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Saturday, May 29, 2021

मुझे गर्व है कि मैं लाला हूँ

मुझे गर्व है कि मैं लाला हूँ

कुछ लोग स्वामी रामदेव जी को अपमानित करने के लिए "#लाला" शब्द का प्रयोग कर रहे हैं, वो लोग लाला को नही जानते"

लाला" वो हैं जिन्होंने गांव, शहर अपनी जमीनें स्कूल, धर्मशाला, हस्पताल बनाने में दी।

लाला वो हैं जिन्होंने अपनी कमाई से स्कूल हस्पताल, औषधालय, धर्मशालाएं बनवाई ।

लाला वो हैं जो सर्दी में ठिठुरते गरीब को कम्बल देने रात को निकलते हैं ।

लाला वो हैं जो मंदिरों में कमरे, बरामदे, घण्टे, कूलर, ऐसी लगवाते हैं ।
लाला वो हैं जो मंदिर बनवाते हैं ।

लाला वो हैं जो गरीबों के भोजन केलिए भंडारे चलाते हैं ।

लाला वो हैं जो गरीब की कन्याओं की शादियों में खर्च करते हैं ।

लाला वो हैं जो इस देश की अर्थव्यवस्था को चलाते हैं ।

लाला वो हैं जो इनकम टैक्स और gst से देश का खजाना भरते हैं ।

लाला वो हैं जिनके टैक्स के पैसे से सरकारें चलती हैं ।
लाला वो हैं जो व्यापार से पैसा कमाते हैं ।

लाला वो हैं...जिन्होंने देश मे प्राइवेट सेक्टर में सरकार से 10 गुना ज्यादा 30-40 करोड़ रोजगार पैदा किये हैं ।

और व्यापार करना कोई अपराध या असामाजिक कार्य नही है ।

इसलिए लाला शब्द का इस्तेमाल सम्मान देने केलिए करो ना कि अपमान करने के लिए ।

"साभार ललित अग्रवाल जी भिवानी की फेसबुक वॉल से ।"

मुझे गर्व है कि मैं लाला हूँ,
गर्व से कहो हाँ हम लाला हैं,
भामाशाह हैं,
सेठ हैं,
सूर्यवंशी हैं,
महाराजा अग्रसैन के वंशज है ।

#एक_रुपया_एक_ईंट जैसी महानतम समाजवादी नीति देने वाले महाराजा अगरसैन जी की बात आज यह प्रमाण करती है कि सभी 36 बिरादरी सहित पूरी दुनिया के लोगों को उन्होंने राह दिखायी है।
एक लाला

Tuesday, May 25, 2021

श्री अग्रवाल समाज केन्द्रीय समिति - इंदौर

 श्री अग्रवाल समाज केन्द्रीय समिति - इंदौर 


SUBODH KUMAR JAYASWAL - NEW CBI CHIEF

SUBODH KUMAR JAYASWAL - NEW CBI CHIEF 

CBI के नए बॉस:1985 बैच के IPS सुबोध कुमार जायसवाल CBI के नए डायरेक्टर बनाए गए, अभी CISF के चीफ हैं
 

सुबोध कुमार जायसवाल महाराष्ट्र के DGP और ATS चीफ रह चुके हैं।

1985 बैच के IPS सुबोध कुमार जायसवाल को CBI का नया डायरेक्टर बनाया गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में सोमवार को हुई हाई लेवल कमिटी की मीटिंग में इसका फैसला लिया गया। इस कमिटी में भारत के चीफ जस्टिस एनवी रमना और लोकसभा में विपक्ष के नेता अधीर रंजन चौधरी शामिल थे।

मंगलवार को पर्सनल मिनिस्ट्री ने उनकी नियुक्ति का ऑर्डर जारी किया। CBI डायरेक्टर का पद फरवरी से खाली है। अभी अतिरिक्त निदेशक प्रवीण सिन्हा इसके अंतरिम प्रमुख हैं।

दो साल पद पर रहेंगे

CBI चीफ की दौड़ में उत्तर प्रदेश के DGP एचसी अवस्थी, SSB के DG कुमार राजेश चंद्रा और गृह मंत्रालय के विशेष सचिव वीएसके कौमुदी आगे चल रहे थे, लेकिन आखिर में सुबोध कुमार जायसवाल का नाम फाइनल किया गया। वे दो साल तक इस पद पर रहेंगे। सुबोध कुमार जायसवाल महाराष्ट्र के DGP और ATS चीफ रह चुके हैं। अभी वह CISF के डायरेक्टर जनरल हैं। 58 साल के जायसवाल 2022 में रिटायर होंगे।

जासूसों के मास्टर माने जाते हैं जायसवाल

सीनियर IPS ऑफिसर सुबोध जायसवाल बेदाग छवि के अफसर माने जाते हैं। पुलिस सेवा में बेहतरीन काम के लिए उन्हें 2009 में प्रेसिडेंट पुलिस मेडल से भी नवाजा जा चुका है। जायसवाल को जासूसों का मास्टर भी कहा जाता है। उन्होंने रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (रॉ) में भी अपनी सेवाएं दी हैं। वह कैबिनेट सचिवालय में अतिरिक्त सचिव भी रह चुके हैं। जायसवाल ने कई बड़े मामलों की जांच लीड की है।

मुंबई पुलिस में रहते हुए वह करोड़ों रुपए के जाली स्टंप पेपर घोटाले की जांच करने वाली स्पेशल टीम के चीफ थे। साल 2006 में हुए मालेगांव विस्फोट की जांच भी सुबोध कुमार जायसवाल ने ही की थी। वह प्रधानमंत्री, पूर्व PM और उनके परिवारों की सुरक्षा करने वाले स्पेशल प्रोटेक्शन ग्रुप (SPG) के इंटेलिजेंस ब्यूरो में भी काम कर चुके हैं।

तीन बार NDA के एग्जाम में नाकामयाब हुए थे

36 साल के कैरियर में चार प्रधानमंत्रियों के साथ काम कर चुके सुबोध कुमार ने एक कार्यक्रम में बताया था कि वे झारखंड के छोटे से गांव से हैं। ग्रेजुएशन और MBA करते हुए उन्होंने तीन बार नेशनल डिफेंस एकेडमी (NDA) का एग्जाम दिया, लेकिन तीनों बार नाकामयाब रहे। उन्होंने तब बताया था कि UPSC का एग्जाम क्लियर करने के बाद उन्हें पता नहीं था कि इसके बाद नौकरी कौन सी मिलनी है।

