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Monday, June 28, 2021

JAGAT SETH - जगत सेठ : भारत के सबसे अमीर आदमी जिनसे अंग्रेज भी लेते थे कर्जा

JAGAT SETH - जगत सेठ : भारत के सबसे अमीर आदमी जिनसे अंग्रेज भी लेते थे कर्जा


ब्रिटिशकाल के ऐसे कई राजा हैं, जिनसे आज तक कई भारतीय परिचित नही है. इतिहास के पन्नो को यदि खोला जाए तो ऐसे कई व्यक्तियों के बारे में हमें जानकारी प्राप्त होगी जिनसे हम अभी तक अनजान है. कुछ ऐसे रहस्यों से पर्दा उठता है, जो कई सदियों से बंद है.

ऐतिहासिक दृष्टि से देखा जाए तो यह महत्वपूर्ण होते हैं. आज हम जिस राजा की बात कर रहे है वह ब्रिटिशकालीन भारत के सबसे अमीर व्यक्ति थे. वह ऐसे व्यक्ति थे जिनसे ब्रिटिशों तक ने पैसों और सहायता लेनी पड़ी थी.

अभी तक जितनी हमें जानकारी थी उस आधार पर हम निर्णय करते थे की ब्रिटिशों ने भारत पर सिर्फ अपनी हुकूमत चलाई है, और कभी भी किसी के आगे सर नहीं झुकाया. आज भी यदि हमारी यही सोच है तो हम गलत हैं.


ब्रिटिशकाल में भी भारत में ऐसा व्यक्ति था जिसके आगे ब्रिटिश साम्राज्य नतमस्तक रहता था. हम जिस व्यक्ति की बात कर रहे है वह और कोई नहीं बंगाल के मुर्शिदाबाद स्थित जगत सेठ है, जिन्हें जगत सेठ ऑफ मुर्शिदाबाद के नाम से भी जाना जाता है.

आज के समय में भले ही बंगाल का मुर्शिदाबाद शहर गुमनामी में जी रहा हो, लेकिन उस समय यह हर किसी के लिए व्यापारिक केंद्र हुआ करता था. हर तरफ इसी स्थान के चर्चे हुआ करते थे. शायद ही ऐसा कोई व्यक्ति हुआ हो उस समय जो इस स्थान और जगत सेठ के बारे में न जानता हो.


आपकी जानकारी के लिए बता दे की जगत सेठ किसी जगह के कोई राजा महाराजा नहीं थे, बल्कि वह बंगाल के सबसे अमीर और मशहूर साहूकार थे. जगत सेठ एकमात्र ऐसे साहूकार थे जो हर किसी को उधर देते थे. यहाँ तक की उनसे बड़े-बड़े राजा-महाराजा भी धन उधार लिया करते थे. जिस कारण जगत सेठ बंगाल के सबसे विशिष्ट व्यक्तियों में गिने जाते थे.

धन के साथ-साथ जगत सेठ अपने दिमाग और कई तरह की रणनीतियो में भी निपुण थे. उस समय कहा जाता था की, जगत सेठ अपनी रणनीतियों से बड़े से बड़े राजा-महाराजा और नवाबों की सत्ता को नियंत्रित करने की शमता रखते थे.


अंग्रेजों ने भारत के हर कोने-कोने से धन-संपदा को एकत्रित कर अपने देश ब्रिटेन में पहुंचाया हो लेकिन कभी भी उन्होंने जगत सेठ की तरफ निगाह उठाकर भी नहीं देखा और न ही उन्हें हाथ लगाया.

बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला और मीरजाफर-मीरकासिम विवाद में जगत सेठ का नाम जोड़ा गया था, उन्होंने नवाबों के खिलाफ़ अंग्रेजों को सहायता की थी.जिस वजह से अंग्रेज जगत सेठ के आभारी रहा करते थे.

Saturday, June 26, 2021

ABHINAV SHAH - HARSH THAKKAR

ABHINAV SHAH - HARSH  THAKKAR 

आज की पॉजिटिव खबर:रांची के हर्ष ने दोस्त के साथ मिलकर 9 साल पहले 25 गायों के साथ शुरू किया डेयरी का बिजनेस, आज 200 करोड़ रु. है टर्नओवर


झारखंड के रांची के रहने वाले हर्ष ठक्कर एक बिजनेस फैमिली से ताल्लुक रखते हैं। उनके पिता किराना स्टोर का बिजनेस करते थे। पढ़ाई के साथ ही हर्ष पिता के काम में भी मदद करते थे। इस तरह उन्हें मार्केटिंग का काम समझ में आ गया। ग्रेजुएशन के बाद उन्होंने डिस्ट्रीब्यूशन की फील्ड में काम करना शुरू किया। करीब 18 साल तक वे बिहार और झारखंड में अलग-अलग कंपनियों में काम करते रहे। इसके बाद 2012 में उन्होंने अपने एक दोस्त अभिनव शाह के साथ मिलकर डेयरी फार्म का बिजनेस शुरू किया। आज उनकी टीम में 400 से ज्यादा लोग काम करते हैं और करीब 200 करोड़ रुपए उनकी कंपनी का टर्नओवर है।

43 साल के हर्ष बताते हैं कि बिजनेस तो मुझे विरासत में ही मिला था। इसलिए वह हमेशा से मेरे प्लान में रहा। 2012 में मैंने तय किया कि बहुत नौकरी कर ली, अब खुद का काम शुरू करना चाहिए। जब मैं दूसरे की मार्केटिंग कर सकता हूं तो खुद की क्यों नहीं। इसी सोच के साथ मैंने और अभिनव ने मिलकर इस काम को शुरू किया। तब अभिनव एक मल्टीनेशनल कंपनी में जॉब कर रहे थे। वे कहते हैं कि तब डेयरी सेक्टर नया था। बिहार, झारखंड में बड़ा ब्रांड एक ही था जो राज्य सरकार के अधीन था। हमें लगा कि इस सेक्टर में हम उतरते हैं तो आगे ग्रोथ काफी अच्छी रहेगी, क्योंकि मार्केट में ज्यादा विकल्प मौजूद नहीं हैं।


पूर्व केंद्रीय मंत्री जयंत सिन्हा के साथ अभिनव शाह और उनके साथी। अभिनव भी हर्ष के साथ Osom के को-फाउंडर हैं।

25 गायों के साथ शुरू किया बिजनेस

हर्ष और अभिनव ने मिलकर खुद की सेविंग्स से 25 गायें खरीदी। फिर उनके रखरखाव की व्यवस्था की। इसके बाद उन्होंने कुछ और लोगों को अपने काम के साथ जोड़ा और घर-घर दूध पहुंचाने का काम करने लगे। वे हर दिन दूध निकालते और रांची में बड़ी-बड़ी सोसाइटियों में घर-घर दूध की डिलीवरी करते थे। इस तरह धीरे-धीरे उनका काम बढ़ता गया। एक साल में ही 25 लाख रुपए का बिजनेस उन्होंने किया। इसके बाद पशुओं की संख्या बढ़ानी शुरू कर दी। 2015 में उनके पास 300 से अधिक मवेशी हो गए।

