SETH CHANDULAL SHAH - A GREAT FILM PRODUCER AND DIRECTOR
सन 1926 की बात है। कोहीनूर फिल्म कंपनी ने अपनी नई फिल्म टाइपिस्ट गर्ल के डायरेक्शन की ज़िम्मेदारी एक नए लड़के को दी। उस लड़के ने मात्र 17 दिनों में टाइपिस्ट गर्ल नामक उस फिल्म की शूटिंग कंप्लीट करके कोहीनूर फिल्म कंपनी के मालिकों को हैरत में डाल दिया। फिल्म जब रिलीज़ हुई तो इसने बॉक्स ऑफिस पर ज़बरदस्त कामयाबी हासिल की। वो लड़का जिसने ये फिल्म डायरेक्ट की थी वो आगे चलकर भारतीय फिल्म इंडस्ट्री का सरदार कहलाया। उसका नाम था चंदूलाल शाह। जिन्हें लोग सरदार चंदूलाल शाह भी कहा करते थे।
आज चंदूलाल शाह का जन्मदिन है। 13 अप्रैल 1898 को गुजरात के जामनगर में चंदूलाल शाह का जन्म एक वैश्य बनिया परिवार में हुआ था। चलिए आज आपको चंदूलाल शाह जी के जीवन की कुछ बड़ी ही रोचक बातें बताता हूं। आप भी कहेंगे कि वाकई में किस्सा टीवी को फॉलो करके आपने एक बहुत अच्छा काम किया है। हां, इस पोस्ट को लाइक-शेयर करना ना भूलिएगा। और जिन्होंने अभी तक फॉलो नहीं किया है वो फॉलो भी कर लीजिए भईया। कौन सा आपको इसका पैसा चुकाना पड़ रहा है। ये तो फ्री ही है फिलहाल। तो खैर, शुरुआत करते हैं अतीत की एक रोलर-कोस्टर राइड जैसी कहानी, जिसके हीरो थे सरदार चंदूलाल शाह।
टाइपिस्ट गर्ल में दो हीरोइनें थी। एक थी सुलोचना। और दूसरी थी मिस गौहर। फिल्म की शूटिंग के दौरान चंदूलाल शाह और मिस गौहर के बीच बढ़िया दोस्ती हो गई। और जैसा कि फिल्मों में भी होता है, लड़के-लड़की की दोस्ती आगे चलकर मुहब्बत में बदल जाती है। इसी तरह चंदूलाल शाह और मिस गौहर की दोस्ती भी मुहब्बत में तब्दील हो गई। दोनों ने शादी भी कर ली। और आखिरी वक्त तक दोनों ने इक-दूजे का साथ निभाया।
चंदूलाल शाह और मिस गौहर जब कोहीनूर फिल्म कंपनी में कामयाबी की नई इबारतें लिख रहे थे तब कोहीनूर फिल्म कंपनी के कई दूसरे कर्मचारी इनसे जलने लगे और इनके खिलाफ साजिशें करने लगे। तब इन दोनों ने कोहीनूर फिल्म कंपनी छोड़ दी। और जगदीश पाशा, राजा सैंडो व पांडुरंग नायक के साथ मिलकर अपनी खुद की कंपनी श्री साउंड स्टूडियो स्थापित की। और अपनी इस कंपनी के अंडर में चंदूलाल शाह ने चार फिल्मों का निर्माण किया। इन चारों ही फिल्मों में उनकी पत्नी मिस गौहर ही हीरोइन थी। मगर फिर आपसी मतभेद के चलते ये फिल्म कंपनी भी बंद हो गई।
आखिरकार साल 1929 में चंदूलाल शाह और मिस गौहर ने रंजीत स्टूडियो नाम से एक और कंपनी बनाई। इस फिल्म कंपनी का नाम उन्होंने जामनगर के राजा और नामी क्रिकेटर रंजीत सिंह के नाम पर रखा था। रंजीत स्टूडियो के अंडर में बनी पहली फिल्म थी पति-पत्नी, जो एक साइलेंट फिल्म थी। और इसकी हीरोइन भी मिस गौहर ही थी। हालांकि अब तक उन्हें गौहर बाई के नाम से जाना जाने लगा था। साल 1932 तक रंजीत स्टूडियो ने साइलेंट फिल्मों का ही निर्माण किया। इस दौरान लगभग 39 फिल्मों का निर्माण किया गया। और इनमें से अधिकतर में गौहर बाई ही हीरोइन थी। जबकि डायरेक्टर थे खुद चंदूलाल शाह।
