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Wednesday, June 12, 2024

KHANDELWAL VAISHYA OF KHANDELA - ORIGIN & HISTORY

KHANDELWAL VAISHYA OF KHANDELA - ORIGIN & HISTORY

महाभारत में खंड नामक राजा की चर्चा है। इला नाम पृथ्वी का है। इस प्रकार खंडस्य इला यह षष्ठी तत्पुरुष समास करने से खंडेला शब्द का अर्थ खंड+इला खंड राजा की पृथ्वी। इस प्रकार कर्मधारण समास करने से खंडी भूत (खंड-खंड हुई) पृथ्वी यह अर्थ होता है। इस अर्थ की उत्पत्ति इस प्रकार से होती है कि नगर के बीच में एक नदी है।

इससे इसकी भूमि दो भागों में विभाजित होती है। कदाचित इसी कारण खंडेला नामकरण हुआ होगा। जब देश स्वतंत्र नहीं हुआ था, तब यहां दो राजाओं का राज था। छोटा पाना और दूसरा बड़ा पाना। खंडेला की ऐतिहासिक विरासतों में गढ़, किले, बावड़ियां, हवेलियां एवं छतरियां आदि प्रमुख हैं।

यहां खंडलेश्वर महादेव के साथ चारोड़ा धाम का शिव मंदिर, चामुंडा माता का मंदिर, बिहारीजी का मंदिर, नृसिंह मंदिर एवं किले वाले बालाजी का मंदिर प्रमुख हैं। अगर कुएं व बावड़ी की बात करें तो 52 बावड़ियां शामिल हैं। इसलिए इसे बावन बावड़ियों वाला खंडेला या बावड़ियों का शहर कहा जाता है।

इन बावड़ियों में कालीबाय, बहूजी, सोनगिरी (सोंगरा), मूनका, पलसानिया, मांजी, द्रौपदी, पोद्दार, काना, लाला, द्वारकादास आदि प्रमुख हैं। खंडेलवाल वैश्य समाज ने अपने उद्भव स्थल खंडेला को तीर्थ स्थल के रूप में माना है व पलसाना रोड पर अपनी 37 कुल देवियों एवं गणेशजी को समर्पित खंडेलवाल वैश्य धाम (खंडेला धाम) का निर्माण कराया है।

खंडेलवाल समुदाय की उत्पत्ति और नाम सीकर जिले के एक कस्बे खंडेला से जुड़ा है। उनका मानना ​​है कि उनका नाम खंडेल नामक ऋषि से लिया गया है, जिनके 72 1/2 पुत्रों ने 72 1/2 गोत्र (कुलों) की शुरुआत की, जिनमें समुदाय विभाजित है। प्रत्येक गोत्र अपनी कुलदेवी की पूजा करता है । ये गोत्र समुदाय के उपखंड हैं।

खंडेलवाल उपनाम भारत के जयपुर के पास खंडेला कस्बे में रहने वाले परिवारों द्वारा अपनाया गया था। व्यापारी समुदाय से संबंधित लोगों ने इस उपनाम को खंडेलवाल (वैश्य) के रूप में अपनाया और बनिया/ब्राह्मण समुदाय से संबंधित लोगों ने इस उपनाम को खंडेलवाल के रूप में अपनाया

अधिकांश खंडेलवाल (वैश्य) सदस्य जयपुर के आसपास उत्तरी राजस्थान में रहते हैं।

इस्तेमाल किए जाने वाले उपनाम "खंडेलवाल" या गोत्र हैं (नीचे समझाया गया है)। इसके अलावा कुछ उपनाम ऐसे भी हैं जो या तो परिवार को दिए गए शीर्षक हैं (चौधरी, शाह, ,,) या पेशे/व्यवसाय (सोनी, श्रॉफ, शाह..)। गुप्ता उपनाम लगभग सभी समुदायों (खंडेलवाल के अलावा भी) द्वारा व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है और आम तौर पर सभी बनियों से जुड़ा होता है... किसी भी जाति/समुदाय से

खंडेलवाल समुदाय में 72 गोत्र हैं। ये गोत्र समुदाय के उपविभाग हैं। परंपरागत रूप से, एक ही गोत्र में विवाह नहीं किए जाते हैं। समुदाय के सदस्य अपने गोत्र के आधार पर एक विशिष्ट देवता (कुल देवी) का पालन करते हैं।