हर्ष कहते हैं कि घर-घर ताजा दूध पहुंचाने में हमें एक बड़ी मुसीबत का सामना करना पड़ा। अगर वक्त से दूध नहीं पहुंचा या गर्मी बढ़ गई तो दूध फटने की शिकायत मिलती थी। साथ ही प्रोडक्शन बढ़ गया तो उन्हें स्टोर करके रखने में भी दिक्कतें आने लगी। इसको लेकर हमने रिसर्च किया। डेयरी और दूध के संबंध में जानकारी जुटाई। तब हमें मालूम हुआ कि अब प्रोडक्शन से ज्यादा प्रोसेसिंग पर फोकस करना होगा।

प्रोडक्शन छोड़ प्रोसेसिंग पर फोकस


हर्ष और उनकी टीम दूध के साथ ही घी, दही, पेड़ा जैसे दो दर्जन से ज्यादा प्रोडक्ट की मार्केटिंग कर रही है।

2015-16 में हर्ष और उनकी टीम ने अपनी गायें किसानों को बेच दी और 5 से 6 करोड़ रुपए के बजट के साथ रांची में प्रोसेसिंग प्लांट की नींव रखी। अब उन्होंने किसानों से दूध लेकर उसकी प्रोसेसिंग और मार्केटिंग करना शुरू कर दिया। उन्होंने Osom नाम से खुद की कंपनी बनाई और झारखंड के साथ ही बिहार में भी डिस्ट्रीब्यूटर्स के जरिए प्रोसेस्ड मिल्क और उससे बने घी, दही, पेड़ा जैसे प्रोडक्ट्स की मार्केटिंग करने लगे।

इससे उनके बिजनेस का दायरा और अधिक बढ़ गया। जल्द ही उन्होंने झारखंड के बाहर भी काम करना शुरू कर दिया। अभी उनके तीन प्रोसेसिंग प्लांट हैं। इनमें से दो झारखंड में और तीसरा बिहार में है। फिलहाल वे दूध के साथ दो दर्जन से ज्यादा वैराइटी के डेयरी प्रोडक्ट की मार्केटिंग कर रहे हैं।

कैसे करते हैं काम, क्या है मार्केटिंग मॉडल?

हर्ष कहते हैं कि झारखंड के सभी जिलों में और बिहार के करीब 15 से 20 जिलों में हमारी टीम काम करती है। यहां गांव लेवल पर हमारे कलेक्शन सेंटर बने हैं। जहां किसान अपने दूध को बेच सकते हैं। यहां किसान के दूध की क्वालिटी टेस्टिंग होती है और फिर उसे हर दस दिन के हिसाब से पेमेंट किया जाता है। यहां से दूध को चिलिंग सेंटर लाया जाता है। जहां दूध को ठंडा किया जाता है ताकि वह ज्यादा देर तक रखने पर भी खराब न हो। इसके बाद उसे प्रोसेसिंग सेंटर पर लाया जाता है। यहां दूध की प्रोसेसिंग और पैकेजिंग होती है।


बिहार और जारखंड में हर्ष की टीम के साथ 17 हजार से ज्यादा रिटेलर्स जुड़े हैं। जिसके जरिए वे अपनी मार्केटिंग करते हैं।

मार्केटिंग के लिए हर्ष ने बिहार और झारखंड में ब्लॉक लेवल पर डिस्ट्रीब्यूटर्स बना रखे हैं। अभी 350 से ज्यादा उनके साथ डिस्ट्रीब्यूटर्स जुड़े हैं। जबकि 17 हजार से ज्यादा रिटेलर्स हैं। इनके जरिए वे अपने प्रोडक्ट की मार्केटिंग करते हैं। इसके साथ ही फ्लिपकार्ट जैसे ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर भी उनके प्रोडक्ट मौजूद हैं। हर्ष कहते हैं कि कोरोना के चलते हमारा काम काफी प्रभावित हुआ है। जल्द ही हम दूसरे राज्यों में भी अपना काम शुरू करेंगे।

कम बजट है तो 4-5 पशुओं के साथ कर सकते हैं शुरुआत

अगर आपका बजट कम है या आप रिस्क नहीं लेना चाहते हैं तो आप दो से चार पशुओं के साथ अपनी डेयरी शुरू कर सकते हैं। आगे धीरे-धीरे आप जरूरत के हिसाब से पशुओं की संख्या बढ़ा सकते हैं। इसमें दो से तीन लाख रुपए का खर्च आ सकता है, लेकिन अगर आप कॉमर्शियल लेवल पर इसे शुरू करना चाहते हैं तो कम से कम 10 से 15 लाख रुपए के बजट की जरूरत होगी। इसके साथ ही अगर आप दूध के साथ उसकी प्रोसेसिंग भी करना चाहते हैं तो बजट ज्यादा बढ़ जाएगा। प्रोसेसिंग प्लांट सेटअप करने में एक करोड़ रुपए तक खर्च हो सकते हैं। बेहतर होगा कि धीरे-धीरे बिजनेस को आगे बढ़ाएं।


फिलहाल हर्ष के पास तीन प्रोसेसिंग प्लांट हैं। इनमें से दो झारखंड में स्थित हैं जबकि तीसरा बिहार के आरा जिले में है।

डेयरी स्टार्टअप के लिए लोन और सब्सिडी कहां से ले सकते हैं?

डेयरी स्टार्टअप के लिए केंद्र सरकार और राज्य सरकार से आर्थिक मदद मिलती है। 10 पशुओं तक के स्टार्टअप के लिए आप 10 लाख रुपए का लोन ले सकते हैं। यह लोन आप किसी सहकारी बैंक या SBI से ले सकते हैं। इस लोन पर NABARD की तरफ से 25% सब्सिडी भी मिलती है। और अगर आप आरक्षित वर्ग से ताल्लुक रखते हैं तो 33% तक सब्सिडी ले सकते हैं।

सब्सिडी और लोन के लिए अप्लाई करने का तरीका भी बहुत आसान है। इसके लिए आधार कार्ड, बैंक खाता, आय प्रमाण पत्र, जाति प्रमाण पत्र का होना जरूरी है। साथ ही आपको अपने स्टार्टअप को लेकर एक प्रोजेक्ट भी तैयार करना होगा। जिसमें आपके बिजनेस मॉडल की जानकारी मेंशन होनी चाहिए। इसके लिए आप किसी प्रोफेशनल की मदद ले सकते हैं या नजदीकी कृषि विज्ञान केंद्र भी जा सकते हैं। इसके साथ ही राज्य स्तर पर भी डेयरी फार्मिंग को लेकर लोन और सब्सिडी मिलती है। अलग-अलग राज्यों में स्कीम थोड़ी बहुत अलग हो सकती है। इसकी जानकारी भी आप नजदीकी कृषि विज्ञान केंद्र से ले सकते हैं।



