Bikanervala Success Story
Bikanervala Success Story Explained; Lal Chand Aggarwal Brothers | History & Facts
मेगा एंपायर- बीकानेर की छोटी-सी दुकान बन गई 'बीकानेरवाला':दिल्ली की गलियों में बेची नमकीन, आज 3 हजार करोड़ का रेवेन्यू
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नमकीन, भुजिया, रसगुल्ले...ये सब सुनते ही दिमाग में एक नाम ‘बीकानेरवाला’ का आता है। 1905 में एक छोटी सी दुकान से शुरू हुई इस कंपनी के आउटलेट आज विदेशों में भी हैं।
पिछले दिनों जब अमूल और मदर डेयरी के दूध के दाम बढ़े तो कंपनी ने अपनी मिठाइयों के दाम नहीं बढ़ाने का फैसला लिया। कंपनी ऐसा कर अपने कस्टमर के बजट को बिगाड़ना नहीं चाहती थी। आज 'बीकानेरवाला' का रेवेन्यू 3000 करोड़ रुपए है।
मेगा एंपायर में आज बात बीकानेरवाला की एंपायर बनने की...
कंपनी के सफर की शुरुआत राजस्थान के बीकानेर शहर से हुई थी। 1905 की बात है। लालचंद अग्रवाल अपने दो बेटे सत्यनारायण और केदारनाथ अग्रवाल के साथ मिलकर एक नमकीन की दुकान खोलते हैं। इस दुकान का नाम रखते हैं- 'बीकानेर नमकीन भंडार।'
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लालचंद अग्रवाल ने अपनी पहली दुकान बीकानेर शहर के कोटा गेट के पास शुरू की थी। शुरुआत में इस दुकान पर कुछ ही तरह की नमकीन और मिठाइयां मिलती थीं।
शहर के लोगों को इनके मिठाई और नमकीन का कॉम्बिनेशन बेहद पसंद आता है। धीरे-धीरे अग्रवाल परिवार का यह छोटा सा वेंचर पॉपुलर हो जाता है। लगभग चार दशक तक बीकानेर शहर में नाम कमाने के बाद एक दिन परिवार के सदस्यों ने फैसला किया कि अब वक्त आ गया है कि बीकानेर नमकीन भंडार को शहर के बाहर ले जाया जाए। यानी देश के दूसरे शहरों में भी नमकीन की दुकान खोली जाए।
दिल्ली की चांदनी चौक में खोली दुकान
1947 में देश अंग्रेजों से आजाद हुआ। जिसके तीन साल बाद 1950 में सत्यनारायण अग्रवाल और केदारनाथ अग्रवाल दिल्ली पहुंचते हैं। दोनों भाइयों ने शुरुआत में दिल्ली की गलियों में घूम-घूमकर रसगुल्ले और नमकीन बेचना शुरू किया।
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केदारनाथ अपने भाई के साथ मिलकर बाल्टी में रसगुल्ले और नमकीन लेकर गली-गली बेचा करते थे। इस तरह दोनों भाइयों ने लोगों के बीच अपनी पहचान बनाई।
कुछ ही समय में दिल्ली के लोगों के बीच भी उनकी बनाई नमकीन और मिठाई पॉपुलर होने लगी। ज्यादा कमाई होने से कुछ पैसे भी बचने लगे। यह सब देखते हुए अग्रवाल परिवार ने चांदनी चौक की परांठे वाली गली में एक छोटी सी दुकान ले ली।
मूंग दाल के हलवे से मिली पहचान
दिल्ली वाली दुकान का नाम भी ‘बीकानेर नमकीन भंडार’ रखा गया। मूंग दाल हलवा इस दुकान की स्पेशियलिटी बन गई। ऐसा कहा जाता है कि पहली बार घर से बाहर किसी दुकान पर दिल्ली वालों ने मूंग दाल के हलवे का स्वाद चखा था। लोग दूर-दूर से इस दुकान पर मूंग दाल का हलवा खरीदने आते थे।
चांदनी चौक पर मौजूद दूसरे दुकानदारों से अग्रवाल भाइयों की दुकान का पता पूछते थे। दूसरे दुकानदार जवाब में पूछते थे- क्या आप बीकानेरवाले का पता पूछ रहे हैं। इस तरह इस दुकान का अनऑफिशियल नाम कब बीकानेर वाला पड़ गया, अग्रवाल भाइयों को भी पता नहीं चला। हां, इतना जरूर हुआ कि अग्रवाल परिवार ने इस बात को बिजनेस स्ट्रैटजी की तरह देखा और दुकान का नाम बदलकर ऑफिशियल तौर पर ही 'बीकानेरवाला' कर दिया।
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दिल्ली के चांदनी चौक में पहचान बनाने के बाद कंपनी ने अगले कुछ सालों में करोल बाग सहित दिल्ली के दूसरे हिस्सों में आउटलेट खोले।
