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Thursday, May 19, 2022

SHISHIR GUPTA - A INDUSTRIALIST OF KHANDWA

 

SHISHIR GUPTA - A INDUSTRIALIST OF KHANDWA


VAISHYA FREEDOM FIGHTER - वैश्य स्वतंत्रता सेनानी

VAISHYA FREEDOM FIGHTER - वैश्य स्वतंत्रता सेनानी

सेठ रामजी दास गुड़वाला (कुत्तों के सामने जिंदा छुड़वाया फिर उसी घायल अवस्था में फांसी)
सेठ हुकुमचंद जैन (फांसी)
अमरचंद बांठिया (फांसी)
लाला मटोलचंद अग्रवाल
लाला झंकुमल सिंघल (फांसी)
सेठ हुकुमचंद अग्रवाल जैन (फांसी)
सेवा राम मोर माहेश्वरी (फांसी)
कृष्ण दास शारदा माहेश्वरी (फांसी)
सेठ राम प्रकाश अग्रवाल (पेशवा को आर्थिक मदद करने वाले)
2000 व्यापारी 30 मार्च 1864 को नगरसेठ चम्पालाल के नेतृत्व में कर्नल ईडन के घर विरोध प्रदर्शन के लिए पहुंचे
लाला हरदयाल और लाला जयदयाल (कोटा राजवंश के अधिकारी जिन्होंने अपने राजा के खिलाफ जाकर अंग्रेजों के विरुद्ध युद्ध किया)
भारतेंदु हरिश्चंद्र - अपनी प्रसिद्ध रचना भारत दुर्दशा लिख कर कई क्रांतिकारियों की प्रेरणा बने।
मुख्य स्वतंत्रता संग्राम
लाला लाजपत राय
हनुमान प्रसाद पोद्दार
राम मनोहर लोहिया
महात्मा गांधी
दामोदर दास राठी (माहेश्वरीयों के भामाशाह)
भगवान दास बागला
सेठ कन्हैलाल चितलान्गीया
कृष्ण दास जाजू
अर्जुन लाल सेठी
विनोबा भावे
जमनालाल बजाज
घनश्याम दास बिड़ला
देशबंधु गुप्ता
मनमंथ नाथ गुप्ता (काकोरी कांड)
बादल गुप्ता और दिनेश गुप्ता (विनय बसु की जोड़ी के साथ मिलकर बंगाल के लाल-बाल-पाल)
डॉ भगवान दास
लाला जगत नारायण
बाबू बनारसी दास गुप्ता
ज्योतिप्रसाद अग्रवाल
गोपीनाथ साहा
बलवंत राय मेहता

SABHAR: वैश्य सेना वैश्यवंशी

Saturday, May 14, 2022

Wednesday, May 4, 2022

DHARMDAS VAISHYA

DHARMDAS VAISHYA 


भविष्य पुराण के अनुसार प्राचीन काल में एक धर्मदास नाम का वैश्य था। उसकी सदाचार, देव और ब्राह्मणों के प्रति गहरी श्रद्धा थी। अक्षय तृतीया पर उस वैश्य ने गंगा में स्नान करके विधिपूर्वक देवी-देवताओं की पूजा की, व्रत के दिन स्वर्ण, वस्त्र तथा दिव्य वस्तुएँ ब्राह्मणों को दान में दी। अनेक रोगों से ग्रस्त तथा वृद्ध होने के बावजूद भी उसने उपवास करके धर्म-कर्म और दान पुण्य किया। यही वैश्य दूसरे जन्म में कुशावती का राजा बना। कहते हैं कि अक्षय तृतीया के दिन किए गए दान व पूजन के कारण वह बहुत धनी प्रतापी बना। वह इतना धनी और प्रतापी राजा था कि त्रिदेव तक उसके दरबार में अक्षय तृतीया के दिन ब्राह्मण का वेष धारण करके उसके महायज्ञ में शामिल होते थे। अपनी श्रद्धा और भक्ति का उसे कभी घमंड नहीं हुआ और महान वैभवशाली होने के बावजूद भी वह धर्म मार्ग से विचलित नहीं हुआ। माना जाता है कि यही राजा आगे चलकर राजा चंद्रगुप्त के रूप में पैदा हुआ।


