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Monday, August 15, 2022

VAISHYA HERITAGE - मथुरा का द्वारकाधीश मंदिर

VAISHYA HERITAGE - मथुरा का द्वारकाधीश मंदिर

1814 में सेठ गोकुल दास पारीख द्वारा बनवाया गया मथुरा का द्वारकाधीश मंदिर जो ग्वालियर रियासत का खजांची थे।यह मंदिर विश्राम घाट के नज़दीक है जो शहर के किनारे बसा प्रमुख घाट है।भगवान कृष्ण को अक्सर ‘द्वारकाधीश’ या ‘द्वारका के राजा’ के नाम से पुकारा जाता था और उन्हीं के नाम पर इस मंदिर का नाम पड़ा है।आजकल इस मंदिर का बंदोबस्त वल्लभाचार्य सम्प्रदाय देखती है।मुख्य आश्रम में भगवान् कृष्ण और उनकी प्रिय राधा की मूर्तियाँ हैं।इस मंदिर में दूसरे देवी देवताओं की मूर्तियाँ भी हैं।मंदिर के अन्दर सुन्दर नक्काशी,कला और चित्रकारी का बेहतरीन नमूना देखा जा सकता है।यह मंदिर रोज़ हज़ारों की संख्या में आने वाले पर्यटकों का स्वागत करता है और त्यौहार(होली और जन्माष्टमी) के समय में यहाँ भीड़ और भी बढ़ जाती है। यह अपने झूले के त्यौहार के लिए भी मशहूर है जो हर श्रावण महीने के अंत में आयोजित होता है और इससे बरसात की शुरुआत का आगाज़ भी होता है।




यह समतल छत वाला दो मंज़िला मन्दिर है जिसका आधार आयताकार(118’ X 76’) है।पूर्वमुखी द्वार के खुलने पर खुला हुआ आंगन चारों ओर से कमरों से घिरा हुआ दिखता है।यह मंदिर छोटे-छोटे शानदार उत्कीर्णित दरवाजों से घिरा हुआ है। मुख्य द्वार से जाती सीढ़ियां चौकोर वर्गाकार के प्रांगण में पहुँचती हैं।इसका गोलाकार मठ इसकी शोभा बढ़ाता है।इसके बीच में चौकोर इमारत है जिसके सहारे स्वर्ण परत चढ़े त्रिगुण पंक्ति में खम्बे हैं जिन्हें छत-पंखों व उत्कीर्णित चित्रांकनों से सुसज्जित किया गया है। इसे बनाने में लखोरी ईंट व चूने, लाल एवं बलुआ पत्थर का इस्तेमाल किया गया है।मन्दिर के बाहरी स्वरूप को बंगलाधार मेहराब दरवाजों, पत्थर की जालियों, छज्जों व जलरंगों से बने चित्रों से सजाया है। यह चौकोर सिंहासन के समान ऊँचे भूखण्ड पर बना है। इसकी लम्बाई और चौड़ाई 180 फीट और 120 फीट है। इसका मुख्य दरवाज़ा पूर्वाभिमुख बना है।द्वार से मदिर के आंगन तक जाने के लिए बहुत चौड़ी 16 सीढ़ियाँ हैं। दरवाज़े पर द्वारपालों के बैठने के लिए दोनों ओर दो गौखें हैं जो चार सीढ़ियों पर बने हैं। दूसरा द्वार 15 सीढ़ियों के बाद है। यहाँ पर भी द्वारपालों के बैठने के लिए दोनों ओर स्थान बने हैं। मंदिर के दोनों दरवाज़ों पर विशाल फाटक लगे हैं। मंदिर के आंगन में पहुँचने पर 6 सीढ़ियाँ हैं जो मंदिर के तीनों तरफ बनीं हैं। इन पर चढ़कर ही मंदिर और विशाल मंडप में पहुँचा जा सकता है।

मंडप या जगमोहन छ्त्र
मंडप या जगमोहन छ्त्र के आकार का है।यह मंडप बहुत ही भव्य है और वास्तुशिल्प का अनोखा उदारहण है।यह मंडप खम्बों पर टिका हुआ है।इसके पश्चिम की ओर तीन शिखर बने हैं जिनके नीचे राजाधिराज द्वारिकाधीश महाराज का आकर्षक विग्रह विराजित है।मंदिर में नाथद्वारा की कूँची से अनेक रंगीन चित्र बनाये गये हैं। खम्बों पर 6 फीट पर से यह चित्र बने हैं।लाल, पीले, हरे रंगों से बने यह चित्र भागवत पुराण और दूसरे भक्ति ग्रन्थों में वर्णित भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं का चित्रण किया गया है।वसुदेव का यशोदा के पास जाना,योगमाया का दर्शन,शकटासुर वध,यमलार्जुन मोक्ष,पूतना वध,तृणावर्त वध,वत्सासुर वध,बकासुर,अघासुर, व्योमासुर, प्रलंबासुर आदि का वर्णन,गोवर्धनधारण, रासलीला,होली उत्सव,अक्रूर गमन, मथुरा आगमन,मानलीला, दानलीला आदि लगभग सभी झाँकियाँ उकेरी गयीं हैं। द्वारिकाधीश के विग्रह के पास ही उन सभी देव गणों के दर्शन हैं,जो ब्रह्मा के नायकत्व में भगवान श्रीकृष्ण के जन्म के समय उपस्थित थे और उन्होंने श्रीकृष्ण की स्तुति की थी।गोस्वामी विट्ठलनाथ जी द्वारा बताये गये सात स्वरूपों का विग्रह यहाँ दर्शनीय है। गोवर्धननाथ जी का विशाल चित्र है। गोस्वामी विट्ठलनाथ जी के पिता वल्लभाचार्य जी और उनके साथ पुत्रों के भी दर्शन हैं।

मंदिर के दक्षिण में परिक्रमा मार्ग पर शालिग्राम जी का छोटा मंदिर है। इसमें गोकुलदास पारीख का भी एक चित्र है।

SABHAR: Narsingh Sena/नृसिंह सेना

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