Tuesday, June 22, 2021

MURARI LAL JALAN - JET AIRWAYS NEW OWNER

 MURARI LAL JALAN - JET AIRWAYS NEW OWNER




रांची के अपर बाजार में कागज के हवाई जहाज उड़ाने वाले मुरारी लाल जालान अब जेट एयरवेज को पंख देंगे। नेशनल कंपनीज लॉ ट्रिब्‍यूनल (NCLT) ने कर्ज से जूझ रही जेट एयरवेज की समाधान योजना को मंजूरी दे दी है। योजना अमेरिका की एसेट मैनेजमेंट कंपनी कालरॉक कैपिटल और रांची निवासी यूएई के उद्यमी मुरारी लाल के कंसोर्टियम ने भेजी थी।

NCLT ने अब नागर विमानन महानिदेशालय (DGCA) और उड्डयन मंत्रालय को 90 दिन का वक्त दिया है। ताकि वे जेट एयरवेज की उड़ानों के लिए मार्ग और समय आवंटित कर सकें। कर्ज के चलते दो साल पहले बंद जेट एयरवेज का संचालन दोबारा चालू करने के लिए कालरॉक-जालान ने 1,375 करोड़ के निवेश का प्रस्ताव दिया है।

बड़े भाई ने कहा-बचपन से ही क्रिएटिव थे, दुनियाभर में कारोबार फैलाना चाहते थे
बड़े भाई नारायण जालान ने कहा- मेरे और छोटे भाई विशाल जालान के साथ मुरारी लाल अपर बाजार की गलियों में कागज का हवाई जहाज उड़ाया करते थे कागज का जहाज उड़ाते-उड़ाते आज मुरारी लाल ने जेट एयरवेज का अधिग्रहण कर लिया। पिता गणेश प्रसाद जालान कागज के कारोबारी थे और उनका यह पुश्तैनी कारोबार था।

नारायण जालान ने कहा-मुरारी बचपन से ही क्रिएटिव था। उसकी सोच हमेशा समय से आगे रहती। जब 14-15 साल का था, उसी समय से नए-नए बिजनेस का आइडिया उसके दिमाग में घूमते रहता था। 1988 में चर्च कॉम्प्लेक्स में क्यूएसएस नाम से फोटो कलर लैब खोला। फिर बीआईटी मेसरा में कैमरे बनाने का प्लांट लगाया। 4-5 साल रांची में यह काम करने के बाद वह कुछ बड़ा करना चाहता था। इसलिए नए-नए कारोबार में वह प्रयोग करता रहा। दुनियाभर में कारोबार फैलाना उसका सपना था। जेट एयरवेज का मालिक बन उसने इसे साबित कर दिया।

रांची से निकलकर यूएई में बनाई पहचान
यूएई में मुरारी लाल जालान एमजे डेवलपर्स कंपनी के मालिक हैं। पुश्तैनी पेपर के कारोबार को वे काफी ऊपर ले गए। उन्होंने जेके पेपर और बल्लारपुर इंडस्ट्रीज के लिए भी काम किया था। उन्होंने रियल एस्टेट, माइनिंग, ट्रेडिंग, कंस्ट्रक्शन, एफएमसीजी, ट्रेवल एंड टूरिज्म और इंडस्ट्रियल वर्क्स जैसे सेक्टर्स में निवेश किया है। निवेश भारत, रूस, उज्बेकिस्तान समेत कई देशों में है।

जेट के पास 180 विमानों का बेड़ा, 3200 कर्मी थे
जेट के पास 700 मार्गों पर 180 विमानों का बेड़ा था। जबकि 3,200 कर्मचारी थे। इनमें 240 पायलट, 110 इंजीनियर और 650 चालक दल के सदस्य थे। कंसोर्टियम ने 30 विमानों के साथ जेट एयरवेज को पूरी तरह से सर्विस एयरलाइंस के तौर पर पुन: स्थापित करने की योजना दी है। नेशनल कंपनीज लॉ ट्रिब्यूनल ने बंद पड़ी जेट एयरवेज को 90 दिन में उड़ान का स्लॉट देने का निर्देश दिया है।