साभार: दैनिक भास्कर 

Saturday, May 22, 2021

PRATHMESH JAJU - A YOUNG ACHIEVER

PRATHMESH JAJU - A YOUNG ACHIEVER



सफेद चांदनी को भूल जाइए, 55 हजार फ्रेम से बनी चांद की इस रंगीन तस्वीर पर अटकी हैं सबकी नजरें
चांद की तस्वीरें लेना किसी आम इंसान से लेकर ऐस्ट्रोफटॉग्रफर्स तक का पसंदीदा काम होता है। पिछले कुछ दिनों से चांद की एक बेहद खूबसूरत तस्वीर काफी चर्चित है जिसे कैमरे में कैद किया है पुणे के 16 साल के प्रथमेश जाजू ने। खास बात यह है कि बेहद साफ नजर आ रही यह तस्वीर दरअसल 55 हजार तस्वीरें मिलाकर बनाई गई है और इसमें 186 गीगाबाइट का डेटा लग गया।
कैसे बनी तस्वीर ?
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#प्रथमेश का कहना है कि उन्होंने पहले चांद के छोटे-छोटे हिस्सों के 38 वीडियो लिए। हर वीडियो में करीब 2000 फ्रेम हैं। उन्हें स्टेबलाइज करके एक-एक तस्वीर में तब्दील किया गया और फिर साथ में लगाया गया जिससे चांद की पूरी तस्वीर बनी। इसके लिए उन्होंने Celestron 5 Cassegrain OTA (टेलिस्कोप), ZWO ASI120MC-S सुपर-स्पीड USB कैमरा, SkyWatcher EQ3-2 माउंट और GSO 2X BARLOW लेंस का इस्तेमाल किया। फिर शार्पकैप की मदद से तस्वीरें लीं और उन्हें स्टेबलाइज किया।
रंगीन कैसे ?
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इस तस्वीर में चांद का रंग भी अलग दिख रहा है जैसा आमतौर पर नहीं देखा जाता। जाजू ने बताया है कि हर रंग चांद पर मिलने वाले खनिज दिखाता है। कैमरे की मदद से नीले रंग में ऐसे क्षेत्र हैं जहां लोहे, टाइटेनियम और ऑक्सिजन से बना इल्मेनाइट है और नारंगी और बैंगनी रंग वहां दिख रहा है जहां इसकी मात्रा कम है। जहां सूरज की रोशनी ज्यादा है, वहां सफेद या ग्रे रंग दिख रहे हैं।
सूरज की सिंदूरी तस्वीर
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कुछ दिन पहलेएक लाख तस्वीरों से बनी सिंदूरी सूरज की तस्वीर भी काफी चर्चित थी। यह इतनी साफ थी कि इसमें बन रही एक विस्फोट की स्थिति (solar flare) तक दिख रहा है। ऐस्ट्रोफटॉग्रफर ऐंड्रू मैककार्थी ने बताया था कि 230 मेगापिक्सल की यह तस्वीर उनकी ली हुई सबसे साफ तस्वीर है। वह तीन साल से सूरज और चांद की तस्वीर ले रहे हैं। यह तस्वीर लेने के लिए 100 फोटो प्रति सेकंड की रफ्तार से कुल 1 लाख तस्वीरें ली गईं और आखिर में यह तस्वीर निकली।
श्रेय :- नवभारत टाइम्स (NBT)
दिनांक :- ०७.०६.२०२१

TRIPTI GUPTA - A YOUNG SCIENTIST

 TRIPTI GUPTA - A YOUNG SCIENTIST



PARTH BANSAL - ऑक्सीजन की बर्बादी को रोकेगा इनोवेटर पार्थ का बनाया वाल्व, कीमत मात्र 10 रूपये

PARTH BANSAL - ऑक्सीजन की बर्बादी को रोकेगा  इनोवेटर पार्थ का बनाया वाल्व, कीमत मात्र 10 रूपये.

 
Innovator Parth Bansal 

कोविड के कारण उपजे संकट को देखते हुए कई किशोर-युवा अपने-अपने स्तर से इनोवेशन कर रहे हैं। उनका एक ही उद्देश्य है मरीजों की मदद करना। कोरोना काल में इन्होंने कई जरूरतमंदों तक भोजन एवं राशन आदि पहुंचाया है।

 हम सब देख रहे हैं कि कैसे इन दिनों ऑक्सीजन के लिए लोगों को जद्दोजहद करना पड़ रहा है। अस्पतालों में ऑक्सीजन की पर्याप्त आपूर्ति नहीं हो पा रही, तो वहीं घर में क्वारंटाइन मरीजों के सामने भी चुनौती पेश आ रही है। सभी जानते हैं कि कैसे ऑक्सीजन की कमी से बड़ी संख्या में संक्रमितों की मौतें हुई हैं। इसी बीच, आइआइटी कानपुर के ऑक्सीजन ऑडिट सिस्टम एप से खुलासा हुआ है कि उत्तर प्रदेश के अस्पतालों में 20 से 25 फीसदी ऑक्सीजन बर्बाद हुई।

दरअसल, सरकार ने संस्थान को सभी अस्पतालों की एक समग्र रिपोर्ट तैयार करने को कहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसा जानकारी के अभाव में हुआ हो सकता है। फिलहाल, रिपोर्ट के आने का इंतजार है। ऐसे में किशोर इनोवेटर पार्थ बंसल का मानना है कि ऑक्सीजन की बर्बादी को रोका जा सकता है।




राष्ट्रीय बाल पुरस्कार से सम्मानित हो चुके पार्थ ने एक ऐसा वाल्व विकसित किया है, जिसे ऑक्सीजन मास्क के साथ जोड़ दिया जाता है। जब भी मरीज उसे पहनता है, तभी वाल्व खुलता है और ऑक्सीजन की आपूर्ति शुरू होती है। पार्थ की मानें, तो अगर इस वाल्व को प्रत्येक ऑक्सीजन मास्क के साथ अटैच कर दिया जाए, तो ऑक्सीजन की बर्बादी काफी हद तक रोकी जा सकती है। वे बताते हैं, मैंने प्लास्टिक रिंग्स एवं वायर की मदद से इस वाल्व को तैयार किया है, जिसकी कीमत मात्र 10 रूपये है।

पार्थ ने इससे पहले भी हाथ में पहनने वाली एक ऐसी सरल डिवाइस बनाई थी, जो कोई भी अपने घर में आसानी से बना सकता है। इन्होंने घर में पड़ी चीजों से हाथ में घड़ी की तरह पहने जाने वाला सेैनिटाइजर स्प्रे बनाया है। जिसे किसी भी वक्त इस्तेमाल किया जा सकता है। ये घड़ी नुमा सैनिटाइजर छल्ले की तरह दिखता है। इनोवेशन के अलावा ये अक्सर ही अपने पिता एवं दादा के साथ लोगों की मदद करने में जुट जाते हैं। कोरोना काल में इन्होंने कई जरूरतमंदों तक भोजन एवं राशन आदि पहुंचाया है।

Thursday, May 20, 2021

SETH MATOL CHAND AGRAWAL

SETH MATOL CHAND AGRAWAL 

जगतसेठ भामाशाह की परंपरा के वाहक - "सेठ मटोलचंद अग्रवाल"

प्रथम स्वातंत्र्य समर (1857) के समय देश की जनता ने तन-मन-धन से सहयोग दिया। धनाढ्‌य वर्ग भी इसमें पीछे नहीं रहा। उनमें से कुछ धनाढ्‌य ऐसे भी थे जिन्होंने भामाशाह की परम्परा को जीवन्त करते हुए अपना सारा धन स्वतंत्रता के संग्राम के लिए अर्पित कर दिया। उस काल के ऐसे ही भामाशाह का जीवन परिचय प्रस्तुत लेख में दिया जा रहा है

