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Wednesday, May 19, 2021

"ब्राह्मण-बनिया Hegemony"

"ब्राह्मण-बनिया Hegemony"



हाँ तो क्या है ब्राह्मण-बनिया hegemony जिससे वामपंथी इतने भयभीत रहते हैं की इन्होंने उसके ऊपर कई आर्टिकल्स लिख दिए.. आखिर ब्राह्मण-बनिया एक हो जाएंगे तो किसका फायदा होगा और किसका नुकसान ? जाहिर ही बात है ब्राह्मण-बनिया दोनों ही परम सात्विक, भगद्भक्त, और राष्ट्रवादी जातियाँ रहीं हैं तो इनकी एकता से सनातनियों फायदा होगा और धर्म-राष्ट्रविरोधी तत्वों का नुकसान... ब्राह्मण-बनिया कब कब एक साथ आये और इनके साथ आने से देश में क्या क्या चमत्कार हुए इसे लिखता हूँ-

"यह जाति  अपनी उदारता और दानशीलता के कारण ब्राह्मणों की सच्ची हितैषी व हमारे समय में मंदिरों का निर्माण करने वाली मुख्य जाति  थी ।" ~ W. Crook

सर्वप्रथम शुरुवात करते हैं द्वापर युग से.. द्वापर के अंत में अग्रोहा में शासन था महाराजा अग्रसेन का.. महाराज अग्रसेन जब अपने भाई बंधुओं के धोखे से परेशान होकर श्रीहीन राज्य हीन हो गए थे तब उनके तारणहार बने उनके कुलपुरोहित ब्राह्मण शिरोमणि महर्षि गर्ग। महर्षि गर्ग की ही आज्ञा से उन्होंने महालक्ष्मी जी का पूजन किया और उस समय का सबसे समृद्ध राष्ट्र अग्रोहा बसाया। उनके बचपन के मित्र थे शाकुन्त नाम के ब्राह्मण.. अग्रभागवत में डिटेल में वर्णन है की महाराज अग्रसेन ने अपने ब्राह्मण मित्र शाकुन्त की ही प्रेरणा से एक रुपये और एक ईंट का सिद्धान्त दिया था जो वैदिक समाजवाद का प्रथम दर्शन था जो अग्रोहा और अग्रवालों का प्रतीक बना। महाराज अग्रसेन के अपने राज्य में रत्नजड़ित श्री पीठ का निर्माण करवाया फ जिसमें दिन रात वेदों में पारंगत ब्राह्मण भगवती श्री की स्तुति किया करते थे।

पुरं मध्ये वर्धमानं श्रीपीठे रत्नसंसकृते।
आराध्यते ह्योरात्रं #द्विजाः वेदविदां वराः॥ (श्री अग्रभागवत)

ब्राह्मणों और वैश्यों की दूसरी संधि आयी जब सम्राट श्रीगुप्त ने गुप्त साम्राज्य की स्थापना की। गुप्त वंश धारण गोत्रीय था जो अग्रवालों के 18 गोत्रों में से एक है। इतिहासकारों के अनुसार गुप्त वंश गौ, गोविंद और ब्राह्मण के भक्त थे। गुप्त वंश विशुद्ध सनातनी पौराणिक वंश था जिसके राज्य में विशुद्ध ब्राह्मणवाद अपने चरम पर था। इतिहासकार गुप्तवंश को ब्राह्मणवाद का गोल्डन पीरियड मानते हैं। जिसमें जन्में स्कन्दगुप्त ने उन शकों-हूणों को काट के फेक दिया था जिनसे बचने के लिए चीन ने अपनी दीवार बनवाई थी।

जब विप्रकुल श्रेष्ठ चाणक्य ने अखंडभारत का सपना संजोया तो सबसे पहले वैश्यों ने आगे बढ़कर उनको अपनी विपुल धन संपदा दान कर दी थी।