Friday, June 18, 2021

अग्रवाल समाज एक बुद्धिमान समाज

*अग्रवाल समाज*
*एक बुद्धिमान समाज*
********************
*यह वाक्या, बात उस समय का है जब बादशाह अकबर थे, एक दिन उन्होंने वीरबल से पूँछा, वीरबल हिंदुस्तान में सबसे बुद्धिमान समाज कौन सा है।*
*वीरबल :- हुजूर "अग्रवाल" सबसे बुद्धिमान समाज है।*
*अकबर तो हर बात का प्रमाण चाहते थे*
*अकबर:- हमें इसका दीदार (प्रैक्टिकल) रूबरू कराओ*
*वीरबल ने सभी समाज और जातियों के दो दो लोगों को लाल किले में बुलाया, जब सब लोग लाल किले के दीवाने आम में आये तो दोनों "अग्रवाल" भाई सबसे आगे बैठे, जो अकबर के बिल्कुल नजदीक (अगर कभी मिले तो अकबर पहचान लें)*
*अब वीरबल ने अकबर का फरमान सबको सुनाया*
*वीरबल :- आप सभी लोग अपनी अपनी मूँछे बादशाह को भेंट करें। यह सुन दोनों "अग्रवाल" भाई धीरे धीरे लाइन में सबसे पीछे चले गए।*
*सब लोग आते गए और उनकी मूँछे कटती गई और अंत मे दोनों "अग्रवाल" भाई ही रह गए और अब उनका ही नंबर था।*
**तब "अग्रवाल" भाई बोले कि* *हम मूँछे तो कटवा लें "पर" एक बात हैं*
**वीरबल ने अकबर के कान में* *कहा कि देखिए अब इनके* " *पर" निकलने शुरू हो* *गए हैं **
*अकबर:- बोले क्या बात हैं ।*
*"अग्रवाल"भाई:- हमारे हिन्दू समाज में मूँछे तब कटती हैं जब पिता का स्वर्गवास हो जाता हैं और बड़े होने पर जब हमारी मूँछे निकलती है तब तक कम से कम 10,000 दीनारों का खर्चा आ जाता है। तब अकबर के आदेश पर 10,000 दीनार की थैली दी गई, "अग्रवाल" भाइयों ने थैली को तुरंत पकड़ लिया और बोले कि हुजूर इसकी क्या जरूरत हैं । अकबर ने कहा कि भुगतान पूरा हुआ अब यह शाही मूँछे हो गई है दोनों "अग्रवाल" भाइयों ने इसकी सहमति दी।*
*जब शाही हज्जाम ने उनकी मूंछों पर पानी लगाना शुरू किया, तभी शाही हज्जाम को दो झापड़ रसीद किये हज्जाम चिल्लाया हुजूर मुझे मारा, अकबर के पूछने पर "अग्रवाल" भाई ने कहा कि यह इन शाही मूंछो पर बेअदबी से पानी लगा रहा हैं इसको बोलो की अदब और तमीज से पानी लगाए, अकबर भी हज्जाम से बोले कि अदब से पानी लगाओ।*
*अब जैसे ही शाही हज्जाम ने "अग्रवाल" भाई की मूँछो पर उस्तरा लगाया, तभी उस हज्जाम को चार झापड़ और रसीद किये।*
*अब शहंशाह अकबर आए और बोले कि हमारे हज्जाम को क्यों मारा। तब "अग्रवाल " भाई ने कहा कि हुजूर हमारे बुजुर्गो ने हमे यही शिक्षा दी है कि बादशाह सलामत की इज्जत के लिये अपना सिर कटवा देना पर उनकी मूँछे कभी झुकने नहीं देना। आपने इनका भुगतान कर दिया हैं अब यह शाही मूँछे आपकी हो गई हैं हमारे रहते हुये यह आपकी मूँछे कैसे कोई काट सकता है।*
*बात बादशाह अकबर की समझ मे आई और शाही हज्जाम पर चिल्ला कर बोले कि यह शाही मूँछे है यह नही काटी जाएगी। जब दोनों "अग्रवाल" भाई वहाँ से विदा लेकर चले गए तब वीरबल ने बादशाह से कहा कि दोनों "अग्रवाल"भाई 10,000 दीनार की रकम भी ले गए, आपके शाही हज्जाम को 4, 6 झापड़ मार गए और अपनी मूँछे भी सही सलामत ले गए अब आप ही फैसला करें कि कौन सी जाति बुद्धिमान हैं ।*
**बादशाह अकबर ने कहा वीरबल* *तुम सही कह रहे हो* *वास्तव में "अग्रवाल" समाज* *का बुद्धिमानी में कोई* *जबाब ही नहीं हैं ।"*
*महाराजा अग्रसेन जी की जय*
*धन्यवाद*

MAHESH NAVAMI - महेश नवमी

 MAHESH NAVAMI - महेश नवमी 


Tuesday, June 15, 2021

CHAMPAT RAI - जन्मभूमि ट्रस्ट के सचिव श्री चम्पत राय

CHAMPAT RAI - जन्मभूमि ट्रस्ट के सचिव श्री चम्पत राय 

क्या ऐसे ही किसी ऐरे गैरे को विहिप का सर्वेसर्वा बना दिया जाएगा ? या फिर रामजन्मभूमि ट्रस्ट का महासचिव ? लो आज जानो कौन हैं चम्पत राय जी...


1975 इँदिरा गाँधी द्वारा थोपे आपातकाल के समय बिजनौर के धामपुर स्थित आर एस एम कॉलेज में एक युवा प्रोफेसर चंपत राय, बच्चों को केमिस्ट्री पढ़ा रहे थे, तभी उन्हें गिरफ्तार करने वहां पुलिस पहुंची क्योंकि वह संघ से जुड़े थे। अपने छात्रों के बीच बेहद लोकप्रिय चंपत राय जानते थे कि उनके वहाँ गिरफ्तार होने पर क्या हो सकता है। पुलिस को भी अनुमान था कि छात्रों का कितना अधिक प्रतिरोध हो सकता है।

प्रोफ़ेसर चंपत राय ने पुलिस अधिकारियों से कहा, आप जाइये में बच्चों की क्लास खत्म कर थाने आ जाऊँगा। पुलिस वाले इस व्यक्ति के शब्दों के वजन को जानते थे अतः वे लौट गए।क्लास खत्म कर बच्चों को शांति से घर जाने के लिए कह कर प्रोफेसर चंपत राय घर पहुँचे, माता पिता के चरण छू आशीर्वाद लिया और लंबी जेल यात्रा के लिए थाने पहुंच गए।

18 महीने उत्तर प्रदेश की विभिन्न जेलों में बेहद कष्टकारी जीवन व्यतीत कर जब बाहर निकले तो इस दृढ़प्रतिज्ञ युवा के आत्मबल को संघ के सरसंघचालक श्री रज्जू भैया ने पहचाना और राममंदिर की लड़ाई के लिए अयोध्या को तैयार करने का जिम्मा उनके कंधों पर डाल दिया।

चंपत राय ने अपनी सरकारी नौकरी को लात मार दिया और राम काज में जुट गए। वे अवध के गाँव गाँव गये हर द्वार खटखटाया। स्थानीय स्तर पर ऐसी युवा फौज खड़ी की जो हर स्थिति से लड़ने को तत्पर थी। अयोध्या के हर गली कूँचे ने चंपत राय को पहचान लिया और हर गली कूंचे को उन्होंने भी पहचान लिया। उन्हें अवध का इतिहास, वर्तमान, भूगोल की ऐसी जानकारी हो गई कि उनके साथी उन्हें "अयोध्या की इनसाइक्लोपीडिया" उपनाम से बुलाने लगे।

बाबरी ध्वंस से पूर्व से ही चंपत राय जी ने राम मंदिर पर "डॉक्यूमेंटल एविडेंस" जुटाने प्रारम्भ किये। लाखों पेज के डॉक्यूमेंट पढ़े और सहेजे, एक एक ग्रंथ पढ़ा और संभाला उनका घर इन कागजातों से भर गया, साथ ही हर जानकारी उंन्हे कंठस्थ भी हो गई। के. परासरण और अन्य साथी वकील जब जन्मभूमि की कानूनी लड़ाई लड़ने के लिए मैदान में उतरे तो उन्हें अकाट्य सबूत देने वाले यही व्यक्ति थे।

