SHIVAM PORWAL A GREAT TRAVELLER - शिवम् पोरवाल
अब मुश्किलों में इतना दम नहीं की हमे रोक दे राहों में।।
क्या बुलेट से रोडट्रिप करना दिव्यांगजनों का काम नहीं?
मध्य प्रदेश में महिदपुर नाम के एक छोटे से शहर से ताल्लुक रखने वाले 26 वर्षीय शिवम् पोरवाल, बचपन से ही फोकोमेलिया सिंड्रोम से प्रभावित हैं। यह एक ऐसी बीमारी है, जिसमें नवजात के जन्म से ही हाथ या पैर नहीं होते या फिर अक्षम होते हैं।बचपन से ही शिवम पोरवाल रोमांच के शौकीन है लेकिन दिव्यांग होने के बावजूद भी अपने शौक को पूरा किया।शिवम ने शारीरिक कमी को अपने शौक के आड़े नहीं आने दिया।
26 वर्षीय दिव्यांग सेठ युवा शिवम पोरवाल ने पत्नी के साथ पूरा किया लद्दाख ट्रिप।
घरवालों से लेकर दोस्तों तक, सबने कहा कि लद्दाख रोड ट्रिप उनके बस की बात नहीं। लेकिन शिवम् ने ठान लिया था कि पैर नहीं हैं तो क्या, मैं अपने जज्बे के दम पर अपने सभी शौक़ पूरे करूंगा। हाल ही में उन्होंने अपनी पत्नी के साथ लद्दाख की बाइक ट्रिप पूरी की है।
बाइक ट्रिप पर लद्दाख जाना कइयों का सपना होता है। लेकिन वहां की पतली सड़कों और ख़राब मौसम में बाइक चलाना सबके बस की बात नहीं। ऐसे में जब आप वहां बाइक ट्रिप पर किसी ऐसे दिव्यांग को देखते हैं जिनके दोनों पैर नहीं हैं और दाहिने हाथ में केवल तीन उंगलियां और बाएं हाथ का अंगूठा उँगलियों से जुड़ा है, तो ज्यादातर लोग या तो आश्चर्य करते हैं या रुककर उनके जज्बे को सलाम करते हैं।
ऐसा ही कुछ अनुभव था शिवम् पोरवाल का भी,जब वह जून महीने में अपनी बाइक ट्रिप पर अपनी पत्नी प्रीति के साथ लद्दाख गए थे। अपनी शारीरिक अक्षमताओं को पीछे छोड़ते हुए शिवम् अपने मन की ताकत पर ज्यादा विश्वास करते हैं और किसी भी एडवेंचर को दिल खोलकर बिना डरे अनुभव करते हैं।
इसके साथ-साथ वह अपने शौक़ को भी पूरा करने का कोई मौका नहीं छोड़ते। शिवम् कहते हैं, “मैं 26 साल का हो गया हूं, अभी कितना कुछ करना बाकी है। मैंने ज़िप लाइनिंग का अनुभव किया है, लम्बी बाइक ट्रिप भी कर ली, लेकिन अभी पैराग्लाइडिंग और स्काई डाइनिंग करना बाकी है।”
बचपन से देखते थे बाइक चलाने और हवा में उड़ने के सपने
शिवम् जब छोटे थे तब से उन्हें बाइक चलाने का ख्याल बेहद रोमांचित करता था। उस समय जब वह साइकिल भी नहीं चला पाते थे, तब उन्हें सपने में दिखता था की वह तेज़ रफ़्तार से बाइक चला रहे हैं। इतना ही नहीं, उन्हें तो सुपरमैन की तरह उड़ने के सपने भी आते थे।
जब वह कॉलेज में थे, तभी उनके पिता ने आर्थिक तंगी के बावजूद, शिवम् को स्कूटर खरीदकर दिया था। यह उनके जीवन का एक अहम मोड़ था, क्योंकि अब वह कहीं आने-जाने के लिए किसी पर निर्भर नहीं थे। अहमदाबाद बीएसएनएल में नौकरी लगने के बाद भी शिवम्,इसी स्कूटर से उन्होंने सबसे पहली बार अपनी पत्नी के साथ अहमदाबाद से उदयपुर की 260 किमी की रोड ट्रिप भी की थी।
