वैश्य समुदाय का सामाजिक योगदान
वैवैश्य जाति का सामाजिक योगदानश्य जाति का सामाजिक योगदान
इतिहास गवाह है कि वैश्य जाति का सामाजिक योगदान अतुलनीय रहा है। इतिहास के हर एक काल में वैश्य जाति प्रासंगिक रहा है। किसी की आलोचना नहीं की, निंदा नहीं किया ,बस कर्म करता चला गया।
चाहे गुप्त काल हो, हर्षवर्धन काल हो, चेर, चालुक्य साम्राज्य हो, प्रत्येक काल में समाज का नेतृत्व किया।
हेमु ने अफगान सेना का सफलतापूर्वक नेतृत्व किया और मुगलों को कड़ी चुनौती पेश की।
एक हजार साल की गुलामी से जब हमारा समाज किंकर्तव्यविमूढ़ हो चला था तो महात्मा गांधी ने आशा की नई किरण दिखाई तथा लोगों को विरोध प्रकट करने , अपने अधिकारों के लिए लड़ने के नयै तरीके सिखाए। १८५७ की हिंसात्मक क्रांति में अंग्रेजों द्वारा बुरी तरह कुचले जाने के बाद बुरी तरह से टूट और बिखर चुके समाज को निराशा के गर्त से बाहर निकाला। धरना , प्रदर्शन, बहिष्कार, भुख हड़ताल, बायकाट, सिविल नाफरमानी, अनशन,पिकेटिंग जैसे अहिंसक आधुनिक, तार्किक आंदोलन के तरीकों से ,विश्व को अवगत कराया। आज भी गांधी के इन तकनीकों का उपयोग हमारा समाज सत्ता के खिलाफ विरोध प्रकट करने के लिए कर रहा है। जो यह साबित करता है कि गांधी के विचार आज भी प्रासंगिक हैं।
पुरे स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान घनश्याम दास बिड़ला, सर जमनालाल बजाज जैसे उद्योगपतियों ने कांग्रेस को बड़े पैमाने पर फंड उपलब्ध कराये। तब जाकर स्वतंत्रता आंदोलन सफल हो पाया।
बहुत सारे बोलियों,ऊपबोलियों मैं बंटे हमारी राष्ट्रभाषा हिन्दी को खड़ी बोली ,जिसे आधुनिक हिंदी भाषा के रूप में जाना जाता है, भारतेंदु हरिश्चंद्र ने पहचान दिलाई। और सही मायने में हिंदी भाषा को आजादी दिलाई। आधुनिक छायावाद के जनक जयशंकर प्रसाद ने कामायनी जैसे महाकाव्य की रचना कर हिन्दी भाषा को नई ऊंचाई प्रदान किया। कालिदास गुप्ता ने उर्दू में अनेक रचनाएं रचीं।
कहने का मतलब है कि राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, समाज के सभी क्षेत्रों में वैश्य समाज का अतुलनीय योगदान रहा हैं।
वैश्य समाज ने स्कूल, कालेज, धर्मशाला खोले, समाज से जितना लिया, उतना वापस समाज में कर दिया।
स्वतंत्रता के बाद के कुछ दशकों तक वैश्य समाज राजनीति से दूर हो गया, यह सोचकर कि स्वशासन में सब कुछ ठीक हो जाएगा।
परंतु अफसोस की बात है कि विघटनकारी ताकतै क्षेत्रीयता, सांप्रदायिकता, जातियता, के रूप में एक बार पुनः वापस आ रही हैं।
कहने का मतलब है कि वैश्य समाज को एक बार फिर सामाजिक स्थिति को देखते हुए समाज का राजनीतिक नेतृत्व करना हीं होगा।
साभार: हम हैं वैश्य , Jayprakash Kumar फेसबुक वाल से
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