अग्रवाल समाज की भामाशाही परंपरा
महाराज अग्रसेन ने अपने नगर अग्रोहा में बसने वाले नए शख्श के लिए एक स्वर्ण मुद्रा और एक ईंट हर परिवार से देने का नियम बनाया था। ताकि अग्रोहा में आने वाले हर शख्श के पास व्यापार के लिए पर्याप्त पूंजी हो और वो अपना घर बना सके। इसी परंपरा से अग्रवाल समाज में दान देने के नींव पड़ी।
आजादी के दीवानों में अग्रवाल समाज के सेठ जमनालाल बजाज का नाम अग्रणी रूप में लिया जाना चाहिए !!
यह रहते महात्मागांधी के साथ थे, लेकिन मदद गरमदल वालो की करते थे ! जिससे हथियार आदि खरीदने में कोई परेशानी नही हो !!
इनसे किसी ने एक बार पूछा था, की आप इतना दान कैसे कर पाते है ?
तो सेठजी का जवाब था ---मैं अपना धन अपने बच्चो को देकर जाऊं, इससे अच्छा है इसे में समाज और राष्ट्र के लिए खर्च कर देवऋण चुकाऊं ।
रामदास जी गुड़वाला अग्रवाल समाज के गौरव हैं । जगतसेठ रामदास जी गुरवाला एक बड़े बैंकर थे जिन्होंने 1857 की गदर में सम्राट बहादुर शाह जफर (जिनके नेतृत्व में 1857 का आंदोलन लड़ा गया था ) को 3 करोड़ रुपये दान दिए थे। वे चाहते थे देश आजाद हो ।
सम्राट दीवाली समारोह पे उनके निवास पे जाते थे और सेठ उन्हें 2 लाख अशरफी भेंट करते थे ।
उनका प्रभाव देखते हुए अंग्रेजों ने उनसे मदद मांगी लेकिन उन्होंने मना कर दिया था ।
बाद में अंग्रेजों ने उन्हें धोके से शिकारी कुत्तों के सामने फिकवा दिया और उसी घायल अवस्था मे चांदनी चौक के चौराहे पे फांसी पे चढ़ा दिया था ।
सर गंगाराम अग्रवाल बहुत दानी और महान अभियंता थे। इन्होंने अपनी जन्मभूमि लाहौर में बहुत से दान कार्य किये और कई अस्पताल, कॉलेज और लाहौर का घंटाघर, म्यूजियम इन्हीं की दान की ही जमीन पर बना है। जिसका निर्माण भी इन्होंने अपने धन से करवाया था।
गीताप्रेस के संस्थापक जयदयाल गोयनका जी बंगाल में रहते थे। एक बार वहाँ भीषण अकाल पड़ा। सेठजी ने लगभग एक सौ चालीस सेवा केन्द्र खोल दिये, कोई आये, दो घंटा कीर्तन करके एक निश्चित मात्रामें अन्न ले जाय। इसमें काफी धन लगने लगा। एक दिन उनके छोटे भाईने पूछा—भाईजी! यह काम कबतक चलेगा? उन्होंने उत्तर दिया—जबतक हमलोग इनकी स्थितिमें न आ जायँ तबतक। अकालकी स्थिति लगभग छ: महीने रही तबतक सेवाकार्य चला। अकाल समाप्त होनेके बाद स्थानीय लोगोंने अभिनन्दन समारोह किया। अन्य वक्ताओंके बोलनेके बाद सेठजीने कहा—हमने तो आपसे अर्जित धन भी पूरा आपकी सेवामें नहीं लगाया। आपसे अर्जित पूरा धन लगानेके बाद यदि हम मारवाड़से धन लाकर आपकी सेवामें लगाते तो कहा जा सकता था कि हमने कुछ किया। हमने तो आपकी चीज भी पूरी आपको नहीं दी।
मारवाड़ में आये छप्पनियाँ अकाल में अग्रवाल सेठ भगवान दास बागला जी की विधवा ने काफी दान धर्म किया था। सेठानी का जोहड़ का निर्माण इसी अकाल में उन्होंने करवाया था। जो राजस्थान की संरक्षित स्मारकों में से एक है।
भारत में फैले कोरोना वायरस महामारी के समय सबसे पहले एक अग्रवाल उद्योगपति श्री अनिल अग्रवाल ही आगे आये और उन्होंने 1 अरब रुपये दान किये। इसके अलावा बजाज, जिंदल और मित्तल घरानों ने भी 1-1 अरब रुपये दान दिए और अग्रवाल समाज की भामाशाही परंपरा को कायम रखा।
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