शिवम ट्रिप पर छोटी-छोटी बातों का ध्यान रखते हैं, जैसे- वह कभी रात को गाड़ी नहीं चलाते और हर 50 किमी में एक ब्रेक भी लेते हैं।
शिवम् अपना स्पेशल स्कूटर बड़े आराम से चला लेते हैं और इस तरह उन्हें नई जगहें घूमने में आसानी भी लगने लगी। उन्हें लगता था कि वह अहमदाबाद में ही स्कूटर चला रहे हैं, जिसके बाद उन्होंने पूरी प्लानिंग के साथ 2021 जनवरी में गोवा ट्रिप किया। अहमदाबाद से गोवा पहुंचने में उन्हें पांच दिन लग गए थे। लेकिन चूंकि उनके पास खुद का स्कूटर था, इसलिए वह गोवा की उन जगहों पर भी घूम सकें,जहां कार से नहीं जाया जा सकता।
इसी तरह वह सितम्बर 2021 में जोधपुर भी गए थे। इस ट्रिप के कुछ समय पहले ही उन्होंने एक नई एक्टिवा खरीदी थी।लेकिन जोधपुर ट्रिप पर उन्हें कई छोटी-छोटी दिक्कतें आईं।उन्हें एक अनजान गांव में रात को रुकना भी पड़ा,क्योंकि खाली रास्तों पर भी वह स्कूटर की स्पीड को ज्यादा नहीं बढ़ा सकते थे। कई बार ऐसा करने पर स्कूटर बंद हो जाता था, जिसके बाद शिवम् ने सोच लिया कि अगर ऐसी ही और लम्बी ट्रिप करनी है, तो बाइक लेनी पड़ेगी।
उसी दौरान शिवम् और प्रीति लद्दाख ट्रिप पर जाने की भी प्लानिंग कर रहे थे। लद्दाख यात्रा की प्लानिंग करते हुए वे यही सोच रहे थे कि कार से जाना यूं तो आरामदायक होगा, लेकिन शिवम् को अपनी व्हीलचेयर साथ रखनी होगी, क्योंकि कार पार्किंग अक्सर काफी दूर होती है। लेकिन शिवम् मन ही मन बुलेट से रोड ट्रिप करके लद्दाख जाने के बारे में सोच रहे थे।
पत्नी से मिला हौसला और पूरा साथ
शिवम् बताते हैं, “तब मेरे पास न बुलेट थी, न ही बुलेट लेने के पैसे। मैं यह भी जानता था कि मेरे पापा इस बात की अनुमति नहीं देंगे। लेकिन मैंने सपना तो देख लिया था बस उसे पूरा करना बाकी था।” एक समय पर उन्होंने सोचा कि कुछ साल बाद लद्दाख जाने की प्लानिंग करते हैं, लेकिन तभी उनकी पत्नी ने कहा कि अगर आप बाइक से यह सफर करना चाहते हैं, तो अभी ही करना चाहिए। एक उम्र के बाद शायद इस ट्रिप पर जाना हमारे लिए मुश्किल हो जाएगा।
बस फिर क्या था, शिवम् ने फैसला कर लिया कि जितनी जल्दी हो सके उन्हें बुलेट लेनी है।दिसम्बर 2021 में उन्होंने आख़िरकार बिना पापा को बताए एक बुलेट बुक कराई।हालांकि अपनी माँ को उन्होंने बता दिया था। करीबन, एक महीने में ही उनकी बुलेट आ गई। अब शिवम् को अपने हिसाब से इसे डिज़ाइन भी कराना था। जो काम बिल्कुल भी आसान नहीं था। स्थानीय मैकेनिकों को शिवम् के अनुसार इसे तैयार करने में करीबन दो महीने का समय लगा।
