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Monday, March 20, 2023

SHEKHAWATI HAVELIYA - शेखावाटी की प्रसिद्ध हवेलियां व भित्ति चित्र - VAISHYA HERITAGE

SHEKHAWATI HAVELIYA - शेखावाटी की प्रसिद्ध हवेलियां व भित्ति चित्र - VAISHYA HERITAGE


राजस्थान में बड़े–बड़े सेठ साहूकारों तथा धनी व्यक्तियों ने अपने निवास के लिये विशाल हवेलियोंका निर्माण करवाया।ये हवेलियाँ कई मंजिला होती थी । शेखावाटी क्षेत्र की हवेलियाँ अधिक भव्य, स्थापत्य की दृष्टि से भिन्नता लिए हुए हैं। एवं कलात्मक है।शेखावाटी के रामगढ़, मण्डावा, पिलानी, सरदारशहर, रतनगढ़, नवलगढ़, फतेहपुर, मुकुंदगढ़, झुंझुनूं, महनसर, चुरू आदि कस्बों में खड़ी विशाल हवेलियाँ आज भी अपने स्थापत्यका उत्कृष्ट उदाहरण प्रस्तुत करती हैं। राजस्थान की हवेलियाँ अपने छज्जों, बरामदों और झरोखों पर बारीक व उम्दा नक्काशी तथा भित्ति चित्रों के लिए प्रसिद्ध हैं।
 
राजस्थान के सीकर, झुंझुनू तथा चूरू को मिलाकर शेखावाटी का नाम दिया गया है।

शेखावाटी के लिखित अलिखित इतिहास के जानकारों के मुताबिक पन्द्रहवीं शताब्दी(1443) से अठारहवीं शताब्दी के मध्य यानी 1750 तक शेखावाटी इलाके में शेखावत राजपूतों का आधिपत्य था। तब इनका साम्राज्य सीकरवाटी और झुंझनूवाटी तक था। शेखावत राजपूतों के आधिपत्य वाला इलाका शेखावाटी कहलाया, लेकिन भाषा-बोली, रहन-सहन, खान-पान, वेष भूषा और सामाजिकसांस्कृतिक तौर-तरीकों में एकरूपता होने के नाते चुरू जिला भी शेखावटी का हिस्सा माना जाने लगा। इतिहासकार सुरजन सिंह शेखावत की किताब ‘नवलगढ़ का संक्षिप्त इतिहास’ की भूमिका में लिखा है कि राजपूत राव शेखा ने 1433 से 1488 तक यहां शाषन किया। इसी किताब में एक जगह लिखा है कि उदयपुरवाटी (शेखावाटी) के शाषक ठाकुर टोडरमल ने अपने किसी एक पुत्र को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त करने के स्थान पर भाई बंट प्रथा लागू कर दी। नतीजतन बंटवारा इतनी तेजी से हुआ कि एक गांव तक चार-पांच शेखावतों में बंट गया। यही भूल झुंझनू राज्य में भी दोहराई गई। इस प्रथा ने शेखावतों को राजा से भौमिया (एक भूमि का मालिक) बना दिया।


झुंझनू उस वक्त के शाषक ठाकुर शार्दूल सिंह के पांच पुत्रों- जोरावर सिंह, किशन सिंह, अखैसिंह, नवल सिंह और केशर सिंह की भूमियों में बंट गया। नवल सिंह का नवलगढ़ उसी भाई बंट प्रथा का ही एक नमूना है। केन्द्रीय सत्ता के अभाव ने सेठ-साहूकारों और उद्योगपतियों को खूब फलने फूलने का मौका दिया।




झुंझुनूं में टीबड़ेवाला की हवेली तथा ईसरदास मोदीकी हवेली अपने शिल्प वैभव के कारण अलग ही छवि लिए हुए हैं। मण्डावा (झुंझुनूं) में सागरमल लाडिया, रामदेव चौखाणी तथा रामनाथ गोयनका की हवेली, डूंडलोद (झुंझुनूं) में सेठ लालचन्द गोयनका, मुकुन्दगढ़ (झुंझुनूं) में सेठ राधाकृष्ण एवं केसर देव कानोड़िया की हवेलियाँ, चिड़ावा (झुंझुनूं) में बागड़िया की हवेली, डालमिया की हवेली, महनसर (झुंझुनूं) की सोने -चाँदीकी हवेली, श्रीमाधोपुर (सीकर) में पंसारी की हवेली, लक्ष्मणगढ़ (सीकर) केडिया एवं राठी की हवेली प्रसिद्ध है।

