मारवाड़ी हूँ मैं तो लेखनी की इस श्रृंखला की शुरुवात मारवाड़ से ही करता हूँ ....
पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकत्ता कहने तो बंगाल की राजधानी है किंतु विश्व में सबसे ज्यादा मारवाड़ी अगर किसी जगह रहते हैं तो वो जगह है कोलकत्ता ....
सत्रहवीं शताब्दी के प्रारम्भ से ही कोलकत्ता मारवाड़ी उद्यमियों का गढ़ बना हुआ है .... कोलकत्ता का शायद ही ऐसा कोई हिन्दू मोहल्ला गली कॉलोनी सड़क बाजार उपनगर हो जहां हम मारवाड़ियों के घर गोदाम दुकान ऑफिस गद्दी प्रतिष्ठान ना हो ....
पश्चिम राजस्थान में मेरा पड़ौसी जिला है बीकानेर ....
इसी बीकानेर जिले के एक कोठारी जी करीब डेढ़ शताब्दी पूर्व कोलकत्ता गए उदर पूर्ति (नौकरी/उद्यम) हेतु .... और कोठारी जी कोलकत्ता में ही रच बस गए ....
कालांतर में उन कोठारी जी के वारिश हुए श्री हीरालाल जी कोठारी ....
हीरालाल जी कोठारी के परिवार में कुल जमा पांच सदस्य थे .... एक हीरालाल जी कोठारी स्वयं यानी परिवार के मुखिया .... हीरालाल जी की धर्मपत्नी श्रीमती सुमित्रा कोठारी .... हीरालाल जी की ज्येष्ठ पुत्री पूर्णिमा कोठारी और उसके बाद हीरालाल जी के दो पुत्र .... बड़े पुत्र 22 वर्षीय शरद कोठारी और छोटे पुत्र 20 वर्षीय राम कोठारी ....
कोठारी बांधूओं (शरद/राम) को बचपन से ही देशभक्ति और हिंदुत्व के संस्कार अपने धर्मनिष्ठ माता-पिता से मिले थे .... दोनों भाइयों ने कोलकत्ता में संघ की शाखा जाना शुरू किया और देखते ही देखते कड़ी मेहनत और लगन से संघ शिक्षा के दो वर्ष भी पूर्ण किये ....
देश में ये वो दौर था जब राम जन्मभूमि आंदोलन अपने उफान पर था .... आडवाणी जी रथयात्रा के माध्यम से गांव-गांव शहर-शहर डगर-डगर घर-घर हिंदुत्व और राम जन्मभूमि पुनर्निर्माण की लौ प्रज्वलित कर रहे थे ....
आडवाणी जी की रथ यात्रा और परिवार से मिले हिंदुत्व के संस्कारों से वशीभूत नव-युवा कोठारी बन्धु काफी प्रभावित हुए और अपने पिता हीरालाल कोठारी से कार सेवा हेतु अयोध्या जाने की ज़िद करने लगे .... पिता ने अपने दोनों मासूम पुत्रों को समझाया कि 8 दिसम्बर को तुम्हारी बड़ी बहन पूर्णिमा की शादी है और दोनों भाइयों की घर मे उपस्थिति अनिवार्य है .... किंतु दोनों भाइयों की ज़िद के आगे पिता को झुकना पड़ा और इस वादे के साथ कि दोनों भाई नित्य पिता को एक पत्र लिखेंगे और 8 दिसम्बर को बहन पूर्णिमा ( Purnima Kothari ) की शादी से पहले कार सेवा समाप्त कर के कोलकत्ता लौट आएंगे अनुमति दी ....
22 अक्टूम्बर 1990 .... शरद और राम बजरंगी (कोठारी) खूब सारे पोस्टकार्ड ले के अपने एक और मित्र राजेश अग्रवाल के साथ कोलकत्ता से अयोध्या के लिए रवाना होते हैं ....
27 अक्टूम्बर 1990 .... हीरालाल जी कोठारी को अपने पुत्रों द्वारा इस तारीख को लिखित एक पत्र प्राप्त होता है जिसमें लिखा होता है कि .... मुलायम सिंह सरकार द्वारा ट्रैन रोक के कार सेवकों को मुगलसराय में ही गिरफ्तार कर लिया गया है .... किंतु कार सेवा को प्रतिबद्ध दोनों कोठारी बन्धु अपने मित्र राजेश अग्रवाल के साथ उत्तरप्रदेश पुलिस को चकमा दे कर किसी तरह अयोध्या को रवाना होते हैं .... और 200km पैदल यात्रा कर के पुलिस से छुपते छुपाते तीनों मित्र अयोध्या पहुंचते है ....
