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Wednesday, May 6, 2020

KAKA HATHRASI - काका हाथरसी, प्रमुख हास्य रस के कवि

प्रभुलाल गर्ग उर्फ़ काका हाथरसी


जन्म 18 सितंबर, 1906

जन्म भूमि हाथरस, उत्तर प्रदेश

मृत्यु 18 सितंबर, 1995

अविभावक शिवलाल गर्ग और बरफ़ी देवी

पति/पत्नी रतन देवी

कर्म भूमि भारत

कर्म-क्षेत्र हास्य कवि, लेखक

मुख्य रचनाएँ 'काका की फुलझड़ियाँ', 'काका के प्रहसन', 'लूटनीति मंथन करि', 'खिलखिलाहट' आदि।

भाषा हिन्दी

पुरस्कार-उपाधि 'कला रत्न' (1966), 'पद्म श्री' (1985), 'आनरेरी सिटीजन' (1989)

प्रसिद्धि हास्य कवि

विशेष योगदान 1932 में काका ने हाथरस में संगीत की उन्नति के लिये 'गर्ग ऐंड कम्पनी' की स्थापना की, जिसका नाम बाद में 'संगीत कार्यालय हाथरस' हुआ।

नागरिकता भारतीय

अन्य जानकारी आपके नाम से चलाया गया 'काका हाथरसी पुरस्कार' प्रतिवर्ष एक सर्वश्रेष्ठ हास्य कवि को प्रदान किया जाता है।

