"सेठ जयदयाल गोयनका जी का गीता के प्रचार का कारण"
गीताप्रेस का मुख्य उद्देश्य ईश्वरप्रेम, सत्य, सदाचार और सद्भावों के प्रचार-हेतु मानव-सेवार्थ सद्ग्रन्थोंका प्रकाशन करना है।
गीताप्रेस की स्थापनाके पूर्व गीताजीकी पुस्तक मिलनी दुर्लभ थी। मिलती भी तो पाठ शुद्ध नहीं होता था और मूल्य भी दे पाना सर्वसाधारणके लिये सुलभ नहीं था।
महर्षि वेदव्यासके द्वारा प्रणीत महाभारतके भीष्मपर्वके अध्याय २५ से लेकर अध्याय ४२ तक जो भगवान् की वाणी है, वह स्वतन्त्र रूपसे गीताके रूपमें एक अलौकिक ग्रन्थ है। इस ग्रन्थको पढ़नेवाला अपनी सभी समस्याओंका निराकरण तथा भगवत्प्राप्तिका साधन इस छोटेसे ग्रन्थमें पा ही जाता है। मात्र ७०० श्लोक हैं और अत्यन्त सरल संस्कृतमें लिखे हुए हैं। इन्हीं गीताजीका स्वाध्याय करते-करते भगवत्प्रेरणासे एक बार सेठजीकी दृष्टि गीताजीके १८वें अध्यायके ६८-६९ श्लोकोंपर रुक गयी—
य इमं परमं गुह्यं मद्भक्तेष्वभिधास्यति।
भक्तिं मयि परां कृत्वा मामेवैष्यत्यसंशय:॥ ६८॥
जो पुरुष मुझमें परम प्रेम करके इस परम रहस्ययुक्त गीताशास्त्रको मेरे भक्तोंमें कहेगा, वह मुझको ही प्राप्त होगा—इसमें कोई संदेह नहीं है।
न च तस्मान्मनुष्येषु कश्चिन्मे प्रियकृत्तम:।
भविता न च मे तस्मादन्य: प्रियतरो भुवि॥ ६९॥
उससे बढ़कर मेरा प्रिय कार्य करनेवाला मनुष्योंमें कोई भी नहीं है; तथा पृथ्वीभरमें उससे बढ़कर मेरा प्रिय दूसरा कोई भविष्यमें होगा भी नहीं।
इन श्लोकोंसे सेठजीके मनमें यह भाव जागृत हुआ कि बहुत स्थानोंपर बहुत-से लोगोंको भगवान् ने अपना प्रियतम बताया है, किन्तु गीता-प्रचारकके लिये कहा है कि उससे बढ़कर मेरा प्रिय कार्य करनेवाला न कोई है, न भविष्यमें होगा, भविष्यमें भी उससे बढ़कर मेरा प्रिय नहीं होगा ऐसी बात कहीं अन्यत्र नहीं मिली। अत: भगवान् की प्रसन्नता प्राप्त करनेके लिये गीता-प्रचारसे उत्तम कोई कार्य नहीं है। इन श्लोकोंने उनके मनपर ऐसा प्रभाव डाला कि उनका सम्पूर्ण जीवन ही गीता-प्रचारके लिये अर्पित हो गया।
इन दोनों श्लोकोंमें भगवान् ने जो निर्देश दिया है उस निर्देशको सेठजीने अपना जीवन-व्रत बना लिया। मानव-मात्रको जीवन्मुक्त होना गीताजीसे सुलभ है, जो सत्संग, भजन इत्यादिमें नहीं आ-जा सकते, उनके पास गीता अवश्य हो। इस उद्देश्यसे सेठजीने अथक परिश्रम करके शुद्ध और सस्ते मूल्यपर गीता उपलब्ध कराने हेतु गीताप्रेसकी स्थापना गोरखपुरमें की तथा गीताजीका प्रचार होने लगा। एक बार कोई सज्जन आकर सेठजीसे बोले कि अब तो गीताजीका काफी प्रचार हो गया है। इसपर सेठजीने कहा कि जब जन्मते ही बच्चे रोनेकी जगह गीता-गीता बोलें तब मैं मानूँगा कि गीताजीका कुछ प्रचार हुआ है। सेठजीका लक्ष्य था कि गीताजीका लाभ जन-जनको मिले।
साभार: प्रखर अग्रवाल
nice Blog
ReplyDeletePandit ji Noida Sec 16