SABHAR: PRAYAG AGRAWAL

JAIN AGRAWAL HERITAGE - दिगंबर जैन बड़ा मंदिर, हस्तिनापुर (मेरठ) उत्तरप्रदेश

JAIN AGRAWAL HERITAGE - दिगंबर जैन बड़ा मंदिर, हस्तिनापुर (मेरठ) उत्तरप्रदेश

इस मंदिर का निर्माण राजा हरसुख राय ने करवाया था। राजा हरसुख राय मूल रूप से हरयाणा के हिसार के अग्रवाल जैन परिवार से थे। इन्होंने जैन धर्म के उत्थान के लिए बहुत कार्य किया.. राजा हरसुख राय ने सन् 1810 में जैन धर्म के प्रचार प्रसार के लिए भव्य दिल्ली रथ यात्रा निकाली थी। राजा हरसुख राय ने मुगल काल में सोने के छत्र वाले जैन मंदिर का निर्माण करवाया था। जो दिल्ली का सबसे पुराना जैन मंदिर है। इन्होंने और इनके बेटे शगुन चंद ने भारत वर्ष में 51 जैन मंदिरों का निर्माण करवाया था।


SABHAR: Prayag Agarwal is with Rahul Jain and Utkarsh Agrawal.

Sunday, May 1, 2022

मध्यप्रदेश में वैश्य समाज की तीन बेटियां पूर्वी गुप्ता,दीर्घा एरन‌ और वंशिता गुप्ता बनी जज

मध्यप्रदेश में वैश्य समाज की तीन बेटियां पूर्वी गुप्ता,दीर्घा एरन‌ और वंशिता गुप्ता बनी जज

पूर्वी गुप्ता-:


मध्य प्रदेश के कटनी शहर में रहने वाले संजय गुप्ता की पुत्री पूर्वी गुप्ता का सिविल जज परीक्षा में चयन होने से परिजनों ने मिठाई बांटकर ढोल नगाड़ों के साथ स्वागत किया है पूर्वी गुप्ता को प्रदेश में 5वीं रैंक हासिल हुई है।

पूर्वी गुप्ता ने सिविल जज में चयन होने पर प्रतिक्रिया देते हुए उन्होंने भगवान और माता पिता को इसका श्रेय दिया है, तो वहीं पूर्वी के पिता संजय गुप्ता ने बताया कि उनके परिवार खानदान में पहली बार कोई न्यायाधीश पद पर चयनित हुई है इस पद पर उनकी बेटी का चयन होने से उन्हें काफी खुशी हो रही है।

दीर्घा एरन-:


नीमच सिटी निवासी दीर्घा एरन ने बताया कि वह नेशनल हाईवे ऑथोरिटी दिल्ली में सर्विस करती है। उन्होंने नीमच कॉन्वेट से आठवीं तक पढ़ाई की है। एलएलएम रायुपर छत्तीसगढ़ से किया है। पढ़ाई के दौरान न्यायाधीश भानुमति का भी सान्निध्य मिला। उनके बड़े पापा नरेंद्र अग्रवाल एडवोकेट हैं। दादाजी कन्हैयाला ऐरन भी एडवोकेट थे। उन्होंने बचपन में दीर्घा को न्याय के क्षेत्र में जाने के लिए समय-समय पर प्रेरित किया। दीर्घा साल 2019 में सिविल जज की परीक्षा उत्तीर्ण कर चुकी थी, इसके बाद इंटरव्यू में असफल हुई। उसने अपना हौसला कम नहीं किया और फिर से मेहनत की और इसी का परिणाम रहा कि वह दूसरे प्रयास में भी सफल हो गई।परिवार न्यायिक सेवा से जुड़ा होने के कारण उनके मन में भी इसके प्रति झुकाव था और अंत में तैयारी की और सेकंड प्रयास में उनका सिविल जज में चयन हुआ है। वह आठ घंटे की नौकरी के समय में सुबह जल्दी उठकर पढऩा पसंद करती थी। ऑफिस में भी सभी का सहयोग मिलता था, थोड़ा समय मिलते वह अध्ययन करने में जुट जाती थी। उनके पिता जितेंद्र एरन पुस्तक विक्रेता हैं।

