बनाती है। इस टीवी पर यू-ट्यूब और हॉट स्टार जैसे ऐप को भी आसानी से चलाया जा सकता है।

आज देविता के पास पूरे भारत में करीब 10 लाख से ज्यादा कस्टमर्स हैं, उनकी कंपनी दुनिया के 60 देशों में अपनी टीवी बेचती है
देविता का नाम फॉर्च्यून इंडिया (2019) की भारत की सबसे ताकतवर 50 महिलाओं में भी आ चुका है, पीएम भी कर चुके हैं तारीफ

आईआईएफएल वेल्थ और हुरुन इंडिया ने हाल ही में 40 और उससे कम उम्र वाले सेल्फ मेड अमीरों की लिस्ट को जारी की। इस लिस्ट में एकमात्र महिला हैं 39 साल की देविता सराफ। वह इस सूची में 16वें स्थान पर हैं। देविता वीयू ग्रुप की सीईओ और चेयरपर्सन हैं। उनका नाम फॉर्च्यून इंडिया (2019) की भारत की सबसे ताकतवर 50 महिलाओं में भी आ चुका है। इंडिया टुडे ने 2018 में बिजनेस वर्ल्ड में 8 सबसे ताकतवर महिलाओं में देविता सराफ को जगह दी थी। उनकी कुल दौलत करीब 1200 करोड़ रुपए है।

देविता सराफ ने हार्वर्ड यूनिवर्सिटी से पढ़ाई की है। वो जेनिथ कंप्यूटर्स के मालिक राजकुमार सराफ की बेटी हैं। हालांकि, वो हमेशा से कुछ अलग करना चाहती थीं। इसलिए फैमिली बिजनेस नहीं संभाला। 2006 में जब टेक्नोलॉजी में तेजी से बदलाव हो रहा था और अमेरिका में गूगल और एपल जैसी कंपनियां मोबाइल और कम्प्यूटर के बीच के गैप को खत्म करने की जद्दोजहद में थीं, उस समय देविता ने कुछ नया करने की ठानी। इसके लिए उन्होंने टीवी कारोबार को चुना। उन्होंने VU टीवी की शुरुआत की। जो टीवी और सीपीयू का मिलाजुला रूप था।


देविता सराफ ने हार्वर्ड यूनिवर्सिटी से पढ़ाई की है। वो जेनिथ कंप्यूटर्स के मालिक राजकुमार सराफ की बेटी हैं।

उनकी कंपनी लेटेस्ट तकनीक में अच्छा काम कर रही है। देविता की कंपनी एडवांस TV बनाती है। इस टीवी पर यू-ट्यूब और हॉट स्टार जैसे ऐप को भी आसानी से चलाया जा सकता है। मतलब ये टीवी कम कंप्यूटर होते हैं। इनके जरिए आप मल्टी टास्किंग कर सकते हैं। साथ ही कंपनी एंड्रॉयड पर चलने वाले हाई डेफिनेशन टीवी भी बनाती है। बड़ी स्क्रीन के साथ कंपनी के पास कॉरपोरेट यूज की भी टीवी है।

देविता ने जब कंपनी शुरू की थी तब उनकी उम्र महज 24 साल ही थी। शुरुआत में उन्हें दिक्कत आईं, लेकिन करीब 6 साल बाद 2012 में उनकी कंपनी प्रॉफिट में आ गई। 2017 में कंपनी का टर्नओवर करीब 540 करोड़ पहुंच गया था। उसके बाद से लगातार यह बढ़ता ही गया। आज देविता के पास पूरे भारत में करीब 10 लाख से ज्यादा कस्टमर्स हैं। कंपनी दुनिया के 60 देशों में अपनी टीवी बेचती है।


चार साल पहले वीयू टेलिविजंस की को-फाउंडर और सीईओ देविता सराफ को डोनाल्ड ट्रम्प ने भारत की इवांका कहा था।

