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Monday, December 5, 2022

AMIRA SHAH - METROPOLICE LAB

AMIRA SHAH - METROPOLICE LAB

एशिया की पावरफुल बिजनेस वुमन में शामिल अमीरा की कहानी:

मुंबई में एक लैब से मेट्रोपोलिस शुरू किया, आज 9 हजार करोड़ वैल्यूएशन

कुशान: मेट्रोपोलिस की शुरुआत कब और कैसे हुई?

अमीरा शाह: पिता डॉ. सुशील शाह ने 1981 में 35 एम्प्लॉइज के साथ मुंबई में 'डॉ. सुशील शाह लेबोरेटरी' की शुरुआत की। वे लगातार नई टेक्नोलॉजी और नए टेस्ट्स पर फोकस करते थे।

मुंबई और उससे बाहर उनके लैब का काफी नाम और रेपुटेशन था। उन दिनों, वह लैब थायरॉइड, फर्टिलिटी और हार्मोन की जांच करने वाले देश के पहले लेबोरेटरीज में से एक था।

मैं अमेरिका की टेक्सास यूनिवर्सिटी से फाइनेंस में ग्रेजुएशन करने के बाद 2001 में इंडिया लौटी। इसके बाद पापा की लेबोरेटरी से अपनी बिजनेस जर्नी शुरू की। पैथोलॉजी लैब्स की चेन डेवलप करना शुरू किया। एक शहर से दूसरे शहर में अपने सेंटर्स खोले। आज 7 देशों में हमारे 171 लैब्स हैं।

कुशान: आपने यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्सास से पढ़ाई की। इंडिया आने के बाद पापा का बिजनेस जॉइन किया। इसके पीछे क्या प्रेरणा थी? शुरुआत में आपका रोल क्या था?

अमीरा शाह: मैं एक डॉक्टर फैमिली में पली-बढ़ी। पापा पैथोलॉजिस्ट हैं और मां गायनेकोलॉजिस्ट। बचपन से ही उन दोनों को काम करते हुए देखा था। सुबह 8 बजे से रात 9 बजे तक दोनों पेशेंट्स की ट्रीटमेंट में जुटे रहते थे

USA से पढ़ाई पूरी करने के बाद मेरे पास दो ऑप्शन थे। एक अमेरिका में कॉर्पोरेट सेक्टर में काम करना और दूसरा इंडिया लौटकर पापा के काम को आगे बढ़ाना।

पढ़ाई के दौरान मैं बांग्लादेश ग्रामीण बैंक के फाउंडर और नोबेल अवॉर्ड विनर मुहम्मद यूनुस से काफी इंस्पायर्ड थी। उन्होंने अपने आइडिया से हजारों लोगों की लाइफ बदली थी। मैं भी उनकी तरह अपने देश के लोगों के लिए कुछ करना चाहती थी।

मुझे पता था कि हेल्थकेयर सेक्टर में स्कोप है। इसलिए पापा के काम को आगे बढ़ाने का फैसला किया। तब बिजनेस जैसा कुछ नहीं था। मेट्रोपोलिस नाम रखने के बाद मैंने इसे एक ऑर्गेनाइजेशन का रूप दिया।

जहां तक मेरे रोल की बात है फाउंडर होने के नाते मैं सबकुछ करती थी। कभी खुद खड़े होकर पेशेंट्स को रिपोर्ट्स देती थी। लोगों का डेटा कलेक्ट करती थी। तो कभी एचआर का काम मैनेज करती थी। कई बार मार्केट को समझने के लिए फील्ड में भी निकल जाती थी।

कुशान: बिजनेस जॉइन करने के बाद आपने क्या बदलाव किए? किन चीजों पर फोकस किया?

अमीरा शाह: मैंने बॉटम एंड से शुरुआत की। एक तरफ मैं कस्टमर केयर काउंटर पर बैठकर पेशेंट्स को डील करती थी तो दूसरी तरफ बिजनेस को आगे बढ़ाने के प्लान पर काम करती थी।

हमारे पास मजबूत मेडिकल और साइंटिफिक टीम थी, लेकिन सेल्स, मार्केटिंग, परचेजिंग और एचआर की टीम नहीं थी। मैंने इन सब को मजबूत किया।


पापा की टीम में मेडिकल बैकग्राउंड वाले लोग थे। उनके सोचने का तरीका अलग था। वे मेडिकल के हिसाब से तो सोचते थे, लेकिन बिजनेस के लिहाज से प्लान नहीं कर पाते थे।

इसी वजह से शुरुआत में कस्टमर्स का एक्सपिरियंस ठीक नहीं था। रिपोर्ट्स के लिए उन्हें देर तक इंतजार करना पड़ता था। मुझे बिजनेस को लेकर मेडिकल के लोगों का माइंडसेट चेंज करना था।