शिवम् कहते हैं, “आमतौर पर बुलेट यूं ही काफी भारी होती है, ऊपर से हमने इसमें साइड व्हील्स लगवाए थे। जो ऑल्टो गाड़ी के व्हील थे। इसलिए यह गाड़ी बहुत भारी हो गई थी। पहली बार जब मैं इसे अहमदाबाद की सड़कों पर लेकर निकला, तो मैं इसे चला ही नहीं पा रहा था। फिर हमने रॉयल एनफील्ड की ओर से आयोजित एक छोटी सी ग्रुप ट्रिप में हिस्सा लिया। तब हाईवे पर यह बुलेट चलाने का अनुभव बिल्कुल अलग था। तभी मुझे लगा कि यह गाड़ी लद्दाख जाने के लिए बनी है।”
आसान नहीं थी लद्दाख यात्रा की प्लानिंग
कुछ महीने की प्रैक्टिस के बाद, शिवम् को लगने लगा कि अब वह लद्दाख ट्रिप पर जाने के लिए तैयार हैं। तैयारी करने से पहले उन्होंने हिम्मत करके पापा को बता दिया। शिवम् ने बताया, “पापा को एक अंदाजा हो गया था कि मैं जिद्दी हूँ और एक बार ठान लेने के बाद मैं ज़रूर वह काम करके रहता हूँ। उन्होंने कई तरह से मुझे समझाने की कोशिश की। ‘यह खतरनाक ट्रिप है, तुम नहीं कर पाओगे।’ उन्होंने यहां तक कहा कि हमारा एक ही बेटा है, अगर तुमको कुछ हो गया तो हम क्या करेंगे?”
शिवम् ने उन्हें विश्वास दिलाया कि वह एक ग्रुप के साथ जाएंगे और सुरक्षा का ध्यान रखेंगे। इसके लिए उन्होंने सोशल मीडिया पर बाइक ट्रिप से जुड़े ग्रुप्स के बारे में पता करना शुरू किया।
आखिरकार, उन्हें अहमदाबाद का ही एक ग्रुप मिला, जो श्रीनगर से लेह जा रहा था, जिसमें एक बैकअप वाहन और मैकेनिक भी साथ में था। इस ग्रुप ने उन्हें विश्वास दिलाया कि वह उनके साथ रहेंगे और भले दूसरे बाइकर्स आगे चले जाएं, लेकिन बैकअप वाहन हमेशा उनके साथ रहेगा।
जब स्टेशन मास्टर ने कहा दिव्यांग कब से बुलेट चलाने लगे?
शिवम् कहते हैं, “मैं कश्मीर से ट्रिप वालों से जुड़ने वाला था। जम्मू तक हम ट्रेन से ही जाने वाले थे, इसलिए जब हम अपनी बुलेट को ट्रेन में लोड करवाने गए, तो स्टेशन मास्टर ने यह कहकर मना कर दिया कि यह गाड़ी बहुत भारी है और इसे दिव्यांग श्रेणी में डिस्काउंट भी नहीं मिलेगा। क्योंकि दिव्यांग बुलेट नहीं चलाते। यहां तक की उन्हें जब पता चला कि मैं लद्दाख रोड ट्रिप पर जा रहा हूँ, तो उन्होंने मुझे इस यात्रा पर न जाने की सलाह देते हुए कहा कि यह एक खतरनाक ट्रिप है। तुम्हारे पास जो है वह भी खो दोगे। यह ट्रिप दिव्यांगजनों के लिए नहीं है।”
आख़िरकार स्टेशन मास्टर ने तीन गाड़ियों का पैसा लेकर बुलेट के ट्रांसपोर्ट की बुकिंग की। ट्रिप पर जाने से पहले, उन्होंने हर तरह के सेफ्टी उपकरणों को अपने साथ रखा था। उन्होंने अपने साथ बाइक यात्रा के लिए राइडिंग जैकेट, हेलमेट,सैडल बैग, टैंक बैग, ट्रेकिंग बैग जैसी कई चीज़ें खरीदी थीं। इस तरह दो जून को उन्होंने अहमदाबाद से जम्मू की ट्रेन ली, जिसमें उनकी बुलेट भी रखी गई थी।
जम्मू पहुंच कर उन्हें अपने ग्रुप से मिलने के लिए श्रीनगर जाना था। शिवम् ने बताया,“श्रीनगर की वह यात्रा मेरे लिए काफी चुनौतियों से भरी थी।वह रास्ता बेहद खराब था। हम सुबह से निकले थे और वह 300 किमी की यात्रा हमने रात को एक बजे पूरी की।रास्ते इतने ख़राब थे कि मैं ब्रेक नहीं लगा पा रहा था, हमारा ढेर सारा सामान भी हमारे साथ बाइक पर था।”
