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Friday, September 24, 2021

THE GREAT VAISHYA COMMUNITY - वैश्य समुदाय का सामाजिक योगदान

वैश्य समुदाय का सामाजिक योगदान

वैवैश्य जाति का सामाजिक योगदानश्य जाति का सामाजिक योगदान

इतिहास गवाह है कि वैश्य जाति का सामाजिक योगदान अतुलनीय रहा है। इतिहास के हर एक काल में वैश्य जाति प्रासंगिक रहा है। किसी की आलोचना नहीं की, निंदा नहीं किया ,बस कर्म करता चला गया।
चाहे गुप्त काल हो, हर्षवर्धन काल हो, चेर, चालुक्य साम्राज्य हो, प्रत्येक काल में समाज का नेतृत्व किया।
हेमु ने अफगान सेना का सफलतापूर्वक नेतृत्व किया और मुगलों को कड़ी चुनौती पेश की।
एक हजार साल की गुलामी से जब हमारा समाज किंकर्तव्यविमूढ़ हो चला था तो महात्मा गांधी ने आशा की नई किरण दिखाई तथा लोगों को विरोध प्रकट करने , अपने अधिकारों के लिए लड़ने के नयै तरीके सिखाए। १८५७ की हिंसात्मक क्रांति में अंग्रेजों द्वारा बुरी तरह कुचले जाने के बाद बुरी तरह से टूट और बिखर चुके समाज को निराशा के गर्त से बाहर निकाला। धरना , प्रदर्शन, बहिष्कार, भुख हड़ताल, बायकाट, सिविल नाफरमानी, अनशन,पिकेटिंग जैसे अहिंसक आधुनिक, तार्किक आंदोलन के तरीकों से ,विश्व को अवगत कराया। आज भी गांधी के इन तकनीकों का उपयोग हमारा समाज सत्ता के खिलाफ विरोध प्रकट करने के लिए कर रहा है। जो यह साबित करता है कि गांधी के विचार आज भी प्रासंगिक हैं।

पुरे स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान घनश्याम दास बिड़ला, सर जमनालाल बजाज जैसे उद्योगपतियों ने कांग्रेस को बड़े पैमाने पर फंड उपलब्ध कराये। तब जाकर स्वतंत्रता आंदोलन सफल हो पाया।

बहुत सारे बोलियों,ऊपबोलियों मैं बंटे हमारी राष्ट्रभाषा हिन्दी को खड़ी बोली ,जिसे आधुनिक हिंदी भाषा के रूप में जाना जाता है, भारतेंदु हरिश्चंद्र ने पहचान दिलाई। और सही मायने में हिंदी भाषा को आजादी दिलाई। आधुनिक छायावाद के जनक जयशंकर प्रसाद ने कामायनी जैसे महाकाव्य की रचना कर हिन्दी भाषा को नई ऊंचाई प्रदान किया। कालिदास गुप्ता ने उर्दू में अनेक रचनाएं रचीं।

कहने का मतलब है कि राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, समाज के सभी क्षेत्रों में वैश्य समाज का अतुलनीय योगदान रहा हैं।

वैश्य समाज ने स्कूल, कालेज, धर्मशाला खोले, समाज से जितना लिया, उतना वापस समाज में कर दिया।
स्वतंत्रता के बाद के कुछ दशकों तक वैश्य समाज राजनीति से दूर हो गया, यह सोचकर कि स्वशासन में सब कुछ ठीक हो जाएगा।

परंतु अफसोस की बात है कि विघटनकारी ताकतै क्षेत्रीयता, सांप्रदायिकता, जातियता, के रूप में एक बार पुनः वापस आ रही हैं।

कहने का मतलब है कि वैश्य समाज को एक बार फिर सामाजिक स्थिति को देखते हुए समाज का राजनीतिक नेतृत्व करना हीं होगा।

साभार: हम हैं वैश्य , Jayprakash Kumar फेसबुक वाल से

धर्म निष्ठ और बहादुर वैश्य समुदाय, जिसने धर्म नहीं बदला

धर्म निष्ठ और बहादुर वैश्य समुदाय, जिसने धर्म नहीं बदला 



Thursday, September 23, 2021

PUNEET GUPTA - ASTROLOGY APP DEVELOPER

PUNEET GUPTA - ASTROLOGY APP DEVELOPER

एस्ट्रोलॉजर की भविष्यवाणी सच हुई तो इंजीनियर ने बनाया एस्ट्रोलॉजी का ऐप, अब रोज 30 लाख का बिजनेस, 1600 लोगों को जॉब भी दी

हर किसी को अपने कल की चिंता होती है। आने वाले दिन कैसे होंगे? जॉब लगेगी या नहीं, किस सेक्टर में करियर बनेगा? आगे की लाइफ कैसी रहेगी, जिंदगी में चल रही उठापटक कब थमेगी? जीवन साथी कैसा होगा? ये कुछ ऐसे सवाल हैं जिन्हें लेकर ज्यादातर लोग परेशान रहते हैं। इसे देखते हुए पंजाब के भटिंडा जिले में रहने वाले पुनीत गुप्ता ने 3 साल पहले एक ऑनलाइन स्टार्टअप की शुरुआत की। वे मोबाइल ऐप के जरिए लोगों को उनके फ्यूचर के बारे में बताते हैं, उनकी समस्याओं का समाधान करते हैं।

इसके लिए पुनीत ने एक्सपर्ट एस्ट्रोलॉजर्स को हायर कर रखा है। 1600 से ज्यादा एस्ट्रोलॉजर्स उनके साथ जुड़े हुए हैं। कोविड के बाद उनके स्टार्टअप को जबरदस्त रिस्पॉन्स मिला है। फिलहाल हर दिन 30 लाख रुपए से ज्यादा का रेवेन्यू वे जेनरेट कर रहे हैं।

एक एस्ट्रोलॉजर की भविष्यवाणी से बदल गई जिंदगी

32 साल के पुनीत ने 2011 में इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी करने के बाद करीब 4 साल तक नौकरी की। इसके बाद साल 2015 में उन्होंने खुद का एक स्टार्टअप शुरू किया। इसमें वे मोबाइल ऐप डेवलपमेंट का काम करते थे। अलग-अलग कंपनियों और लोगों की डिमांड के मुताबिक वे ऐप तैयार करते थे। करीब 2 साल तक उन्होंने यह काम किया। अच्छी कमाई भी हुई और कस्टमर्स का रिस्पॉन्स भी अच्छा मिला, लेकिन इसी बीच उनके साथ कुछ ऐसा हुआ जिससे उनकी लाइफ बदल गई।


पंजाब के रहने वाले पुनीत गुप्ता ने इंजीनियरिंग की पढ़ाई की है। इस स्टार्टअप से पहले वे चार साल तक नौकरी और ऐप डेवलपमेंट का खुद का बिजनेस कर चुके हैं।

पुनीत बताते हैं कि 2015-16 में एक एस्ट्रोलॉजर से मेरी बातचीत हुई। उन्होंने बताया कि अभी आपकी यह कंपनी जरूर अच्छा कर रही है, लेकिन अगले दो सालों में इसे बंद करना पड़ेगा। आपका साथी काम छोड़कर चला जाएगा। वे कहते हैं कि तब मुझे उसकी बात पर यकीन नहीं हुआ। मैं इन सब चीजों में भरोसा नहीं करता था। इसलिए कुछ खास ध्यान नहीं दिया। हालांकि दो साल से पहले ही कुछ वैसा ही हुआ जैसा कि उस एस्ट्रोलॉजर ने कहा था। मेरे पार्टनर ने कंपनी छोड़ दी, मैं अकेला पड़ गया। कुछ दिनों तक तो जैसे-तैसे काम चलाया, लेकिन फिर बहुत दिक्कत होने लगी, इम्प्लॉइज को सैलरी देने में दिक्कत होनी लगी। आखिरकार मुझे अपना स्टार्टअप बंद करना पड़ा।

मेरी तरह ही हर कोई कहीं न कहीं कोई एस्ट्रोलॉजर तलाश रहा है

पुनीत कहते हैं कि जब मेरी कंपनी बंद हुई तो मुझे एस्ट्रोलॉजी पर भरोसा हुआ। मैंने उसी एस्ट्रोलॉजर को फोन किया जिससे दो साल पहले मेरी बातचीत हुई थी। मैंने उसे सब कुछ बताया और कहा कि आपकी भविष्यवाणी सही साबित हुई। उससे इस मुश्किल दौर से निकलने का उपाय पूछा। तब मुझे रियलाइज हुआ कि मेरी तरह दुनिया में और भी लोग हैं, जिन्हें आए दिन किसी न किसी परेशानी से गुजरना पड़ता है और वे कोई न कोई एस्ट्रोलॉजर तलाश कर रहे होते हैं।

इसलिए हम क्यों न एक ऐसा ऐप तैयार करें जहां लोग खुलकर और आसानी से अपनी लाइफ और भविष्य से जुड़े सवाल पूछ सकें, उन्हें उनकी परेशानियों से छुटकारा मिल सके। वे एक ही प्लेटफॉर्म पर अलग-अलग एक्सपर्ट एस्ट्रोलॉजर्स से बातचीत कर सकें।

2017 में शुरू किया ऑनलाइन स्टार्टअप


पुनीत की टीम में 70 से ज्यादा लोग काम करते हैं। ये अलग-अलग बैकग्राउंड के लोग हैं, जो ऐप के मैनेजमेंट से लेकर मार्केटिंग तक का काम करते हैं।

इसके बाद मैंने उसी एस्ट्रोलॉजर बात की और पूछा कि अगर हम इस तरह का एक प्लेटफॉर्म तैयार करें, तो क्या वे हमारे साथ काम करेंगे? उन्होंने अपनी सहमति दे दी, वे हमारे साथ काम करने के लिए तैयार हो गए। इसके बाद हमने कुछ और भी एक्सपर्ट एस्ट्रोलॉजर अपने साथ जोड़े और 2017 में Astrotalk नाम से नोएडा में अपने स्टार्टअप की शुरुआत की। तब हम लोग ऑनलाइन स्लॉट बुकिंग करते थे। इसके बाद यूजर्स की एस्ट्रोलॉजर से बातचीत कराते थे। हर यूजर का 30 मिनट का सेशन रहता था।

वे बताते हैं कि शुरुआत से ही हमें अच्छा रिस्पॉन्स मिल रहा था, लेकिन साथ ही लोगों को एक दिक्कत भी फेस करनी पड़ रही थी। उन्हें तत्काल समाधान नहीं मिल पा रहा था। बुकिंग के लिए उन्हें लंबा इंतजार करना पड़ता था। हर आदमी का 30 मिनट का सेशन था, इसलिए हम लिमिटेड लोगों को ही बुकिंग दे सकते थे। इसके बाद हमने इस कॉन्सेप्ट को बदल दिया और लाइव चैट और फोन कॉल को इम्प्लीमेन्ट कर दिया। यानी ऐप पर जाने के बाद किसी भी यूजर को न तो बुकिंग की जरूरत होगी, न ही उसे इंतजार करना पड़ेगा। वह जब चाहे कॉल या चैट के जरिए अपनी पसंद के एस्ट्रोलॉजर से सवाल-जवाब कर सकता है। इस सुविधा के बाद यूजर्स की संख्या दो से तीन गुना तक बढ़ गई।