मैं इंडस्ट्री में यंग थी। महिला थी। नॉन मेडिकल बैकग्राउंड से थी और बिजनेस की पढ़ाई की थी। मुझे इन चार चीजों को ओवरकम करना था।

सभी लोग काफी सीनियर्स थे। लिहाजा मुझे उनकी रिस्पेक्ट को ध्यान में रखते हुए काम करना था। मैंने सबकी रिस्पेक्ट की और उन लोगों ने मेरी रिस्पेक्ट की। इस तरह हमने अपने काम को आगे बढ़ाया।

कुशान: फंड जेनरेट करने और इन्वेस्टर्स का भरोसा जीतने के लिए क्या-क्या जरूरी है? आपको कभी फंडिंग की दिक्कत हुई?

अमीरा शाह: फंडिंग की दिक्कत तो हमेशा रही। 2001 में सुशील शाह लैब का करीब 2.5 करोड़ रुपए का प्रॉफिट था। हमने इसी पैसे से मेट्रोपोलिस की शुरुआत की।

हमारा जितना भी प्रॉफिट होता, सब बिजनेस को आगे बढ़ाने में इन्वेस्ट करते गए। 2021 तक मैंने और पापा ने बिजनेस से पैसे नहीं निकाले। सिर्फ सैलरी ही लेते थे। मेरी पहली सैलरी 15 हजार रुपए थी।

2005 में कैपिटल फंड जुटाने के लिए मैंने प्राइवेट इक्विटी रेज किया। इसके बाद 2015 में 600 करोड़ रुपए का कर्ज लिया, क्योंकि मुझे कंपनी में शेयरहोल्डिंग बढ़ानी थी।

बिजनेस के दौरान मुझे एक चीज समझ आई कि जो पैसे आप दूसरे से लेते हैं, वे एसेट नहीं बल्कि एक लाइबिलिटी है। इसे आपको एक अच्छे रिटर्न के साथ वापस करना होता है। इससे मुझे काफी मदद मिली। इन्वेस्टर्स का भरोसा बढ़ा।

2019 में मेट्रोपोलिस पब्लिक्ली स्टॉक एक्सचेंज पर लिस्ट हो गया। तब हमारा वैल्यूएशन 0.5 बिलियन डॉलर यानी करीब 4 हजार करोड़ रुपए था, जो आज बढ़कर 1.12 बिलियन डॉलर यानी करीब 9 हजार करोड़ रुपए हो गया है।

कुशान: देश में बहुत सारे लैब्स हैं। आपका काम इनसे कैसे अलग है? आपने लोगों का भरोसा कैसे हासिल किया?

अमीरा शाह: हमने डॉक्टर्स और पेशेंट्स के बीच इम्पैथी, इंटेग्रिटी और एक्युरेसी पर फोकस किया। हमारा मानना है कि कस्टमर्स का भरोसा हासिल करना चैलेंजिंग टास्क है।

एक बार भरोसा हो भी जाए तो आसानी से टूट भी जाता है, क्योंकि हम लाइफ-डेथ की बात कर रहे होते हैं। इसलिए इसको लेकर हमने कुछ प्रिंसिपल्स बनाए…

1. पेशेंट्स का इंटरेस्ट सबसे पहले। हम हर सैंपल को खुद की फैमिली के सैंपल की तरह ट्रीट करते हैं। मसलन सबसे बढ़िया मशीन, स्किल्ड लोग और टेक्निक।

2. सबसे साथ फेयर रहना। पेशेंट हो या एम्प्लॉइज या इन्वेस्टर्स हम सबके साथ एक जैसा बिहैव करते हैं और किसी के साथ गलत नहीं करते।

3. कम्पैशन। यह एक ऐसा बिजनेस है जिसमें हम लोगों की जिंदगी से डील करते हैं। ऐसे में अगर कोई गरीब पैसे की कमी से हमारी सर्विस नहीं खरीद सकता, तो हम उसकी मदद करते हैं।

इसके अलावा हम बड़े शहरों के साथ ही टियर-2 और टियर-3 शहरों में रहने वाले कस्टमर्स को भी किफायती और बेहतरीन सर्विस मुहैया कराते हैं। इसके अलावा हम अपनी डिजिटल सर्विस को भी मजबूत कर रहे हैं।

कुशान: कोविड में आपको किन मुश्किलों का सामना करना पड़ा? उन मुश्किलों से आगे कैसे बढ़े?

