KSHITIJ AGRAWAL - TEKILA GLOBAL SERVICES
अमेरिका में नौकरी करने गए युवक ने कैसे बना ली दो सौ करोड़ की कंपनी, पढ़ें बरेली के युवक की कहानी
अमेरिकी में भारतीय मेधा का परचम लंबे समय से लहरा रहा है। सिलिकान वैली में भारतीयों का वर्चस्व जगजाहिर है लेकिन एक भारतीय युवा ने देश में ही रहकर अमेरिका के कारोबार जगत में अपनी पकड़ बनाई है।
अमेरिकी में भारतीय मेधा का परचम लंबे समय से लहरा रहा है। सिलिकान वैली में भारतीयों का वर्चस्व जगजाहिर है, लेकिन एक भारतीय युवा ने देश में ही रहकर अमेरिका के कारोबार जगत में अपनी पकड़ बनाई है। खुद पढ़ सकें, इसलिए बरेली की गलियों में कभी ट्यूशन पढ़ाकर शुरुआत करने वाले क्षितिज अग्रवाल आज दो सौ करोड़ की एक कंपनी के मालिक हैैं। स्वावलंबन की सफल यात्रा मेें क्षितिज ने कई पड़ाव देखे, लेकिन हार नहीं मानी।
आर्थिक दुश्वारियों को पार कर इंजीनियर बने क्षितिज भी अन्य युवाओं की तरह नौकरी करने लगे थे। 25 हजार रुपये से शुरुआत की, लेकिन यह उनका लक्ष्य नहीं सिर्फ पड़ाव था। कुछ समय बाद ही खतरा उठाया और बड़े कारोबारी बन गए। इस वक्त वह करीब दो सौ करोड़ के टर्नओवर वाली टेकिला ग्लोबल सर्विसेज के स्वामी हैं। साहूकारा के मूल निवासी क्षितिज की कहानी उन्हीं मध्यमवर्गीय युवाओं की तरह है, जो पढ़ाई के दिनों में संसाधनों की कमी से जूझते हैं।
सातवीं कक्षा में थे, तब पिता के कारोबार में घाटा होने से मां कोचिंग पढ़ाने लगीं। क्षितिज भी खुद पढ़ते, इसके बाद मोहल्लेे के बच्चों को ट्यूशन पढ़ाकर अपने खर्च पूरे करते। उन दिनों को याद करते हैं कि महीने में मिलने वाले एक हजार रुपये से पिता पर बोझ नहीं पडऩे देता था। इसी तरह 12वीं तक की पढ़ाई पूरी कर ली। वर्ष 2004 में श्रीराममूर्ति कालेज में बीटेक में प्रवेश के लिए रुपये नहीं थे। साढ़े तीन लाख रुपये का लोन लिया, तब पढ़ सका।
सुबह छह से रात 10 बजे तक : लोन निपटाने के लिए क्षितिज ने शहर के दो कोचिंग संस्थानों में पार्ट टाइम पढ़ाना शुरू किया। वह बताते हैं कि सुबह छह बजे उठकर अपने कालेज जाने की तैयारी करता। शाम पांच बजे वहां से खाली होने के बाद दोनों कोचिंग में पढ़ाता, ताकि लोन की किस्त दे सकूं। रात 10 बजे के बाद घर आना होता था।
ऐसे बढ़ाए कदम : वर्ष 2008 में उन्हें कंप्यूटर क्षेत्र की कंपनी आइबीएम में बतौर साफ्टवेयर इंजीनियर नौकरी मिली और पुणे चले गए। वेतन 25 हजार रुपये प्रति माह था। वहां से अमेरिका भेज दिया गया, तीन वर्ष वहीं रहे। वर्ष 2011 में कंपनी के लिए बड़ी डील कराई तो लगा कि यह काम अपने लिए करना चाहिए। अमेरिका से लौटने के बाद उसी वर्ष क्षितिज ने तय कर लिया कि नौकरी नहीं करेंगे, दूसरों को रोजगार देंगे।
दो साथियों संग शुरुआत : क्षितिज बताते हैं कि उस समय सेल्सफोर्स नई तकनीक मानी जाती थी। मैंने पुणे के दो साथियों को इसकी बारीकियां बताईं। वहीं से टेकिला ग्लोबल सर्विसेज कंपनी शुरू कर दी। हमारी सेल्सफोर्स डेवलपमेंट कंपनी को पहली डील अमेरिका से मिली। कहते हैं कि पहली ही बार में इतने रुपये मिले कि नौकरी से पांच वर्ष में नहीं कमा पाते। यहीं से ऊर्जा मिली। क्षितिज ने पुणे में कंपनी का पहला कार्यालय शुरू किया। इस समय भारत व अमेरिका के करीब तीन सौ लोग उनकी कंपनकें लिए काम करते हैं।
अपने शहर के युवाओं को घर में नौकरी : क्षितिज जिस अमेरिका में नौकरी करने गए थे, आज उसी देश के युवाओं को नौकरी दे रहे हैं। कंपनी के आठ प्रमुख पदों पर सात अमेरिकी हैं। वह कहते हैं कि अपने शहर के इंजीनियरकों के लिए वहीं अवसर उपलब्ध कराऊंगा। इसके लिए बड़ा प्रोजेक्ट बनाया है, जिसमें सौ युवाओं को शामिल करूंगा। उनकी कंपनी इस समय भी सेल्सफोर्स की निश्शुल्क शिक्षा देती है। यह क्लाउड आधारित साफ्टवेयर डेवलपमेंट तकनीक है। जिसे किसी भी कंपनी द्वारा कस्टमाइज किया जा सकता है।
SABHAR : DAINIK JAGRAN
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