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Thursday, April 28, 2022

VANSHIKA GUPTA - BECOMES CIVIL JUDGE - MP

VANSHIKA GUPTA - CIVIL JUDGE - MP

पिता चलाते हैं सिविल जज की गाड़ी, बिटिया वंशिका गुप्ता बनी जज, एमपी में सातवीं रैंक हासिल की


विजित राव महाड़िक, नीमच : मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की तरफ से आयोजित सिविल जज वर्ग-2 के परिणाम मंगलवार को आ गए है। इस परीक्षा में नीमच की दो बेटियों ने कामयाबी हासिल की है। नीमच कोर्ट में सिविल जज के ड्राइवर की बेटी वंशिका गुप्ता भी अब सिविल जज बन गई है। उसकी सफलता पर पूरे जिले को गर्व है। साथ ही वंशिका के परिवार में भी खुशी की लहर है। पिता की खुशी का ठिकाना नहीं है। वंशिका ने पिता ही नहीं पूरे परिवार के नाम रोशन किया है। उसके दादा भी सिविल कोर्ट में ही क्लर्क थे।

वंशिका ने अपनी सफलता का श्रेय माता-पिता की प्रेरणा, कड़ी मेहनत और लगन को दिया है। प्रदेश भर के न्यायालय में रिक्त 252 पदों के लिए लिखित परीक्षा में देश भर में 350 अभ्यर्थी शामिल हुए थे। इसके परिणाम मंगलवार की शाम को आए हैं। परिणाम आने के बाद जिला व सत्र न्यायालय में न्याय विभाग के लघु वेतन कर्मचारी अरविंद गुप्ता के घर में लड्डू बंट रहे हैं। उनकी बेटी वंशिता गुप्ता पहले ही प्रयास में सिविल जज बन गई है। वंशिका को पूरे प्रदेश में सातवीं रैंक मिली है।

दादा हैं रिटायर्ड क्लर्क
वंशिता गुप्ता के दादा रमेशचंद गुप्ता भी न्यायालय में ग्रेड-1 रीडर थे। सेवानिवृत्ति के बाद वर्तमान में मंदसौर में वकालत कर रहे हैं। वहीं, पिता अरविंद गुप्ता वर्तमान में जिला कोर्ट में लघु वेतन कर्मचारी (ड्राइवर) हैं। वहीं, वंशिका की मां स्कूल में शिक्षिका हैं। उन्होंने बताया कि वंशिका बचपन से ही घर में कोर्ट-कचहरी की बातें सुनती आ रही है। पिता को मेहनत करते हुए देखती थी तो उसको महसूस होता था कि जीवन में कुछ करना है।

मां ने कहा कि बचपन से ही उसकी इच्छा थी कि जज बने। पापा उससे अक्सर कहा करते थे कि बेटी ऐसा काम करना, जिससे तुम्हारे कारण मेरी पहचान हो। इसे वंशिका गुप्ता ने साबित कर दिखाया है। वंशिका के घर पर अब बधाई देने वाले लोगों का तांता लगा हुआ है। वंशिका परिवार जावद में रहता है।

साभार: नवभारत टाइम्स 

Tuesday, April 26, 2022

HINDU GYMKHANA KARACHI - हिन्दू जिमखाना, करांची - A VAISHYA HERITAGE

 HINDU GYMKHANA KARACHI - हिन्दू जिमखाना, करांची - A VAISHYA HERITAGE


करांची के बड़े उद्योगपति श्री शिव रत्न मोहता के बड़े बेटे रामगोपाल मोहता ने हिंदुओं में जागृति परस्पर वार्ता और सौहार्द बढ़े इसके लिए हिन्दू जिमखाना भी बनवाया था जिसपर आजादी के बाद पाकिस्तान की मुस्लिम गवर्नमेंट में कब्जा कर लिया था। पिछली दीपावली को पाकिस्तानी हिंदुओं ने कोर्ट में केस जीता और वहां पर दीपावली और होली भी धूम धाम से मनाई ...

मोहता परिवार मारवाड़ी माहेश्वरी वैश्य था.. इन्होंने बटवारे के बाद पाकिस्तान से लौटकर अपनी मरुभूमि में भी धर्म के बहुत कार्य करें हैं..


SABHAR - PRAYAG AGRAWAL FACEBOOK WALL


Sunday, April 24, 2022

VISHNU SINGHAL - धौलपुर के अरबपति ने सामूहिक विवाह सम्मेलन में अपने बेटे को दिलाये सात फेरे

VISHNU SINGHAL - धौलपुर के अरबपति ने सामूहिक विवाह सम्मेलन में अपने बेटे को दिलाये सात फेरे


अक्सर सामूहिक विवाह का नाम सुनते ही मन में ख्याल आता है कि यहां उन लोगों की शादी होती होगी जो आर्थिक रूप से कमजोर हैं या शादी का खर्च उठाने में सक्षम नहीं हैं. लेकिन आपको ये सुनकर जरूर आश्चर्य होगा कि क्या कोई अरबपति व्यक्ति भी सामूहिक विवाह में अपने बेटे की शादी करवा सकता है. जिनको हर चीज आसानी से उपलब्ध है, पैसे की कोई कमी नहीं है जो अच्छे से अच्छे कार्यक्रम का खर्च उठाकर शादी कर सकते हैं, क्या वो सामूहिक विवाह में शादी करेंगे?


लेकिन राजस्थान के धौलपुर जिले के बाड़ी कस्बे में ये आश्चर्यजनक वाकया देखने को मिला जहां कस्बे के अरबपति व्यक्ति विष्णु सिंघल ने अपने बेटे राहुल की शादी सर्व जातीय विवाह सम्मेलन में करवायी. सिर्फ इतना ही नहीं विवाह सम्मेलन में होने वाला पूरा खर्च भी विष्णु सिंघल ने ही उठाया.


बाड़ी कस्बे के धर्मार्थ सेवा समिति द्वारा सर्व जातीय सम्मेलन का आयोजन किया गया. सम्मेलन में 20 गरीब अनाथ निशक्तजन कन्याओं का विवाह पारंपरिक एवं मंत्र उच्चारण के साथ सम्पन्न कराया गया.


विवाह सम्मेलन का खर्च उठाने वाले अरबपति भामाशाह विष्णु ने सभी नव विवाहित जोड़ों को गृहस्थी का जरूरी सामान दान दिया. और अपने पुत्र का विवाह भी इसी सम्मेलन में किया. समिति के सभी सदस्यों ने नए जोड़ों के उज्ज्वल भविष्य की कामना की.


भामाशाह विष्णु ने बताया कि काफी समय पहले मैंने सोच लिया था कि जब भी बेटे की शादी करूंगा तो कुछ अलग हट के करूंगा. आज में सम्मेलन में अपने बेटे के साथ और दूसरे 20 जोड़ोंं की शादी करवा रहा हूं. मेरा सपना पूरा हो गया और मैं लोगों से अपील करूंगा कि ऐसे आयोजन करें जिससे जनकल्याण हो.

Friday, April 22, 2022

ASHTHA JAYASWAL - PPS

ASHTHA JAYASWAL - PPS

प्रयागराज में #डिप्टी_एसपी_पद पर तैनात सर्व वैश्य समाज की आन बान शान सुश्री #आस्था_जायसवाल जी ईश्वर आपको हमेशा खुश एवं स्वस्थ रखे और आगे भी आप इसी तरह अपना और अपने परिवार और समाज का नाम रोशन करें..


प्रयागराज में डिप्टी एसपी पद पर तैनात सुश्री आस्था जायसवाल इन दिनों नई चयनित महिला पुलिसकर्मियों को नई तरह की ट्रेनिंग देने को लेकर चर्चा में हैं। प्रयागराज पुलिस लाइन्स में 200 नई महिला पुलिसकर्मियों को ट्रेनिंग देते हुए उनका फोकस उन्हें एक ऐसी फोर्स के रूप में डेवलप करने पर है जो समाज के प्रति मानवीय दृष्टिकोण रखते हुए अपनी पुलिसिंग को अंजाम दें। फरियादियों की बात संवेदनशीलता के सुनें और समाज में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका का कुशलता के साथ निर्वहन करें। आस्था जायसवाल स्वयं भी अपनी ड्यूटी के दौरान ‘पीपुल्स फ्रेंडली पुलिसिंग’ की मिसाल पेश करती हैं।

बता दें कि बलिया जिले के रसड़ा निवासी डा. परशुराम जायसवाल (बीएएमएस) और श्रीमती आरती जायसवाल की पुत्री सुश्री आस्था जायसवाल यूपी पीसीएस-2016 बैच की पीपीएस अधिकारी हैं। उनके भाई डा. आनंद जायसवाल एमबीबीएस चिकित्सक हैं। सुश्री आस्था जायसवाल ने बलिया से ही माध्यमिक शिक्षा ग्रहण की और उसके बाद पंजाब टैक्नीकल यूनीवर्सिटी से बीबीए करने के बाद पीसीएस की तैयारी की। पीसीएस मेन्स परीक्षा में उन्होंने इतिहास और लोक-प्रशासन विषय के साथ पहले ही प्रयास में सफलता अर्जित की, और पुलिस सेवा को चुना।

शिवहरेवाणी से बातचीत में डीएसपी आस्था जायसवाल ने पीसीएस की तैयारी कर रहे युवाओं के लिए कहा कि कामयाबी का कोई गुरुमंत्र नहीं है, यदि दिल से चाहते हैं और प्रयास में डेडीकेशन, हार्डवर्क और निरंतरता हैं तो कामयाबी अवश्य मिलेगी। अभ्यर्थी ये न सोचें कि वे एकेडमिक में कैसे थे। यह लाइफ-लॉन्ग एक्सपीरियेंस है, जब जागो तभी सवेरा होता है।

एसपी आस्था जायसवाल ने कहा कि पुलिसफोर्स में महिलाओं की भूमिका पहले के मुकाबले अब कहीं अधिक अहम हो चली है, चाहे वह अपराध नियंत्रण का सवाल हो, वीआईपी सुरक्षा या कानून व्यवस्था बनाए रखने की बात हो। महिलाओं, बच्चों और बुजुर्गों के खिलाफ होने वाले अपराधों के नियंत्रण में उनकी भूमिका और भी महत्वपूर्ण हो जाती है। इसीलिए उनका फोकस नई चयनित महिलाओं को कर्मठ और जिम्मेदार पुलिसकर्मी बनाने पर है। वह इन महिला पुलिसकर्मियों को मानसिक और मनोवैज्ञानिक रूप से मजबूत बनाने के लिए विशेष ट्रेनिंग सेशन भी चला रही हैं, ताकि अपने जॉब की चुनौतियों से निपटने में खुद को फिट रख सकें।

