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Tuesday, June 2, 2020

"जो किस्मत का धनी वो बनिया"

"जो किस्मत का धनी वो बनिया"

गरम दल के लाला लाजपत राय से लेकर इसरो के जनक विक्रम साराभाई तक सभी बनिए ही हैं।

पत्रकारिता के क्षेत्र में भी इस जाति का ही कारोबारी एकाधिकार रहा है। लगभग सभी बड़े अखबारों के मालिक बनिए ही हैं। इनमें हिंदुस्तान टाइम्स, टाइम्स आफ इंडिया, दैनिक जागरण, भास्कर, पत्रिका, इंडियन एक्सप्रेस, द प्रिंट, प्रभात खबर से लेकर हाल ही में बिक जाने वाला नई दुनिया तक शामिल है। टेलीकॉम के क्षेत्र में अम्बानी की जिओ, मित्तल की एयरटेल और बिरला की आईडिया सभी बनियों की हैं।

अखबारों में आ रहे तमाम परीक्षा परिणामों के नतीजों पर नजर डालें तो इस कालम में बनियों यानी वैश्य व्यापारी वर्ग पर लिखने के लिए बाध्य होना पड़ेगा। हाई स्कूल से लेकर आईआईटी, पीएमटी यहां तक की सिविल सेवा तक के नतीजों में सफलता पाने वालों की सूची चौंकाती है। जिधर नजर डालें तो उसमें आधे से ज्यादा नामों के आगे अग्रवाल, गुप्ता, गोयल, जैन, सिंघल, बसंल, कंसल आदि सरनेम देखने को मिलेंगे। जो बनिए कभी केवल दुकान और व्यापार तक सीमित रहते थे, आज हर क्षेत्र में अव्वल आ रहे हैं। शायद ही कोई क्षेत्र ऐसा हो, जहां उन्होंने सफलता हासिल नहीं की हो। कुशाग्रता तो उनके खून में पाई जाती है और मानो गणित पर उनका एकाधिकार सा है। शायद ही इस वर्ग का कोई छात्र ऐसा हो, जो गणित में कमजोर हो। चंद वर्ष पहले तक सीपीडब्ल्यूडी में ही बनिया इंजीनियरों की भरमार दिखती थी, पर अब यह अतीत की बात हो चुकी है।

मनु स्मृति में भी वैश्यों को व्यापार का काम सौंपा गया था और अपना देश आजाद हुआ तो उससे पहले से ही वे सभी क्षेत्रों में सफलता हासिल करने लगे थे। बिड़लाजी महात्मा गांधी के फाइनेंसर माने जाते थे। यह अलग बात है कि इस देश को आजादी दिलावाने में अहम भूमिका निभाने वाले महात्मा गांधी खुद भी गुजरात के बनिया ही थे। जमना लाल बजाज, डालमिया सभी ने स्वतंत्रता संग्राम में जितना संभव हो सका, उतनी उनकी मदद की। महान क्रांतिकारी पंजाब केसरी कहलाने वाले लाला लाजपत राय भी अग्रवाल वैश्य समुदाय से थे। साहित्य के क्षेत्र में भी मैथलीशरण गुप्त राष्ट्रकवि कहलाए। भारतेंदु हरिश्चन्द्र आधुनिक हिंदी साहित्य के जनक कहलाए। काका हाथरसी तो जाने माने हास्य कवि थे। उपन्यास सम्राट जयशंकर प्रसाद जी स्वयं काशी के प्रसिद्ध सुंघनी साहू परिवार से थे।

पत्रकार के रूप में बनियों ने विशेष ख्याति हासिल की। समकालीन पत्रकारिता में शेखर गुप्ता इसका जीता जागता उदाहरण है। एक समय तो ऐसा था जब कि मजाक में यह कहा जाने लगा था कि इंडियन एक्सप्रेस में ‘गुप्त काल’ रहा है। क्योंकि तब शेखर गुप्ता के अलावा वहां नीरजा (गुप्ता), हरीश गुप्ता, शरद गुप्ता, शिशिर गुप्ता भी पत्रकारिता कर रहे थे।

अगर हम ऑनलाइन स्टार्टअप्स की बात करें तो उसमे अग्रवाल बनियों ने विशेष झंडे गाड़ रखें हैं । फ्लिपकार्ट, स्नैपडील, जोमाटो से लेके विदेशी जुबेर को टक्कर देने वाली ओला और और दुनिया की सबसे बड़ी ऑनलाइन होटल चैन ओयो रूम्स तक सबके फाउंडर अग्रवाल ही हैं।