खंडेलवाल, जिन्हें सरावगी के नाम से भी जाना जाता है, अपने मूल का दावा खंडेला (सीकर) से करते हैं। यह शहर जैन धर्म का केंद्र था, जहाँ पहली शताब्दी ईसा पूर्व में लगभग 900 मंदिर थे। महामारी (प्लेग) के कारण शहर में हर दिन भारी तबाही मची हुई थी। शासक खंडेलगिरी ने स्थानीय पुजारियों को बुलाया और उनसे पूछा कि इस आपदा को कैसे टाला जाएगा। पुजारियों ने समझाया कि यह लोगों को दंड देने के लिए देवताओं द्वारा भेजा गया एक अभिशाप है और देवताओं को प्रसन्न करने के लिए नरमेध यज्ञ करना होगा। शासक ने मानव बलि से जुड़े किसी भी यज्ञ को आयोजित करने में अपनी असमर्थता व्यक्त की। पुजारियों और उनके समर्थकों ने अपने दम पर यज्ञ आयोजित करने का निर्णय लिया। लगभग 5000 जैन खंडेला आए और शहर के बाहर एक पार्क में रुके। एक शाम जब भिक्षु ध्यान में लगे थे

जब जैन आचार्य को इस बारे में पता चला तो वे शहर में पहुंचे और खंडेला के निवासियों को सलाह दी कि वे महामारी के दौरान शहर खाली कर दें और शहर से बाहर रहें। उनके जैन अनुयायियों ने उसी के अनुसार काम किया, लेकिन शासक और गैर-जैन लोगों ने शहर के अंदर रहना पसंद किया। शासक खुद गंभीर रूप से बीमार हो गया और उसे आचार्य के पास ले जाया गया, जिन्होंने उनकी सलाह का पालन किया और शहर के बाहर रहने लगे और बीमारी से बच गए।

कृतज्ञ शासक ने आचार्य और उनके साथी भिक्षुओं को दरबार में सम्मानित किया और जैन धर्म को शर्मसार किया। लगभग 3 लाख लोगों ने जैन धर्म स्वीकार किया। ये जैन और उनके वंशज खंडेला से काउंटी के अन्य हिस्सों में चले गए और अपने गृहनगर खंडेला के नाम पर खंडेलवाल के रूप में जाने गए। गैर-जैन खंडेलवाल वैश्य भी खंडेला से आते हैं।

समाज की कूलदेवियां गौत्र तथा कूल देवियों के स्थान

खण्डेलवाल वैश्य समाज में 72 गौत्र हैं। आज समाज में गौत्र एक सूत्र का काम करता है

आजकल तो यह भी प्रथा प्रचालित हो गई कि व्यक्ति अपने नाम के आगे अपना उपनाम का उल्लेख भी करते है। अपने-अपने गौत्रों की कुल माताऐं अलग-अलग होती है। जिनके पूजन का बच्चे के जन्म से विवाह तक बहुत महत्व होता है। हमारे 72 गौत्रों में 37 भिन्न-भिन्न माताऐं है। जिनमे जीणमाता 13 गौत्रों की सुखण्ड और बमूरी 7-7 गौत्रों में पूजक है। प्रति वर्ष अश्विवन की नवरात्रि मे अष्टमी के दिन इन देवियों का प्रत्येक घर मे पूजन का विधान है। इसके अतिरिक्त यद्यति मुण्डन भी कुल देवी के समक्ष ही होने का विधान हैं। लेकिन दुरी तथा बदलती हुई परिस्थितियों के कारण आजकल इसका कठिनता से पालन होना सम्भव नहीं रहा है। फिर भी इन देवियों का पूजन बडी श्रद्धा व पवित्रता के साथ किया जाता है। धार्मिक कार्यों में इसका सबसे अधिक ध्यान रखा जाता है। विवाह मानव के जीवन का सबसे महत्पूर्ण संस्कार है तथा इस संस्कार के लिये भी गौत्र का बहुत महत्वपूर्ण है विवाह में स्वंय का तथा माता का गोत्र टालकर विवाह किया जाता है । विवाह के समय भी पहले चार गौत्र टालकर विवाह सम्बन्ध होते थे लेकिन आज बदलते हुए जमाने में दो गोत्र टाले जाते है।

कुल देवियां, गौत्र एवं उनके स्थान

(1)कपासन माता - गोत्र -खूंटेटा । कुल देवी
स्थान- जयपुर जिले में शाहपुरा अलवर रोड
पर बैराठ के पास मेड गांव में स्थित है।

(2)माखद माता- गौत्र - सेठी, बैद । कुल देवी स्थान- जयपुर जिले में कोटपुतली से नीम का थाना रोड पर गावडी गांव के पास स्थित है।

(3)सिरसा माता - गौत्र- बडाया, बूसर, माली, बावरिया। कुल देवी स्थान- अलवर जिले में दौसा से अलवर रोड पर गोला का बास के के आगे पहाड में गुफा में स्थित है।

(4)सेंतलवास माता- गौत्र - धामाणी, राजोरिया ,भांगला। कुल देवी स्थान- सीकर जिले के खण्डेला गांव में चारोडा के पास ओमा माली के खेत में स्थित है।

(5)शाकम्भरी माता - गौत्र- डंगायच । कुल देवी स्थान- सीकर जिले के खण्डेला से उदयपुर वाटी होते हुए 16 किमी आगे की ओर स्थित है।