6 दिसंबर 1992 को मंच से बड़े बड़े दिग्गज नेता कारसेवकों को अनुशासन का पाठ पढ़ा रहे थे। तमाम निर्देश दिए जा रहे थे। ढांचे को नुकसान न पहुचाने की कसमें दी जा रहीं थीं, उस समय चंपत राय जी मंच से कुछ दूर स्थानीय युवाओं के साथ थे। एक पत्रकार ने चंपत राय से पूछा "अब क्या होगा?" उन्होंने हँस कर उत्तर दिया "ये राम की वानर सेना है, सीटी की आवाज पर पी टी करने यहां नहीं आयी...ये जो करने आयी है करके ही जाएगी."
इतना कह उन्होंने एक बेलचा अपने हाथ में लिया और ढांचे की ओर बढ़ गये, फिर सिर्फ जय श्री राम का नारा गूंजा और... इतिहास रच गया। आदरणीय चंपत राय को यूं ही राम मंदिर ट्रस्ट का सचिव नहीं बना दिया गया है। उन्होंने रामलला के श्रीचरणों में अपना सम्पूर्ण जीवन अर्पित किया है। प्यार से उन्हें लोग "रामलला का पटवारी" भी कहते हैं। यह व्यक्ति सनातन का योद्धा है। कोई मुंह फाड़ बकवास करता कायर नहीं।

ढांचा ध्वंस के मुकदमों में कल्याण सिंह जी के बाद चंपत राय ने ही अदालत और जनसामान्य दोनों के सामने सदैव खुल कर उस घटना का दायित्व अपने ऊपर लिया है। चम्पत राय जी कह चुके हैं, जैसे ही राममंदिर का शिखर देख लेंगे युवा पीढ़ी को मथुरा की ज़िमेदारी निभाने को प्रेरित करने में जुट जाएंगे"।

चंपत राय जी धर्म की छोटी से छोटी चीजों का ध्यान रखने वाले तपस्वी और विद्वान हैं। एक बार वे किसी काम से काशी में किन्हीं के यहां रुके, तब रात्रि में देखा तो पाया कि बैड का डायरेक्शन कुछ ऐसा था कि सोते हुए पैर दक्षिण की तरफ हो जा रहे थे, उन्हें एक रात को भी यह स्वीकार नहीं था, रात में ही उन्होंने बैड का डायरेक्शन ठीक करवाया, तभी सोए। जो धोती कुर्ता पहनकर भारत का गाँव गाँव नापने वाला व्यक्ति अपने निजी जीवन में हिन्दू जीवनचर्या की छोटी छोटी बातों का हठ के साथ पालन करता है वह श्रीराममंदिर के संदर्भ में किस हद तक विचारशील और जुझारू होगा, समझा जा सकता है।
 
हरामजादे तो हमेशा रामजादों की पूंछ में आग लगाने की कोशिश करते आए हैं, अंजाम तो उलट पलटि सब लंका जारी ही हुआ है..
जय श्री सियाराम!!!
सम्पादित पोस्ट

साभार : Prakhar Agrawal

Sunday, June 13, 2021

शेखावटी के देशभक्त व्यापारी और यहां की मिट्टी

शेखावटी के देशभक्त व्यापारी और यहां की मिट्टी

राजस्थान के शेखावाटी इलाके के तीन जिलों चूरू, सीकर और झुंझुनू । देश के तमाम बड़े औद्योगिक घराने फिर चाहे वो बिरला हो, सिंघानिया हो, सेकसरिया हो, मित्तल या बजाज हो, डालमिया या रुइया हो, पोद्दार हो, खेतान हो, गोयनका हो, पीरामल हो, झुनझुनवाला हो, चमड़िया हो, नेवटिया हो, सर्राफ हो, मोदी हो, देवरा हो या केडिया, कजारिया हो, केजड़ीवाल हो, जाजोदिया हो, भरतिया हो, बगडिया हो, खेमका हो, सरावगी हो इत्यादि सब इसी शेखावटी माटी के लाल है। इसी माटी ने देश को सबसे ज्यादा वीर सपूत दिए जिन्होंने भारतीय फौज में देश के लिए लड़ते हुए वीरगति पाई। चारो तरफ रेगीस्तानी बीहड़ वाली इस माटी ने देश को ना जाने कितने सपूत दिए।




आश्चर्यजनक रूप से एक सवाल जो हर बार के सफर करते हुए बार बार मेरे मन में आ ही जाता था, वो ये की आखिर क्या खास बात है शेखावटी की इस माटी में जो यहां से निकलने वाला हर छोरा देश का नाम दुनिया भर में रोशन करता है, या फौज में जाता है या व्यापारी बनता है ।

ना यहां पानी की भरमार है, न अनाज की पैदावार ज्यादा है, मिट्टी के टीले रेतीले है। वृक्ष भी फलदार नही है, हवा भी शुष्क है, गर्मी में भीषण गर्मी और ठंड में भीषण ठंड यहां के लोगो की मजबूरी है। पढ़ाई के लिए भी मशक्कत ज्यादा है, दूर दराज गाँव के बच्चों को शहर कस्बे तक पढ़ाई के लिए आने में काफी दिक्कतों का सामाना करना पड़ता है।

फिर कैसे यहां के बच्चे देश के टॉप इंडस्ट्रलिस्ट, चार्टर्ड अकाउंटेंट, आईएएस, लीडर, बिजनेसमैन, व्यापारी बनते है।

लोगो से बात की, हवेलियों में, ढाबो पर रुका, बातचीत में लोगो का गजब का आत्मविश्वास, अभावों के चलते कुछ कर दिखाने की अदम्य इच्छाशक्ति मुझे सहज नज़र आई।

कोई बच्चा नौकरी की बात नही कर रहा था, सब या तो व्यापारी या बड़े ब्यूरोक्रेट या सीए बनने की बात कर रहे थे।

झुंझुनू में एक गाँव है मंडावा, “इंडियन एक्सप्रेस” अखबार के मालिक रामनाथ जी गोयनका इसी मंडावा गाँव से है, मुम्बई के कई बिल्डर व व्यापारी भी इसी गांव से है, बगल में दूसरा गांव है बिसाऊ, मुम्बई की बड़ी चॉइस कम्पनी के पाटोदिया, पोद्दार, अग्रवाल इसी गाव के है, झुंझुनू के सर्राफ, केडिया, मोदी, पोद्दार और झुंझुनूं जिले के एक कस्बे पिलानी के देश के मशहूर औद्योगिक घराने आदित्य बिड़ला का परिवार बिलॉन्ग करता है, डालमिया भी यही पास में चिड़ावा के है, बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी और बजाज कंपनी वाले भी फतेहपुर के है तो, मुरली देवरा का परिवार सीकर के लक्ष्मणगढ़ से बिलॉन्ग करते है, नवलगढ़ से सेकसरिया , मोरारका, जयपुरिया, मोर, परसरामपुरिया, पाटोदिया,कारीवाला,बूबना, और सेठ अानंदीराम पोद्दार परिवार, मलसीसर से लक्ष्मी मित्तल और रामगढ़ से रुइया परिवार की जड़े जुड़ी है। चुरू के जैन सरावगी और सीकर जिले के सेठ जमनालाल बजाज का परिवार और भी कई अनगिनत परिवार है जिन्होंने देश विदेश में अपना नाम रोशन किया है।

