अलीगढ़ से जब वो लखनऊ आए तो उनके पास सिवाए एक बक्से के कुछ नहीं था। बक्से में एक रजाई, दो जोड़ी कपड़े और कुछ किताबें। लखनऊ विश्वविद्यालय में ऐडमिशन हुआ, लेकिन कहीं रहने को ठिकाना नहीं था। शुरुआती दिनों में हनुमान सेतु स्थित हनुमान मंदिर में रहकर पढ़ाई की। ग्रैजुएशन के साथ सोशल ऐक्टिवटीज में भी शामिल रहे। महात्मा गांधी और विनोबा भावे के विचारों के प्रचार-प्रसार के लिए उन्होंने कई आंदोलन भी चलाए। नतीजा रहा कि पहले स्टूडेंट यूनियन के उपाध्यक्ष और फिर अध्यक्ष चुने गए। शादी के बाद पत्नी के साथ मिलकर स्कूल खोला। पांच बच्चों से शुरू किया गया यह स्कूल आज राजधानी ही नहीं प्रदेश का सबसे ज्यादा शाखा और स्टूडेंट्स वाला स्कूल बन गया है। विश्व शांति के लिए उनकी कोशिशों को अमेरिका समेत कई यूरोपीय देशों ने सराहा और सम्मानित किया है। जी हां, हम बात कर रहे हैं सिटी मॉन्टेसरी स्कूल के फाउंडर मैनेजर जगदीश गांधी की।
अध्यात्म की तरफ झुकाव उनके बचपन का नाम जगदीश अग्रवाल है। इनके चाचा प्रभुदयाल अग्रवाल स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और गांधीवादी थे। बापू के साथ वह कई बार जेल भी गए। जब भी आते तो महात्मा गांधी के सादे जीवन और आध्यात्म की चर्चा करते। बालमन पर इन बातों का काफी असर हुआ। गांधी जी से मिलने के लिए उनका मन छटपटाता रहता। चाचा के सामने यह इच्छा जताई। इसी बीच देश आजाद हो गया और गांधी जी हिंदू मुस्लिम दंगों को शांत कराने के लिए नोआखली चले गए। सिवाय इंतजार के अब कुछ नहीं हो सकता था।
खुद गांधी बन गए करीब पांच महीने इंतजार के बाद स्कूल से लौटे तो गांव के लोग एक पेड़ के नीचे उदास खड़े थे। पूछने पर चाचा ने बताया कि रेडियो पर समचार आया है कि राष्ट्रपिता की हत्या हो गई है। किसी ने उन्हें गोली मार दी है। यह सुनकर वह घर के भीतर गए और रामधुन गाने लगे। कुछ देर बाद बाहर आए और पिता से कहा कि अपना नाम बदल कर जगदीश गांधी करना चाहता हूं। उनकी भावनाओं का आदर करते हुए पिता ने भी उन्हें नहीं टोका और स्कूल का नाम जगदीश अग्रवाल की जगह जगदीश गांधी हो गया।
ऐसे आए लखनऊ मथुरा से इंटर करने के बाद ग्रैजुएशन करने के लिए पहले बनारस हिंदू विश्वविद्यालय गए। शहर से कैंपस काफी दूर था। ऐसे में ट्यूशन पढ़ाने के लिए शहर में रहना और फिर इतनी दूर आना मुमकिन नहीं था। अब इलाहाबाद जाने का मन बनाया। रेल का टिकट लेने के लिए दोस्त लाइन में लगा। बारी आई तो पूछने लगा कि लखनऊ चलें या इलाहाबाद। जगदीश गांधी ने कहा कि कहीं का टिकट ले लो। टिकट देने वाला कर्मचारी झल्ला गया और उसने लखनऊ के दो टिकट दे दिए। ट्रेन में बैठे और बस यूं ही लखनऊ आ गए।
लखनऊ और जगदीश गांधी अलीगढ़ से लखनऊ आकर पढ़ाई की। छात्रसंघ के पदाधिकारी बने और भारती गांधी से शादी हुई। जीवन के तमाम मुकाम जगदीश गांधी को लखनऊ की सरजमीं पर ही हासिल हुए। अलीगढ़ लौटने के बजाय लखनऊ को ही अपनी कर्मभूमि बनाने का संकल्प लिया। वह 12 स्टेशन रोड के जिस मकान में रहते थे, उसमें ही स्कूल खोल दिया। एडमिशन के लिए घर-घर गए लेकिन हर कोई टाल देता। काफी दिनों बाद एक महिला ने अपने पांच बच्चों को स्कूल भेजा। साल के अंत में 19 बच्चे हो गए। इसके बाद सफर शुरू हुआ तो नहीं रुका। आज सीएमएस में 47 हजार स्टूडेंट्स हैं।
साभार: नवभारत टाइम्स
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