10 मई 1857 के दिन मेरठ में हिन्दुस्तानी सैनिकों ने ब्रितानियों को धूल चटाकर दिल्ली को भी ब्रितानियों की गुलामी से मुक्त करने में सफलता पाई थी। बहादुरशाह जफर से उनकी व्यक्तिगत पहचान थी। लाला मटोलचन्द अग्रवाल ने एक बार बहादुरशाह जफर के समक्ष प्रस्ताव रखा था कि वे हिन्दुओं की गो-भक्ति की भावना की कद्र करके गोहत्या पर प्रतिबंध लगाने का आदेश दें, जिसे बहादुरशाह ने स्वीकार कर लिया था। बादशाह ने अपना एक दूत डासना भेजा। उन्होंने बादशाह का पत्र लालाजी को दिया जिसमें उन्होंनेे दिल्ली पहुँचकर भेंट करने को कहा गया था। लाला मटोलचन्द अग्रवाल भगवान शिव के परम भक्त थे। सवेरे उठते ही उन्होंने भगवान शिव की पूजा अर्चना की तथा प्रार्थना की कि, "मैं देश के कुछ काम आ सकूं,ऐसीशक्तिदो।" लालाजी रथ में सवार होकर दिल्ली पहुँचे। बहादुरशाह जफर ने सूचना मिलते ही उन्हें महल में बुलवा लिया। बादशाह ने कहा- घ् सेठजी, हमारी सल्तनत ब्रितानियों से लड़ते-लड़ते खर्चे बढ़ जाने के कारण आर्थिक संकट में फँस गई है। हम सैनिकों का वेतन तक नहीं दे पाये हैं। ऐसी हालत में यदि आप हमारी कुछ सहायता कर सकें, कुछ रूपया उधार दे सकें, तो शायद हम इस संकट से उबर जायें। यदि दिल्ली की सल्तनत पर हमारा अधिकार बना रहा और ब्रितानियों की साजिश सफल नहीं हो पाई तो हम आपसे लिया गया पैसा-पैसा चुका देगें। '

लाला मटोलचन्द ने बादशाह के शब्द सुने तो राष्ट्रभक्ति से पूर्ण हृदय दुखित हो उठा। वे बोले, "में उस क्षेत्र का निवासी हूँ जहाँ के अधिकांश ग्रामीण महाराणा प्रताप के वंशज हैं। हो सकता है कि जब वे राणावंशी राजपूत मेवाड़ से इस क्षेत्र में आकर बसे हों, तो मेरे पूर्वज भी उनके साथ आकर बस गये हों। हो सकता है कि हम लोग भामाशाह जैसे दानवीर व राष्ट्रभक्त के ही वंशज हों। अतः हमारा यह परम कर्त्तव्य है कि विदेशी ब्रितानियों से अपनी मातृभूमि की मुक्ति के यज्ञ में कुछ न कुछ आहुति अवश्य दें। आप चिन्ता न करें जितना सम्भव हो सकेगा धन आपके पास पहुँचा दिया जायेगा।"

सेठ मटोलचन्द ने डासना पहुँचते ही अपने खजाने के सोने के सिक्के छबड़ो में भरवाये तथा उन्हें रथों व बैलगाड़ियों में लदवाकर दिल्ली की ओर रवाना कर दिया। जब ये सोने के सिक्कों से भरे छबड़े लाला जी के मुनीम ने बादशाह को पेश किये तो बादशाह अपने मित्र सेठजी की दरियादिली को देखकर भाव विभोर हो उठे। उन्होंने अपने वजीर से कहा-"मेरे राज्य में लाला मटोलचन्द अग्रवाल जैसे महान राष्ट्रभक्त दानी सेठ रहते हैं, इसका मुझे गर्व है।"

सेठ मटोलचन्द ने देश की स्वाधीनता के संघर्ष में अपना सारा खजाना अर्पित कर दानवीर भामाशाह का आदर्श प्रस्तुत किया। उन महान दानी सेठ की हवेली आज भी जीर्ण-शीर्ण अवस्था में डासना में खंडहर बनी हुई उस डेढ़ सौ वर्ष पुरानी गाथा की साक्षी हैं।

Wednesday, May 19, 2021

विश्व के सबसे अमीर समुदायों अग्रवाल, पारसी और यहूदी समुदायों की जीवटता

विश्व के सबसे अमीर समुदायों अग्रवाल, पारसी और यहूदी समुदायों की जीवटता


 धनलक्ष्मी की माया विचित्र है। अक्सर यह उन समुदायों पर मेहरबान होती हैं, जिनकी तादाद समाज में उतनी ही होती है, जितनी दाल में नमक। इतना ही नहीं, प्राय: देखा जाता है कि ये समुदाय इतिहास के जुल्मोसितम के शिकार होते हुए भी समृद्धि के मामले में औरों से बहुत आगे निकल जाते हैं। यहां हम ऐसे ही तीन अति अल्पसंख्यक समुदायों के बारे में बात करने जा रहे हैं- #यहूदी, #अग्रवाल और #पारसी । शुरुआत भारत के सबसे अमीर लोगों में गिने जाने वाले एक उद्योगपति #रामकृष्ण_डालमिया की कहानी से करते हैं, रामकृष्ण डालमिया का जन्म #राजस्थान के #शेखावाटी अंचल में एक #गरीब_अग्रवाल परिवार में हुआ था। उनकी प्रारंभिक पढ़ाई भी न के बराबर हुई थी। अपने जवानी की शुरुवाती दिनों में वो कलकत्ता चले गए और अपना व्यापार जमाया। वो शून्य से शरू करके अपनी मेहनत से शीर्ष तक पहुंचे। इन्होंने चीनी फैक्ट्री, सीमेंट, पेपर, बैंक, इंस्योरेंस कंपनी, बिस्कुट, एविएशन कंपनी और पब्लिकेशन के क्षेत्र में काम किया. कहा जाता था कि वो जिस कारोबार में हाथ डालते थे, वहां उन्हें सफलता उनके हाथ चूमते थी. अपनी मेहनत के बल पर वो भारत के शीर्ष उद्योगपतियों में शुमार हुए और खुद के आद्योगिक नगर #डालमिया_टाउनशिप की भी नींव रखी।
 
सिर्फ अपनी मेहनत, प्रतिभा और जोखिम उठाने की क्षमता के बल पर इतना आगे जाने की कहानियां हमारे पास कितनी हैं? अलबत्ता अमेरिका में ऐसी कहानियां बहुतायत में मिलती हैं, जिनमें ज्यादातर वहां के यहूदी समुदाय से जुड़ी होती हैं। फोर्ब्स ने बीते मार्च में दुनिया के सबसे अमीर लोगों की जो सूची जारी की है, उसमें चोटी के 50 नामों में 11 यहूदियों के हैं। इन नामों को गौर से देखें तो इनमें कम से कम पांच, यानी आधी के लगभग तादाद ऐसे लोगों की मिलेगी, जिनकी अमीरी में खानदानी दौलत का कोई योगदान नहीं है।

अमीरों की इस सूची में छठे नंबर पर हैं फेसबुक के मालिक मार्क जकरबर्ग, सातवें पर ओरेकल के लैरी एलिसन, बारहवें-तेरहवें पर गूगल के लैरी पेज और सर्जेइ ब्रिन। ये चारों अमेरिकी यहूदी साइबर अरबपति सबसे पहले अपने सॉफ्टवेयर कौशल के लिए, फिर अपनी व्यापारिक प्रतिभा के लिए जाने जाते हैं। कंप्यूटर हार्डवेयर के लिए मशहूर माइकल डेल को भी हम कमोबेश इसी श्रेणी में रख सकते हैं। लेकिन बाकी के छह यानी शेल्डन अडेल्सन, जॉर्ज सोरोस, माइकल ब्लूमबर्ग, जोसफ साप्रा, कार्ल आइकाह्न और जेम्स साइमन्स बैंकिंग, हेज फंड, मीडिया या कसीनो बिजनेस से जुड़े हैं- यानी पैसे से पैसा बनाने के कलाकार।