लड़की समझ कर सीरियसली नहीं लेते थे लोग

देविता के लिए कंपनी को इस मुकाम तक पहुंचाना आसान नहीं था। एक इंटरव्यू में देविता ने कहा था कि जब वो बिजनेस के सिलसिले में किसी डीलर या मैन्युफैक्चरर से मिलती थीं, तो लोग उन्हें लड़की समझकर सीरियसली नहीं लेते थे। कुछ लोगों को लगता था कि ये लड़की है और इतना बड़ा बिजनेस संभाल कैसे सकती है। देविता के मुताबिक, जब आपको आगे बढ़ाना होता है तो ऐसी चीजों के बारे में ध्यान नहीं देते हैं। हालांकि उनका मानना है कि अब लोगों की सोच बदल रही है। उन्हें देखकर बहुत से लोगों को लगता है कि उनकी बेटियां भी अपना बिजनेस खड़ा कर सकती हैं।

पीएम मोदी भी कर चुके हैं तारीफ


साल 2017 में पीएम मोदी ने अपने भाषण में देविता के आइडिया का जिक्र भी किया था।

साल 2017 में देविता ने यंग सीईओ के साथ पीएम मोदी की हुई बैठक में हिस्सा लिया था। इसमें न्यू इंडिया के लिए इन सीईओज से अपने आइडिया देने को कहा गया था। देविता ने इस कार्यक्रम में मेक इन इंडिया पर अपने विचार रखे। बाद में पीएम मोदी ने अपने भाषण में उनके आइडिया का जिक्र भी किया।

हार्डवर्किंग ही सफलता का मूलमंत्र

एक इंटरव्यू में देविता सराफ ने कहा कि वह हार्डवर्किंग और युवा महिलाओं का भी प्रतिनिधित्व कर रही हैं। वह देश की तमाम युवा महिलाओं को प्रोत्साहित करने का काम कर रही हैं। वह कहती हैं कि उन्हें अब इस बात का भरोसा हो गया है कंपनियों के सीईओ भी किसी सेलेब्रिटी से कम नहीं हैं। देविता कहती है कि महिलाओं को सिर्फ उनकी सुंदरता के लिए नहीं, बल्कि उनके टैलेंट के लिए भी सराहा जाना चाहिए

साभार: दैनिक भास्कर 

Tuesday, October 20, 2020

समाजवाद के प्रर्वतक थे महाराजा अग्रसेन

समाजवाद के प्रर्वतक थे महाराजा अग्रसेन


महाराजा अग्रसेन को समाजवाद का अग्रदूत कहा जाता है। अपने क्षेत्र में सच्चे समाजवाद की स्थापना हेतु उन्होंने नियम बनाया था कि उनके नगर में बाहर से आकर बसने वाले प्रत्येक परिवार की सहायता के लिए नगर का प्रत्येक परिवार उसे एक सिक्का व एक ईंट देगा। जिससे आने वाला परिवार स्वयं के लिए मकान व व्यापार का प्रबंध कर सके।

महाराजा अग्रसेन ने शासन प्रणाली में एक नई व्यवस्था को जन्म दिया था। उन्होंने वैदिक सनातन आर्य सस्कृंति की मूल मान्यताओं को लागू कर राज्य में कृषि-व्यापार, उद्योग, गौपालन के विकास के साथ-साथ नैतिक मूल्यों की स्थापना की थी।

महाराजा अग्रसेन एक सूर्यवंशी क्षत्रिय राजा थे। जिन्होंने प्रजा की भलाई के लिए वणिक धर्म अपना लिया था। महाराज अग्रसेन ने नाग लोक के राजा कुमद के यहां आयोजित स्वंयवर में राजकुमारी माधवी का वरण किया। इस विवाह से नाग एवं आर्य कुल का नया गठबंधन हुआ। 

महाराजा अग्रसेन समाजवाद के प्रर्वतक, युग पुरुष, राम राज्य के समर्थक एवं महादानी थे। माता लक्ष्मी की कृपा से श्री अग्रसेन के 18 पुत्र हुए। राजकुमार विभु उनमें सबसे बड़े थे। महर्षि गर्ग ने महाराजा अग्रसेन को 18 पुत्र के साथ 18 यज्ञ करने का संकल्प करवाया। 

माना जाता है कि यज्ञों में बैठे 18 गुरुओं के नाम पर ही अग्रवंश की स्थापना हुई। ऋषियों द्वारा प्रदत्त अठारह गोत्रों को महाराजा अग्रसेन के 18 पुत्रों के साथ उनके द्वारा बसाई 18 बस्तियों के निवासियों ने भी धारण कर लिया।