जब सीताराम केसरी कांग्रेस के अध्यक्ष बने तो पत्रकार निर्मल पाठक ने उनसे चुटकी लेते हुए कहा था, चचा, भाजपा के लिए तो समस्या पैदा हो जाएगी, क्योंकि अब बनियों को सोचना पड़ेगा कि वे आपको वोट दें या भाजपा को। केसरीजी ने पूछा वह कैसे तो उसने शरारती अंदाज में कहा कि आपने जगह-जगह दीवारों पर लिखा यह नारा तो पढ़ा ही होगा कि ‘भाजपा के सदस्य बनिए’।

बनियों का भाजपा से विशेष लगाव रहा हैं। एक समय था, जब हर शहर में पार्टी का स्थानीय दफ्तर किसी बाजार में होता था। नीचे दुकान होती थी व पहली मंजिल पर कार्यालय हुआ करता था। जब राजग सत्ता में थी तो दैनिक जागरण के मालिक नरेंद्र मोहन भाजपा में शामिल होकर राज्यसभा में आ गए थे। उस समय अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में वैश्य समाज का एक भी मंत्री नहीं था। विजय गोयल भी सरकार के अंतिम महिनों में कैबिनेट में लिए गए थे। नरेंद्र मोहन अपने अखबार में अक्सर यह खबर छपवाते रहते थे कि राजग में बनियों की उपेक्षा हो रही है। उनका एक भी मंत्री नहीं हैं। इस पर एक बार प्रमोद महाजन ने किसी कार्यक्रम में उनसे कटाक्ष करते हुए कहा कि हम पर तो बनियों की सरकार होने का आरोप लगाया जा रहा है और आप का अखबार लिख रहा है कि सरकार में बनियों की उपेक्षा हो रही है।

रुपए पैसे के हिसाब-किताब रखने की उनकी योग्यता गजब की होती है। इसी योग्यता के कारण सीताराम केसरी कांग्रेस के अध्यक्ष बनने तक पार्टी के कोषाध्यक्ष रहे थे। उनके बारे में यह कहावत प्रचलित थी कि ‘‘न खाता न बही, जो कहें केसरी वही सही’’। मुख्य विपक्षी दल भाजपा के कोषाध्यक्ष भी बनिया ही हैं। पहले पार्टी के कोष को वेदप्रकाश गोयल संभालते थे। अब अध्यक्ष बदलने के बाजवूद भाजपा का खजाना उत्तराधिकारी के रुप में उनके बेटे पीयूष गोयल को सौंप दिया गया है।

बनिए बहुत धार्मिक होते हैं। हिन्दू धर्म की सबसे बड़ी धार्मिक प्रेस गीता प्रेस गोरखपुर देने वाले हनुमान प्रसाद पोद्दार और जय दयाल गोयनका भी अग्रवाल वैश्य समुदाय से थे। राम लला के लिए सबसे पहले बलिदानी कोठारी बंधु माहेश्वरी मारवाड़ी समुदाय से थे। दीवाली पर सबसे लंबी पूजा वही करवाते हैं। वे ही सबसे ज्यादा मथुरा और वृंदावन जाते हैं। लक्ष्मी को भी उनके यहां ही रहना पसंद आता है। इस बारे में हरियाणा में किसी जाट मित्र ने एक किस्सा सुनाया कि एक जाट ने अपने घर में हनुमानजी की मूर्ति स्थापित कर ली। एक दिन शाम को खूंटा नजर नहीं आया तो उसने भैंस की जंजीर हनुमानजी की टेढ़ी वाली टांग में बांध दी। कुछ देर बाद भैंस का घूमने का मन हुआ, उसने कुछ झटके मारकर मूर्ति उखाड़ डाली व बाहर चल पड़ी। मूर्ति उसके साथ घिसटती चली जा रही थी। रास्ते में एक मंदिर था, जहां लक्ष्मी की मूर्ति लगी थी। वे हनुमानजी की हालत देखकर हंस पड़ी। इस पर हनुमानजी नाराज होकर कहा, ज्यादा न हंस। वह तो तेरी किस्मत अच्छी है कि बनिया के यहां रहती है। अगर किसी जाट के पल्ले पड़ी होती तो कब की यह हंसी निकल गई होती।

साभार: Prakhar Agrawalराष्ट्रीय अग्रवाल महासभा

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