कोरोना में बढ़ गई ऑनलाइन एस्ट्रोलॉजी की डिमांड


पुनीत की टीम में 1600 से ज्यादा एक्सपर्ट एस्ट्रोलॉजर्स जुड़े हैं। कोई भी यूजर अपनी पसंद के मुताबिक एस्ट्रोलॉजर सिलेक्ट कर सकता है।

पुनीत कहते हैं कि मार्च 2020 तक हमारा कारोबार अच्छा-खासा जम गया था। बड़ी संख्या में यूजर्स हमारे ऐप पर आ रहे थे और अपनी समस्याओं का समाधान ढूंढ रहे थे, लेकिन जैसे ही कोरोना के चलते लॉकडाउन लगा, हमारा बिजनेस डाउन हो गया। करीब दो हफ्ते तक कुछ खास रिस्पॉन्स नहीं मिला। इसके बाद जैसे-जैसे वक्त बीता और लॉकडाउन बढ़ने लगा, लोगों की नौकरियां जाने लगी, लोग बीमार होने लगे, तब अचानक से लोग तेजी से हमारे ऐप पर शिफ्ट हो गए। दो महीने के भीतर ही हमारा बिजनेस कई गुना बढ़ गया। लोगों की डिमांड बढ़ गई और हमें अपनी टीम भी तेजी से बढ़ानी पड़ी।

वे बताते हैं कि तब युवाओं के कॉल ज्यादा आ रहे थे। वे अपनी नौकरी की सिक्योरिटी को लेकर डरे थे, परेशान थे। इसी तरह कई लोग अपनी हेल्थ को लेकर भी चिंतित थे और समाधान तलाश रहे थे। अभी भी कॉल करने वालों में ज्यादातर युवा ही हैं। इनमें लड़कियों की संख्या भी ठीक ठाक है।

फिलहाल पुनीत के साथ देशभर से 1600 से ज्यादा एक्सपर्ट एस्ट्रोलॉजर जुड़े हैं। इसमें हर लैंग्वेज जानने वाले लोग हैं। इसके साथ ही उनके साथ 70 से ज्यादा लोग टीम में काम करते हैं, जो टेक्नोलॉजी से लेकर मार्केटिंग और मैनेजमेंट का काम संभालते हैं। अभी हर दिन करीब 55 हजार लोग उनके ऐप पर आते हैं। इसमें से 5 हजार से ज्यादा कस्टमर्स पेड हैं। भारत के साथ ही दूसरे देशों के भी लोग अपनी समस्याओं के समाधान के लिए उनसे कॉन्टैक्ट करते हैं।

कैसे करते हैं लोगों की मदद? क्या है पूरा प्रोसेस?


पुनीत बताते हैं कि अभी उनके ऐप पर हर दिन 55 हजार यूजर्स आ रहे हैं। इनमें से 5 हजार से ज्यादा यूजर्स पेड कस्टमर्स हैं।

पुनीत की टीम ने एक मोबाइल ऐप तैयार किया है। इसमें लॉगिन करने और अकाउंट क्रिएट करने के बाद आप अपने सवाल पूछ सकते हैं। इसमें दो तरह की सर्विसेज हैं- एक पेड और दूसरी मुफ्त। एक्सपर्ट एक्सट्रोलॉजर से चैट और फोन पर बातचीत के लिए आपको पेमेंट करना होगा। जबकि रोज का राशिफल पढ़ने, ऑनलाइन कुंडली बनवाने और लाइव शो देखने के लिए पेमेंट की जरूरत नहीं होगी। यह सबके लिए फ्री सर्विस है।

पुनीत कहते हैं कि हमारे ऐप पर एक्सपर्ट एस्ट्रोलॉजर्स की लिस्ट है। इसमें उनके बारे में हर डिटेल जानकारी, उनकी एक्सपर्टीज, उनकी रेटिंग और फीस उपलब्ध है। इसके आधार पर कस्टमर अपनी पसंद का एस्ट्रोलॉजर सिलेक्ट कर सकता है और उससे चैट या फोन कॉल के जरिए अपनी समस्याओं का समाधान जान सकता है। पेमेंट के लिए उसे अपना वॉलेट रिचार्ज करना होगा। पैसे मिनट के हिसाब से कटते हैं। यानी जितनी देर तक वह चैट या कॉल पर एक्सपर्ट से बातचीत करेगा, उतना अमाउंट उसके वॉलेट से कटता जाएगा। चार्ज को लेकर वे कहते हैं कि अलग-अलग एस्ट्रोलॉजर्स के रेट अलग-अलग हैं। औसतन 25 से 30 रुपए में कस्टमर्स को उनकी समस्या का समाधान मिल जाता है।

मार्केटिंग को लेकर पुनीत की टीम सोशल मीडिया और गूगल ऐड्स का सहारा लेती है। वे लोग लगातार पेड प्रमोशन करते रहते हैं। अगर कोई बतौर एस्ट्रोलॉजर पुनीत की टीम के साथ जुड़ना चाहता है तो उसे ऐप पर जाकर ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन करना होगा। इसके बाद उसका क्वालिफिकेशन टेस्ट होगा। फिर एक्सपर्ट की टीम सवाल जवाब करेगी और यह जांचने की कोशिश करेगी कि उस एस्ट्रोलॉजर को जानकारी है या नहीं। सबकुछ ठीक रहा तो उसे काम करने का मौका मिलेगा।

ADITYA BANGAD - A YOUNG ENTERPRENEUR

ADITYA BANGAD - A YOUNG ENTERPRENEUR

17 साल के आदित्य ने 9 महीने पहले प्लास्टिक वेस्ट से फाइबर बनाने का स्टार्टअप शुरू किया, अब एक करोड़ रु. पहुंचा टर्नओवर

प्लास्टिक वेस्ट को मैनेज करना हम सबके लिए सबसे बड़ी चुनौती है। इससे पर्यावरण को तो नुकसान पहुंचता ही है, साथ ही कूड़े के ढेर पर कई जिंदगियां भी दम तोड़ देती हैं। कई मवेशी कचरा खाकर बीमार हो जाते हैं, उनकी जान चली जाती है। कई बार तो झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाले बच्चे भी इसका शिकार हो जाते हैं। इस परेशानी को कम करने के लिए राजस्थान के भीलवाड़ा जिले में रहने वाले आदित्य बांगर ने एक पहल की है।

12वीं में पढ़ने वाले 17 साल के आदित्य प्लास्टिक वेस्ट से फाइबर तैयार कर रहे हैं। फिलहाल हर दिन वे 10 टन प्लास्टिक वेस्ट रिसाइकिल कर रहे हैं। अपनी इस पहल से वे न सिर्फ प्लास्टिक वेस्ट की समस्या से छुटकारा दिला रहे हैं, बल्कि इससे कमाई भी कर रहे हैं। एक साल के भीतर ही उन्होंने एक करोड़ रुपए से ज्यादा का टर्नओवर हासिल किया है।

पहली बार चीन में प्लास्टिक वेस्ट से फाइबर बनते देखा


आदित्य बांगर फिलहाल भीलवाड़ा के एक स्कूल में 12वीं क्लास में पढ़ते हैं। उनके पिता का अपना पुराना बिजनेस है।

आदित्य एक बिजनेस फैमिली से ताल्लुक रखते हैं। अपने आइडिया को लेकर वे कहते हैं कि जब मैं 10वीं में था, तब परिवार के साथ कुछ दिनों के लिए चीन जाने का मौका मिला। वहां मुझे उन जगहों पर जाने का मौका मिला जहां प्लास्टिक वेस्ट से फाइबर तैयार किए जा रहे थे। मुझे वह काम पसंद आया और यही से मेरी दिलचस्पी इसमें बढ़ने लगी। मुझे लगा कि यह काम अगर मैं सीख लूं तो अपने देश में भी इस तरह की पहल की जा सकती है। इसके बाद मैं वहां काम कर रहे लोगों से मिला। उनसे बातचीत की और उनके काम करने की प्रोसेस को समझा।

इसके बाद साल 2019 में आदित्य वापस इंडिया लौट आए। उन्होंने अपने घर में इस आइडिया को लेकर बात की। चूंकि परिवार पहले से बिजनेस से जुड़ा हुआ था, इसलिए आदित्य को भी आसानी से इसकी इजाजत मिल गई। उन्होंने चीन में प्लास्टिक वेस्ट से फाइबर तैयार कर रही कंपनियों से कॉन्टैक्ट किया और वहां से रिसाइकिल करने वाली मशीनें मंगाई। इसके बाद भीलवाड़ा में ही उन्होंने अपना सेटअप जमाया और प्रोडक्शन यूनिट शुरू की। इसके लिए उन्हें पिता की कंपनी से फंड मिला था।

सेटअप तो जमा लिया, पर कोविड के चलते एक साल काम रोकना पड़ा


आदित्य बताते हैं कि एक किलो प्लास्टिक वेस्ट से करीब 800 ग्राम फाइबर निकलता है। इसके बाद इस फाइबर से कपड़े तैयार किए जाते हैं।

आदित्य कहते हैं कि हमने पूरी तैयारी कर ली थी। काम शुरू करने ही वाले थे कि कोरोना के चलते लॉकडाउन लग गया और हमें काम बंद करना पड़ा। करीब एक साल तक हमारा काम बंद रहा। इस बीच खाली वक्त का उपयोग मैंने नए आइडिया जेनरेशन के रूप में किया। इंटरनेट पर वेस्ट मैनेजमेंट संबंधी ढेर सारे वीडियो देखे, जानकारी जुटाई। साथ में अपनी पढ़ाई भी करता रहा। फिर जनवरी 2021 में कोरोना के मामले कम हुए और लॉकडाउन में ढील दी गई। बाजार और ऑफिस धीरे-धीरे खुलने लगे। नौ महीने पहले हमने भी फिर से कोशिश की और 'ट्रैश टू ट्रेजर' नाम से अपने स्टार्टअप की शुरुआत की।

कैसे करते हैं काम? कहां से लाते हैं प्लास्टिक वेस्ट?