यात्रा शुरू होने से पहले ही मुसीबतें शुरू हो गईं। लेकिन शिवम् ने रास्ते में मिलनेवाले लोगों से मदद लेते हुए श्रीनगर की वह यात्रा पूरी की। उनकी पत्नी पीछे ढेर सारा सामान लिए बैठी थीं।
हजारों किमी का कठिन सफर हिम्मत के साथ हुआ तय
उन्होंने तीन जून से लेकर 23 जून तक लगातार हर दिन बुलेट चलाई। हालांकि, जम्मू से कश्मीर पहुंचने के बाद, वह कुछ दिन कश्मीर में रुके और आठ जून को वह अपने ग्रुप से मिले। ग्रुप में ज्यादातर लोग बाइकर थे, लेकिन शिवम् का जज्बा देखकर सभी ने उनकी खूब तारीफ की। न सिर्फ उनके ग्रुप के लोग, बल्कि उनके पास से गुजरता हर इंसान यहां तक कि आर्मी के जवानों ने भी उनके साथ फोटो खिंचवाई।
जहां भी वह रुकते लोगों का जमावड़ा लग जाता। कई लोग उन्हें अपने साथ खाना खाने को भी कहते, तो कई चाय पीने की ज़िद करते। लोगों का इतना प्यार शिवम् की हिम्मत बढ़ाने का काम करता था।
वह कहते हैं, “लद्दाख बाइक ट्रिप पर मेरी स्पेशल बुलेट को देखकर हर कोई एक बार रुककर मुझसे बात करता। जब उन्हें पता चलता कि मैं बिना पैरों के ही बाइक चलाता हूँ, तो वे सभी मेरा उत्साह बढ़ाते। इस तरह ट्रिप पर सैकड़ों लोग मुझसे मिले और मेरे साथ फोटो भी क्लिक कराई।”
मुश्किलों को अनुभव समझकर आगे बढ़ते रहे
शिवम और प्रीति ने सबसे मुश्किल खारदुंग ला दर्रा पास की यात्रा भी आराम से तय कर ली, जिसमें ज्यादातर लोगों को ऑक्सीज़न की दिक्कत होने लगती है। लेकिन उन्होंने अपने आप को हाइड्रेट रखने के लिए पानी और एल्क्ट्रॉल नियमित रूप से लिया। हालांकि कई बार उनकी गाड़ी गड्डे में भी अटक गई और लोगों को उनकी मदद के लिए आना पड़ता था।
यात्रा की इन सभी मुश्किलों को अनुभव समझकर वह आगे बढ़ते रहे और इस तरह उन्होंने 23 जून को अपनी बाइक ट्रिप मनाली में खत्म कर दी। हालांकि वह वापस अहमदाबाद बुलेट से ही आना चाहते थे, लेकिन मौसम ख़राब होने के कारण उन्होंने बाइक को ट्रांसपोर्ट में देने और ट्रेन से वापस आने का फैसला किया।
शुरुआत से ही लोगों की ना और अपनी अक्षमताओं को दरकिनार करके, शिवम पोरवाल ने सिर्फ अपने सपनों को पूरा करने पर ध्यान दिया और यही वजह थी कि मुश्किलें भी उनके जज्बे के सामने टिक नहीं पाईं। शिवम पोरवाल की कहानी हम सभी को मुश्किलों को भूलकर सपनों पर ध्यान देने की प्रेरणा देती है।
अपना बुलेट से लद्दाख जाने का सपना पूरा करने के लिए शिवम पोरवाल को बहुत-बहुत
बधाई
No comments:
Post a Comment
हमारा वैश्य समाज के पाठक और टिप्पणीकार के रुप में आपका स्वागत है! आपके सुझावों से हमें प्रोत्साहन मिलता है कृपया ध्यान रखें: अपनी राय देते समय किसी प्रकार के अभद्र शब्द, भाषा का प्रयॊग न करें।