पता करने पर यर बात पता चली की शेखावटी इलाके के तीनों जिलो में वैसे तो राजपूतो का वर्चस्व रहा है और है लेकिन यहां की वैश्य याने बनिया जिन्हें मारवाड़ी भी कहते है, इन्होंने दुनिया भर में अपने व्यापारिक कला के दम पर राज किया।इनको व्यापारिक कार्य कुशलता से ज्यादा कुछ कर दिखाने की ललक ने इन्हें विश्वपटल पर पहचान दिलाने में बड़ी भूमिका निभाई।मारवाड़ी देश की प्रगति में प्रमुख भागीदार हैं।

जिस सीकर, चूरू और झुंझुनू में सुविधाओं का अभाव हो वहां जहा कुछ पाने को ना हो इस इलाके के नौजवान जब मुम्बई, दिल्ली, कलकत्ता गए तब इनके पास खोने को कुछ नही था।इन्होंने जी भर कर रात दिन मेहनत की और कड़ी से कड़ी जोड़ते हुए बड़ा एम्पायर खड़ा किया।इनकी एक सबसे बड़ी खासियत ये रही कि ये अपने इलाके शेखावटी लोगो को व्यापार धंधे में जोड़ते गए उनको आगे बढ़ाते गए, नए लोगो की टांग खींचने का काम नही किया बल्कि उन्हें सम्बल देकर मेहनत करना सिखाया और उनका मुकाम बनाया।

सीकर, चूरू और झुंझुनू जिलो को श्री झुनझुनूवाली रानी सती दादी, श्री खाटू श्यामजी, श्री सालासर बालाजी, श्री शाकम्बरी माता, श्री जीण माता, श्री ढा़ँढ़णवाली सती दादी जी, पल्लू कोट वाली ब्रह्मणी माँ का पूरा आशीर्वाद रहा।

कहते है ना कि, अगर आप धन को कुआँ भरकर भी रखोगे और मेहनत लगन से उसे और भरने के बजाय उसे खाली करते रहोगे तो एक दिन धन से भरा कुआँ भी खाली हो जाएगा।

शेखावटी के वीर राजपूतो ने जहाँ देश के माटी की रक्षा की वही यहां के व्यापारियों ने देश की अर्थव्यवस्था को मजबूत करने में अपना अमूल्य योगदान दिया. 

साभार : ugtabharat.com 

Sunday, June 6, 2021

VIPUL SHAH - विपुल शाह: गुजराती थिएटर से शुरुआत, ‘व़क्त'' के साथ चलते बन गए सफल फिल्मों के ‘कमांडो

VIPUL SHAH - विपुल शाह: गुजराती थिएटर से शुरुआत, ‘व़क्त'' के साथ चलते बन गए सफल फिल्मों के ‘कमांडो 


विपुल शाह का टेलीविजन धारावाहिक ‘एक महल हो सपनों का’ 1000 एपिसोड पूरे करने वाला पहला धारावाहिक था। इसने एक तरह से बालाजी के लंबे धारावाहिक ‘क्योंकि सास भी कभी बहू थी’ के लिए रास्ता तैयार किया था। विपुल की अगली फिल्म ‘वक्त’ भी एक गुजराती नाटक पर आधारित थी, जिसे उनके दोस्त और साझेदार आतिश कपाड़िया ने लिखा था। शाह कहते हैं कि वे एक रोमांटिक फिल्म बनाना नहीं चाहते थे क्योंकि इस श्रेणी की फिल्म यश चोपड़ा से बेहतर कोई और नहीं बना सकता। इसलिए उन्होंने ड्रामा को चुना।

क्या यही वह समय जब आपने पहली बार अपनी पत्नी शेफाली शाह (जिन्होंने ‘वक्त’ में अमिताभ की पत्नी की भूमिका निभाई) के साथ काम किया था? इसके जवाब में विपुल ने कहा, ‘हमने पहले एक फिल्म की थी, लेकिन उस समय हमारी शादी नहीं हुई थी। लेकिन इस बार स्थिति थोड़ी अलग इसलिए थी क्योंकि वे हर चीज की कुछ ज्यादा ही आलोचना कर रही थीं। यहां तक कि अमिताभ बच्चन ने उन्हें ‘मालकिन’ के रूप में संबोधित करना शुरू कर दिया था। एक बार तो मजाक में कह ही दिया था, ‘निर्देशक तो ठीक हैं ना, कि उन्हें भी बदलना है?’ हालांकि कैमरे के सामने उनके साथ कोई विशेष व्यवहार नहीं किया गया।’

वर्षों से विपुल शाह निर्देशक की तुलना में एक निर्माता के रूप में अधिक सक्रिय रहे हैं। अपनी ‘कमांडो’ सिरीज की फिल्मों से उन्हें खास पहचान मिली है। अपनी कलात्मक संतुष्टि के लिए उन्होंने ‘जिंदगी एक पल’ और ‘कुछ लव जैसा’ जैसी छोटी परियोजनाओं पर भी काम किया।

यह पूछे जाने पर कि आज हर निर्देशक अपनी स्क्रिप्ट खुद लिखना चाहता है। क्या आप ऐसा नहीं चाहते? इसके जवाब में विपुल शाह कहते हैं, ‘मैं खुद अपनी स्क्रिप्ट इसलिए लिखना नहीं चाहता क्योंकि इस काम में आतिश कपाड़िया एकदम परफेक्ट हैं। जब वह मुझे डायलॉग शीट देते हैं, तो उन्हें सीन नंबर / लोकेशन / कैरेक्टर के नाम का उल्लेख करने की जरूरत नहीं होती है। कोष्ठकों के अंदर कोई निर्देश नहीं होते हैं, क्योंकि उन्हें पता है कि मैं इसे ठीक उसी तरह समझ लूंगा और क्रियान्वित भी कर लूंगा जिस तरह से उन्होंने इसकी कल्पना की है।’

क्या इस बात की चिंता नहीं थी कि केवल गुजराती टीम के साथ काम करने से आप स्थानीय भाषा के ब्रांड बनकर रह जाएंगे? इस सवाल पर वे मुस्कुराते हुए कहते हैं, ‘मुख्य धारा हमेशा क्षेत्रीय धारा से सुपीरियर रही है, लेकिन जहां तक कॉन्टेंट की बात है, क्षेत्रीय कॉन्टेंट हमेशा मुख्य धारा से बेहतर रहा है। आंखें मूवी को लेकर शुरू में मुझ पर संदेह किया गया क्योंकि वह गुजराती नाटक का फिल्मी वर्जन था, लेकिन इसको लेकर मैंने कभी चिंता नहीं की। मुझे अपनी जड़ों पर गर्व है और एक समय ऐसा भी आएगा जब मुख्यधारा को हम स्थानीय भाषी लोगों पर गर्व होगा।’

