SETH GHANSHYAM DAS BIDLA - A GREAT INDUSTRIALIST
घनश्यामदास बिड़ला की कहानी आज़ाद भारत के औद्योगिकीकरण की कहानी है। एक दौर में बिड़ला और टाटा ही हिन्दुस्तान के व्यवसायिक क्षितिज पर आलोकित सितारे थे। 1857 में जब भारत का प्रथम स्वाधीनता संग्राम हुआ तो लगभग उन्हीं दिनों उनके दादा शिवनारायण बिड़ला ने राजस्थान के पानी से उठकर मुंबई में कारोबार जमाया, लेकिन चार साल बाद ही उनके पिता बलदेवदास बिड़ला ने मुंबई के बजाए कलकत्ता को अपनी व्यवसायिक गतिविधियों का केंद्र बना लिया।
30 वर्ष की आयु होने तक खुद घनश्यामदास बिड़ला का औद्योगिक साम्राज्य अपनी जड़े जमा चुका था। स्वदेशी के इस सच्चे समर्थक के लिए व्यापार राष्ट्र निर्माण का ही माध्यम था। व्यापार में भी सच्चरित्रता तथा ईमानदारी उनके लिए सर्वोपरि थे। वे सच्चे अर्थों में गांधीवादी थे। महात्मा गांधी के हरेक आंदोलन में उन्होंने आर्थिक योगदान दिया। हिंदुस्तान टाइम समूह की स्थापना के लिए भारत का मीडिया जगत उन्हें हमेशा याद रखेगा । अनेक उद्योगों के साथ-साथ देशभर में अनेक शिक्षण संस्थाओं की उन्होंने स्थापना की। अपने पुश्तैनी घर पिलानी में भारत के सर्वश्रेष्ठ निजी तकनीकी संस्थान बिड़ला प्रौद्योगिकी एवं विज्ञान संस्थान पिलानी की स्थापना की।
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