अमीरा शाह: कोरोना के दौरान एक तरफ दूसरी इंडस्ट्रीज बंद हो रही थीं और दूसरी तरफ मेडिकल इंडस्ट्री में दिन-रात काम करना था। मैंने तय किया कि मेट्रोपोलिस इस पैंडेमिक से लड़ने में अहम भूमिका निभाएगा। इसके लिए मैंने 5 चीजों पर फोकस किया।
एम्प्लॉइज की सुरक्षा- मेट्रोपोलिस ने हमेशा से ही अपने एम्प्लॉइज की सुरक्षा को प्रायॉरिटी दी है। कोविड के दौरान टेस्टिंग से लेकर ट्रीटमेंट तक में इनकी भूमिका अहम थी। कई शहरों में कोविड की गाइडलाइंस क्लियर नहीं थी। इस वजह से जो एम्प्लॉइज पेशेंट्स के घर जाते थे, उन्हें पुलिस परेशान करती थी। हमने इस पर जोर दिया कि हर एम्प्लॉइज को सुरक्षित पेशेंट्स के घर पहुंचाया जाए।

सप्लाई चेन ठीक करना- लॉकडाउन की वजह से सप्लाई चेन ठप पड़ गया था। कई चीजों के लिए हम दूसरों पर निर्भर थे। हम टेस्टिंग किट और पीपीई किट नहीं खरीद पा रहे थे। इस मुश्किल वक्त में भी हमने टेस्टिंग किट खरीदने में कोई कसर नहीं छोड़ी।

रेगुलेटरी चैलेंजेज- हर म्यूनिसिपैलिटी के अलग रूल्स थे, जो हर दिन सुबह बदलते थे। अगर जरा सा भी रूल ब्रेक होता या सरकार के ऐप पर डेटा अपलोड करने में देर होती, तो वे शोकॉज नोटिस भेज देते थे। कई बार तो वे लैब भी बंद कर देते थे।

सुरक्षा- कोविड के दौरान हमने कस्टमर्स की सुरक्षा को काफी अहमियत दी। पीपीई किट के साथ ही हमने हर तरह के इक्विपमेंट्स पर काफी पैसा इन्वेस्ट किया, ताकि कस्टमर्स सुरक्षित रहें, उनका हमारे प्रति भरोसा बना रहे। हर दिन हमारी टीम 7000 से ज्यादा कस्टमर्स के कॉल रिसीव करती थी।

प्रोडक्टिविटी और कॉस्ट मैनेजमेंट- कोविड के दौरान लोगों की नौकरियां जा रही थीं। सैलरी काटी जा रही थी। ऐसे में मेट्रोपोलिस ने अपने एम्प्लॉइज का ध्यान रखा और पिछले साल बोनस के साथ दो इंक्रिमेंट्स दिए। हमने उनकी और उनके फैमिली की इंश्योरेंस स्कीम को रिवाइज किया।


लॉकडाउन के ठीक 7 दिन पहले मेरा बेबी हुआ था। मेरे लिए एक साथ दो चैलेंज थे। एक तरफ बिजनेस का ध्यान रखना था और दूसरी तरफ बेबी की देखभाल करनी थी।

मुझे पेरेंट्स, हसबैंड और मेट्रोपोलिस की टीम ने काफी सपोर्ट किया। मुझे खुशी है कि कोविड के दौरान मेट्रोपोलिस ने लाखों लोगों की मदद की।

कुशान: कोरोना के बाद भारत के हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर में क्या बदलाव आए हैं? यह अभी दूसरे देशों से कैसे अलग है और इसमें डेवलपमेंट किस रेट से हो रहा है?

अमीरा शाह: मुझे लगता है कि कोविड के बाद हेल्थ सेक्टर में बहुत ज्यादा बदलाव नहीं हुआ है, लेकिन हम सही रास्ते पर हैं।

सरकार ने कोविड से पहले आयुष्मान भारत का कॉन्सेप्ट शुरू किया था। ताकि जिसके पास पैसे नहीं हैं, उन्हें इसका लाभ मिल सके। कोविड के बाद इस पर और ज्यादा फोकस्ड होकर काम किया गया।

एक दिक्कत ये है कि देश में 1.5 लाख से ज्यादा लैब्स हैं, लेकिन इनके लिए कोई रेगुलेटरी फ्रेमवर्क नहीं है।

इन लैब्स में कैसे काम हो रहा, कौन सी मशीनों का इस्तेमाल हो रहा है, डॉक्टर्स क्वालिफाइड हैं कि नहीं, यह कोई नहीं जानता। यह बहुत डरावनी चीज है, क्योंकि हेल्थकेयर सेक्टर जिंदगी और मौत से जुड़ा हुआ है।

कुशान: हेल्थ सेक्टर के बिजनेस में क्या-क्या चुनौतियां हैं? इसके लिए किस तरह की स्किल्स की जरूरत होती है?