सुश्री आस्था जायसवाल का कहना है कि इन महिलाओं को इस तरह की ट्रेनिंग दी जा रही है कि समाज के प्रति मानवीय दृष्टिकोण के साथ काम करें और ‘पीपुल्स फ्रेंडली पुलिसिंग’ करते हुए पुलिस और आम नागरिक के बीच की दूरी को पाटने का काम करें। उन्होंने कहा कि पुलिस की जॉब उतना आसान नहीं है, जितना कि लोगों को लगता है। ऐसी छवि बना दी गई है, जबकि यह बहुत टफ जॉब है और हर पुलिसकर्मी बहुत मेहनत करता है। डीएसपी आस्था जायसवाल का मानना है कि पुलिस समाज की रीढ़ है जो इस समाज को खड़े रखती है, कल्पना कीजिये कि किसी शहर में पुलिस न हो तो वहां कानून व्यवस्था का क्या हाल होगा। पुलिस में मानवीयता है, तभी यह सिस्टम चल रहा है।

NEHA JAIN IAS

NEHA JAIN IAS

डॉक्टरी का पेशा छोड़ क्यों बनीं ये लड़की आईएएस अफसर, पढ़िए नेहा जैन की सक्सेस स्टोरी


सिविल सर्विस परीक्षा (Civil Service Exam) में हर वर्ष लाखों छात्र भाग लेते हैं लेकिन कुछ उम्मीदवारों को ही अपने पहले प्रयास में सफलता मिल पाती है और कुछ उम्मीदवार कई बार प्रयास करके ही सफलता को प्राप्त कर पाते हैं। सफलता और असफलता का यही मिश्रण यूपीएससी (UPSC) को बेहद खास बना देते हैं। हमारे आस-पास कई ऐसी कहानियां मौजूद हैं जो सफलता की मिसाल कायम करती है। वे बेहद कठिन परिस्थितियों में भी हार नहीं मानती और सफलता प्राप्त करती हैं। उन्हीं कहानियों में से एक है आईएएस नेहा जैन (IAS Neha Jain) की कहानी (UPSC Success Story) जिन्होंने डॉक्टरी का पेशा छोड़ आईएएस ऑफिसर बनने का फैसला लिया।

जीवन
आईएएस ऑफिसर डॉ. नेहा जैन मूल रूप से दिल्ली की रहने वाली हैं और उनकी शुरुआती पढ़ाई भी दिल्ली में ही हुई थी। इसके बाद नेहा ने दिल्ली के एक प्रतिष्ठित संस्थान से डेंटिस्ट्री में डिग्री हासिल की और अपनी डिग्री पूरी करने के बाद, वह एक डेंटिस्ट कंसल्टेंट के रूप में शामिल हुईं। डॉ नेहा डेंटिस्ट के रूप में अपने करियर में सफल हो रही थी लेकिन उन्हें तब भी अधूरापन लग रहा था। उनका मन लगातार यूपीएससी की ओर बढ़ रहा था। लेकिन वह अपने करियर को लेकर कोई रिस्क नहीं लेना चाहती थी इसलिए उसने नौकरी के साथ यूपीएससी की तैयारी शुरू कर दी।

यूपीएससी का सफर
नेहा का मानना है कि हर दिन 4-5 घंटे की पढ़ाई से यूपीएससी की परीक्षा पास की जा सकती है। उनका मानना है कि वीकेंड में ज्यादा से ज्यादा पढ़ाई करनी चाहिए। इसके साथ ही नेहा कहती हैं कि जॉब करने वालों के लिए टाइम मैनेजमेंट बेहद जरूरी है। उनका कहना है कि अगर आपको अपनी तैयारी के दौरान कोई समस्या है तो आपको इंटरनेट पर जाना चाहिए और उसी के अनुसार तैयारी करनी चाहिए।आईएएस डॉ नेहा का मानना है कि आप नौकरी के साथ भी इस परीक्षा की तैयारी कर सकते हैं। हालांकि, आपको यह तय करना चाहिए कि किसी भी स्थिति में आपको पहला और आखिरी अटेम्प्ट के रूप में लेना चाहिए और उसी के अनुसार परीक्षा पास करनी होगी। यूपीएससी के दौरान नेहा कई बार फेल हुई लेकिन घबराने की बजाय उन्होंने अपनी स्ट्रेटेजी में बदलाव किया और सफलता प्राप्त की। उनका मानना है कि यूपीएससी जैसे अनिश्चित परीक्षा में सही सोच, बेहतर स्ट्रेटेजी, ज्यादा रिवीजन, आंसर राइटिंग प्रैक्टिस और सबसे महत्वपूर्ण है समय प्रबंधन। इन सभी को साथ लेकर तैयारी करके सफलता प्राप्त की जा सकती है।


NAMAMI BANSAL - IAS

NAMAMI BANSAL - IAS 

एक मामूली से बर्तन दुकानदार की बेटी बिना कोचिंग के बनी IAS अफसर


आप सभी जानते है जीवन का दूसरा नाम संघर्ष होता है। ज़िन्दगी में सफलता उसके ही हाथ लगती है जो संघर्षो से लड़ कर खुद को चमकाता है। जिसने सघर्षो से लड़ना सिख लिया मानो उसने जीवन में कामयाबी को जीत लिया। अगर कोई भी इन्सान मेहनत करे तो वह हर नामुमकिन काम को मुमकिन बना सकता है। मेहनत करने वालो की कभी भी हार नहीं होती है, वह हमेशा ही पराजय होते है। ऐसा ही एक कारनामा कर दिखाया है यूपीएससी टोपर नमामि बंसल ने। जिन्होंने साल 2017 में सफलता हासिल कर यूपीएससी क्रैक किया है। आज हम अपने इस पोस्ट के ज़रिये नमामि बंसल के संघर्षो के बारे में बताने जा रहे है। जिन्होंने अपने संघर्ष से लड़ कर जीत हासिल की है। और साल 2017 में उत्तराखंड यूपीएससी टॉपर हुई है। जिसकी कहानी युवाओ के लिए बहुत ही प्रेरणादायक है।


दरअसल, लाजपत राय मार्ग ऋषिकेश निवासी राज कुमार बंसल यानि नमामि बंसल के पिता को एक दिन अचानक से फोन आया कि उनकी बेटी आईएएस की परीक्षा में सफल हो गई है। यह खबर सुनते ही उनके पिता खुशी झूम उठे। मानो जैसे उनके ख़ुशी का कोई ठिकाना ही नहीं रहा। बता दे नमामि बंसल के पिता राज कुमार बंसल का ऋषिकेश में एक बर्तन की दुकान है। आपको बता दे नमामि ने अपनी प्राथमिक स्तर से लेकर इंटर तक की शिक्षा एनडीएस गुमानीवाला से की है। जिन्होंने दसवीं के परीक्षा में 92.4 और इंटर में 94.8 अंक हासिल करके स्कूल के साथ-साथ ऋषिकेश का नाम भी रोशन किया है। उनके माँ बाप को हमेशा से ही उन पर गर्व रहता था। उन्होंने कभी भी अपने माता पिता का सर नहीं झुकाया और हमेशा से ही सफलता पाती रही।


बताते चले नमामि फिलहाल दिल्ली में सेंट्रल डिप्यूटेशन पर कार्यरत हैं। आपको बता दे उन्होंने बीए अर्थशास्त्र ऑनर्स लेडी श्री राम कॉलेज दिल्ली व एमए ओपन यूनिवर्सिटी हल्द्वानी से अर्थशास्त्र विषय से किया है। इतना ही नहीं, एमए में ओपन यूनिवरसिटी की टॉपर रही, और उनको राज्यपाल केके पॉल ने 17 अप्रैल 2017 में गोल्ड मेडल से भी सम्मानित किया था। आगे नमामि बताती है कि इस परीक्षा को पास करने के लिए उन्होंने किसी भी तरह का कोचिंग ज्वाइन नहीं किया था। उन्होंने अपने विषयों की तैयारी इंटरनेट के द्वारा ही की थी, और परीक्षा को पास भी करके दिखाया। आगे वह बताती है कि इंटरनेट पर सारी जानकारियां उपलब्ध होती हैं। जिससे छात्र इससे मदद ले कर पूरी पढ़ाई कर सकते है, और अपना मुकाम हासिल कर सकते है।

इतना ही नहीं वह बालिका शिक्षा के साथ ही पहाड़ों से होने वाले पलायन को रोकने के लिए प्राथमिकता से काम करेंगी। नमामि की मां शरिता बंसल व भाई विभू बंसल ने बताया कि यह हमारे लिए बहुत बड़ी गर्व की बात है। उनकी माता ने कहा कि यह हमारी जिंदगी का सबसे बड़ी खुशी का दिन है, साथ ही साथ उनकी मां ने यह भी बताया कि उनकी बेटी नमामि अपनी पढ़ाई व तैयारी के साथ घर के सभी कामों में उनका हाथ बांटती थी। बता दे नमामि बंसल ने बतौर आईएएस अधिकारी कैडर के लिए पहली पसंद अपना गृह राज्य उत्तराखंड चुना और दूसरा विकल्प राजस्थान। इन दोनों राज्यों को चुनने के पीछे का कारण यह है कि इन दोनों ही राज्यों में नमामि की पसंद के कई विषय हैं। जिन पर वो बतौर नौकरशाह काम करना चाहती थी। नमामि के अनुसार उत्तराखंड उनका अपना राज्य है, यहां की समस्याओं और संसाधनों से वो अच्छी तरह से वाकिफ हैं।

आगे कहती है कि उत्तराखंड पर्यावरण के लिहाज से संवेदनशील भू-भाग है। उत्तराखंड ने पर्यावरण से छेड़छाड़ की बहुत बड़ी कीमत चुकाई है। हाल की आपदाएं इसका उदाहरण हैं। लेकिन यह भी सच है कि हमें विकास कार्यक्रमों को भी जारी रखना है। इसलिए विकास और पर्यावरण के बीच हमें संतुलन साधना सीखना होगा।