(6)चांवड (चामुंडा) माता, गौत्र- झालाणी। कुल देवी स्थान- अजमेर में फाई सागर रोड पर सी आर पी एफ कैम्प के पास पहाड़ी पर स्थित है।

(7)वतवीर माता, गौत्र- माठा। कुल देवी स्थान- सीकर जिले में खण्डेला गांव से चारोडा के पास स्थित है।

(8)नीमवासिनी, (गाववासिनी) - गौत्र- बीमवाल, (बैवाल)। कुल देवी स्थान- सीकर जिले में खण्डेला गांव से खण्डेला धाम पर स्थित है।

(9)बमूरी माता, गौत्र- नारायणवाल, घीया, जसोरिया,फरसोईया, ठाकुरिया। कुल देवी स्थान- सीकर जिले जीण माता मन्दिर के नीचे तहखाने में स्थित है।

(10)औरल माता, गौत्र- रावत । कुल देवी स्थान-सीकर जिले में खण्डेला गांव में रसेडा तालाब के किनारे स्थित है।

(11)आमण माता, गौत्र- आमेरिया, भुखमारिया, माणक बोहरा । कुल देवी स्थान- जयपुर जिले में मनोहरपुर
(18 किमी दूर) के पास दूदी आमलोदा गांव स्थित है।

(12)तिलोधहड माता, गौत्र- आकड। कुल देवी स्थान- सीकर जिले के खण्डेला गांव स्थित रसेडा तालाब के निकट हनुमान जी के मन्दिर के पास, बड के पेड के नीचे स्थित है।

(13)मण्डेर माता, गौत्र- पाबूवाल । कुल देवी स्थान- सीकर जिले में खण्डेला गांव में रसेडा तालाब रोड पर स्थित है।

(14)सावरदे माता, गौत्र- बम्ब | कुल देवी स्थान- जयपुर में जमवारामगढ रोड पर बन्ध घाटी जलमहल के पीछे स्थित है।

(15) नागिन माता, गौत्र- ताम्बी, बुढवारिया
कुल देवी स्थान- जयपुर जिले में अमरसर के पास नायन गांव के खेत में स्थित है।

(16)समगरा (करसट) माता, गौत्र- सिरोहिया। कुल देवी स्थान- सीकर जिले में खण्डेला गांव में खण्डेला धाम पर स्थित है।

(17)डावरी माता, गौत्र- धौंकरिया। कुल देवी स्थान- झुन्झुनू जिले में रघुनाथगढ गांव से 6 किमी आगे डाबरी गांव में स्थित है। (फतेहपुर शेखावटी)

(18)अमरल (नोसल), गौत्र- मेठी । कुल देवी स्थान- अजमेर जिले में किशनगढ से रूपनगढ होते हुए नौसल गांव में स्थित है।
(19)आंतेन माता (आंतन), गौत्र-कटटा, टोडवाल, नैनीवाल। कुल देवी स्थान- जयपुर जिले में चौमूं से वीर हनुमान जी रोड पर स्थित है।
(20)जमबांध (जमहाई) माता, गौत्र- बढेरा । कुल देवी स्थान- जयपुर जिले में जमवारामगढ बांध के आगे स्थित है।
(21)सरूण्ड माता - गौत्र- अटोलिया, बडगौती, हल्दिया,कूलवाल, झंगीनिया, मामोडिया । कुल देवी स्थान - जयपुर जिले में कोटपुतली से नीम का थाना रोड पर सरूण्ड गांव की पहाड़ी पर स्थित है।
(22)चामुण्डा माता, गौत्र- महरवाल, सांभरिया, सिंगोदिया। कुल देवी स्थान- सीकर जिले के खण्डेला गांव में पहाड़ी पर स्थित है।
(23)कोलाईन माता, गौत्र- बाजरंगान । कुल देवी स्थान- अलवर जिले में हमीरपुर गांव में पहाड़ी पर स्थित है।
(24)नन्दभगौनी (दांत) माता, गौत्र- किलकिलिया। कुल देवी स्थान- जयपुर जिले में जमवारामगढ गांव में पहाड़ी के उपर स्थित है।
(25)विरहल (ललता) माता, गौत्र- गोलिया। कुल देवी स्थान- सीकर जिले के खण्डेला बरसिंहपुरा रोड से अन्दर रामू अहीर के खेत में स्थित है।
(26)जीण माता, गौत्र- नाटाणी, दुसाद, कायथवाल,पाटोदिया, कासलीवाल, टटार, खारवाल, भण्डारिया, तमोलिया, लाभी, सांखूनियाँ, शाहरा, सोनी। कुल देवी स्थान- सीकर जिले में गौरियों से रेवासा होते हुए 15 किमी आगे स्थित है।
(27)बडवासिनी माता, गौत्र- पीतलिया। कुल देवी स्थान- दौसा से आगे सिकन्दरा से गंगापुर रोड पर कैलादेवी के पास स्थित है। (धोलगढ़)
(28)बरसठ (कुलसठ) माता, गौत्र- सौंखिया। कुल देवी स्थान- दौसा जिले में बसवा में झालाणी मौहल्ले में पारासर के मकान में स्थित है।
(29)नावड माता, गौत्र- केदावत, ओढ । कुल देवी स्थान- अलवर जिले में अलवर शाहपुरा रोड पर थाना गाजी के पास तालवृक्ष के पास स्थित है।
(30)मितर माता, गौत्र- काठ। कुल देवी स्थान- अलवर जिले में राजगढ के पास माचेडी गांव में स्थित है।
(31)कनकस (धौलागढ) माता, गौत्र - कोडिया।
कुल देवी स्थान- अलवर जिले में लक्ष्मणगढ
के पास धौलागढ की पहाड़ी पर स्थित है।
(32)सार माता, गौत्र - माचीवाल, बनावडी । कुल देवी स्थान– झुन्झुनू जिले में मुकन्दगढ के पास राजपुरा गांव में स्थित है।
(33)विनजिल (वृन्दावती) माता, गौत्र- डांस।। कुल देवी स्थान- सवाई माधोपुर जिले के बौंली गांव में संस्कृत कॉलेज के पास बगीची में स्थित है।।
(34)ढकवासन माता, गौत्र- मंगोडिया (मंगोडरिया ) । कुल देवी स्थान- अलवर जिले में बहरोड से आगे तातारपुर चौराहे से एक किलोमीटर पहले स्थित है।