विपुल शाह का टेलीविजन धारावाहिक ‘एक महल हो सपनों का’ 1000 एपिसोड पूरे करने वाला पहला धारावाहिक था। इसने एक तरह से बालाजी के लंबे धारावाहिक ‘क्योंकि सास भी कभी बहू थी’ के लिए रास्ता तैयार किया था। विपुल की अगली फिल्म ‘वक्त’ भी एक गुजराती नाटक पर आधारित थी, जिसे उनके दोस्त और साझेदार आतिश कपाड़िया ने लिखा था। शाह कहते हैं कि वे एक रोमांटिक फिल्म बनाना नहीं चाहते थे क्योंकि इस श्रेणी की फिल्म यश चोपड़ा से बेहतर कोई और नहीं बना सकता। इसलिए उन्होंने ड्रामा को चुना।

फि ल्म इंडस्ट्री ऐसे कलाकारों से भरी पड़ी है, जिन्होंने अपने कॅरिअर की शुरुआत थिएटर से की थी। फिल्म निर्माता व निर्देशक विपुल अमृतलाल शाह भी इनमें से एक हैं। इन्होंने गुजराती थिएटर से अपना कॅरिअर शुरू किया और फिर गुजराती टेली सीरियल्स बनाने लगे। एक निर्देशक के तौर पर ‘दरिया-छोरू’ उनकी पहली गुजराती फिल्म थी। और फिर वे मुख्यधारा की सिनेमा में आ गए। बाद के वर्षों में उन्होंने ‘नमस्ते लंदन’ और ‘एक्शन रीप्ले’ जैसी रोमांटिक कॉमेडी फिल्में बनाकर अपना बैनर स्थापित किया। फिर ‘हॉलिडे’ और ‘फोर्स’ जैसी सफल एक्शन थ्रिलर फिल्मों का निर्माण किया।

अगले सप्ताह विपुल शाह 48 साल के हो जाएंगे। मेरी स्मृतियों में उनकी कुछ पुरानी यादें आज भी ताजा हैं। उन्होंने कहा था, ‘मुंबई के पश्चिमी उपनगर में स्थित नरसी मोंजे कॉलेज में पढ़ने वाले हममें से अधिकांश के लिए भाईदास थिएटर एक तरह का स्वप्न स्थल हुआ करता था। 19 साल की उम्र में मैं गुजराती थिएटर में शामिल हो गया। 21 साल की उम्र में मैंने गुजराती नाटक ‘अंधादो पाटो’ का निर्देशन किया। यह नाटक आतिश कपाड़िया ने लिखा था। और तब से ही हम दोनों रचनात्मक गतिविधियों में साथ रहे हैं, फिर चाहे वह थिएटर हो या टेलीविजन या फिल्म।’

AGRA SAHAYTA KENDRA

 AGRA SAHAYTA KENDRA




Thursday, June 3, 2021

भारत में व्यापारी की स्थिति

भारत में व्यापारी की स्थिति

अक्सर बाबा रामदेव को लाला , व्यापारी और बनिया कहा जाता रहा है। मैं खुद भी एक व्यापारी हूं , लाला हूं और जन्म और कर्म दोनों से बनिया हूं। और मैंने सदैव इस बात पर गर्व का अनुभव किया है कि मैं उस समुदाय से आता हूं जो भारत के आर्थिक चक्र को गतिमान रखने में सूक्ष्म योगदान देती है ।

लेकिन आजकल ऐसा वातावरण बनाए जा रहा है कि यह सब विशेषण एक गाली की लग रहे हैं। मैं अक्सर सोचता था कि सारे बड़े बिलेनियर या बड़ी बडी कंपनी अमेरिका में क्यों होती हैं जैसे गूगल , माइक्रोसॉफ्ट , एप्पल , फेसबुक , अमेजॉन , टेसला , वॉलमार्ट , बर्क शायर हेथवे , डोमिनोज , मैकडोनाल्ड , पिज़्ज़ा हट , KFC , एडोब , डेल , IBM , हेवलेट पेकर्ड, ऑरेकल , कोग्निजेंट, फोर्ड , जनरल मोटर्स , जे पी मोर्गेंन, सिटी ग्रुप , अमेरिकन एक्सप्रेस , पे पाल , नाइके , फायजर आदि आदि ।

इसका कारण यह था कि वहां पर एंटरप्रेन्योरशिप को बढ़ावा दिया जाता है जबकि हमारे देश में बच्चों को शुरू से ही यह सिखाया जाता है कि तुम्हारे जीवन का एकमात्र उद्देश्य पढ़ लिखकर सरकारी नौकरी हासिल करना है। व्यापारी या लाला की छवि सदैव एक लालची व्यक्ति की बनायी गई है ।

आज भी अंबानी अदानी जैसे उद्योगपति इतना टैक्स भरने के बावजूद और इतने लोगों को रोजगार देने के बावजूद कुछ लोगों के निशाने पर बने रहते हैं और गाली खाते रहते हैं ।

जहां तक बाबा रामदेव की बात है तो चूंकि उनकी कर्मभूमि उत्तराखंड है ,इस लिये मैं इस बात को अच्छी तरह से जानता हूं कि हरिद्वार में हजारों घरों का चूल्हा बाबा रामदेव की कंपनी पतंजलि के कारण चलता है ।बाबा की कंपनी में हजारों कर्मचारी हैं जिनका वेतन उनकी योग्यता के अनुसार ₹10000 से लेकर लाखों रुपए महीने तक है.  उन सब कर्मचारियों के वेतन का एक हिस्सा लोकल मार्केट मे जाता है जिस से अर्थिक चक्र चलता रहता है और समाज मे खुश हाली बनी रहती है । फिर उस से इतनी चिड क्यों ।

साभार: गोविन्द अग्रवाल जी

VISHVA MODI - A YOUNG ENTERPRENEUR

VISHVA MODI - A YOUNG ENTERPRENEUR

प्रेग्नेंसी के दौरान खाली वक्त में ज्वेलरी डिजाइन करना शुरू किया, आज हर महीने लाख रुपए कमा रहीं, 800 महिलाओं को ट्रेनिंग भी दी

आज की पॉजिटिव खबर में कहानी अहमदाबाद की रहने वाली विश्वा मोदी की। विश्वा एक प्राइवेट कंपनी में काम करती थीं। 2016 में प्रेग्नेंसी की वजह से उनका ऑफिस जाना बंद हो गया। वे घर पर रहने लगीं। इस दौरान उनका ज्यादातर वक्त खाली गुजरता था। उन्होंने खुद का मन बहलाने के लिए कुछ काम करने का प्लान किया। विश्वा ने ज्वेलरी डिजाइनिंग का काम करना शुरू किया। आगे चलकर उन्होंने इसी काम को बिजनेस में बदल दिया। आज विश्वा इससे हर महीने एक लाख रुपए कमा रही हैं।