सेठानी का जोहडा - चुरू

सेठानी का जोहडा - चुरू 

चूरू में एक सेठानी ने अपने प्रांत के लोगों को प्यास से मरते देख अपना सारा धन खर्च करके बनवाया हुआ तालाब जो सेठानी के जोहड़ा के नाम से जाना गया।


ये बात तब की है, जब चूरू के लोग एक नई सदी के इंतज़ार में थे. 18वीं सदी बीतने वाली थी और समय था 1899 –1900 ईस्वी. तभी चूरू में भयानक छप्पनिया अकाल का प्रभाव पड़ा।थार के रेगिस्तान में बसे उस चूरू में,जहाँ भारत में सबसे ज्यादा गर्मी पड़ती है।चारों ओर पानी का आभाव था,लोग बूंद-बूंद पानी को तरस रहे थे. ऐसे में न केवल इंसानों बल्कि पशु पक्षियों और यहां तक गायें भी प्यासी मर रही थी। तभी एक एक धनी मारवाड़ी सेठानी रेत में तपते इंसानों से लेकर जानवरों तक की प्यास बुझाने के लिए चूरू में एक ऐसे ऐतिहासिक जोहड़े (तालाब) का निर्माण कराया और उस समय में भी यह सिद्ध कर दिखाया की सेठ सिर्फ जाति नहीं बल्कि पालनहार है,जिसने अकाल के अत्याचार को शिकस्त दे दी।वो कोई और नहीं बल्कि उस समय में चूरू के जाने–माने मारवाड़ी सेठ भगवानदास बागला की पत्नी थीं।

भगवानदास बागला पहले मारवाड़ी शेखावाटी करोड़पति और लकड़ी के व्यापारी होने के साथ – साथ कई सारे मिल के मालिक थे. भगवानदास मूल रूप से चूरू, राजस्थान के रहने वाले थे।सेठानी का जोहड़ा, रतनगढ़ रोड से पश्चिम में 3 किमी दूर है. यह तालाब आज भी का ‘नीलगाय’ पक्षियों और अन्य जानवरों को आकर्षित करता है।सेठानी का जोहरा चूरू से सबसे ज्यादा देखे जाने वाले स्थलों में से एक है।

118 साल पुराने सटीक आयताकार कोणीय रूप में निर्मित यह जोहड़ा अपने तीन मुखों से मुखातिब होकर मुख्य द्वार पर दक्षिणाभिमुखी है।आयताकार जोहड़ का मुख्यद्वार दक्षिण की ओर है।जोहड़ के चारो कोणों पर चार भुजाएं आकर मिलती हैं।जोहड़ में 14 स्तम्भो एवं कंगूरों से निर्मित तीन प्रवेश द्वार हैं।यह जोहड़ पत्थरों और चूने से निर्मित है।जिस पर सात स्तम्भों की छतरियाँ का निर्माण किया गया।इन छतरियों का वैभव उकेरे गये भिति चित्रों से बेहद मनमोहक दिखता है।धुंधलें पत्थरों के धरातल पर इस भव्य जोहड़े को चाँदनी रातों में निहारने के लिए दर्शनार्थी आते हैं।

करीब चार वर्ष पहले मुख्यमंत्री बजट घोषणा में इस जोहड़ के लिए 75 लाख रुपए पास हुए जिससे इसका जीर्णोद्धार कराया गया।साथ ही ऐतिहासिक स्थल के संरक्षण का बोर्ड भी लगाया गया।लेकिन आज जोहड़ के अंदर गंदगी के ढेर लगे हैं. असामाजिक तत्व यहां डेरा जमाए रहते हैं।
अब यहां हिंदी और राजस्थानी फिल्मों की शूटिंग करने फिल्म निर्देशक अच्छी लोकेशन देख कर आया करते हैं।
लोग दूर-दूर से इस जोहड़ को निहारने और इसकी स्थापत्य कला को देखने आते हैं।

सेठ समाज से होने के कारण आज उस महान देवी को याद नहीं किया जाता जिन्होंने अपने प्रांत के लाखों लोगों को उस समय प्यासा मरने से बचाया। यहां तक Women's Day पर भी देश में या राजस्थान में कोई याद नहीं करता।अब हमारे सिर्फ समाज का यह फर्ज बनता है की अपने समाज की उन महान देवी को याद करें और उनके योगदान के बारे में सभी को और आने वाली पीढ़ियों को भी बताएं।

MAHAN BALIDANI - CAPT. TUSHAR MAHAJAN

MAHAN BALIDANI - CAPT. TUSHAR MAHAJAN

असाधारण साहस और लड़ाई की भावना ने सुनिश्चित करके कुछ ही पल में आतंकवादियों का तेजी से सफाया करने वाले अद्भुत पराक्रम के धनी सेठ तुषार महाजन की जयंती पर उन्हें शत् शत् नमन


भारतीय सशस्त्र बलों का साहस और पराक्रम अद्वितीय है। हम जिस आजादी का आनंद लेते हैं और जिस शांति को हम संजोते हैं, वह उन सैकड़ों लोगों के बलिदान का परिणाम है, जिन्होंने मातृभूमि पर आतंक की छाया डालने से इनकार कर दिया। ऐसे ही एक अधिकारी थे एलीट 9 पैरा (स्पेशल फोर्सेज) यूनिट के कैप्टन तुषार महाजन।

उनके पिता सेठ देवराज गुप्ता उधमपुर के जाने-माने शिक्षाविद् थे और प्राचार्य के पद से सेवानिवृत्त हुए थे।शिक्षाविदों के परिवार में 20 अप्रैल 1989 को जन्मे कैप्टन तुषार महाजन को भारतीय सेना में शामिल होने की अपनी महत्वाकांक्षा के बारे में कभी कोई संदेह नहीं था। उनके पिता देवराज गुप्ता चाहते थे कि वह एक इंजीनियर बनें, लेकिन उन्होंने प्रतिष्ठित 9 पैरा (एसएफ) में अपना रास्ता बनाया।

9 पैरा (एसएफ) इकाई बंधक बचाव, आतंकवाद विरोधी, अपरंपरागत युद्ध, टोही और आतंकवाद विरोधी जैसी भूमिकाओं में माहिर है।

20 फरवरी, 2016 को, कैप्टन तुषार महाजन की यूनिट को आतंकवादियों को बाहर निकालने के लिए बुलाया गया था, जिन्होंने कश्मीर के पुलवामा जिले के पंपोर में एक केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल के काफिले को निशाना बनाया था, जब वे एक तलाशी अभियान से लौट रहे थे।
हमले में सीआरपीएफ के कुल 11 जवान घायल हो गए थे, जिसके बाद आतंकवादियों ने पास के उद्यमिता विकास संस्थान में शरण ली थी। 9 पैरा (एसएफ) के कार्यभार संभालने से पहले पुलिस और सुरक्षा बलों ने छात्रों और ईडीआई कर्मचारियों सहित 100 से अधिक लोगों को इमारत से बाहर निकाला।

कैप्टन तुषार महाजन के नेतृत्व में हमले की टीम ने स्वचालित हथियारों और हथगोले से भारी हथियारों से लैस आतंकवादियों को बेअसर करने के लिए देर रात अभियान चलाया। उसने और उसके लोगों ने इमारत पर धावा बोल दिया और इमारत के एक बड़े हिस्से को साफ कर दिया, जिससे आतंकवादी एक कोने में चले गए। इसी क्रम में कैप्टन तुषार महाजन को चार गोलियां लगीं। वह गंभीर रूप से घायल हो गया।
उन्हें श्रीनगर के 92 बेस अस्पताल ले जाया गया, जहां उन्होंने दम तोड़ दिया।

कैप्टन तुषार महाजन के असाधारण साहस और लड़ाई की भावना ने सुनिश्चित किया कि कुछ ही पल बाद आतंकवादियों का तेजी से सफाया हो गया।
कैप्टन तुषार महाजन को उनकी बहादुरी,अडिग लड़ाई की भावना और सर्वोच्च बलिदान के लिए शौर्य चक्र से सम्मानित किया गया।

भारत माता के वीर सपूत तुषार महाजन क को उनकी वीरता के लिए भारत सरकार द्वारा पुरस्कृत किया जाना उनके माता-पिता की आकांक्षा के ऊपर मरहम का काम करेगा जय हिंद जय भारत भारत माता की जय ऐसे वीर सपूत पैदा करने वाले माता-पिता को मेरा शत-शत नमन और मेरा भारतीय नौजवान बेटा तुषार महाजन जिंदाबाद जिंदाबाद

Tuesday, April 12, 2022

KHUSHBU JAYSWAL - MRS BHARAT TEXAS

KHUSHBU JAYSWAL - MRS BHARAT TEXAS



RADHACHARAN SETH - किस्मत हो तो राधाचरण सेठ जैसी, मिठाई दुकानदार से MLC का सफर

RADHACHARAN SETH -  किस्मत हो तो राधाचरण सेठ जैसी, मिठाई दुकानदार से MLC का सफर


आरा : राधाचरण सेठ दूसरी बार एमएलसी का चुनाव जीतने में कामयाब रहे। आरा-बक्सर स्थानीय प्राधिकार के बिहार विधान परिषद के चुनाव में जीत मिली। आरजेडी के सम्राट अनिल को एक हजार से ज्यादा वोटों से हरा दिए। राधाचरण के सेठ बनने और फिर सेठजी से नेता बनने की कहानी भी कम दिलचस्प नहीं है। आरा शहर में तो कई लोग कहते हैं कि किस्मत हो तो राधाचरण सेठ जैसी। वैसे इनकी कामयाबी की सबसे बड़ी वजह इनका मिलनसार स्वभाव भी है। राधाचरण की खासियत है कि वो कभी भी कसी से उखड़कर बात नहीं करते हैं, चाहे वो मसला जैसा भी हो।

भोजपुर-बक्सर से दोबारा एमएलसी बने राधाचरण सेठ
आरा रेलवे स्टेशन पर राधाचरण सेठ मिठाई की दुकान चलाते थे। पढ़ाई-लिखाई इतनी है कि रुपए पहचान जाते हैं और अपना नाम पता लिख लेते हैं। मिठाई दुकान चलाते-चलाते राधाचरण सेठ एक दिन होटल के मालिक हो गए। फिर जमीन और रियल एस्टेट के बिजनेस में उतर गए। नया-नया बालू का ठेका सरकार ने देना शुरू किया तो राधाचरण ने वहां भी बाजी मार ली। इसके बाद तो राधाचरण सेठ ने नोट पीट डाला। बिहार में आमतौर पर दौलत कमाने के बाद आदमी शोहरत की चाहत रखता है। राधाचरण सेठ भी कहां मानने वाले थे। 2015 विधान परिषद चुनाव में आरा-बक्सर सीट से आरजेडी का टिकट लेकर राधाचरण ने सबको चौंका दिया। भोजपुर-रोहतास के बाहुबली विधायक माने जानेवाले सुनील पाण्डेय के भाई हुलास पाण्डेय को हराकर राधाचरण सेठ ने सियासत में एंट्री मारी। अब तो राधाचरण सेठ की पहचान भोजपुर के प्रतिष्ठित नेताओं में होती है।