झुंझुनूं जिले की ये ऊँची-ऊँची हवेलियाँ बलुआ पत्थर, ईंट, जिप्सम एवं चूना, काष्ठ तथा ढलवाँ धातु के समन्वय से निर्मित अपने अन्दर भित्ति चित्रों की छटा लिये हुए हैं।

सीकर में गौरीलाल बियाणी की हवेली, रामगढ़ (सीकर) में ताराचन्द रूइया की हवेली समकालीन भित्तिचित्रों के कारण प्रसिद्ध है। फतेहपुर (सीकर) में नन्दलाल देवड़ा, कन्हैयालाल गोयनका की हवेलियाँ भी भित्तिचित्रों के कारण प्रसिद्ध है।

चुरू की हवेलियों में मालजी का कमरा, रामनिवास गोयनका की हवेली, मंत्रियों की हवेली इत्यादि प्रसिद्ध है। चूरु सुराणा की हवेली में 1100 दरवाजे एवं खिड़कियाँ है।

शेखावाटी की हवेलियाँ अपनी विशालता और भित्ति चित्रकारी के लिए विश्व में प्रसिद्ध है । इन्हें देखनेकेलिए साल भर देशी-विदेशी पर्यटको का ताँता लगा रहताहै।

शेखावाटी की हवेलियाँ के अधिकांश भित्ति चित्र लगभग 125 से 150 वर्ष पूर्व के बने हैं। हवेलियों में अराइस की आलागीला पद्धती और दीवार की सूखी सतह पर भी चित्राकंन मिलते है। अराइस की गीली सतह के चित्रो में स्केच (कुराइ) तकनीक का सुन्दर प्रयोग किया है। अन्दर का हिस्सा आज भी सुरक्षित व सजीव है।

ये भित्ति चित्र 150 से 200 साल पुराने हैं. इन्हें दीवार पर चूने का प्लास्टर करते वक्त बनाया जाता था. पत्थर की पिसाई कर उन्हें पेड़-पौधों की पत्तियों और प्राकृतिक रंगों के साथ गीले प्लास्टर में मिलाकर तालमेल से पेंटिंग हवेली की दीवारों पर उकेरा जाता था. गीले प्लास्टर में ये रंग पूरी तरह समा जाते थे. इस तरह के रंग फैलने की बजाए अंदर तक जड़ पकड़ कर लेते थे. तभी तो 200 वर्ष पुरानी ये पेंटिंग आज भी नयनाभिराम हैं.

अपनी चित्रित हवेलियों, महलों और अन्य कई एतिहासिक धरोंहरों के लिए प्रसिद्ध शेखावाटी को “ऑपन आर्ट गैलरी ऑफ़ राजस्थान” के नाम से भी जाना जाता है। नदीने प्रिंस हवेली, मोरारका हवेली म्यूजियम, डॉ.रामनाथ.ए. पोद्दार हवेली म्यूजियम, जगन्नाथ सिंघानिया हवेली और खत्री महल यहाँ के प्रमुख आकर्षक स्थल है।

1802 में बनाई नदीने प्रिंस हवेली के नये मालिक एक कलाकार ने इसे आर्ट गैलरी औरसांस्कृतिक केंद्र में परिवर्तित कर दिया है।डॉ.रामनाथ.ए.पोद्दार हवेली म्यूजियम में राजस्थानी संस्कृती को दर्शाते कई चित्र मौजूद है। मोरारका हवेली म्यूजियम लगभग 250 साल पुराना किला है, जब की खेत्री महल 1770 में बनी बहुमूल्य एतिहासिक धरोहर है, हम यहाँ प्राचीन वास्तुकला देख सकते हैं।

मंडावा, मुकुंदगढ़ और डूंडलोद के किले शेखावाटी के प्रमुख किलों में से है। पर आजकल मंडावा का किला हेरिटेज होटल बन गया है, जब कि डूंडलोद किला यूरोपियन चित्रों के बहुत बड़े संग्रहालय के रूप मेंपरिवर्तित हो गया है। मुकुंदगढ़ किला 8000 वर्गमीटर में फैला है और इसके विशाल बरामदे, आंगनऔर बारजे देखने लायक है।

पर्यटकों को ऊँटपर सवार होकर पूरे रेगिस्थान की सैर करने में बड़ा मज़ा आता है। यहाँ के कई महल आज हेरिटेज होटलमें तब्दील हो गए हैं, यहाँ सैलानियों को मंत्रमुग्ध करदेने वाला अनुभव प्राप्त होता है।