आम धारणा यही है कि बड़े उद्योगपति पैसों के खेल में माहिर होते हैं। उनके पास कुछ खानदानी दौलत होती है, जिसका इस्तेमाल वे व्यवस्था के दोहन में करते हैं। अगर वे पारंपरिक बिजनस समुदाय से आते हैं तो उन्हें बने-बनाए नेटवर्क का भी फायदा मिल जाता है। लेकिन इतिहास की उठापटक के शिकार बहुत छोटे समुदायों पर यह धारणा ज्यों की त्यों लागू नहीं होती। मसलन, अमेरिका में यहूदियों की संपन्नता को एक सीधी रेखा में देखना बिल्कुल गलत है। बीती सदी के पहले पांच दशकों में उनको वहां जबर्दस्त नस्लीय भेदभाव का सामना करना पड़ा था।

एक समय था जब अमेरिकी विश्वविद्यालयों में 40 फीसदी छात्र यहूदी पृष्ठभूमि से आते थे। फिर अचानक उनका 4 फीसदी का कोटा बांध दिया गया और नतीजन उनकी दो पीढ़ियों का बड़ा हिस्सा किसी यूनिवर्सिटी का मुंह भी नहीं देख पाया। यही वजह है कि अमेरिकी यहूदियों की एक बड़ी तादाद अपनी पहचान से ही कतराने लगी। आज भी कोई दावे के साथ नहीं कह सकता कि अमेरिका में कुल कितने यहूदी रहते हैं। जनगणना के आंकड़ों में उनका प्रतिशत 1.7 से 2.6 के बीच बताया जाता है।

#अमेरिका से वापस अमीर #भारतीयों की तरफ रुख करें, तो इस साल जारी #फोर्ब्स_इंडिया_2020 की सूची में टॉप दस में से एक में शुमार लक्ष्मी निवास मित्तल का अग्रवाल परिवार है। लक्ष्मी निवास मित्तल को स्टील किंग कहा जाता है। पांचवें पर पैलन मिस्त्री, आंठवे पर आदि गोदरेज, दोनों पारसी। 11वें बजाज परिवार, 14वें पर सुनील मित्तल और 20वें पर जिंदल परिवार ये तीनों अग्रवाल घराने हैं। वहीं दूसरी ओर 12वें पर सायरस पूनावाला, 18वें पर नुस्ली वाडिया पारसी समुदाय से हैं। यानी चोटी के 20 अमीर भारतीयों में आठ सिर्फ अग्रवाल और पारसी हैं। देश के सबसे मशहूर पारसी रतन टाटा इस सूची में कहीं पर भी आ सकते थे, लेकिन जिंदगी को लेकर अपने अलग नजरिये के चलते उन्होंने टाटा संस के सिर्फ एक फीसदी शेयर अपने पास रखे हैं।
विश्व की बहुचर्चित सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स जैसे फेसबुक, इंस्टाग्राम और व्हाट्सएप्प के मालिक यहूदी ज़ुकरबर्ग हैं तो वहीं भारत की एकमात्र सोशल मीडिया प्लेटफार्म Hike (हालांकि ये उतना पॉपुलर नहीं है) के निर्माता क्वीन भारती मित्तल हैं। भारतीय ऑनलाइन स्टार्टअप्स भी फ्लिपकार्ट से लेकर स्नैपडील और ओला से लेकर ओयो रूम्स तक के फाउंडर अग्रवाल हैं।
 
#अग्रवालों और #पारसियों के जीवन संघर्ष के बारे में भला कुछ बताने की जरूरत है? अग्रवालों के इतिहास में जाते हैं तो #सिकंदर के साथ महाविनाशक युद्ध में वो अपनी पितृभूमि #अग्रोहा से विहीन हो गए। उसके बाद अग्रवालों ने फिर अग्रोहा बसाया तो उस पर कुषाण, तोमर आदि शासकों के हमले हुए.. अंतिम हमला फ़िरोज़ शाह तुगलक ने किया था और अग्रोहा के ध्वंशावशेष से हिसार-ए-फ़िरोज़ा बनाया था। अग्रवालों को तो नागों में नाग काला और #बणियों में अग्रवाला जैसे तिरस्कार का भी सामना करना पड़ा। लाहौर जो अग्रवल उद्योगपतियों के गढ़ था वहाँ से 1947 के बटवारे के बाद लाखों अग्रवलों को पलायन करने पड़ा। पारसी समुदाय ऐसा है जिनके पास यहूदियों की ही तरह वापसी के लिए अपना कोई वतन नहीं है। पारसी और अग्रवाल पिछले हज़ार सालों से बेवतन हैं। बेवतनी इंसान को बहुत हद तक तोड़ती है, लेकिन कुछ हद तक मजबूत भी बनाती है। मुसीबत में एक-दूसरे की मदद करना और अच्छे दिनों में भी अपने लोगों से रिश्ता न तोड़ना ऐसे समुदायों की खासियत बन जाती है। व्यापार में यह आपसी भरोसा बड़े काम का साबित होता है।
 
आज अपने कठिन परिश्रम और उदारता के कारण भारतीय समाज में अग्रवालों और पारसियों का बहुत सम्मान है और दोनों समाज आज भारत की अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं।
 
साभार: प्रखर अग्रवाल
अध्यक्ष, राष्ट्रीय अग्रवाल महासभा

"ब्राह्मण-बनिया Hegemony"

"ब्राह्मण-बनिया Hegemony"



हाँ तो क्या है ब्राह्मण-बनिया hegemony जिससे वामपंथी इतने भयभीत रहते हैं की इन्होंने उसके ऊपर कई आर्टिकल्स लिख दिए.. आखिर ब्राह्मण-बनिया एक हो जाएंगे तो किसका फायदा होगा और किसका नुकसान ? जाहिर ही बात है ब्राह्मण-बनिया दोनों ही परम सात्विक, भगद्भक्त, और राष्ट्रवादी जातियाँ रहीं हैं तो इनकी एकता से सनातनियों फायदा होगा और धर्म-राष्ट्रविरोधी तत्वों का नुकसान... ब्राह्मण-बनिया कब कब एक साथ आये और इनके साथ आने से देश में क्या क्या चमत्कार हुए इसे लिखता हूँ-

"यह जाति  अपनी उदारता और दानशीलता के कारण ब्राह्मणों की सच्ची हितैषी व हमारे समय में मंदिरों का निर्माण करने वाली मुख्य जाति  थी ।" ~ W. Crook

सर्वप्रथम शुरुवात करते हैं द्वापर युग से.. द्वापर के अंत में अग्रोहा में शासन था महाराजा अग्रसेन का.. महाराज अग्रसेन जब अपने भाई बंधुओं के धोखे से परेशान होकर श्रीहीन राज्य हीन हो गए थे तब उनके तारणहार बने उनके कुलपुरोहित ब्राह्मण शिरोमणि महर्षि गर्ग। महर्षि गर्ग की ही आज्ञा से उन्होंने महालक्ष्मी जी का पूजन किया और उस समय का सबसे समृद्ध राष्ट्र अग्रोहा बसाया। उनके बचपन के मित्र थे शाकुन्त नाम के ब्राह्मण.. अग्रभागवत में डिटेल में वर्णन है की महाराज अग्रसेन ने अपने ब्राह्मण मित्र शाकुन्त की ही प्रेरणा से एक रुपये और एक ईंट का सिद्धान्त दिया था जो वैदिक समाजवाद का प्रथम दर्शन था जो अग्रोहा और अग्रवालों का प्रतीक बना। महाराज अग्रसेन के अपने राज्य में रत्नजड़ित श्री पीठ का निर्माण करवाया फ जिसमें दिन रात वेदों में पारंगत ब्राह्मण भगवती श्री की स्तुति किया करते थे।

पुरं मध्ये वर्धमानं श्रीपीठे रत्नसंसकृते।
आराध्यते ह्योरात्रं #द्विजाः वेदविदां वराः॥ (श्री अग्रभागवत)

