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Thursday, May 22, 2025

KSHATRIYA AGRAVANSH NOW VAISHYA - अग्रवंश के क्षत्रिय होने के प्रमाण - आग्रेय गणराज्य

KSHATRIYA AGRAVANSH NOW VAISHYA - अग्रवंश के क्षत्रिय होने के प्रमाण - आग्रेय गणराज्य

चूंकि मैं इतिहास का शोधार्थी (रूचि है इसलिए) रहा हूं और बहुत अध्ययन किया है अतः इस बात के अनेक प्रमाण को स्वयं परीक्षण किया है

प्राचीन भारत में अनेक गणराज्यों का शासन था, जिसमें गणों का शासन था जैसे : लिच्छवी, शाक्य, वज्जि संघ, आग्रेय, मद्रक, कठ, मालव गण, यौधेय, इत्यादि

पाणिनि ने इन गणों को"वार्ताशस्त्रोपजीवी" कहा है अर्थात मिलजुलकर कृषि और उद्योग करना तथा युद्ध काल में युद्ध करना,

आग्रेय गण ऐसा ही एक गण था जिसका उल्लेख अनेक संस्कृत साहित्य में किया गया है, उसके प्रधान की उपाधि अग्रसेन थी, (प्रथम अग्रसेन प्रतापी रहे होंगे)

(1) महाभारत में कर्ण दिग्विजय में इसका उल्लेख है :
वनपर्व (कर्ण दिग्विजय घोष यात्रा पर्व श्लोक 1-25)
भद्रान रोहितकांश्चैव आग्रेयान मालवानपि
गणान् सर्वान् विनिर्जित्य नीतिकृत प्रहसन्निव

इस श्लोक में कर्ण द्धारा भद्र, रोहितक, आग्रेय और मालव गण को जीतकर कर प्राप्त करने का वर्णन है

(2) ग्रीक मेगस्थनीज ने सिकंदर के आक्रमण का प्रतिकार करने के लिए अग्र गण का उल्लेख मालव गण और कठों के साथ किया है, और लिखा है कि अग्गेसनोई (ग्रीक भाषा में यही लिखा है) गण ने भयंकर युद्ध किया,
 सिकंदर ने पूरे नगर को जलाकर राख कर दिया था, फिर भी हमारी सेनाओं को आगे बढ़ने से रोक दिया गया।

(3) पुरातत्व विभाग द्वारा की गई खुदाई में जो मुद्राएं मिली है, उन पर ब्राह्मी लिपि में अंकित है :
"अग्रोतक अगाच्च जनपदस्य"

(4) आहार से प्राप्त एक शिलालेख में " राजक्षतृयान्वय वणिक" द्धारा दानपत्र देने का उल्लेख हुआ है, राजक्षतृयान्वय का अर्थ है : राजा के वंशज, और अग्रवालों की एक शाखा अभी भी राजवंशी शब्द का उपयोग करती है, यह एक बड़ा समुदाय है।

(5) प्रसिद्ध इतिहासकार और मनीषी श्री राहुल सांकृत्यायन (केदारनाथ पांडेय) जी ने अपने शोध ग्रंथों में स्पष्ट रूप से यह लिखा है कि आग्रेय गण का विनाश सिकंदर के समय हुआ और अग्रवाल जाति उन्हीं की वंशज है, बल्कि इससे भी एक कदम आगे बढ़कर राहुल सांकृत्यायन जी ने यौद्धेय गण को भी आग्रेय गणराज्य से संबंधित बताया है और लिखा है की आग्रेय गणराज्य के वंशज अग्र और यौधेय कहलाते थे। उन्होंने तो आग्रेय गणराज्य के गुप्त वंश से वैवाहिक संबंधों के बारे में भी लिखा है।
 
(6) सारबान का शिलालेख - क्नॉट प्लेस के निकट हेली रोड पर स्थित अग्रसेन बावड़ी और महरौली के निकट सारबन ग्राम में प्राप्त एक शिलालेख अग्रवाल समाज की धरोहर है। शिलालेख में लिखा है कि अग्रोदक; अग्रोहा का प्राचीन नामद्ध के श्रेष्ठियों द्वारा जनहित में किये गये कार्यों के लिए यह प्रशस्ति लेख है।

(7) जियाउद्दीन बरनी के द्वारा अग्रोहा नगर के ध्वंसावशेषों का उल्लेख किया गया है तथा यह कहा गया है कि यह कोई प्राचीन वैभवशाली शहर रहा होगा.

( जैन आगम और जैन ग्रंथ विदिशा वैभव में यह वर्णन मिलता है कि आचार्य भद्रबाहु द्धितीय के शिष्य लोहाचार्य जी ने अग्रोहा के तत्कालीन शासक दिवाकर को जैन धर्म स्वीकार कराया था और काष्ठसंघ की स्थापना की थी

आज अग्रवाल समाज वैष्णव और जैन दोनों ही धर्मों को मानता है, जैन धर्म को मानने वाले अग्रवालों की संख्या लाखों में है, काष्ठसंघ के भट्टारक पद पर अग्रवाल ही रहते आए हैं और दिगंबर जैन अग्रवाल पंचायत सबसे प्राचीन संस्था है।
 
(9) क्षत्रियों द्धारा वैश्य वर्ण में आने के अन्य उदाहरण भी है, सबसे नवीन है : ओसवाल जैन, जो अभी तक भी सिंह सरनेम उपयोग करते आ रहे हैं और युद्ध संचालन के लिए राजपूतों के इतिहास में उनका वर्णन है, महाराणा प्रताप के सेनापति पद पर भामाशाह रहे हैं, युद्ध में भाग लिया है, जोधपुर का इंद्रराज सिंघवी, नैणसी मुहणोत आदि विख्यात नाम रहे हैं

लगभग सभी राजपूत राजाओं के पास दीवान और सेनापति पद पर रहकर शौर्य का परिचय दिया है, यह लोग मूलतः राजपूत ही है जिनका प्रामाणिक इतिहास राजपूताने के साथ कलमबद्ध है
जगतसेठ महताबचंद्र का कुल राठौड़ कुल रहा है जो जैन धर्म अंगीकार करके व्यापार करने लगा था और बहुत नाम कमाया
अतः यह एक विश्वसनीय तथ्य है कि पहले भी प्राचीन समय से ही यदा कदा क्षत्रिय कुलों ने वैश्य वर्ण अंगीकार किया है
लेख साभार - दीपक गोयल जी कुछ परिवर्तनों के साथ
कुछ प्रमाण अथवा लिखित वर्णन दिए हैं
सोर्स -
- महाभारत
- आग्रेय गण की मुद्राएं
- सारबान का शिलालेख
- राहुल सांस्कृत्यायन कृत जय यौधेय
- अग्रवाल जाती का विकास - परमेश्वरी लाल गुप्त


- जैन ग्रंथ - विदिशा वैभव
- ओसवाल जाती का इतिहास











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