नवलगढ़ में तकरीबन 700 छोटी-बड़ी हवेलियां हैं। अगर सिर्फ भव्य और बड़ी हवेलियों की बात करें तो भी 200 का आंकड़ा तो पार हो ही जाएगा। दीवारों पर उकरे रंग, छतरियों पर छितरे रंग, छज्जों में छिपते रंग, आलों में खोए रंग, राजा रंग, दासी रंग, सैनिक रंग, सेठिया रंग…… जितने रंग उतनी हवेलियां, जितनी हवेलियां उतनी कलाकारी, और जितनी कलाकारी उतनी कहानियां। मोरारका की हवेली… पोद्दार की हवेली… सिंघानिया की हवेली… गोयनका की हवेली… जबलपुर वालों की हवेली… जोधपुर वालों की हवेली… कलकत्ता वालों की हवेली… सेठ जी की हवेली… सूबेदार की हवेली… राजा की हवेली… हर मौसम की हवेली…।

बगड़। शेखावाटी
बगड़ राजस्थान के शेखावाटी प्रांत का छोटा सा शहर है जो अपनी चित्रित हवेलियों के लिए लोकप्रिय है। इन में से ज्यादातर हवेलियों का निर्माण 20वी सदी में शेखावाटी प्रांत के मारवाड़ी व्यापारियों ने किया था। इन हवेलियों पर बनाये गए चित्रों में कहीं कहीं खरे सोने का इस्तेमाल हुआ है।
रुंगटा और पिरामल मखारिया हवेली यहाँ कि दो प्रमुख आकर्षक हवेलियाँ हैं, जो आज हेरिटेज होटल में परिवर्तित हो गई है। इनके अलावा फतेहसागर वाटर टैंक, मिया साहिब की दरगह और वाइट गेट बगड़ के प्रचलित पर्यटक स्थल है।

अलसीसर और मलसीसर
अलसीसर और मलसीसर झुंझुनू जिले के दो शहर, शेखावाटी प्रान्त के उत्तरी दिशा में स्थित है। इन शहरों का निर्माण 18 वी सदी के मध्य या अंत में हुआ था। इन शहरों की हवेलियों पर कि गई रंग पिरंगी चित्रकला बहुत उत्तम और सुन्दर है, जिन्हें देखने पर्यटक दूर दूर से आते हैं। यहाँ की बावडियों और जलाशयों का निर्माण राजस्थानी शैली में हुआ है।

झुंझुनू से केवल 27 कि.मी दूर अलसीसर शहर की चित्रित हवेलिया और किले इस शहर को लोकप्रिय बनाते हैं। श्री लाल बहादुर मल की हवेली, तेजपाल झुंझुनूवाला की हवेली, लाख की हवेली, महाली दत्त, केतन हवेली, ठाकुर छोटू सिंह की समाधी, श्री लाल बहादूर मल की बावड़ी और जीवन राम मरोडिया का तालाब यहाँ के अन्य मुख्य पर्यटकीय स्थल है।

मलसीसर झुंझुनू से केवल 32 कि.मी दूर एक छोटा सा गाँव है। प्रेम गिरी जी का मठ,बनार्शी दास बांका हवेली, सेढ़ मल सरोगी हवेली, बांका बवाडी, जोखी राम बवाडी, सरोगी बवाडी यहाँ के प्रमुख आकर्षक स्थल है।

मंडावा, शेखावाटी
राजस्थान के झुंझुनू जिले में, और शेखावाटी प्रांत के मध्य में स्थित मांडवा एक छोटा सा शहर है।मंडवा अपने किलों और हवेलियों के लिए प्रसिद्ध है। मंडवा का किला जयपुर की उत्तरी दिशा में 190 कि.मी दूर है, और यहाँ रोड मार्ग द्वारा पहुंचा जा सकता है।

18 वी सदी में बने मंडवा किले को कैसल मंडवा भी कहा जाता है। यह किला बहुत सुन्दर है और इसके प्रवेश द्वार पर बने भगवन कृष्ण और उनकी गायों की चित्रकलायें और भी सुन्दर है। इस किले का निर्माण 1812 (1755 ए.डी) विर्कम संवत में राजा श्रधुल सिंह के बेटे ठाकुर नवल सिंह ने किया था। इसका निर्माण मध्ययुगीन शैली में हुआ है और किले में बने भित्ति चित्र बहुत सुन्दर है। किले के कमरों में कई तरह की नक्काशियां,आईने पर की गई कारीगरी, भगवन कृष्ण के चित्र मौजूद है। किले के दरबार में मौजूद चित्र और प्राचीन वस्तुवें इसकी शोभा बढ़ाते हैं। पर आज कैसल मंडवा एक हेरिटेज होटल में परिवर्तित हो गया है और इसकी देख रेख मंडवा का शाही परिवार करता है।

