SETH KIRODIMAL AGRAWAL - आधुनिक रायगढ़ के निर्माता दानवीर सेठ किरोड़ीमल
1951 से पहले पहाड़गंज नई दिल्ली रेलवे स्टेशन के पास कुतुब रोड पर अमेरिकन जेशुइट द्वारा एक कॉलेज चलाया जाता था। उस समय इसका नाम निर्मला कॉलेज था। मूलभूत सुविधाओं के अभाव के चलते यह बंद होने वाला था, तभी सेठ किरोड़ीमल ने वर्ष 1951 में इसे खरीद लिया। 1 फरवरी 1954 को सेठ किरोड़ीमल ने इसे नार्थ कैंपस में स्थापित किया।
अमिताभ बच्चन, सतीश कौशिक, गिरिजा प्रसाद कोइराला, मदनलाल खुराना, कुलभूषण खरबंदा, सुशांत सिंह और अश्वनी चांद यहीं के छात्र रहे हैं। ये वही सेठ किरोड़ीमल जी थे जिन्होंने आजादी के बाद छतीसगढ़ के रायगढ़ को पूरे भारत मे एक पहचान दी। ये पहचान इस लिए थी क्यों कि सेठ किरोड़ीमल ने कला और संस्कृति की इस नगरी को अपनी कर्म भूमि बनाया । आज उनकी जयंती है। उस पुण्य आत्मा के स्मरण करने और सादर नमन करने का दिन...
किसी पैसे वाले धनाढ्य के नाम के बाद "सेठ" शब्द का सम्बोधन तो आप ने बहुत से सुने होंगे पर स्व सेठ किरोड़ीमल उन गिने चुने लोगो मे से एक थे जिनके नाम के आगे "सेठ" का सम्मान बोधक शब्द लगाया जाता है। अपने बुद्धि कौशल और कठिन परिश्रम, अनुशासन के बल पर स्व सेठ किरोड़ीमल जी ने अकूत धन कमाया मगर उस धन को तिजोरी में बन्द रखने की जगह उन्होंने समाज को खुले दिल से लौटाया। 1946 में अस्तित्व में आये उनके धर्मादा ट्रस्ट की शुरुआत 30 लाख रुपये नगद और अपनी सम्पत्तियों के साथ की थी। 1946 के 30 लाख रुपये को आज की तारीख के रुपयों में बदलने पर किंतने शून्य लगेंगे इसका आप ही अंदाज लगाइए।
सेठ जी का जन्म हिसार (हरियाणा) के एक मध्यम वर्गीय परिवार में 15 जनवरी 1882 को हुआ था। कम आयु में ही उनमें कुछ कर गुजरने की खाहिस जागी। वे कलकत्ता आकर छोटे-मोटे व्यापार करते थे, जहां उनके भाग्य का सितारा चमका। जानकार बताते है कि व्दितीय विश्वयुध्द के दौरान 1936 से 1942 तक सेठ किरोड़ीमल जी ने जापान एवं मित्र राष्ट्रो को युध्द की विभीषिका से कराहती जनता के लिए भारी मात्रा में खाद्यान्न दिया। रायगढ़ में नटवर हाई स्कूल, पोलटेक्निक काँलेज,डिग्री कालेज, पुस्तकालय, जिला चिकित्सालय, बालमंदिर और बालसदन, श्री गौरी शंकर का भव्य मंदिर, बूजी भवन धर्मशाला, भरत कूप ,कुआ-बावली सहित उन्होंने काँलोनियों का निर्माण कराया । इतना ही नहीं रायगढ़ शहर को औद्योगिक नगर के रूप में पहिचान दिलाने वाला प्रदेश का प्रथम जूटमिल रायगढ़ में उन्होंने ही स्थापित किया। सेठ किरोड़ीमल ने अपने बुध्दि-चातुर्य से यहां का माल कलकत्ता को भेजा। तात्कालिक मध्यप्रदेश की यह एक मात्र जूटमिल थी ।