2 नवम्बर 1990 .... अयोध्या के वाल्मीकि भवन के सामने मणि रामदास जी की चॉनी सड़क के सामने प्रचंड भीड़ एकत्रित हो जाती है .... भीड़ के इस जत्थे का नेतृत्व दो नवयुवक कोठारी बन्धु कर रहे होते हैं ....
पुलिस की कड़ी चेतावनी के बावजूद कोठारी बन्धु अपने जत्थे के साथ विवादित ढांचे की और तेज़ी से बढ़ते है ....
कोठारी बंधुओं ने पुलिस की चेतावनी के बावजूद विवादित ढांचे के ऊपर चढ़ के भगवा ध्वज को ऊपर लहराने का दृढ़ संकल्प कर लिया था ....
राजेश अग्रवाल आज भी याद करते हैं .... दोनों कोठारी बन्धु भगवा ध्वज हाथ मे लिए बाबरी मस्ज़िद के सामने खड़े थे .... उत्तरप्रदेश की मुलायम सरकार और प्रशासन को मानो कोठारी बन्धु खुली चुनौती दे रहे थे ललकार रहे थे कि आओ हमें रोको .... भीड़ द्वारा जय श्री राम का उद्घोष गगन तक गुंजायमान हो रहा था ....
तभी ....
धाँय .... धाँय .... धाँय .... धाँय ....
कोठारी बन्धु श्री राम के उद्घोष और भगवा ध्वज के साथ बलिदानी हो चुके थे ....
6 दिन बाद .... दिनांक 8 नवम्बर 1990 .... उत्तरप्रदेश पुलिस द्वारा श्री हीरालाल जी कोठारी को सूचना प्राप्त होती है कि उनके दोनों पुत्र कार सेवा में उत्तरप्रदेश पुलिस जी हां मुलायम सिंह यादव की उत्तरप्रदेश पुलिस द्वारा फायरिंग में मार दिए गए हैं .... और उनका अंतिम संस्कार अयोध्या के सरयू तट पर किया जा रहा है ....
हुतात्मा कोठारी बंधुओं की मौत की सूचना जब उनके घर बंगाल पहुंची तो समूचा बंगाल सड़कों पर उतर पड़ा और अपने लाडले सपूतों कोठारी बंधुओं को छलकते नैनों से अश्रुपूरित श्रद्धासुमन अर्पित किए ....
क्या आप विश्वास करेंगे ?? .... 6 दिसम्बर 1992 को जब बाबरी विध्वंस हुआ तब अपने दो नौजवान पुत्रों को कार सेवा में खोने वाले श्री हीरालाल और सुमित्रा कोठारी अयोध्या में मौजूद थे और कार सेवा की परिक्रमा पूर्ण कर रहे थे ....
मैं सजल नेत्रों से बीकानेर राजस्थान के .... बंगाल के कोठारी बंधुओं को अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ ....
धन्य है बंगाल की और राजस्थान की वो माटी जहां ऐसा धर्मपरायण परिवार और धर्मपरायण सपूत पैदा हुए .... जिन्होंने अपने आराध्य श्री राम के चरणों में अपना सर्वस्व बलिदान कर दिया ....
(छायाचित्र में बड़ी बहन पूर्णिमा कोठारी अपने बलिदानी भाइयों के चित्र के साथ) ....
हर साल यह अमर गाथा सुनाता हूँ ....
6 दिसंबर को कोठारी बजरंगियों के चित्र सजाता हूँ ....
पटाखे फोड़ हिन्दू शौर्य दिखाता हूँ ....
पर हर सांस घुट-घुट मरता जाता हूँ ....
ना राम ना कृष्ण की याद रही ....
सत्ता के गलियारों में कोई हिन्दू फ़रियाद ना रही ....
जूझ रहा हूँ खुद को इस भ्रम से बचा निकलूँ ....
वर्ना लाशों की इस मंडी में मेरी भी औकात नही रही ....
कोठारी बन्धु अमर रहे .... अमर रहे ....
अधिकाधिक शेयर कॉपी पेस्ट का आग्रह है !!!! ....
साभार:
#Ram_Mandir
#राम_मंदिर
रितेश प्रज्ञांश
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