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Saturday, May 9, 2020

DILIP & ANAND SURANA - छोटी सी कंपनी को 3000 करोड़ की फार्मा कंपनी बना दी है दो भाइयो ने

अपने पिता की छोटी सी कंपनी को 3000 करोड़ की फार्मा कंपनी बना दी है दो भाइयो ने


अपने पिता की छोटी सी कंपनी जिसकी शुरुआत 1973 में हुई थी, को आज भारत की बड़ी फार्मा कंपनी बनाने के पीछे दोनों भाइयों का कठिन संघर्ष और मेहनत रही है. एक मैन्युफैक्चरिंग प्लांट से शुरू हुई इनकी कंपनी आज भारत के 6 राज्यों में मैन्युफैक्चरिंग यूनिट्स लगा चुकी है.

भारत के साथ ही 20 से ज्यादा देशों में इनकी दवाइयां निर्यात होती है. अपने पिता के सपने को पूरा करने वाले है दिलीप (Dilip Surana) और आनंद सुराणा (Anand Surana). इन्होने माइक्रो लैब्स लिमिटेड (Micro Labs Limited) को देश के फार्मा क्षेत्र में टॉप में पहुँचाने का काम किया है.

माइक्रो लैब्स की शुरुआत बहुत ही सामान्य रही है. चेन्नई की फारमेसी दुकान पर उनके पिता G C सुराणा (Ghevar Chand Surana) दवाइया सप्लाई करते थे. मुलत: राजस्थान के मारवाड़ी परिवार से आने वाले GC सुराणा ने अपनी समझ और मेहनत के बलबूते सफलता की सीढिया चढ़ना शुरू किया.

उन्होंने दिल्ली की एक फार्मा कंपनी से साउथ इंडिया में डिस्ट्रीब्यूशन की बड़ी डील की. जिसके तहत उन्हें कर्नाटक, तमिलनाडु, आँध्रप्रदेश के साथ ही केरल में अपना व्यापार करने का मौका मिला.

दिलीप और आनंद सुराणा फोर्ब्स की देश के टॉप 100 अमीरों की लिस्ट में शामिल है.

डिस्ट्रीब्यूशन में सफल होने के बाद GC सुराणा ने 1973 में खुद की फार्मा कंपनी बनाने की योजना बनाई. खुद फार्मा मार्केट में कई वर्षों से कार्य कर रहे थे अतः उन्हें ज्यादा दिक्कतों का सामना नहीं करना पड़ा. और इसी तरह माइक्रो लैब्स लिमिटेड की नींव रखी गयी. माइक्रो लैब्स की शुरुआत GC सुराणा ने मद्रास से की.

अपने परिवार के साथ सुराणा बंधू

उत्तम गुणवत्ता और कठिन मेहनत के बलबूते माइक्रो लैब्स ने फार्मा क्षेत्र में अपनी उपस्थिति दर्ज करवाना शुरू कर दिया. अस्सी के दशक में दवाइयों की बढ़ती मांग और माइक्रो लैब्स के गुणवत्ता पूर्वक दवाइयों की पूर्ति के लिए GC सुराणा ने 1982 में तमिलनाडु के होसुर में दूसरे मैन्युफैक्चरिंग प्लांट की नींव रखी.

पिता के साथ बेटे भी लग गए व्यापार में . .

गिरते स्वास्थ्य की वजह से GC सुराणा सक्रिय रूप से माइक्रो लैब्स से दूर होने लगे लेकिन उनकी दूरदर्शिता और विज़न को आगे ले जाते हुए अगली पीढ़ी यानि दिलीप और आनंद सुराणा ने माइक्रो लैब्स की कमान अपने हाथ में ली.

दोनों भाइयों ने कड़ी मेहनत और पिता के मार्गदर्शन का फायदा उठाते हुए माइक्रो लैब्स को आगे बढ़ाने में जुट गए. समय के साथ माइक्रो लैब्स बैंगलोर और मद्रास से बाहर निकलकर पुरे भारत में फ़ैल गयी. होसुर के बाद उन्होंने बैंगलोर में एक बंद पड़ी यूनिट को ख़रीदा और उसे व्यापारिक कुशलता से जल्द ही प्रॉफिट में ले आये.

साउथ इंडिया से निकलकर बन गए ग्लोबल ब्रांड . .