SABHAR: NAVBHARAT TIMES

Monday, April 11, 2022

THE GREAT BHAMASHAH

THE GREAT BHAMASHAH


 

MAHESHWARI SAMAJ OF SIRRONJ - सिरोंज का स्वाभिमानी माहेश्वरी समाज

MAHESHWARI SAMAJ OF SIRRONJ - सिरोंज का स्वाभिमानी माहेश्वरी समाज

हज़ारों दास्तानों में से एक है सिरोंज के महेश्वरी समाज की दास्तान। सिरोंज यह स्थान विदिशा से ५० मील की दूरी पर एक तहसील है। 200 साल पहले सिरोंज टोंक के एक नवाब के आधिपत्य में था। एक बार नवाब ने इस क्षेत्र का दौरा किया। उसी रात की यहाँ के माहेश्वरी सेठ की पुत्री का विवाह था। संयोग से रास्ते में डोली में से पुत्री की कीमती चप्पल गिर गई। किसी व्यक्ति ने उसे नवाब के खेमे तक पहुँचा दिया। नवाब को यह भी कहा गया कि चप्पल से भी अधिक सुंदर इसको पहनने वाली है। यह जानने के बाद नवाब द्वारा सेठ की पुत्री की माँग की गई। यह समाचार सुनते ही माहेश्वरी समाज में खलबली मच गई। बेटी देने का तो प्रश्न ही नहीं उठता था। अब किया क्या जाये? माहेश्वरी समाज के प्रतिनिधियों ने कुटनीति से काम किया। नवाब को यह सूचना दे दिया गया कि प्रातः होते ही डोला दे दिया जाएगा। इससे नवाब प्रसन्न हो गया। इधर माहेश्वरियों ने रातों- रात पुत्री सहित शहर से पलायन कर दिया तथा। उनके पूरे समाज में यह निर्णय लिया गया कि कोई भी माहेश्वरी समाज में न तो इस स्थान का पानी पिएगा, न ही निवास करेगा। एक रात में अपने स्थान को उजाड़ कर महेश्वरी समाज के लोग दूसरे राज्य चले गए। मगर अपनी इज्जत, अपनी अस्मिता से कोई समझौता नहीं किया। आज भी एक परम्परा माहेश्वरी समाज में अविरल चल रही है। आज भी माहेश्वरी समाज का कोई भी व्यक्ति सिरोंज जाता है। तो वहाँ का पानी पीता है और न ही रात को कभी रुकता हैं। यह त्याग वह अपने पूर्वजों द्वारा लिए गए संकल्प को निभाने एवं मुसलमानों के अत्याचार के विरोध को प्रदर्शित करने के लिए करता हैं।

Sunday, April 10, 2022

ARVIND GUPTA - कुशीनगर के पहले पायलट अरविन्द गुप्ता

 ARVIND GUPTA - कुशीनगर के पहले पायलट अरविन्द गुप्ता 



KHANDELWAL SAMAJ - खंडेलवाल समाज के आराध्य संत सुन्दर दास

 KHANDELWAL SAMAJ - खंडेलवाल समाज के आराध्य संत सुन्दर दास 



Saturday, April 9, 2022

HAWELIS IN SHEKHAAVATI - शेखावटी के सेठो की हवेलिया

 HAWELIS IN SHEKHAAVATI - शेखावटी के सेठो की हवेलिया 

शेखावाटी के वैश्य समाज के #सेठों ने अकाल के समय मजदूरों को रोजगार देने के लिए ये हवेलियों का निर्माण किया था...

अकेले शेखावाटी में 2000 से ज्यादा भव्य हवेलियां हैं.. इनपर की गई कारीगिरी राजस्थानी वास्तुकला का अनुपम नमूना है...उनपर तमाचा है जो कहते है बनिया कंजूस होते है बनिया ने हमेशा देश की सेवा की है



C A ELECTION - CA के चुनाव में अग्र बंधुओ ने फहराया परचम

C A ELECTION - CA के चुनाव में अग्र बंधुओ ने फहराया परचम 

पूरे भारत मे जितने (CA) #चार्टेड_अककॉउंटेड है उसमे 80% से ऊपर वैश्य समाज से है

इस परीक्षा में आरक्षण का कोई लाभ नहीं मिलता इसमें बहुत ही प्रतिभाशाली लोगो का चयन होता है
गर्व है वैश्य समाज पर सभी को बधाई,
💐

#जय_वैश्य_समाज

VASAVI KANYAKA PARMESHVARI - KULDEVI OF ARYA VAISHYAS AND HISTORY

VASAVI KANYAKA PARMESHVARI - KULDEVI OF ARYA VAISHYASAND HISTORY



Vasavi Maatha is hailed with veneration for promoting peace through Ahimsa. She is credited with averting war and thereby saving many lives through logic and reason and overcoming brute force. She taught the world harming oneself or others isn't the way forward but bringing a change of heart is what matters in averting wars.

She is elevated with heavenly stature as a goddess amongst some sections of the Komti community and for some of these sections has become the "Kula Daivam" or the clan goddess. She is the clan goddess for the Arya Vyshya, Kalinga Vaishya, Arava Vysyier, Marathi Vaishya, Beri Vysya and Trivarnika Vysya community as per the various versions of Vasavi Puranamulu written in Telugu during the 18th century AD.

The many versions of Vasavi Puranas aren't restricted to Komatis alone but are also sung by various castes like Veera Mushtis, Jakkali-vandlu, Mailaris and other bards.

Jaina Komtis venerate her as Shanti Matha Vasavi who promoted Ahimsa for the benefit of all mankind and averted warfare and loss of life through peace and reason. Her actions brought a change of heart in the King who repented and became a Jain Monk handing over his kingdom to his son.
Bhaskaracharya and Parameshwari Mahatvam

The head priest of king Vishnuvardhana's kingdom was a renowned Brahmin named Bhaskaracharya and the author of Kanyaka Puranamulu. Varnashrama had not fully taken root in the south of Vindhyas and duties for caste groups had to be appropriated according to their Varna. However, since these Komatis were being organised as Vysya's by Bhaskarachrya and imposition of Varnashrama had to be organised by occupation and birth for the benefit of the society. The duty of the King was not suitable for Kusuma Sresti since he had to become a Vysya during the reorganization of society, ruling was not his occupation and would contradict his Varna and Dharma. The Vasavi puranamulu was written to show the ill efforts of following an occupation that contradicts Varna and Dharma. The varnashrama dharma maintains the Brahmins right to perform priestly duties or take up the duties of Kings and the Kshatriyas the right to rule. The right to trade existed with the Brahmins and Kshatriyas, only if they weren't interested in their respective prescribed duty. Agriculture and cattle-rearing was prescribed as a means of livelihood for Vysyas and Shudras. Vysyas, too, along with Brahmins and Kshatriyas had the right to take up trade.
Story of Vasavi

There is no authentic version of Vasavi Puranamulu and different versions exist amongst castes who are Komati, and even those that are not Komatis such as interdependent castes like Veeramushtis - a part of the Veerashaiva sect-, Mailaris, Jakkali-vandlu etc. All these versions point to a period when Komatis faced stressful times or suffered persecution. These oral accounts sung by bards vary amongst regions, religious sects, castes and sub-castes.
Shaivite Tradition

Jangam Komtis are a sub-group of the Veerashaivas who believe Kanyaka became an ardent devotee of Shiva who turned into a mendicant (bhikshaaNdaar).

Shaivite tradition Shaivaite Komtis see Kanyaka as Kanyaka Parameshwari. She cursed a king and killed him. She later showed herself as an incarnation of Parvati and went to Kailasa marrying Shiva worshipped as Nagareshwara. This tradition is more common among Beri Komatis and Gavaras.

Recent times show that the orthodox are dropping the name Vasavi. They only call her Kanyaka Parameshwari, indicating a very violent form of Parvati with 10 hands bearing deadly swords, spears, tridents and chakras. She is shown as a blood- thirsty goddess in one of her many hands holds the severed head of King Vishnuvardhana. Kanyaka Parameshwari is shown seated on a ferocious lion, claws and fangs dripping with blood, pouncing on the decapitated body of the king. Orthodox Arya Vysyas offer many kinds of Vedic sacrifices, which include killing of animals to appease the violence-personified Goddess.
Vaishnavite Tradition

Vaishnavite Tradition Sections of the Komatis mainly the Trivarnika's and Gavara Komtis for whom Venkateshwara is the family deity follow the Vaishnava sampradaya (traditions), Kanyaka is not associated with Parameshwari by them, but as an incarnation of goddess Lakshmi. They pay homage to Lord Venkateshwara in the Tirumala hills. This change took over when Vaishnavism spread down south during the reign of King Vishnu Vardhana seeing a decline of Jainism and Buddhism.
Jaina Tradition

Komtis who practice Ahimsa worship her as Shanti Matha Vasavi Devi who convinced the King to give up his kingdom who later became a Jain monk through the teaching of Ahimsa. She blessed all Komatis to take up Ahimsa and prosper in trade. Her clever reasoning saved the lives of Komatis and non Komatis alike.

Vasavi Puranamulu in Telugu written by Bhaskaracharya


This section's factual accuracy is disputed. Relevant discussion may be found on Talk:Vasavi Kanyaka Parameswari. Please help to ensure that disputed statements are reliably sourced. (August 2017) (Learn how and when to remove this template message)


Kusuma Sresti, the king of the Arya Vysyas was ruling the kingdom making Vasavi Penugonda (called the Kasi of Arya Vysyas) (Jestasailam) as capital city for all the 18 mahapattana's during 10th–11th century AD. Kusumamba was his wife. They were ideal couple and led a peaceful domestic life. They were worshipping Lord Siva (Nagareswara swamy) and Lord Vishnu (Janardhana Swamy) as the part of their daily duties. His kingdom was part and parcel of Vengidesha, which was ruled by Vishnu Vardhana-7 or Vimaladitya Maharaj.