(35)भंवर कठेर (बांकी) माता, गौत्र- खटोडिया |(कठोरिया)। कुल देवी स्थान- जयपुर जिले में जमवारामगढ़ तहसील में रायसर गांव में पहाड़ी पर स्थित है।
(36)वक्र (समोखण) माता, गौत्र- बटवाडा,
नैनावा। कुल देवी स्थान- अलवर जिले के
राजगढ़ के पास माचेडी गांव में स्थित है।

(37)सगरदे माता, गौत्र- मानकबोहरा ।

समाज के 72 गौत्रों का पूर्ण विवरण -गौत्र (अल्ल),ऋषि,प्रवर ,कुल देवी, उत्पत्ति इतिहास

गौत्र (अल्ल),ऋषि,प्रवर ,कुल देवी , उत्पत्ति का विवरण सहित

जाने- गोत्र और प्रवर में क्या अंतर है?

गोत्र का अर्थ होता है उस ऋषि का जिसकी वंश परंपरा के हम अभिन्न अंग हैं। प्रवर का अर्थ है कि किसी गोत्र परंपरा में प्रादुर्भूत हुए लब्धकीर्ति कुछ श्रेष्ठ ऋषि। प्रवर को आर्षेय भी कहते हैं। प्रवर की संख्या प्रायः 3 से 5 होती है।

(1) अटोलिया ऋषि शांडिल्य प्रवर शांडिल्य,असिल ,देवल।कुल देवी सुरण्ड।उत्त्पत्ति विवरण -पुरातन काल में शत्रु की सेना की तैयारियों पर नजर रखने वाले पहले अग्रटोलिया फिर 'अटोलिया' कहलाए।

(2) आंकड- ऋषि –अव्य "। प्रवर- अव्य,बलि,सारस्वत "।कुल देवी-तिलोंधहढ माता।राजा खण्डेलगिरी के समय राज्योन्नति के लिए जनगणना आँकड़े एकत्रित करने वाले पहले आँकड और फिर "कहलाये"।

(3) आमेरिया- ऋषि & प्रवर-आलम्यान। कुल देवी -आमीन। स्थान -दूदी, आम, लोदा (मनोहपुर से 3 किमी पूर्व में) "।उतपत्ति विवरण-जयपुर की प्राचीन राजधानी आमेर के निवासी आमेरिया' से विख्यात हुए।

(4) ओढ़ - ऋषि & प्रवर -गौतम। कुल देवी –नावड़। प्रतिस्पर्धा, मुकाबला या बराबरी का राजस्थानी शब्द है होड़। प्रांतों के निवासी साहसिक कार्यों में होड़ करने वाले कालान्तर में 'ओढ' कहलाए।

(5) कट्टा- ऋषि –अत्री। प्रवर –आत्रेय, शतालप,सांख्य।कुल देवी –आमन।दुश्मन की फौज की रसद काट देने वाले 'कट्टा' गौत्र के अधिकारी हुए।

(6) कठोरिया- ऋषि – भारद्वाज।प्रवर -भारद्वाज,आंगिरस. बार्हस्पत्य।कुल देवी - भंवर केठर ।कठोरपरिश्रमी, वीर योद्ध को 'कठोरिया' गौत्री कहा जाने लगा।

(7)कायथवाल- ऋषि- जैमिन प्रवर – जेमिन, उतथ्य, सांस्क्रति कुलदेवी – जीण माता .काया यानी शरीर को सामान्य स्थिति में रखते हुए कायाकल्प के पूर्व सिद्ध हस्त लोग 'कायथवाल' कहलाये।