इसके बाद विश्वस्तरीय मानकों से सुसज्जित मैन्युफैक्चरिंग यूनिट की शुरुआत बैंगलोर में की. इसके बाद उन्होंने अपना हेडक्वार्टर भी बैंगलोर में स्थापित कर दिया. बढ़ती डिमांड को पूरी करने के लिए गोवा, हिमाचल प्रदेश ,पॉन्डिचेरी और सिक्किम में भी मैन्युफैक्चरिंग यूनिट लगानी पड़ी. इसके बाद माइक्रो लैब्स भारत के फार्मा इंडस्ट्री में स्थापित हो गया.

माइक्रो लैब्स का सिक्किम स्थित मैन्युफैक्चरिंग प्लांट

2004 के आसपास माइक्रो लैब्स ने विदेशी फार्मा कंपनी के साथ करार किया और रिसर्च और डेवेलपमेंन्ट में भारी निवेश किया. अंतराष्ट्रीय मानकों से सुसज्जित उनकी यूनिट्स ने मार्केट की डिमांड के अनुसार प्रोडक्शन जारी रखा. फार्मा कंपनी के बड़े प्लेयर्स ने माइक्रो लैब्स को खरीदने की कोशिश की लेकिन सुराणा बंधुओं ने मना कर दिया.

एक भाई ने संभाला घरेलू तो दूसरे ने विदेशी बाजार . .

आज दिलीप सुराणा जहाँ भारतीय मार्केट को देखते है और कंपनी का 60 % रेवेन्यू भारत से ही होता है. उन्होंने मैन्युफैक्चरिंग यूनिट के साथ ही शानदार डिस्ट्रीब्यूशन नेटवर्क तैयार किया है. आज उनके 20,000 से ज्यादा डिस्ट्रीब्यूटर्स पुरे देश में फैले हुए है.

राजस्थान के मरुस्थल से लेकर हिमालय के पहाड़ों में स्थित छोटे से गांवों में भी माइक्रो लैब्स के प्रोडक्ट्स बिकते है. देश केफार्मा सेक्टर में माइक्रो लैब्स को पहचान दिलाने में दिलीप सुराणा का महत्वपूर्ण योगदान रहा है.

वही दूसरे भाई आनंद सुराणा ने माइक्रो लैब्स को अंतराष्ट्रीय पहचान दिलाने का काम किया है. फार्मा प्रोडक्ट के निर्यात की सारी जिमेदारी आनंद सुराणा के कन्धों पर है. आज माइक्रो लैब्स के प्रोडक्ट्स अमेरिका , यूरोप, अफ्रीका और अरब देशों में बिकते है.

एक अवार्ड समारोह के दौरान दिलीप सुराणा

इसी के साथ इनके जेनेरिक दवाइयों की डिमांड ऑस्ट्रेलिया , न्यूज़ीलैंड और अन्य पूर्वोत्तर देशों में भी है. माइक्रो लैब्स के कुल रेवेन्यू का 40% हिस्सा निर्यात से आता है. माइक्रो लैब्स को ग्लोबल ब्रांड बनने के पीछे आनंद सुराणा की मेहनत और सूझबूझ है.

नित नए आयाम छूती माइक्रो लैब्स . .

1973 में एक छोटी सी कंपनी से शुरुआत करने वाली माइक्रो लैब्स आज ग्लोबल ब्रांड बन चुकी है. मारवाड़ी बिज़नेस के अतुल्य तरीके ने इसे भारत की टॉप फार्मा कंपनी बना दिया है.

आज माइक्रो लैब्स 20 से ज्यादा देशों में अपने प्रोडक्ट्स निर्यात करती है. माइक्रो लैब्स में आठ हज़ार से ज्यादा कर्मचारी काम करते है और उनका रेवेन्यू पिछले वित्त वर्ष में 3000 करोड़ रुपये के आसपास रहा है.

माइक्रो लैब्स को आज इस मुकाम पर पहुंचाने के लिए GC सुराणा के विज़न और मार्गदर्शन के साथ ही सुराणा बंधुओं की कठिन मेहनत रही है.

आज उनके पास विश्वस्तरीय रिसर्च एंड डेवलपमेंट सेण्टर के साथ ही मजबूत डिस्ट्रीब्यूशन नेटवर्क है, जिसके बलबूते वो देश की टॉप फार्मा कंपनी बनने की ओर अग्रसर है.

साभार: bepositive.online/dilip-and-anand-surana-micro-labs

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