The couple were childless and became concerned about who would succeed them. They approached Kulaguru (family teacher) Bhaskaracharya. He advised them to perform Puthra Kamestiyaga which Dasharatha had observed.

During the auspicious hour, Kusuma Sresti couple started the yaga. The Gods were pleased and sent prasadam (a blessed fruit from god) through Yagneswara (fire god). There was a divine utterance that they would get children after eating prasadam. With utmost devotion they ate Prasadam, and within a few days the sign of pregnancy was found with Kusumamba. She expressed unusual desires, which indicated that she would give birth to children who would fight for the welfare of all.
Childhood

Kusumamba gave birth to twins on 10th of Vaishakha (a Telugu month). The boy was called Virupaksha, and the girl Vasavamba. During childhood, Virupaksha demonstrated leadership qualities while Vasavamba was inclined towards art, architecture and music and showed a philosophical approach to life.

Under the guidance of the Vysya kula guru Bhaskaracharya, Virupaksha learnt Vedas, fencing, horse riding, martial arts and archery. Vasavamba studied fine arts and mastered philosophical subjects. Virupaksha went on to marry Rathnavathi, the daughter of Aridhisresti of Aelur Town.
Attempted marriage

Kusumasresti welcomed and entertained Vishnu Vardhna (Gandharva Chitra Kanta's incarnation on Bhoolok) at Penugonda when the latter visited during an expedition to expand his empire and vanquish his enemies. During this visit, Vardhna noticed Vasavamba and determined to marry her. This caused Kusumasresti a dilemma: he was neither in a position to accept Vardhna's wishes nor to refuse the offer. The disparities of age and caste, as well as the fact that the emperor was already married, were significant objections, but, in consultation with advisers and family members, Kusumasresti decided that Vasavamba should make up her own mind. Her response to was express a desire never to marry and to focus her life on less worldly issues.

Kusumasresti told Vardhana of his daughter's decision, which caused a fury and an attempt to capture Vasavamba by force. The battalion sent to achieve this aim was thwarted by the Vysyas of Penugonda.

Kusumasresti arranged for a Great Conference comprising the Chiefs of the 18 cities and the leaders of all 714 gotras, to be held in the presence of Bhaskaracharya. There were differences of opinion at this conference, with 102 gotra chiefs preferring resistance to the overtures and attacks of Vardhna but the leaders of the other 612 gotras believing that matrimonial alliance would be safer and more beneficial. Bhaskaracharya favoured the minority view, saying that retaining respect was of greater significance than protecting life, and Kusumasresti was inspired by this support. Thus, the unity of the Vysyas was broken and the 102 gotras prepared for the defence of Penugonda against further attacks by Vardhana.
Vasavi Devi's reaction

Vasavi entered onto the scene and said: "Why should there be bloodshed among ourselves for the sake of a Girl? Why sacrifice the lives of soldiers for our selfish desire. It is better to give up the idea of war. Instead, let us rebel in a novel way. We can control war through non-violence and self-sacrifice. Only people with strong will power and moral strength can participate in this kind of self-sacrifice." Vasavi's new idea was delightful to her parents and they decided to act in accordance with Vasavi's directions.
Athmam Balidhana

As per the directions of Parameshwari, at the holy place of Brahmakunda on the banks of Godavari, the royal servants arranged 103 Agnikundas (fire pits) in a special way. The whole city was observing that day as a festival day. Then Parameshwari asked the couples of the 102 Gotras: "Will you plunge into this holy fire along with me?" Everyone of them whole heartedly gave their consent.

She smiled and revealed her true self, which had the glittering radiance surpassing the brightness of the sun. She said: "I am the incarnation of Adi Parashakti. To safeguard the caste system and to reveal to the world the magnanimity of Vysya's by feeding Bramhins regularly. I come here in Kali Yuga. Kusumasresty during last birth was a great Saint by name Samadhi as per his aspirations he could attain salvation along with the people of 102 Gotras. That is why I asked you all to undergo Athmam Balidhana." Parameshwari advised the gathering about Feeding Bramhins, Practising Rituals, Agriculture, and Cow Worship.
Vishnu Vardhana's death

Devi disappeared as soon as the divine words came out of her mouth and people saw her in human form. Then all of them entered into holy fire after meditating upon their Gods.

Though Vishnuvardhana felt bad omens, he marched ahead and reached the main entrance of Penugonda. Then his detectives reported all that had happened in the city. He could not bear the great shock and his heart shattered into pieces. He fell down vomiting blood and he was no more.

The self-sacrifice of Vasavi and the end of Vishnuvardhana was the talk of the town. People condemned the deeds of Vishnuvardhana and appreciated the epoch maker Vasavi and her non-violent principle.
Sri Vasavi Devi's legacy

The son of Vishnuvardhana, Raja Raja Narendra rushed to Penugonda and repented about the incident. Later, Virupaksha consoled him and said: "Brother, let us learn and formulate the present and future on the strong base of past. Vasavi had come to rescue of the people without giving room for great bloodshed. Her non-violence gave a good result". Hence forth Vysya's shall not fight or rule states but shall engage in service and as well wishers of others including services such as trade and agriculture.

Virupaksha visited many pilgrim centers like Kasi, Gaya and others under the guidance of Vysya kula guru Baskaracharya. To commemorate the pilgrimage they installed 101 lingas for each gotra in Penugonda. Then, Narendra installed a statue of Vasavi as a token of respect. From that day onwards all Vysya's began performing poojas to her and she is considered as Vysyakula Devatha-Vasavi Kanyaka Parameswari.

Vasavi's life is worth remembering because of her faith in non-violent religious values and her defense of the status of women. She became immortal because she has been mainly responsible for the propagation of the reputation of Vysya's throughout the world. Vasavi, who had rejected worldly pleasures, won the minds of Vysyas and is the champion of peace and non-violence and is remembered by the faithful. She averted the needless loss of life of many people of her community / kingdom through the Supreme sacrifice of sacrificing one's life through "Sati" or "Self-Immolation".

And through her "Atma Samarpana", she communicated the powerful message that "Common Good is greater than Individual benefit, and one should be ready to give up one's own life if necessary for the same...and, Sacrifice itself is greater than enjoyment of worldly pleasures got through unethical means".

Inspired by her act, couples of 102 gothras too participated in the community event, i.e all of them stepped into the 102 "Agnikundams" after she did.

Gotras


This section relies largely or entirely upon a single source. Relevant discussion may be found on the talk page. Please help improve this article by introducing citations to additional sources. (August 2017) (Learn how and when to remove this template message)


There were 714 gotras before agnipravesham of vasavi matha now there are 102 gotras among Ārya Vaiśyas. They followed 102 Rishis for conducting their rituals. Surname gotras and Rishis for identification and classification for all the Ārya Vaiśyas are one and the same. The gotras is equivalent of the Sanskrit names of Rishis.

Groups of Ārya Vaiśyas became followers of particular Rishi for conducting their rituals and they claimed to be the followers of that particular Rishi. Thus they are identified by the Rishi name. And for still feature identification they use a pre-fix surname generally indicating the area from which they migrated or the profession to which they belong and other such identification.
Caste Hierarchy

The Komatis who accepted the Varnashrama had to submit themselves to the ruling authority of the Kshatriyas regularly paying taxes and filling up the coffers of the kings (Raja Bokkasum) and follow the instructions of Brahmins to conduct all rituals. They had to give charities and had to feed Bramhin's regularly in order to maintain their caste status as Vaishya. However the Niyogi's, a powerful Bramhin caste who are also successful traders opposed them and clashes are recorded and riots occurred between Bramhins and such Komatis who took up Varnashrama. This period saw Komatis going back to Jainism and some sections embracing Buddhism and people in Karnataka and Maharashtra becoming Lingayats. Today Komatis who call themselves Arya Vysya are accepted as one of the many south Indian Vaishya castes whether they engage in trade or are in services.

Sections of Komatis are covered either in OBC or EBC reservations based on central, state or region based guidelines.

Movies

Shri Kannika Parameshwari Kathe was a big screen Kannada movie released in 1966 starring Kalpana as Sri kanyaka parameshwari and Dr. Raj Kumar, Pandhari Bai, BS Dwaraknath, Ramachandra Shastry, Narasimha Raju and Ramadevi as main star cast. This movie was produced and directed by Hunsur Krishnamurthy.

In 2012 a Telugu movie "Sri Vasavi Vaibhavam" was released depicting Goddess Kanyaka Parameshwari Devi life. Actress Meena acted as Goddess Parvati and actress Suhasini played the main role of Goddess Kanyaka Parameshwari.
References

Wednesday, April 6, 2022

बनारस का हलवाई वैश्य समाज - मिष्ठान्न महाराज यानी बचानू हलवाई

बनारस का हलवाई वैश्य समाज - मिष्ठान्न महाराज यानी बचानू हलवाई

बना रहे रस यानि बनारस। एक ऐसा शहर जिसका रस अनादि काल से बना हुआ है। ये रस इस शहर की जिह्वा से टपकता है। इसकी सांसों में भटकता है।इसकी चाल में छलकता है। इस रिसते हुए रस से ही इस शहर की पहचान है। इस रस का कोई एक रूप नही है।कोई एक रंग नही है। ये सहस्रधारा की तरह फूटता है।कभी मस्ती, कभी आस्था, कभी विश्वास, कभी सद्भाव, कभी बेपरवाही, कभी ख़ान-पान तो कभी छानने-फूंकने की शक्ल में उभरता है ये रस। इतने रसों की अजस्र धारा जहां से फूटती हो, वही बनारस है। और बचानू साव बनारस के इसी रस की साक्षात अभिव्यक्ति थे।