रायगढ़ में ही नहीं उन्होंने देश के विभिन्न स्थानों जैसे दिल्ली, मथुरा, मेंहदीपुर, (राजस्थान), भिवानी(हरियाणा), पचमढ़ी, रायपुर, किरोड़ीमल नगर आदि नगरों में अनेक स्कूल, धर्मशाला एवं रैन बसेरा मन्दिर का निर्माण कराया जो कि उनके लोकापकारी कार्यों का जीवन्त उदाहरण है । रायगढ़ का प्रसिद्ध झूला- मेले की शुरुआत भी उन्होंने गौरीशंकर मंदिर से की थी।
यह बेहद आश्चर्य जनक तथ्य है कि स्व सेठ किरोड़ीमल जी केवल अपना नाम ही लिख सकते थे इसके बाद भी उन्होंने व्यवसाय की बुलंदियों को छुआ तो इसका एक मात्र कारण उनका बुद्धि कौशल और बेहद अनुशासित जीवन था। जानकार बताते है कि स्थानीय किरोड़ीमल पोलटेक्निक कालेज के उद्घाटन दिवस था । तारीख थी 15 सितंबर 1956 । कालेज का उद्घघाटन करने के लिए प्रथम राष्ट्रपति डा राजेन्द्र प्रसाद का आगमन होना था। किसी कारण वश महामहिम को कार्यक्रम में पहुचने में देर हुई और इधर स्व सेठ जी के भोजन का समय हो गया। सेठ जी ने घड़ी देखी और आयोजन की जिम्मेदारी अन्य जिम्मेदार लोगो को सौंपते हुए भोजन के लिए रवाना होने लगे। अभी वे मंच से उतरते तभी महामहिम का काफिला आ गया । स्व सेठ जी ने महामहिम का स्वागत किया और उसके बाद भोजन के लिए रवाना हो गए।
उन्होंने रायगढ़ में तात्कालिक मध्यप्रदेश के इस प्रथम पाँलिटेक्निक काँलेज का निर्माण कराया था, जो कि आकार में किसी विश्वविद्यालय का स्मरण कराता है। इस कॉलेज की मशीनें उन्होंने जर्मनी से मंगाई थी जो आज भी चल रही है। इन मशीनों के बारे में भी कहा जाता है कि उन्होंने मशीनों की आपूर्ति के लिए निविदा आमंत्रित की और बजाए सबसे कम दर डालने वाले के सबसे ऊंची कीमत की मशीनों को इस कॉलेज में स्थापित करवाया । उन्हें मूल्य नही गुणवत्ता चाहिए थी।
चाहे वो नटवर स्कूल हो ,डिग्री कालेज हो,पोलटेक्निक कालेज हो या जिला चिकित्सालय...आज भी गुणवत्ता के मामले उसकी टक्कर के भवन पूरे छतीसगढ़ में नही मिलेंगे। उन्होंने लोगो को व्यापार करने को भी प्रेरित किया और गोदाम - दुकान जैसी चीजें मुहैय्या करवाई। उस जमाने मे सोने और चांदी के दैनिक मूल्य निर्धारणकर्ता स्व सेठ किरोड़ीमल ने जनहित में समाज सेवा के लिए शिक्षा और स्वास्थ्य को ही मूल ध्येय बनाया।
आधुनिक रायगढ़ के इस महान शिल्पी का निधन 2 नवम्बर 1965 को हुआ था, पर अपनी यशगाथा में वे आज भी हमारे बीच जीवित है। ऐसे महान धर्मवलम्बी सेठ किरोड़ीमल जी का कभी नही भुलाया जा सकता है, रायगढ़ उनका सदैव ऋणी रहेगा।
साभार: http://aloksinghraigarhcg.blogspot.com/2018/01/blog-post.html Mujhe Kuchh Kehna Hai
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