AGRAWALS THE GREAT KSHATRIYA - अग्रवंशियो की क्षत्रियता
सर्वविदित है की फ़िरोज़ शाह तुगलक के अग्रोहा के विनाश करने से पूर्व आग्रेय गणराज्य पर अग्रवंशीय क्षत्रियों का एकछत्र शासन था.. जिसका जिक्र कई ऐतिहासिक ग्रंथो में है.. उन्हीं में से एक ग्रंथ है मालिक मोहम्मद जायसी कृत "#पद्मावत" महाकाव्य जिसमें अग्रवालों और खत्रियों का जिक्र कुलीन हिन्दू क्षत्रिय वंशों के साथ किया गया है..
प्रसंग - जब खिलजी ने चित्तोड़गढ़ दुर्ग पर हमला किया तब राणा रावल रत्नसेन ने अपने मित्र राज्यों को आमंत्रित किया.. सभी मित्र राज्य पहुंचे और उन्होंने एक स्वर में कहा - "चित्तोड़ हिंदुओं की माता है और माता पर विप्पति आने पर उनसे नाता तोड़ा नहीं जाता.. रत्नसेन ने शाका का आह्वाहन किया है और वो हिंदुओं का एक बड़ा राजा है। हिंदुओं का पतंगों की तरह का हिसाब है वो जहाँ भी आग देखते हैं दौड़ कर गिर पड़ते हैं। आप हमें बीड़ा दो ताकि हम भी उसी स्थान पर जाकर मरें। क्योंकि अब जीवित रहना भी हमारे लिए लज्जाजनक है। तब रत्नसेन ने हँसकर उन्हें बीड़ा दिया और कहा की जाओ हिन्दुकुल के वीरों अब आग में जाते हुए पतंगे को कौन रोक सका है?
रत्नसेन चितउर में साजा, आई बजाई पैठी सब राजा।
तोमर, बैस, पवार जो आये, औ गहलोत आयी सिर नाए।।
"खत्री" औ पंचवान बघेले, "अग्रवार" चौहान चन्देले।
गहरवार परिहार सो कुरी, मिलन हंस ठकुराई जूरी।।
आगे टाढ़ वजवहिं हाड़ि, पाछें ध्वजा मरन के काढ़ि।
बाजयिं शंख औ तूरा, चंदन घेवरें भरा सिन्दूरा।।
संचि संग्राम बांधी सत साका, तजि के जीवन मरण सब ताका।
रत्नसेन ने चित्तोड़ में जब सज्जा(तैयारी) की, तो सभी हिन्दू राजे चित्तोड़ में वाद्यादि के साथ आ प्रविष्ट हुए। तोमर वैस और पंवार जो थे वे आये और गहलोतों ने आकर सर झुकाया। "खत्री", पंचवान, बघेल, "अग्रवाल" चंदेल, चौहान गहरवार, परिहार जैसे कुलीन क्षत्रिय राजवंशो की ठकुराई आ जुटि। आगे आगे वो खड़े हुए हाड़ि बजा रहे थे और पीछे मारने की ध्वजा निकाल रहे थे। सींगे, शंख और तुर्य बज रहे थे और वो चंदन और सिन्दूर में लिपटे खड़े थे। संग्राम का संचय कर और सत का साका बांधकर वो जीवन (का मोह) त्यागकर सबने मरने का निश्चय कर लिया था।
इस महाकाव्य को भले ही हम असत्य माने या महज काव्य माने लेकिन इससे एक बात पक्के तौर पर पता चलती है की उस समय तक अग्रवालों और खत्रियों की गिनती कुलीन क्षत्रिय वंशो में ही होती थी..
- प्रखर अग्रवाल
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