काका हाथरसी की रचनाएँ

कविता

हिंदी की दुर्दशा -काका हाथरसी

नाम-रूप का भेद -काका हाथरसी

मोटी पत्नी -काका हाथरसी

भ्रष्टाचार -काका हाथरसी

नाम बड़े दर्शन छोटे -काका हाथरसी

अनुशासनहीनता और भ्रष्टाचार -काका हाथरसी

पुलिस-महिमा -काका हाथरसी

एअर कंडीशन नेता -काका हाथरसी

नगरपालिका वर्णन -काका हाथरसी

कालिज स्टूडैंट -काका हाथरसी

कुछ तो स्टैंडर्ड बनाओ -काका हाथरसी

खटमल-मच्छर-युद्ध -काका हाथरसी

घूस माहात्म्य -काका हाथरसी

पिल्ला -काका हाथरसी

आई में आ गए -काका हाथरसी

सुरा समर्थन -काका हाथरसी

दहेज की बारात -काका हाथरसी

तेली कौ ब्याह -काका हाथरसी

जम और जमाई -काका हाथरसी

पंचभूत -काका हाथरसी

मुर्ग़ी और नेता -काका हाथरसी

मसूरी यात्रा -काका हाथरसी

धमधूसर कव्वाल -काका हाथरसी

मँहगाई -काका हाथरसी

चंद्रयात्रा और नेता का धंधा -काका हाथरसी




हास्याष्टक -काका हाथरसी




कौन क्या-क्या खाता है? -काका हाथरसी

काका दोहावली -काका हाथरसी

खिल-खिल खिल-खिल हो रही -काका हाथरसी

सहनशीलता -काका हाथरसी

कार के करिश्मे -काका हाथरसी

क्षमा प्रार्थना -काका हाथरसी

काका के हँसगुल्ले -काका हाथरसी

बनारसी साड़ी -काका हाथरसी

सारे जहाँ से अच्छा है इंडिया हमारा -काका हाथरसी

दार्शनिक दलबदलू -काका हाथरसी

जय बोल बेईमान की -काका हाथरसी

आरती श्री उल्लूजी की -काका हाथरसी

मूर्खिस्तान ज़िंदाबाद -काका हाथरसी

सिगरेट समीक्षा -काका हाथरसी

हथियार रहस्य -काका हाथरसी

अल्हड़ बीकानेरी -काका हाथरसी

झूठ माहात्म्य -काका हाथरसी

पक्के गायक -काका हाथरसी

सवाल में बवाल -काका हाथरसी

मरने से क्या डरना -काका हाथरसी

आत्महत्या -काका हाथरसी

आधुनिकता -काका हाथरसी

शिक्षा-पद्धति -काका हाथरसी

चोरी की रपट -काका हाथरसी

व्यर्थ -काका हाथरसी

सफल लेखक -काका हाथरसी

सफल नेता -काका हाथरसी

जय बोलो बेईमान की -काका हाथरसी

काका हाथरसी (Kaka Hathrasi) (वास्तविक नाम- प्रभुलाल गर्ग, जन्म- 18 सितंबर,1906, हाथरस, उत्तर प्रदेश; मृत्यु- 18 सितंबर, 1995) भारत के प्रसिद्ध हिन्दी हास्य कवि थे। उन्हें हिन्दी हास्य व्यंग्य कविताओं का पर्याय माना जाता है। काका हाथरसी की शैली की छाप उनकी पीढ़ी के अन्य कवियों पर तो पड़ी ही थी, वर्तमान में भी अनेक लेखक और व्यंग्य कवि काका की रचनाओं की शैली अपनाकर लाखों श्रोताओं और पाठकों का मनोरंजन कर रहे हैं। उनकी रचनाएँ समाज में व्याप्त दोषों, कुरीतियों, भ्रष्टाचार और राजनीतिक कुशासन की ओर सबका ध्यान आकृष्ट करती हैं। भले ही काका हाथरसी आज हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी हास्य कविताए, जिन्हें वे 'फुलझडियाँ' कहा करते थे, सदैव हमे गुदगुदाती रहेंगी।

जीवन परिचय

काका हाथरसी का जन्म 18 सितंबर, 1906 ई. में उत्तर प्रदेश के हाथरस ज़िले में हुआ था। उनके पिता का नाम शिवलाल गर्ग और माता का नाम बरफ़ी देवी था। जब वे मात्र 15 दिन के थे, तभी प्लेग की महामारी ने उनके पिता को छीन लिया और परिवार के दुर्दिन आरम्भ हो गये। भयंकर ग़रीबी में भी काका ने अपना संघर्ष जारी रखते हुए छोटी-मोटी नौकरियों के साथ ही कविता रचना और संगीत शिक्षा का समंवय बनाये रखा।

दिन अट्ठारह सितंबर, अग्रवाल परिवार। उन्नीस सौ छ: में लिया, काका ने अवतार

परिवार

काका हाथरसी के प्रपितामह गोकुल, महावन से आकर हाथरस में बस गए थे और यहाँ उन्होंने बर्तन-विक्रय का काम (व्यापार) प्रारम्भ किया था। बर्तन के व्यापारी को उन दिनों 'कसेरे' कहा जाता था। पितामह (बाबा) श्री सीताराम कसेरे ने अपने पिता के व्यवसाय को नियमित रूप से चलायमान रखा। उसके बाद बँटवारा होने पर बर्तन की दुकान परिवार की दूसरी शाखा पर चली गईं। परिणामत: काका जी के पिता को बर्तनों की एक दुकान पर मुनीमगीरी करनी पड़ी।

प्लेग का कहर

काका का जन्म 1906 में ऐसे समय में हुआ था, जब प्लेग की भयंकर बीमारी ने हज़ारों घरों को उज़ाड़ दिया। यह बीमारी देश के जिस भाग में फैलती, उसके गाँवों और शहरों को वीरान बनाती चली जाती थी। शहर से गाँवों और गाँवों से नगरों की ओर व्याकुलता से भागती हुई भीड़ हृदय को कंपित कर देती थी। कितने ही घर उजड़ गए, बच्चे अनाथ हो गए, महिलाएँ विधवा हो गईं। किसी-किसी घर में तो नन्हें-मुन्नों को पालने वाला तक नहीं बचा था। अभी काका केवल 15 दिन के ही शिशु थे, कि इनके पिताजी को प्लेग की बीमारी हो गयी। 20 वर्षीय माता बरफ़ी देवी, जिन्होंने अभी संसारी जीवन जानने-समझने का प्रयत्न ही किया था, इस वज्रपात से व्याकुल हो उठीं। मानों सारा विश्व उनके लिए सूना और अंधकारमय हो गया।