अमीरा शाह: अंग्रेजी में एक कहावत है ‘द ग्रास इज ग्रीनर ऑन द अदर साइड’ यानी हमें दूसरों की चीजें अच्छी लगती हैं, भले ही वो अच्छी न हों।

यही बात हेल्थकेयर सेक्टर के लिए भी है। बाहर से तो यह बहुत शानदार बिजनेस लगता है, लेकिन इसमें चैलेंजेज बहुत हैं। इसमें टाइम लिमिट और बाउंड्रीज जैसी चीज नहीं होती है।

आपको हेल्थकेयर के बारे में पैशनेट होना होगा। 2001 से लेकर अब तक एक भी ऐसा दिन नहीं होगा जब मैंने 14 घंटे मेट्रोपोलिस के बारे में ना सोचा हो। देर रात तक मुझे मैसेज आते हैं कि फलां को रिपोर्ट टाइम पर नहीं मिली है।

मैं अपनी टीम से कहती हूं कि रात के 12 बजे भी किसी को रिपोर्ट की जरूरत है तो उसे करिए और एक बजे से पहले रिपोर्ट दे दीजिए। मैं हमेशा कहती हूं,’ मेट्रोपोलिस इज माय फर्स्ट चाइल्ड।”

कुशान: यंग एंटरप्रेन्योर्स को अक्सर फंड और मार्केटिंग की दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। इसे हैंडल करने के लिए उन्हें क्या करना चाहिए?

अमीरा शाह: बिजनेस के लिए फंड की जरूरत होती है, लेकिन उतना ही फंड रेज करना चाहिए जितना आपको चाहिए। बड़ा फंड रेज करने के बाद प्रेशर बढ़ जाता है।

वो आपके लिए लाइबिलिटिज बन जाता है। इसलिए धीरे-धीरे फंड को बढ़ाना चाहिए। अगर आपका मॉडल अच्छा है, ग्रोथ कर रहे हैं, तो इन्वेस्टर्स जरूर दिलचस्पी दिखाएंगे।


कुशान: भारत में अभी 14% से कम फीमेल एंटरप्रेन्योर्स हैं? इसकी वजह क्या है और कैसे महिलाओं की भागीदारी बढ़ाई जा सकती है?

अमीरा शाह: भारत में 14% फीमेल एंटरप्रेन्योर्स हैं, लेकिन इनमें 99% छोटे लेवल पर हैं। फीमेल एंटरप्रेन्योर्स की जर्नी काफी मुश्किल होती है। सबसे पहले तो उन्हें फैमिली से सपोर्ट नहीं मिलता है। ज्यादातर मां-बाप अपने बेटे को बिजनेस के लिए सपोर्ट करते हैं, लेकिन बेटियों के लिए नहीं करते।

अभी भी, लोग यह सोचकर बेटियों की परवरिश करते हैं कि स्कूल भेजना है, कॉलेज भेजना है, और फिर एक अच्छे लड़के से शादी करवा देनी है।

फीमेल एंटरप्रेन्योर्स को कैपिटल देने में भी लोग हिचकिचाते हैं। उन्हें लगता है कि इसका बिजनेस स्टेबल नहीं है। कभी भी बंद हो सकता है।

महिलाओं को सपोर्ट करने की जरूरत है। उन्हें हिम्मत देने की जरूरत है। इसलिए मुझे जहां भी मौका मिलता है मैं फीमेल एंटरप्रेन्योर्स को सपोर्ट करने में आगे रहती हूं।

कुशान: आप देश के फीमेल एंटरप्रेन्योर्स को क्या टिप्स देना चाहेंगे?

अमीरा शाह: बिजनेस के फील्ड में चैलेंज तो सबके लिए हैं। हां फीमेल एंटरप्रेन्योर्स के लिए चैलेंज थोड़ा ज्यादा है, लेकिन इसको लेकर उन्हें किसी तरह का एक्सक्यूज नहीं देना है। हार्ड वर्क करिए, फोकस्ड रहिए और डरिए मत। अगर आप डिटरमाइंड हैं तो कामयाबी जरूर मिलेगी।

कुशान: आपकी हॉबिज क्या हैं? फ्री टाइम में आप क्या करना पसंद करती हैं?

अमीरा शाह: पिछले एक-दो साल से मुझे फ्री टाइम तो मिला नहीं, पर मुझे चेस खेलना पसंद है। खूब चेस खेलती हूं। इससे स्ट्रेस कम करने में मदद मिलती है। इससे अलावा मुझे स्पोर्ट्स, हाइकिंग, कैंपिंग करना पसंद है। साथ ही अपनी फैमिली के साथ टाइम स्पेंट करना बहुत पसंद है।

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