SETH HANUMAN PRASAD PODDAR - GITA PRESS FOUNDER
हरिद्वार में विश्व का सबसे बड़ा भारत माता मंदिर है.. जिसमें गीताप्रेस के संस्थापक हनुमान प्रसाद पोद्दार जी का चित्र लगा है और उनका इतिहास भी बताया है.. जो है-
आध्यात्मिक विभूति तथा 'गीताप्रेस गोरखपुर के संस्थापकों में से एक शरर हनुमान प्रसाद पोद्दार ने युवावस्था में देश की स्वाधीनता के आंदोलन में सक्रिय भाग लेकर जेल में यातनाएं सहन की थीं।
17 सितंबर, 1892 को राजस्थान के रतनगढ़ में लाला भीमराज अग्रवाल के पुत्र के रूप में जन्में हनुमान प्रसाद पोद्दार जी व्यापार के सिलसिले में पिता के साथ कोलकाता में रहते थे। लोकमान्य तिलक और अन्य विभूतियों के लेखों से बहुत प्रभावित होकर वे कोलकाता के क्रांतिकारियों के संपर्क में आये। श्रीमद्भगवद्गीता का उन पर अमिट प्रभाव था। साहित्य संवर्धिनी समिति के ओर से उन्होंने 'गीता' प्रकाशन करवाया, जिसके मुख पृष्ठ पर भारत माता के हाथ मे खड़ग लिए हुए चित्र का प्रकाशन किया गया। कोलकाता के प्रशाशन ने गीता के इस संस्करण को जब्त कर लिया।
सन् 1914 में कोलकाता की रोडा एंड कम्पनी द्वारा जर्मनी में मंगवाए गए शस्त्रों की पेटियां गायब हो जाने के बाद हड़कम्प मच गया था। कोलकाता प्रशासन ने छानबीन की तो पता चला कि युवा क्रांतिकारियों ने 202 पेटियों में से 80 माउजर पिस्तौलें व 46 हजार कारतूस गायब कराए हैं। पता चला कि कुछ कारतूस व पिस्तौलें पोद्दार जी के ठिकाने ' बिरला श्राप एण्ड कम्पनी, की गद्दी पर पहुंचाये गये थे। 20 जुलाई को पुलिस ने कम्पनी कार्यालय पर छापा मारा तथा हनुमानप्रसाद पोद्दार, ज्वालाप्रसाद कानोडिया, ओंकारमल सर्राफ और फूलचन्द चौधरी को गिरफ्तार कर लिया। उन पर राजद्रोह का मुकदमा दर्ज कर अनेक वर्षों तक जेल व नजरबंदी में रखा गया। जेल से मुक्त होने के बाद यहाँ सन् 1926 में भक्त जयदयाल गोयन्दका के सहयोग से कल्याण' पत्रिका का प्रकाशन आरम्भ किया। गीता प्रेस की गोरखपुर में स्थापना कर जीवन के अंतिम क्षणों तक धार्मिक साहित्य के सम्पादन व प्रकाशन में लगे रहे। उन्होंने सौ से अधिक पुस्तकों की रचना की। 22 मार्च, 1971 को पोद्दार जी ने महासमाधि ली।
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