होटल में कुल 70 कमरे है जो स्टैण्डर्ड, डीलक्स, लक्जरी सूट, और शाही सूट की श्रेणी में विभाजित है। यहाँ के मल्टी क्युजिन रेस्टोरंट में यात्री पारंपरिक राजस्थानी खाने के साथ साथ और कई व्यंजनों का भी स्वाद चख सकते हैं। इसके अलावा 24 घंटे रूम सर्विस, ट्रेवल डेस्क, विदेशी मुद्रा, स्विमिंग पूल ( यहाँ से 3 कि.मी दूर डेज़र्ट रिसोर्ट में), सांस्कृतिक कार्यक्रम, खाना, घोडा सफारी, ऊंट सफारी, गाँव की सैर आदि मौजूद है।

चुरू, शेखावाटी
शेखावाटी से लग भग 82 कि.मी दूर स्थित चुरू, अपनी आलीशान हवेलियों और किलों के लिए प्रसिद्ध है। जिसका निर्माण पूरी तरह राजस्थानी शैली में किया गया है। इन हवेलियों और किलों की बाहरी दीवारों पर यहाँ के वीरों की वीर गाथाओं के चित्र बनाये गए हैं। कन्हैयालाल बागला हवेली, सुराना हवेली और मालजी का कमरा नमक इन तीनों हवेलियों की दीवारों पर (राजस्थानी कहानियों के कलाकार) डोला और मारू के जीवन के कई हिसों का चित्रण किया गया है।

1739 में ठाकुर कुशल सिंह द्वारा बनाया किला, यहाँ का प्रमुख आकर्षण है। इनके अलावा नगर श्री अजायबघर, लक्ष्मीनारायण चंद्गोथिया हवेली और लक्ष्मीनारायण मंदिर यहाँ के कुछ एतिहासिक स्थल है। अत कंभ छतरी और गोंदिया छतरी यहाँ के प्रसिद्ध एतिहासिक स्थल है।

इन छतरियों की भीतरी दीवारों पर बनाये गए सुन्दर चित्र आखों को सुकून देते हैं। इनके अलावा रघुनाथजी मंदिर, चंद्गोथिया मंदिर, जामा मस्जिद, नाथजी का डोरा, सेठानी का जोहरा और बालाजी मंदिर चुरू के मुख्या आकर्षक स्थान है।

फतेहपुर, शेखावाटी
फतेहपुर राष्ट्रीय राजमार्ग 11, जयपुर और बीकानेर के मध्य, राजस्थान के सीकर जिले में स्थित है। इसकी स्थापना 15 सदी के मध्य में कयामखानी के नवाब फ़तेह खान ने की थी। शेखावाटी के अन्य शहरों की तरह फतेहपुर भी अपनी वैभव और चित्रित हवेलियों के लिए प्रसिद्ध है।

1865 में बनाई गई गोयनका हवेली की दीवारों की चित्रकला इसे यहाँ की अन्य हवेलियों में शेष्ट बनाती है। हवेली की छत पर बनाये गए चित्र बहुत सुन्दर है, जो इस हवेली की खूबसूरती को निखरते हैं। इनके अधिक इस शहर में और कई एतिहासिक धरोहरें जैसे नन्द लाल देवरा, सारोगी और सिंघानिया हवेली मौजूद है।

डुण्डलोद
राजस्थान के झुंझुनू जिले के शेखावाटी प्रांत के मध्य में स्थित डुण्डलोद एक छोटा सा शहर है। यह भी अपनी हवेलियों और महलों के लिए प्रसिद्ध है। 16 वी सदी में बना डुण्डलोद किला जिसका निर्माण राजा रावल ने किया था यहाँ का मुख्य आकर्षण है। अब यह किला हेरिटेज होटल में परिवर्तित हो गया है। इनके अलावा सत्यनारायण मंदिर, छोकानी, दीवाने ए खास, लडिया और सर्फ़ हवेली, जगथै और गोयनका हवेली डुण्डलोद के प्रमुख आकर्षक स्थल है।

झुंझुनू
झुंझुनू, राजस्थान के शेखावाटी में स्थित शहर है। यह भी अपनी हवेलियों और उनमें कि गई चित्रकारीता के लिए प्रसिद्ध है। 18 वी सदी में बना खेत्री महल, बिहारीजी मंदिर, और मेर्तानी बोरी यहाँ के पर्यटक स्थल है। सेठ ईश्वर दास मोहन दास मोदी हवेली में कि गई चित्रकारीता इसे शेखावाटी की बेहतरीन हवेलियों में से एक बनती है। 19 वी सदी में बनी टिब्रेवाला हवेली, अपने रंग पिरंगे खिडकियों के शीशों के लिए मशहूर है। जोरावर घर, नवाब समस्खान का मकबरा, खेत्री महल, लक्ष्मीनाथ मंदिर, अजीत सागर और नवाब रोहिला खान का मकबरा यहाँ के पर्यटकीय स्थान है।

