RAJA PURANMAL GUPT - राजा पूरणमल गुप्त का इतिहास
चंदेरी को चित्तौड़ के राणा सांगा ने सुलतान महमूद खिलजी से जीतकर अपने अधिकार में कर लिया था। लगभग सन् १५२७ में मेदिनी राय नाम के एक राजपूत सरदार ने, जब अवध को छोड़ सभी प्रदेशों पर मुगल शासक बाबर का प्रभुत्व स्थापित हो चुका था, चंदेरी में अपनी शक्ति स्थापित की। फिर मुगलो को हराकर पूरनमल गुप्त के समय चंदेरी के दुर्ग ओर आक्रमण किया था लेकिन शेरशाह सूरी इस दुर्ग को जीत पाने में असमर्थ सिद्ध हुआ तो शेरशाह सूरी ने धोखे से संधि वार्ता के बहाने छल से पूरणमल गुप्त की हत्या कर दी और अंत में शेरशाह ने आक्रमण किया।शेरशाह सूरी ने कत्लेआम की आज्ञा दी और भयंकर मारकाट के बाद किले को जीत लिया
राजा पूरणमल गुप्त मुगल काल और सूरी वंश के समय मे चंदेरी के शासक थे। राजा पूरणमल के पूर्वजो की जड़े गुप्त वंश(धारण गोत्र) के वैश्य राजाओं में जाकर मिलती है। चंदेरी का प्राचीन नाम चंद्रनगर था। गुप्त वंश के राजा चंद्रगुप्त विक्रमादित्य ने यहां पर किले का निर्माण करवाया था।उन्ही(चंद्रगुप्त विक्रमादित्य) के नाम से यह जगह चंद्रनगर( चंद्रपुर) नाम से जानी गई थी। चंद्रनगर से अपभ्रंश होकर यह नगर चंदेरी के नाम से प्रसिद्ध हुआ । गुप्त वंशी वैश्य चंदेरी के शासक होने के कारण चंदेरी के नाम पर चंदेरी(चंदेरिया/चंदेलिया) नाम से प्रसिद्ध है|गुप्त वंश की चंदेरी(चंदेरिया/चंदेलिया) शाखा के लोग मध्यप्रदेश, राजस्थान,पंजाब में निवास करते है।चंदेरी किले के निर्माण पर कुछ दूसरे वंश भी दावा प्रस्तुत करते हैं। लेकिन सबसे ज्यादा प्रामाणिक दावा गुप्त वंश के वैश्य राजा चंद्रगुप्त विक्रमादित्य का ही सिद्ध होता है चंदेरी के गुप्त वंश के पश्चात यह किला मालवा के वैश्य महाराजा यशोधर्मन के अधिकार में रहा था। यशोधर्मन के पश्चात चंदेरी का किला अलाउद्दीन ख़िलजी ,तुगलक वंश ,लोधी वंश , और मालवा के सुल्तान महमूद ख़िलजी के अधीन रहा था । 1527 ईस्वी में मैदिनी राय खंगार ने मालवा के सुल्तान के समय चंदेरी पर कब्ज़ा कर लिया था। लेकिन 1528 ईस्वी में बाबर ने मेदिनीराय खंगार को हराकर चंदेरी किले को जीत लिया था। बाबार के समय मुगलिया अत्याचार से जब चंदेरी की जनता त्राहि त्राहि कर रही थी उस समय एक वैश्य यौद्धा पूरणमल चंदेरी का उद्धारक बनके उभरा था। मुगल सेना और पूरणमल वैश्य के मध्य 1529 ईस्वी में भयंकर युद्ध हुआ जिसमें मुगलो ने गुप्तो के आगे युद्ध भूमि में घुटने टेक दिए इस तरह अविजित मुगलो ने प्रथम बार मध्य भारत मे हार का स्वाद चखा था। भारत भूमि के पुत्र पूरणमल गुप्त ने मुगलो की रक्त सरिता में स्नान कर, भारत माता की आत्मा को तृप्त किया था। चंदेरी के किले पर चंद्रगुप्त के वंशज राजा पूरणमल गुप्त का अधिकार हो गया था। गुप्तो ने चंदेरी का चौमुखी विकास किया था। चंदेरी के दुर्ग को सुरक्षित अभेद किले के रूप में परिवर्तित करने के लिए किले में नवीन निर्माण किए गए थे। पूरणमल गुप्त ने मुगलो के सेनायनक(पठान) को जिस जगह काटा था आज वो खूनी दरवाजा कहलाता है। बाद में चुन चुनकर मुगल तुर्को को इस ही जगह (खूनी दरवाजे) पर मौत के घाट उतारा गया था। तब से इसी खुनी दरवाजे पर शत्रु के रक्त का अभिषेक किया जाता है।अर्थात शत्रुओ को खूनी दरवाजे पर मृत्यु दंड दिया जाता था। दिल्ली के अफगान सुल्तान शेरशाह सूरी ने 1542 ईसवी के अंत मे चंदेरी पर आक्रमण किया था। बाबर के समय शेरशाह सूरी ने चंदेरी के 1528 ईस्वी के युद्ध मे एक सैनिक के रूप में भाग लिया था। शेरशाह ने सोचा कि पल भर में चंदेरी को जीत लेगा लेकिन भविष्य में शेरशाह का सामना उन गुप्त वीरो से होने वाला था जिन्होंने रण भूमि में वीरगति या विजय को अपना लक्ष्य बना रखा था।शीघ्र ही शेरशाह को पता चल गया कि उसका पाला सवा शेरो से पड़ गया है। चार महीने तक लाख प्रयत्न करने के बाद भी शेरशाह को युद्ध क्षेत्र में सिर्फ नाकामी हाथ लगी थी। रणक्षेत्र में हर बार विजयश्री का सेहरा राजा पूरणमल के सिर पर ही बंधा था। गुप्तो ने अपनी युद्ध कौशलता वीरता,साहस के दम पर अफगानों को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया था जब युद्ध क्षेत्र में विजय की कोई भी आश शेष नही बची थी । तब अफगानी लोमड़ी शेरशाह ने छल कपट का सहारा लिया शेरशाह ने अपना शांति दूत चंदेरी के राजा पूरणमल के पास भेजा दूत ने शेरशाह का संदेश राजा को सुनाते हुए बताया कि शेरशाह आपकी वीरता का मुरीद हो गया है अतः वो ऐसे वीर यौद्धा से युद्ध की जगह मित्रता (संधि) करना चाहता है। राजा कुरान की सौगंध के साथ भेजे इस संदेश पर विश्वास करते हुए किले से बाहर आकर संधि वार्ता करने के लिए शेरशाह के कैम्प में आ गया था। लेकिन शेरशाह ने मित्रता की आड़ में निहत्थे राजा की पीठ में खंजर घोप कर उसकी हत्या कर दी जब यह खबर किले में पहुँची तो महिलाओं और बच्चो को गुप्त रास्ते से सुरक्षित क्षेत्रो में भेज दिया गया था आज वो लोग चंदेरी से आने के कारण चंदेरी(चंदेरिया/,चंदेलिया) ,गोत्र के कहलाते हैं। किले में शेष बचे सैनिकों और वीरांगनाओ ने कायर की तरह मरने के बजाए युद्ध भूमि में प्राणों का बलिदान देना अपना सनातन धर्म समझा इसके बाद भयंकर कत्ले आम हुआ था।एक और भारतीय राजा अफगानों की छल का शिकार हुआ था।इसी के साथ भारत के एक स्वर्णिम अध्याय का दुःखद अंत हुआ
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