पड़ोसी वकील साहब पर कविता

उन दिनों घर में माताजी, बड़े भाई भजनलाल और एक बड़ी बहिन किरन देवी और काका कुल चार प्राणी साधन-विहीन रह गए थे। पिता की जल्दी मौत हो जाने के कारण वह अपने मामा के पास इगलास में जाकर रहने लगे। काका जी ने बचपन में चाट-पकौड़ी तक बेची। हालांकि कविता का शौक उन्हें बचपन से ही लग गया था।उन्होंने अपने मामा के पड़ोसी वकील साहब पर एक कविता लिखी-

एक पुलिंदा बांधकर कर दी उस पर सील

खोला तो निकले वहां लखमी चंद वकील

लखमी चंद वकील, वजन में इतने भारी

शक्ल देखकर पंचर हो जाती है लारी

होकर के मजबूर, ऊंट गाड़ी में जाएं

पहिए चूं-चूं करें, ऊंट को मिरगी आए

किसी प्रकार यह कविता वकील साहब के हाथ पड़ गई और काका को पुरस्कार में पिटाई मिली।

'काका' नामकरण

वैसे तो काका हाथरसी का असली नाम तो 'प्रभूलाल गर्ग' था, लेकिन उन्हें बचपन में नाटक आदि में भी काम करने का शौक था। एक नाटक में उन्होंने 'काका' का किरदार निभाया, और बस तभी से प्रभूलाल गर्ग 'काका' नाम से प्रसिद्ध हो गए। चौदह साल की आयु में काका फिर अपने परिवार सहित इगलास के हाथरस वापस आ गए। यहाँ उन्होंने एक जगह 'मुनीम' की नौकरी कर ली।

विवाह

इसी दौरान मात्र सोलह वर्ष की अवस्था में काका की शादी 'रतन देवी' से हो गई। काका की कविताओं में यही रतन देवी हमेशा 'काकी' बनी रहीं। लेकिन इन्हीं दिनों दुर्भाग्य ने फिर इनका साथ पकड़ लिया। विवाह के कुछ ही दिनों बाद फिर काका की नौकरी छूट गई और एक बार फिर से काका ने कई दिन काफ़ी मुफिलिसी में गुजारे।

कविता का प्रकाशन

काका हाथरसी संगीत के प्रेमी तो थे ही, इसके साथ ही साथ उन्हें चित्रकारी का भी बहुत शौक था। उन्होंने कुछ दिनों तक व्यवसाय के रूप में चित्रशाला भी चलाई, लेकिन वह भी नहीं चली तो उसके बाद अपने एक मित्र के सहयोग से संगीत कार्यालय की नींव रखी। इसी कार्यालय से संगीत पर 'संगीत पत्रिका' प्रकाशित हुई। उसका प्रकाशन आज भी अनवरत जारी है। काका की पहली निम्न कविता इलाहाबाद से छपने वाली पत्रिका 'गुलदस्ता' में छपी थी-

घुटा करती हैं मेरी हसरतें दिन रात सीने में

मेरा दिल घुटते-घुटते सख्त होकर सिल न बन जाए

इसके बाद काका की और भी कई कविताओं का लगातार प्रकाशन होता रहा।

सम्पादन कार्य

काका हाथरसी ने हास्य रस से ओत-प्रोत कविताओं के साथ-साथ संगीत पर भी पुस्तकें लिखी थी। उन्होंने संगीत पर एक मासिक पत्रिका का सम्पादन भी किया। 'काका के कारतूस' और 'काका की फुलझडियाँ' जैसे स्तम्भों के द्वारा अपने पाठकों के प्रश्नों के उत्तर देते हुए वे अपनी सामाजिक ज़िम्मेदारियों के प्रति भी सचेत रहते थे। उनकी प्रथम प्रकाशित रचना 1933 में "गुलदस्ता" मासिक पत्रिका में उनके वास्तविक नाम से छपी थी।

