विश्व के सबसे अमीर समुदायों अग्रवाल, पारसी और यहूदी समुदायों की जीवटता
धनलक्ष्मी की माया विचित्र है। अक्सर यह उन समुदायों पर मेहरबान होती हैं, जिनकी तादाद समाज में उतनी ही होती है, जितनी दाल में नमक। इतना ही नहीं, प्राय: देखा जाता है कि ये समुदाय इतिहास के जुल्मोसितम के शिकार होते हुए भी समृद्धि के मामले में औरों से बहुत आगे निकल जाते हैं। यहां हम ऐसे ही तीन अति अल्पसंख्यक समुदायों के बारे में बात करने जा रहे हैं- #यहूदी, #अग्रवाल और #पारसी । शुरुआत भारत के सबसे अमीर लोगों में गिने जाने वाले एक उद्योगपति #रामकृष्ण_डालमिया की कहानी से करते हैं, रामकृष्ण डालमिया का जन्म #राजस्थान के #शेखावाटी अंचल में एक #गरीब_अग्रवाल परिवार में हुआ था। उनकी प्रारंभिक पढ़ाई भी न के बराबर हुई थी। अपने जवानी की शुरुवाती दिनों में वो कलकत्ता चले गए और अपना व्यापार जमाया। वो शून्य से शरू करके अपनी मेहनत से शीर्ष तक पहुंचे। इन्होंने चीनी फैक्ट्री, सीमेंट, पेपर, बैंक, इंस्योरेंस कंपनी, बिस्कुट, एविएशन कंपनी और पब्लिकेशन के क्षेत्र में काम किया. कहा जाता था कि वो जिस कारोबार में हाथ डालते थे, वहां उन्हें सफलता उनके हाथ चूमते थी. अपनी मेहनत के बल पर वो भारत के शीर्ष उद्योगपतियों में शुमार हुए और खुद के आद्योगिक नगर #डालमिया_टाउनशिप की भी नींव रखी।
सिर्फ अपनी मेहनत, प्रतिभा और जोखिम उठाने की क्षमता के बल पर इतना आगे जाने की कहानियां हमारे पास कितनी हैं? अलबत्ता अमेरिका में ऐसी कहानियां बहुतायत में मिलती हैं, जिनमें ज्यादातर वहां के यहूदी समुदाय से जुड़ी होती हैं। फोर्ब्स ने बीते मार्च में दुनिया के सबसे अमीर लोगों की जो सूची जारी की है, उसमें चोटी के 50 नामों में 11 यहूदियों के हैं। इन नामों को गौर से देखें तो इनमें कम से कम पांच, यानी आधी के लगभग तादाद ऐसे लोगों की मिलेगी, जिनकी अमीरी में खानदानी दौलत का कोई योगदान नहीं है।
अमीरों की इस सूची में छठे नंबर पर हैं फेसबुक के मालिक मार्क जकरबर्ग, सातवें पर ओरेकल के लैरी एलिसन, बारहवें-तेरहवें पर गूगल के लैरी पेज और सर्जेइ ब्रिन। ये चारों अमेरिकी यहूदी साइबर अरबपति सबसे पहले अपने सॉफ्टवेयर कौशल के लिए, फिर अपनी व्यापारिक प्रतिभा के लिए जाने जाते हैं। कंप्यूटर हार्डवेयर के लिए मशहूर माइकल डेल को भी हम कमोबेश इसी श्रेणी में रख सकते हैं। लेकिन बाकी के छह यानी शेल्डन अडेल्सन, जॉर्ज सोरोस, माइकल ब्लूमबर्ग, जोसफ साप्रा, कार्ल आइकाह्न और जेम्स साइमन्स बैंकिंग, हेज फंड, मीडिया या कसीनो बिजनेस से जुड़े हैं- यानी पैसे से पैसा बनाने के कलाकार।
आम धारणा यही है कि बड़े उद्योगपति पैसों के खेल में माहिर होते हैं। उनके पास कुछ खानदानी दौलत होती है, जिसका इस्तेमाल वे व्यवस्था के दोहन में करते हैं। अगर वे पारंपरिक बिजनस समुदाय से आते हैं तो उन्हें बने-बनाए नेटवर्क का भी फायदा मिल जाता है। लेकिन इतिहास की उठापटक के शिकार बहुत छोटे समुदायों पर यह धारणा ज्यों की त्यों लागू नहीं होती। मसलन, अमेरिका में यहूदियों की संपन्नता को एक सीधी रेखा में देखना बिल्कुल गलत है। बीती सदी के पहले पांच दशकों में उनको वहां जबर्दस्त नस्लीय भेदभाव का सामना करना पड़ा था।