आदित्य बताते हैं कि हम अभी सिर्फ प्लास्टिक वेस्ट को ही रिसाइकिल कर रहे हैं। इसके लिए हम लोकल लेवल से लेकर नगर निगम तक से वेस्ट कलेक्ट करते हैं। कई छोटे वेंडर्स से हमारा टाइअप है, जिन्हें हम पैसे देकर प्लास्टिक खरीदते हैं, फिलहाल हम लोग हर दिन 10 टन प्लास्टिक रिसाइकिल कर रहे हैं। हालांकि यह हमारी डिमांड के मुताबिक कम है। हम जल्द ही प्लास्टिक वेस्ट कलेक्शन को बढ़ाने वाले हैं। जैसे-जैसे लोगों को हमारे काम के बारे में पता चल रहा है, वैसे-वैसे हमारा काम आगे बढ़ रहा है।


फिलहाल आदित्य और उनकी टीम मिलकर हर दिन 10 टन से ज्यादा प्लास्टिक वेस्ट रिसाइकिल कर रही है।

प्लास्टिक वेस्ट से फाइबर तैयार करने की प्रोसेस को लेकर वे बताते हैं कि सबसे पहले हम वेस्ट को कलेक्ट करने के बाद उसे कैटेगराइज करते हैं। इसके बाद सभी बॉटल से ढक्कन निकालते हैं और उन्हें क्लीन करने के बाद ड्राय करते हैं। फिर मशीन की मदद से उसे महीन क्रश कर लेते हैं। इसके बाद इसे केमिकल वॉश करते हैं और मशीन की मदद से मेल्ट कर लेते हैं। मेल्ट होने के बाद हम इसे कुछ घंटों के लिए ठंडा होने के लिए छोड़ते हैं। ठंडा होने के बाद यह फाइबर के रूप में तब्दील होता है। इसके बाद प्रोसेसिंग करके इससे फैब्रिक तैयार किया जाता है।

आदित्य के मुताबिक एक किलो प्लास्टिक वेस्ट से लगभग 800 ग्राम फाइबर तैयार होता है। अभी वे हर दिन 8 टन फाइबर तैयार कर रहे हैं। फिलहाल वे ब्रांड-टू-कस्टमर यानी B2C मॉडल पर काम नहीं कर रहे हैं। उनके यहां जितना भी फाइबर तैयार होता है, वे एक कंपनी को सीधे बेच देते हैं। जो आगे इससे कपड़े और बाकी चीजें तैयार करती है। अभी आदित्य की टीम में 200 लोग काम करते हैं।

करियर के लिहाज से इस फील्ड में बेहतर स्कोप

एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में सालाना 150 लाख टन प्लास्टिक का कूड़ा बनता है। दुनियाभर में जितना कूड़ा हर साल समुद्र में बहा दिया जाता है उसका 60% हिस्सा भारत डालता है। जबकि अभी करीब एक चौथाई प्लास्टिक वेस्ट को ही रिसाइकिल्ड किया जा रहा है। इससे आप समझ सकते हैं कि यह कितनी बड़ी चुनौती है। केंद्र सरकार और राज्य सरकारें प्लास्टिक वेस्ट मैनेजमेंट को लेकर अभियान चला रही हैं। यूनाइटेड नेशंस डेवलपमेंट प्रोग्राम (UNDP) के तहत देश में प्लास्टिक वेस्ट मैनेजमेंट को लेकर कई प्रोजेक्ट पर काम चल रहा है।


अगर कोई इस सेक्टर में करियर बनाना चाहता है तो उसे सबसे पहले प्लास्टिक वेस्ट मैनेजमेंट को समझना होगा। उसकी प्रोसेस को समझना होगा। इसको लेकर केंद्र और राज्य सरकारें ट्रेनिंग कोर्स भी करवाती हैं। इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वेस्ट मैनेजमेंट, भोपाल से इसकी ट्रेनिंग ली जा सकती है। इस सेक्टर में काम करने वाले कई इंडिविजुअल भी इसकी ट्रेनिंग देते हैं।

अगर आप भी वेस्ट मैनेजमेंट को लेकर काम करना चाहते हैं तो ये दो स्टोरी आपके काम की है

असम में रहने वाले संजय गुप्ता वेस्ट मैनेजमेंट को लेकर काम कर रहे हैं। स्विट्जरलैंड की अच्छी-खासी नौकरी छोड़कर वे पिछले तीन साल से भारत में वेस्ट मैनेजमेंट को लेकर काम कर रहे हैं। असम में वे घर-घर जाकर लोगों के यहां से कचरा कलेक्ट करते हैं और फिर उससे ऑर्गेनिक खाद तैयार करते हैं। 100 से ज्यादा लोगों को उन्होंने रोजगार से जोड़ा है। वे खुद भी लाखों रुपए की कमाई कर रहे हैं।

SANJAY GUPTA - A YOUNG ACHIEVER

SANJAY GUPTA - A YOUNG ACHIEVER

अखबार में अपने शहर की गंदगी के बारे में पढ़ा तो विदेश की जॉब छोड़ घर-घर कचरा इकट्ठा करने लगे, 122 लोगों को नौकरी दी, खुद भी लाखों कमा रहे

मैं 5 साल से स्विट्जरलैंड में वेस्ट मैनेजमेंट पर काम कर रहा था। अच्छी सैलरी और हर तरह की सुविधा थी। किसी चीज की दिक्कत नहीं थी। एक दिन अखबार में छपी एक खबर पर मेरी नजर गई। जिसमें मेरे होमटाउन असम के तिनसुकिया जिले को सबसे गंदा शहर बताया गया था। खबर पढ़ने के बाद मुझे काफी तकलीफ पहुंची। मैं सोचने लगा कि विदेश में रहकर स्वर्ग को स्वर्ग बना रहा हूं, लेकिन अपने शहर के लिए कुछ नहीं कर पा रहा हूं, ऐसे में मेरे मिशन का क्या मतलब है, जब खुद का शहर ही गंदा हो।

साल 2018 में मैंने नौकरी छोड़ी दी और अपने शहर की गंदगी मिटाने की मुहिम में जुट गया। आज मेरा शहर लगभग वेस्ट फ्री हो गया है, लोग जागरूक हो गए हैं। इतना ही नहीं अब असम के दूसरे जिले भी वेस्ट फ्री हो रहे हैं। लोगों को काम मिल रहा है, महिलाएं आत्मनिर्भर बन रही हैं। बदलाव की इस कहानी को गढ़ने वाले शख्स का नाम संजय गुप्ता है, जो लंबे वक्त से वेस्ट मैनेजमेंट पर काम कर रहे हैं।

पढ़ाई के दौरान ही वेस्ट मैनेजमेंट पर काम करना शुरू कर दिया था


संजय गुप्ता लंबे वक्त से वेस्ट मैनेजमेंट से जुड़े रहे हैं। उन्होंने भारत में और भारत के बाहर इससे जुड़े कई प्रोजेक्ट के लिए काम किया है।

49 साल के संजय गुप्ता की शुरुआती पढ़ाई-लिखाई गांव में ही हुई, उसके बाद बैचलर्स की पढ़ाई के लिए वे इलाहाबाद चले गए। इसके बाद उन्होंने JNU में दाखिला लिया। यहां से उन्होंने मास्टर्स और फिर पीएचडी की डिग्री हासिल की। संजय कहते हैं कि JNU में पढ़ाई के दौरान ही वेस्ट मैनेजमेंट को लेकर मेरी दिलचस्पी बढ़ने लगी थी। कैंपस में जहां भी गंदगी दिखती, उसे साफ करने में हम लग जाते थे। तब हमारा मोटिव था कैंपस को जीरो वेस्ट बनाना और हम बहुत हद तक उसमें कामयाब भी हुए। इसके बाद मैंने तय किया कि आगे इसी फील्ड में करियर बनाऊंगा।

JNU से पढ़ाई पूरी करने के बाद संजय गुप्ता की जॉब लग गई। 2013 तक उन्होंने अलग-अलग संस्थानों के लिए वेस्ट मैनेजमेंट और इससे जुड़े प्रोजेक्ट पर काम किया। इसके बाद वे स्विट्जरलैंड चले गए। अपनी इस मुहिम की कहानी को लेकर संजय बताते हैं कि तीन साल पहले जब मुझे अपने होमटाउन की गंदगी के बारे में पता चला तो मैंने सरकार और जिले के अधिकारियों को लेटर लिखा। उन्हें बताया कि मैं वेस्ट मैनेजमेंट पर काम कर रहा हूं और अब अपने राज्य और शहर के लिए कुछ करना चाहता हूं। इसको लेकर सरकार से पॉजिटिव रिस्पॉन्स मिला और मैं असम लौट आया।

बहुत कम लोग अवेयर थे, जिसे जहां मन किया कचरा फेंक देता था


संजय गुप्ता की टीम हर तरह के वेस्ट कलेक्ट करती है। इसके बाद वे लोग वेस्ट को सेग्रिगेट करके आगे की प्रोसेसिंग करते हैं।

संजय गुप्ता कहते हैं कि यहां आने के बाद पता चला कि मुसीबत वाकई बहुत बड़ी है। शहर में गंदगी तो थी ही, साथ ही लोगों की आदतें भी सही नहीं थीं। जिसको जहां मन किया वहां कचरा फेंक देता था। सूखा कचरा और गीला कचरा सब मिक्स कर देते थे। होटल और दुकानों के बाहर वेस्ट का ढेर लगा रहता था। बहुत कम लोग ही अवेयर थे। इसके बाद मैं नगर निगम के अधिकारियों से मिला और स्थानीय लोगों के साथ मिलकर अपनी एक टीम तैयार की।

सबसे पहले उन्हें वेस्ट मैनेजमेंट की ट्रेनिंग दी। सूखे और गीले कचरे का फर्क बताया। हर तरह के कचरे को कैसे अलग करना है, इसकी प्रोसेस समझाई और फिर अपने काम में जुट गए। हमारी टीम लोगों के घर-घर जाकर वेस्ट कलेक्ट करने लगी। इसका असर भी दिखा और एक साल के भीतर ही शहर की आधी गंदगी साफ हो गई, लोग अवेयर होने लगे, वे इधर-उधर कचरा फेंकने की बजाए, डस्टबिन में वेस्ट इकट्ठा करने लगे।


संजय गुप्ता की टीम के लोग रोज लोगों के घर-घर जाकर वेस्ट कलेक्ट करते हैं। बदले में लोगों से वे 50 से 100 रुपए मंथली चार्ज करते हैं।

इसके बाद हमने अपने काम का दायरा बढ़ाना शुरू कर दिया। तिनसुकिया जिले के साथ ही तीताबर और बाकी शहरों में भी हमने अवेयरनेस फैलाना शुरू किया। धीरे-धीरे लोग हमारी मुहिम से जुड़ते गए और हमारी टीम बढ़ती गई। आज हमारी टीम में 122 लोग काम करते हैं। इनमें ज्यादातर महिलाएं हैं। अब तक हम लोग 500 टन वेस्ट कलेक्ट कर चुके हैं। 50 लाख से ज्यादा प्लास्टिक बॉटल रिसाइकिल्ड कर चुके हैं।

कैसे करते हैं काम? क्या है वेस्ट मैनेजमेंट का मॉडल?
संजय गुप्ता ने केयर नॉर्थ ईस्ट फाउंडेशन नाम से खुद का ऑर्गेनाइजेशन बनाया है। वे कहते हैं कि हमने एरिया के हिसाब से अलग-अलग टीमें बनाई हैं। इनमें वेस्ट कलेक्ट करने वाले, उन्हें सेग्रिगेट करने वाले और ड्राइवर शामिल हैं। ये लोग हर दिन सुबह एक निश्चित समय पर अपने-अपने एरिया में जाते हैं और लोगों के घर से वेस्ट कलेक्ट करके अपनी यूनिट तक लाते हैं। यहां हम वेस्ट का एनालिसिस करते हैं। सूखा वेस्ट, गीला वेस्ट, प्लास्टिक वेस्ट, पेपर वेस्ट, रिसाइकिल्ड होने वाले वेस्ट, डिकंपोज करने वाले वेस्ट और ऑर्गेनिक वेस्ट को अलग-अलग करते हैं।


संजय गुप्ता और उनके साथी ऑर्गेनिक वेस्ट को प्रोसेस करके खाद तैयार करते हैं। हर साल वे लोग 2.5 टन खाद तैयार कर रहे हैं।

