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Saturday, June 20, 2020

DEWAN NATHMAL KI HAVELI - दीवान नाथमल की हवेली, जयशलमेर

दीवान नाथमल की हवेली 

जैसलमेर में दीवन मेहता नाथमल की हवेली का कोई जबाव नहीं है। यह हवेली दीवान नाथमल द्वारा बनवाई गई है तथा यह कुल पाँच मंजिली पीले पत्थर से निर्मित है। इस हवेली का निर्माण काल १८८४-८५ ई. है। हवेली में सुक्ष्म खुदाई मेहराबों से युक्त खिंकियों, घुमावदार खिंकियाँ तथा हवेली के अग्रभाग में की गई पत्थर की नक्काशी पत्थर के काम की दृष्टि से अनुपम है। इस अनुपम काया कृति के निर्माणकर्त्ता हाथी व लालू उपनाम के दो मुस्लिम कारीगर थे। ये दोनों उस समय के प्रसिद्व शिल्पकार थे। हवेली का निर्माण आधा-आधा भाग दोनों शिल्पकारों को इस शर्त के साथ बराबर सौंपा गया था कि दोनों आपस में किसी की कलाकृति की नकल नहीं करेंगे, साथ ही किसी कलाकृति की पुनरावृत्ति नहीं करेंगे। इस बात का दोनों ने पालन करते हुए इसका निर्माण पूर्ण किया। आज जब इस हवेली को दूर से देखते हैं, तो यह पूरी कलाकृति एक सी नजर आती है, परंतु यदि ध्यान से देखा जाए तो हवेली के अग्रभाग के मध्य केंद्र से दोनों ओर की कलाकृतियाँ सूक्ष्म भित्रता लिए हुए हैं, जो दो शिल्पकारों की अमर कृति दर्शाती हैं। हवेली का कार्य ऐसा संतुलित व सुक्ष्मता लिए हुए है कि लगता ही नहीं दो शिल्पकार रहें हों।

साभार: https://commons.wikimedia.org/wiki/File:Nathmal_ki_Haveli.JPG

साभार: https://commons.wikimedia.org/wiki/File:Jaisalmer-Nathmal_Ki_Haveli-04-2018-gje.jpg

हवेली ७-८ फुट उँचे चबूतरे पर बनी है। एक चट्टान को काट कर इस भवन का निचला भाग बनाया गया है। इस चबूतरे तक पहुँचने हेतु चौडी सीढियाँ हैं व दोनों ओर दीवान खाने बने हैं। चबूतरे के छो पर एक पत्थर से निर्मित दो अलंकृत हाथियों की प्रतिमाएँ है। हवेली के विशाल द्वार से अंदर प्रवेश करने पर चौङा दालान आता है। दालान के चारों ओर विशाल बरामदे बने हैं। जिनके पीछे आवासीय कमरे बने हैं। द्वितीय तल पर संक की ओर मुख्य द्वार के ऊपर विशाल मोल बना हुआ है, जो कई प्रकार के चित्रों व त्रिकला से सुसज्जित है। इसकी छत लकड़ी  के परंपरागत छत के स्थान पर पत्थर के छोटे-छोटे समतल टुकङों को सुंदर काआर देकर केन्द्र में सुंदर फूल बनाकर चारों ओर पंखुंयों का आभास देते हैं, को जमाकर बनाया गया है। इस विशाल कक्ष में किसी प्रकार की कमानी या बीम आदि का संबंध नहीं किया गया है। यह तत्कालीन स्थापत्य कला का उत्रत उदाहरण है। हवेली में पत्थर की खुदाई के छज्जे, छावणे, स्तंभों, मौकियों, चापों, झरोखों, कंवलों, तिबरियों पर फूल, पत्तियां, पशु-पक्षियों का बङा ही मनमोहक आकृतियां बनी हैं। कुछ नई आकृतियां जैसे स्टीम इंजन, सैनिक, साईकल, उत्कृष्ट नक्काशी युक्त घोड़े , हाथी आदि उत्कीर्ण है। यहाँ तक की पानी की निकासी हेतु नालियों भी शिल्पकारों की छेनियों से अछूती नहीं रही है। 

साभार: विकिपीडिया

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