टॉकी फिल्मों का दौर आया तो रंजीत स्टूडियोज़ का नाम हो गया रंजीत मूवीटोन। साल 1931 में रंजीत मूवीटोन ने अपनी पहली बोलती फिल्म बनाई थी जिसका नाम था देवी देवयानी। और फिर वो पूरा दशक रंजीत मूवीटोन के शिखर का दौर रहा। 1940 तक रंजीत मूवीटोन ने कई सफल फिल्मों का निर्माण किया। एक वक्त वो आया जब रंजीत मूवीटोन में तीन सौ से भी ज़्यादा कर्मचारी काम कर रहे थे। इनमें कई नामी एक्टर्स, डायरेक्टर्स, म्यूज़िक डायरेक्टर्स और राइटर्स भी थे।
ये वो दौर था जब चंदूलाल शाह को फिल्म इंडस्ट्री का बादशाह माना जाता था। एक बेताज बादशाह। चंदूलाल शाह अपने शुरुआती जीवन में बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज में कुछ वक्त तक नौकरी कर चुके थे। इसलिए जब फिल्मों में उन्हें बढ़िया कामयाबी मिल गई तो वो स्टॉक मार्केट में भी पैसा लगाने लगे। और वहां से भी इन्हें मोटा फायदा हुआ। अमीरी आई तो चंदूलाल शाह के सभी शौक भी अमीरों जैसे ही हो गए। वो घुड़दौड़ पर भी खूब पैसा लगाते। और नसीब वहां भी इनका साथ देता। ये बढ़िया रकम घुड़दौड़ में भी जीतते चले गए।
साल 1940 में आई अछूत वो आखिरी फिल्म थी जिसमें इनकी पत्नी गौहर बाई ने अभिनय किया था। इस फिल्म का डायरेक्शन चंदूलाल शाह ने ही किया था। और उन्होंने भी इसके बाद फिल्म डायरेक्शन से ब्रेक ले लिया। वो दूसरे डायरेक्टर्स से अपनी फिल्में डायरेक्ट कराने लगे। और अपना ज़्यादातर वक्त वो स्टॉक मार्केट व डर्बी रेस(घुड़दौड़) पर पैसा लगाने में बिताते। वहां इन्हें ज़बरदस्त कामयाबी मिल रही थी। और उस कामयाबी का नशा भी इन पर चढ़ने लगा था। कहते हैं कि कई दफा चंदूलाल शाह ने अपने कर्मचारियों को बुरी तरह डांटा। वो कर्मचरियों से घमंड में बात किया करते थे। कई कर्मचारी उनके इस बदले रवैये की वजह से नौकरी छोड़कर भी चले गए थे।
शेयर मार्केट और घुड़दौड़ क्या है? एक तरह का जुआ। और बड़ी पुरानी कहावत है कि जुआ किसी का ना हुआ। बेतहाशा पैसे कमाकर कामयाबी के नशे में अपने होश गंवा बैठे चंदूलाल शाह को एक दिन इसी जुए ने ज़ोर से ज़मीन पर पटका। हुआ यूं कि 1940 में चंदूलाल शाह ने एक कंपनी के शेयर पर बहुत तगड़ा पैसा लगा दिया। पूरे सवा करोड़ रुपए इन्होंने उस कंपनी के शेयरों में निवेश कर दिए। आप अंदाज़ा लगा लीजिए कि उस ज़माने में कितनी बड़ी रकम होगी सवा करोड़ रुपए। लेकिन उस कंपनी के शेयर डूब गए। एक ही झटके में चंदूलाल शाह के सवा करोड़ रुपए साफ हो गए।
20 साल की कड़ी मेहनत के बाद चंदूलाल शाह जिस मुकाम पर पहुंचे थे, एक ही झटके में वो वहां से ज़मीन पर मुंह के बल आ गिरे। उन्होंने फिर से खड़ा होने की खूब कोशिशें की। लेकिन उनकी हर कोशिश नाकाम साबित हुई। आखिरकार साल 1953 में अपनी कंपनी रंजीत मूवीटोन को गिरवी रखकर चंदूलाल शाह ने उस दौर के बहुत बड़े और नामी स्टार राज कपूर और नर्गिस को कास्ट करके पापी नाम की एक फिल्म शुरू की। इस फिल्म के डायरेक्शन की ज़िम्मेदारी भी चंदूलाल शाह ने खुद ही संभाली। और आखिरकार सालों बाद एक बार फिर से चंदूलाल शाह की डायरेक्शऩ में वापसी हुई। लेकिन ये फिल्म फ्लॉप हो गई। चंदूलाल शाह ने ऊंट पटांग नामक एक और फिल्म बनाई। मगर वो भी नकारी गई।