इसके साथ ही हमने होटल वाले, दुकानदार और बड़ी कंपनियों से भी टाइअप किया है। हमारी टीम उनके यहां से सभी तरह के वेस्ट कलेक्ट करती है। शहर में कोई कार्यक्रम या इवेंट होता है तो हम वहां से भी वेस्ट कलेक्ट करते हैं। अब सवाल उठता है कि आखिर इतने वेस्ट का होता क्या है? संजय बताते हैं कि रिसाइकिल्ड होने वाले वेस्ट को हम लोग कबाड़ी वाले को बेच देते हैं। इससे जो कुछ आमदनी होती है वह वेस्ट कलेक्ट करने वाली टीम की होती है। जो वेस्ट रिसाइकिल्ड नहीं किए जा सकते, उन्हें हम डंप कर देते हैं। इसके बाद जो ऑर्गेनिक वेस्ट बचते हैं, उनसे हम लोग खाद तैयार करते हैं। अब तक हमारी टीम 2.5 टन से ज्यादा खाद तैयार कर चुकी है।

फंड कहां से लाते हैं, सोर्स ऑफ इनकम क्या है?
संजय कहते हैं कि CSR की तरफ से हमें कुछ फंड मिला है। उन्होंने वेस्ट कलेक्ट करने के लिए हमें 23 गाड़ियां उपलब्ध कराई हैं। कुछ मदद हमें नगर निगम से भी मिलती है। इसके अलावा जिन घरों से हम वेस्ट कलेक्ट करते हैं उनसे 50 रुपए से लेकर 100 रुपए तक महीना हम चार्ज करते हैं। इसी तरह होटल वालों और दुकानदारों से भी हम कुछ चार्ज लेते हैं। इसका कोई रेट फिक्स नहीं है। कई लोग पैसे नहीं देते हैं, फिर भी हम उनके यहां से वेस्ट कलेक्ट करते हैं। अभी करीब 20 हजार घरों तक हमारी टीम पहुंच रही है। इससे हर साल करीब 6 से 7 लाख रुपए कलेक्ट हो जाते हैं।

संजय कहते हैं कि व्यक्तिगत लेवल पर मैं कानपुर और देश के दूसरे हिस्सों के लिए भी काम कर रहा हूं। कई राज्यों में मेरा मॉडल अपनाया जा रहा है। जल्द ही हम बिहार में अपना प्रोजेक्ट शुरू करने वाले हैं।


संजय बताते हैं कि ऑर्गेनिक वेस्ट से खाद तैयार करने में करीब 70 दिन का वक्त लगता है। 25 से 30 टन कचरे से एक किलो खाद बनता है।

करियर के लिहाज से भी वेस्ट मैनेजमेंट में बेहतर स्कोप है
एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में हर साल 150 लाख टन प्लास्टिक वेस्ट निकलता है। इसमें से महज 25% ही रिसाइकिल्ड हो पाता है। इससे आप समझ सकते हैं कि यह कितनी बड़ी चुनौती है। केंद्र सरकार और राज्य सरकारें प्लास्टिक वेस्ट मैनेजमेंट को लेकर अभियान चला रही हैं। कई शहरों में प्लास्टिक वेस्ट कलेक्शन सेंटर भी बने हैं। जहां लोगों को कचरे के बदले पैसे मिलते हैं। यूनाइटेड नेशंस डेवलपमेंट प्रोग्राम (UNDP) के तहत देश में प्लास्टिक वेस्ट मैनेजमेंट को लेकर कई प्रोजेक्ट पर काम चल रहा है।

अगर कोई इस सेक्टर में करियर बनाना चाहता है तो उसे सबसे पहले प्लास्टिक वेस्ट मैनेजमेंट को समझना होगा। उसकी प्रोसेस को समझना होगा। इसको लेकर केंद्र सरकार और राज्य सरकार ट्रेनिंग कोर्स भी करवाती हैं। इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वेस्ट मैनेजमेंट, भोपाल से इसकी ट्रेनिंग ली जा सकती है।

देश में कई ऐसे छोटे-बड़े स्टार्टअप हैं, जो वेस्ट से ईकोफ्रेंडली प्रोडक्ट बनाकर अच्छी कमाई कर रहे हैं। दिल्ली की रहने वाली कनिका आहूजा भी उनमें से एक हैं, जो न सिर्फ कचरे की समस्या से छुटकारा दिलाने की पहल कर रही हैं, बल्कि इससे ईकोफ्रेंडली बैग, पर्स, फैब्रिक प्रोडक्ट और हैंडीक्राफ्ट आइट्स की मार्केटिग करके सालाना 50 लाख रुपए की कमाई भी कर रही हैं। उन्होंने 200 से ज्यादा लोगों को रोजगार से भी जोड़ा है। 




HARSHIT GUPTA -GRAMOPHONE APP

HARSHIT GUPTA -GRAMOPHONE APP

UP के 3 दोस्तों ने नौकरी छोड़ किसानों के लिए तैयार किया मोबाइल ऐप; 8 लाख किसान जुड़े, 30 करोड़ रुपए टर्नओवर, फोर्ब्स में मिली जगह

ज्यादातर किसानों को खेती के बारे में सही जानकारी नहीं होती है। मसलन खेती की मिट्टी कैसी है, उस हिसाब से किन-किन फसलों की खेती करनी चाहिए? अच्छे प्रोडक्शन के लिए क्या करना चाहिए? फसल में बीमारी लग जाए तो उसका बचाव कैसे करें? खेती के लिए जरूरी चीजें कहां से खरीदें? फसल कटने के बाद अपना प्रोडक्ट कहां बेचें? कृषि को लेकर सरकार की कौन-कौन सी योजनाएं हैं, उनका लाभ कैसे लिया जा सकता है? ये कुछ ऐसे सवाल हैं जो अमूमन हर किसान के मन में होते हैं, पर बहुत कम किसानों को ही इस तरह की जानकारी आसानी से मिल पाती है।

किसानों की इस परेशानी का हल निकाला है यूपी के मेरठ जिले में रहने वाले हर्षित गुप्ता ने। उन्होंने अपने दोस्तों के साथ मिलकर एक ऐसा ऑनलाइन ऐप लॉन्च किया है, जिसके जरिए किसान एक्सपर्ट के माध्यम से अपनी समस्याओं का समाधान पा सकते हैं। खेती से जुड़े हर सवाल का जवाब हासिल कर सकते हैं। इतना ही नहीं, किसान इस ऐप की मदद से अपने प्रोडक्ट की मार्केटिंग भी कर सकते हैं। फिलहाल हर्षित के साथ देशभर के 8 लाख से ज्यादा किसान जुड़े हैं। इसको लेकर उन्हें फोर्ब्स 30 की लिस्ट में भी जगह मिल चुकी है।

बचपन से ही किसानों के लिए कुछ करना चाहते थे

29 साल के हर्षित बताते हैं कि वे फार्मर बैकग्राउंड से ताल्लुक रखते हैं। खेती में उनकी पहले से दिलचस्पी रही है। इसलिए उन्होंने एग्रीकल्चर से ही ग्रेजुएशन किया। इसके बाद IIM अहमदाबाद से साल 2014 में MBA की डिग्री हासिल की और एग्रीकल्चर रिलेटेड एक कंपनी से जुड़ गए। करीब एक साल तक वहां काम किया। फिर मुंबई चले गए। वहां उन्होंने एक होटल स्टार्टअप के साथ काम करना शुरू किया। हालांकि वहां भी उनका मन कुछ खास नहीं लगा। हर्षित किसानों के लिए कुछ करना चाहते थे जिससे किसानों को इंटरनेट से जोड़ा जा सके, उन्हें एक मंच पर लाया जा सके और उनकी मुसीबतों को कम किया जा सके।


हर्षित गुप्ता मेरठ के रहने वाले हैं। उन्होंने IIM अहमदाबाद से MBA की पढ़ाई पूरी की। अभी वे ग्रामोफोन में काम कर रहे हैं।

साल 2016 की शुरुआत में हर्षित ने IIM अहमदाबाद में बैचमेट रहे अपने दोस्त निशांत और तौसीफ से अपना आइडिया शेयर किया। वे दोनों भी खेती से जुड़े रहे थे, लिहाजा उन्हें यह आइडिया पसंद आया और वे हर्षित के साथ काम करने के लिए तैयार हो गए। इसके बाद तीनों ने अपनी-अपनी नौकरी छोड़ दी। अब सवाल था कि इसकी शुरुआत कैसे और कहां से की जाए? किस मॉडल पर काम किया जाए ताकि ज्यादा से ज्यादा किसान जुड़ सकें।

किसानों को उनकी भाषा में ही जानकारी दी जाए, इसलिए मध्य प्रदेश से शुरुआत की

हर्षित कहते हैं कि हम तीनों लोग यूपी से ताल्लुक रखते हैं, इसलिए तय किया कि किसी हिंदी बेल्ट से ही इसकी शुरुआत की जाए। मध्य प्रदेश किसानों का हब है, यह छोटे-बड़े हर तरह के किसान रहते हैं। लिहाजा हमने काम की शुरुआत के लिए यहां के मालवा रीजन को चुना। कुछ नया और अपना आइडिया इम्प्लीमेन्ट करने से पहले हमने तय किया कि किसानों से बातचीत करेंगे। उनकी दिक्कतों को समझेंगे, उनकी जरूरतों को जानेंगे, फिर उसके मुताबिक तय करेंगे कि क्या किया जाए।

सबसे पहले इन लोगों ने मध्य प्रदेश में ग्राउंड पर जाकर किसानों से मिलना शुरू किया, उनसे बातचीत की। एग्रीकल्चर से जुड़े एक्सपर्ट हायर किए। इसके बाद किसानों की डिमांड और फीडबैक के मुताबिक हर्षित और उनके साथियों ने ऑफलाइन मोड में ही काम करना शुरू किया, क्योंकि ज्यादातर किसानों के पास स्मार्टफोन की सुविधा नहीं थी। वे लोग किसानों से मिलते थे, उनके खेतों पर जाते थे और उनकी दिक्कतों को दूर करते थे। इंदौर में इन लोगों ने अपना ऑफिस भी खोला, जहां से किसान खेती संबंधी प्रोडक्ट जैसे बीज, दवाएं, उपकरण खरीद सकते थे, एक्सपर्ट से मिल सकते थे।

दो साल बाद शुरू किया ग्रामोफोन नाम से मोबाइल ऐप


हर्षित बताते हैं कि हमारी टीम के लोग गांवों में जाकर किसानों से मिलते हैं। उनकी जरूरतों को समझते हैं और फिर उसका समाधान निकालते हैं।

हर्षित बताते हैं कि करीब दो साल तक किसानों के साथ काम करने के बाद हमें एक ऐप की जरूरत महसूस हुई। ताकि ज्यादा से ज्यादा किसानों तक हम पहुंच सके और दूसरे राज्यों के किसान भी हमसे जुड़ सकें। इसके बाद हमने ग्रामोफोन नाम से एक ऐप लॉन्च किया। यह ऐप किसानों के लिए बिल्कुल मुफ्त रखा। साथ ही टोल फ्री नंबर की भी व्यवस्था की, ताकि जो किसान स्मार्टफोन यूज नहीं करते हैं, वे भी एक फोन कॉल के जरिए इससे जुड़ सकें।

इस तरह हर्षित और उनके साथियों का कारवां शुरू हुआ। धीरे-धीरे किसानों को उनके बारे में जानकारी मिलती गई और वे अपना दायरा बढ़ाते गए। 5 साल के भीतर ही उनके साथ देशभर के 8 लाख से ज्यादा किसान जुड़ गए। इनमें से 3 लाख से ज्यादा किसानों ने ऐप डाउनलोड किए। इसके साथ ही मध्य प्रदेश के अलग-अलग जिलों से बड़ी संख्या में किसान उनसे ग्राउंड लेवल पर भी जुड़े हैं। इतना ही नहीं किसानों के साथ ही व्यापारी भी ऐप पर जुड़े हैं।

कैसे करते हैं काम? किसानों के लिए क्यों फायदेमंद है यह ऐप?