वंशिता गुप्ता-:


एक जिला व सत्र न्यायालय में न्याय विभाग के लघु वेतन कर्मचारी (ड्राइवर) अरविंद गुप्ता की बेटी वंशिता गुप्ता है। वंशिता ने यह परीक्षा पहले ही प्रयास में उत्तीर्ण की है।
इसमें वंशिता को प्रदेश में सातवीं रैंक मिली है।

वंशिता ने बताया कि पिता को मेहनत करते हुए देखती थी, तो उसको महसूस होता था कि जीवन में कुछ करना है। बचपन से ही उसकी इच्छा थी कि जज बने। पिताजी अक्सर कहा करते थे कि बेटी ऐसा काम करना, जिससे तुम्हारे कारण मेरी पहचान हो।

एक जज के ड्राइवर की बेटी की जज बनने की कहानी पूरे शहर में चर्चा का विषय बनी हुई है, सोशल मीडिया पर भी वंशिता की खूब वाहवाही हो रही है। बेटी की सफलता से उनके पिता काफी खुश हैं उन्होंने बताया कि वंशिता के दादा सिविल कोर्ट में ही क्लर्क थे। वंशिता को बचपन से ही घर में वकालत का महौल मिला था। घर में अक्सल कोर्ट-कचहरी की बातें हुआ करती थी जिसे सुनते ही वंशिता बड़ी हुई है। बता दें कि वंशिता की मां स्कूल में शिक्षिका हैं। वंशिता की मां ने बताया कि यह वंशिता का बचपन का सपना था कि वह एक दिन जज बने जो आज पूरा हो गया है।

पूर्वी गुप्ता,दीर्घा एरन और वंशिता गुप्ता को बहुत-बहुत शुभकामनाएं व उज्जवल भविष्य की कामना आशा है कि वह आगे भी ऐसे ही लगन और ईमानदारी से जज के तौर पर सेवाएं देकर समाज सेठ समाज और देश का नाम ऊंचा रखेंगी।

साभार: देवांश गुप्ता : जय श्री नृसिंह नारायण 🦁🙏🙏||जय श्री सेठ ✊✊||विजई सेठ समाज ✊✊

KANCHWALA MANDIR INDORE

KANCHWALA MANDIR INDORE

इंदौर में सेठों का बनवाया अद्भुत मंदिरः जिसके कांच बेल्जियम से मंगवाए तो कारीगर ईरान से आए थे।

इंदौर: ये मंदिर ने सिर्फ आध्यात्म का प्रतीक होते हैं बल्कि अपनी स्थापत्य काल,आर्किटेक्चर, बनावट और ख़ूबसूरती के लिए भी जाने जाते हैं. हर एक मंदिर पवित्रता और शांति का प्रतीक है. ऐसे ही देशभर में कई मशहूर मंदिर है, जो अपनी सुंदरता के लिए जाना जाता हैं. ऐसा ही एक मंदिर अहिल्यानगरी यानी इंदौर में भी है। जिनमें एक जैन मंदिर भी है जो बहुचर्चित है।
 


दरअसल इंदौर का कांच मंदिर ना केवल भारत में बल्कि विदेशों में भी मशहूर है।इस मंदिर का पूरा इंटीरियर कांच से किया गया है यानी छत से लेकर,खंभे,दरवाज़े, खिड़कियां, झूमर सबकुछ कांच का बना हुआ है.
ये कांच बेल्जियम से बुलवाया गया था, जिसके कारीगर ईरान से आए थे।

जैन समाज के इस मंदिर में कई शहरों से अलग-अलग समाज के लोग दर्शन करने आते हैं और दर्शन के साथ इसकी खूबसूरती को निहारते ही रह जाते हैं. मंदिर बनाने की शुरुआत करीब 1913 में इंदौर के ' सेठ हुकुमचंद' ने की थी जिसमें भगवान शांतिनाथ की मूर्ति काले संगेमरमर की और आदिनाथ और चन्द्रप्रभु भगवान की मूर्ति सफेद संगमरमर से बनाई हुई है। सेठ जी की जैन धर्म में गहरी आस्था थी।

