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Sunday, May 3, 2020

AGRAWALS & JAINISM - अग्रवाल समाज और जैन धर्म

अग्रवाल समाज और जैन धर्म

जब हम जैन समाज के इतिहास को पलट कर देखते हैं तो पाते हैं दिगम्बर जैन संस्कृति के उत्थान में अग्रवाल बंधुओं का अग्रणी स्थान रहा। इन्होंने जैन धर्म और जैन संस्कृति को बहुत सींचा है। कोलकाता के जितने भी पुराने मंदिर हैं चाहे बड़ा मंदिर हो, चाहे नया मंदिर हो, चाहे पुराने बाडी मन्दिर होता उत्तर पाड़ी मंदिर हो, या बेलगछिया का मंदिर हो ये सब अग्रवालों ने बनवाये हैं । ~ जैन धर्म गुरु परमान सागर जी महाराज

अग्रवाल उत्तर भारत की सम्पन्न व शिक्षित जाति है इसने भारत देश के उत्थान में अपना अविस्मरणीय योगदान दिया है, इस जाति के अनुयायी आमतौर पर हिंदू व जैन दोनो धर्मो के पालक रहे है, अग्रवाल जाति का इतिहास राजा अग्रसेन से शुरु होता है, और उनका राज्य महाभारत काल में हरियाणा प्रदेश के हिसार-रोहतक क्षेत्र में विस्तृत था । दिल्ली के मंदिरों की लाइब्रेरियों में रखे हुए मुग़ल काल के रिकॉर्ड से पता चलता है की अग्रवालों में जैन धर्म की शरुवात लोहचार्य और काष्ठ संघ ने की थी। जैन गुरु लोहाचार्य संवत 760 में अग्रोहा आये थे। स्थानीय लोगों ने उनको खाना दिया था। लोहचार्य ने एक लकड़ी की मूर्ति की स्थापना करके काष्ठ संघ की शुरुवात की थी। काष्ठ संघ धार्मिक व्यवस्था इसीलिए अग्रवाल समाज में काफी नजदीक से संबंधित है। हिंदी आधुनिक साहित्य के जनक कहे जाने वाले भारतेंदु हरिश्चन्द्र ने अपनी पुस्तक अग्रवालों की उत्पत्ति में लिखा है की अग्रोहा का तत्कालीन राजा दिवाकर लोहचार्य जी के संपर्क में आने से जैन हो गया था।

अग्रवालों में जैन धर्म की तरह ही मांसाहार वर्जित है। महाराज अग्रसेन ने स्वयं ही पशुबलि आदि का विरोध किया था और अपने राज्य में पूर्ण शाकाहार का नियम बनाया था। अग्रवालों के18 गोत्रों में से 3 गोत्र आज भी परवार जैनो में व अग्रवालो में समान है( गोयल,कांसल,बांसल) इससे भी इनकी जैन धर्म से साम्यता ज्ञात होती है।

नट्टल साहू सबसे पहले अग्रवाल हैं जिनका अग्रवाल इतिहास में उल्लेख मिलता है दिल्ली के जैन वणिकों में अग्रणी थे। इनका व्यापार पूरे भारत वर्ष में फैला था. ये सम्राट अनंगपाल तोमर के दरबार में मंत्री भी थे। इन्होंने भगवान आदिनाथ का एक भव्य मंदिर का निर्माण करवाया था। इन्ही के आश्रय में अग्रवाल जैन कवि विबुद्ध श्रीधर रहते थे जिन्होंने जैन धर्म की कुछ पुस्तकें लिखीं।

इतिहासकार के सी जैन लिखतें हैं - ग्वालियर में दिगंबर जैन चर्च का स्वर्णिम काल तोमर राजाओं के समय का था। वे काष्ठ भट्टारक और उनके अग्रवाल जैन भक्तों से प्रेरित थे।

सम्राट अकबर के काल में साहू टोडर अग्रवाल ने मथुरा में 500 से अधिक जैन स्तूप बनवाए थे। अग्रवाल समाज से आने वाले राजा हरसुख राय ने सन् 1810 में जैन धर्म के प्रचार प्रसार के लिए भव्य दिल्ली रथ यात्रा निकाली थी। इन्होंने भारत वर्ष में 51 जैन मंदिरों का निर्माण करवाया था। अब तक चंपापुर(बिहार),ग्वालियर,तिजारा(राजस्थान) आदि कई स्थानो से खुदाई में अग्रवाल,अग्रोतक आदि प्रशस्ति लिखी जैन मूर्तियाँ प्राप्त हुई है।

राजा शगुनचंद के बेटे सेठ गिरधारी लाल ने हिसार पानीपत में अग्रवाल जैन पंचायत की स्थापना की। इसे आजकल प्राचीन अग्रवाल दिगंबर जैन पंचायत के नाम से जाना जाता है। यह सबसे प्राचीन जैन संघठन है। यह संघठन ही प्राचीन जैन मंदिर नया मंदिर और लाल मंदिर का संचालन करता है। जैन समाज में एकता को बढ़ावा देने वाली ये पंचायत आज भी सक्रिय है।

महान स्वतंत्रता सेनानी लाला हुकुमचंद जैन और फकीरचंद जैन हिसार के अग्रवाल जैन परिवार से थे । अग्रवाल नवरत्न लाला लाजपत राय जी का परिवार भी दिगंबर जैन मतावलंबी था जो बाद में आर्य समाजी हो गए थे। देश के बड़े मीडिया समूह टाइम्स ऑफ इंडिया की मालिक इंदु जैन अग्रवाल जैन परिवार से हैं । कोलकाता के प्रसिद्ध बेलगछिया जैन मंदिर के निर्माता अग्रवाल श्रेष्ठी थे ऐसे कई विशाल मंदिरो का निर्माण अग्रवाल जैन बंधूओ ने करवाया था ।

जय जिनेन्द्र जय महाराज अग्रसेन

साभार: राष्ट्रीय अग्रवाल महासभा 

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