हर्षित बताते हैं कि हमारी टीम अभी ऑफलाइन और ऑनलाइन दोनों ही लेवल पर काम कर रही है। जिन किसानों के पास स्मार्टफोन है, वे हमारे ऐप का इस्तेमाल करते हैं, जिनके पास स्मार्टफोन या फोन नहीं है, उनके लिए हमारी टीम ग्राउंड पर काम करती है। मध्य प्रदेश में 8 जगहों पर हमारा ग्रामोदय सेंटर है। जहां जाकर किसान अपनी हर समस्या का समाधान पा सकते हैं। हमारी टीम उनकी मदद के लिए वहां उपलब्ध रहती है। जहां तक ऐप की बात है, तो किसानों की मदद के लिए उन्होंने 5 अलग-अलग कैटेगरी बनाई है, जो इस प्रकार है...


हर्षित कहते हैं कि हमारी टीम के लोग फील्ड पर जाते रहते हैं। वे किसानों को ज्यादा से ज्यादा और बेहतर प्रोडक्शन की तरकीब सुझाते हैं।

ग्राम सलाह : इसमें किसान अपनी किसी भी समस्या का समाधान एग्रीकल्चर से जुड़े एक्सपर्ट से पूछ सकते हैं। जैसे किसी किसान को प्रोडक्शन को लेकर दिक्कत है, किसी को फसल की बीमारी को लेकर सलाह लेनी है, या किसी को अपनी जमीन के मुताबिक सही फसल चयन को लेकर सुझाव चाहिए, तो वह यहां उपलब्ध एक्सपर्ट से जानकारी हासिल कर सकता है। किसान चैट के जरिए या फोन के जरिए भी एक्सपर्ट से बातचीत कर सकते हैं।
ग्राम व्यापार : यहां किसान और व्यापारी दोनों ही जुड़े हैं। अगर किसी किसान को अपनी फसल या उत्पाद बेचना है तो वह ऐप के जरिए मार्केटिंग कर सकता है। वह अपना उत्पाद और उसकी कीमत यहां अपलोड कर सकता है। इसके बाद संबंधित व्यापारी उससे बातचीत करके वह प्रोडक्ट खरीद सकता है। इससे दोनों को ही सहूलियत होती है।
ग्राम बाजार : यह किसानों का अपना बाजार है। यहां किसान खेती से जुड़ा कोई भी प्रोडक्ट खरीद सकता है। अगर उसे बीज की जरूरत है, दवा की जरूरत है या किसी उपकरण की जरूरत है, तो वह यहां से खरीद सकता है। ग्रामोफोन की टीम के पास हर तरह के प्रोडक्ट उपलब्ध हैं।
ग्राम सभा : यह किसानों का अपना मंच है। जैसे गांवों में ग्राम सभा का कॉन्सेप्ट होता है, उसी मॉडल पर यह वर्चुअल ग्राम सभा है। यहां वर्चुअली किसान और एक्सपर्ट जुड़े होते हैं। वे आपस में बातचीत कर सकते हैं, अपनी परेशानियां साझा कर सकते हैं, बेहतर खेती के बारे में जानकारी हासिल कर सकते हैं।
सुपर फसल : किसानों के लिए सबसे बड़ी मुसीबत प्रोडक्शन को लेकर है। कई बार सारी जोर आजमाइश करने के बाद भी उतना प्रोडक्शन नहीं हो पाता है, जितना होना चाहिए। ऐसे में ग्रामोफोन की टीम किसानों के खेत की जमीन की टेस्टिंग करती है और फिर उसका ट्रीटमेंट करती है। इसके बाद उसके मुताबिक फसल की सलाह किसानों को देती है, ताकि जमीन के मुताबिक उत्पादन भरपूर हो।


ये हर्षित की टीम के सदस्य हैं। फिलहाल उनके साथ 300 से ज्यादा लोग जुड़े हैं। इसमें खेती से जुड़े हर तरह के एक्सपर्ट शामिल हैं, जो किसानों की मदद करते हैं।

ग्रामोफोन से किसान कैसे जुड़ सकते हैं?

हर्षित कहते हैं कि जिन किसानों के पास स्मार्टफोन है, वह ऐप के जरिए हमसे जुड़ सकते हैं। वे अपनी प्रोफाइल क्रिएट कर सकते हैं। इसके लिए प्रोसेस बेहद आसान है। वहीं जिन किसानों के पास स्मार्टफोन नहीं है, सिर्फ फीचर फोन है, वे टोल फ्री नंबर के जरिए हमसे जुड़ सकते हैं। इसके साथ ही अगर किसी किसान के पास फीचर फोन भी न हों तो वह हमारे ग्रामोदय सेंटर या ऑफिस के जरिए मेंबर बन सकता है। तीनों ही प्लेटफॉर्म पर हमारी टीम हर तरह से उसकी मदद करेगी।

कैसे करते हैं कमाई, क्या है बिजनेस मॉडल?

हर्षित बताते हैं कि फिलहाल हमारा रेवेन्यू मॉडल एग्रीकल्चर से जुड़े प्रोडक्ट की मार्केटिंग पर ही फोकस है। देशभर से जुड़े किसान ऑनलाइन या ऑफलाइन लेवल पर हमसे जो प्रोडक्ट खरीदते हैं, हमारा ज्यादातर रेवेन्यू उसी से हासिल होता है। इसके साथ ही ऐप के जरिए जो किसान और व्यापारी आपस में खरीद-बिक्री करते हैं, उससे भी कुछ कमीशन हमें प्राप्त होता है। अभी सालाना 25 से 30 करोड़ रुपए हमारा टर्नओवर है। हर्षित की टीम में 300 से ज्यादा लोग काम कर रहे हैं।

Friday, September 17, 2021

RAJESH BINDAL NEW ALLAHABAD HIGHCOURT CHIEF JUSTICE

RAJESH BINDAL NEW ALLAHABAD HIGHCOURT CHIEF JUSTICE

जस्टिस राजेश बिंदल होंगे इलाहाबाद हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश


कलकाता हाई कोर्ट के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश से पहले जस्टिस राजेश बिंदल जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश के पद पर कार्यरत थे। वहां पर इस पद पर जस्टिस बिंदल की सेवाएं 9 दिसंबर 2020 से प्रभावी थीं।

इलाहाबाद हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के रूप में कलकत्ता हाई कोर्ट के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश के पद पर कार्यरत जस्टिस राजेश बिंदल का नाम फाइनल हो गया है। 26 जून से इलाहाबाद हाई कोर्ट में कार्यवाहक मुख्य न्यायधीश के रूप में मुनिशवर नाथ भंडारी कार्यरत हैं।

कलकाता हाई कोर्ट के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश से पहले जस्टिस राजेश बिंदल जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश के पद पर कार्यरत थे। वहां पर इस पद पर जस्टिस बिंदल की सेवाएं 9 दिसंबर 2020 से प्रभावी थीं। जस्टिर बिंदल ने पंजाब और हरियाणा में 80 हजार मामलों का निस्तारण किया था।

इलाहाबाद हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के पद पर नियुक्त होने वाले जस्टिस राजेश बिंदल का जन्म 16 अप्रैल 1961 को हरियाणा के अंबाला शहर में हुआ। कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से 1985 में एलएलबी करने के बाद वह सितंबर 1985 में पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय में अपना करियर शुरू किया। उन्होंने 2004 से एक दशक से ज्यादा समय तक केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण के समक्ष चंडीगढ़ प्रशासन का प्रतिनिधित्व किया। उन्होंने पंजाब और हरियाणा में लगभग 80 हजार मामलों का निस्तारण किया। जस्टिस बिंदल उच्च न्यायालय के समक्ष कर्मचारी भविष्य निधि संगठन के मामले में पंजाब और हरियाणा क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करने के साथ 1992 में केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण में शामिल हुए। उन्होंने सतलुज-यमुना जल से संबंधित विवाद के निपटारे में पंजाब राज्य के साथ एराडी ट्रिब्यूनल के समक्ष और सर्वोच्च न्यायालय में हरियाणा का पक्ष रखा। हाईकोर्ट में उच्च न्यायालय के समक्ष आयकर विभाग हरियाणा का प्रतिनिधित्व किया।

उन्हेंं 22 मार्च 2006 को पंजाब और हरियाणा के उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत किया गया। वह 2016 में मुख्य न्यायाधीशों के सम्मेलन में इलेक्ट्रानिक साक्ष्य के लिए मसौदा नियम तैयार करने के लिए गठित समिति के अध्यक्ष रहे। इसके साथ अंतरराष्ट्रीय बाल अपहरण विधेयक 2016 के नागरिक पहलुओं का अध्ययन करने के लिए उन्होंने सिफारिशों और मसौदे के साथ रिपोर्ट प्रस्तुत की। उन्होंने पंजाब और हरियाणा में लगभग 80 हजार मामलों का निस्तारण किया। जम्मू-कश्मीर के उच्च न्यायालय आने से पहले वह कंप्यूटर समिति, एरियर्स समिति सहित अन्य कई समितियों का नेतृत्व कर रहे थे।

साभार: दैनिक जागरण 

Wednesday, September 15, 2021

Tuesday, September 14, 2021

Monday, September 13, 2021

CA FINAL RESULT - AGAIN VAISHYA STUDENT TOPPER - NANDINI AGRAWAL, SAKSHI AIRAN INDIA TOPPER

CA FINAL RESULT - AGAIN VAISHYA STUDENT TOPPER - NANDINI AGRAWAL, SAKSHI AIRAN  INDIA TOPPER

भाई-बहन की जोड़ी ने किया कमाल: सीए फाइनल की परीक्षा में दोनों अव्वल, नंदिनी अग्रवाल ने AIR 1 हासिल किया जबकि सचिन को शीर्ष 20 में स्थान मिला

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स ऑफ इंडिया (आईसीएआई) ने सोमवार को सीए फाइनल परीक्षा के नतीजे जारी किए, जिसमें 19 वर्षीय नंदिनी अग्रवाल ने 614/800 अंकों के साथ टॉप किया। अंक (76.75 फीसदी) और उनके भाई सचिन अग्रवाल (21) ने अखिल भारतीय रैंक (एआईआर) 18 हासिल की।

मध्य प्रदेश के मुरैना जिले के विक्टर कॉन्वेंट स्कूल के दोनों छात्रों ने आईपीसीसी (एकीकृत व्यावसायिक योग्यता पाठ्यक्रम) और सीए (चार्टर्ड एकाउंटेंट्स) फाइनल के लिए एक साथ तैयारी की।