बचानू साव यानी बचानू हलवाई। बनारसी मिठाइयों के रस और उसकी तासीर के प्रतिनिधि चरित्र। बचानू बनारसी मिठाइयों के ‘आर्कमडीज’ थे।मधुरता और रस निष्पत्ति में कुछ नया प्रयोग, कुछ नई खोज में वे हमेशा लगे रहते। उन्हें आप बनारस का ‘मिष्ठान पुरुष’ भी कह सकते हैं। बचानू मेरे अंतरंग दोस्त थे। संवेदनशील इतने कि मिलते ही भावाद्रेक में रोने लगते। गौरांग वर्ण, चुनटदार आस्तीन वाला झक्क सफेद कुर्ता, मसलीन की धोती, मुंह में केसर वाला पान।मिलने वालो के लिए वे केसर की एक चांदी की डिबिया अलग से रखते। मौसम के हिसाब से उनके खलीते में इत्र होता , जिसे हर मिलने वाले की कलाई पर वे रगड देते। हाथ में एक झोला, उसमें कुछ चुनिंदा मिठाइयां और नमकीन। बचानू कहीं से भी हलवाई नहीं लगते थे। संगीत साहित्य और धर्म पर बातचीत की उन्हें महारत थी। जब भी बनारस में कोई राष्ट्राध्यक्ष या प्रधानमंत्री आता तो उनके खान-पान का जिम्मा बचानू के पास ही रहता। यानि एक मायने में बचानू ‘राजकीय रसोइया’भी थे। मिठाई तो मिठाई, उनका हाथ लगते ही सब्जियों और रोटी से भी ‘स्वाद’बहता था।

बचानू पढ़े लिखे नहीं थे। पर हर साहित्यिक, सांस्कृतिक और राजनैतिक जमावड़े में हाज़िर रहते थे। किसी भी समारोह में वे उल्कापिंड की तरह गिरते और आकर्षण का केन्द्र बन जाते। बचानू तत्वज्ञानी थे, गहरी बातें करते थे। लोक में भले यह प्रचलित हो कि हलवा बनाने वाले ही हलवाई हुए, पर बचानू इसे नहीं मानते थे। उनकी दलील थी कि हलवा तो मुगलों के साथ भारत आया और हलवाई वैदिक काल से थे। इसलिए वे हलवाई को हलवाही (हल चलाने वालों) से जोड़ते। वे उन्हें हल चलाकर अन्न पैदा करने और अन्न से पकवान बनाने वाला कहते थे। हलवा वैदिक काल में भी था। उसे ‘संयाव’ कहा जाता था। वह जौ या चावल के आटे और गुड़ से बनता था क्योंकि तब गेहूं हमारे यहां नहीं होता था। गेहूं इस देश में बाबर के साथ ‘गेन्दुम’ के तौर पर ईरान से आया। इसीलिए हमारी किसी पूजा पद्धति में कहीं गेंहू का कोई स्थान नहीं है। हर कहीं जौ और चावल ही है। यही हमारे प्राचीन अन्न थे। एक बार मुझे बचानू ‘अखिल भारतीय वैश्य हलवाई महासभा’ भदोही ले गए। वहां हलवाइयों का जो इतिहास लिखा था, उसके मुताबिक हलवाही कर अन्न उगाना और उसका मोदक सहित दूसरे मिष्ठान बनाने के कारण यह समूह ‘हलवाई’ हुआ, जिसे कहीं कहीं ‘मोदनवाल’ भी कहते हैं।

बनारस में जितनी विविध, प्रयोगधर्मी और औषधीय गुणों से लैस नाना रुपी मिठाइयां बनती हैं, उतनी दुनिया के किसी कोने में नहीं बनती। बचानू की यह उक्ति कहीं से प्रमाणित नहीं थी, पर वे अकसर कहते थे कि वेजिटेरियन, नॉनवेजिटेरियन के साथ ही एक ‘हिंदूटेरियन’ भी होता है। यानी जो हिन्दू देवताओं को प्रिय हो, उन्हें भोग लगाया जाए वह ‘हिन्दूटेरियन’। इस श्रेणी में बचानू पुआ, हलवा, लड्डू और दूसरी देशी मिठाइयों को गिनते थे। उनका दावा था कि देवताओं के ‘छप्पन भोग’ ‘हिन्दूटेरियन’ ही हैं। हलवाइयों की समृद्ध परम्परा को बताते-बताते बचानू आत्मगौरव से भर जाते। उनके मुताबिक़ उन्हें हलवाई नहीं वैद्य या ‘हकीम हलवाई’ कहना चाहिए क्योंकि वे मेवे और घी के औषधीय गुणों को ध्यान में रख कर ही मिठाई बनाते थे। अपनी महान परम्परा को याद करते करते वे यहां तक कहते थे कि महाराज मोदनसेन, यज्ञसेन, गणीनाथ, महान भक्त पलटुदास और छायावादी कवि जयशंकर प्रसाद सब हलवाई ही तो थे।

बचानू साव से मेरी दोस्ती की एक वजह थी। मेरा अराजक किस्म का मिष्ठान प्रेमी होना। आखिर क्यों न होंऊ? हेमचन्द ने चिन्तामणि में लिखा है, "काम्यं कम्र कमनीयं सौम्यञ्च मधुरं प्रियम्, ब्राह्मणम मधुरम प्रियम।" अब ब्राह्मण हूं तो मिठाई तो प्रिय होगी ही। इसलिए आज भी हर दूसरे-तीसरे रोज बनारस से मिठाइयां जहाज और रेल के जरिए हमारे नोएडा के घर में आती रहती हैं। बनारस, बीकानेर और इन्दौर के अलावा कहीं की मिठाइयां मुझे सोहाती नहीं। बचानू साव की मिठास परम्परा लम्बी थी। वे 150 साल पुरानी बनारस की ‘राजबन्धु’ मिठाई के दुकान के मालिक थे। बचानू बिरले इसलिए थे कि मेरे जैसे सैकड़ों लोगों में मिठाई खाने-खिलाने की समझ और संस्कार उन्हीं ने बनाए थे। इसलिए बचानू साव मेरे लिए खास थे। वे जब भी दिल्ली आते, हमारे घर आ रसोई में जाकर कुछ न कुछ विशेष ज़रूर बनाते। सरकार के अभिलेखों में उनका नाम राज किशोर गुप्त दर्ज था, पर बनारसी उन्हें बचानू साव के नाम से ही जानता था। वे बनारस की रईस परंपरा के हलवाई थे। सारे रईसों के समारोहों के भोजन व्यवस्थापक वही होते थे। मिठाई में शोध, प्रयोग और पौष्टिकता बढ़ाने के उपायों में उनका कोई सानी नहीं था। उनकी कोशिश होती थी कि मिठाइयों को कैसे सेहतमंद बनाया जाए। वे बनारस की विभूति थे। महात्मा गांधी हों या पंडित नेहरू, मार्शल टीटो हों या इंदिरा गांधी या फिर सिरीमावो भंडारनायके, दलाई लामा, पंडित रविशंकर या एमएस सुब्बलक्ष्मी, बचानू सबको खुद पकाकर भोजन करा चुके थे। इससे नीचे वे किसी और को कुछ समझते नहीं थे। ऐसा हलवाई आपको देश में दूसरा नहीं मिलेगा जिसने इतनी विभूतियों को अपने हाथों खाना खिलाया हो।

अब बचानू के ताव का एक उदाहरण। बात सन 1999 की होगी। मेरे पुत्र पुरू पंडित का जन्म हुआ था। उनके जन्म के एवज में मित्रों की पार्टी थी।बचानू उसके इन्तजामकार थे। या यों कहें बचानू के दबाव में ही वो पार्टी रखी गयी थी। वे बनारस से मय कारीगर और सामान के लखनऊ आए। तब कल्याण सिंह मुख्यमंत्री थे। पार्टी में कल्याण सिंह और उनके कुछ मंत्रिमंडलीय साथी आए। पार्टी चल रही थी, तभी किसी अफ़सर ने बचानू को महज़ हलवाई समझ कुछ सवाल जवाब कर मुख्यमंत्री के लिए कुछ लाने का आदेश दिया। बचानू बिफर गए, उन्हें ताव आ गया। "कौन मुख्यमंत्री? हमारे लिए सब बराबर हैं। हमें फ़र्क़ नहीं पड़ता। बहुत बड़ा बड़ा अदमी के खाना खिया चुकल हई। नेहरू ,शास्त्री, इन्दिरा ,मार्शल टीटो, कोई आकर्षण नाहीं हौअ। बहुत मुख्यमंत्री देखलीं। आपन काम करा।" मैंने बचानू को समझाया कि वो अफ़सर हैं, उन्हें आपके बारे में क्या पता। बचानू शान्त हुए पर मुख्यमंत्री से मिलने नहीं गए।

बनारसी हलवाइयों की कोई दो सौ बरस की एक समृद्ध और सुस्वादु परम्परा रही है। बिहारी साव, हरखू साव, मथुरा साव, केदार साव और बैजू साव। इन सबका केन्द्र बनारस का ठठेरी बाज़ार था। पिछली शताब्दी में बिहारी साव का राज था। मिठाई बनाने का अन्दाज़ और प्रयोगधर्मिता उनकी श्रेष्ठ थी। चौखम्भा में उनकी दुकान ‘दी राम भंडार’ को अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति मिली। भारतेन्दु बाबू के घर के पास होने के कारण इस दुकान को उनका संरक्षण था। इसकी शाखाएं अब पूरे शहर में है।पर आज ‘राम भण्डार’ के मूल सज्जन कचौड़ी, जलेबी, छोला समोसा ही बना रहे है। दीपक टाकीज पर बैजू साव का काला छोला, समोसा और दही बूंदिया जगत प्रसिद्ध थी। ब्रह्मनाल का शिव भण्डार मधुरता का काशी में दूसरा केन्द्र था। हिन्दी के महान आचार्य विश्वनाथ प्रसाद मिश्र की यहां बैठकी होती थी। आगे चल कर इसी की एक शाखा केदार साव की ‘मधुर जलपान’ के नाम से ख्यात हुई। इस दुकान पर महान साहित्यकार जयशंकर प्रसाद रोज़ अड़ी लगाते थे। डॉ. सम्पूर्णानन्द और पंडित कमलापति त्रिपाठी भी यहॉं के बैठकबाजो में थे।उनकी फ़ोटो आज भी दुकान पर टंगी है।महाकवि जयशंकर प्रसाद भी हलवाई थे और केदार साव के रिश्ते में भी थे। प्रसाद जी के कारण यह दुकान साहित्यिक गतिविधियों का केन्द्र बनी।बाद में केदार साव के बेटे घनश्याम गुप्त ने यह सिलसिला जारी रखा। वे ‘ठलुआ क्लब’के पदाधिकारी भी थे। घनश्याम ‘घमोच कवि’ के नाम पर कविता भी करते थे। अक्सर उनकी कवि गोष्ठी रामापुरा में उनके घर की छत पर होती जहां ‘मधुर जलपान’ के पेटभरूआ नाश्ते का चौचक इंतजाम रहता। एक दो बार उनकी छत पर होने वाली कवि गोष्ठी में मैं भी पिता जी के साथ गया हूं। भैयाजी बनारसी, बेधड़क बनारसी, कांतानाथ पांडेय 'चोंच',धर्मशील चतुर्वेदी, चंद्रशेखर मिश्र के साथ कई बड़े कवि उसमें शामिल होते थे।