श्याम सुंदर अग्रवाल ने बदली तस्वीर
1968 में केदारनाथ अग्रवाल के बेटे श्याम सुंदर अग्रवाल ने फैमिली बिजनेस जॉइन किया। तब श्याम सुंदर की उम्र 16 साल थी। वह हाई स्कूल की पढ़ाई के तुरंत बाद बिजनेस से जुड़ गए थे।
1980 के दशक में भारतीय बाजार में कुछ विदेशी पिज्जा ब्रांड्स ने दस्तक दे दी थी। ये देखकर श्याम सुंदर को लगा कि जब बाहर से आई कंपनी भारतीय बाजार में फैल सकती है तो उनकी स्वदेशी कंपनी क्यों नहीं। इसके बाद से ही उन्होंने दिल्ली से बाहर भारत के दूसरे हिस्सों में भी 'बीकानेरवाला' का विस्तार करना शुरू किया।
इसके साथ ही कुछ नए प्रोडक्ट लॉन्च करने की प्लानिंग बनाई गई, जिससे कंपनी की तस्वीर बदलने लगी। देश के दूसरे हिस्सों में भी लोग 'बीकानेरवाला' के नमकीन को पहचानने लगे।
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शुरुआत के कुछ साल श्याम सुंदर ने एक इंटर्न की तरह काम सीखा, फिर कंपनी की बागडोर अपने हाथों में ली। आज वह कंपनी के मैनेजिंग डायरेक्टर हैं।
बिकानो को लॉन्च किया
श्याम सुंदर की लीडरशिप में ‘बीकानेरवाला’ अपने रेस्टोरेंट बिजनेस से आगे बढ़ते हुए पैकेज्ड नमकीन बेचने का निर्णय लेती है। 1988 में ‘बीकानो’ पैकेज्ड नमकीन ब्रांड की नींव रखी जाती है। इसका मकसद था हर छोटी-बड़ी दुकानों के जरिए लोगों तक पहुंचना।
इसके साथ समय आता है श्याम सुंदर के बेटे का फैमिली बिजनेस जॉइन करने का। 2000 में मनीष अग्रवाल 'बीकानेरवाला' से जुड़ते हैं। उन्होंने कंपनी जॉइन करने के साथ ही सबसे पहले 'बीकानो' को विदेशी मार्केट में एक्सपोर्ट करने के लिए लाइसेंस लिया और इसे दूसरे देशों में पहुंचाया।
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इस तस्वीर में श्याम सुंदर और मनीष नजर आ रहे हैं। मनीष की वजह से बीकानो को ग्लोबल लेवल पर पहचान मिली। आज वह कंपनी के डायरेक्टर हैं।
भारत के अलावा 7 और देशों में बीकानेरवाला की मौजूदगी
'बीकानेरवाला' नेपाल, अमेरिका, कनाडा, UAE, कतर, न्यूजीलैंड और सिंगापुर के मार्केट में भी मौजूद है। इन देशों में 50 से ज्यादा आउटलेट हैं। भारत में 100 से ज्यादा आउटलेट हैं। कंपनी ने पिछले साल ही गुरुग्राम में अपना 150वां आउटलेट खोला है। 2022 के आंकड़ों के मुताबिक 'बीकानेरवाला' की भारतीय ऑर्गनाइज्ड स्नैक्स मार्केट में 6 प्रतिशत की हिस्सेदारी है।
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चाय प्रेमियों के लिए ‘टपरी टेल्स’
भारतीयों के चाय प्रेम को देखते हुए 'बीकानेरवाला' ने चाय की टपरी के लिए स्नैक्स की अलग कैटेगरी तैयार की है। ‘टपरी टेल्स’ के नाम से तैयार किए इस कैटेगरी में छह किस्म की नमकीन हैं, जिसे लोग चाय के साथ लेना पसंद करते हैं। इसमें सूजी रस्क, मटर पारा, मेथी मठरी, गोल मट्ठी और मिनी समोसा और भाकरवाड़ी जैसे नमकीन हैं।
मसाला मार्केट के लिए लॉन्च किया ‘स्वादानुसार’
'बीकानेरवाला' ने अपनी राइवल कंपनी से मुकाबला करने के लिए 2023 में मसाला मार्केट में कदम रखा। 'बीकानो' ब्रांड के तहत 'स्वादानुसार' नाम से मसाले प्रोडक्ट लॉन्च किए। इस तरह कंपनी आज भारतीय किचन में इस्तेमाल होने वाले लगभग सभी मसालों को बेचती है।
तीन साल में IPO लॉन्च करने का प्लान
कंपनी के मैनेजिंग डायरेक्टर श्याम सुंदर अग्रवाल ने पिछले साल एक इंटरव्यू में कहा था कि बीकानेरवाला अगले तीन साल के भीतर अपना IPO लाना चाहती है। कंपनी का प्लान 2030 तक 10 हजार करोड़ का रेवेन्यू और 600 स्टोर तक पहुंचना है। अभी कंपनी का रेवेन्यू 3 हजार करोड़ रुपए का है।
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