प्रिय मित्रो यह चिटठा हमारे महान वैश्य समाज के बारे में है। इसमें विभिन्न वैश्य जातियों के बारे में बताया गया हैं, उनके इतिहास व उत्पत्ति का वर्णन किया गया हैं। आपके क्षेत्र में जो वैश्य जातिया हैं, कृपया उनकी जानकारी भेजे, उस जानकारी को हम प्रकाशित करेंगे।
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Thursday, October 29, 2020
ASHUTOSH GANGAL - NEW RAILWAY GM
Wednesday, October 28, 2020
RITIKA JINDAL IAS - रितिका जिंदल, जिन्होंने दुर्गा अष्टमी की बरसों पुरानी परंपरा तोड़ी
ANSHUL GOYAL - BUSINESS TYCOON
Sunday, October 25, 2020
SKANDGUPT VIKRAMADITYA - A GREAT VAISHYA SAMRAT
ISHAN GUPTA - अंतरराष्ट्रीय फलक पर छाया कानपुर का ईशान, कोरोना से बचाव के लिए बनाया वर्क डिको एप
Wednesday, October 21, 2020
DEVITA SHROFF - आज भारत की सबसे अमीर सेल्फमेड वुमन हैं, 1200 करोड़ रु है नेटवर्थ
Tuesday, October 20, 2020
समाजवाद के प्रर्वतक थे महाराजा अग्रसेन
Monday, October 12, 2020
PRAVEEN GOYAL - श्याम रसोई: रोज खिलाते हैं 1,000 लोगों को खाना, वो भी 1 रुपये में
Sunday, October 11, 2020
Sunday, October 4, 2020
स्वतंत्रता आंदोलन और मारवाड़ी वैश्य समाज
E - BANIA - डिजिटल युग ने पैदा किए नए 'बनिया
आशुतोष वर्णवाल, फाउंडर, buddy4study
NEERAJ GOYAL - जेब में पैसे नहीं, और बना लिया 82 हजार करोड़ का साम्राज्य
दिल्ली की नींव में कुछ अंश अग्रवाल समाज_के
Friday, October 2, 2020
SETH NARSINGH DAS AGRAWAL - सेठ नृसिंहदास अग्रवाल
"स्वाधीनता संग्राम के भामाशाह योद्धा - बाबा नृसिंहदास अग्रवाल"
- हरिनारायण शर्मा
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम (1857-1947) में अनेकों भामाशाह योद्धा हुए जिनमें अग्रणी हैं- सेठ रामजीदास गुड़वाला, सेठ अमरचंद बांठिया, सेठ दामोदरदास राठी, सेठ जमनालाल बजाज आदि। उन्हीं महान् भामाशाहों में से एक थे 'नागौर' के - सेठ नृसिंहदास अग्रवाल.
नृसिंह दास अब आजादी के आंदोलन में काफी सक्रिय हो गए थे। सन् 1920 में कलकत्ता में लाला लाजपत राय जी के नेतृत्व में हुए अधिवेशन में उन्होंने भाग लिया। वहाँ से लौटते वक्त वो महात्मा गांधी से प्रेरणा लेने के लिए साबरमती आश्रम पहुंचे जहाँ उनकी मुलाकात सेठ जमनालाल बजाज से हुई। वो, सेठ जमनालाल बजाज जी की गतिविधियों एवं देश के लिए किये हुए त्याग से बहुत प्रभावित हुए। हालांकि वो सेठ जमनालाल बजाज जी के बारे में काफी सुनते रहते थे लेकिन यहां उनसे रूबरू होने और उन्हें ठीक से जानने का अवसर मिला। इसके बाद नृसिंह दास जी ने उन्हें अपना आदर्श बना लिया। सन् 1921 में लोकमान्य तिलक के निधन के बाद देश की आजादी के लिए तिलक स्वराज्य फण्ड में अच्छी खासी धनराशी प्रदान करने के साथ ही अन्य साथी व्यापारियों से भी सहयोग करवाया। श्री राजगोपालाचार्य इस कोष के अध्यक्ष थे।
जब गांधी जी ने असहयोग आंदोलन का आवाह्न किया तब नृहसिंहदास और उनके साथियों ने विदेशी वस्त्रों की होली जला दी और अपनी पत्नी के साथ खादी वस्त्र को अपना लिया। सत्यदेव विद्याशंकर ने उनकी मरणोपरांत अपनी स्मृतियों में इसका उल्लेख करते हुए लिखा - "मुझे वह दिन याद है जब अपनी पत्नी के साथ आडंबर रहित खादी वस्त्र में वो पहली बार वर्धा आये थे। बाबाजी का परिचय यहा कहकर दिया जाता था की वह मद्रास स्थित अपने कारोबार और गोदाम को समेटकर करके गांधी जी के असहयोग आंदोलन में सम्मलित हुए। मारवाड़ी और अग्रवाल समाज में महिलाओं का खादी पहनना बहुत बड़ी बात मानी जाती थी और सोने-चांदी का त्याग करना तो क्रांति का सूचक माना जाता था। बाबाजी नाम तो उन्हें बहुत बाद में मिला पर वो जब आये थे तब भी वह बाबा जी बनकर ही वर्धा पहुंचे थे। यह उनकी पत्नी और उनकी वेशभूषा से साफ झलकता था।"
साभार - राजस्थानी पत्रिका 'सुजस' के स्वतंत्रता संग्राम अंक से लिया गया। पूर्ण लेख इमेज में..