मथुरा साव बिहारी साव के ही समकक्ष थे। ठठेरी बाज़ार में उनकी भी दुकान बिहारी साव के रामभण्डार के सामने ही थी। मिठाई में दूध खोवे के अलावा सब्ज़ी और अन्न को लेकर उन्होंने बेहतरीन प्रयोग किए, पर भाग्य उनके साथ नहीं था। आज़ादी की लड़ाई में केसर, काजू और पिश्ते की तीन परत से तिरंगी बर्फ़ी उन्होंने ही बनाई। पर दुकान बिहारी साव की चलती थी इसलिए लोक स्मृति में वह मिठाई बिहारी साव यानी ‘राम भंडार’ के खाते में चली गयी। मथुरा साव की गाड़ी तब पटरी पर आई जब उनके बेटे बचानू साव ने ‘राजबन्धु’ की ज़िम्मेदारी सम्भाली। फिर क्या था, बचानू ने करिश्मा कर दिया। अपने स्वभाव, लटके बाज़ी और विनम्रता में पगे मिजाज से उन्होंने इस कारोबार में अभेद्य लकीर खींच दी। फिर तो धीरे-धीरे बनारसी पाकशास्त्र का दूसरा नाम ही ‘बचानू’ बन गए।

भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान जब तिरंगा फहराना जुर्म था और तिरंगा देखकर फिरंगी शासन भड़कता था, तब बनारस में बचानू साव के पिता ने तिरंगी बरफी का ईजाद किया था। लेकिन मिठाइयों में रंग डालकर नहीं। काजू से सफेद, केसर से केसरिया और पिस्ते की हरी परत से तिरंगी बरफी बनाई। बाद में यह राष्ट्रीय आंदोलन की मिठाई बन गई। स्वतंत्रता संग्राम में एक हलवाई का इससे बेहतर योगदान क्या हो सकता है! बचानू साव सिर्फ मिठाइयों की पौष्टिकता ही नहीं, उसके अर्थशास्त्र और समाजशास्त्र का भी खयाल रखते थे। अगर काजू का मगदल गरीब आदमी की पहुंच से बाहर है, तो वे काजू हटाकर बाजरे का मगदल बनाते थे। उसकी तासीर और स्वाद वैसे ही रख उसे सामान्य आदमी की पहुँच में ला देते थे। मगदल एक ऐसी मिठाई होती है, जो उड़द दाल, काजू, जायफल, जावित्री, घी और केसर से बनती है। यह स्मृति और पौरुष बढ़ाने वाली मिठाई होती है। आयुर्वेद और यूनानी ग्रंथों में इसका उल्लेख मिलता है। आपको कब्ज है तो काजू की मिठाई से रोग और बढ़ सकता है। पर अगर उसके साथ अंजीर मिलाकर बरफी बने तो यह दवा बनेगी, जो कब्ज के लिए फायदेमंद होगी। बचानू के पास ऐसे कुछ अमोघ फॉर्मूले थे।

कब, कौन सी और कैसी मिठाई खानी चाहिए, इसका ज्ञान मुझे उन्हीं से हुआ था। ठंड में वातनाशक, वसंत में कफनाशक और गरमियों में पित्तनाशक मिठाइयॉं होनी चाहिए। वात, पित्त और कफ। आयुर्वेद का पूरा चिकित्सा विज्ञान इसी में संतुलन बिठाता है। बादाम सोचने-समझने की ताकत बढ़ाता है, पर उसका पेस्ट कब्ज बना सकता है। बादाम के दो भागों के बीच अनान्नास का पल्प डाल उन्होंने एक मिठाई बनाई ‘रस माधुरी’। इसमें फाइबर भी था और यह ‘एंटी ऑक्सीडेंट’ भी। नागरमोथ, सोंठ, भुने-चने के बेसन और ताजा हल्दी से वे एक लड्डू बनाते थे, ‘प्रेम वल्लभ’ जो कफनाशक था। स्वाद में बेजोड़। मिष्ठान्न निर्माण में वे सिर्फ ऋतुओं का ही ध्यान नहीं रखते थे बल्कि उसके डिटेल में भी जाते थे। सूर्य के उत्तरायण और दक्षिणायण होने से उनकी मिठाइयों की तासीर और तत्त्व बदल जाते।

बचानू सोंठ और गोंद का एक लड्डू बनाते जो वास्तव में ‘पौरुषवर्धक’ होता। उनके ही चलते मुझे खान पान की तासीर को लेकर नई नई जानकारी रखने का शौक चढ़ा। ‘भावप्रकाश निघंटू’ और ‘इंडियन मेटेरिया मेडिका’ वनस्पतियों, मसालों, वृक्षों और उनकी पत्तियों की तासीर बताने वाली किताब है जो हमारे खान-पान में विशेष काम आती है। इस परंपरा का भी एक इतिहास है। अवध के नवाबों के दौर में खाना बनाने वाले बावर्चियों को हकीम बावर्ची कहते थे। वे सिर्फ रसोइए नहीं होते थे। वे खानपान के अवयव में पौष्टिकता और उद्दीपन के तत्व समझकर फिर खाना बनाते थे। इसीलिए उन्हें ‘हकीम बावर्ची’ कहते थे। बचानू भी मिठाइयों का सेहत के साथ ऐसा ही संतुलन बनाते थे।

मिठाइयों को दूध बेसन के तत्वों से हटाकर उसमें सब्ज़ी और वनस्पतियों का प्रयोगधर्मी इस्तेमाल बचानू ने पहले पहल किया था। सोंठ, मकरध्वज, शिलाजीत, अम्बर, शतावर, गोरखमुडीं को मिलाकर, वे एक लड्डू बनाते थे। सोंठ का मतलब सूखी अदरक से होता है। यह अदरक का ही शोधित रूप है। अदरक की तासीर गर्म होती है, रक्तचाप बढ़ाती है। मकरध्वज शिलाजीत का दूसरा नाम है। इसे ‘आइरन स्फेद’ कहते हैं। आप इसे पहाड़ का पसीना भी कह सकते हैं। कस्तूरी और अंबर दोनों ही आयुर्वेद की प्रतिबंधित औषधि हैं। कस्तूरी मृग की नाभि से प्राप्त होती है। अंबर व्हेल मछली के मुंह से निकली गाज है। शतावर बाजीकरण की वनस्पति है। गोरखमुंडी को वनस्पति विज्ञान में ‘सेटेंस इंडिकास’ कहते हैं। यह एक जंगली फूल है जिसे डेजी भी कहते हैं। कायकाज फर्न परिवार की एक वनस्पति है। इसे ‘हेलयिन्थोस्टलेज जिलोरिया’ कहते हैं। यह दक्षिण पूर्व एशिया से भारत आया। यूनानी ग्रंथों में इसे पुष्टिवर्धक कहते हैं। इन सभी मसालों को तिब्बत में भी टॉनिक की श्रेणी में रखते हैं। बचानू सबके जानकार थे। यहां जो ज्ञान मैं उड़ेल रहा हूं वह उन्हीं का दिया हुआ है।बस गड़बड़ यह थी कि बचानू दूसरे मिज़ाज के आदमी थे।

बचानू साव के बहाने मुझे भारत में मिष्ठान्न का समृद्ध इतिहास जानने को मिला। मिठाइयां तो वैदिक काल में भी थी। पर उस वक्त मिठाई के नाम पर गुलगुला या पूआ ही बनता था। गुलगुले को आटे और शक्कर या गुड़ के घोल से बनाया जाता है. इसमें स्वाद और खुशबू के लिए थोड़ी सी कुटी इलायची और सौंफ भी डाली जाती है। पुऐ और गुलगुले में गुण और स्वाद में कोई फ़र्क़ नहीं है। केवल आकार का फ़र्क़ है। वैदिक साहित्य में पुए को ‘अपूप’ कहा गया है। ऋग्वेद में, पतंजलि में, महाभारत के अनुशासन पर्व में और सुश्रुत एवं चरक संहिता में भी ‘अपूप’ का ज़िक्र है। ऋग्वेद में घृतवंत अपूपों का वर्णन है। गन्ने के रस से बनी शक्कर और विभिन्न प्रकार के मिष्ठान्न: ऋग्वेद में उल्लिखित है कि आर्यों का मिष्ठान्न ‘अपूप’ था। ऋग्वेद (3.52.7) में इसे अपूप (पुआ) कहा गया। ऋषि इन्द्र को न्योता देते हैं, “मरुतों के साथ आओ, अपूप खाओ।”

पूषण्वते ते चकृमा करम्भं हरिवते हर्यश्वाय धाना:।

अपूपमध्दि सगणो मरुद्भि: सोमं पिब वृत्रहा शूर विद्वान्।।

अथर्ववेद (18.4.16) में भी 'अपूप' का उल्लेख है। यह उस समय का मालपुआ है। इसे घी मिलाकर बनाया जाता था।

अ॑पू॒पवा॑न्क्षी॒रवां॑श्च॒रुरेह सी॑दतु। लो॑क॒कृतः॑

पथि॒कृतो॑ यजामहे॒ येदे॒वानां॑ हु॒तभा॑गा इ॒ह स्थ॥

बचानु साव जिस परंपरा के प्रतिनिधि थे, उसकी जड़ें बेहद गहरी हैं। पाणिनी ने तक्षशिला और कंधार से लेकर कामरूप और विन्ध्याचल से ऊपर के भारत का पैदल भ्रमण किया था और उस वक्त प्रचलित शब्दों को इकट्ठा किया। बाद में इन शब्दों का वर्गीकरण कर उन्होंने एक मानक कोश की रचना की। उनकी यह ‘अष्टाध्यायी’ केवल एक व्याकरण ग्रंथ ही नहीं है, उसमें तत्कालीन भारतीय समाज के लोकाचार के अनेक वर्णन हैं। पाणि‍नी द्वारा ‘अष्‍टाध्‍यायी’में पकवानों के साथ-साथ कुछ मिष्ठानों का भी वर्णन किया गया है।आज से ढाई हज़ार साल पहले इस देश में कौन कौन से मिष्ठान बनाए जाते थे, भोजन-प्रबंध की क्या रीति थी,पर्व, उत्सव,सत्कार के क्या व्यंजन थे, इस सबका रसवंत ब्यौरा इस किताब में है।