ज्वेलरी बेचने वाले बच्चे को देख आया आइडिया

विश्वा बताती हैं कि कुछ साल पहले मार्केट में एक लड़के को मैंने ज्वेलरी बेचते देखा था। उसकी उम्र महज 12 साल थी। पूछने पर उसने बताया कि वह खुद ही ज्वेलरी डिजाइन करता है और फिर मार्केट में बेचता है। हालांकि तब मैं जॉब करती थी। इसलिए उस वक्त काम शुरू करने के बारे में कोई निर्णय नहीं लिया। वे बताती हैं कि प्रेग्नेंसी के दौरान मैं जब घर पर रहने लगी तो मुझे लगा कि कुछ काम करना चाहिए। बहुत सोचने के बाद मुझे उस लड़के का ख्याल आया। मुझे लगा कि जब वो 12 साल का लड़का ज्वेलरी डिजाइन करके बेच सकता है, तो मैं ये काम क्यों नहीं कर सकती।


विश्वा ने 700 से ज्यादा रिटेलर्स से भी टाइअप किया है। वे ज्वेलरी डिजाइन करके उन्हें देती हैं और रिटेलर्स उसकी मार्केटिंग करते हैं।

300 रुपए से शुरुआत की

विश्वा बताती हैं कि मैंने सिर्फ 300 रुपए से ज्वेलरी मेकिंग का काम शुरू किया था। ज्वेलरी डिजाइन करने के बाद मैंने मार्केट में एक दुकानदार से बात की। उन्हें मेरी डिजाइनिंग पसंद आई। इसके बदले उन्होंने 1200 रुपए दिए। इससे मेरा आत्मविश्वास जगा। मुझे लगा कि ये काम प्रोफेशनल लेवल पर शुरू किया जा सकता है। धीरे-धीरे मैंने काम बढ़ाना शुरू किया। एक के बाद एक ऑर्डर मिलने शुरू हो गए और आमदनी भी बढ़ती गई।

वे कहती हैं कि बच्चे को जन्म देने के बाद भी मैंने नौकरी करने का प्लान नहीं किया। मैंने तय किया कि अब मैं अपने इसी काम को आगे बढ़ाऊंगी। मैं मार्केट से रॉ मटेरियल खरीदकर घर में ज्वेलरी डिजाइन करती हूं। वे बताती हैं कि मार्केटिंग के लिए मैंने सोशल मीडिया का सहारा लिया। मैं अलग-अलग ज्वेलरी डिजाइन करके सोशल मीडिया पर पोस्ट करने लगी। इसका फायदा ये हुआ कि जल्द ही मुझे अहमदाबाद के साथ ही दूसरे शहरों से भी ऑर्डर मिलने लगे। पिछले करीब चार साल से विश्वा सोशल मीडिया के जरिए मार्केटिंग कर रही हैं।

इसके साथ ही उन्होंने 700 से ज्यादा रिटेलर्स से भी टाइअप किया है। वे ज्वेलरी डिजाइन करके उन्हें देती हैं और रिटेलर्स उसकी मार्केटिंग करते हैं।

लॉकडाउन में महिलाओं को ट्रेनिंग देना शुरू किया


विश्वा मार्केट से रॉ मटेरियल खरीदकर घर में ज्वेलरी डिजाइन करती हैं। इसके बाद उसकी मार्केटिंग करती हैं।

विश्वा बताती हैं कि पिछले साल लगे लॉकडाउन के दौरान हमने लाखों लोगों को बेरोजगार होते देखा। इसी दौरान उन्होंने विचार किया कि क्यों न अपना हुनर ऐसे लोगों को भी दिया जाए, जिससे वे घर बैठे ही कमाई कर सकें। खासतौर पर महिलाएं। इसके बाद उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म और अन्य चैनल के जरिए लोगों को ज्वेलरी मेकिंग की ट्रेनिंग देनी शुरू कर दी। अब तक करीब 800 लोग उनसे ट्रेनिंग लेकर इस बिजनेस से जुड़ चुके हैं।

विश्वा बताती हैं कि मेरा टारगेट 10 लाख महिलाओं को ट्रेंड करने का है। इसके लिए मैं फ्री वेबिनार भी करती हूं, जिससे अधिक से अधिक महिलाएं सीख सकें और अपना खुद का बिजनेस स्टार्ट कर सकें। उन्होंने यू-ट्यूब चैनल पर अपने कई वीडियोज भी अपलोड किए हैं, जिससे महिलाओं को ज्वेलरी मेकिंग सीखने में मदद मिल सके। इंटरनेट के जरिए विश्वा से आज हजारों लोग जुड़े हुए हैं। इतना ही नहीं, कई विदेशी महिलाएं भी उनसे ऑनलाइन कोचिंग ले रही हैं।

पति का पूरा सपोर्ट मिला


विश्वा के पति उनके काम में भरपूर सपोर्ट करते हैं। वे अपनी नौकरी छोड़ कर उनके काम को आगे बढ़ा रहे हैं।

विश्वा बताती हैं कि मेरे पति प्रोफेसर थे। जब मैंने उनसे इस बिजनेस के बारे में बात की थी तो उनकी तरफ से मुझे बहुत सपोर्ट मिला। उनके बैकसाइड सपोर्ट की वजह से ही आज मैं यहां तक पहुंची हूं। और खुद के बिजनेस के साथ-साथ दूसरे लोगों को भी इंस्पायर कर रही हूं, उन्हें ट्रेनिंग दे रही हूं।

इतना ही नहीं, विश्वा के बिजनेस को आगे ले जाने के लिए उनके पति ने अपनी नौकरी भी छोड़ दी। अब वे भी विश्वा के बिजनेस को आगे ले जाने में उनका सहयोग कर रहे हैं। विश्वा बताती हैं कि हमारी कोशिशों से आज काफी लोग मुसीबतों से निकलकर खुद का बिजनेस कर रहे हैं। 

BASANT KHETAN - एक पर्यावरणविद

 BASANT KHETAN - एक पर्यावरणविद 



BASANT KHETAN - एक पर्यावरणविद

BASANT KHETAN - एक पर्यावरणविद 


 

Baniyas - The most underrated community yet contributed most in all the fields.

Baniyas - The most underrated community yet contributed most in all the fields.


From left to right -

Kothari Brothers
Lala Lajpat Rai
Bhamashah
Sir Gangaram
Mahatma Gandhi
Ramnath Goyanka
Ashok Singhal
Hanuman Prasad Poddar
Birla Family

साभार: saffron cheriot