CHURU KA TAJMAHAL ~ चूरू का ताजमहल - A VAISHYA HERITAG
श्रापित गाँव में सेठ सेठानी के प्यार के अमर प्रेम का प्रतीक ~ चूरू का ताजमहल
चूरू; वह स्थान सर्दी और गर्मी दोनों अपने परवान पर रहती है। सर्दियों में खैसला और गर्मियों में सैंडो बनियान में गांव गुवाड़ में लोग टहलते दिखे जहां।इसी चूरू में अनेक प्रसिद्ध जगह हैं जिनमें एक नाम दूधवाखारा के महल का भी आता है जिसे लोक शैली में ‘चुरु का ताजमहल’ भी कहा जाता है।चूरू से लगभग पैंतीस-चालीस किलोमीटर की दूरी पर दूधवाखारा स्थित है।यह वही दूधवाखारा है जहां से मघाराम जैसे आंदोलनकारियों ने एक बड़ा किसानों आंदोलन लडा़।स्वतंत्रता सेनानी हेमाराम बुडा़निया इसी दूधवाखारा के रहनेवाले थे। अब बात शुरू करते हैं दूधवाखारा के महल की।हमारे लोक में ऐसी तमाम बातें प्रचलित हैं कि यहाँ प्रेमियों ने अपनी प्रेमिकाओं के नाम पर खूब निर्माण करवाये।महल बनवाये, नक्काशीदार इमारतें बनवाई।
यथा – शाहजहां ने अपनी बेगम मुमताज की याद में आगरा में ताजमहल बनवाया।ठीक वैसी ही याद में निर्माण करवाया एक महल का थार के एक इलाके में।वह इलाक़ा दूधवाखारा।पर यहाँ मामला सेठ सेठाणी का था और मामला आगरा के ताजमहल के व्युत्क्रम सा था।मतलब कि यहाँ सेठ हजारीमल की याद में उनकी पत्नी सरस्वती देवी और दत्तक पुत्र ने सत्तर-इकहत्तर साल पहले इस महल का निर्माण करवाया।ताजमहल जैसी बनावट और वही संगमरमर लगे होने होने के कारण इसे चूरू का ताजमहल कहा जाने लगा।विशेषताएं महत्वपूर्ण होती थीं इन इमारतों की।इस महल में सीमेंट और बजरी जैसा कोई तत्व काम में नहीं लिया गया।महल के अंदर शिव भगवान का मंदिर है जहां खासकर सावन महीने में और शिवरात्रि को श्रद्धालुओं की भीड़ बनी रहती है और जब शिवलिंग की स्थापना की गई तो भोले बाबा का इत्र से अभिषेक हुआ था और वो इत्र नालियों में बहा था जिसे ग्रामीणों ने पवित्र द्रव मानकर बोतलों में भरकर अपने घरों में रख दिया था।
महल परिसर में ही सेठ हजारीमल की समाधि बनी हुई है और वहीं निकट दूरी पर उनकी पत्नी सरस्वती देवी की प्रतिमा भी लगी हुई हैं।स्थानीय ग्रामीणों का कहना है कि जहां हजारीमल का दाह संस्कार हुआ ठीक उसी के ऊपर इस महल का निर्माण किया गया है।चूरू का आधा मामला शेखावटी जैसा है।यहां के सेठों ने जितना सर्व समाज के लिए किया उतना नेता-न्यांगली लोग ने शायद ही किया हो।हजारीमल भी भामाशाह थे।अपने गांव में कूंड, बावड़ी हवेलियों आदि का निर्माण उन्होंने करवाया।स्थानीय अस्पतालों में धर्मशालाएं भी जिवित कीं।विद्यालय निर्माण और दूधवाखारा रेलवे स्टेशन की पुरानी बिल्डिंग भी उन्हीं की देन है।ग्रामीण बताते हैं कि सेठ सामान्य नहीं थे, उनका कलकत्ते में व्यापार था और वहां शेयर मार्केट के वे बड़े व्यावसायी थे।बकौल एक व्यक्ति किंग थे हजारीमल शेयर मार्केट के।और आज भी कलकत्ता में किसी स्थान पर उनका नाम स्वर्ण आखरों में लिखा हुआ है – ‘दूधवाखारा वाले सेठ हजारीमल’।अंग्रेजों के समय में उनको अपने तीन साथियों के साथ रामबहादुर की उपाधि दी गयी थी।तारानगर, राजगढ और चूरू तीनों रूट से जुड़े दूधवाखारा में विदेशी भी भ्रमण करने आते हैं।सेठों की विरासत और सामाजिक कार्यों को देख खुश होते हैं।
इसी दूधवाखारा में एक मंदिर है सती माता का।मंदिर की कहानी का अपना एक रोचक पहलू है।सदियों पहले सात बारातें इस गांव से होकर गुज़री थीं।बीच में रातीढोल दूधवाखारा में भी हुआ और लूटपाट के उद्देश्य से यहाँ लड़ाई हुई और सातों दुल्हनें सतीं बन गईं जिसमें एक का मंदिर दूधवाखारा में निर्मित है।और इसी घटना के बाद सती माता ने श्राप भी दिया कि इस गांव में जिस भी लकड़ी लड़की की शादी होगी वो चूड़ा और चूड़ी के धोक लगाएगी और फिर विदा होगी।और यह भी कि इस दूधवाखारा में कभी मीठा पानी नहीं निकलेगा।मान्यता का खंडन करने के लिए कुछ लोगों ने दूधवाखारा नाम से हरिद्वार में भी बोरिंग करके परीक्षण किया लेकिन वहाँ भी पानी खारा ही निकला।
धन संचय करना ठीक बात है लेकिन उसे समाज उपयोगी कार्यों में कैसे लगाया जाये ये शेखावटी और चूरू के सेठों से सीखने को मिलता है।
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