1857 की क्रांति में बनिया-ब्राह्मण हेगीमोनी - सेठ बांठिया मूल रूप से बीकानेर रियासत का मारवाड़ी व्यापारी था जब ग्वालियर पर रानी लक्ष्मी बाई , नाना साहेब और तांत्या टोपे का हमला हुआ तब सेठ बांठिया ने ग्वालियर का खज़ाना इनकी सेना के खर्च पूर्ति हेतु इन्हें ही सौंप दिया अंग्रेज सरकार ने इस घटना को राजद्रोह मानकर सेठ अमरचंद बांठिया’ बीकानेर वाला’ को फांसी पर चढा दिया। इसी तरह जब तांत्या टोपे भागकर जयपुर से लालसोट होते हुए सीकर पहुंचे, सेठ रामप्रकाश अग्रवाल ने गहने और धन देकर उनकी मदद की।

आजादी की लड़ाई में एक बार फिर वैश्यों और ब्राह्मणों की एकता ने अपना असर दिखाया। जहाँ अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन का नेतृत्व गरमदल की तिगड़ी लाल बाल पाल ने सबसे तीव्र स्वर में नेतृत्व किया। जिसमें लाल थे अग्रवाल वैश्य लाला लाजपत राय और बाल थे मराठी ब्राह्मण बाल गंगाधर तिलक।

एक बार राजा कृष्ण देव राय ने अपने दरबारी ब्राह्मण शिरोमणि तेनाली राम से पूछा था - "तेनाली चातुर्वर्ण में सबसे होशियार और तेज दिमाग जाती कौन सी है?" तो तेनाली ने उत्तर दिया "महाराज! वैश्य" और इसे उन्होंने महाराज के सामने साबित भी किया।

उसके बाद जब राजनीति में मोध वैश्य महात्मा गांधी का पदार्पण हुआ जिसने भारतीय आंदोलन को नई दिशा दी। सत्याग्रह और अहिंसा जैसे अस्त्र दिए। उनके गुरु थे एक ब्राह्मण गोखले। महात्मा गांधी की सलाहकार टीम में 5 ब्राह्मण थे। महात्मा गांधी के आने के बाद देश के राजनीतिक आंदोलन को बहुत तेजी मिली थी। आज हरिजन, किसान, मजदूर आदि जो तबका स्वतंत्रता संग्राम से दूर था वो तबका महात्मा गांधी के प्रयासों से आज मुख्य धारा के साथ कंधे से कंधा मिलाकर लड़ रहा था। उन्होंने ही अम्बेडकर की दलित तबको को हिन्दू धर्म से अलग करने की साजिश को नाकाम किया था।

ब्राह्मणों ने हिन्दू धर्म के शास्त्र लिखे लेकिन कालांतर में कलयुग के प्रभाव के चलते लगभग लुप्त हो चुके श्रीमद्भागवत गीता, रामायण, महाभारत आदि शास्त्रों को छापने और न्यूनतम मूल्य पर और सबसे सटीक व्याख्या कर जन-जन तक पहुंचाने का काम वैश्यों ने किया. हिन्दू धर्म की सबसे बड़ी धार्मिक प्रेस गीता प्रेस गोरखपुर बनाकर। और इस प्रेस को धार्मिक भगवद्भक्त ब्राह्मणों से बहुत सहयोग मिला।

जब जब ब्राह्मणों में मालवीय और करपात्री जी जैसा नेतृत्व उठा उनका समर्थन डालमिया और बिड़ला जैसे कतिपय वैश्यों ने किया। महामना पं मदन मोहन मालवीय के बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के निर्माण में सेठ दामोदरदास राठी ने 11000 चांदी के कलदार सिक्के उन्हें भेंट किये थे. उनके बनाये बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के परिसर में मालवीय जी के कहने पर सेठ घनश्यामदास बिड़ला जी ने काशीविश्वनाथ मंदिर बनवाया. पं मदन मोहन मालवीय के आग्रह पर बिड़ला और डालमिया परिवार ने श्री कृष्ण जन्मभूमि पर भव्य मंदिर का निर्माण करवाया था.