ब्राह्मणों और वैश्यों की दूसरी संधि आयी जब सम्राट श्रीगुप्त ने गुप्त साम्राज्य की स्थापना की। गुप्त वंश धारण गोत्रीय था जो अग्रवालों के 18 गोत्रों में से एक है। इतिहासकारों के अनुसार गुप्त वंश गौ, गोविंद और ब्राह्मण के भक्त थे। गुप्त वंश विशुद्ध सनातनी पौराणिक वंश था जिसके राज्य में विशुद्ध ब्राह्मणवाद अपने चरम पर था। इतिहासकार गुप्तवंश को ब्राह्मणवाद का गोल्डन पीरियड मानते हैं। जिसमें जन्में स्कन्दगुप्त ने उन शकों-हूणों को काट के फेक दिया था जिनसे बचने के लिए चीन ने अपनी दीवार बनवाई थी।

जब विप्रकुल श्रेष्ठ चाणक्य ने अखंडभारत का सपना संजोया तो सबसे पहले वैश्यों ने आगे बढ़कर उनको अपनी विपुल धन संपदा दान कर दी थी।

1857 की क्रांति में बनिया-ब्राह्मण हेगीमोनी - सेठ बांठिया मूल रूप से बीकानेर रियासत का मारवाड़ी व्यापारी था जब ग्वालियर पर रानी लक्ष्मी बाई , नाना साहेब और तांत्या टोपे का हमला हुआ तब सेठ बांठिया ने ग्वालियर का खज़ाना इनकी सेना के खर्च पूर्ति हेतु इन्हें ही सौंप दिया अंग्रेज सरकार ने इस घटना को राजद्रोह मानकर सेठ अमरचंद बांठिया’ बीकानेर वाला’ को फांसी पर चढा दिया। इसी तरह जब तांत्या टोपे भागकर जयपुर से लालसोट होते हुए सीकर पहुंचे, सेठ रामप्रकाश अग्रवाल ने गहने और धन देकर उनकी मदद की।

आजादी की लड़ाई में एक बार फिर वैश्यों और ब्राह्मणों की एकता ने अपना असर दिखाया। जहाँ अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन का नेतृत्व गरमदल की तिगड़ी लाल बाल पाल ने सबसे तीव्र स्वर में नेतृत्व किया। जिसमें लाल थे अग्रवाल वैश्य लाला लाजपत राय और बाल थे मराठी ब्राह्मण बाल गंगाधर तिलक।

एक बार राजा कृष्ण देव राय ने अपने दरबारी ब्राह्मण शिरोमणि तेनाली राम से पूछा था - "तेनाली चातुर्वर्ण में सबसे होशियार और तेज दिमाग जाती कौन सी है?" तो तेनाली ने उत्तर दिया "महाराज! वैश्य" और इसे उन्होंने महाराज के सामने साबित भी किया।

उसके बाद जब राजनीति में मोध वैश्य महात्मा गांधी का पदार्पण हुआ जिसने भारतीय आंदोलन को नई दिशा दी। सत्याग्रह और अहिंसा जैसे अस्त्र दिए। उनके गुरु थे एक ब्राह्मण गोखले। महात्मा गांधी की सलाहकार टीम में 5 ब्राह्मण थे। महात्मा गांधी के आने के बाद देश के राजनीतिक आंदोलन को बहुत तेजी मिली थी। आज हरिजन, किसान, मजदूर आदि जो तबका स्वतंत्रता संग्राम से दूर था वो तबका महात्मा गांधी के प्रयासों से आज मुख्य धारा के साथ कंधे से कंधा मिलाकर लड़ रहा था। उन्होंने ही अम्बेडकर की दलित तबको को हिन्दू धर्म से अलग करने की साजिश को नाकाम किया था।

ब्राह्मणों ने हिन्दू धर्म के शास्त्र लिखे लेकिन कालांतर में कलयुग के प्रभाव के चलते लगभग लुप्त हो चुके श्रीमद्भागवत गीता, रामायण, महाभारत आदि शास्त्रों को छापने और न्यूनतम मूल्य पर और सबसे सटीक व्याख्या कर जन-जन तक पहुंचाने का काम वैश्यों ने किया. हिन्दू धर्म की सबसे बड़ी धार्मिक प्रेस गीता प्रेस गोरखपुर बनाकर। और इस प्रेस को धार्मिक भगवद्भक्त ब्राह्मणों से बहुत सहयोग मिला।

जब जब ब्राह्मणों में मालवीय और करपात्री जी जैसा नेतृत्व उठा उनका समर्थन डालमिया और बिड़ला जैसे कतिपय वैश्यों ने किया। महामना पं मदन मोहन मालवीय के बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के निर्माण में सेठ दामोदरदास राठी ने 11000 चांदी के कलदार सिक्के उन्हें भेंट किये थे. उनके बनाये बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के परिसर में मालवीय जी के कहने पर सेठ घनश्यामदास बिड़ला जी ने काशीविश्वनाथ मंदिर बनवाया. पं मदन मोहन मालवीय के आग्रह पर बिड़ला और डालमिया परिवार ने श्री कृष्ण जन्मभूमि पर भव्य मंदिर का निर्माण करवाया था.

सनातन श्रेष्ठता दिखाने के लिए कृष्ण जन्मभूमि मंदिर का शिखर मस्जिद से ऊंचा होगा इसकी रूप रेखा एक वैश्य हनुमान प्रसाद पोद्दार और एक ब्राह्मण अखंडानंद सरस्वती ने मिलकर तय की थी। हनुमान प्रसाद पोद्दार जी ने संत समाज के साथ मिलकर अयोध्या मस्जिद में श्रीपति भगवान के बाल स्वरूप का प्राकट्य भी करवाया था।

इसके बाद आजाद भारत में सब जानते हैं गांधी जी के उत्तराधिकारी बने थे ब्राह्मण नेहरू.. मोदी जी के अलावा वो ही एक ऐसे प्रधानमंत्री थे जिन्होंने कुंभ में स्नान किया था। जिन्होंने भारतवर्ष का पुनर्निर्माण किया था। देश में IIT, AIMS, IIMS, IISC आदि संस्थानों की नींव रखी। देश में मल्टीनेशनल कंपनियों का जाल बिछा दिया। उनके ही आग्रह पर एक वैश्य विक्रम साराभाई ने भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान केंद्र बनाया जिस संस्था ने भारत की अंतरिक्ष सफलता कई झंडे गाड़े।

अगर हम पाटीदार वल्लभ भाई पटेल को वैश्य माने (क्योंकि गुजरत मे पाटीदारों की गिनती वैश्यों में ही होती है) तो भारत को अखंड भी ब्राह्मण-वैश्य जोड़ी ने ही किया था।

अंग्रेजों और बाद में अंग्रेजों के दलालों को एक्सपोज़ करने का काम किसने किया ये तो आप सब जानते ही हैं। वो थे "राजीव दीक्षित जी" - जिनके गुरु थे "प्रोफ़ेसर धर्मपाल अग्रवाल"। गुरु शिष्य की इस जोड़ी ने अंग्रेज़ी दलालों की चूले हिला दी थीं।

देश मे विज्ञान के क्षेत्र में पहला नोबल लाये थे सी. वी. रमन लाये थे.. सी. वी. रमन एक गरीब परिवार से थे लेकिन बहुत मेधावी थे। उनको अपने ऊपर विश्वास था कि मैं नोबल जीत सकता हूँ इसके लिए उन्हें स्पेक्टग्राफ खरीदना था । इसके लिए वो बिड़ला जी के पास पहुंचे और उन्हें समझाया। बिड़ला जी इसके लिए तैयार हुए और रमन साहब को आर्थिक सहायता दी and rest is history....