एक समय था जब अमेरिकी विश्वविद्यालयों में 40 फीसदी छात्र यहूदी पृष्ठभूमि से आते थे। फिर अचानक उनका 4 फीसदी का कोटा बांध दिया गया और नतीजन उनकी दो पीढ़ियों का बड़ा हिस्सा किसी यूनिवर्सिटी का मुंह भी नहीं देख पाया। यही वजह है कि अमेरिकी यहूदियों की एक बड़ी तादाद अपनी पहचान से ही कतराने लगी। आज भी कोई दावे के साथ नहीं कह सकता कि अमेरिका में कुल कितने यहूदी रहते हैं। जनगणना के आंकड़ों में उनका प्रतिशत 1.7 से 2.6 के बीच बताया जाता है।
#अमेरिका से वापस अमीर #भारतीयों की तरफ रुख करें, तो इस साल जारी #फोर्ब्स_इंडिया_2020 की सूची में टॉप दस में से एक में शुमार लक्ष्मी निवास मित्तल का अग्रवाल परिवार है। लक्ष्मी निवास मित्तल को स्टील किंग कहा जाता है। पांचवें पर पैलन मिस्त्री, आंठवे पर आदि गोदरेज, दोनों पारसी। 11वें बजाज परिवार, 14वें पर सुनील मित्तल और 20वें पर जिंदल परिवार ये तीनों अग्रवाल घराने हैं। वहीं दूसरी ओर 12वें पर सायरस पूनावाला, 18वें पर नुस्ली वाडिया पारसी समुदाय से हैं। यानी चोटी के 20 अमीर भारतीयों में आठ सिर्फ अग्रवाल और पारसी हैं। देश के सबसे मशहूर पारसी रतन टाटा इस सूची में कहीं पर भी आ सकते थे, लेकिन जिंदगी को लेकर अपने अलग नजरिये के चलते उन्होंने टाटा संस के सिर्फ एक फीसदी शेयर अपने पास रखे हैं।
विश्व की बहुचर्चित सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स जैसे फेसबुक, इंस्टाग्राम और व्हाट्सएप्प के मालिक यहूदी ज़ुकरबर्ग हैं तो वहीं भारत की एकमात्र सोशल मीडिया प्लेटफार्म Hike (हालांकि ये उतना पॉपुलर नहीं है) के निर्माता क्वीन भारती मित्तल हैं। भारतीय ऑनलाइन स्टार्टअप्स भी फ्लिपकार्ट से लेकर स्नैपडील और ओला से लेकर ओयो रूम्स तक के फाउंडर अग्रवाल हैं।
#अग्रवालों और #पारसियों के जीवन संघर्ष के बारे में भला कुछ बताने की जरूरत है? अग्रवालों के इतिहास में जाते हैं तो #सिकंदर के साथ महाविनाशक युद्ध में वो अपनी पितृभूमि #अग्रोहा से विहीन हो गए। उसके बाद अग्रवालों ने फिर अग्रोहा बसाया तो उस पर कुषाण, तोमर आदि शासकों के हमले हुए.. अंतिम हमला फ़िरोज़ शाह तुगलक ने किया था और अग्रोहा के ध्वंशावशेष से हिसार-ए-फ़िरोज़ा बनाया था। अग्रवालों को तो नागों में नाग काला और #बणियों में अग्रवाला जैसे तिरस्कार का भी सामना करना पड़ा। लाहौर जो अग्रवल उद्योगपतियों के गढ़ था वहाँ से 1947 के बटवारे के बाद लाखों अग्रवलों को पलायन करने पड़ा। पारसी समुदाय ऐसा है जिनके पास यहूदियों की ही तरह वापसी के लिए अपना कोई वतन नहीं है। पारसी और अग्रवाल पिछले हज़ार सालों से बेवतन हैं। बेवतनी इंसान को बहुत हद तक तोड़ती है, लेकिन कुछ हद तक मजबूत भी बनाती है। मुसीबत में एक-दूसरे की मदद करना और अच्छे दिनों में भी अपने लोगों से रिश्ता न तोड़ना ऐसे समुदायों की खासियत बन जाती है। व्यापार में यह आपसी भरोसा बड़े काम का साबित होता है।
आज अपने कठिन परिश्रम और उदारता के कारण भारतीय समाज में अग्रवालों और पारसियों का बहुत सम्मान है और दोनों समाज आज भारत की अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं।
साभार: प्रखर अग्रवाल
अध्यक्ष, राष्ट्रीय अग्रवाल महासभा
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