एक बस्ती के साथ प्रेम भाव बनाए रखने के लिए एक सर्वसम्मत निर्णय हुआ कि अपने पुत्र और पुत्री का विवाह अपनी बस्ती में नहीं दूसरी बस्ती में करेंगे। आगे चलकर यह व्यवस्था गोत्रों में बदल गई जो आज भी अग्रवाल समाज में प्रचलित है। 

धार्मिक मान्यतानुसार मर्यादा पुरुषोतम भगवान श्रीराम की चौंतीसवीं पीढ़ी में सूर्यवशीं क्षत्रिय कुल के महाराजा वल्लभ सेन के घर में द्वापर के अंतिमकाल और कलियुग के प्रारंभ में अश्विन शुक्ल प्रतिपदा को महाराजा अग्रसेन का जन्म हुआ। जिसे दुनिया भर में अग्रसेन जयंती के रूप में मनाया जाता है।

राजा वल्लभ के अग्रसेन और शूरसेन नामक दो पुत्र हुए थे। अग्रसेन महाराज वल्लभ के ज्येष्ठ पुत्र थे। महाराजा अग्रसेन के जन्म के समय गर्ग ऋषि ने महाराज वल्लभ से कहा था कि यह बालक बहुत बड़ा राजा बनेगा। इस के राज्य में एक नई शासन व्यवस्था उदय होगी और हजारों वर्ष बाद भी इनका नाम अमर होगा। उनके राज में कोई दुखी या लाचार नहीं था।

बचपन से ही वे अपनी प्रजा में बहुत लोकप्रिय थे। वे एक धार्मिक, शांति दूत, प्रजा वत्सल, हिंसा विरोधी, बली प्रथा को बंद करवाने वाले, करुणानिधि, सब जीवों से प्रेम, स्नेह रखने वाले दयालू राजा थे। 

महाराजा वल्लभ के निधन के बाद अपने नए राज्य की स्थापना के लिए महाराज अग्रसेन ने अपनी रानी माधवी के साथ सारे भारतवर्ष का भ्रमण किया। इसी दौरान उन्हें एक जगह शेर तथा भेडिए के बच्चे एक साथ खेलते मिले। उन्हें लगा कि यह दैवीय संदेश है जो इस वीरभूमि पर उन्हें राज्य स्थापित करने का संकेत दे रहा है।ऋषि मुनियों और ज्योतिषियों की सलाह पर नए राज्य का नाम अग्रेयगण रखा गया जिसे अग्रोहा नाम से जाना जाता है। वह जगह आज के हरियाणा के हिसार के पास है। आज भी यह स्थान अग्रहरि और अग्रवाल समाज के लिए तीर्थ के समान है। यहां महाराज अग्रसेन और मां लक्ष्मी देवी का भव्य मंदिर है। अग्रसेन अपने छोटे भाई शूरसेन को प्रतापनगर का राजपाट सौंप दिया। महाराजा अग्रसेन अग्रवाल जाति के पितामह थे।

उस समय यज्ञ करना समृद्धि, वैभव और खुशहाली की निशानी माना जाता था...


महाराज अग्रसेन ने 108 वर्षों तक राज किया उन्होंने परिश्रम और उद्योग से धनोपार्जन के साथ-साथ उसका समान वितरण और आय से कम खर्च करने पर बल दिया। जहां एक ओर वैश्य जाति को व्यवसाय का प्रतीक तराजू प्रदान किया वहीं दूसरी ओर आत्म-रक्षा के लिए शस्त्रों के उपयोग की शिक्षा पर भी बल दिया।


उस समय यज्ञ करना समृद्धि, वैभव और खुशहाली की निशानी माना जाता था। महाराज अग्रसेन ने बहुत सारे यज्ञ किए। एक बार यज्ञ में बली के लिए लाए गए घोड़े को बहुत बैचैन और डरा हुआ देख उन्हें विचार आया कि ऐसी समृद्धि का क्या फायदा जो मूक पशुओं के खून से सराबोर हो। उसी समय उन्होंने पशु बली पर रोक लगा दी। इसीलिए आज भी अग्रवंश समाज हिंसा से दूर रहता है।