आजादी के बाद बहुत से मौकों पर ब्राह्मण वैश्यों ने एक होकर देश के लिए कई कार्य किये और देश का नाम रौशन किया बल्कि अगर हम कहें की आधुनिक भारत को किसी ने बनाया है तो वो यही दो जातियों ने बनाया है तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। देश में असंख्य संस्थान और मल्टीनेशनल कम्पनीज स्थापित करके भारत की जीडीपी, रोजगारी और ग्रोथ को बढ़ाने का काम वैश्य और ब्राह्मणों ने ही किया है.. तो इससे आसानी से समझा जा सकता है की ब्राह्मण और वैश्य एकता से वामपंथियों को इतनी चिढ़ क्यों है?

वो अक्सर पूछते रहते हैं कि आखिर ब्राह्मण बनिया hegemony कब खत्म होगी? तो ये भी जान लीजिए कि लक्ष्मी और सरस्वती के पुत्रों की ये संधि हमेशा युहीं बनी रहेंगी।

साभार: © प्रखर अग्रवाल, अध्यक्ष (राष्ट्रीय अग्रवाल महासभा)

PADMSHREE - DR. K . K. AGRAWAL, A GREAT CORONA WARRIOR

LT.  PADMSHREE - DR. K . K. AGRAWAL, A GREAT CORONA WARRIOR



Monday, May 10, 2021

GANGAPUTRA GURUDAS AGRAWAL - गंगापुत्र गुरुदास अग्रवाल ( स्वामी सानंद)

GANGAPUTRA  GURUDAS AGRAWAL - गंगापुत्र गुरुदास अग्रवाल ( स्वामी सानंद)
 

गंगा की अविरलता के लिए अपने प्राण त्यागने वाले स्वामी सानंद केवल एक संत ही नहीं थे, बल्कि एक विश्व विख्यात प्रोफेसर भी थे। प्रख्यात पर्यावरणविद् और आईआईटी कानपुर के प्रख्यात प्राध्यापक रहे प्रो. जीडी अग्रवाल(स्वामी ज्ञान स्वरुप सानंद) का जन्म 20 जुलाई को उत्तर प्रदेश में हुआ था।

स्वामी ज्ञानस्वरुप सानंद महात्मागांधी चित्रकूट ग्रामोद्योग विश्वविद्यालय(म.प्र.) में मानद प्रोफेसर भी थे। स्वामी सानंद 22 जून 2018 से गंगा एक्ट को लेकर अनशन पर थे। प्रो. जीडी अग्रवाल ने 2009 में भागीरथी नदी पर बांध के निर्माण को रुकवाने के लिए अनशन किया था और उन्होंने इसमें सफलता भी पाई थी। इन्होंने तत्कालीन कांग्रेस सरकार को झुका दिया था।
 
कांधला में हुआ था जन्म
 
प्रो. केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के पहले सचिव और राष्ट्रीय नदी संरक्षण निदेशालय के सलाहकार भी रहे थे। पर्यावरण के क्षेत्र में प्रो. अग्रवाल को अग्रणी स्तर का ज्ञान था।
प्रो. अग्रवाल का जन्म 1932 में मुजफ्फरनगर के गांव कांधला में हुआ था। उन्होंने आईआईटी रुडक़ी, कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय, बर्कले से सिविल इंजीनियरिंग और पर्यावरण के क्षेत्र में शिक्षा ग्रहण किया था और 17 साल तक आईआईटी कानपुर को अपनी सेवाएं दी थी।
 
. अग्रवाल की उपलब्धियां
 
- उत्तर प्रदेश राज्य सिंचाई विभाग में डिजाइन इंजीनियर के रूप में काम की शुरुआत
- बर्कले में कैलिफोर्निया विवि से पर्यावरण इंजीनियरिंग में पीएचडी की उपाधि
- मध्य प्रदेश के चित्रकूट में महात्मा गांधी चित्रकूट ग्रामोदय विवि में पर्यावरण विज्ञान के मानद प्रोफेसर
- आईआईटी कानपुर के सिविल इंजीनियरिंग और पर्यावरण विभाग में हेड
- 1979-80 में प्रथम सचिव और राष्ट्रीय नदी संरक्षण निदेशालय के सलाहकार
- रुड़की विवि में पर्यावरण इंजीनियरिंग के लिए अतिथि प्रोफेसर
- फिलहाल महात्मा गांधी चित्रकूट ग्रामोदय विश्वविद्यालय में पर्यावरण विज्ञान के मानद प्राध्यापक (ऑनरेरी प्रोफेसर) थे।
- पर्यावरणीय गुणवत्ता में सुधार के लिए नीति बनाने और प्रशासनिक तंत्र को आकार देने वाली विभिन्न सरकारी समितियों के सदस्य रहे
- सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट नई दिल्ली के अग्रणी संस्थापक
- 2002 में आईआईटी कानपुर में उनके पूर्व छात्रों ने उन्हें सर्वश्रेष्ठ शिक्षक पुरस्कार प्रदान किया।
- अपने प्रयास से उत्तराखंड में गंगा नदी पर बन रही कई परियोजनाओं के निर्माण को रुकवाया।
- 2011 में एक हिंदू संन्यासी बन गए और उन्हें स्वामी ज्ञान स्वरूप सानंद सरस्वती के नाम से जाना गया।

RAJA PURANMAL GUPT - राजा पूरणमल गुप्त का इतिहास

RAJA PURANMAL GUPT - राजा पूरणमल गुप्त का इतिहास

चंदेरी को चित्तौड़ के राणा सांगा ने सुलतान महमूद खिलजी से जीतकर अपने अधिकार में कर लिया था। लगभग सन् १५२७ में मेदिनी राय नाम के एक राजपूत सरदार ने, जब अवध को छोड़ सभी प्रदेशों पर मुगल शासक बाबर का प्रभुत्व स्थापित हो चुका था, चंदेरी में अपनी शक्ति स्थापित की। फिर मुगलो को हराकर पूरनमल गुप्त के समय चंदेरी के दुर्ग ओर आक्रमण किया था लेकिन शेरशाह सूरी इस दुर्ग को जीत पाने में असमर्थ सिद्ध हुआ तो शेरशाह सूरी ने धोखे से संधि वार्ता के बहाने छल से पूरणमल गुप्त की हत्या कर दी और अंत में शेरशाह ने आक्रमण किया।शेरशाह सूरी ने कत्लेआम की आज्ञा दी और भयंकर मारकाट के बाद किले को जीत लिया
 
