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Wednesday, April 26, 2023

VASVI KHETAN - उम्र 13 साल, फिर भी हॉर्स राइडिंग में 58 मेडल

VASVI KHETAN - उम्र 13 साल, फिर भी हॉर्स राइडिंग में 58 मेडल

खुद्दार कहानीउम्र 13 साल, फिर भी हॉर्स राइडिंग में 58 मेडल:3 साल की उम्र से घुड़सवारी शुरू की; अब ओलिंपिक में देश के लिए गोल्ड का सपना

एक रोज की बात है। दिल्ली की एक हॉर्स राइडिंग एकेडमी में बड़ी बेटी अन्विका घुड़सवारी सीखने जाती थी। उस रोज छोटी बेटी वास्वी भी ऐसे ही चली गई। इसके पापा भी साथ में थे। जैसे ही वास्वी ने घोड़ा देखा, वो भी इस पर चढ़ने की जिद करने लगी। मना करने पर रोने लगी। सभी शॉक्ड थे कि जिस उम्र में बच्चा किसी जानवर को देखकर डरता है, भागता है, ये उसे दौड़ाना चाहती है। जबकि उस वक्त वास्वी महज 3 साल की थी। इसके पापा को भी डर था कि इतनी छोटी बच्ची… घुड़सवारी करेगी, गिर जाएगी, हाथ-पैर टूट जाएंगे।

वास्वी इतना रोने लगी कि एकेडमी की इंस्ट्रक्टर को इसे घोड़े पर बैठाना ही पड़ा। जब इसने हॉर्स राइडिंग शुरू की तो साथ के लोग भी दंग रह गए। इतनी छोटी बच्ची घोड़ा दौड़ा रही है। जिस उम्र में बच्चे खिलौने के साथ खेलते हैं, ये घोड़े के साथ खेल रही है। उसी वक्त से इसे हॉर्स राइडिंग का चस्का लग गया। आज 13 साल की उम्र में ही वास्वी हॉर्स राइडिंग में 58 से अधिक मेडल अपने नाम कर चुकी है। अब ये इंटरनेशनल हॉर्स राइडिंग टूर्नामेंट में भाग लेने के लिए बेल्जियम जा रही है। सपना है कि 2026 में होने वाले यूथ ओलिंपिक और एशियन ओलिंपिक में देश के लिए गोल्ड लेकर आएं।’

दिल्ली का न्यू फ्रेंड्स कॉलोनी इलाका। शाम के करीब 4 बज रहे हैं। 13 साल की वास्वी खैतान अपनी मां दीपिका के साथ बेल्जियम जाने की तैयारी कर रही हैं। परसों इनकी फ्लाइट है। दीपिका बताती हैं, ‘पिछले हफ्ते ही हम दोनों जर्मनी से लौटे हैं। वहां एक टूर्नामेंट था। अब इसी हफ्ते FEI (फेडरेशन इक्वेस्ट्रिया इंटरनेशनल) की तरफ से होने वाले इंटरनेशनल हॉर्स राइडिंग टूर्नामेंट में वास्वी पार्टिसिपेट करने जा रही है।’

ये 13 साल की वास्वी खैतान हैं, जो हॉर्स राइडिंग करती हैं। साथ में इनकी मां दीपिका खैतान हैं।

एक टूर्नामेंट में वास्वी हॉर्स राइडिंग कर रही हैं।

... वास्वी स्टडी भी करती हैं?