मुख्य रचनाएँ

काका हाथरसी के मुख्य कविता संग्रह इस प्रकार हैं-

काका की फुलझड़ियाँ

काका के प्रहसन

लूटनीति मंथन करि

खिलखिलाहट

काका तरंग

जय बोलो बेईमान की

यार सप्तक

काका के व्यंग्य बाण

काका के चुटकुले

योगदान

जीवन के संघर्षों के बीच हास्य की फुलझड़ियाँ जलाने वाले काका हाथरसी ने 1932 में हाथरस में संगीत की उन्नति के लिये 'गर्ग ऐंड कम्पनी' की स्थापना की थी, जिसका नाम बाद में 'संगीत कार्यालय हाथरस' हुआ। भारतीय संगीत के सन्दर्भ में विभिन्न भाषा और लिपि में किये गये कार्यों को उन्होंने जतन से इकट्ठा करके प्रकाशित किया। उनकी लिखी पुस्तकें संगीत विद्यालयों में पाठ्य-पुस्तकों के रूप में प्रयुक्त हुईं। 1935 से संगीत कार्यालय ने मासिक पत्रिका "संगीत" का प्रकाशन भी आरम्भ किया, जो कि अब तक अनवरत चल रहा है।

पुरस्कार व सम्मान

काका हाथरसी का मंचीय कवियों में एक विशिष्ट स्थान था। सैकड़ों कवि सम्मेलनों में काका जी ने काव्य पाठ किया और अपनी छाप छोड़ दी। काका को1957 में लाल क़िला दिल्ली पर होने वाले कवि सम्मेलन का बुलावा आया तो उन्होंने अपनी शैली में काव्य पाठ किया और अपनी पहचान छोड़ दी। काका को कई पुरस्कार भी मिले। 1966 में बृजकला केंद्र के कार्यक्रम में काका को सम्मानित किया गया। काका हाथरसी को 'कला रत्न' ने नवाजा गया।1985 में उन्हें तत्कालीन राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह ने 'पद्मश्री' की उपाधि से नवाजा। काका कई बार विदेश में काव्य पाठ करने गए। 1989 में काका कोअमेरिका के वाल्टीमौर में 'आनरेरी सिटीजन' के सम्मान से सम्मानित किया गया। दर्जनों सम्मान और उपाधियाँ काका को मिली। यही नहीं काका ने फ़िल्म 'जमुना किनारे' में अभिनय भी किया। काका हास्य को टॉनिक बताते थे। उनका कहना था कि-

डॉक्टर-वैद्य बतला रहे कुदरत का क़ानून

जितना हंसता आदमी, उतना बढ़ता खून

उतना बढ़ता खून, की जो हास्य में कंजूसी

सुंदर से चेहरे पर देखो छायी मनहूसी

पुरस्कारों की शुरुआत

काका हाथरसी नाम पर ही कवियों के लिये 'काका हाथरसी पुरस्कार' और संगीत के क्षेत्र में 'काका हाथरसी संगीत' सम्मान भी आरम्भ किये। काका हाथरसी ने अपने जीवन काल में हास्य रस को भरपूर जिया था। वे और हास्य रस आपस में इतने घुलमिल गए हैं कि हास्य रस कहते ही उनका चित्र सामने आ जाता है। उन्होंने कवि सम्मेलनों, गोष्ठियों, रेडियो और टी. वी. के माध्यम से हास्य-कविता और साथ ही हिन्दी के प्रसार में अविस्मरणीय योगदान दिया है। उन्होंने साधारण जनता के लिए सीधी और सरल भाषा में ऐसी रचनाएँ लिखीं, जिन्होंने देश और विदेश में बसे हुए करोड़ों [[हिन्दी] के प्रेमियों के हृदय को छुआ।

निधन

18 सितंबर, 1906 को जन्म लेने वाले काका हाथरसी का निधन भी 18 सितंबर को ही सन 1995 में हुआ।

लेख साभार: भारत डिस्कवरी 

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