इस इमारत में सीमेंट का इस्तेमाल हुआ है
सेठ हुकुमचंद' के वारिस कमलेश कासलीवाल ने ANI को बताया, कि 100 साल पहले इसे बनाने जाने के लिए बेल्जियम से कांच बुलवाए गए थे।जिसे लगाने के लिए ईरान से कारीगर आए थे।वहीं पत्थर और उसके कारीगर राजस्थान से आए थे।पूरे मंदिर में बनाई गई अद्भुत कलाकृतियों में जैन धर्म के विषय में बताया गया है। मंदिर की स्थापना मेरे परदादा सर सेठ हुकुमचंद जी ने की थी।इसकी इमारत में सीमेंट का इस्तेमाल नहीं है बल्कि चूने से पत्थर की जुड़ाई की गई है।इसका आर्किटेक्ट खुद सेठ हुकुमचंद ने किया था।सेठ हुकुमचंद ने कई मिलें और मन्दिर बनवाए हैं।मन्दिर में रखा सोने का रथ और पालकी महावीर जयंती पर निकाला जाता था।

ढाई सौ कारीगरों ने इसे बनाया
मन्दिर के पड़ोस में रहने वाले बुज़ुर्ग सुरेशचंद गंगवाल ने बताया कि कांच मन्दिर बनाने वाले सर सेठ हुकुमचंद ने अपना निजी मन्दिर बनाए जाने के उद्देश्य से इसे बनवाया था लेकिन ये सभी लोगों के लिए खुला था. करीब 1913 में इसे बनाए जाने की शुरुआत हुई. इसमें खुद का पैसा लगाकर इसे बनवाया जिसका खर्च करीब 1 लाख 62 हज़ार आया था।इसे करीब ढाई सौ कारीगरों ने बनाया है।

जैन धर्म के बारे में बताता मंदिर
इस कांच मंदिर की खासियत ये है कि ये छत से ज़मीन तक कांच का बनाया हुआ है. इसमें जैन समाज के सभी भगवान,गुरु और मुनियों की कलाकॄति के साथ धर्म के विषय मे भी खूबसूरत नक्काशी की गई हैं
इस मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा नहीं हो पाई इसलिए इसे चेतालय कहा जाता है।भगवान शांतिनाथ के काली संगरमरमर की मूर्ति राजस्थान से गई थीं।

SABHAR: DEVANSH GUPTA - जय श्री नृसिंह नारायण ||जय श्री सेठ ||विजई सेठ समाज

बीकानेर स्थापना दिवस और बीकानेरी सेठ

बीकानेर स्थापना दिवस और बीकानेरी सेठ


ये हैं हमारे नगरसेठ का मंदिर। जी जगतपालक भगवान लक्ष्मीनाथ। इसी मंदिर के प्रांगड़ में एकपूरे राज्य की नींव रखी थी इसलिए इन्हें नगरसेठ बोलते हैं। अक्षय तृतीया को विक्रम संवत 1545 में राव बीका ने भगवान लक्ष्मीनाथ को साक्षी मानकर उनके आगे बीकानेर की नींव रखी थी। भगवान लक्ष्मीनाथ नगरसेठ की ही तरह इस पूरे राज्य का भरण पोषण करते हैं। इस मंदिर की अलग ही शान है क्योंकि इसका निर्माण बीकानेर के राजघराने ने स्वयं करवाया था।
 
राज्य के स्वामी ही जब नगरसेठ हैं तो इस नगर ने भी एक से एक सेठ दिए हैं जिन्होंने बीकानेर का ही नहीं पूरे भारत का नाम रौशन किया। बीकानेर मारवाड़ अंचल में पड़ता है और जब बात तो धर्म और व्यापार की तो उसमें मारवाड़ी व्यापारियों का अग्रणी स्थान रहा है।
 
