VIPUL SHAH - विपुल शाह: गुजराती थिएटर से शुरुआत, ‘व़क्त'' के साथ चलते बन गए सफल फिल्मों के ‘कमांडो
विपुल शाह का टेलीविजन धारावाहिक ‘एक महल हो सपनों का’ 1000 एपिसोड पूरे करने वाला पहला धारावाहिक था। इसने एक तरह से बालाजी के लंबे धारावाहिक ‘क्योंकि सास भी कभी बहू थी’ के लिए रास्ता तैयार किया था। विपुल की अगली फिल्म ‘वक्त’ भी एक गुजराती नाटक पर आधारित थी, जिसे उनके दोस्त और साझेदार आतिश कपाड़िया ने लिखा था। शाह कहते हैं कि वे एक रोमांटिक फिल्म बनाना नहीं चाहते थे क्योंकि इस श्रेणी की फिल्म यश चोपड़ा से बेहतर कोई और नहीं बना सकता। इसलिए उन्होंने ड्रामा को चुना।
क्या यही वह समय जब आपने पहली बार अपनी पत्नी शेफाली शाह (जिन्होंने ‘वक्त’ में अमिताभ की पत्नी की भूमिका निभाई) के साथ काम किया था? इसके जवाब में विपुल ने कहा, ‘हमने पहले एक फिल्म की थी, लेकिन उस समय हमारी शादी नहीं हुई थी। लेकिन इस बार स्थिति थोड़ी अलग इसलिए थी क्योंकि वे हर चीज की कुछ ज्यादा ही आलोचना कर रही थीं। यहां तक कि अमिताभ बच्चन ने उन्हें ‘मालकिन’ के रूप में संबोधित करना शुरू कर दिया था। एक बार तो मजाक में कह ही दिया था, ‘निर्देशक तो ठीक हैं ना, कि उन्हें भी बदलना है?’ हालांकि कैमरे के सामने उनके साथ कोई विशेष व्यवहार नहीं किया गया।’
वर्षों से विपुल शाह निर्देशक की तुलना में एक निर्माता के रूप में अधिक सक्रिय रहे हैं। अपनी ‘कमांडो’ सिरीज की फिल्मों से उन्हें खास पहचान मिली है। अपनी कलात्मक संतुष्टि के लिए उन्होंने ‘जिंदगी एक पल’ और ‘कुछ लव जैसा’ जैसी छोटी परियोजनाओं पर भी काम किया।
यह पूछे जाने पर कि आज हर निर्देशक अपनी स्क्रिप्ट खुद लिखना चाहता है। क्या आप ऐसा नहीं चाहते? इसके जवाब में विपुल शाह कहते हैं, ‘मैं खुद अपनी स्क्रिप्ट इसलिए लिखना नहीं चाहता क्योंकि इस काम में आतिश कपाड़िया एकदम परफेक्ट हैं। जब वह मुझे डायलॉग शीट देते हैं, तो उन्हें सीन नंबर / लोकेशन / कैरेक्टर के नाम का उल्लेख करने की जरूरत नहीं होती है। कोष्ठकों के अंदर कोई निर्देश नहीं होते हैं, क्योंकि उन्हें पता है कि मैं इसे ठीक उसी तरह समझ लूंगा और क्रियान्वित भी कर लूंगा जिस तरह से उन्होंने इसकी कल्पना की है।’
क्या इस बात की चिंता नहीं थी कि केवल गुजराती टीम के साथ काम करने से आप स्थानीय भाषा के ब्रांड बनकर रह जाएंगे? इस सवाल पर वे मुस्कुराते हुए कहते हैं, ‘मुख्य धारा हमेशा क्षेत्रीय धारा से सुपीरियर रही है, लेकिन जहां तक कॉन्टेंट की बात है, क्षेत्रीय कॉन्टेंट हमेशा मुख्य धारा से बेहतर रहा है। आंखें मूवी को लेकर शुरू में मुझ पर संदेह किया गया क्योंकि वह गुजराती नाटक का फिल्मी वर्जन था, लेकिन इसको लेकर मैंने कभी चिंता नहीं की। मुझे अपनी जड़ों पर गर्व है और एक समय ऐसा भी आएगा जब मुख्यधारा को हम स्थानीय भाषी लोगों पर गर्व होगा।’
विपुल शाह का टेलीविजन धारावाहिक ‘एक महल हो सपनों का’ 1000 एपिसोड पूरे करने वाला पहला धारावाहिक था। इसने एक तरह से बालाजी के लंबे धारावाहिक ‘क्योंकि सास भी कभी बहू थी’ के लिए रास्ता तैयार किया था। विपुल की अगली फिल्म ‘वक्त’ भी एक गुजराती नाटक पर आधारित थी, जिसे उनके दोस्त और साझेदार आतिश कपाड़िया ने लिखा था। शाह कहते हैं कि वे एक रोमांटिक फिल्म बनाना नहीं चाहते थे क्योंकि इस श्रेणी की फिल्म यश चोपड़ा से बेहतर कोई और नहीं बना सकता। इसलिए उन्होंने ड्रामा को चुना।
फि ल्म इंडस्ट्री ऐसे कलाकारों से भरी पड़ी है, जिन्होंने अपने कॅरिअर की शुरुआत थिएटर से की थी। फिल्म निर्माता व निर्देशक विपुल अमृतलाल शाह भी इनमें से एक हैं। इन्होंने गुजराती थिएटर से अपना कॅरिअर शुरू किया और फिर गुजराती टेली सीरियल्स बनाने लगे। एक निर्देशक के तौर पर ‘दरिया-छोरू’ उनकी पहली गुजराती फिल्म थी। और फिर वे मुख्यधारा की सिनेमा में आ गए। बाद के वर्षों में उन्होंने ‘नमस्ते लंदन’ और ‘एक्शन रीप्ले’ जैसी रोमांटिक कॉमेडी फिल्में बनाकर अपना बैनर स्थापित किया। फिर ‘हॉलिडे’ और ‘फोर्स’ जैसी सफल एक्शन थ्रिलर फिल्मों का निर्माण किया।
अगले सप्ताह विपुल शाह 48 साल के हो जाएंगे। मेरी स्मृतियों में उनकी कुछ पुरानी यादें आज भी ताजा हैं। उन्होंने कहा था, ‘मुंबई के पश्चिमी उपनगर में स्थित नरसी मोंजे कॉलेज में पढ़ने वाले हममें से अधिकांश के लिए भाईदास थिएटर एक तरह का स्वप्न स्थल हुआ करता था। 19 साल की उम्र में मैं गुजराती थिएटर में शामिल हो गया। 21 साल की उम्र में मैंने गुजराती नाटक ‘अंधादो पाटो’ का निर्देशन किया। यह नाटक आतिश कपाड़िया ने लिखा था। और तब से ही हम दोनों रचनात्मक गतिविधियों में साथ रहे हैं, फिर चाहे वह थिएटर हो या टेलीविजन या फिल्म।’
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