मुकुंदगढ़
राजस्थान के झुंझुनू जिले में स्थित मुकुंदगढ़ शहर की स्थापना 18 वी सदी में राजा मुकुंद सिंह ने कि थी। यहाँ की हवेलियाँ अपने दीवान खाने और दीवारों पर कि गई भिन्न भिन्न तरह की चित्रकारीता के लिए प्रसिद्ध है। इन हवेलियों के दीवान खानों में आप को 17 वी और 18 सदी कि पारिवारिक तस्वीरें, लकड़ी का फर्नीचर और दीवारों पर टंगी कई चीजें देखने मिलेंगी। हवेली की छत्रियों पर बने परिवारवालों के चित्र बहुत सुन्दर है। यहाँ के बहुत सारे मंदिर भगवन कृष्णा को समर्पित है, जिन में से विष्णु गोपाल मंदिर और गोपी नाथ मंदिर प्रमुख है। विलियम हवेली, घुवाले वोलों की हवेली, गंगा बक्स सर्फ हवेली और राजकुमार गनेरीवाला कला केंद्र यहाँ के अन्य भ्रमणिक स्थल है।

लक्ष्मणगढ़, शेखावाटी
19 वी सदी में सीकर के राजा, राजा लक्ष्मण सिंह ने लक्ष्मणगढ़ को सिद्ध किया। श्योनारायण क्याल हवेली, चर चौक हवेली और राठी हवेली लक्ष्मणगढ़ के आकर्षक स्थल है।

नवलगढ़
18 वी सदी में ठाकुर नवल सिंह ने इस स्थान की स्थापना की जो आज राजस्थान के शेखावाटी प्रांत में स्थित है। नवल सिंह शेखावाटी के नवलगढ़ और मंडवा प्रांत के शासक थे। 1836 में बनी नवलगढ की हवेलियों पर चित्रकारी बहुत ही कुशलता पूर्वक की है। इसके अलावा 1920 में बनी आनंदी लाल पोद्दार की हवेली और बाला किला जिसकी दीवारों पर लोक कहानियां चित्रित है, सैलानियों को अपनी और आकर्षित करती है। इसके अतिरिक्त जोधराज पटोडिया हवेली, बंसीधर भगत हवेली, चोखानी हवेली, रूप निवास महल, गंगा मैया मंदिर, और ब्रिटिश क्लॉक टावर नवलगढ़ के अन्य भ्रमणिक स्थल है।









नवलगढ़ तथा मंडावा की हवेलियों में अब तक अनेक हिंदी फिल्मों की शूटिंग हो चुकी है


हेमराज हवेली नवल गढ़


हवेलियों के रंग पहले संपन्नता के प्रतीक बने, और फिर परंपरा बन गये। खेती करते हुए किसान से लेकर युद्ध करते सेनानी तक, रामायण की कथाओं से लेकर महाभारत के विनाश तक, देवी- देवताओं से लेकर ऋषि-मुनियों तक, पीर बाबा के इलाज से लेकर रेलगाड़ी तक….. हवेली की हर चौखट, हर आला रंगा-पुता। इंसान की कल्पना जितनी उड़ान भर सकती है, इन हवेली की दीवारों पर उड़ी। जो कहानी चितेरे के दिमाग पर असर कर गई वो दीवार पर आ गई; जो बात दिल में दबी रह गई, उसे हवेली की दीवारों पर रंगीन कर दिया गया… लेकिन एक दिन तेज़ हवा चली और उस रंगीन किताबों के कुछ पन्ने जल्दी जल्दी वक्त के साथ उड़ गए. हवेली मालिकों ने हवेलीयाँ छोड़ दीं; कोई विदेश चला गया तो कोई हवेली अनाथ हो गई। जैसे एक हवेली को देखकर दूसरी बनी थी; बिल्कुल उसी तरह एक पर ताला जड़ा तो दूसरी हवेलियों के दरवाजे भी धड़ाधड़ बंद होने लगे। शेखावाटी की हवेलियों के रंग फीके पड़ने लगे हैं।

SABHAR: hariskamma.wordpress.com/2017/01/22/शेखावाटी-की-प्रसिद्ध-हवेHarish KumarJanuary 22, 2017

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