(8) काठ- ऋषि – अनाव्रक। प्रवर –गार्म्य,गौतम,वशिष्ठ।कुल देवी- मीतर ।लकड़ी का व्यवसाय करने वाले 'काठ' गोत्र से प्रचलित हुए।

(9) कासलीवाल – ऋषि- जेमिन।प्रवर -जैमिन,उतथ्य,साँस्कृति ।कुल देवी –जीण माता।कांसे धाती के काम करने वाले 'कासलीवाल' कहलाये।

(10) किलकिलिया - ऋषि-आंगिरस। प्रवर- आंगिरस,वशिष्ठ, वार्हस्पत्य।कुल देवी-नन्दभगोनी।कबूतर व अन्य पक्षियों के व्यवसाय करने वाले 'किलकिलिया' कहलाये।

(11) कूलवाल- ऋषि–शांडिल्य।प्रवर-शांडिल्य,असित,देवल।माता-सुरंड उत्तर भारत में स्थित कुल्लू मनाली घाटी के सूर्यवंशी राजपूत के वंशज 'कूलवाल' गौत्र के अधिकारी हुए।

(12)केदावत - ऋषि-गौतम| प्रवर-गौतम,वशिष्ट, वार्हस्पत्य |कुल देवी -नावड़ | केदार पर्वत के इर्द गिर्द रहने वाले वैश्य जो केदार पर्वत पर सदृश अटल होकर युद्ध में लड़ते थे वहीं शूरवीर ‘केदावत' गोत्र से जाने गये |

(१३)कोडिया (गौरवाल)- ऋषि-कांचन|प्रवर -अवस्थ,देवल,देवराज |कुल देवी-कनकस|कोडियों के व्यापारी ‘कोडिया’गोत्री कहलाये |

(14)खारवाल -ऋषि-जैमिन।प्रवर -जैमिन,उतथ्य,सांकृति।नमक एवं उससे मिश्रितवस्तुओं के निर्माता एवं व्यवसायी 'खारवाल' कहलाये जाने लगे।

(15)खूंटेटा -ऋषि-काश्यप। प्रवर -काश्यप,अवत्सार, नैधव।अपनी आन बान शान से लड़ने वाले शूरवीर रण में जहां खूंटा टेक देते थे, वे कालान्तर में 'खूंटेटा' कहलाये।

(16)गोलिया(गोदाजिया)-ऋषि-शांडिल्य। प्रवर-शांडिल्य,असित,देवल।शादी ब्याह में काम आने वाले सामानों के भण्डार रखने वाले 'गुदराइया' फिर अपभ्रंश होकर गोलिया कहलायें ।

(17)घीया-ऋषि-वशिष्ठ। प्रवर -वशिष्ठ,शक्ति,पाराशर।कुलदेवी-बमेरी। घी के व्यवसायी 'घीया' गौत्र वाले हुए।

(18)जघिनिया-ऋषि -शांडिल्य। प्रवर -शांडिल्य,असित,देवल।कुलदेवी-बमूरी।भरतपुर क्षेत्र में जघीना रियासत के निवासी जघीनिया से 'जंघानिया' कहे जाने लगे ।

(19)जसोरिया-ऋषि- वशिष्ठ। प्रवर -वशिष्ठ,शक्ति,पाराशर।दक्षिण भारत में स्थित जैसोर के निवासी जसोरिया कहलाये।

(20)झालानी-ऋषि-काण्वायन। प्रवर -काण्वायन,आंगिरस,वार्हस्पत्य,अवत्सार,नैधव। कुलदेवी-धावड़। राजस्थान स्थित झालावाड़ रियासत के निवासी झालाबाजी फिर झालाणी बाद में 'झालानी' कहलाये ।

(21)टटार-ऋषि -जैमिन ।प्रवर -जैमिन,उतथ्य,सांकृति। कुलदेवी -जीण। टाटरी रासायनिक पदार्थ के

औषधि व्यवसायी एवं निर्माता 'टटार' कहलाये ।

(22)ठाकुरिया -ऋषि-वशिष्ठ,प्रवर -वशिष्ट, शक्ति,पाराशर। कुलदेवी बमुरी। ठिकानेदार शब्द से ठाकुर फिर ठाकुर का अपभ्रंश के नीचे 'ठाकुरिया' हुआ।