नंदिनी ने कहा, हमारी रणनीति सरल रही है। हम एक-दूसरे का समर्थन करते हैं, लेकिन हम और भी अधिक आलोचना करते हैं। जब हम एक प्रश्नपत्र हल करते हैं, तो वह मेरे उत्तरों की जांच करता है और मैं उसकी जांच करता हूं। ऐसे समय थे जब मैंने आशा खो दी थी, लेकिन मेरे भाई ने उस पूरे चरण में मेरी मदद की।

नंदिनी ने दो कक्षाओं को छोड़ दिया और अपने भाई की कक्षा में ही पढ़ाई की। उसने 2017 में 12वीं पास की थी और फिलहाल वह पीडब्ल्यूसी (प्राइस वाटरहाउस कूपर्स) से आर्टिकलशिप कर रही है। उसे आईपीसीसी परीक्षा में एआईआर 31 भी मिला था।

यह स्वीकार करते हुए कि दुनिया के किसी भी अन्य भाई-बहनों की तरह वे कभी-कभार लड़ते थे। सचिन ने कहा, लेकिन यह केवल कुछ समय तक चला और हम वापस सामान्य हो गए।

उन्होंने अपनी बहन की प्रशंसा करते हुए कहा, मैं 70 प्रतिशत अंकों के साथ भी खुश होता, क्योंकि मुझे उच्च उम्मीदें नहीं थीं, लेकिन मुझे पता था कि नंदिनी बहुत अच्छा करेगी। वह शानदार है और सभी सफलता की हकदार है। कई मायनों में, वह मेरी उपदेशक है।

सचिन गुरुग्राम स्थित फर्म वन पॉइंट एडवाइजर्स से आर्टिकलशिप कर रहे हैं।

दोनों ने उम्मीदवारों को सलाह दी कि वे परीक्षा में उत्तीर्ण होने के लिए आईसीएआई अध्ययन सामग्री को पूरा ध्यान देकर पढ़ें।

लिंगीय भेदभाव के कारण महिला उम्मीदवारों द्वारा सामना किए जाने वाले एक प्रमुख मुद्दे पर प्रकाश डालते हुए नंदिनी ने कहा, लड़कियों को लड़कों की तुलना में खुद को साबित करने के लिए उतने मौके नहीं मिलते हैं। अगर वे एक या दो प्रयासों में किसी भी प्रतियोगी परीक्षा को पास नहीं कर पाती हैं, तो उन्हें कहा जाता है कि इसे छोड़ दो, जबकि यह लड़कों पर लागू नहीं होता।

किशोरी ने कहा, मैं भाग्यशाली रही हूं कि मुझे बहुत सहायक माता-पिता मिले, लेकिन सभी माता-पिता को अपने बच्चों को उनके सपनों को पूरा करने में मदद करनी चाहिए, चाहे वह लड़का हो या लड़की।

उनके पिता एक कर सलाहकार हैं, जबकि उनकी मां गृहिणी हैं।


Sunday, September 5, 2021

AGRAWAL REVOLUTIONARY - स्वतंत्रता संग्राम में अग्रवाल सेठों का योगदान

 AGRAWAL REVOLUTIONARY - स्वतंत्रता संग्राम में अग्रवाल सेठों का योगदान


"तलवारों पर जिस्म वार दिए, अंगारों पर जिस्म जलाया है..

तब जाकर कहीं हमने, अग्रवंश का ध्वज फैराया है.."

सेठ रामजीदास गुड़वाला - 1857 के भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के भामाशाह... इन्होंने अपनी अरबों की दौलत 1857 की क्रांति में अंग्रेजों के खिलाफ लगा दी थी.. 1857 की क्रांति में अंग्रेजों ने भारतीयों को परास्त करने के बाद सेठ जी को जंगली कुत्तों के आगे छुड़वा दिया था और अंत मे उसी घायल अवस्था मे फांसी पर लटका दिया..

सेठ हुकुमचंद अग्रवाल जैन - सेठ हुकुमचंद हिसार के महान स्वतंत्रता सेनानी थे। जिन्होंने हरयाणा में 1857 में क्रांति का बिगुल बजाया था। अंग्रेजों ने 1857 के दमन के पश्च्यात इन्हें इन्ही के घर के आगे इनके भाई फकीर चंद के साथ फांसी पर लटका दिया था और इनकी अकूत संपत्ति लूट ली थी.

लाला झंकुमल सिंघल - 1857 की क्रांति में जब गौहत्या को लेकर अंग्रेजों के खिलाफ बजे बिगुल की आग मेरठ के धौलाना ग्राम में पहुंची तब धौलाना के लाला झनकूमल सिंघल ने एप 13 राजपूत साथियों के साथ मिलकर अंग्रेजों के दांत खट्टे कर दिए। जिसके बाद इन 14 वीरों को फांसी पर लटका दिया गया। आज उनकी स्मृति में उनके गांव धौलाना में विजय स्मारक बना है

मास्टर अमीर चंद - इनका जन्म दिल्ली के प्रसिद्ध अग्रवल परिवार में हुआ था। ये अंग्रेजों के खिलाफ "आकाश" पत्रिका निकाला था। 23 सितंबर 1912 को दिल्ली के चांदनीचौक पर इनके दल ने ब्रिटिश अफसर वाइसराय की शोभायात्रा पर बम विस्फोट किया। बम विस्फोट के बाद मास्टर जी ने 'लिबर्टी नाम का इश्तिहार निकाला। इसमें उन्होंने लिखा कि - "हम भारतीय अंग्रेजों के मुकाबले बड़ी संख्या में हैं हम इनसे डरने के बजाए इनकी तोपखाने और बंदूके सब छीन सकते हैं। केवल क्रांति ही उपाय है भारत को स्वतंत्र करवाने का।" 19 फरवरी 1914, में मास्टर जी को गिरफ्तार कर लिया गया और मास्टर जी हंसते हंसते फांसी के फंदे पर झूल गए।

लाला लाजपत राय - अंग्रेजों के खिलाफ सबसे बुलंद स्वर में आंदोलन चलाने वाली तिकड़ी लाल-बाल-पाल के लाल लाला लाजपत जी ने साइमन कमीशन के खिलाफ आंदोलन को नेतृत्व प्रदान किया और राष्ट्र पर अपने प्राणों का उत्सर्ग किया

दिनेश-बादल-विनय - बंगाल के लाल-बाल-पाल के नाम से मशहूर दिनेश-बादल-विनय की तिगड़ी ने अंग्रेजों पर अत्याचार करने वाले सिम्पसन को गोली से उड़ा दिया था जिसके बाद तीनों को गिरफ्तार कर लिया गया।

जमनालाल बजाज - आजादी के दीवानों में अग्रवाल समाज के सेठ जमनालाल बजाज का नाम अग्रणी रूप में लिया जाना चाहिए !!
यह रहते महात्मागांधी के साथ थे, लेकिन मदद गरमदल वालो की करते थे ! जिससे हथियार आदि खरीदने में कोई परेशानी नही हो !!
इनसे किसी ने एक बार पूछा था, की आप इतना दान कैसे कर पाते है ?
तो सेठजी का जवाब था ---मैं अपना धन अपने बच्चो को देकर जाऊं, इससे अच्छा है इसे में समाज और राष्ट्र के लिए खर्च कर देवऋण चुकाऊं ।

ये कुछ नाम थे इसके अलावा कई अग्रवीरों ने जिसे नृसिंह अग्रवाल, लाला मटोलचंद अग्रवाल, हनुमान प्रसाद पोद्दार, रामप्रकाश अग्रवाल, लोहिया आदि अनेकअग्रवीरों ने तन-मन-धन तीनों से स्वनातंत्रता के महासमर में भाग लिया..

लेखक - प्रखर अग्रवाल 

VAISHYA HERITAGE - दिगंबर जैन लाल मंदिर और राजा हरसुख राय

VAISHYA HERITAGE - दिगंबर जैन लाल मंदिर और राजा हरसुख राय

ये नीचे जो मंदिर दिख रहा है ये राजा हरसुख राय निर्मित दिगंबर जैन लाल मंदिर है। इसका बहुत ही रोचक इतिहास है।


राजा हरसुख राय दिल्ली के अग्रवालों में अग्रगण्य थे जिन्होंने दिल्ली के आसपास कई भव्य जैन मंदिरों का निर्माण करवाया था। 17वीं शताब्दी में जब शाहजहां ने दिल्ली को अपनी राजधानी बनाई थी तब उसने कुछ अग्रवाल वणिकों को दिल्ली में बुलाया और बसाया था। उन्हीं में से एक हिसार के अग्रवाल वणिक साह दीपचंद थे जिन्होंने चांदनी चौक में अपने 16 बेटों के लिए 16 हवेलियां बनवाईं थीं।

राजा हरसुख राय उन्हीं के वंशज थे और दिल्ली के मुगल बादशाह शाह आलम के खजांची भी। उन्हीं दिनों दिल्ली के कुछ प्रतिष्ठित जैनों ने राजा साहब से मिलकर चर्चा की कि- "अपनी अतुलनीय संपत्ति से कुछ धर्म-यश के कार्य भी करिये" तब सन् 1807 में राजा हरसुख राय ने लाल किले के पास ही एक भव्य जैन मंदिर के निर्माण करवाना शुरू किया। वो मंदिर मुग़ल काल मे निर्मित प्रथम शिखरधारी जैन मंदिर था। इस मंदिर को बनाने में उस समय 8 लाख की लागत आयी थी जो इस समय करोड़ों में होगी। जब मंदिर बन रहा था और 7 लाख करीब का खर्चा हो चुका था तभी अचानक से राजा हरसुख राय ने मंदिर का निर्माण रुकवा दिया। नगर के जैनों में चर्चा होने लगी कि -"अचानक से ऐसा क्यों किया गया?" लोग तरह-तरह की बातें करने लगे। एक बोला -"हमें तो पहले ही पता था कि मुग़ल राज में मंदिर कैसे बन पाएगा? दूसरे ने कहा- "मुसलमानों को मंदिर का शिखर कहाँ से बर्दाश्त होगा? शिखर बनने ही वाला था कि तामीर रुकवा दी" तब कुछ समझदार लोगो ने कहा कि -"राजा साहब ने वादा किया था तो वो शिखर वाला मंदिर जरूर बनवाएंगे"
 
नगर के प्रतिष्ठित अग्रवाल राजा हरसुख राय से मिले और पूछा -"आपने मंदिर का निर्माण क्यों बंद करवा दिया।" राजा साहब बोले -"धन की कमी पड़ गयी है। अब मुझे किसी से कर्ज मांगना अच्छा नहीं लगा" नगर के वणिकों ने कहा - "अरे राजा साहब! आप क्या बात करते हैं। हमारे रहते आपकी जूतियां जाएं चंदा मांगने। फिर तो लानत है हमारी जिंदगी पर"
 