पाणिनी के वक्त भी हलवे को "संयाव" कहा जाता था। महाभारत में भी अनेक विशिष्ट व्यंजनों का उल्लेख मिलता है। ये व्यंजन प्राय दूध, घी, दही शहद आदि के बने होते थे। इनमें कृसर, पायस, अपूप, संयाव, घृतमिश्रित खीर, नवनीतमिश्रित व्यंजन ख़ास हैं। आर्यों का सर्वाधिक प्रिय पेय था दूध। अथर्ववेद में दूध से बने खाद्य पदार्थ 'खीरवान' कहे गए हैं। दही से बने खाद्य पदार्थ दधिवान, अन्न से बने अन्नवान, रस से बने रसवान, शहद या अन्य मधुपदार्थों से बने मधुमान बताए गए हैं। वैदिक कालीन समाज में दूध में पके हुए चावल को क्षीर पकोदनम (खीर) कहा जाता था।

मिठाइयों के विस्तृत विवरण और उन्हें तैयार करने के तरीके के साथ एक प्रामाणिक ग्रंथ है ‘मानसोल्लास’। मानसोल्लास (मानस+उल्लास= मन का उल्लास) 12वीं शती का महत्वपूर्ण संस्कृत ग्रन्थ है जिसके रचयिता चालुक्यवंश के राजा सोमेश्वर तृतीय हैं। इसे 'अभिलाषितार्थचिन्तामणि' भी कहते हैं। भोजन, संगीत और दूसरी भारतीय कलाओं के इस प्राचीन विश्वकोश को 'अभिलाषितार्थचिन्तामणि' के रूप में भी जाना जाता है। मानसोल्लास में एक मिष्ठान का वर्णन है पायसम (संस्कृत: पायसं) जिसे ‘खीर’ भी कहा जाता है। पायसम विभिन्न प्रकार के होते हैं जैसे सेंवई, साबूदाना, दाल, गेहूं के दाने, खसखस आदि से बने। मानसोल्लास में सात प्रकार के चावल का उल्लेख है। पायसम चावल, विभिन्न प्रकार नट्स और अन्य सूखे मेवे और चीनी के साथ धीमी आंच पर पकाया जाता है। हालांकि कभी-कभी गुड़ और नारियल के दूध का भी उपयोग किया जाता था।

इसी तरह अमरकोष में जिक्र है कि दूध और चावल को एक साथ पकाकर खीर बनाई जाती थी। यह बहुत पौष्टिक एवं स्वादिष्ट होती थी। अग्निपुराण के अनुसार लोग दूध को मीठा करके पीते थे। पुराणों मे एक राजा है रंतिदेव। बहुत दानवीर और आतिथि परायण। ज़िक्र आता है अतिथि के सत्कार के लिए इनके यहॉं दो लाख हलवाई थे। सोचिए कितने लोगों को रोज खिलाते होंगे। इनका अपने महामना मालवीय से क्या संबंध था, यह फिर कभी बताऊंगा,अभी विषयांतर होगा।

बचानू साव मेरे लिए इसी महान परंपरा की जीवंत कड़ी थे जिनसे मैने बहुत कुछ सीखा।हलवाई जाति का प्रादुर्भाव और इतिहास पुराना है। वैदिककाल से वर्तमान काल खण्डों तक यानी यजुर्वेद (अध्याय-32 सुक्ति-12),अथर्ववेद (अध्याय 44 क-18), वराहपुराण, मनुस्मृति, गर्ग संहिता (खण्ड-7 अध्याय-8), वर्णविवेक चन्द्रिका, वर्ण विवेकसार जैसे महत्वपूर्ण ग्रन्थों में ये हर कहीं दर्ज है। हलवाइयों के आदि पुरुष मोदनसेन महाराज की वंशावली के अनुसार हलवाई वैश्यों की 352 उपजातियां हैं। पाकिस्तान और बांग्लादेश में मुस्लिम हलुवाई को ‘बसोवास’कहते हैं ।

मैने पहले ही लिखा है कि बचानू से मुझे अक्सर ही कुछ नया जानने को मिलता। बचानु संत पलटूदास के कुछ दोहे और कुंडलियां भी सुनाते थे। पलटूदास फैजाबाद के थे।वे संत भीखादास के शिष्य थे। हलवाई थे। सो बचानू उनके हवाले से सुनाते थे।

लस्सी बूंदी रसमलाई, ख़ास सो स्वामी होय,

कहा सुनी की है नहीं ख़ास पिए की बात

कोई मिठाई न दे सकी रसमलाई को मात

लस्सी से शक्ति भक्ति बूंदी से मिले मिठास

रसमलाई पलक में ब्रह्म का हो आभास

पलटू सुभ दिन सुभ घड़ी धन्य हैं सोहन माई

लस्सी बूंदी सब फीकी हुई खाई जो रस मलाई।

बचानू का मिठाइयों से ऐसा गहरा नाता था कि वे मिठाई के साथ ही दुनिया छोड़ना चाहते थे। दिल्ली के एक बड़े अस्पताल मैक्स में उनके दिल का ऑपरेशन था। ऑपरेशन से पहले एक रोज वे डॉक्टर से उलझ पड़े। बचानू ने अपने कमरे में मिठाइयों के ढेर सारे पैकेट रखे थे। उन्हें देखने आने वालों को खिलाने के लिए। लेकिन डॉक्टर को गलतफहमी हुई। उन लोगों ने समझा कि हृदय की धमनियां बंद हैं, इतनी मिठाई कहीं वे खुद तो नहीं खा रहे हैं? डॉक्टर ने आदेश दिया कि मिठाइयों को कमरे से तुरंत हटाएं। मामला बिगड़ गया। डॉक्टर नाराज, बचानू उनका कहा नहीं मान रहे थे। दूसरे रोज ऑपरेशन होना था। वे अस्पताल के अपने कमरे से मिठाई हटाने को तैयार नहीं थे। अस्पताल में भर्ती मैने कराया था, सो पंचायत करने भी मुझे ही जाना पड़ा। बचानू मुझे देखते ही कहने लगे , “जान भले चली जाए, पर मिठाई को मैं अपने से दूर नहीं करूँगा।” मैंने डॉक्टर से कहा, “वे खाते नहीं हैं, सिर्फ देखते हैं। मिठाई की गंध उनकी प्राणवायु है। मिठाइयों से उनका गहरा नाता है। मिठाई के बिना उनकी जिजीविषा कम हो सकती है। इसलिए मिठाइयों को उनके कमरे में ही रहने दें। वे खाएंगे नहीं। मिठाइयों के बीच खुद को पाकर, वे अपनी मीठी दुनिया से जुड़े रहते हैं।” मेरे अटपटे तर्क से किसी तरह डॉक्टर माने। बचानू साव का ऑपरेशन हुआ। वे ठीक होकर बनारस लौट गए। पर कुछ ही दिन बाद वे हमारी ज़िन्दगी में मिठास छोड़ खुद अनंत की ओर चले गए।

बचानू ‘सेमी-लिटरेट’ थे। पर धर्म, दर्शन, साहित्य और संगीत पर वे हर बनारसी की तरह बहस कर सकते थे। काशी विश्वनाथ मंदिर से तड़के जो ‘सुप्रभातम्’ गत पचास वर्षों से प्रसारित हो रहा है, वह इन्हीं की देन है। पूरे देश के संगीतकारों-गायकों को मिठाई खिलाकर उन्होंने उनसे सुप्रभातम् मुफ्त में गवा लिया। ‘सुप्रभातम्’ गाने के एवज में जब वे एम.एस. सुबुलक्ष्मी के पास पत्रं पुष्पम् का चेक लेकर पहुंचे तो सुबुलक्ष्मी ने चेक लौटा दिया और कहा इसे आप अपने ट्रस्ट में लगाएं। दिन के हिसाब से यह प्रसारण हर रोज बदलता है। ऐसा कोई बड़ा गायक, वादक या संगीतकार नहीं है, जिसने इस ‘सुप्रभातम्’ में न गाया हो। आज भी ‘सुबहे बनारस’ की शुरुआत बचानू के ‘सुप्रभातम्’ से होती है। बचानू इलाहाबाद के कुंभ में पूरे डेढ़ महीने एक टेंट में कल्पवास सिर्फ इसलिए करते थे कि वे सार्वजनिक उद्दघोषणा प्रणाली के जरिए हर रोज सुबह पांच बजे से सात बजे तक अपना ‘सुप्रभातम्’ प्रसारित करवा सकें। वे वहीं रुककर कुंभ के दौरान मेला क्षेत्र में भजन का रस घोलते। इसके लिए वे सरकार से लेकर मेला अधिकारी तक हर दरवाजे का चक्कर लगाते और आखिरकार प्रसारण करवा लेते।

वे बनारस के सांस्कृतिक रत्न थे। हर साल ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी को देश की सभी नदियों से जल लाकर वे काशी विश्वनाथ का अभिषेक करवाते थे। अभिषेक में प्रमुख जल बारी-बारी से बारह ज्योतिर्लिंगों में से किसी एक ज्योतिर्लिंग से आता था और उसी ज्योतिर्लिंग के पुजारी काशी विश्वनाथ का अभिषेक करते थे। देश की सांस्कृतिक एकता को मजबूत करने का उनका यह अनूठा प्रयास था। जो संस्कृति हमारे बाहर-भीतर हर जगह समाप्त हो रही है, बचानू उसे पुनर्जीवित करना चाहते थे। मिठाइयों के एवज में हम उन्हें लिफाफा देते, जिसमें कुछ शब्द होते, अर्थ नहीं। वे कहते थे कि शब्द में भी तो अर्थ ही होता है। बचानू साव अब नहीं हैं, पर उनकी मिठास आज भी कायम है। उनका घोला रस उन्हें जानने वालों के ज़ेहन में आज भी प्रवाहित हो रहा है। ‘रस सिद्धांत’ को दुनिया के सामने लाने वाले भरतमुनि थे। पर बनारसी मधुरता के रस निष्पादक तो ‘बचानू साव’ ही थे। वाह रजा बचानू! जब तक समाज में मिठास रही तूं याद आवत रहबअ।

साभार: (रेखांकन-माधव जोशी), हेमन्त शर्मा,© Hemant sharma, बनारस के किस्से और लोग