1857 के युद्ध में शहीद सेठ अमरचंद बांठिया को ही ले लीजिये जिन्हें अंग्रेजों ने इसलिए फांसी पर लटका दिया था क्योंकि उन्होंने स्वतंत्रता सेनानी रानीलक्ष्मीबाई की धन देकर मदद की थी। सेठ जी ग्वालियर राजघराने के खजांची थे.. रानी लक्ष्मीबाई और तात्या टोपे के ग्वालियर पहुंचने पर ग्वालियर का शाही खजाना उनके हवाले कर दिया था। 1857 की क्रांति को जब कुचल दिया गया तब फिर बीकानेर की धरती ने एक भामाशाह को जन्म दिया।
वो थे सेठ नृसिंह अग्रवाल। 1920 में इन्होंने कलकत्ता में पंजाब केसरी लाल लाजपत राय जी की अध्यक्षता में एक सम्मेलन में भाग लिया और उनसे प्रभावित होकर स्वतंत्रता संग्राम में कूद पढ़े। वहाँ से वापस लौटते वक़्त उन्हें साबरमती आश्रम में सेठ जमनालाल बजाज जी से मिलने का मौका मिला। सेठ जी जमनालाल बजाज जी की स्वतंत्रता के लिए की जरहिं गतिविधियों और त्याग से इतने प्रभावित हुए की उन्होंने जमनालाल बजाज जी को अपना आदर्श मान लिया। उसके बाद सेठ जी ने अपनी अथाह संपत्ति जमनालाल जी की तरह स्वतंत्रता के लिए लगा दी। तिलक स्वराज्य फण्ड आदि में बहुत दान किया। एकबार तो गांधी जी ने इन्हें कहा कि नृसिंह अब तो तुम एकदम बाबा जी बन गए हो।
 
आजाद भारत मे सबसे बड़े आंदोलन 'श्रीरामजन्मभूमि आंदोलन' में सर्वप्रथम शहादत देने वाले और बाबरी मस्जिद के ऊपर चढ़कर भगवा लहराने वाले कोठारी बंधु स्वयं बीकानेर के मारवाड़ी परिवार से थे।
बीकानेर ने एक से एक धन्ना सेठ दिए हैं। भारत के तीसरे सबसे अमीर उद्योगपति राधाकृष्ण दमानी बीकानेर के ही तो हैं। यहाँ जैन श्रेष्ठियों द्वारा बनवाया गया विश्वप्रसिद्ध सेठ भण्डाशाह जी का मंदिर है। सेठ जी इतने धन्ना की, जैन भाण्डाशाह मंदिर की नींव पानी की बजाय घी से रखी गई थी। काम इतना बारीक की देश विदेश से लोग देखने आते हैं इस प्रांगण को। बीकानेर के सेठों की रामपुरिया हवेलियां भी विश्व प्रसिद्ध हैं। बीकाजी और हल्दीराम के अग्रवाल सेठ भी बीकानेर के ही थे।
 
नगरसेठ के मंदिर के बाहर बीकानेर के महान संत स्वामी रामसुखादास जी की पंक्तियां भी अंकित है - "हे नाथ! हे नाथ मैं तुम्हें भूलूँ नहीं।
 
बीकानेर के सेठों पर नगरसेठ लक्ष्मीनाथ और स्वयं महालक्ष्मी की अनन्य कृपा बनी रहे और वो सनातन और भारतवर्ष के प्रति समर्पित रहें।
 
SABHAR: - प्रखर अग्रवाल

GUJARATI BANIYE

GUJARATI BANIYE
 
गुजरात अपने व्यापार के लिए विश्वप्रसिद्ध है। हो भी क्यों न गुजराती व्यापारियों ने अपने व्यापार का डंका पूरे विश्व मे बजाया है और उनका भारत के विकास और अर्थव्यवस्था में सर्वाधिक योगदान है। आखिर हमें बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज और ISRO जैसे संस्थान देने वाले भी गुजराती ही थे।


विक्रम साराभाई - ISROके जनक और APJ अब्दुल कलाम के गुरु

आचार्य हेमचंद्र (मोध जैन) - पाटन के सोलंकी राजवंश के शासक के सलाहकार और गुरुतुल्य जिनकी शिक्षाओं से प्रभावित होकर पूरे गुजरात से ही मांसाहार को खत्म कर दिया था और आज आचार्य हेमचंद्र के 900 वर्ष पश्चयात भी गुजराती अपने शुद्ध शाकाहारी होने की पहचान पर गर्व करते हैं।
 