23) डंगायच - ऋषि सौकालीन।प्रवर- सौकालीन, आंगिरस, वार्हस्पत्यरण । कुलदेवी -सिकराय। रण में एक एक डग नाप तौल कर रखने वाले यौद्धा 'डंगायच' कहे जाने लगे ।
(24). डांस- ऋषि- वैयाधपद्य। प्रवर -सांसृति,प्रवत्सार,नेधव। कुलदेवी -विनजिल । दुश्मन से रक्षा करने वाले एवं आक्रमणकारियों को सर्प की तरह डस लेते थे। 'डांस' कहलाये।
(25) तमोलिया - ऋषि-जैमिन। प्रवर- जैमिन,उतथ्य,सांकृति। कुलदेवी-जीण ।ताम्बूल अर्थात् पान का व्यवसाय करने वाले 'तमोलिया' कहलाये ।
(26) तांबी- ऋषि-वासुकि। प्रवर-अक्षोम्य,अनन्त,वासुकी। कुलदेवी-नागिन। ताम्बा धातु का व्यवसाय करने वाले 'ताम्बी' कहे जाने लगे ।
(27) टोडवाल-ऋषि-अत्रि। प्रवर- आत्रेय,शातातप, सांख्य । कुलदेवी आतेंन(आंतन) ।बंगाल प्रान्त के टोडवाल वंशके चन्द्रवंशी राजपूत 'तोड़वाल' हुए ।
(28) दुसाद-ऋषि -जैमिन।प्रवर जैमिन,उतथ्य,सांकृति।कुलदेवी -जीण माता। जयपुर के दौसा ग्राम के निवासी 'दुसाद' कहे जाने लगे।
(29) धामानी- ऋषि-शुनक।प्रवर- शुनक,शोनक ,गृत्समद। विदेश ज्ञान में प्रवीण पहले धामवाजी फिर 'धामानी' कहलाये ।
(31) धौकरिया-ऋषि-कोडिल्य।प्रवर- कौडिल्य,स्तिमिक,कौत्स। कुलदेवी- डावरी ।धोकनी का अर्थ है धातुओं को गलाना । विभिन्न प्रकार की धातुओं को गलाने एवं धौकनियो के निर्माता 'धोकरिया' गौत्र से जाने लगे ।
(31)निरायणवाल- ऋषि वशिष्ठ। प्रवर -वशिष्ठ,शक्ति,पाराशर। कुलदेवी बमूरी ।नारायण अर्थात् ईश्वर के अनन्य भक्त 'निरायणवाल' गौत्र से जाने लगे ।

(32)नाटानी- ऋषि-जैमिन। प्रवर-जैमिन,उतथ्य,सांकृति। कुलदेवी-जीण ।नाटकों के निर्माता 'नाटानी' कहलाये । नाटानी परिवार के पूर्व पुरूष ही नाटकों का श्री गणेश करते थे ।

(33) नेनावा -ऋषि- कृष्णात्रय। प्रवर- क्रष्नात्रय,आत्रेय,वास। कुलदेवी-वक्र।

(34) नेनीवाल- ऋषि-अत्री।प्रवर-आत्रेय, शालाताप,सांख्य।कुलदेवी-आंतन।नाहन राज्य के निवासी जो बाद में राजा खण्डेलगिरी की शौर्य प्रतिभा से प्रभावित होकर खण्डेला में जा बसे और वहीं व्यवसाय करने लगे 'नहनीवाल' कहलाये।।

(35)बडगोती(पचलेरा,कूड)-ऋषि -शांडिल्य।प्रवर -शांडिल्य,असित,देवल। कुलदेवी-सुरंड।यह तीनों समान
गोत्री माने गये ।

(36) पागूवाल(पाबूवाल)- ऋषि-मौदुगल ।प्रवर- और्व्य,च्यवन,भृगु,जमदग्नि,आप्नुवान। कुलदेवी-मडेर।विभिन्न प्रकार की पगड़ियों के अविष्कारक एवं निर्मातापहले पागूवाल फिर 'पाबूवाल कहलाये ।
(37)पाटोदिया-ऋषि-जेमिन। प्रवर- जैमिन,उतथ्य,सांकृति। कुलदेवी-जीण। उत्तर भारत में स्थित पाटादी के निवासी 'पाटोदिया' कहे जाने लगे ।
(38)पीतलिया-ऋषि-विश्वामित्र। प्रवर - विश्वमित्र,मरीचि,कौशिक। कुलदेवी बमूरी। पीतल धातु के निर्माता एवंव्यवसाय करने वाले'पीतलिया' कहे जाने लगे।
(39) फरसोइया- ऋषि -वशिष्ठ। प्रवर- वशिष्ठ,शक्ति, पाराशर। कुलदेवी सिरसा।युद्ध फरसे का उपयोग करने वाले 'फरसोइया' कहलाये।
(40)बटवाड़ा -ऋषि -सौपायन। प्रवर- और्व्य,च्यवन,भृगु,जमदग्नि,आप्नुवान। कुलदेवी-बमुरी। मथुरा के बृजनगरी के अंचल के बंशीवट निवासी जब राजा खण्डेलगिरी के यश व वैभव से लाभान्वित होने खण्डेला (राजस्थान) पहुंचे तो पहले बंशी बटवारे फिर बाद में 'बटवारा' कहलाये।
(41)बड़ाइया (बड़ाया)-ऋषि- पाराशर प्रवर-पाराशर शक्ति वशिष्ठ। कुलदेवी-सिरसा।इस वंश के लोग दान पुण्य, वैभव, व्यापार व रणकौशल में निपुण होते थे। इनकी बड़ाई हर जगह होती थी अतएव बड़ाइया हुए ।
(42) बडहरा(बढेरा)- ऋषि- जमदग्नि । प्रवर- जमदग्नि ,परसराम,वशिष्ठ।कुलदेवी- जमबांध(जयवाय)। कपूरी पान के लिये प्रसिद्ध मध्य प्रदेश स्थित बड़नेरा निवासी आरम्भ में बड़नेने फिर |बड़ेने बाद में 'बड़ेरा' कहलाये।

