#RANI SATI JHUNJHNU - दादी रानी सती झुंझनु
आज जो हिंदु युवतियां मुस्लिमों को हीरो मानती है वो हमारा यह तेजस्वी इतिहास देखे
#RANI SATI MANDIR JHUNJHNU |
#RANI SATI JHUNJHNU |
आज से लगभग 724 वर्ष पूर्व मंगलवार मंगसिर वदि नवमीं सन् 1352 ईस्वीं 06.12.1295 को मां नारायणी सती हुई थी सेठ ज़ालीराम जी अग्रवाल हिसार में दीवान थे वहाँ के नवाब के पुत्र और सेठ ज़ालीरामजी के पुत्र तनधन दास जी का घोड़ा शहज़ादे को भा गया | घोड़ा पाने की ज़िद से दोनो में दुश्मनी ठन गयी | घोड़ा छीनने के प्रयत्न में तनधनदासजी के हाथो शहज़ादा मारा गया | जब तनधन दास जी राणा के साथ कुछ सैनिको सहित अपनी सुंदर नवविवाहीता पत्नी नारायणी को लाने “महम” पहुँचे | इधर नवाब घात लगाकर बैठा था | यह बात नवाब को पता चलते ही ऊसने पहाड़ी को घेर लिया | “देवसर” की पहाड़ी के पास पहुँचते ही सैनिको ने हमला कर दिया | तनधन दास जी ने वीरता से डटकर नवाबी फ़ौजो का सामना किया | विधाता का लेख देखिए पीछे से एक सैनिक ने धोके से वार कर दिया, तनधन जी वीरगति को प्राप्त हुए |
नई नवेली दुल्हन ने डोली से जब यह सब देखा तो वह वीरांगना नारायाणी चंडी का रूप धारण कर सारे दुश्मनों पर टुट पडी... | नवाब का तो एक ही वार में ख़ात्मा कर दिया | आक्रांता मुस्लिमों के लाशो से ज़मीन को पाट दिया | सारी भूमि रक्त रंजीत हो गयी | बची हुई फौज भाग खड़ी हुई | नारायणी जानती थी अब उनकी रक्षा का एक ही ऊपाय है स्वयं को अग्नि मे जलाना ...जैसे भारत की विरांगनाओ का इतिहास रहा है.... चिता बनते ही वो पति का शव लेकर चिता पर बैठ गई चुड़े से अग्नि प्रकट हुई और सती पति लोक चली गयी |
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राणी सती की इच्छानुसार मेरी चिता की भस्म को घोड़ी पर रख कर ले जाना, जहाँ ये घोड़ी रुक जाएगी वही मेरा स्थान होगा | मैं उसी जगह से जन-जन का कल्याण करूँगी | घोड़ी झुनझुनु गाँव में आकर रुक गयी | भस्म को भी वहीं पघराकर राणा ने घर में जाकर सारा वृतांत सुनाया | आज्ञनुसार भस्म की जगह पर एक सुंदर मंदिर का निर्माण कराया | आज वही मंदिर एक बहुत बड़ा पुण्य स्थल है,
मां सती पदमावती की गाथा तो हम सबने सुनी है पर यह दिव्य घटना बस अग्रवालो की धार्मिक आस्था ही बनकर विलुप्त हो गयी...उसको सबके सामने रखने का प्रयास है यह.
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