राजा साहब ने कहा कि - "लेकिन मैं चंदा लूंगा तो पूरी बिरादरी से लूंगा वरना एक से भी नहीं। तब हर जैन और अग्रवाल परिवार से नाम मात्र का चंदा लिया गया।" मंदिर बना समाज ने राजा साहब से कलशरोहण करने की मिन्नतें की लेकिन राजा साहब बोले- "मंदिर सर्व समाज के सहयोग से बना है अब पंचायत ही इसका कलश रोहन करे और वही इसका प्रबंध संभाले।" अब सबको पता चला कि राजा साहब के सहयोग लेने के पीछे क्या मंशा थी।
ऐसे वीतरागी और महान थे हमारे पूर्वज जो सब कुछ कर के भी किसी सम्मान की लालसा नहीं रखते थे।

लेखक - प्रखर अग्रवाल
सोर्स - जैन जागृति के अग्रदूत पुस्तक (अयोध्या प्रसाद गोयलिय)

VAISHYA HERITAGE - श्री मुरली मनोहर मंदिर (डाकणियों का मंदिर), लक्ष्मणगढ़

VAISHYA  HERITAGE - श्री मुरली मनोहर मंदिर (डाकणियों का मंदिर), लक्ष्मणगढ़


इस प्रसिद्ध मंदिर का निर्माण सेठ गिरधारीलाल रामजीलाल गनेड़ीवाला ने वर्ष 1845 में करवाया था। गनेड़ीवाल परिवार मूल रूप से सिंघल गोत्रीय मारवाड़ी अग्रवाल परिवार है। उसके बाद वर्ष 2016 में इसका जीर्णोद्धार हुआ। लेकिन सोचने की बात ये है कि इसको डाकणियों का मंदिर क्यों कहते हैं । स्थानीय बुजुर्ग लोगों के अनुसार मन्दिर की उत्तरी दीवार पर राक्षस हिरण्यकश्यप का वध कर रहे भगवान नृसिंह का भित्ति-चित्र बना हुआ है। मन्दिर के पास बस स्टैण्ड पर आने वाली ग्रामीण महिलाएं अपने बच्चों को डांटने के लिए उक्त चित्र का सहारा लेती। भगवान नृसिंह के आक्रामक स्वरूप वाले चित्र को डायन (डाकण) बताकर बच्चों को चुप रखने का प्रयास करती। इसी कारण उक्त मन्दिर को धीरे-धीरे डाकणियों का मन्दिर कहा जाने लगा।

SAMRAT SKANDGUPTA - स्कंदगुप्त

SAMRAT SKANDGUPTA - स्कंदगुप्त

अभी जो तालिबानी अफ़ग़ानिस्तान में हमला कर रहे हैं वो तो कुछ नहीं हैं उनसे 1000 गुणा अधिक संख्या और बर्बर हूणों जिन्होंने पूरे विश्व को थर्रा दिया था उन्हें मिट्टी में मिला दिया था धारण गोत्रीय अग्रकुल के वीर स्कन्दगुप्त ने..
 
‘’मध्य एशिया से चींटियों की तरह असंख्य दल बांधकर जंगली और बर्बर हूण चीन से फ्रांस और यूनान तक समस्त भूभाग में फैल गए थे। डैन्यूब से वोल्गा तक तथा थ्यूरिंजिया और रोमन साम्राज्य तक इनकी लपलपाती हुई तलवारों ने अनगिनत मनुष्यों को चाट लिया था। हूणों के कंधे बड़े बड़े और नाक बैठी हुई थी, माथे का हिस्सा छोटा था और जैसे उनकी आंखें काली-काली उनके उठे सिरों में ही घुसी रहती थीं, क्रोध के समय पुतलियां इधर से उधर डोलने और नाचने लगती थीं, होठों के दोनों किनारों से पतली मूंछें खड़ी फड़कती थीं और मृत्यु को गेंद की तरह ठुकराते हुए ये बलशाली वेग से सम्पन्न घोड़ों पर सवार होकर समस्त जन-धन, नगर और देशों को रौंदते हुए ऐसे चलते थे जैसे कि खेतों को नष्टकर झुंड में चलने वाला असंख्य टिड्डी दलों का झनझन सुर में उड़ता समूह। इन हूणों के अत्याचारों से यूरोप कांप उठा, इनकी लगातार टक्कर और ठोकर से यूनान-मिस्र और रोम धरती के धूल में मिल गए। ऐसे विश्व को कंपा देने वाले प्रलयंकारी हूणों से समरांगण में लोहा लेने जब स्कन्दगुप्त अपने सैन्यबल के साथ दो दो हाथ करने उतर पड़ा तो जैसे बाजी ही पलट गई। उस विकट कालखंड (453 ईस्वी से 467 ईस्वी) में #भारत को जैसे सेनानी की आवश्यकता थी, वैसा ही नायक #स्कन्दगुप्त के रूप में देश को मिल गया। वह अकेला न होता तो आज यह भारत ही ​कहां होता। रोम आदि साम्राज्यों की तरह भारत भी हूणों की बाढ़ में बह गया होता। हूणों को हम न पचा पाते, #हूण ही हमें समाप्त कर जाते।" - आचार्य वासुदेव शरण अग्रवाल. #हूणों की भयानक दुर्भेद्य शक्ति से टक्कर लेने और भारत को बचाने के लिये उस महायोद्धा युवक #स्कंदगुप्त_विक्रमादित्य ने अपना जीवन ही दांव पर लगा दिया। महलों का सुख त्याग दिया, सैनिकों के साथ जमीन पर जीवन व्यतीत करने लगा।
 
आज से 1600 साल पहले औड़िहार (हौणिहार या हुणा-अरि) से #गुजरात और #कश्मीर तक उसने भारत भूमि को हूणों से मुक्त करा डाला। #रीवां का #सुपिय_अभिलेख प्रमाण है कि भारत ने स्कन्दगुप्त को इस कार्य के लिए इतना जनसमर्थन दिया कि उसे धर्मपालन में #श्री_राम के तुल्य और सदाचार और सुनीति में #सम्राट_युधिष्ठिर के तुल्य बताया।

स्कन्दगुप्त के रणकौशल, बाहुबल और पराक्रम को देखकर हूणों की सेनाएं थर्रा उठीं, उसकी अद्वितीय वीरता देखकर जन-मन के भीतर पसरा डर जाता रहा, ऐसे महान सेनानी स्कन्दगुप्त को भारत का महान रक्षक या महात्राता अर्थात The Saviour of India नहीं कहें तो फिर कौन है इतिहास में जिसे भारत-रक्षा-केसरी की उपाधि से नवाजा जाए।

हिन्द की ढाल था धारण गोत्रीय अग्रवाल गुप्तसाम्राज्य लेकिन उन्हें सेक्युलर भारत का इतिहास भूल गया.. यही हमारे पतन का कारण है..

BRAVE VAISHYA COMMUNITY - वीर वैश्य

BRAVE VAISHYA COMMUNITY - वीर वैश्य 

अफ़ग़ानिस्तान के हिंदुकुश पर्वत पर हिन्दू बनियों का नरसंघार करने के लिए पाकिस्तान के जोकर ज़ैद हामिद का मन मचल रहा है. वो बात अलग है कि ये अभी खुद ही जेल में मचल रहा है. लेकिन ये सोच लगभग हर पाकिस्तानी/अफगानी यहां तक कि हिंदुस्तानी मुसलमानों की भी है.. इनकी हिंदुओं विशेष कर बनियों से नफरत का कारण क्या है?

क्योंकि जब इस्लाम की खून से लपलपाती तलवारें आयी थी तो जो जाती इनकी तलवारों के आगे झुक कर मुसलमान नहीं बनी वो थे कुलीन वैश्य.. जिन्होंने मुग़लों और यहां तक कि अंग्रेजों के शासन काल मे रहकर भी भव्य मंदिर बनवाये, गौरक्षा के लिए संघर्ष किया. हिंदू अपना धर्म त्याग कर मुसलमान बन जाएं इसलिए कई गुना जजिया कर उनपर लगता था लेकिन बनियों ने अरबों खरबों के व्यापार के बावजूद भारी मात्रा में जजिया भर कर भी अपना धर्म नहीं छोड़ा। यहां तक कि इतिहास में प्रसंग है कि मुसलमान काल मे जब गांव के गरीब लोग जजिया नहीं भर पाते थे तब गांव के नगरसेठ पूरे गांव का जजिया भर देते थे।
ब्रिटिश उपनिवेशवाद में जब भारतीयों के संस्करों पर और उनके संस्थानों पर पश्चिम की छाप पड़ रही थी उस समय अग्रकुल रत्न जयदयाल गोयनका जी और हनुमान प्रसाद पोद्दार जी ने ऐसा संस्थान (गीताप्रेस) बनाया जो विशुद्ध रूप से परंपरावादी भारतीय संस्कारों में रंगा था। जिस पर ब्रिटिश उपनिवेशवाद की जरा भी छाप नहीं पड़ी। जिसने भारत की संस्कृति, देव-अवतारों, गौमाता, गीता, गंगा, गायत्री का देश की विभिन्न भाषायों में प्रचार किया..

ये वही बनिया जाती है जो आज भी पूरे गौरव से सनातन का झंडा गाड़े हुए है... हिन्दू धर्म के मंदिरों के निर्माण, भारतीय ग्रंथ की छपाई से लेकर गौशालाओं, धर्मशालाओं, सनातन संस्थाओं का निर्माण आदि वैश्यों द्वारा ही संभाला जा रहा है..

बनिये ही हैं जो विशुद्ध शाकाहारी हैं जिन्हें आजभी मुसलमानों और ईसाइयों के घर के पानी तक से भी परहेज है और उन्हें गौभक्षक मल्लेछ मानती है। जिनका ईसाई और मुसलमान पंथ में मतान्तरण नहीं हुआ गौरक्षा और गौहत्या बंदी के लिए सेठ रामकृष्ण डालमिया ने तो आमरण अनशन लाया था जिसे उन्होंने मरते समय तक निभाया और गौमाता के लिए शहीद हो गए.

वही बनिये (अशोक सिंघल) जिन्होंने रामजन्मभूमि मुक्ति आंदोलन चलाकर आज सैकड़ों सालों से भारत भूमि के माथे पर लगा बाबरी मस्जिद का कलंक धो दिया। वही बनिये (बिड़ला-डालमिया-पोद्दार) जिन्होंने कृष्ण जन्मभूमि मंदिर का निर्माण करवाया। ये उनकी धर्मनिष्ठा ही थी। वही बनिये (टोडरमल) जिन्होंने रामचरित मानस के रचयिता तुलसीदास जी की रक्षा की और काशी विश्वनाथ का पुनरूत्थान किया। जिन बनिया उद्योगपतियों ने पूरे भारत मे भव्य सनातन धर्म के मंदिर बनाये।

वैश्य जाती ही है जो वर्तमान समय मे पूरी निष्ठा और परंपरा से सनातन धर्म का पालन कर रही है। तो सनातन धर्म प्रिय ऐसी जाती से विधर्मियो को नफरत होना तो स्वाभविक ही है..