 राजा पूरणमल गुप्त मुगल काल और सूरी वंश के समय मे चंदेरी के शासक थे। राजा पूरणमल के पूर्वजो की जड़े गुप्त वंश(धारण गोत्र) के वैश्य राजाओं में जाकर मिलती है। चंदेरी का प्राचीन नाम चंद्रनगर था। गुप्त वंश के राजा चंद्रगुप्त विक्रमादित्य ने यहां पर किले का निर्माण करवाया था।उन्ही(चंद्रगुप्त विक्रमादित्य) के नाम से यह जगह चंद्रनगर( चंद्रपुर) नाम से जानी गई थी। चंद्रनगर से अपभ्रंश होकर यह नगर चंदेरी के नाम से प्रसिद्ध हुआ । गुप्त वंशी वैश्य चंदेरी के शासक होने के कारण चंदेरी के नाम पर चंदेरी(चंदेरिया/चंदेलिया) नाम से प्रसिद्ध है|गुप्त वंश की चंदेरी(चंदेरिया/चंदेलिया) शाखा के लोग मध्यप्रदेश, राजस्थान,पंजाब में निवास करते है।चंदेरी किले के निर्माण पर कुछ दूसरे वंश भी दावा प्रस्तुत करते हैं। लेकिन सबसे ज्यादा प्रामाणिक दावा गुप्त वंश के वैश्य राजा चंद्रगुप्त विक्रमादित्य का ही सिद्ध होता है चंदेरी के गुप्त वंश के पश्चात यह किला मालवा के वैश्य महाराजा यशोधर्मन के अधिकार में रहा था। यशोधर्मन के पश्चात चंदेरी का किला अलाउद्दीन ख़िलजी ,तुगलक वंश ,लोधी वंश , और मालवा के सुल्तान महमूद ख़िलजी के अधीन रहा था । 1527 ईस्वी में मैदिनी राय खंगार ने मालवा के सुल्तान के समय चंदेरी पर कब्ज़ा कर लिया था। लेकिन 1528 ईस्वी में बाबर ने मेदिनीराय खंगार को हराकर चंदेरी किले को जीत लिया था। बाबार के समय मुगलिया अत्याचार से जब चंदेरी की जनता त्राहि त्राहि कर रही थी उस समय एक वैश्य यौद्धा पूरणमल चंदेरी का उद्धारक बनके उभरा था। मुगल सेना और पूरणमल वैश्य के मध्य 1529 ईस्वी में भयंकर युद्ध हुआ जिसमें मुगलो ने गुप्तो के आगे युद्ध भूमि में घुटने टेक दिए इस तरह अविजित मुगलो ने प्रथम बार मध्य भारत मे हार का स्वाद चखा था। भारत भूमि के पुत्र पूरणमल गुप्त ने मुगलो की रक्त सरिता में स्नान कर, भारत माता की आत्मा को तृप्त किया था। चंदेरी के किले पर चंद्रगुप्त के वंशज राजा पूरणमल गुप्त का अधिकार हो गया था। गुप्तो ने चंदेरी का चौमुखी विकास किया था। चंदेरी के दुर्ग को सुरक्षित अभेद किले के रूप में परिवर्तित करने के लिए किले में नवीन निर्माण किए गए थे। पूरणमल गुप्त ने मुगलो के सेनायनक(पठान) को जिस जगह काटा था आज वो खूनी दरवाजा कहलाता है। बाद में चुन चुनकर मुगल तुर्को को इस ही जगह (खूनी दरवाजे) पर मौत के घाट उतारा गया था। तब से इसी खुनी दरवाजे पर शत्रु के रक्त का अभिषेक किया जाता है।अर्थात शत्रुओ को खूनी दरवाजे पर मृत्यु दंड दिया जाता था। दिल्ली के अफगान सुल्तान शेरशाह सूरी ने 1542 ईसवी के अंत मे चंदेरी पर आक्रमण किया था। बाबर के समय शेरशाह सूरी ने चंदेरी के 1528 ईस्वी के युद्ध मे एक सैनिक के रूप में भाग लिया था। शेरशाह ने सोचा कि पल भर में चंदेरी को जीत लेगा लेकिन भविष्य में शेरशाह का सामना उन गुप्त वीरो से होने वाला था जिन्होंने रण भूमि में वीरगति या विजय को अपना लक्ष्य बना रखा था।शीघ्र ही शेरशाह को पता चल गया कि उसका पाला सवा शेरो से पड़ गया है। चार महीने तक लाख प्रयत्न करने के बाद भी शेरशाह को युद्ध क्षेत्र में सिर्फ नाकामी हाथ लगी थी। रणक्षेत्र में हर बार विजयश्री का सेहरा राजा पूरणमल के सिर पर ही बंधा था। गुप्तो ने अपनी युद्ध कौशलता वीरता,साहस के दम पर अफगानों को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया था जब युद्ध क्षेत्र में विजय की कोई भी आश शेष नही बची थी । तब अफगानी लोमड़ी शेरशाह ने छल कपट का सहारा लिया शेरशाह ने अपना शांति दूत चंदेरी के राजा पूरणमल के पास भेजा दूत ने शेरशाह का संदेश राजा को सुनाते हुए बताया कि शेरशाह आपकी वीरता का मुरीद हो गया है अतः वो ऐसे वीर यौद्धा से युद्ध की जगह मित्रता (संधि) करना चाहता है। राजा कुरान की सौगंध के साथ भेजे इस संदेश पर विश्वास करते हुए किले से बाहर आकर संधि वार्ता करने के लिए शेरशाह के कैम्प में आ गया था। लेकिन शेरशाह ने मित्रता की आड़ में निहत्थे राजा की पीठ में खंजर घोप कर उसकी हत्या कर दी जब यह खबर किले में पहुँची तो महिलाओं और बच्चो को गुप्त रास्ते से सुरक्षित क्षेत्रो में भेज दिया गया था आज वो लोग चंदेरी से आने के कारण चंदेरी(चंदेरिया/,चंदेलिया) ,गोत्र के कहलाते हैं। किले में शेष बचे सैनिकों और वीरांगनाओ ने कायर की तरह मरने के बजाए युद्ध भूमि में प्राणों का बलिदान देना अपना सनातन धर्म समझा इसके बाद भयंकर कत्ले आम हुआ था।एक और भारतीय राजा अफगानों की छल का शिकार हुआ था।इसी के साथ भारत के एक स्वर्णिम अध्याय का दुःखद अंत हुआ

दोसर वैश्य कब कहाँ कैसे : Dosar Vaish Ka Itihas

दोसर वैश्य कब कहाँ कैसे : Dosar Vaish Ka Itihas

दोसर वैश्य कब कहाँ कैसे (Dosar Vaish): जबसे मैंने अपने समाज के कार्यक्रमों में भाग लेना प्रारंभ किया तो कोई न कोई चर्चा इसी बिंदु पर आकार रुक जाती कि हम “दोसर वैश्य” कैसे कहलाये इस विषय को लेकर हम वर्षो तक मंथन ही करते रहे | लेखक क्षेत्र से जुड़े होने के कारण इतिहास की पुस्तकों से हमारे समाज का जो इतिहास बना वह बड़ा ही संघर्ष पूर्ण मना गया | समाज के कुछ ही लोगो को सायद ज्ञात होगा कि यह समाज क्या था | हमने जो इतिहास का विश्लेषण किया वह बड़ा ही रोचक एवं सत्य के करीब निकला | दोसर वैश्य नाम हमे 1556 के बाद दिया गया जो आज तक प्रचलित है.
 