मेरे इस सवाल पर वास्वी मुस्कुराने लगती हैं। दीपिका कहती हैं, ‘इसका जिस तरह से हॉर्स राइडिंग को लेकर डेडिकेशन है, हम चाहकर भी स्टडी के मामले में कुछ नहीं कर सकते हैं। ये सिर्फ और सिर्फ हॉर्स राइडिंग ही करना चाहती है। अभी ये हॉर्स राइडिंग कैटेगरी के शो जंपिंग पार्ट को खेलती है।

हालांकि हम चाहते हैं कि ये कम-से-कम बेसिक स्टडीज पूरी कर ले। अभी वास्वी UK के एक बोर्डिंग स्कूल में पढ़ रही है। पिछले साल ही इसका एडमिशन हुआ है।’

वास्वी अपनी मां को रोकते हुए कहती हैं, ‘मुझे तो पढ़ने का मन ही नहीं करता है। सिर्फ और सिर्फ हॉर्स राइडिंग...। अब यही मेरा करियर, जिंदगी… सब कुछ है। मैं अब तक 5 दर्जन के करीब मेडल नेशनल और इंटरनेशनल लेवल पर जीत चुकी हूं।'

वास्वी दीवार पर टंगे मेडल्स को दिखा रही हैं। इसके बारे में बता रही हैं।

वास्वी आगे कहती है, 'जब UK, जर्मनी… जैसे देशों में मैं हॉर्स राइडिंग करती हूं, जीतती हूं, मेडल लेती हूं, तो वहां के लोग, कोच हाथ मिलाते हुए कहते हैं- हाय, यू फ्रॉम इंडिया… (तुम इंडिया से हो, तुमने कॉम्पिटिशन जीता है।), तब वाकई में दिल को बहुत सुकून मिलता है। सब कुछ भूल जाती हूं। फिर ऐसा लगता है कि मैं अपने देश के लिए कुछ कर रही हूं।

फिलहाल मेरा पूरा फोकस 2026 में होने वाले यूथ ओलिंपिक और एशियन गेम्स के लिए हैं। चाहती हूं कि हॉर्स राइडिंग में देश के लिए गोल्ड जीत कर लाऊं। इसी की तैयारी कर रही हूं। हर रोज सुबह 4 बजे से ही राइडिंग प्रैक्टिस के लिए चली जाती हूं।’

इतना कहते हुए वास्वी मिरर के सामने खड़ी हो जाती हैं। अपने बालों को ठीक करते हुए हेलमेट पहनने लगती हैं। मानो वो खुद पर गर्व कर रही हों।


वास्वी अपने बालों को ठीक कर रही है। वो हॉर्स राइडिंग के वक्त इस्तेमाल होने वाले हेलमेट को पहनकर दिखा रही है।

जब वास्वी अपने बारे में बता रही हैं, तो दीपिका की आंखों में मां की ममता दिखाई दे रही है। वो कहती हैं, ‘12 साल के बच्चे का अपने देश में भी नहीं, दूसरे देश के बोर्डिंग स्कूल में एडमिशन करवाना, हर 6 हफ्ते में इसे वहां से यहां लाना-ले जाना, हॉर्स राइडिंग की ट्रेनिंग के लिए 3 हफ्ते जर्मनी में एक छोटे से कमरे में रहना...। इस तरह की कई चुनौतियां फेस करनी पड़ती हैं, लेकिन वास्वी के जज्बे को देखकर हम ये तकलीफ भूल जाते हैं।

जब मैं वास्वी को जर्मनी छोड़कर इंडिया आती हूं, तो कई रात नींद नहीं आती है। एक फोन कॉल के लिए रात-रातभर जगी रहती हूं। आप मां का दिल तो जानते ही हैं…।’

हमारी बातचीत के बीच ही वास्वी के पापा वेदांत खैतान आते हैं। वेदांत नोएडा में एक स्कूल चलाते हैं।

तस्वीर में वास्वी अपने पापा वेदांत खैतान के साथ हैं।

वेदांत बताते हैं, ‘हम चाहते हैं कि हमारे तीनों बच्चे जो करना चाहते हैं, करें। पहले बड़ी बेटी हॉर्स राइडिंग करती थी, लेकिन बाद में उसका मन स्पोर्ट्स से हट गया, अब वो 11th में है।

अब वास्वी का सपना हॉर्स राइडिंग में ही करियर बनाने का है। हमें कई बार डर भी लगता है, जब ये राइडिंग के दौरान घोड़े से गिर जाती है, चोट लग जाती है। ये खुद भी मायूस हो जाती है, लेकिन जब खुद से वास्वी उठकर घोड़े पर जा बैठती है, तो फिर हमें खुशी होती है।’

... तो आपकी फैमिली में पहले से भी कोई हॉर्स राइडिंग करता रहा है?