कहा जाता है कि महाराज अग्रसेन ने 108 वर्षों तक राज किया। महाराज अग्रसेन ने एक ओर हिंदू धर्म ग्रंथों में वैश्य वर्ण के लिए निर्देशित कर्म क्षेत्र को स्वीकार किया और नए आदर्श स्थापित किए। उनके जीवन के मूल रूप से तीन आदर्श हैं- लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था, आर्थिक समरूपता एवं सामाजिक समानता।

एक निश्चित आयु प्राप्त करने के बाद कुलदेवी महालक्ष्मी से परामर्श पर वे आग्रेय गणराज्य का शासन अपने ज्येष्ठ पुत्र विभु के हाथों में सौंपकर तपस्या करने चले गए। 

कहते हैं कि एक बार अग्रोहा में बड़ी भीषण आग लगी। उस पर किसी भी तरह काबू ना पाया जा सका। उस अग्निकांड से हजारों लोग बेघर हो गए और जीविका की तलाश में भारत के विभिन्न प्रदेशों में जा बसे। पर उन्होंने अपनी पहचान नहीं छोड़ी।

वे सब आज भी अग्रवाल ही कहलवाना पसंद करते हैं और उसी 18 गोत्रों से अपनी पहचान बनाए हुए हैं। आज भी वे सब महाराज अग्रसेन द्वारा निर्देशित मार्ग का अनुसरण कर समाज की सेवा में लगे हुए हैं।

वैसे महाराजा अग्रसेन पर अनगिनत पुस्तके लिखी जा चुकी हैं। सुप्रसिद्ध लेखक भारतेंदु हरिश्चंद्र जो खुद भी अग्रवाल समुदाय से थे। उन्होने 1871 में अग्रवालों की उत्पत्ति नामक एक प्रामाणिक ग्रंथ लिखा है। जिसमें विस्तार से इनके बारे में बताया गया है।

24 सितंबर 1976 में भारत सरकार द्वारा 25 पैसे का डाक टिकट महाराजा अग्रसेन के नाम पर जारी किया गया था। सन् 1995 में भारत सरकार ने दक्षिण कोरिया से 350 करोड़ रूपये में एक विशेष तेल वाहक पोत (जहाज) खरीदा, जिसका नाम महाराजा अग्रसेन रखा गया। राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 10 का आधिकारिक नाम महाराजा अग्रसेन पर है।

आज का अग्रोहा ही प्राचीन ग्रंथों में वर्णित अग्रवालों का उद्गम स्थान आग्रेय है। अग्रोहा हिसार से 20 किलोमीटर दूर महाराजा अग्रसेन राष्ट्र मार्ग संख्या 10 के किनारे एक साधारण गांव के रूप में स्थित है। जहां पांच सौ परिवारों की आबादी रहती है।

इसके समीप ही प्राचीन राजधानी अग्रेह (अग्रोहा) के अवशेष के रूप में 650 एकड भूमि में फैला महाराजा अग्रसेन धाम हैं। जो महाराज अग्रसेन के अग्रोहा नगर के गौरव पूर्ण इतिहास को दर्शाता है। आज भी यह स्थान अग्रवाल समाज में पांचवे धाम के रूप में पूजा जाता है। 

अग्रोहा विकास ट्रस्ट ने यहां पर बहुत सुंदर मंदिर, धर्मशालाएं आदि बनाकर यहां आने वाले अग्रवाल समाज के लोगो के लिए बहुत सुविधाएं उपलब्ध करवाई हैं। इतिहास में महाराज अग्रसेन परम प्रतापी, धार्मिक, सहिष्णु, समाजवाद के प्रेरक महापुरुष के रूप में उल्लेखित हैं।

देश में जगह-जगह महाराजा अग्रसेन के नाम पर बनाए गए स्कूल, अस्पताल, बावड़ी, धर्मशालाएं आदि महाराजा अग्रसेन के जीवन मूल्यों का आधार हैं। जो मानव आस्था के प्रतीक हैं।

साभार: amarujala.com/columns/blog/maharaja-agrasen-jayanti-2020-date-biography-in-hindi