11 फरवरी 1556 के दिन दिल्ली के शासक हिमायुं की मृत्यु के बाद दिल्ली की सत्ता पाने के लिए अनेक राजपूत राजाओ ने कोशिश की पर वर्तमान के अफगान शासक अहमद शाह के भारतीय प्रतिनिधि “हेमू” वैश्य ने अपनी सूझ बुझ एवं सैन्य संगठन के बाल पर 7 अक्टूबर 1556 को दिल्ली के गवर्नर तरदी बेग को परास्त करे सत्ता पर आधिपत्य करके अपने को देश का शासक घोषित करते हुवे “हेम चन्द्र विक्रमादित्य” के नाम से अलंकृत किया | कुछ दिनी बाद वह युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुवे जिससे सत्ता सदैव के लिए मुस्लिमो के हाथो चली गयी जो बाद में अकबर जो उस समय बालक ही था बैरम खां के सानिध्य में शासन चलने लगा “हेमू” के पतन के बाद बैरम खां द्वारा समस्त वैश्य समाज को मारा काटा जाने लगा तो अन्य वैश्यों के दरबारियों ने कहा कि “हेमू तो ढूसी वैश्य थे इन्ही के समाज के लोगो ने सत्ता के लिए युद्ध किया था फिर क्या था ढूढ-ढूढ कर हमारे समाज के युवको व वर्द्धो को मारा गया | विवश होकर समाज के बचे बंधू उत्तरपूर्ण की ओर पलायन कर गये | “ढूसी” ग्राम आज भी हरियाणा प्रान्त में राजस्थान सीमा के करीब गुडगाव जनपद में रेवाड़ी कस्बे के पास स्थित अरावली पर्वत श्रंखला में स्थित है | उस समय हमारा समाज कृष्ण भक्त था ‘हेमू’ के चाचा नवल दास उच्चकोटि के संत एवं लेखक थे उन्ही द्वारा अपने गुरु के सम्मान में लिखी गई पुस्तक “रसिक अनन्यमाला” का दोहा देखे

“श्री हित हरिवंश के शिष्य है जान |
दुसर कुल पवन कियो जिनको करौ बखान”
हेम चन्द्र विक्रमादित्य

एक और प्रमाण देखे उत्तर भारत में केवल हमारे ही समाज में विवाह में वधू को निगोड़ा पहनाया जाता है | तो अन्य किसी भी समाज में नहीं चलता है, जबकि आज भी हरियाणा एवं राजस्थान की सीमा के अन्दर कुछ क्षेत्रो में निगोडो का चलन है, एक राजस्थानी गाना भी निगोडा को लेकर बना है |

हेमचन्द्र विक्रमादित्य हेमू के वीरगति प्राप्त होने के बाद यह समाज वर्षो तक तितर-बितर रहकर 16वि शताब्दी के आस-पास गंगा नदी के किनारे आ गया | उस समय यहां के शासक रजा कर्ण सिंह थे जो व्यापारिक नगर का निर्माण करने की योजना बनाये थे | उन्होंने ने हम वैश्यों को गंगा नदी के उत्तर एवं दक्षिण क्षेत्र को आवंटित करके उस क्षेत्र को ‘वैश्य वारा’ के नाम से घोषित कर दिया जो बिगड़ कर आज “वैसवारा’ के नाम से जाना जाता है |
ब्रिटिश शासन काल में 1880 में विभिन्न जनपदों में वैश्य समाज की गणना करायी गई | उसमे भी पैरा छ: में स्पष्ट निर्देशित किया गया की दोसर वैश्य का मूल स्थान दिल्ली ही है | इतिहासकार डॉ मोतीलाल भार्गव द्वारा किये गए शेष “हेम और उनका युग” में कहा गया है ढूसी जो हेमू का जन्म स्थल था | वहां के वैश्यों को दूसी वैश्य कहा जाता था जो बाद में दूसर वैश्य एवं वर्तमान में दोसर वैश्य कहे गए. (Dosar Vaish)

हमारा समाज पहले शस्त्रों का व्यापर करता था तभी इस समाज के लोग राज्य सत्ता के आसपास या गांगो में जमीदारो के करीब रहकर उनकी अर्थव्यवस्था एवं शस्त्रों की व्यवस्था देखते थे 1857 के संघर्ष में फिर वैसवारा के हमारे दोसर वैश्य समाज में स्वत: का विगुल फूंका जिन्हें अंग्रेजो ने दबाकर उत्पीडन करना सुरु कर दिया | आज अन्य प्रान्तों में जोभी हमारे बंधु चाहे रंगून हो नागपुर कोलकाता या अन्य प्रदेशो में निवास कर रहे हो | वह मूलतः वैसवारा के ही रहने वाले है जो 1857के बाद ही पलायन कर गए थे जैसा कि उन लोगो ने समय-समय पर स्वीकारा भी है |

1980 तक हमारे समाज के अनेक बन्धु आजीवन ग्राम प्रधान बने रहे पर गावो से निकल कर शहर कस्बो में बसने के कारण वह राजनीति की वह भागीदारी न कर पाए जो करनी थी | फिर भी दस वर्षो से कुछ लोग खुलकर शासन प्रशासन में स्थान बनाये है | इस बार के स्थानीय निकाय के चुनाव में अनेक स्थानों पर सभासद एवं नगर पालिका के प्रमुख पदों पर जीते भी है तो कुल बन्धु विधायक बने एवं सांसद का चुनाव लड़ने की सोच भी रहे है |

वर्तमान समय में इस समाज के अनेक युवक युवतियां प्रशासनिक क्षेत्र में प्रवेश कर चुके है | कुछ तैयारी भी किये है पर अपेक्षित शिक्षा के अभाव में जन संख्या के अनुपात में विकास से वह काफी दूर है | मैंने इन सब विषयों को लेकर पुस्तक की रचना की है जो किन्ही कारण वश प्रकाशित नही हो पाई है जिसमे हमारे समाज का पूरा इरिहास समाहित है.
 
साभार:   
राममनोहर वैश्य
बेनीगंज हरदोई (UP)
Mo. 9795959745

SANJAY GUPTA FILM DIRECTOR

SANJAY GUPTA FILM DIRECTOR


संजय गुप्ता एक भारतीय फिल्म निर्माता-निर्देशक हैं। उन्हें हिंदी सिनेमा में फिल्म आतिश और कांटे जैसी फिल्मों के लिए जाने जाते हैं।

प्रष्ठभूमि
 
संजय गुप्ता का जनम 23 अक्टूबर 1969 को मुंबई में हुआ था।

संजय गुप्ता ने अपनी शुरूआती पढाई पाम बीच स्कूल मुंबई से सम्पन्न की है।उन्होंने स्नातक की पढाई सिडनीहैम कॉलेज चर्चगेट मुंबई से पूरी की है।

करियर
 
संजय गुप्ता ने अपने करियर की शुरुआत आतिश:फील द फायर से की थी। उसके बाद उन्होंने फिल्मों की पटकथा लिखना शुरू कर दिया।उन्होंने हिंदी सिनेमा कि कई बेहतरीन फिल्मों निर्माण-निर्देशन किया है। उनकी हालिया रिलीज फिल्म जज्बा ने हिंदी सिनेमा बॉक्स-ऑफिस पर काफी अच्छा कारोबार किया।

Filmography
YearFilmDirectorProducerWriterNote
1994Aatish: Feel the FireYesYesDeewaar,[8] A Better Tomorrow,[9] and State of Grace[10]
1995Ram ShastraYesYesBased on Hard to Kill
1997HameshaaYesYes
2000JungYesYesBased on Desperate Measures
2000KhauffYesYesBased on The Juror
2002KaanteYes[11]YesInspired by City On Fire and Reservoir Dogs [2][10]
2004PlanYesYesBased on Suicide Kings
2004MusafirYes[12]YesBased on U Turn
2006ZindaYes[13]YesBased on Oldboy
2007Dus KahaniyaanYesYesInspired by The Ten and Tales from the Crypt
Shootout at LokhandwalaYes
2008Woodstock VillaYesBased on Japanese movie Chaos
2010Acid FactoryYesBased on Unknown
PankhYes
2013Shootout at WadalaYes[14]YesYesBased on the book Dongri to Dubai
2015JazbaaYes[15]YesYesBased on Seven Days
2017KaabilYes[16]Inspired by Blind Fury and Broken [17][18]
2021Mumbai SagaYes[19]
2022RakshakYesYesDevelopment[19] Based on the graphic novel series by Yali Dream Creations called Rakshak [18]