SABHAR - प्रखर अग्रवाल

VAISHYA IPS OFFICERS ON SENIOR MOST POST IN INDIA

VAISHYA IPS OFFICERS ON SENIOR MOST POST IN INDIA

वैश्य  समाज के 10 वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी देश के 7 राज्यों में पुलिस चीफ हैं और 2 केंद्र के महत्वपूर्ण पुलिस महकमे  एनआईए व रौ जैसी महत्वपूर्ण विभागों के प्रमुख है। 

इसके इलावा समाज के अनेंक अधिकारी देश भर में दूसरे नम्बर पर हैं इन अधिकारियों की अधिकांश की पृष्ठभूमि हरियाणा से है। समाज ने देश भर में निस्वार्थ सेवा, राष्ट्र के प्रति समर्पण भावना, निष्ठा, कर्तव्यपरायणता और ईमानदारी के साथ देश सेवा में अग्रणी भूमिका अदा की है। ऐसे अधिकारियों पर हमें गर्व है।

1. पंजाब        दिनकर गुप्ता
2  हरियाणा ‌   प्रशांत कुमार अग्रवाल
3. उत्तर प्रदेश  मुकुल गोयल 
4. बिहार        एस.के. सिंघल
5. उत्तराखंड  अशोक कुमार गुप्ता
6. मध्य प्रदेश  विवेक जौहरी
7. अंडमान     सत्येंद्र गर्ग 
8. RAW       सामंत गोयल
9. NIA         योगेश मोदी 
१०. सीबीआई  - सुबोध जायसवाल 

प्रशासनिक क्षेत्र के साथ साथ वैश्य समाज अपनी मेहनत से सेना व इंजीनियर जैसे महत्वपूर्ण विभागों में ऊंचे-ऊंचे पदों पर कार्य कर रहे हैं। समाज व देश का नाम ऊंचा कर रहे है।

#जय_महाराजा_अग्रसेन_जी 🚩
#जय_अग्रोहा_शक्तिपीठ 🚩
#जय_अग्रवाल_सदैव_अग्रणी_अग्रवाल🚩
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SHREEMAL VAISHYA SAMAJ - श्रीमाली वैश्य समाज का इतिहास वर्णन

SHREEMAL VAISHYA SAMAJ - श्रीमाली वैश्य समाज का इतिहास वर्णन

स्कन्द पुराण के अनुसार उध्र्वरेता ऋषियों महात्माओं की सेवा के लिए कामधेनु के द्वारा 36000 शिखा सूत्र घारी मनुष्य प्रकट किये गये वे सभी महा बली वैश्य थे उन वैश्यों के लिए श्री लक्ष्मी जी द्वारा श्रीमाल नगर का निर्माण करा कर ब्राह्मणों और वैश्यों को वहाँ बसा दिया गया । वैश्य अपने कर्तव्य, कर्म, वाणिज्य, कृषि, पशु पालन कर ब्राह्मणों की सेवा करते हुए अपने जीवन निर्वाह करने लगे। जो वैश्य दक्षिण भाग बसे वे श्रीमाली कहलाए । श्रीमाल नगर वर्तमान में भिन्नमाल के नाम से सुख्यात है। यह नगर उस समय काफी समृद्धिशाली व व्यापार का केन्द्र था प्रसिद्ध चीनी यात्री ह्नेन सांग ने ई.स. 641 में इस शहर की समृद्धि का वर्णन यात्रा वृतांतों में किया । काल क्रम से कुदरती आफत, अकाल आदि कई कारणों से धीरे धीरे लोगों ने अन्य जगह पलायन शुरू किया और इस तरह विभिन्न क्षेत्रों में जीवन यापन हेतु अलग अलग स्थानों मध्यप्रदेश, गुजरात, महाराष्ट,ª राजस्थान तथा अन्य स्थानों पर बस गये । यथा उन स्थानों पर जाकर अपने जीवन यापन के लिए विभिन्न क्रिया कलापों – व्यापार आदि में संलग्न हो गयेे और श्रीमाली महाजन के नाम से जाने जाने लगे ।

भारत में गोत्र पद्धति के जरिये गोत्र को पता चलता है । इससे मूलपिता और मूल परिवार जिससे संबंध रखते हैं का पता चलता है। सभी जातियों में गोत्र समान रूप से पाये जाते हंै । वैसे गोत्र का अर्थ गौ, गौ रक्षा और गौ रक्षक से भी संबंध रखता है । शायद जब इसकी शुरूआत हुई होगी तो सभी वे ऋषि जिनके लिए गाय का महत्व विशेष रहा होगा, उनकी रक्षा करते होगे इस कारण उनके साथ गोत्र से जोड़ कर खास पहचान देने की कोशिश की गई होगी ।

गोत्र पहले आया और फिर कर्म के अनुसार वर्ण व्यवस्था तय हुई जिसमें गुण-कर्म-योग्यता के आधार पर वर्ण चयन किया गया और विभिन्न कारणों के आधार पर उनका ऊंचा नीचा वर्ण बदलता रहा किसी क्षेत्र में किसी गोत्र विशेष का व्यक्ति ब्राह्मण वर्ग में रह गया, तो कही ंक्षत्रिय, कहीं वैश्य, कहीं शुद्र कहलाया । बाद में जन्म के आधार पर जाति स्थिर हो गई । यही वजह है कौशिक ब्राह्मण भी हंै और क्षत्रिय भी । कश्यप गोत्रिय ब्राह्मण भी हैं, राजपूत भी हं,ै वैश्य भी हैं ।

गोत्र मूल रूप से ब्राह्मणों के उन सात वंशो से संबंधित होता है जो अपनी उत्पत्ति सात ऋषियों से मानते हंै। ये सात ऋषि हैं – 1 अत्रि, 2 भारद्वाज, 3 भृगु, 4 गौतम, 5 कश्यप, 6 वशिष्ठ, 7 विश्वामित्र । बाद में इसमें आठवां गोत्र अगस्त्य भी जोड़ा गया । गोत्रों की संख्या बढ़ती गई है । जैन गं्रथों में सात गोत्रों का उल्लेख है कश्यप, गौतम, वत्स्य, कुत्स, कौशिक, मण्डव्य और वशिष्ठ । लेकिन छोटे स्तर पर साधुओं को जोड़ कर हमारे देश में 115 गोत्र हंै । गैर ब्राह्मण समुदायों ने भी इसी प्रथा को अपनाया। क्षत्रिय, वैश्यों ने भी इसे अपनाया । इसके लिए उन्होंने अपने निकट के ब्राह्मणों या गुरूओं के गोत्रों को अपना गोत्र बना लिया । प्रयाग राज के धार्मिक विद्वान राम नरेश त्रिपाठी कहते हंै कि हिन्दू परम्पराओं और मान्यताओं के अनुसार पिता का गोत्र ही पुत्र को मिलता है । अगर किसी ने किसी को दत्तक पुत्र के रूप मंे स्वीकार किया हो तो उसे उसका गोत्र मिल जाता है ।

ब्राह्मणों के अलावा अन्य जातियों में भी गोत्र सुनिश्चित किये जाते हंै । इनकी प्रवर व अटकंे होती हैं और गोत्र भी जिन ऋषियों के भी साथ ब्राह्मणों का संबंध था उनके अनुसार तथा सभ्य समाज का हिस्सा बनने पर वंशानुगत पहचान के लिए गोत्र अंगीकार कर लिये गये । कई परिवारांे द्वारा जैन धर्म अंगीकार कर लिया गया और इस तरह अपने पूरे वंश के गोत्र सूचक नाम उस अनुसार अंगीकार कर लिये गये ।

कुम्भलगढ़ के व्यास डिबलिया मेहरखजी की पत्नी ललिता की वर्षी पर इकट्ठे श्रीमाली ब्राह्मणों ने कन्या विक्रम बन्द करने का प्रस्ताव किया । प्रस्तावक पुंजाजी सहित चार व्यक्ति जो समर्थन में थे उनमें से एक संशय में रहा । इसलिए वे साढे तीन पुड़ तथा संशय वाला आधा पुड़ कहलाया और जो नौ व्यक्ति इस प्रस्ताव के
विरोध में थे वे नौ पु़ड़ी कहलाए। पुड़ की तरह ही कुछ अन्य घटनाओं को लेकर श्रीमाली ब्राह्मणों में दशा बिसा इत्यादि छोटे छोटे घटक बनते गए जो जातीय एकरूपता में बाधक सिद्ध हुए । नवीन घटकों के उदय एवं उनकी रूढ़ तथा संकीर्ण मनोवृत्ति के परिपेक्ष्य में इस जातीय समुदाय की पहचान ’श्रीमाली शब्द’ के व्यापक बोध में ही सुरक्षित बनी हुई है। चूृृंकि वैश्य बाह्मणों के ही अनुचर थे अतः ये भी इन्ही घटक के रूप में जाने जाने लगे ।

श्रीमाली वैश्य :

जब लक्ष्मीजी ने श्रीमालनगर का निर्माण कराके वहाँ श्रीमाली ब्राह्मणों तथा त्रागड सोनियों को बसा दिया तब व्यापार कर्म के लिए भगवान् विष्णु ने वैश्यों को उत्पन्न किया और श्रीमाल क्षेत्र में वाणिज्य पशुपालन तथा खेती करने का आदेश दिया –

ततो मनोगतं ज्ञात्वा देव्या देवो जनार्दनः |

उरु विलोकयामास सर्गकृत्ये कृतादरः ||

यज्ञोपवीतिनः सर्वे वणिज्योऽथ विनिर्ययुः |

ते प्रणम्य चतुर्बाहुमिदमूचुरतन्द्रिताः ||

अस्मानादिश गोविन्द कर्मकाण्डे यथोचिते |

तत् श्रुत्वा प्रणतान् विष्णुर्वनिजः प्राह तानिदं |

पाशुपाल्यं कृषि र्वार्ता वाणिज्यं चेति वः क्रियाः ||

प्राग्वाटादिशि पूर्वस्यां दक्षिणस्यां धनोत्कटाः |

तथा श्रीमालिनो याम्यांमूत्तरस्या मथो विशः ||

वैश्यों के बिना श्रीमाल वासियों का जीवननिर्वाह कैसे होगा ? इस चिंता से चिन्तित लक्ष्मीजी का मनोभाव भगवान् विष्णु जान गए। उन्होंने सृष्टि रचना के प्रयोजन से अपनी जंघाओं पर दृष्टिपात किया। वहाँ यज्ञोपवीत धारी वैश्य प्रकट हो गए। उन्होंने भगवान् विष्णु को प्रणाम करके अपने लिए कर्तव्य कर्म की अभिलाषा प्रकट की। भगवान् विष्णु बोले, तुम वाणिज्य कृषि और पशुपालन का काम करो।

वे वैश्य श्रीमाल नगरी में बस गए। जो श्रीमाल शहर के पूर्विभाग में रहे वे पोरवाल कहलाए। दक्षिणी भाग में बसने वाले श्रीमाली और उत्तर वाले उवला कहलाए।

एवमेते स्वर्णकाराः श्रीमालिवणिजस्तथा |

प्राग्वडा गुर्जराश्चैव पट्टवासास्तथापरे ||

इस प्रकार श्रीमाल क्षेत्र में सोनी, श्रीमाली वैश्य, पोरवाल, गूजर पटेल पटवा आदि वैश्य हुए।
श्रीमाली वैश्य कुलदेवी –

कृषिगोरक्ष्यवाणिज्य स्वर्णकार क्रियास्तथा |

तेषां व्याघ्रेश्वरी देवी योगक्षेमस्यकारिणी |

वे सब खेती, पशुपालन, वाणिज्य और सुनारकर्म करने वाले वैश्य हुए। उनकी कुलदेवी व्याघ्रेश्वरी है।

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