चंदूलाल शाह का हर दांव फेल हो रहा था। पापी और ऊंट पटांग के फ्लॉप होने से रंजीत मूवीटोन कर्ज़ के बोझ तले दब गया। एक और रिस्क लेकर चंदूलाल शाह ने 1960 में ज़मीन के तारे नामक एक और फिल्म बनाई। मगर उस फिल्म ने तो चंदूलाल शाह को दिन में तारे दिखा दिए। उनकी हालत बद से बदतर होती गई। पत्नी गौहरबाई ने पति को कर्ज़ के बोझ से उबारने के लिए अपनी करोड़ों रुपए की बिल्डिंग गिरवी रख दी। चंदूलाल शाह ने एक आखिरी दांव चलने का फैसला किया। मीना कुमारी और राजेंद्र कुमार को कास्ट करके उन्होंने अकेली मत जईयो नामक एक फिल्म बनाई।
इस फिल्म की कहानी चंदूलाल शाह ने खुद लिखी थी। और डायरेक्शन कराया था नंदलाल जसवंतलाल से। फिल्म का संगीत मदन मोहन जी ने कंपोज़ किया था। और गीत लिखे थे मजरूह सुल्तानपुरी ने। लेकिन कहते हैं ना कि जब किस्मत ही दुश्मन बन जाए तो कोई क्या कर सकता है। बड़े बजट और बड़ी स्टारकास्ट वाली ये फिल्म भी फ्लॉप हो गई। और इस तरह चंदूलाल शाह की खुद को फिर से उठाने की कोशिश भी नाकाम हो गई। उनके साथ-साथ रंजीत स्टूडियोज़ जो बाद में रंजीत मूवीटोन बना था, उसका सफर भी खत्म हो गया।
वो जो मिलते थे हमसे कभी दीवानों की तरह। आज यूं मिलते हैं जैसे कभी पहचान ना थी। ये गीत चंदूलाल शाह की आखिरी फिल्म अकेली मत जईयो में था। और रंजीत मूवीटोन बंद होने के बाद चंदूलाल शाह पर ये लाइनें एकदम फिट बैठने लगी थी। किसी वक्त पर उनके एक इशारे पर बड़े-बड़े एक्टर्स, म्यूज़िक डायरेक्टर्स और राइटर्स एक टांग पर खड़े हो जाते थे। और कहां अब वही कलाकार उन्हें देखकर मुंह फेरने लगे थे। जिस रंजीत स्टूडियो पर चंदूलाल शाह और गौहर बाई राजा-महारानी की तरह हुकूमत करते थे, इंश्योरेंस कंपनी ने उसकी पाई-पाई नीलाम कर दी थी।
कभी इंपोर्टेड गाड़ियों के काफिले को साथ लेकर चलने वाले चंदूलाल शाह का आखिरी वक्त इतना बुरा आ गया था कि कहीं जाने के लिए उन्हें बस और लोकल ट्रेन में सवारी करनी पड़ती थी। इस बुरे वक्त ने चंदूलाल शाह के दिल में बहुत सारा ग़म भर दिया था। और उसी ग़म को दिल में लिए 25 नवंबर 1977 को चंदूलाल शाह इस दुनिया से प्रस्थान कर गए। और किसी वक्त की सबसे महंगी, खूबसूरत फिल्मस्टार व चंदूलाल शाह की पत्नी गौहरबाई का आखिरी वक्त भी बहुत बुरा गुज़रा। 28 सितंबर 1985 को गौहरबाई भी खामोशी से ये दुनिया छोड़ गई।
उस वक्त तक ना तो किसी को परवाह थी कि गौहर बाई किस हाल में हैं? और ना ही बहुतों को ये मालूम भी था कि गौहर बाई हैं कौन। मौत के 1 सप्ताह बाद फिल्म इंडस्ट्री में बात फैली की गौहर बाई की मृत्यु हो गई है। उस वक्त तक फिल्म इंडस्ट्री में जाने कितने ही ऐसे लोग भी आ चुके थे जिन्हें ये भी पता नहीं था कि किसी वक्त पर भारतीय फिल्म इंडस्ट्री का बहुत बड़ा नाम हुआ करती थी चंदूलाल शाह की पत्नी गौहर बाई।
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