(43) बनावड़ी-ऋषि -शक्ति ।प्रवर- शक्ति, पाराशर,वशिष्ठ ।कुलदेवी- सार।
(44) बंब- ऋषि -सावर्णि।प्रवर -सावर्णि।कुलदेवी-सावरदे।इनके पूर्वज शिव के अनन्य भक्त थे यही 'बम्ब' हुए ।
(45)बाजरगान -ऋषि-कात्यायन। प्रवर अत्रि,भृगु,वशिष्ठ।कुलदेवी-कोलाइन।योद्धा, सूर्यवंशी राजपूतों के वंशज, बजरंगबली के उपासक बजरंगवाल या 'बाजरधान' कहलाये जाने लगे ।
(46) बावरिया -ऋषि- पाराशर।प्रवर- पाराशर,शक्ति,वशिष्ठ।कुलदेवी-सिरसा।बावड़ी अर्थात् तालाब - लोगों की आवश्यकता अनुसार जगह जगह बावड़ी खुदवाने वालों के वंशज 'बावरिया' कहलाये ।(47)बिमवार (बीमवाल)- ऋषि- विष्णु।प्रवर -विष्णु,वृद्धि,कौरव।कुलदेवी-निमवासिनी। चित्रों का नये सिरे से निर्माण करने वालों के वशंज प्रतिबिम्बवाल बाद में धीरे-धीरे 'बीम्बवाल' कहलाने लगे ।
(48) बुढवारिया -ऋषि- वासुकी।प्रवर- अक्षोम्य,अनन्त,बासुकी।कुलदेवी-नागिन। चीनी के बुरे या खाण्ड के निर्माता एवं व्यवसायी बुढ़वारिया कहे जाने लगे।

(49) बूसर -ऋषि -पारशर।प्रवर- पाराशर,शक्ति,वशिष्ठ।-सिरसा। भूसे का व्यवसाय करने वाले भूसर और फिर 'बूसर' कहलाये गये ।
(50) भण्डारिया -ऋषि- जैमिन।प्रवर- जैमिन,उतथ्य,सांकृति।कुलदेवी -जीण। अधिकाधिक मात्रा में स्टाक रखते हुए व्यवसाय करने वाले वैश्य 'भण्डारिया' कहलाने के अधिकारी हुए ।
(51)भांगला (मेंहता)- ऋषि -शुनक।प्रवर- शुनक,शौनक,गृत्समद।भांग का व्यापार करने वाले ‘भांगला' कहलाये जाने लगे । कुलदेवी-सेतलवास।
(52) भुखमारिया- ऋषि- जैमिन।प्रवर- जेमीन,उतथ्य,सांकृति।कुलदेवी-आमण।भूख पर नियंत्रण करने वाले संत वृति के सज्जन 'भुखमारिया' कहे जाने लगे ।
(53) महरवाल- ऋषि- कानव।प्रवर-: काण्व,अश्वत,देवल।कुलदेवी-चामुंडा माता। मध्य प्रदेश के सतना जिले के मैहर निवासी 'महरवाल गोत्र के अधिकारी हुए।

(54)माठा –ऋषि-वात्स्य ।प्रवर और्व्व,च्यवन,भृगुज,मदग्नि,आप्नुवान। कुल देवी -बतवीर।मोठ के संग्रहकर्ता एवं व्यवसायी पहले मोठा और फिर 'माठा' `कहे जाने लगे।

(55) मानिक बोहरा- ऋषि -सांकृति ।प्रवर-अव्याहार,इहत्र,सांकृति ।कुलदेवी -आमण माता।माणिक व मोतियों का व्यवसायी पहले मोठा और फिर माणिक बोहरा कहे जाने लगे ।

(56)मामोडिया-ऋषि-शंडिल्य।प्रवर-शंडिल्य,औसत,देवल।कुलदेवी-सुरण्ड। कीगमोडिया का अपभ्रंश है मामोडिया | राजस्थान की कहावत के अनुसार-लीक-लीक गाड़ी चले, लीकहिं चले ।
कपूत । लीक छोड़ तीनों चले शाइट, सिह, सपूत । शाइट सिंह, सपूत के वंशज ही मामोडिया कहलाए गये ।

