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Wednesday, July 10, 2019

गुप्तवंश के अग्रवाल वैश्य होने में प्रमाण

गुप्तवंश के अग्रवाल वैश्य होने में प्रमाण


1. चंद्रगुप्त द्वितीय की पुत्री प्रभावती ने पूना अभिलेख में सम्राट को धारण गोत्रीय कहा है। और अग्रवालों के 18 में से एक धारण गोत्र है।

2. गुप्त वैश्यों की उपाधि है। आज भी वैश्य धार्मिक कर्म का संकल्प पढ़ते समय स्वयं को गुप्त कहते हैं। गुप्त शासकों के नाम समुद्र, चन्द्र, कुमार, स्कंद आदि थे और गुप्त इनका उपनाम था।

3. बौद्ध ग्रन्थ आर्य मंजूश्री मूलकल्प में गुप्तवंश को वैश्य बताया गया है।

4. इतिहासकार एलेन, अल्टेकर एवं आयंगर ने गुप्तवंश को वैश्य माना है परंतु कुछ षड्यंत्रकारी इतिहासकारों ने इनको जाट व शूद्र आदि बताया जबकि जाटों व शूद्रों दोनों का ही यग्योपवीत नहीं होता। गुप्त सम्राटों ने अश्वमेध आदि महान यज्ञ करवाए थे जो केवल द्विज (जनेऊधारी) करा सकते हैं। अग्रवालों का यग्योपवीत होता है इसलिए गुप्त वही हो सकते हैं। जिन इतिहासकारों ने गुप्तवंश को क्षत्रिय बताया है उससे भी इनका अग्रवाल नहीं होना सिद्ध नहीं होता क्योंकि सर्वविदित है कि अग्रवाल प्राचीन क्षत्रिय जाति है जिसने कालांतर में वैश्यधर्म अपनाया।

5. प्रख्यात इतिहासकार राहुल सांकृत्यायन ने अपनी पुस्तक जय यौधेय में अग्रवालों की प्राचीन भूमि अग्रोहा की कन्या दत्ता को गुप्त सम्राट समुद्रगुप्त की पत्नी बताया है। व लिखा है कि समुद्रगुप्त के दूसरे पुत्र चंद्रगुप्त द्वितीय विक्रमादित्य का जन्म भी अग्रोहा में हुआ।

6. प्रसिद्ध इतिहासकार सत्यकेतु विद्यालंकार ने जायसवाल के मत का खंडन करते हुए गुप्तवंश को वैश्य सिद्ध किया है। वैश्यों में अग्रवाल सर्वप्रमुख जाति है जिसमें पूना अभिलेख वाला धारण गोत्र सम्मिलित है।

7. गुप्त शासक भानुगुप्त ने एरण शिलालेख सागर के पास लगवाया। एरण भी अग्रवालों के 18 गोत्रों में से एक है। अग्रवालों का एरण गोत्र मप्र के इस क्षेत्र में ज्यादा पाया जाता है मालवा तक। इसी एरण में नागजाति का शासन रहा और नागों से अग्रवालों का सम्बंध है क्योंकि महारानी माधवी नागवंशी थीं। आज भी अग्रवाल नागों को मामा मानते हैं।

8. अग्रवाल जाति हमेशा से प्रमुख रूप से वैष्णव जाति रही है। आज भी अधिकांश अग्रवाल वैष्णव होते हैं। गुप्त सम्राट इतिहास में परम वैष्णव शासक थे। गुप्त सम्राट चंद्रगुप्त द्वितीय, समुद्रगुप्त एवं स्कंदगुप्त ने विष्णुभक्त होने के कारण परमभागवत की उपाधि धारण की थी। इसलिए धार्मिक रूप से भी गुप्तवंश के अग्रवाल होने में कठिनाई नहीं है। जबकि जाट मुख्यरूप से शैव जाति रही है। चंद्रगुप्त द्वितीय की पुत्री प्रभावती परम वैष्णव थी। वह अपनी राजधानी नन्दिवर्धन के समीप रामगिरि पर स्थापित श्रीराम पादुकाओं की भक्त थी। उससे विवाह के बाद शैव रुद्रसेन भी वैष्णव हो गया था।

9. चंद्रगुप्त द्वितीय के समय चीनी यात्री फाह्यान भारत आया जिसने लिखा है कि, "गुप्त साम्राज्य में नीच चांडालों के अतिरिक्त न तो कोई जीवहिंसा करता है, न मदिरापान करता और न लहसुन प्यास खाता है।" अग्रवाल जाति में भी आजतक सामान्यतया मांसाहार, व प्याज लहसुन तक नहीं खाया जाता। अग्रवाल जाति की स्थापना के मूल में ही महाराजा अग्रसेन द्वारा जीवहिंसा का निषेध है। इसलिए यह प्राचीन जाति चरित्र गुप्त शासकों के अनुकूल ही है। जबकि जाटों में मांसाहार बहुतायत में पाया जाता है।

10. गुप्त साम्राज्य की मुद्राओं पर अग्रोहा की कुलदेवी महालक्ष्मी जी अंकित थीं।

11. गुप्तों का उदय गणराज्यों की शक्ति क्षीण होने के काल में हुआ। इन्हीं में से एक गणराज्य था यौधेय, जो 150 ई.पू. से 350 ईसवी तक उत्तरप्रदेश व राजस्थान के क्षेत्रों तक फैला हुआ था। इस द्वितीय रक्षापंक्ति के दो ही कार्य थे कृषि और युद्ध, इसलिए ये वैश्य और क्षत्रिय दोनों गुणों से परिपूर्ण थे व सिकन्दर से लेकर शकों, कुषाणों तक एक के बाद एक विदेशी हमलों का प्रत्युत्तर दे रहे थे। सभी इतिहासकार मानते हैं कि कुषाणों को पराजित करने वाले यौधेय ही थे। यौधेय गणराज्य के अंतर्गत हरियाणा का अग्रोहा अग्रवालों का उत्पत्ति स्थान है। गुप्त राजवंश भी लगातार शकों कुषाणों से लड़ता हुआ ही ऊपर उठा और पश्चिमी उत्तरप्रदेश से इसका राज्य शुरू होता हुआ चंद्रगुप्त प्रथम के काल में मगध तक पहुंचा। राहुल सांकृत्यायन ने माना है कि समुद्रगुप्त की शक्ति अग्रोहा में यौधेयों के साथ हुई उसकी संधि व वैवाहिक सम्बन्ध के बाद बढ़ी। इन प्रमाणों से सिद्ध होता है कि गुप्त वंश वैश्य था व यौधेय अग्रवाल जाति से सम्बंधित था।

साभार: - मुदित मित्तल, महामंत्री, राष्ट्रीय अग्रवाल महासभा

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