द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी
अच्छे और कालजयी साहित्य की रचना एक कठिन कार्य है, पर इससे भी कठिन है, बाल साहित्य का सृजन। इसके लिए स्वयं बच्चों जैसा मन और मस्तिष्क बनाना होता है। श्री द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी ऐसे ही एक साहित्यकार थे, जिनके लिखे गीत एक समय हर बच्चे की जिह्ना पर रहते थे।
श्री माहेश्वरी का जन्म 1 दिसम्बर, 1916 को आगरा (उ.प्र.) के रौहता गाँव में हुआ था। बाल्यकाल से ही वे अत्यन्त मेधावी थे। अतः पढ़ने में सदा आगे ही रहते थे, पर बच्चों के लिए लिखे जाने वाले गद्य और पद्य साहित्य में कठिन शब्दों और भावों को देखकर उन्हें बहुत पीड़ा होती थी। इस कारण बच्चे उन गीतों को याद नहीं कर पाते थे। उनका मत था कि यदि बच्चों को अच्छे और सरल भावपूर्ण गीत दिये जायें, तो वे गन्दे फिल्मी गीत नहीं गायेंगे। अतः उन्होंने स्वयं ही इस क्षेत्र में उतरकर श्रेष्ठ साहित्य के सृजन को अपने जीवन का लक्ष्य बनाया।
उन्हें पढ़ने और पढ़ाने का बड़ा चाव था। पढ़ने के लिए वे इंग्लैण्ड भी गये; पर आजीविका के लिए उन्होंने भारत में शिक्षा क्षेत्र को चुना। अनेक महत्वपूर्ण पदों पर काम करते हुए वे शिक्षा निदेशक और निदेशक साक्षरता निकेतन जैसे पदों पर पहुँचे। उनके कई कालजयी गीत आज भी हिन्दी के पाठ्यक्रम में हैं और बच्चे उन्हें बड़ी रुचि से पढ़ते हैं।
उनके एक लोकप्रिय गीत ‘हम सब सुमन एक उपवन के’ से बाल समीक्षक कृष्ण विनायक फड़के बहुत प्रभावित हुए। उन्होंने अपनी वसीयत में ही लिख दिया कि उनकी शवयात्रा में ‘राम नाम सत्य है’ के बदले बच्चे मिलकर यह गीत गायें, तो उनकी आत्मा को बहुत शान्ति मिलेगी।
उत्तर प्रदेश के सूचना विभाग ने अपने प्रचार पटों में इस गीत को लिखवाया और उर्दू में भी ‘हम सब फूल एक गुलशन के’ पुस्तक प्रकाशित की। श्री माहेश्वरी ने बच्चों के लिए 30 से भी अधिक पुस्तकें लिखीं। साक्षरता विभाग में काम करते समय उन्होंने नवसाक्षरों के लिए भी पाँच पुस्तकें लिखीं। इसके अतिरिक्त भी उन्होंने कई काव्य संग्रह और खण्ड काव्यों की रचना की।
उन दिनों बड़े लोगों के लिए देश के हर भाग में कवि सम्मेलन होते थे। यह देखकर माहेश्वरी जी ने बाल कवि सम्मेलन प्रारम्भ कराये। उत्तर प्रदेश में शिक्षा सचिव रहते हुए उन्होंने कई कवियों के जीवन पर वृत्त चित्र बनवाए। इनमें सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ पर बनवाया हुआ वृत्त चित्र अविस्मरणीय है।
उन्हें साहित्य सृजन के लिए देश के सभी भागों से अनेक मान-सम्मान मिले, पर जब उनके गीतों को बच्चे सामूहिक रूप से या नाट्य रूपान्तर कर गाते थे, तो वे उसे अपना सबसे बड़ा सम्मान मानते थे। माहेश्वरी जी जहाँ वरिष्ठ कवियों का सम्मान करते थे, वहीं नये साहित्यकारों को भी भरपूर स्नेह देते थे। आगरा के केन्द्रीय हिन्दी संस्थान को वे एक तीर्थ मानते थे। इसमें जो विदेशी या भारत के अहिन्दीभाषी प्रान्तों के छात्र आते थे, उनके साथ माहेश्वरी जी स्वयं बड़ी रुचि से काम करते थे।
हम सब सुमन एक उपवन के। वीर तुम बढ़े चलो, धीर तुम बढ़े चलो। जिसने सूरज चाँद बनाया। इतने ऊँचे उठो कि जितना उठा गगन है... जैसे अमर गीतों के लेखक श्री द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी का 29 अगस्त, 1998 को देहावसान हुआ। उनकी आत्मकथा ‘सीधी राह चलता रहा’ उनके जीवन का दर्पण है।
साभार: घनश्याम अग्रवाल
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