(57)माली- ऋषि-पाराशर। प्रवर- पाराशर, शक्ति,वशिष्ठ। कुलदेवी-सिरसा।राजा खण्डेलगिरी के समय स्वर्ण व चांदी की माली के निर्माता व व्यवसायी ‘माली' कहे जाने लगे ।

(58) मंगोलिया -ऋषि -अलाम्यान। प्रवर- अलाम्यान। कुलदेवी-टकवासन।रूस के मंगोलिया प्रान्त के वाणिज्य व्यवसायी भारत आयेऔर खण्डेला में जा बसे । कालान्तर में वहीं 'मंगोडलिया' कहलाये ।

(59)माचीवाल-ऋषि-शक्ति।प्रवर-शक्ति,पराशर,वशिष्ठ।कुलदेवी-सार।अलवर राज्यान्तर्गत माचाडी
के निवासी माचाड़ीवाले कहलाये । जिसका अपभ्रंश है - माचीवाल।

(60)मेठी-ऋषि-अगस्ति। प्रवर- अगस्ति,दाधीच,जैमिन। कुलदेवी-अमरल(नोसल)।राजनीति में निपूर्ण एवं मृदुभाषण केरके सिद्धि प्राप्त करने वाले 'मेठी' गोत्री हुए।

(61) राजौरिया -ऋषि -शुनक ।प्रवर -शुनक ,शौनक ,गृत्समद ।कुलदेवी-सेतलवास।जयपुर के राजोर स्थान के निवासी 'राजोरिया' गौत्री कहे जाने वाले लगे ।

(62) रावत – ऋषि -आलवायन ।प्रवर -आलवायन ,शालकायन,शकटायन ।कुलदेवी -ओरल।प्राचीन समय में राजस्थान में राजाओं की ओर से राव की पदवी मिलती थी जो कालान्तर में 'रावत' के नाम से विख्यात हुई । उन्हीं के वंशज 'रावत' कहलाये ।

(63) लाभी -ऋषि-जैमिन।प्रवर- जैमिन,उतथ्य,सांस्कृत।कुलदेवी-जीण।बिना किसी पूर्व योजना के क्रय विक्रय करते हुए लाभ उठाने वाले 'लाभी' कहलाये ।

(64)वैद-ऋषि-गर्ग । प्रवर- गार्ग्य,कौस्तुभ,माण्डव्य।कुलदेवी- माखद देशी जड़ी बूटियों के विशेषज्ञ एवं जन साधारण के हित में उचित कार्य करने वाले 'वैद्य' कहलाये।

(65). साकुनिया -ऋषि-जैमिन।प्रवर- जैमिन,उतथ्य,सांकृत।कुलदेवी-जीण।शौर्य, प्रतिभा, धर्म परायण व भविष्य की बात बोलने वाले पहले शकुनिया फिर साखुन्या और बद में 'साकूनिया' से विख्यात हुए ।

(66)सांवरिया(सामरिया) -ऋषि- काण्व।प्रवर- काण्व,अश्वत्थ,देवल।कुलदेवी-चामुंडा। राजस्थान के सांभर झील के आस पास के निवासी सामरया या 'सामरिया' कहलाये ।

(67) साहरिया (शाहरा) -ऋषि-जैमिन।प्रवर-जैमिन,उतथ्य,सांकृत।कुलदेवी-जीण।भारत में सहारा (अफ्रीका) से आए हुए लोग राजस्थान में वहां की जयवायु की समता के कारण आ बसे जो बाद में 'शाहरा' कहलाये।

(68) सिरोहिया -ऋषि-सौपायन। प्रवर-औवर्य,च्यवन,भृगु,जमदग्नि,आप्नुवान ।कुलदेवी-समगरा(करकट) आबू पर्व के नजदीक स्थित सिरोही स्थान के निवासी 'सिरोहिया' कहलाये ।

(69) सीगोदिया-ऋषि- काण्व । प्रवर- काण्व,अश्वत्थ,देवल ।कुलदेवी-चामुंडा।

(70)सेठी (सोनी) -ऋषि-गर्ग । प्रवर- गर्ग,कौस्तुभ,माण्डव्य।कुलदेवी-माखद।रईसो के वंशज एवं स्वर्ण चांदी का व्यापार करने वाले व आभूषण तैयार करने वाले 'सेठी-सोनी' कहलाये ।

(71) सौखियाँ -ऋषि-कृष्णात्रेय।प्रवर- कृष्णात्रेय,आत्रेय,बास।कुलदेवी-कुरसड।मथुरा जिले में बृज भूमि में सौंख के निवासी 'सौखियां' कहे जाने लगे ।

(72)हल्दिया -ऋषि-शांडिल्य । प्रवर- शांडिल्य,असित,देवल।कुलदेवी- सुरण्ड।हल्दीघाटी के निवासी 'हल्दिया' कहलाये।इनके पूर्वजः अभूतपूर्व यौद्धा थे।

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