THE GREAT VAISHYA COMMUNITY
आप किसी सरकारी हॉस्पिटल में जाइये। वहाँ आपको किसी दानदाता द्वारा हॉस्पिटल को भेंट की गई बहुत भारी मूल्य की बिल्डिंग या सामग्री दिखेगी। वहीं कहीं इस आशय का बोर्ड भी लगा होगा। सामान्यतया ये दानदाता भारत के वैश्य समाज से होते हैं। अग्रवाल, ओसवाल, माहेश्वरी, जैन इत्यादि जिन्हें बनिया कहा जाता है, इन पर लक्ष्मी जी की असीम कृपा रही और उसी सहृदयता से इन्होंने अपनी पूंजी परोपकार में व्यय की। अस्पताल के अलावा, सरकारी विद्यालय, धर्मशाला, प्याऊ, मठ, मंदिर, पर्यावरण संरक्षण, प्राचीन कुएं, तालाब इत्यादि भी मिलेंगे जिन पर इस #श्रेष्ठिवर्ग की छाप अंकित है। धर्म को बनाये रखने और बचाये रखने में इनका भी योगदान रहा है। सम्पूर्ण भारत में इनके द्वारा हजारों करोड़ रुपए की सम्पत्तियां प्रतिवर्ष समाज और राष्ट्र के लिए समर्पित की जाती है। लोककल्याण एवम परोपकार के लिए इनके द्वारा दिया गया धन यदि ठीक से काउंट किया जाए तो यह विश्व का सबसे बड़ा दान का आंकड़ा होगा।
और यह क्यों हुआ? धर्म प्रेरणा से। क्योंकि वे "भारत के वैश्य" हैं, कोई बहुराष्ट्रीय कंपनियां नहीं।
फिर भी #स्वतंत्रत_भारत में इन्हें सबसे ज्यादा लांछित किया गया। फिल्मों ने इन्हें सूदखोर, कामुक और लम्पट दर्शाया। पुस्तकों में इन्हें शोषक और पूंजीपति बताया गया है। और हम, इन्हीं की संपत्तियों का उपयोग करते हुए चटखारे लेकर इनकी निंदा में लिखा गया कम्युनिस्ट वामपंथी साहित्य पढ़ते रहे। होगा कोई हमसे बड़ा कृतघ्न??? जो इनके अद्भुत त्याग को एक क्षण में भुलाकर हमारे ही शत्रुओं द्वारा लिखी बात को सच मान इनके विरुद्ध खड़े हो गए? यह अभागा भारत देश और अभागी हिन्दू जाति, घोर शोक और पतन में क्यों नहीं जाएगी, जो सम्पूर्ण निःस्वार्थ व्यवस्था के संचालक वैश्य वर्ग को गाली देने का कोई मौका नहीं चूकते, तथापि आज भी सबसे ज्यादा धन दान, परोपकार और मानव कल्याण के सतत और व्यापक कार्य इन्ही द्वारा किए जा रहे हैं।
साभार: राष्ट्रीय अग्रवाल महासभा
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