सनातन श्रेष्ठता दिखाने के लिए कृष्ण जन्मभूमि मंदिर का शिखर मस्जिद से ऊंचा होगा इसकी रूप रेखा एक वैश्य हनुमान प्रसाद पोद्दार और एक ब्राह्मण अखंडानंद सरस्वती ने मिलकर तय की थी। हनुमान प्रसाद पोद्दार जी ने संत समाज के साथ मिलकर अयोध्या मस्जिद में श्रीपति भगवान के बाल स्वरूप का प्राकट्य भी करवाया था।

इसके बाद आजाद भारत में सब जानते हैं गांधी जी के उत्तराधिकारी बने थे ब्राह्मण नेहरू.. मोदी जी के अलावा वो ही एक ऐसे प्रधानमंत्री थे जिन्होंने कुंभ में स्नान किया था। जिन्होंने भारतवर्ष का पुनर्निर्माण किया था। देश में IIT, AIMS, IIMS, IISC आदि संस्थानों की नींव रखी। देश में मल्टीनेशनल कंपनियों का जाल बिछा दिया। उनके ही आग्रह पर एक वैश्य विक्रम साराभाई ने भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान केंद्र बनाया जिस संस्था ने भारत की अंतरिक्ष सफलता कई झंडे गाड़े।

अगर हम पाटीदार वल्लभ भाई पटेल को वैश्य माने (क्योंकि गुजरत मे पाटीदारों की गिनती वैश्यों में ही होती है) तो भारत को अखंड भी ब्राह्मण-वैश्य जोड़ी ने ही किया था।

अंग्रेजों और बाद में अंग्रेजों के दलालों को एक्सपोज़ करने का काम किसने किया ये तो आप सब जानते ही हैं। वो थे "राजीव दीक्षित जी" - जिनके गुरु थे "प्रोफ़ेसर धर्मपाल अग्रवाल"। गुरु शिष्य की इस जोड़ी ने अंग्रेज़ी दलालों की चूले हिला दी थीं।

देश मे विज्ञान के क्षेत्र में पहला नोबल लाये थे सी. वी. रमन लाये थे.. सी. वी. रमन एक गरीब परिवार से थे लेकिन बहुत मेधावी थे। उनको अपने ऊपर विश्वास था कि मैं नोबल जीत सकता हूँ इसके लिए उन्हें स्पेक्टग्राफ खरीदना था । इसके लिए वो बिड़ला जी के पास पहुंचे और उन्हें समझाया। बिड़ला जी इसके लिए तैयार हुए और रमन साहब को आर्थिक सहायता दी and rest is history....

आजादी के बाद बहुत से मौकों पर ब्राह्मण वैश्यों ने एक होकर देश के लिए कई कार्य किये और देश का नाम रौशन किया बल्कि अगर हम कहें की आधुनिक भारत को किसी ने बनाया है तो वो यही दो जातियों ने बनाया है तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। देश में असंख्य संस्थान और मल्टीनेशनल कम्पनीज स्थापित करके भारत की जीडीपी, रोजगारी और ग्रोथ को बढ़ाने का काम वैश्य और ब्राह्मणों ने ही किया है.. तो इससे आसानी से समझा जा सकता है की ब्राह्मण और वैश्य एकता से वामपंथियों को इतनी चिढ़ क्यों है?

वो अक्सर पूछते रहते हैं कि आखिर ब्राह्मण बनिया hegemony कब खत्म होगी? तो ये भी जान लीजिए कि लक्ष्मी और सरस्वती के पुत्रों की ये संधि हमेशा युहीं बनी रहेंगी।

साभार: © प्रखर अग्रवाल, अध्यक्ष (राष्ट्रीय अग्रवाल महासभा)

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