इस तस्वीर में वास्वी अपने मम्मी-पापा, बहन अन्विका और भाई रूद्रव के साथ हैं।

वेदांत कहते हैं, ‘हम लोग मूल रूप से राजस्थान के रहने वाले हैं। आज से करीब 100 साल पहले मेरे दादा-परदादा कोलकाता चले आए थे और फिर जब मैं 11 साल का था, तो दिल्ली। कोलकाता में हॉर्स राइडिंग का कल्चर बहुत ज्यादा रहा है। लोग शौकिया हॉर्स राइडिंग करते हैं।

मेरे घर में भी अमूमन हर किसी का शौक हॉर्स राइडिंग का रहा है। मेरे नाना नेशनल लेवल पर हॉर्स राइडिंग कर चुके हैं, लेकिन जिस लेवल पर वास्वी राइड कर रही है, अभी तक किसी ने नहीं किया। अब वास्वी इंटरनेशनल लेवल पर हॉर्स राइडिंग कर रही है। इतनी कम उम्र में इतनी बड़ी उपलब्धि हासिल करने वाली वास्वी इंडिया की पहली लड़की है।’

वेदांत इंडियन पेरेंट को एक मैसेज भी देना चाहते हैं। वो कहते हैं, 'जब आप विदेश जाएंगे, तो देखेंगे कि वहां के बच्चे अपने मन मुताबिक काम करते हैं। अपना करियर बनाते हैं, लेकिन इंडिया में ऐसा नहीं है। हर कोई चाहता है कि उसका बेटा-बेटी डॉक्टर, इंजीनियर, लॉयर बने, लेकिन स्पोर्ट्स, म्यूजिक, फिल्म इंडस्ट्री... हर सेक्टर में दर्जनों लोग हैं, जिन्होंने अपने मन की सुनी और अपनी पहचान बनाई।

सचिन तेंदुलकर, कपिल देव, एमएस धोनी... जैसे प्लेयर्स को स्पोर्ट्स से ही तो पहचान मिली है। दुनिया इन्हें भगवान मानती है। हम माता-पिता को अब इन चीजों को समझना चाहिए। पैसा सिर्फ बिजनेस या किसी व्हाइट कॉलर जॉब में ही नहीं, खुद के पैशन को फॉलो करने में भी है।'

पिता वेदांत के साथ वास्वी।

वास्वि का कभी किसी और फील्ड में इंटरेस्ट नहीं दिखा?

मेरे इस सवाल पर वेदांत मुस्कुराने लगते हैं। वो वास्वी के माथे पर हाथ फेरते हुए कहते हैं, 'हमने ट्राय किया, दीपिका भी चाहती थीं कि हॉर्स राइडिंग एक खतरनाक खेल है, किसी दूसरे स्पोर्ट्स में वास्वी खुद को एक्सफ्लोर करे। हमने कई गेम्स ट्राय भी किए, लेकिन वास्वी ने सभी को दो-तीन महीने में ही छोड़ दिया।

इसके पैशन को देखते हुए ही हमने इसे विदेश भेजने का फैसला किया। दरअसल, इंडिया में हॉर्स राइडिंग को लेकर न तो ज्यादा स्कोप है और न ही कल्चर। जितने भी बेहतर घोड़े होते हैं, सभी जर्मनी के होते हैं। अच्छे कोच का इंडिया में मिलना भी मुश्किल है। इसलिए हमें वास्वी को इतनी कम उम्र में विदेश भेजना पड़ा। इन सारी चीजों में खर्च भी बहुत होता है। वास्वी अब तक जर्मनी, UK समेत कई देशों में हुए अलग-अलग लेवल के हॉर्स राइडिंग टूर्नामेंट में दर्जनों मेडल जीत चुकी है।

लेख साभार : दैनिक भास्कर 

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