सालिम सिंह की हवेली
SABHAR: https://upload.wikimedia.org/wikipedia/commons/d/d4/Salim_Singh_ki_Haveli_06.jpg
सालिम सिंह की हवेली छह मंजिली इमारत है, जो नीचे से संकरी और ऊपर से निकलती-सी स्थात्य कला का प्रतीक है। जहाजनुमा इस विशाल भवन आकर्षक खिंकियाँ, झरोखे तथा द्वार हैं। नक्काशी यहाँ के शिल्पियों की कलाप्रियता का खुला प्रदर्शन है। इस हवेली का निर्माण दीवान सालिम सिंह द्वारा करवाया गया, जो एक प्रभावशाली व्यक्ति था और उसका राज्य की अर्थव्यवस्था पर पूर्ण नियंत्रण था।
दीवान मेहता सालिम सिंह की हवेली उनके पुस्तैनी निवास के ऊपर निर्मित कराई गई थ। हवेली की सर्वोच्च मंजिल जो भूमि से लगभग ८० फीट की उँचाई पर है, मोती महल कहलाता है। कहा जाता है कि मोतीमहिल के ऊपर लकंी की दो मंजिल और भी थी, जिनमें कांच व चित्रकला का काम किया गया था। जिस कारण वे कांचमहल व रंगमहल कहलाते थे, उन्हें सालिम सिंह की मृत्यु के बाद राजकोप के कारण उतरवा दिया गया। इस हवेली की कुल क्षेत्रफल २५० x ८० फीट है। इसके चारों ओर अंतालीस झरोखे व खिंकियाँ है। इन झरोखों तथा खिंकियों पर अलग-अलग कलाकृति उत्कीर्ण हैं। इनपर बनी हुई जालियाँ पारदर्शी हैं। इन जालियों में फूल-पत्तियाँ, बेलबूटे तथा नाचते हुए मोर की आकृति उत्कीर्ण है। हवेली की भीतरी भाग में मोती-महल में जो ४-५ वीं मंजिल पर है, स्थित फव्वारा आश्चर्यजनक प्रतीत होता है। सोने की कलम से किए गए छतों व दीवारों पर चित्रकला के अवशेष आज भी उत्कृष्ट कला को प्रदर्शित करते हैं। इन प शिला पर कई जैन धर्म से संबंधित कथाएँ चिहृन, तंत्र व तीर्थकर व मंदिर आदि उत्कीर्ण है। प शिला पर उत्कीर्ण लेख के अनुसार इसका निर्माण काल १५१८ विक्रम संवत् है। मंदिर की बाहरी दीवारों पर भी विभित्र प्रकार की मूर्तियों का रुपांकन हुआ है। इस मंदिर के जाम क्षेत्र में काम मुद्राओं से युक्त मिथुन प्रतिमाओं का अंकन भी मिलता है। ये मूर्ति कला की दृष्टि से अत्यधिक महत्वपूर्ण है। इस मंदिर के ऊँचे शिखर के साथ-साथ अनेक लघु शिखर जिन्हें अंग शिखर कहा जाता है, भी चारों ओर क्रम से फैले हुए हैं। ये लघु शिखर देखने में मनोहारी प्रतीत होते हैं।
लेख साभार: विकिपीडिया
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