#SURANA DOUBLE HAWELI CHURU
आपको जानकर आश्चर्य होगा कि राजस्थान में एक नहीं दो हवामहल हैं। एक जयपुर में तो दूसरा चूरू में। चूरू की यह विरासत मूल रूप से सुराणा हवेली के नाम से पहचानी जाती है, लेकिन आश्चर्यजनक तथ्य यह है कि इसमें हवा महल से करीब ढाई सौ विंडो ज्यादा हैं। सभी जानते हैं कि जयपुर का हवा महल उसमें मौजूद खिड़कियों की वजह से ही वर्ल्ड फेम है।
खिड़कियों और दरवाजों के मामले हवा महल इस सुराणा हवेली के मुकाबले काफी पीछे छूट गया है। हवा महल पहले बना, लेकिन बाद में बनी इस सुराणा हवेली में 700 से ज्यादा खिडकियां हैं, जबकि हवा महल में महज 365 खिड़कियां हैं। यह हवेली 1870 में तैयार की गई थी, जबकि हवा महल का निर्माण इससे पहले ही कर लिया गया था। यानी कहीं न कहीं हवा महल को चैलेंज कर रही है यह हवेली। इस हवेली की दीवारों पर चित्र हैं जो आज भी उस वक्त के इतिहास को सहज ही बयां करते हैं।
डोला-मारु की कहानियों के अलावा राजस्थान में प्रचलित कहानियों से जुड़े अनेक रंगीन चित्र हैं। जयपुर का हवा महल 5 मंजिला है, जबकि चूरू की यह हवेली 6 मंजिला है। इसका निर्माण हवा महल बनने के सालों बाद हुआ था।
खिड़की-दरवाजे बंद करने में लगता है पूरा दिन हवेली की रखवाली करने वालों का कहना है कि इस महल के सभी खिड़की और दरवाजों को खोला और बंद किया जाए तो सुबह से शाम हो जाती है। इसमें कुल खिड़की और दरवाजों की संख्या 1111 है।
इसलिए इसके अधिकांश दरवाजों को बंद ही रखा जाता है। कहा जाता है कि कहीं न कहीं इस हवेली को बनवाने के पीछे हवा महल का ही कॉन्सेप्ट था। स्थानीय लोग इसे चूरू की हवेली कहते हैं। यहां आने वाले सैलानी इस हवेली को देखकर चौंक जाते हैं और कन्फ्यूज होकर पूछते हैं कि आखिर हवा महल है कहां।
मजदूरों को खाना खिलाकर बनवा ली यह हवेली
इस हवेली को सुराना की हवेली के नाम से जाना जाता है। कहते हैं वैश्य बनिया सेठ सुराणा ने इसे बनवाने में ज्यादा मजदूरी नहीं खर्च की। उस वक्त राजस्थान में अकाल पड़ा हुआ था। लोग दाने-दाने को तरस रहे थे। तब मजदूर और उनके परिवार को दोनों जून का भोजन मुहैया कराकर इस हवेली का निर्माण करा लिया गया था।

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