सेठानी का जोहडा - चुरू
चूरू में एक सेठानी ने अपने प्रांत के लोगों को प्यास से मरते देख अपना सारा धन खर्च करके बनवाया हुआ तालाब जो सेठानी के जोहड़ा के नाम से जाना गया।
ये बात तब की है, जब चूरू के लोग एक नई सदी के इंतज़ार में थे. 18वीं सदी बीतने वाली थी और समय था 1899 –1900 ईस्वी. तभी चूरू में भयानक छप्पनिया अकाल का प्रभाव पड़ा।थार के रेगिस्तान में बसे उस चूरू में,जहाँ भारत में सबसे ज्यादा गर्मी पड़ती है।चारों ओर पानी का आभाव था,लोग बूंद-बूंद पानी को तरस रहे थे. ऐसे में न केवल इंसानों बल्कि पशु पक्षियों और यहां तक गायें भी प्यासी मर रही थी। तभी एक एक धनी मारवाड़ी सेठानी रेत में तपते इंसानों से लेकर जानवरों तक की प्यास बुझाने के लिए चूरू में एक ऐसे ऐतिहासिक जोहड़े (तालाब) का निर्माण कराया और उस समय में भी यह सिद्ध कर दिखाया की सेठ सिर्फ जाति नहीं बल्कि पालनहार है,जिसने अकाल के अत्याचार को शिकस्त दे दी।वो कोई और नहीं बल्कि उस समय में चूरू के जाने–माने मारवाड़ी सेठ भगवानदास बागला की पत्नी थीं।
भगवानदास बागला पहले मारवाड़ी शेखावाटी करोड़पति और लकड़ी के व्यापारी होने के साथ – साथ कई सारे मिल के मालिक थे. भगवानदास मूल रूप से चूरू, राजस्थान के रहने वाले थे।सेठानी का जोहड़ा, रतनगढ़ रोड से पश्चिम में 3 किमी दूर है. यह तालाब आज भी का ‘नीलगाय’ पक्षियों और अन्य जानवरों को आकर्षित करता है।सेठानी का जोहरा चूरू से सबसे ज्यादा देखे जाने वाले स्थलों में से एक है।
118 साल पुराने सटीक आयताकार कोणीय रूप में निर्मित यह जोहड़ा अपने तीन मुखों से मुखातिब होकर मुख्य द्वार पर दक्षिणाभिमुखी है।आयताकार जोहड़ का मुख्यद्वार दक्षिण की ओर है।जोहड़ के चारो कोणों पर चार भुजाएं आकर मिलती हैं।जोहड़ में 14 स्तम्भो एवं कंगूरों से निर्मित तीन प्रवेश द्वार हैं।यह जोहड़ पत्थरों और चूने से निर्मित है।जिस पर सात स्तम्भों की छतरियाँ का निर्माण किया गया।इन छतरियों का वैभव उकेरे गये भिति चित्रों से बेहद मनमोहक दिखता है।धुंधलें पत्थरों के धरातल पर इस भव्य जोहड़े को चाँदनी रातों में निहारने के लिए दर्शनार्थी आते हैं।
करीब चार वर्ष पहले मुख्यमंत्री बजट घोषणा में इस जोहड़ के लिए 75 लाख रुपए पास हुए जिससे इसका जीर्णोद्धार कराया गया।साथ ही ऐतिहासिक स्थल के संरक्षण का बोर्ड भी लगाया गया।लेकिन आज जोहड़ के अंदर गंदगी के ढेर लगे हैं. असामाजिक तत्व यहां डेरा जमाए रहते हैं।
अब यहां हिंदी और राजस्थानी फिल्मों की शूटिंग करने फिल्म निर्देशक अच्छी लोकेशन देख कर आया करते हैं।
लोग दूर-दूर से इस जोहड़ को निहारने और इसकी स्थापत्य कला को देखने आते हैं।
सेठ समाज से होने के कारण आज उस महान देवी को याद नहीं किया जाता जिन्होंने अपने प्रांत के लाखों लोगों को उस समय प्यासा मरने से बचाया। यहां तक Women's Day पर भी देश में या राजस्थान में कोई याद नहीं करता।अब हमारे सिर्फ समाज का यह फर्ज बनता है की अपने समाज की उन महान देवी को याद करें और उनके योगदान के बारे में सभी को और आने वाली पीढ़ियों को भी बताएं।
No comments:
Post a Comment
हमारा वैश्य समाज के पाठक और टिप्पणीकार के रुप में आपका स्वागत है! आपके सुझावों से हमें प्रोत्साहन मिलता है कृपया ध्यान रखें: अपनी राय देते समय किसी प्रकार के अभद्र शब्द, भाषा का प्रयॊग न करें।