प्रेमचंद रॉयचंद - बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज के जनक
पुरुषोत्तम दास ठाकुरदास (मोध वणिक) - मुम्बई आज जो भी है वो अपने गुजराती और मारवाड़ी व्यापारियों की वजह से है। बॉम्बे प्लान के उद्योगपतियों में एक पुरुषोत्तमदास ठाकुरदास भी थे। अन्य थे जे. आर. डी. टाटा, लाला श्रीराम अग्रवाल, घनश्यामदास बिड़ला आदि.. इन्होंने सेठ घनश्याम दास बिड़ला जी के साथ Federation of Indian Chambers of Commerce & Industry (FICCI) की स्थापना भी की थी।

हीरालाल जयकिशनदास - भारत के सर्वोच्च न्यायालय प्रथम CJI
धीरूभाई अंबानी - व्यापारिक विस्तार के प्रेरणादायक आदर्श
अडानी - एशिया के सबसे अमीर व्यक्ति
गुजराती व्यापारी रजवाड़ों में प्रशासन भी संभालते थे... आचार्य हेमचंद्र या हम पोरबंदर रियासत के दीवान (प्रधानमंत्री) करमचंद गांधी को ही ले लें..

ACHARYA HEMCHANDRA - आचार्य हेमचंद्र और राजा कुमारपाल

ACHARYA HEMCHANDRA - आचार्य हेमचंद्र और राजा कुमारपाल
किसकी वजह से व्यापक समुद्री तट होने के कारण भी अधिकतर गुजराती हैं शाकाहारी?


आचार्य हेमचंद्र मोध वणिक कुल थे और पाटन के सोलंकी क्षत्रिय राजा कुमारपाल के सलाहकार थे कुमारपाल के शासनकाल के दौरान, गुजरात संस्कृति का केंद्र बन गया। कहा जाता है कि अनेकांतवाद के जैन दृष्टिकोण का उपयोग करते हुए, हेमचंद्र ने एक व्यापक विचारधारा का प्रदर्शन किया, जिससे कुमारपाल प्रसन्न हुए। कुमारपाल एक शैव थे और उन्होंने प्रभास पाटन में सोमनाथ के पुनर्निर्माण का आदेश दिया। कुमारपाल के साथ हेमचंद्र की बढ़ती लोकप्रियता से ईर्ष्या करने वाले कुछ हिंदू संतों ने शिकायत की कि हेमचंद्र एक बहुत ही अभिमानी व्यक्ति थे, कि वह वैदिक देवताओं का सम्मान नहीं करते थे और उन्होंने हिंदू भगवान शिव के आगे झुकने से इनकार कर दिया था।
 
जब सम्राट कुमारपाल ने आचार्य हेमचंद्र को मंदिर के उद्घाटन के समय बुलाया तो उन्होंने तुरंत झुक कर कहा -

मैं उसे नमन करता हूं जिसने आसक्ति और द्वेष जैसे वासनाओं को नष्ट कर दिया है जो जन्म और मृत्यु के चक्र के कारण हैं; चाहे वह ब्रह्मा, विष्णु, शिव या जिन हों।
 
शनै शनै आचार्य हेमचंद्र से प्रभावित होकर राजा कुमारपाल जैन धर्म को भी पूर्ण आदर सत्कार देने लगे।
1121 में तरंग में बनने वाले जैन मंदिर में भी हेमचंद्र का योगदान था। कुमारपाल पर उनके प्रभाव के परिणामस्वरूप जैन धर्म गुजरात का आधिकारिक धर्म बन गया और राज्य में पशु वध पर प्रतिबंध लगा दिया गया। गुजरात में धर्म के नाम पर पशु बलि की परंपरा को पूरी तरह से उखाड़ फेंका गया। नतीजतन, हेमचंद्र के लगभग 900 साल बाद भी, एक व्यापक समुद्र तट होने के बावजूद, गुजरात अभी भी मुख्य रूप से शाकाहारी राज्य बना हुआ है।

सोर्स - The Jains by paul dundhas
जैन साहित्य और ग्रंथों में आचार्य हेमचंद्र